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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
नमो परिहंताएं नमो सिद्धाए
नमो प्रायरियाएां नमो उवज्झायाणं
9900
सव्व पाव
प्पासो
मंगलाएां च सव्वेसिं
एसो पंच नमुक्कारो
पढमं होइ मंगलं.
नमो लोए. सव्वसाहूए
गणि महोदयसागर
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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गिसक हिलामी श्री नवकार,
उरी करेगा त्या संसार (नवकार महामंत्र के अर्वाचीन अद्भुत दृष्टान्तों का संग्रह)
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• संपादक शासन सम्राट, भारत दिवाकर तीर्थ प्रभावक, तपोनिधि
अचलगच्छाधिपति, प.पू.आचार्य भगवंत श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के विनेय आगमाभ्यासी पू.गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा.
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-हिन्दी अनुवादक श्री मदन एच.बोहरा, बाड़मेर (राज.) (सह सम्पादक : "धर्मघोष" हिन्दी मासिक (सचिव : आर्य संस्कृति जागृति केन्द्र, बाड़मेर)
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प्रकाशक
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श्री कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट
102, लक्ष्मी एपार्टमेन्ट, 206, डॉ.एनीबेसेन्ट रोड़
वरली नाका, मुंबई 400 018 दूरभाष : 4936660, 4936266, 4943942
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
प्राप्ति स्थान (प्रकाशक के उपरांत)
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मे.हरखचंद एण्ड कुं. । यशवंत चेम्बर्स, तीसरी मंजिल
बरजोरजी भरूचा मार्ग, फोर्ट-मुंबई-23 दूरभाष : 2672107, 2673370
मे.हरखचंद हीरजी की कुं. ए.पी.एम.सी.मार्केट फेस-11
तुर्भे,गाला-0-14 वाशी-नयी मुंबई- 400 703 दूरभाष - 7663478, 7666026
मे.शान्ति बुक डिपो
बी.डी.चाल नं. 24 । दुकान नं 2/4
वरली-मुंबई-400018 दूरभाष : 4934827
डॉ. रतिलाल एच.वोरा
शान्ति क्लिनिक इलोरा शॉपिंग सेन्टर के सामने, दफतरी रोड़, मलाड़ (पूर्व) मुंबई-400067 दूरभाष : 8826543, (ओं) 8811516 (घर)
श्री लक्ष्मीचन्दभाई शामजी छेड़ा श्री विसनजी भाईसुंदरजी गडा 15 स्वप्नलोक, लॉ गार्डन के पास,
बरोड़ा फेमीली सेन्टर । Pएलीस ब्रीज, अहमदाबाद- 380006
रावपुरा टॉवर के पास, ।। दूरभाष : 6565525
बड़ौदा (गुजरात) 390001
दूरभाष : 556279
M
।। अशोक भाई सेठ
अजितनाथजी उपाश्रय पेढ़ी। 17, करजाली हाउस
मालदास स्ट्रीट । मोती चौहट्टा
उदयपुर (राज.) 313 001 । उदयपुर (राज.) 313 001
मूल्य : 50 रूपये हिन्दी संस्करण वि.सं.2056 2500 प्रतियां
• मुद्रक : हिंगलाज प्रिन्टर्स ___ २४७१, नानोभाटवाडो, शाहपुर, अहमदाबाद-१. फोनः५६२६८१३
HARASTAMPARANAS
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
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क्या?
सम्पादकीय प्रस्तावना प्रकाशकीय
अनुक्रमणिका
संयम रजत वर्ष के उपलक्ष्य में पू. गणिर्यश्री का मितापरी परिचय - वन्दना - अनुमोदना क्र. दृष्टांत
1
अचित चिंतामणि नवकार
ऋण स्वीकार
नाकोड़ा तीर्थ का परिचय प्रकाशन के सहयोगी दाता
सादर समर्पण
झिलमिलाता जीवनदीप जगमग हो उठा
वैर विसर्जक, मैजी सर्जक श्री नवकार
वनस्पति पर नवकार का प्रयोग
नमस्कार ही चमत्कार
जहाँ औषधियाँ हारती हैं, वहां आस्था विजयी बनती है।
चम्बल की खतरनाक घाटियों में 13 दिन
रिवाल्वर जब खिलौना बनता है
जब महामंत्र रक्षक बनता है
10
11
श्रद्धा और मंत्र की ताकत
12 मोहनभाई के मनमोहक अनुभव
पठान के भूत पर नवकार का प्रयोग
13
14 जीवनसाथी नवकार को नहीं छोडूंगी
15
देवी उपसर्ग में अडिगता
16
17
18
19
समवसरण के दर्शन हुए
शरीर का होश खो गया
नमस्कार वहां चमत्कार
बावाजी का वशीकरण निष्फल हुआ
III
कहाँ ?
लेखक
मुनि श्री अमरेन्द्रविजयजी डॉ. सुरेशभाई झवेरी 'किरणभाई'
पू. आ. श्री हेमरत्नसूरिजी म.
पू. आ. श्री पूर्णचंद्रसूरिजी म.
IX
XII
XIII
XIV
XV
XVI
XVII
नरेन्द्रभाई नन्दु
पृष्ठ
1
234 65
35
64
67
71
87
90
104
109
मोहनलालभाई फुरिया गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म. 114
सा. श्री चारुधर्माश्रीजी
118
118
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120 नवकार ने जीवन बचाया
123 21 मैली विद्या निष्फल हुई
125 1 22 नवकार मंत्र ने बचाया
एस.एम.पाटड़िया
126 23 तिर्यंच को तारनेवाला नवकार
द्रौपदीबेन शाह
134 । 24 अब तुम नवकार के करोड़पति बनो हसमुखभाई शाह
137 25 पं.अभयसागरजी महाराज के जीजब अनुभव पू.आ,श्री महायशसागरसूरिजी म.140 | 26 भावि घटना का पूर्व संकेत 27 प्लास्टर अदृश्य हुआ
141 28 चौथी बार दिल का दौरा 29 जम्बूद्वीप के दर्शन हुए
141 | 30 नवकार ने मार्गदर्शक भेजा
142 131 फिल्म की तरह मवाब पत्र मिला
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143 - 32 नवकार मंत्र का अजीब प्रभाव
पू.आ.श्री कीर्तिचंद्रसूरिजी म. 1:33 मानव जिससे देव बनता है
148 134 'यह तो हमारे लड़के भी जानते हैं।
149 11:35 पारसीभाई का प्रेरक पत्र
153 136 नरेन्द्र को नवकार फला .
