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मेघमहोदये
वृष्टया सह तदा वर्षे (भाद्रे) धान्ये त्रिगुणमूल्यता ॥२६॥ एवंच-चत्रोऽयं बहुरूपस्तु दक्षिणानिलसंयुतः । सर्वो विद्युत्समा युक्तो वृष्टेगर्भहितावहः ॥२७॥ मूलमारभ्य याम्यान्तं क्रमाच्चैत्रं विलोकयेत् । यावहक्षिणतो वायुस्तावदृष्टिप्रदायकः ॥२८॥ वैशाखमासे वायुविचार:---- शुक्ला कृष्णापि वैशाखेऽष्टमी यदा चतुर्दशी। एषु चेद्दक्षिणोवातस्तदा मेघमहोदयः ॥२९॥ राधे शुक्लतृतीयायां चिढनिश्चीयतेऽनिलः । पूर्वस्या यदि वोदीच्या धनाधनस्तदा घनः ॥३०॥ दक्षिणो नै तो वायुवृष्टेः स्यात् प्रतिघातकः । वारुणाद् वृष्टिरधिका परधान्यस्य रोधनम् ॥३१॥ वैशाखशुक्लतुर्येऽहि सन्ध्यायामुत्तरानिलः ।
महँगे हो ॥ २६ ॥ चैत मास में अनेक प्रकार के दक्षिण दिशा का पवन चले और बिजली चमके तो वर्षा के गर्भ को हितकारक है ॥२७॥
चैत्र मास में मूल नक्षत्र से भरणी नक्षत्र तक क्रमसे देखें, जब तक दक्षिण दिशा का वायु चले तब तक चौमासे में उतनी वर्षा होती है ।। २८॥
वैशाख मास में शुक्ल या कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी के दिन दक्षिण दिशा का वायु चले तो मेघ का उदय जानना ॥ २६ ॥ वैशाख शक्ल तृतीया के दिन चिह्नों से वायु का निश्चय करें, यदि पूर्व या उत्तर दिशा का प्रचुर वायु चले तो वर्षा हो ॥ ३० ॥ दक्षिण या नैर्ऋत्य दिशा का वायु चले तो वर्षा की रुकावट हो, पश्चिम का वायु चले तो वर्षा अधिक और धान्य का रोध हो ।। ३१ ।। वैशाख शुक्ल चतुर्थी के दिन संध्या के समय उत्तर दिशा का वायु चले तो सुभिक्ष करता है। पंचमी के दिन पूर्व
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