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संवत्सराधिकारः
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अथ वर्षद्वारागिा--- शाकं वत्सरमायनाद्यदिवसं मासं सपक्षं दिन,
पीताब्धि नृपमनिधान्यपरसादीशाः परे पूर्वगाः। अब्दस्यापि च जन्मलग्नमनिलं विद्युद्युताभ्रोदय, ___ गर्भ वारिमुचां तिथिं ग्रहगणं वारं सनक्षत्रकम् ॥३॥ कपूरसर्वतोभद्रचक्रे योगान् जलोदयान् । शकुनांश्च विमृश्यैव ज्ञेयं वर्षशुभाशुभम् ॥४॥ शाकस्त्रिघ्नो युतो द्वाभ्यां चतुर्भागेऽक्शेषितः । समेऽके स्यादल्पवृष्टिः प्रचुरा विषमे पुनः ॥५॥ राशीश्वरोर्षपयुक् त्रिगुणो, लाभः शरात्यस्तिथिभक्तशेषः। लब्धे त्रिगुपये शरयोजितेऽस्य, बाणेन्दुभागे व्यय एव शिष्टः।
राशिस्वामी वर्षराजस्य दशावर्षधुवयुक्तः क्रियते, ततस्त्रिगुणीकार्यः, तत्र पञ्चभियुक्तः कार्यस्तस्य पञ्चदशभिर्भागे शेषाङ्कत प्रायः स्यात् । पश्चालब्धाङ्के त्रिगुणीकृते पञ्चभिदिन,मास, पक्ष, दिन, अगस्त्यतारा, वर्ष का राजा और मन्त्री,धान्येश, रसेश, वर्ष का जन्मलग्न, वायु, बीजली के साथ बद्दल का होना, मेघ का गर्भ,तिथि, ग्रहसमूह, वार, नक्षत्र,कर्पूर चक्र, सर्वतोभद्रचक, जल के उदय ( वर्षा ) का योग और शकुन इत्यादिक का विचार करकेही वर्ष का शुभाशुभ जानना ॥३-४॥
शालिवाहन शक को त्रिगुणा करके दो मिलाना, उसमें चार का भाग देना, जो समशेष बचे तो अल्पवृष्टि और विषम शेष बचे तो बहुत वृष्टि हो ॥५॥ राशि के स्वामी और वर्ष के स्वामी के अष्टोत्तरी दशा के ये दोनों ध्रवाङ्क मिलाकर त्रिगुणा करना, इसमें पांच मिलाकर पंद्रह से भाग देना, जो शेष बचे, वह लाभ-आय है और लब्धाङ्क को त्रिगुणा करके पांच मिलाना इसमें पंद्रह से भाग देने से जो शेष बचे वह 'छाय' है यह वर्ष का आयव्यय है ॥ ६॥ कोई बारह राशियों के आय और व्यय का मिलान करते हैं,
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