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संवत्सराधिकारः
(१२७ छये सरोगा प्रजा परं सर्वान्नरससमर्थता, ऋयाणकजातिसर्ववस्तुमहर्षता ॥१६॥ सुभानों गुरुः स्वामी, पूर्वस्या दुर्भिक्षं लोकसुखी चैत्रे महर्षता, वैशाखज्येष्ठयारोगपीडा, आषाढेऽनं महर्ष, श्रावणे मेघोऽन्नसमता, भाद्रे महामेघः, आश्विने रोगपीडा गोधूमसमता युगन्धरीमुद्गादिन प्रति फदियानाणकानि, धातुसववस्तुमर्ध घृतसमता कार्तिकादिमासद्वयं मध्यम राजपीडिता लोकाः, पौषादिमासंत्रये रोगपीडा क्षयंकरः परस्परं विरोधः ॥१७॥ तारणे शुक्रः स्वामी, अतिवायुः परस्परं युद्धं बहुलं. चैत्रः सरोगः , वैशाखे सर्ववस्तु महर्घ, ज्येष्ठे महान् वायुः, आषाढेऽल्पवृष्टिः, श्रावणे सप्तमीतो नवमीतो वा वर्षा, भाद्रपदे एकादश्यामत्यन्तमेघः, आश्विनेऽन्नमहर्षता, एवं सर्वरससंग्रहा कार्य:, कार्तिके महर्षता, मार्गविग्रहो धान्यं महर्धम् . योगिनीपुरे महाभयं राज्ञां विरोधः, म्लेच्छभयं, पौअरिष्ट, माघ फाल्गुन में प्रजा में रोग, सब अन्नस समान और ऋयाणक जातिके सत्र वस्तुके भाव तेज हो ॥ १६ ॥ सुभानुवर्पका स्वामी गुरु है, पूर्वमें दुष्काल, लोक सुखी, चैत्र में महँगाई, वैशाख और ज्येष्टमें रोग पीडा, आपाट में अन्नभाव तेज, श्रावण में वर्षा और अन्नभाव सम, भादोंमें महावर्षा, आश्विन मैं रोगपीडा, गेहूँ का भाव सम, जुआर मूंग आदि प्रति फदियाका एक मण, पातु भाव तेज, घी समान, कार्तिकादि दो मास मध्यम, प्रजा को राज से दुःख, पौषादि तीन मास विनाशकारक रोगपीडा और परस्पर विरोध हो ॥ १७ ॥ तारणावर्षका स्वामी शुक्र है, महा वायु चलै और परस्पर युद्धकी अधिकता हो, चैत्र में गोग, वैशाखमें सब ८स्तु तेज, ज्येष्ट में महान् वायु, आषाढमें थोडी वर्षा, श्रावणकी सप्तमी से या नवमीसे वर्षा, भादोंमें एकादशीको बहुत वर्मा, अ.सोजमें अन्न भाव तेज, सब रस का संग्रह करना कार्तिकमें तेज हो, मार्गशीरमें विग्रह, धा
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