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संवत्सर धिकारः
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यस्य फलम् - वर्षाविंशोपकाः सर्वे त्रिगुणास्त्रिभिरूनिताः । सप्तभिस्तद्विभागेन शेषं संवत्सरे फलम् ||२७|| चन्द्रे वेदे च दुर्भिक्षं सुभिक्षं युग्मवाणयोः । त्रिषष्ठे मध्यमः कालः शून्यै रौरवमादिशेत् ॥२८॥ अथ षष्टिसंवत्सरम्
संवद्विक्रमराजस्य न्यूनः शरगुगोन्दुभिः ।
शाकोऽयं शालिवाहस्य भूद्वियुक् षष्टिभिर्भजेत् ॥२६॥ शेषेषु प्रभवादीनां वर्षादौ नाम जायते । प्रवृत्तिः षष्टिवर्षाणां गुरोर्मध्यमभोगतः ||३०|| अत्र स्थूलमतन संवत्सरप्रवृत्तिर्यया
वारे वेदा ४ स्तिथौ शैला ७ घटीषु द्वितयं क्षिपेत् । पूर्वसंवत्सराद् भावि-वत्सरागमनिर्णयः ॥३१॥ प्रभवो विभवः शुक्लः प्रमोदोऽथ प्रजापतिः । अङ्गिराः श्रीमुखो भावो युवा धाता तथैव च ॥३२॥ ईश्वरो बहुधान्यश्च प्रमाथी विक्रमो वृषः ।
सातसे भाग देकर शेषसे वर्षका फल कहना ॥ २७ ॥ शेष एक या चारहो तीन या छ हो तो मध्यम काल
२८ ॥ इति शाकः ॥
तो दुष्काल, दो या पांच हो तो सुकाल, और शून्य हो तो रौरव ( भयानक ) हो ॥ विक्रमसंवत्सर में से १३५ घटादेने से शालिवाहन का शक संवत्सर होता है । इसमें बारह मिलाकर साठ का भाग देना ॥ २६ ॥ जो शेष बचै वह प्रभव आदि वर्ष का नाम जानना | बृहस्पति के मध्यम भोग से साठ वर्षों की प्रवृत्ति होती है ॥ ३० ॥ अथवा वार में चार, तिथि में सात और घड़ी में दो मिलाने से भावी वर्ष का निर्णय होता है ॥ ३१ ॥ साठ संवत्सरों के नाम-प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विम, वृष, चित्रभानु, सुभानु
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