155 137 धनजीभाई धन्य बने
156 138 वैद्यराज श्री रामचन्द्रजी के तीन चमत्कारिक अनुभव 139 जीवनदाता नवकार
'विजयभद्र' जंगल में मंगल
रसिकलाल पारेख 141 बैशाखी की गुलामी गई
'मुनीन्द्र 42 भूकम्प में निष्कपता देता श्री नवकार 143 आनन्द की बाढ़ आई
बाढ़ का पानी बैठ गया - बेहोशी में भी श्री नवकार का जाप
168 146 महाप्रतापी श्री नक्कार
पू.आ.श्री अरिहंतसिद्धसूरिजी म. 169 47 तन के रोगों को हरने वाला श्री नवकार 48 देवी आपत्ति से बचाने वाला श्री नवकार
170 149 विषम विषहर श्री नक्कार 150 उपसर्ग रक्षक श्री नक्कार
171 151 मिथ्यात्वी देव पर नक्कार का प्रभाव पू.पं.श्री अभयसागरजी म. 172 152 केन्सर केन्सल हो गया।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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पानबाई रायसी गाला अनिल देढिया मुनि श्रीजयदर्शनविजयजी
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मुनि श्रीअपूर्वरत्न-मुक्तिरत्नसागरजी
206
208 209
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212
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153 अग्नि शीतल होवे तत्काल 154 श्री नमस्कार महामंत्र का तेज
55 कमली का भंयकर कष्ट टला 456 मंत्र छोटा, महिमा बड़ी
संसार में सार मंत्र नवकार 158 मंत्र नवकार को सतत नमस्कार 159 बंधन मुक्ति की सत्यानुभूति 60 नमस्कार ही एक तारणहार
नवकार ने इज्जत बचाई 62 नवकार ने माल बचाया 63 जादू के ऊपर जादू 64 अजीब करिश्मा नवकार का
दुर्घटना में से बचाया 66 अमरीका में अजायबी 67 जादूगर के.लाल के अनुभव
समाधि मरण की चाबी श्री नवकार
महामंत्र की महिमा 70 भूत का भय भाग गया 71 बरसात का विघ्न टला 72 मुसलमान नवकार गिनता है 73 दुर्घटना से बचे
भूत का भय दूर हुआ 75 आग ठंडी हो गई 76 कैंसर केन्सल हो गया 77 सवा लाख नवकार से अच्छा हो गया 78 डाकू डर गये 79 कार कमाल से बची 80 जुल्मखोर झुक गये 81 व्यंतरिक मार गायब हो गई 82 नवकार और मैं 183 नवकार मेरा मित्र है 184 चोरी हुई आंगी वापिस मिल गई
'रखेवाल' दैनिक कोतिलालभाई करमसी प्रो.के.डी.परमार पू.आ.श्री वारिषेणसूरिजी म.
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231
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232
232
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हसमुखभाई कपासी पू.आ.श्री इन्द्रदिन्नसूरिजी म. 234 सा.पद्मयशाश्रीजी
235 पुष्पावती बेन शाह मुनि श्री जिनचन्द्रविजयजी 240
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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वह पथदर्शक कौन होगा?
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जीभ में 'अमी' वापस आ गया
87 नवकारमंत्र से अभिमंत्रित रजोहरण का चमत्कार
88 अभयदाता से नवकार
89
90
91
सर्प का जहर उतर गया
92 चिंताचूरक श्री नवकार
माला सोने की होकर सुगन्धित हुई
अन्यायी लेख का अंत आया
अनिष्टों को रोकने वाला महामंत्र नवकार
93
94
95 जलोदर दूर हुआ
96 कुत्ते ने 'प्रतिक्रमण किया
97
पीर की बाधा दूर हो गई
98
नासूर दूर हो गया
99 जंगल में मंगल हुआ
100 जीवनदाता श्री नवकार
गले की गांठ गाय हुई
101 सागर शांत हुआ
102 चिड़िया को बचाने वाला नवकार
103 महामंत्र का अद्भुत प्रभाव
104 भवजल पार उतारे
105 अंधेरे में एक प्रकाश
106 नवकार मेरा मित्र है
107 पागलपन पलायन हुआ 108 लकड़ी जरा भी हिली नहीं
109 भूत दूर हुआ
110 नवकार के पास... मौत भागे
111 समरो दिन और रात
112 विघ्न विनाशक श्री नवकार 113 जीवनरक्षक श्री नवकार
114 आंतरिक अनुभव के उद्गार
115 नवकार महामंत्र का प्रभाव 116 शील रक्षक श्रीनवकार
VI
सा. नेमश्रीजी सा.मीनाकुमा
बाबुलाल सेठ
44
सुनंदाबाई महासतीजी
44
'संदेश' साप्ताहिक
रंजनबेन आणंदजी गडा
वैद्यराज कांतिलालभाई शाह मुनि श्री अमीचंदजी
ठाकरसीभाई माणेकजी पदमसीभाई छेड़ा
जितेन्द्र छेड़ा
सा. ज्योतिष्प्रभाश्रीजी
खुशालभाई खेतसी
सा. अमृतश्रीजी दमयंतीबेन कापड़िया
श्रीराजेन्द्रमुनि
मुनि श्री प्रधानविजयजी
जयंतिलालभाई गांधी
भवानजीभाई भोजाणी
सा. चन्द्रप्रभाश्रीजी
शांतिलालभाई वसा
पं. श्री अभयसागरजी म.
