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मेघमहोदये
पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति ? हंता, अस्थि । एवं पच्चत्थिमेणं दाहिणे णं उत्तरे णं उत्तरपुरस्थिमे णं, दाहिणपुरत्थिमे णं दाहिणपञ्चस्थिमे णं उत्तरपचत्थिमे णं, जयाणं भन्ते ! पुरत्थिमे णं ईसिं० जाव वायंति । तयाणं पबत्थिमे णं वि ईसिंपुरेवाया जयाणं पच्चत्थिमे णं ईसिपुरे - वाया० जाव वायन्ति । तयाणं पुरत्थिमे णं वि ईसिं तयाणं पञ्चस्थिमेण वि ईसि । एवं दिसासु विदिसासु ॥ इतिश्रीभगवत्यां पञ्चमशतके द्वितीयो देशके ॥
(४४)
अत्ययमर्थो यदुत वाता वान्तीति योगः कीदृशा (श: ? ) इत्याह :- 'ईसिपुरेवाय'त्ति मनाक् सस्नेहवाताः । 'पच्छावाय त्ति वनस्पत्यादिहिता वायवः | 'मन्दावाय' त्ति शनैः संचारिणो न महावाता इत्यर्थः । 'महावाय' त्ति उद्दण्डवाता अनल्पा इत्यर्थः । 'पुरस्थिमेणं' ति सुमेरोः पूर्वस्यां दिशीत्यर्थः । ननु सूत्रोक्तरीत्येवं द्वीपे वातैक्यमापतेत् ।
तेज चलने वाला महावायु चलते हैं ? हे गौतम ! हां, ये वायु चलते हैं । हे भगवन् ! पूर्व दिशा में ईषत्पुरोवायु पथ्यवायु मन्द्रवायु और महावायु चलते हैं ? हे गौतन ! हां, चलते हैं । इस प्रकार पश्चिम में, दक्षिणा में, उत्तर में, ईशानकोण में, अग्निकोणमें, नैऋत्यकोण में और वायव्यकोण में समझना । हे भगवन् ! जब पूर्व में ईषत्पुरोवायु पश्यवायु मंदवायु और महावायु चलते हैं तत्र पश्चिम में भी ईषत्पुरोवायु आदिवायु चलते हैं ? और जब पश्चिम में ये वायु चलते हैं तब ये पूर्व में भी चलते हैं ? हे गौतम! जब पूर्व में ईषत्पुरोवायु आदि वायु चलते हैं तब ये पश्चिम में भी चलते हैं । और जब पश्चिम में ईरोवायु आदि वायु चलते हैं तब ये पूर्व में भी चलते हैं । इसी तरह सत्र दिशा और विदिशा में भी समझना ।
यह सूत्रोक्त रीति से द्वीप ( स्थल ) में रहे हुए वायु के समूह का
"Aho Shrutgyanam"