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संवत्सराधिकार: श्रीरामदासरूचिदे गणितप्रवन्धे ,
दैवज्ञरामकृतरामविनोदनान्नि । श्रीसूर्यभक्तिमदकब्बरशाहिशाके ,
सौरागमानुभजतस्तिथिपत्रमेतत् ॥४६॥ +याताब्दा यमरवर्जिता नगगुणाः शून्याम्बराङ्गो ६००.द्वता ,
भाज्यं लब्धमिताऽब्दनेत्रदहना३२वयंशाब्दशकेन्दुतः। दिग१०भागाप्तकलायुतं प्रभवतोऽब्दाः षष्टिशेषाः स्मृताः , . शेषांशा रविभिहता दिनमुखं मेषार्कतः प्राग्वेत् ॥४७॥
अत्र दाक्षिणात्याः सौरमानेन संवत्सरप्रवृत्तिमाहुः । उक्तं च 'शाके सार्के हृते खाङ्गैः शेषे स्युः प्रभवादयः' । तेषां च फलानि-- स्वरूप होकर भी जगत्के प्राणियोंको जीवन देता है, और जो ब्रह्माण्ड रूपी संपुटका मणिरूप है, ऐसे श्री सूर्यनारायणको प्रणाम करता हूँ । ४५॥ श्री रामदास को अानन्ददायक गणितप्रबंध याने रामदैवज्ञविरचित रामविनोद नामक गणितग्रंथमें सूर्य नारायणके भक्त अकबर बादशाहके शाकमें यह तिथिपत्र सूर्यसिद्धान्तके अनुसार है ॥ ४६ ॥ - दक्षिणदेश के रहने वाले सौरमान से संवत्सर की प्रवृत्ति मानते हैं । कहा है कि- शक संवत्सर में बारह मिला कर साठ का भाग देना, जो + यह लोक बराबर समझने में नहीं प्रानेसे उसके स्थान पर निम्न लिखित प्रचलित श्लोक लिख देता हूँ.शकेन्द्रकालः पृथगाकतिनः, शशाङ्कनन्दाश्वियुगैः समेतः। शराद्रिवस्विन्दुहृतः सलब्धः, षष्ट्यप्तशेषे प्रभवादयोऽन्दा: ॥१॥ __ इछ शालिवाहन शक को दो जगह लिख कर एक जगह २२ से गुण, इस गुणनफल में ४२९१ जोड़ कर १८७५ का भाग दं, जे लब्धि मिले उसको दूसरे स्थान पर लिखा हुधा शकवर्षमें जोडे, इसमें ६० का भाग दें जो शेष रह वही प्रभव आदि वर्ष जानें। प्रथम जो शेष बचा है उनको १२ से गुणा कर १८७५ से भाग दें तो महीना और इस की शेष, ३० से भाग दे कर १८७५ से भाग दें तो दिन मिल जाता है ।।
"Aho Shrutgyanam"