सा. श्री हरखश्रीजी
शशिकांतभाई मेहता
245
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248
248
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
1-117 मौत मर गई
118 भय का उच्चाटन, अभय का उद्घाटन
119 खजाने की रक्षा करने वाला नवकार
120 कष्ट निवारक श्री नवकार
121 सरपंच लालुभा के अनुभव
122 मंत्राराधिराज श्री नवकार का तेज
123 महामंत्र नवकार
124 कुएं में गिरता बचा
125 नागदंश से बचा
126 पुस्तक जब्त हुई
127 पलंग पर लटकता सांप
128 बाघ के मार्ग में
129 नवकार हृदय परिवर्तन करे
130 गोलीबारी में से चमत्कारिक बचाव
131 नवकार मेरे साथ था
132 संकट मोचक महामंत्र
133 सकल विघ्न हरता नवकार
134 जेल भी महल समान बनी
135 निःसंतान को संतान प्राप्ति हुई
136 श्रीमंत्राधिराज को वंदन हो
137 नवकार मंत्र की अनुभृति 138 भय से बचाता महामंत्र
139 बेटी जवांई प्राणघातक दुर्घटना से बचे 140 नमस्कार समो मंत्रः न भूतो न भविष्यति
141 व्यसनमुक्ति का जोरदार चमत्कार
142 स्वप्न में नवकार, जागृति में नवकार
143 नवकार नाम का भोमिया
144 नवकार नाम की टॉर्च
145 नवकार नाम का डॉक्टर
146 जीवनयात्रा में हर पल साथ महामंत्र नवकार
147 अनंतशक्ति का भंडार नवकार महामंत्र
148 नवकार अनानुपूर्वी के प्रताप से 149 पवित संस्मरण एवं स्वयं के अनुभव
VII
लालुभा वाघेला बीजल शाह
जयंतभाई शाह
44
44
कीर्तिभाई शाह
चंदुलालभाई दोमड़िया
उर्मिलाबेन दोशी
अरुणकुमार सिंघवी
कांतिलालभाई वक्ता
खुशालदासभाई रामी
धर्मदेवभाई नानालाल
रामजीभाई सावला
वसंतभाई शाह
डायालालभाई मोथारिया
गीताचेन सोलंकी
देवजीभाई खोना कांतिभाई शाह
अनिलकुमार गुटका
धीरेन शाह
उमरसीभाई सतरा
वरधीलाल सेठ
बलवन्तराय वोरा
श्री जे. के. शाह
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353
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गुणवंतभाई-'गुंजन' मुनि श्रीनरेन्द्रविजयजी 'नवल' 357
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श्रीप्रेममुनिजी श्री गौतममुनि 'प्रथम'
363
364
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श्रीचांदकुंवरजी महासतीजी सुमनप्रभाजी महासतीजी मुनिश्री जयंतवियजी
367
368
369
| 150 वैश्विक महामंत्र-नवकार 1151 नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से 1152 मेरा अनुभव
153 सांप भी शांत हो गया 154 महामंत्र से मैंने पाया 1155 नेत्र ज्योतिदाता महामंत्र
156 श्रद्धा से नत होता मस्तक | 157 नवकार से संकटपार
158 भयभंजक नवकार 1159 मुहपत्ति में से नवकार की ध्वनि 1160 पेशाब की जलन दूर हुई 1161 लूटेरों से मुक्ति 1162 विप अमृत हो जाए
163 नवजीवन दाता नवकार मंत्र || 164 नासूर नष्ट हुआ
165 कबूतर और नवकार 1166 पागलपन पलायन हुआ 1167 नवकार सदा सर्वदा शक्ति का, स्रोत 1168 नियमित साधना अवश्य फलदायी 1169 '7 मुझे नहीं बचाएगा?'
169 १४ करोड नवकार जप के आराधक
360
370
372
374
375 376
रतनलाल सिंघी तेजमलजी जैन हरिराम प्रजाप्रत साध्वी श्री अर्चनाश्रीजी .. मुनि श्री जसकरणजी आशाबेन एम. शाह ठाकरसीभाई गडा सा.हिरण्यगुणाश्रीजी प्राणलालभाई लवजी शाह
376
377 381
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382 KINB
श्रीनमस्कार महामंत्र की महिमा 'श्री लघु नमस्कार फल' स्तोत्र का अर्थ श्री नमस्कार भावना श्री पंच परमेष्ठी के 108 गुण नवकार विषयक प्रश्नोत्तरी श्री नमस्कार महामंत्र के बारे में जरूरी जानकारी नवकार महामंत्र का शुद्ध मेल तथा शुद्ध उच्चार नवकार जाप में एकाग्रता लाने के लिए विविध उपाय श्री कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट के प्रकाशन पू गणवर्यश्री महोदयसागरजी म.सा.द्वारा लिखित/संपादित साहित्य की सूची
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -
सम्पादकीय प्रस्तावना । वि.सं. 2041 में हमारा चातुर्मास श्रीसंभवनाथ भगवान की छत्रछाया । में अचलगच्छाधिपति प.पू.गुरूदेव आ.भ.श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की।
निश्रा में मुंबई-वडाला अचलगच्छ जैन संघ के नूतन उपाश्रय में हुआ, तब 19 दिन में 1 लाख नवकार महामंत्र की सामूहिक आराधना एवं 13 । अहोरात्र तक नवकार महामंत्र के अखंड भाष्यजप के साथ 21 दिन तक || "जिसके दिल में श्री नवकार उसे करेगा क्या संसार?' इस विषय पर । प्रवचनमाला का आयोजन हुआ था। उस प्रवचनमाला में कुछ अर्वाचीन
