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संवत्सराधिकारः
केवलज्ञानमास्थाय दुर्गदेवेन भाष्यते ॥ १॥
पार्थ उवाच - भगवन् दुर्गदेवेश ! देवानामधिप ! प्रभो ! | भगवन् कथ्यतां सत्यं संवत्सरफलाफलम् ॥ २ ॥ दुर्गदेव उवाच - शृणु पार्थ ! यथावृत्तं भविष्यन्ति तथाद्भुतम् । दुर्भिक्षं च सुभिक्षं च राजपीडा भयानि च ॥ ३ ॥ एतद् योऽत्र न जानाति तस्य जन्म निरर्थकम् । तेन सर्व प्रवक्ष्यामि विस्तरेण शुभाशुभम् ॥ ४॥
प्रभवदिभवी शुभौ शुक्लोऽशुभः, प्रमोदप्रजापती शुभौ, अङ्गिरा अशुभः, श्रीमुखभावौ शुभौ युवा विरुद्धः, धाता समः, ईश्वरबहुधान्यौ शुभौ प्रमाथी विरुद्ध, विक्रमवृषभौ शुभौ, चित्रभानुर्विरुद्धः, सुभानुतारणौ शुभौ, पार्थिवो विरुद्धः, व्ययः समः ॥ इति प्रथमा विंशतिका ॥ भणियं दुग्गदेवेण जो जाणइ वियक्खणो ।
सो सवत्थ वि पुज्जो णिच्छ्रयओ लद्धलच्छ्री य ॥ १ ॥
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कहते हैं ॥ १ ॥ पार्थ उवाच - हे परमपूज्यवर्य भगवन् दुर्गदेवेश ! संवत्सर का फलाफल सत्यतापूर्वक कहो || २ || दुर्गदेव उवाच - हे पार्थ ! दुष्काल मुकाल राजपीडा भय अभय आदि होंगे उनका यथार्थ अद्भुत वर्णन सुन || ३ | उसको जो नहीं जानता है उसका जन्म व्यर्थ है, इसलिये मैं सब शुभाशुभ को विस्तार पूर्वक कहता हूँ ॥ ४ ॥ प्रभव और विभववर्ष शुभ हैं, शुक्लवर्ष अशुभ है, प्रमोद और प्रजापति वर्ष शुभ हैं अङ्गिरा अशुभ है, श्रीमुख और भाववर्ष शुभ है, युवावर्ष विरुद्व है, धाता समान है, ईश्वर और बहुधान्यवर्ष शुभ हैं, प्रमाथी विरुद्ध है, व्यय समान है, ॥ इति प्रथमा विंशतिका ॥
दुर्गदेव मुनि ने जो कहा है, उसको यदि विचक्षण पुरुष जाने तो वह सर्वत्र माननीय होता है और निश्चय से लक्ष्मी को पाप्त करता है ॥ १ ॥
" Aho Shrutgyanam"