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मेषमहोदये
धान्यं धनं तथैशाने सुखं धान्यसमर्थता ॥८॥ आषाढे घनशिखरं गर्जति यदि वाति चीत्तरः पवनः । दशमे मासि तदानीं भुवि मेघमहोदयं कुर्यात् ॥८६॥ अभ्रं विनाषाढपूर्णा वातौ पूर्वोत्तरौ यदि। यत्र यामाईके तत्र मासे वृष्टिहठाद्भवेत् ॥१०॥ न चेत्पूर्वोरत्तो वातौ न चाभ्रं नापि वर्षणम् ।
आषाढ्यां तर्हि विज्ञेयं दुर्भिक्षं लोकदुःखदम् ॥११॥ मार्गशीर्षमासे वायुविचार:मार्गमासे सिताष्ठम्यां पूर्वो वातः सुभिक्षकृत् ।
अन्यदिक्पवनः कुर्याद् दुर्भिक्षं भावि वत्सरे ॥१२॥ पौषमासे वायुविचार: एकादश्यां पौषकृष्णे दक्षिणः पवनो यदा । विद्युद्धादलसंयुक्तस्तदा दुर्भिक्षकारकः ॥९३ ।। पौषस्य शुक्लपञ्चम्यां तुषारः पवनी यदि । धान्य और सुखप्राप्ति हो तथा धान्य सस्ते हों ॥ ८८ ॥ आषाढ महीने में मेघगर्जना हो और उत्तर दिशा का वायु चले तो दशवें दिन पृथ्वी पर मेध का उदय जानना ॥८६॥ आषाढ पूर्णिमा को जिस यामाई में बादल न हो किंतु पूर्व और उत्तर का वायु चले तो उस महीना में वर्षा कचित् होती है ॥ ६० ॥ यदि पूर्णिमा को बादल न हो और पूर्व उत्तर का वायु भी न हो तो लोक को दुःख दायक ऐस! दुर्भिक्ष होता है ॥११॥
मार्गशिर शुक्ल अष्टमी के दिन पूर्व दिशा का वायु चले तो सुभिक्ष करता है और दूसरी दिशा का वायु चले तो अगला वर्ष में दुर्भिक्ष करता है ॥ ६२ ॥
पौष कृष्ण एकादशी को दक्षिण दिशा का वायु चले और बिजली तथा बादल हो तो दुर्भिक्ष कारक जानना ।। ६३ ॥ पौष शुक्ल पंचमी को
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