दृष्टांत प्रस्तुत किये गये थे, जो श्रोताओं को नवकार महामंत्र के प्रति । । अत्यन्त अहोभाव जगाकर, उसकी नियमित आराधना के लिए बहुत ही | प्रेरक साबित हुए। अतः उस वक्त ऐसी स्फुरणा हुई कि ऐसे अनेक । अर्वाचीन दृष्टांत संग्रहित करके प्रकाशित किये जाएं तो अनेक आत्माओं के ।
लिए अत्यंत लाभकारक हो सकें। अचिंत्य चिंतामणि नवकार महामंत्र को । छोड़कर, लौकिक मंत्र-तंत्रादि की ओर आकृष्ट होते हुए अनेक जीवों को || पुनः नवकार महामंत्र के प्रति अनन्य आस्था जगाने में सहायक बन सकें || और नवकार महामंत्र के प्रभावदर्शक शास्त्रीय दृष्टान्तों के प्रति भी श्रद्धा । उत्पन्न हो सके।
उपरोक्त विचारों को परमोपकारी पू. गुरूदेव श्री के पास प्रस्तुत । करने पर पूज्य श्री ने सहर्ष अनुमति प्रदान की। फलतः उस वक्त गुजराती
एवं हिन्दी भाषा में मुद्रित परिपत्र, सकल श्री जैन संघ के प्रायः सभी | साधु-साध्वीजी भगवंतों को एवं जिनमंदिरादि सार्वजनिक स्थानों पर भेजे । गये और नवकार महामंत्र के द्वारा जिसको भी जो अनुभव हुए हों उस । विषय में स्वानुभवगर्भित लेख मंगाये गये। अल्प समय में बहुत लेख संप्राप्त ।" हुए। नवकार महामंत्र की विविध किताबों में से भी कुछ अर्वाचीन दृष्टान्त ।' प्राप्त हुए।
वि.सं.2042 में नालासोपारा में एवं सं. 2043 में डोंबीवली (मुंबई) में भी संपूर्ण चातुर्मास के दौरान धूप-दीप के साथ नवकार महामंत्र के अखंड भाष्य जप के साथ अनुक्रम से सवा करोड़ एवं नौ करोड़ जप की
IX
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-जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? -
। सामूहिक आराधना हुई। उस वक्त भी प्रति रविवारीय नवकार महामंत्र ! । विषय के ऊपर जाहिर प्रवचमाला में इस किताब में मुद्रित कुछ दृष्टान्तों,
का विश्लेषण करने पर श्रोताओं पर बहुत गहरा असर हुआ और कई "आराधक नियमित रूप से महामंत्र की आराधना में जुड़ गये। फलतः इन । सभी दृष्टांतों की किताब शीघ्र प्रकाशित करने के लिए चारों ओर से बहुत । मांग होने लगी।
आखिर दृष्टांतों के साथ-साथ नवकार महामंत्र की महिमा दर्शक । शास्त्रीय श्लोक एवं उसका अर्थ, जप की विधि, जप में एकाग्रता के लिए
विविध उपाय, पंच परमेष्ठी के 108 गुण इत्यादि विषय को जोड़कर विक्रम संवत 2044 में गुजराती भाषा में 5000 प्रतियां प्रकाशित हुई जो | अल्प समय मे समाप्त हो गई। बाद में आज तक कुल पांच आवृत्तियों में - 19000 प्रतियां गुजराती में एवं दो हजार प्रतियां अंग्रेजी में प्रकाशित हो गई।
वि.सं. 2055 का चातुर्मास बाडमेर (राजस्थान) में हुआ तब उपरोक्त किताब का एवं "बहुरत्ना वसुंधरा" नाम की लोकप्रिय किताब का भी हिन्दी । अनुवाद प्रकाशित करने के लिए बहुत मांग होने लगी। फलतः मर्यादित समय
में दोनों किताबों का हिन्दी में अनुवाद हो जाए इसके लिए "बहुरत्ना , वसुंधरा" का हिन्दी अनवाद मैंने स्वयं प्रारंभ किया और नवकार महामंत्र की | किताब अनुवाद करने का कार्य "धर्मघोष" हिन्दी मासिक के सह-सम्पादक, | बाडमेर निवासी, उत्साही युवा श्रावक श्री मदनलाल बोहरा को सौंपा, जो
कार्य उन्होंने मानद सेवा के रूप में बहुत शीघ्रता से सम्पन्न करके उसका | कम्प्यूटर में कम्पोज भी बाड़मेर में करवा दिया एवं आखरी प्रूफ सुधार और 1 पृष्ठ-सज्जा तथा बटर कॉपी के लिए श्री GPC COMPUTER- (27,' PIN SIDE HATHI POLE) UDAIPUR (RAJ.) ने अच्छा सहयोग 1 दिया एवं 'श्री कुमार प्रकाशन केन्द्र' ने अल्प समय में इसका मुद्रण कर ।
दिया, फलतः प्रस्तुत किताब वाचकों के कर कमल में यथासमय प्रस्तुत हो, । रही है, इसके लिए वे सभी अत्यन्त धन्यवाद के पात्र हैं।
. इस किताब में प्रस्तुत दृष्टांतों में मुख्य रूप से नवकार महामंत्र द्वारा घटित बाह्य लाभों का ही निर्देश किया गया है। कुछ । विशिष्ट साधकों को विभिन्न प्रकार के आध्यात्मिक अनुभव भी हुए।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
