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संवत्सराधिकार
७ मेघः। आश्विनेऽन्नं समर्घ कणानां मणं प्रतिद्रामा ३५ ल. भ्यास्वर्णादिधातुसमता । कार्तिकादिमासपञ्चकमुत्तममन्नसमता । अन्यवस्तुनि महायता भवति। परं मौक्तिकादिप्रवालकं च महधैं । मार्गशीर्षे रोगबहुलता वणि पीडाः इन्चमुलतानदेशे रोगपीडा छत्रभङ्गो लोका दु:खिताः॥२८॥मन्मथे शुक्रः स्वामी; राजविरोधः, पूर्वदेशे लोकपीडा पर अतिवृष्टि रोगबाहुल्यं, धान्य संग्रहः चैत्रे वर्षा भूमिकम्पः । वैशाखे समर्थता; ज्येष्ठाषाढयोमहर्षता धान्ये षड्गुणो लाभः । श्रावणेऽल्पमेघः । भाद्रे महामेघावृष्टिर्दिन १४। आश्विने रोगपीडा, अन्नं मह; धान्यं मगं प्रतिद्वाम्मा ६० लभ्यन्ते; सर्व धातुसमर्थता । कार्तिके सुभिक्ष; गुर्जरदेशापेक्षयानसमता । मार्गशीर्षादिमासत्रयेऽन्नं समय लोकसुख राजा सुस्थः स. बंधातुसमर्घः वस्त्रमहर्घना ॥२९॥ दुमुखेशनिः स्वामी; अत्राजल वर्षा और अनाज के भाव तेन; श्रावगा में दिन २४ अधिक वर्षा; भाद्रपदमें दिन : बपा, आश्विनमें अनाज सस्ता, सुवगादि धातुके भाव सम; कार्तिकादि पांच मान्स उत्तन, अनाज समान भाव, दूसरी वस्तु तंज हो, परंतु मोती प्रयाल (मूंगा) अादि तेज हो; मागशीपमें रोग अधिक, वणिक जनको पीडा, उच्च मुलतान देश में रोगपीडा छत्रभंग और लोक दुःखी हो ॥ २८ ॥ मन्नथवर्षका स्वामी शुक्र है, राजाओंमें विरोध पूर्व देशमें लोक पीडा परंतु वा अधिक, गोग अधिक, धान्यका संग्रह करना उचित है, चैत्र वर्षा भूमिकेप. वैशाख में मस्ता, ज्येष्ठ अाघाटमें तेज होने से धान्यसे छ.गुना लाभ, श्रावण में थोड़ी वर्षा, भदोंमें दिनः १४ बड़ी वर्षा, याभिनमें रोग पीडाः अनाज महँगा, सब बातु सस्ती, कात्तिकमें मुभिक्ष, गुर्जर देशकी अपेक्षा अनी न भाव लम, मार्गशीर्षादि तीन मास अनाज सस्ता, लेक मुखी , . स ब धातु सस्ती और स्व तेज हो । २६ ॥ दुर्मस्ट
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