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तथा ईश्वर को मोक्ष-प्रदाता बताया है।"
योगदर्शन सांख्यदर्शन का अनुगामी-दर्शन माना जाता है। इस दर्शन ने क्लेशादि से अपरामृष्ट पुरुषविशेष को ईश्वर माना है । योगदर्शन का यह ईश्वर सब प्रकार के बन्धनों से सर्वथा अछूता है। इसको ऐश्वर्यसम्पन्न एवं नित्य माना है। सामान्य पुरुष अकर्ता है, परन्तु ईश्वर अकर्ता नहीं है। इस तरह योगदर्शन सांख्यानुगामी होकर भी पुरुषविशेष के रूप में ईश्वर को स्वीकार करता है। चार्वाकदर्शन
वैदिककाल में यज्ञानुष्ठान तथा तपश्चरण पर विशेष बल दिया जाता था। मनुष्यों को ऐहिक बातों की अपेक्षा पारलौकिक बातों की चिन्ता विशेष रूप से रहती थी। इन बातों की प्रतिक्रिया स्वरूप चार्वाक दर्शन का उदय हुआ। इस दर्शन का सबसे प्राचीन नाम लौकायतिक है। साधारण लोगों की तरह आचरण करने के कारण चार्वाक दर्शन के अनुयायी का नाम लौकायतिक प्रचलित हुआ। चारु (सुन्दर) वाक् (बात) को अर्थात् लोगों को प्रिय लगने वाली बात को कहने के कारण चार्वाक नाम पड़ा। चार्वाक दर्शन का कोई एक व्यवस्थित ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, पर छिट-पुट-रूप में कुछ सूत्र कारिकाएँ उपलब्ध हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि चातुभौतिक देह तथा चक्षुरादि इन्द्रियों के समुदाय के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियातीत आत्मा आदि का अस्तित्व नहीं है। जब आत्मा का ही अस्तित्व नहीं हो, तो ईश्वर की कल्पना तो व्यर्थ ही है। वार्हस्पत्य अर्थशास्त्र में कहा गया है 'आत्मावान् राजा' अर्थात् लौकिक राजा के अतिरिक्त अन्य किसी भी इन्द्रियातीत ईश्वर या परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है। षड्दर्शनसमुच्चय में कहा गया है लोकायत (चार्वाक) मत में न कोई देव है, न मोक्ष है, धर्म-अधर्म नाम की कोई वस्तु नहीं है।
बौद्धदर्शन
बौद्धधर्म दर्शन के संस्थापक तथागत बुद्ध थे। उन्होंने आत्मा को क्षणिक माना है, अतः ईश्वर की उपपत्ति नहीं होती है। स्पष्टतया बौद्ध अनीश्वरवादी ही है। बौद्धदर्शन के चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं, जिनके अपने-अपने विशिष्ट दार्शनिक सिद्धान्त हैं। इनके नाम हैं-वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक। बौद्धदर्शन में अनात्मवाद, क्षणभंगवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद, अन्यापोहवाद, प्रतीत्यसमुत्पादवाद, आदि सिद्धान्त प्रमुख हैं।
जैनदर्शन
जैनेतर दार्शनिकों के ईश्वरविषयक मतों का विश्लेषण करने से स्पष्ट है कि वस्तुतः देखा जाय तो चार्वाक मत को छोड़कर शेष सभी दार्शनिक ऐश्वर्यवाचक 'ईश्वर' को
52 :: जैनधर्म परिचय
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