हैं। मगर वैसे साधक प्रायः गुप्त रहना ही अधिक पसंद करते हैं, लिहाजा वैसे आध्यात्मिक अनुभूति गर्भित लेख विशेष प्राप्त नहीं हुए हैं। फिर भी प्रस्तुत किताब को पढ़ने वाले नवकारप्रेमी आराधकों को, इतना तो अवश्य ख्याल रखना चाहिए कि, नवकार महामंत्र की आराधना मुख्यतः इस भव में पाप वासनाओं के नाश द्वारा आत्मस्वरूप की आंशिक अनुभूति रूप सम्यगदर्शन की प्राप्ति द्वारा परलोक में शीघ्र मुक्ति (संपूर्ण आत्मरमणता) की प्राप्ति के लक्ष्य से ही करनी चाहिए। नवकार की आराधना से होने वाले बाहय - भौतिक लाभ तो, घी के लिए दही का मथन करने पर आनुसंगिक रूप से प्राप्त होती हुई छाछ की तरह... अथवा धान्योत्पत्ति के लिए खेती करने पर BY PRODUCT के रूप प्राप्त होते हुए घास की भांति गोण ही है। फिर भी प्रारंभिक कक्षा में रहे हुए जीवों को चर्मचक्षु से दृश्यमान बाह्य लाभों के वर्णन द्वारा ही महामंत्र के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करनी आसान बन सकती है, इसलिए प्रस्तुत पुस्तक में वैसे दृष्टांतों को स्थान दिया गया है।
इस हिन्दी आवृत्ति में कुछ दृष्टांत 'नवकार यात्रा' (जिसमें प्रस्तुत किताब की गुजराती आवृत्ति में से कई दृष्टांत उद्धृत किये गये हैं) में से साभार उद्धृत किये गये है।
अंत में विवेकी पाठकवृंद से विज्ञप्ति है कि हंस की तरह क्षीर-नीर न्याय से इस किताब में से सार भाग को ग्रहण करके नवकार महामंत्र की विशिष्ट साधना द्वारा सम्यग्दर्शन के निर्मल प्रकाश को प्राप्त करके, शीघ्र मुक्ति को प्राप्त करें, यहीं शुभाभिलाषा।
छद्मस्थदशावशात् जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो हार्दिक मिच्छामि दुक्कडं ।
XI
-गणि महोदयसागर
उदयपुर (राज.) दि. 1-12-99
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -
( प्रकाशकीय )
हमारी परमोपकारी पूज्य मातृश्री कस्तूरबाई एवं पिताजी कुंवरजी जेठाभाई उर्फ बाबुभाई, जिन्होंने हमारे जीवन में सुसंस्कारों के बीज बोये, धर्म के प्रति आस्था जगाई एवं धर्ममय जीवन जीने की प्रेरणा दी, उनके उपकारों का ऋण आंशिक रूप से भी अदा करने की भावना से, शासन सम्राट, भारत दिवाकर, परमोपकारी, अचलगच्छाधिपति प.पू. आ.भ.श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के आशीर्वाद से
सम्यग्यज्ञान के प्रकाशन/ प्रसारण हेतु हमारी मातृश्री के नाम से "श्री कस्तूर प्रकाशन | ट्रस्ट' की स्थापना वि.सं. 2044 में हुई, और उसी वर्ष प.पू.अचलगच्छाधिपतिश्री के
विद्वान विनेय पू.गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा.द्वारा सम्पादित "जेना हैये श्री . नवकार, तेने करशे शुं संसार" किताब का प्रकाशन करने का अनमोल लाभ हमको - मिला। यह किताब इतनी लोकप्रिय हुई कि निम्नोक्त प्रकार से इसका 5 बार गुजराती
में एवं 1 बार अंग्रेजी में संस्करण हमारी ओर से प्रकाशित हुआ।
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वि.सं.2044
प्रथमावृत्ति 3000 प्रतियां वि.सं.2045
द्वितीयावृत्ति 3000 प्रतियां वि.सं.2047
तृतीयावृत्ति 3000 प्रतियां वि.सं.2048
चतुर्थावृत्ति 5000 प्रतियां वि.सं.2052
पंचमावृत्ति
5000 प्रतियां वि.सं.2052
अंग्रेजी संस्करण 2000 प्रतियां हिन्दीभाषी पाठकों की ओर से अनेक बार होती हुई विज्ञप्ति को लक्ष्य में लेकर इस बार उपरोक्त किताब का हिन्दी संस्करण भी प्रकाशित करने का लाभ हमें मिल रहा है, इसलिए हम पू.गणविर्य श्री के ऋणी है। प्रस्तुत किताब का हिन्दी अनुवाद मानद सेवा के रूप में करने के लिए बाड़मेर निवासी श्री मदन लाल बोहरा अत्यंत धन्यवाद के पात्र हैं। हमारी ओर से प्रकाशित साहित्य सूचि इसी पुस्तक में अन्यत्र दी गयी है।
लिखी. कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट की ओर से सोलीसीटर हरखचन्द कुवरजी गडा (ट्रस्टी)
XII
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ------------------------- SCI स्वीकार-रा॥दर राति
11- अनंत उपकारी, भवोदधितारक, वात्सल्य वारिधि, सच्चारित्र चूड़ामणि, ___अनन्य प्रभुभक्त, शासन सम्राट, भारत दिवाकर, तीर्थ प्रभावक,
दिव्यकृपादाता, अचलगच्छाधिपति, प.पू. गुरूदेव आचार्य भगवंत
श्रीगुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. 2- संलग्न 31वें वर्षीतप के आराधक, वर्तमान अचलगच्छाधिपति, ____ तपस्वीरत्न, प.पू. आ.भ. श्रीगुणोदयसागरसूरीश्वरजी म.सा. 1: 3- सूरिमंत्रपंच प्रस्थान समाराधक, साहित्य दिवाकर, प.पू.आ.भ.
