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वाताधिकारः
(५५)
आषाढे श्रावणे क्षिप्रं द्वौ मासौ वृष्टिरुत्तमा ॥५॥ पूर्वस्यां च तथेशान्यामाग्नेय्यां वाति च क्रमात् । भाद्रपादाश्विनौ च्छिद्रादाद्यन्ते वृष्टिरूत्तमा ॥२८॥ अमावास्यां च पूर्णायां ज्येष्ठमासे दिवानिशम् । मेघेराच्छादिते व्योन्नि वातो वहति वारुणः ॥ ५९॥ अनावृष्टिस्तदादेश्या क्वचिदृष्टिस्तु भाग्यतः । मासौ द्वौ श्रावणाषाढौ पूर्गाभाद्रपदाश्विनौ ॥६॥ आषाढमासे वायुविचारः --
आषाढशुक्लपञ्चम्यां पश्चिमो यदि मारुतः । वर्षागर्जितसंयुक्तः शक्रचापेन भूषितः ।। ६१॥ तदा संगृह्यते धान्यं कार्तिके तन्महर्षता । लाभाय जायते नूनं नान्यथा ऋषिभाषितम् ॥ २॥ आषाढशुक्लपक्षस्य द्वितीयायां न वर्षति ।
ये दो महिने में वर्षा उत्तम हो ॥ ५७ ॥ पूर्व ईशान और आग्नेय दिशा का क्रम में वायु चले तो भाद्रपद और आश्विन मास की आदि अंत में उत्तम वर्षा हो ॥ ५८ ।। यदि ज्येष्ठ महिने की अमावास्या और पर्णिमा के दिनरात आकाश बादलों से आच्छादित रहें और पश्चिम दिशा का वायु चले ! ५६1: तो अनावृष्टि कहना, क्वचित ही भाग्ययोग से वर्षा हो श्रावण आषाढ भाद्रपद और आश्विन ये विना बरसे पूर्ण हो ।। ६० ॥ ____ आषाढ शुक्ल पंचमी के दिन पश्चिम दिशा का वायु चले, मेघ गर्जना के साथ वर्षा हो और इंद्रधनुष का उदय हो ॥ ६१ ॥ तो धान्य का संग्रह करना अच्छा है, कारण कि कार्तिक मास में महँगा हो जाने से लाभ होगा, यह ऋषिभाषित कथन अन्यथा नहीं होता ॥ ६२ ॥ आषाढ शुक्ल द्वितीया के दिन वर्षा न हो और बादल हो तो श्रावण में निश्चय कर
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