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मेघमहोदये यदि मेघस्तदा वृष्टिः श्रावणे जायते ध्रुवम् ॥६॥ तृतीयायां पूर्ववायुः पूर्वगामी च वारिदः। घना मेघास्तदा भाद्रे वर्षन्ति विपुलं जलम् ।। ६४॥ चतुर्थी दक्षिणी वायुर्मेधः पूर्वे च गच्छति । आश्विने च तदा मासे वृष्टिर्भवति निश्चितम् ॥६५॥ वृष्टे दिनचतुष्केऽस्मिन् वाते पूर्वोत्तरागते । अतिवृष्टिः सुभिक्षं च दुर्भिक्षं च तदन्यथा ॥६६॥ द्वादशीप्रतिपत्पूर्णामावास्यां चेन्महानिलः । वृष्टिोमाभ्रसंछन्नं तदा मेघमहोदयः ॥६७॥ आषाढपूर्णिमायां वायुविचार:----
आषाढयां घटिकां षष्ठया मासद्वादशनिर्णयः । पूर्णायां पञ्चकाः षष्ठि दशेति विभाजनात् ॥६८॥ पश्चनाडी भवेन्मासः षष्ठया वर्षस्य निर्णयः । सर्वरानं यदाभ्राणि वातौ पूर्वोत्तरौ यदि ॥६९॥ के वर्षा होती है ॥ ६३ ॥ तृतीया के दिन पूर्व का तायु चले और पूर्व में ही बादल जाते हो तो भाद्रपद में बहुत वर्षा हो ॥ ६४ ॥ चतुर्थी के दिन दक्षिण का वायु चले और बादल पूर्व में जाते हो तो आश्विन मास में निश्चय कर के वर्षा होती है ॥ ६५ ॥ इस वर्षा के चार दिन पूर्व तथा उत्तर का वायु चले तो बहुत वर्षा और मुभिक्ष हो, अन्यथा दुर्भिक्ष हो।। ६६ ॥ द्वादशी प्रतिपदा पूर्णिमा और अमावास्या के दिन बड़ा पवन चले, वर्षा हो और आकाश बादलों से आच्छादित हो तो मेघ का उदय जानना ॥ ६७ ॥ आषाढ पूर्णिमा की साठ घड़ी पर से बारह महीने का निर्णय करें। पूर्णिमा की साठ घड़ी को बारह से भाग दें तो लब्धि पांच धड़ी आवे॥ ६८॥ इन पांच घड़ी का एक मास, इसी तरह वर्ष का निर्णय करें । सारी रात बादल रहें और पूर्व तथा उत्तर का वायु चले ॥६६॥ तो उस
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