श्रीकलाप्रभसागरसूरीश्वरजी म.सा. 4- लेखन आदि शुभ प्रवृत्तियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से सहायक बनते
हुए विनीत शिष्य, तेजस्वी वक्ता मुनिराज श्रीदेवरत्नसागरजी, स्वाध्यायप्रेमी, मुनिराज श्रीधर्मरत्नसागरजी, तपस्वी मुनिराज श्रीकंचन सागरजी, सेवाशील मुनिराज श्रीअभ्युदयसागरजी एवं प्रशिष्य
मुनिराज श्रीभक्तिरत्नसागरजी 15- रत्नत्रयी की आराधना में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहायक बनते हुए
सभी गुरुबन्धुओं, छोटे-बड़े, मुनिवर, नामी-अनामी, सभी शुभेच्छकों
हितचिंतकों आदि 6- मुमुक्षु अवस्था में धार्मिक सूत्र (सार्थ) का ठोस अध्ययन कराने वाले
एवं संयम की प्रेरणा प्रदान करने वाले परमोपकारी, नवकारनिष्ठा, तत्वज्ञा, स्व.सा.श्री गुणोदयश्रीजी महाराज • मुमुक्षु अवस्था में 5 वर्ष पर्यन्त संस्कृत-प्राकृत व्याकरण, न्याय,
काव्य, षड्दर्शन आदि का अच्छी तरह अध्ययन कराने वाले पंडित शिरोमणि श्री हरिनारायण मिश्र (व्याकरण-न्याय-वेदांताचार्य) इत्यादि अगणित उपकारी आत्माओं का सादर स्मरण करते हुए गौरव एवं आनंद का अनुभव करता हूँ।
-गणि महोदयसागर
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XIII
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -
AMRM MMM -
3000000000000003
8
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। श्री नाकोड़ा पार्वनाथ तीर्थ का संक्षिप्त परिचय
भारतभर में सुविख्यात एवं प्राचीन स्थापत्य तथा शिल्पकला से परिपूर्ण प्राकृतिक सौंदर्य में समाया हुआ श्री नाकोड़ा जी तीर्थ (मेवानगर) बाड़ेमेर जिले में बालोतरा रेल्वे स्टेशन से 11 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
श्री वीरमसेन जी द्वारा विक्रम संवत से तीसरी सदी पूर्व में आबादी किये गये इस मेवागनर को तब वीरमपुर नगर के नाम से संबोधित किया जाता है।
यहां मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्री ऋषभदेव भगवान, तथा श्रीशांतिनाथ भगवान के सैकड़ों वर्ष प्राचीन कलाकृति से परिपूर्ण एवं शिल्प शास्त्रानुसार निर्मित सुन्दर जिनालय दर्शन करने योग्य हैं।
इन मन्दिरों के साथ-साथ श्री सिद्धचक्रजी का मन्दिर, श्री पुंडरिकस्वामी की देरी, श्री पंचतीर्थी का मन्दिर, पट्टशाला, आधुनिक कलाकृति से परिपूर्ण महावीर स्मृति भवन, श्री ऋषभदेव भगवान के चरण तथा तीर्थ स्थल से लगभग दो हजार फीट की ऊंचाई पर प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य श्री नेमिनाथ जी की ट्रॅक (गिरनारजी), समीप ही दादावाड़ी भी दर्शनीय तथा अवलोकनीय है। इस तीर्थ का पुनरुद्धार स्व.प्रवर्तिनी साध्वीजी श्री सुन्दरश्रीजी ने महान परिश्रम के साथ करवाया था जो सराहनीय है।
विशेषकर महान चमत्कारी मनोकामना पर्ण करने वाले अधिष्ठायक देव " श्री नाकोड़ा भैरवजी, जिन्हें जैनाचार्य श्री कीर्तिरत्नसूरिजी ने अनेक तप साधना के साथ शताब्दियों पूर्व यहां प्रतिष्ठित किये हैं, विद्यमान हैं। तीर्थस्थान पर विद्युत्, पेयजल, आवास, चिकित्सा, पुस्तकालय, एवं वाचनालय, संचार यातायात की उत्तम व्यवस्था उपलब्ध है।
प्रति रविवार को, पूर्णिमा को, कृष्णा दशमी को एवं खास करके पोष कृष्णा दशमी को यहां हजारों यात्रिकों की भीड़ लगी रहती है।
पोष कृष्ण दशमी (श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी के जन्म कल्याणक दिन) को यहां हजारों की संख्या में तेला (अटुम) तप के तपस्वी आते हैं। उनके उत्तर पारणा, पारणा, आवास, बहुमान आदि की सुन्दर व्यवस्था वहां की जाती है। उपरोक्त श्री नाकोड़ा तीर्थ ट्रस्ट की ओर से प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में सुन्दर सहयोग मिला है, इसके लिए हम आभारी हैं।
-प्रकाशक
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भावी चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर श्री पद्मनाभ स्वामी (उदयपुर - राज.)
श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैन तीर्थ का हृदयंगम द्रश्य
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श्री नाकोड़ा तीर्थ के अधिष्ठायक भेरुजी
श्री नाकोड़ाजी पार्श्वनाथ भगवान
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -
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प्रकाशन के सहयोगी दाता
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25,000
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5,000 5,000
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। श्री जैन श्वेताम्बर. नाकोड़ा पार्श्वनाथ ट्रस्ट 2 श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघ-उदयुपर 3 श्री महावीरकुमारजी रांका-उदयपुर 4 श्री दामजीभाई मेघजी सोनी- बांभड़ाई (कच्छ) 5. श्री शांतिलालभाई मगनलाल राभिया (कच्छ-गोधरा)
6 मातुश्री पुंजाबाई चेरीटेबल ट्रस्ट - जामनगर 17 श्रीमती शान्ताबहन खड्गसिंहजी हिरण-उदयपुर
8 श्री श्रीमाल सेठ अचलगच्छ श्वे.मू.पू. जैन संघ-उदयपुर 49 श्री जैन श्वेताम्बर महासभा, हाथीपोल, उदयपुर
10 श्री दीवानसिंहजी बाफना-उदयपुर 11 सिंघवी अर्जुनलाल ट्रस्ट देवाली-उदयपुर 12 श्री पुखराजजी सोलंकी-उदयपुर 13 श्री पी.एम.जैन (जोधपुरवाला) 14 श्री के.एल.जैन-श्रीमती शांताबाई जैन-उदयपुर 15 श्री नंदलालजी सिंघवी-उदयपुर
16 श्रीमती प्रकाशबाई रणजीतसिंहजी मेहता-उदयपुर - 17 श्री रोशनलालजी ताराचंदजी जैन-उदयपुर
18 श्री शंकरलाल जी S/o तनसुखलालजी बाफना-उदयपुर - 19 श्री बसंतीलालजी सुशीलाबाईजी मोगरा-उदयपुर
20 मातृश्री पानबाई रायसी गाला (कच्छ-चांगड़ाई) 121 मातृश्री मणिबाई रामजी वेलजी छेड़ा (कच्छ-बिदड़ा)
20 श्री अजय भवानजी छेड़ा-गोधरा (कच्छ) 1 21 श्री रतिलालाभाई मगनलाल गाला-नाना आसंबीआ (कच्छ)
22 श्री गुणवंतीबेन मनसुखलाल केनिया-मोटी खाखर (कच्छ)
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
(सादर समर्पण )
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गुजराती एवं संस्कृत भाषा में प्रभुभक्तिमय सैकड़ों स्तवन-स्तुति । चैत्यवंदन पूजाएं इत्यादि भाववाही भक्ति साहित्य एवं संस्कृत में त्रिषष्टिशलाका | पुरुष चरित्र, समरादित्य केवली चरित्र, श्रीपाल चरित्र, द्वादश पर्व कथा " आदि ग्रंथों की रचना करने वाले...! | मुंबई से समेतशिखरजी एवं समेतशिखरजी से पालिताना जैसे महान I: ऐतिहासिक छरीपालक संघों की प्रेरणा और निश्रा द्वारा प्रभु शासन की अद्भुत प्रभावना करने वाले.....!
