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संवत्सराधिकार
(८१)
पाठान्तरे-संवत्सरसमायुक्ता-स्त्रिगुणाः पञ्चभिर्युताः सप्तभिस्तु हरेद्भागं शेषं वर्षफलं मतम् ॥१३॥
अत्रापि संवत्सरशब्देन शाकसंवत्सर एव ग्रायःस चापाढादिरेव, य आषाढे संवत्सरो लगतिस शाकसंवत्सरो गगयते इत्यर्थः । उदाहरणं यथा-संवत् १६८७ वर्षे आषाढादि शकसंवत्सरः१५५२ ततः पञ्चदशत्रिगुणीकरणे जातं पञ्चचत्वारिंशदु ४५, द्विपञ्चाशतस्त्रिगुणीकरणे जातं षट्पञ्चाशदुत्तरंशतं १५६, तस्मिन् पञ्चचत्वारिंशद् योगेजातं २०१ तत्र पञ्चमीलने २०६ मतभिर्भागे शेषं त्रयम् । ततो 'दुर्भिक्षं तु त्रिपञ्चके' इतिवचनात् सप्ताशीतिके दुष्काल इति । अत्र पाठान्तराणि बहूनि यथा--- शाकं च त्रिगुणं कृत्वा सप्तभिर्भागमाहरेत् । शेषं च द्विगुणीकृत्य पञ्च तत्र नियोजयेत् ॥१४॥ और एक शेष हो तो समान फल हो ॥ १२ ॥ पाठान्तर शकसंवत्सर के ( शताब्दी)का और वर्ष को त्रिगुणा कर इकट्ठा करना, उसमें पांच मिलाकर सात से भाग देना,शेष बचै उसका फल कहना ॥ १३ ॥ यहां भी संवत्सर शब्द से शकसंवत्सर ही जानना | आषाढ मास से जो वर्ष प्रारंभ होता है उसको शकसंवत्सर कहते हैं । उदाहरण ---विक्रम संवत् १६८७ वर्ष में अाषाढादिक शकसंवत् १५५२ है,उसमें सौका ( शताब्दी) १५ को तीन गुणा किया तो ४५ हुआ और वर्ष ५२ को त्रिगुणा किया तो १५६ हुआ ये दोनों को मिलाया तो २०१ हुआ इसमें ५ मिलाया तो २०६ हुआ इसमें ७ से भाग देने से शेष बचे, इसलिये विक्रमसंवत्सर १६८७ में दुष्काल कहना ।
शक संवत्सर को त्रिगुणा कर के सात से भाग देना, जो शेष रहे, उसको द्विगुणा कर पांच मिला देना ॥ १४ ॥ अन्यत्-संवत्सर को द्विगुणा
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