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मेघमहोदये ष्ठेऽपि तथैव मह।आषाढे महामेघः । श्रावणेऽल्पवर्षा, भाद्रपदे महावृष्टिः । आश्विने सुभिक्षं राजा राज्यसुस्थः प्रजा सुखं । कार्तिके सुभिक्षमन्नसमता, मागशीर्षादिमासचतुष्टय महर्घता, मनिष्ठालवङ्गमरिचमहर्घता॥२॥विजयसंवत्सरे बु. धः स्वामी, सर्वदेशेषु महापीडा, राज्ञां परस्परं विरोधः, अन्न महळू तुच्छजल मही लोहितपायिनी विप्रपीडा, गोमहिषाश्च हस्तिपीडा, चैत्रमध्ये गारववर्षा, वैशाखे ज्येष्ठेऽन्नमहर्घता, आषाढे श्रावणेऽल्पमेघः, कणकलशिका प्रतिफदिया ४०, मांद्रपदे वर्षा न वर्षति. कणकलशिका प्रतिफदिया १४; आश्विने वणिगजनपीडा, अन्नं महर्ष; फाल्गुने समता परं विग्रहो धान्ये षड्गुणो लामः ॥२७॥ जयसंवत्सरे गुमः स्वामी! महासुभिक्षं; चैत्रे महार्घता; वैशाखज्येष्ठयोः समर्घना; आषाढे मेघवर्षा अन्न महश्रावणे दिन २४ महामेघः। भाद्रपदे दिन करका (ओलः) गिरें, वैशाग्यमें धान्य महँगा, बड़ा तेज वायु चल, ज्येष्ट में भी वैसे ही महँगा, आपाटमें बड़ी वर्षा, श्रावण में थोड़ी वर्षा, भाद्रपंद में महावर्षा, आश्विन में मुकाल, गन्य में स्वस्थता, प्रजा में मन्च, कात्तिक में मभिक्ष. अनाज मात्र सम, मार्गशीपांदि मान्स ४ महता, मंजिट, लोग, मीरच ये महँग हो ॥ २६ ॥ विजयसंवत्मरका स्वामी बुध है, सब देश में महापीडा, राजाओं का परस्पर विरोध, अनाज महंगा, "जल थोड़ा, पुथ्वी लोहीकी प्यासी. ब्राह्मगा गो भग बाडा हाथी आदिको पीडा, चैत्र में गर्जनाके साथ वी, वैशाग्य तथा ज्येष्टमें अनाजभाव तेज । आपोदृ श्रा'चा में थोडा वर्ग। भाद्रपद में अपान वाप. "फदिया ह का कलशी धान्य, "आश्विन में वणिक्जन को पीडा, अनाज तेज. फाल्गुम में समान, और विग्रह तथा चान्यमें छगुना लाभ हंस ।। २७ ।। जयसंवत्सरका स्वामी 'गुरु है, बड़ा मुकाल, चैत्र में तेज, बैशाख और ज्येष्टमें लस्ता, आपाट में
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