72 जिनालय महातीर्थ, 20 जिनालय आदि अनेक जिनमंदिरों की प्रेरणा-अंजनशलाका-प्रतिष्ठा द्वारा लाखों भावुक आत्माओं को प्रभु के साथ । प्रीति जोड़ने में सहायक आलंबन प्रदान करने वाले...
वृद्धावस्था में भी प्रतिदिन श्री अरिहंत आदि पंच परमेष्ठी भगवंतों को 108 बार प्रणिपात (खमासमण) करने वाले.....!
विद्यापीठ, धार्मिक शिविर, अनेक धार्मिक पाठशालाएं आदि की स्थापना द्वारा समाज में सम्यक् ज्ञान की अभिवृद्धि कराने वाले....!
मेरे जैसे अनेक आत्माओं को संसार पथ से संयम के पुनित पथ पर । प्रस्थान कराने वाले....
50 वर्ष तक एकाशन एवं 8 वर्षीतप आदि तपश्चर्या द्वारा शिष्यों को भी तपोमय जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले....
तप-तयाग, तितिक्षा, समता, नम्रता, सहनशीलता, भद्रिकता अप्रमत्तता सादगी इत्यादि अगणित गुणरत्नों क महासागर, सद्गुणानुरागी, यथार्थनामी...
अनंत उपकारी, भवोदधितारक, वात्सल्य वरिधि, शासन सम्राट, भारत । । दिवाकर, तपोनिधि, अचलगच्छाधिपति, प.पू.गुरूदेव आचार्य भगवंत ।
श्री गुणसागरसूरीश्वर जी म.सा. के कर कमलों में आपकी ही दिव्य । | कृपा से सृजित इस कृति को अर्पित करते हुए कृतज्ञता का अनुभव करता हूँ।
-गुरु 'गुण' चरणरज गणि महोदयसागर-"गुणवाल"
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XVI
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सादर समर्पण शासन सम्राट, भारत दिवाकर, कच्छ केसरी, अचलगच्छाधिपति प. पू. आचार्य भगवंत श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म. सा. एवं उनके शिष्य
आगमाभ्यासी - प. पू. गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म. सा. (गुणबाल)
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जिनके शुभ नाम से श्री कस्तूर । प्रकाशन ट्रस्ट की स्थापना की गयी है ऐसे आराधकरत्न, तपस्वी, सुश्राविका संघमाता श्री कस्तूरबहिन कुंवरजीभाई गडा
" श्री कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट" की स्थापना में जिनका मुख्य एवं उदार आर्थिक सहयोग है ऐसे दानवीर, तपस्वी, आराधनानिष्ठ संघवी संघरत्न श्री बाबुभाई (कुंवरजीभाई) जेठाभाई गडा
स्व. श्रीमती धाकुबेन (उम्र वर्ष ७८) धर्मपत्नी स्व. श्री चुन्निलालजी रांका निवासी दादाई, जिला फर्म- शाह खेताजी धनाजी एन्ड कं. - मुंबई
पाली (राज.)
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
। संयम रजत वर्ष के उपलक्ष्य में । पूज्य गणिवत्रि का मिताश्ररी परिचय-वन्दना-अनुमोदना
___-: संकलन :श्रीदौलतसिंहजी गांधी अध्यक्ष श्री जैन श्वे.मू.पू.श्री संघ उदयपुर श्री बी.एल.दोशी मंत्री ----" श्री अशोककुमार सेठ चातुर्मास संयोजक ----"----
हमें यह निवेदित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि वि.सं.. || 2056 का चातुर्मास करने के लिए हमारी भावपूर्ण विनति का स्वीकार
करके परमशासन प्रभावक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के परम विनेय 45 आगम अभ्यासी, . । पू.गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा. एवं तपस्वी पू.मुनिराज श्री अभ्युदयसागरजी म.सा. के चातुर्मास का हमें अनमोल लाभ मिला है।
हमारे श्री जैन श्वे.मू.पू.श्री संघ-उदयपुर में अलचगच्छीय मुनिवरों । का चातुर्मास प्रथम बार ही था एवं इस वर्ष सकल श्री संघ में दो । संवत्सरी का प्रश्न भी था, फिर भी कल्पनातीत सौहार्दपूर्ण एवं मैत्रीभाव। युक्त वातावरण में अनेकविध आराधनाओं से भरपूर यह चिरस्मरणीय : चातुर्मास सुसम्पन्न हुआ, जो श्री पंच परमेष्ठी भगवन्तों की असीम कृपा : द्वारा पू.गणिवर्य श्री के सौजन्यशील प्रकृति की बहुत बड़ी उपलब्धि है,। । ऐसा हम मानते हैं। । पूज्य श्री की 'जैनं जयति शासनं, 'शिवमस्तु सर्वजगतः, 'मित्ती । मे सव्वभूएसु' की यह भावना अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय भी है।
योगानुयोग इस वर्ष पू.गणिवर्यश्री के दीक्षा पर्याय को 25 वर्ष पूरे । होने जा रहे है, अतः पूज्यश्री का मिताक्षरी परिचय प्रकाशित करवाने की, अनेक जिज्ञासुओं की भावना एवं विनति को लक्ष्य में रखते हुए, पूज्यश्री
के शिष्यादि द्वारा परिचय संप्राप्त करके यहां प्रस्तुत करते हुए हम गौरव । । एवं आनंद का अनुभव कर रहे हैं।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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पूज्य श्री का जन्म : गुजरात राज्य के कच्छ जिले में मांडवी । तहसील के चांगड़ाई गांव में वि.सं. 2008 आषाढ शुक्ल 7 रविवार || दिनांक 29-6-1952 को हुआ था। ...
