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देवाधिकार
तयापि क्रियते वृष्टिः कचिदवानुकूल्यतः ॥१६॥ शिष्टैने साऽनुमन्तव्या पन्था नाद्रियतेऽपि सः । यतः पवित्रा देवेन्द्र प्रमुखा वृष्टिनायकाः ॥१७॥ हिंसया ते न तुष्यन्ति प्रीयन्ते ते हि पूजया । नैवेद्यैर्विविधैधूपै-गन्धैः स्तोत्रैर्जपैस्तथा ॥१८॥ येऽनभिज्ञा जपार्चासु कृषिकर्मादितत्पराः । तैरप्यातपसंस्थानः कार्य त्रैरात्रिकं व्रतम् ॥१९॥ चतुर्विद्युत्कुमारीणां माघाऽसिताद्यवासरे। द्विसाहस्री जपः कार्य-स्तासां सन्तुष्टये बुधैः ॥२०॥ माघशुक्लचतुथ्यो तु नागा उदधयस्तथा । स्तनिता भवनाधीशा आराध्या जपकर्मभिः ॥२१॥ प्रत्येकं तु बिसाहस्त्री गणनं प्रतिवत्सरम् । विधेयं प्रीतये तेषां तद्देवीनां तथैव च ॥ २२॥ १६॥ यह जीवहिंसादि की विधि सज्जनों को माननीय नहीं है कारण यह राक्षसी मार्ग है, जिस से अनादरणीय है। वृष्टि के नायक तो पचित्र देवेन्द्र प्रादि देव ही हैं ॥१७॥ ये हिंसा से संतुष्ट नहीं होते हैं मगर पूजन से अनेक प्रकार के नैवेद्य से, धूप से, सुगंधित द्रव्यों से, स्तुति करने से और उन का ध्यान करने से ही संतुष्ट होते हैं ॥१८॥ जो खेती कार (किसान)
आदि लोग ध्यान-पूजन में अनजान हैं, वे सूर्यसंमुख बैठ कर त्रैगत्रिक व्रत (तीन उपवास) करें ॥१६॥ सुज्ञ जन चतुर्विध विद्यत्कुमारियों को संतुष्ट करने के लिये माघ कृष्ण प्रति पदा के दिन दो हजार जाप करें । २०॥ माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन नागकुमार, उदधि कुमार, स्तनितकुमार,
और भुवनपति देवों की आराधना जप कर्म से करें ॥२१॥ प्रत्येक वर्ष उन प्रत्येक देवों का दो हजार जाप उन को संतुष्ट करने के लिये जपे । इसी तरह उन की देवियों का भी जाप करना ॥२२।। ऊपर मूल में लिखा हुआ
"Aho Shrutgyanam"