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मेघ महोदये
सक्करस गं देविंदरस देवरष्णो वरुणस्स महारष्णो इमे देवा आणावयणनिद्देसे चिट्ठति, तं जहा-वरुणकाइआइ वा, वरुणदेवकाइआइ वा नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहिकुमारा उदहिकुमारीओ, थणिअकुमारा थणिअकुमारीओ, जे यावण्णे तहृपगारा सच्चे ते तब्भत्तिआ, तप्पक्खिआ, तब्भारिया, सक्करस देविंदस्स देवर राणो वरुणस्स महारण्णी आणा - उबवाय वयगा निहेसे चिटुंति. जंबुद्दीवेदीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेगं जाई इमाई समुप्पज्जंनि, तं जहा अड्वासाइ वा, मंदवासाइ वा, सुबुट्टीइ वा, दुबुडीइ वा, उदब्भेइ चा, उदप्पीलाइ वा, उव्वाहाइ वा, पत्रवाहाड़ वा, गामवाहाइ वा, जावसन्निवेसवाहाइ वा, पाणक्खया, जणक्खया, धणक्खया, कुलक्खया, वसणन्भूया अणारिया जे यावण्णे तहपगारा ण ते सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो, वरुणस्स महारण्णो,
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शक्र देवेन्द्र देवराज वरुण महाराज की आज्ञा में ये देव रहने वाले हैं-- वरुणकायिक वरुणदेवकायिक, नागकुमार नागकुमारियाँ, उदधि कुमार उदधिकुमारियाँ स्तनितकुमार स्तनितकुमारियाँ और दूसरे भी उस प्रकार के देव, ये सब उन वरुणदेवेन्द्र की मक्तिवाले, उन के पक्ष वाले और उन के ताबे में रहने वाले हैं । ये सब देव वरुण की आज्ञा में, उपपात में, कहने में और निर्देश में रहते हैं । जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में मेरु पर्वत की दक्षिण तरफ उत्पन्न होने वाले अतिवृष्टि, मंदष्वृष्टि, सुवृष्टि, दुर्वृष्टि, उदकोद्वेद ( पहाड आदि में से पानी की उत्पत्ति), उदकोपील (तलाव आदि में पानी का समूह), अपवाह ( पानी का थोडा चलना), पानी का प्रवाह, गाम खिचाय जाना यावत् सन्निवेश का खिंचाना, प्राण क्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत, अनार्य (पाप रूप ) और इस प्रकार के दूसरे सब भी शक देवेन्द्र देवराज वरुण महाराज से अनजान नहीं
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