पिता रायसीभाई के कुलदीपक मनहरलालभाई को अत्यंत । धर्मनिष्ठ, आदर्श श्राविकारत्न माता पानबाई के द्वारा जन्म से ही जैन । ॥ धर्म के सुंदर संस्कार प्राप्त हुए।
चौथी कक्षा तक कच्छ-चांगड़ाई में अध्ययन करने के बाद कक्षा 11 5-6 कच्छ-दुर्गापुर बोर्डिंग में, कक्षा 8-11 तक मुम्बई -माटुंगा बोर्डिंग ।। में एवं बाद में दो वर्ष तक श्री महावीर जैन विद्यालय-गोवालिया । टेक-मुंबई में रहकर आपने INTER SCIENCE तक प्रायः हमेशा प्रथम क्रमांक में उत्तीर्ण होकर व्यावहारिक अध्ययन किया।
'जीवन में सच्चे अर्थ में सुखी होने के लिए कौन सा मार्ग । अंगीकार करना चाहिए' इस विषय पर भाद्रपद पूर्णिमा रविवार की पूरी
रात श्री महावीर जैन विद्यालय में मनोमंथन करने के बाद मातृश्री के धर्मसंस्कार एवं पूर्व जन्म के किसी शुभ संस्कारवशात् चारित्र का मार्ग , । अंगीकार करने के उत्तम परिणाम प्रकट हुए एवं कॉलेज की पढ़ाई । छोड़कर कच्छ में रहकर योगनिष्ठा, तत्वज्ञा, बा.ब्र.पू.सा.श्री गुणोदयश्रीजी ।
म.सा.की निश्रा में कर्मग्रंथादि धार्मिक अभ्यास एवं पंडित शिरोमणिश्री हरिनारायणमिश्र के पास पांच वर्ष तक संस्कृत -प्राकृत व्याकरण, न्याय, साहित्य,षड्दर्शन आदि का सांगोपांग अध्ययन किया।
बाद में संयम के स्वीकार की अनुमति प्रदान करने के लिए, । पिताश्री को समझाने की बहुत कोशिश करने के बावजूद भी सम्मति न । | मिलने पर आखिर मातृश्री आदि के आशीर्वाद लेकर अपनी ज्येष्ठ बहिन
विमलाबेन (हाल सा. श्री वीरगुणाश्रीजी-कि जो भी मनहरभाई के साथ " में सा. श्री गुणोदयश्रीजी म.सा. एवं पं श्री हरिनारायण मिश्र के पास 5
वर्ष से अध्ययन करती थीं) के साथ कच्छ-देवपुर गांव में वि.सं. 2031 || माघ सुदि 3 के दिन 23 साल की युवावस्था में दीक्षा अंगीकार की एवं |
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
परमशासनप्रभावक अचल- गच्छाधिपति प.पू. आ.भ. श्री. गुणसागरसुरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनि श्री महोदयसागरजी के रूप में। घोषित हुए। (पूज्य श्री के लघुबंधु श्री दीपकमाई गाला को भी बचपन ।
से ही चारित्रका स्वीकार करने की भावना थी। फिर भी माता-पिता की । सेवा के लिए शादी न करते हुए ब्रह्मचर्यमय एवं प्रभुभक्ति आदि । आराधनामय अत्यन्त अनुमोदनीय जीवन जी रहे हैं।)।
दीक्षा के बाद 10 वर्ष तक व्याख्यान प्रवृत्ति में न पड़ने की। । आपकी भावना होते हुए भी गुरु आज्ञा को शिरोमान्य रखकर प्रथम चातुर्मास में ही कच्छ-बिदड़ा में गुरुनिश्रा में आपने लगातार चार महीने तक गुरुकृपा से सुन्दर शैलि में चातुर्मासिक प्रवचन दिये।
केवल चार वर्ष के दीक्षा पर्याय में गुरु आज्ञा से आपकी निश्रा । में सं. 2035 में 1000 यात्रिकों का 99 यात्रा का 100 दिन का। । आयोजन संघरत्न श्री श्यामजीभाई एवं मोरारजीभाई गाला- बंधु युगल । द्वारा आयोजित हुआ, जिसमें आपश्री ने केवल "नमो अरिहंताण" पद | पर ही सौ दिन तक प्रवचन दिये।
आपने सं. 2036-37 में केवल 13 महिनों में 45 जैन आगमों। का सांगोपांग अध्ययन गुरु आज्ञा लेकर किया। जब तक 45 आगमों का ।। अध्ययन पूर्ण न हो, तब तक सम्पूर्ण मिष्टान्न, फरसाण (नमकीन), फ्रूट, ।। एवं मेवे का त्याग एवं वस्त्र प्रक्षालन के लिए साबुन का भी त्याग । प्रतिज्ञापूर्वक किया।
सं. 2037 के चातुर्मास में 5 महिनों तक अखण्ड मौनपूर्वक नवकार महामंत्र की साधना कच्छ-कोटड़ा गांव में की।
आपकी प्रेरणा-निश्रा में नालासोपारा, डोंबीवली, जामनगर, 1. मांडवी, बड़ौदा इत्यादि स्थानों में लगातार 4 महिनों तक नवकार महामंत्र
का तालबद्ध रूप से अखण्ड भाष्य-जाप के भव्य आयोजन हुए हैं एवं । । करोड़ों की संख्या में सामूहिक जाप के आयोजन भी हुए हैं।
नालासोपारा (मुंबई) में आपकी प्रेरणा से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
"जिनालय-उपाश्रय-धार्मिक पाठशाला- ज्ञानभंडार एवं आयंबिल खाते की,
स्थापना हुई है। इसी तरह अहमदाबाद-नाराणपुरा में नूतन उपाश्रय का । निर्माण हुआ है। डोंबीवली-मणिनगर आदि में ज्ञानभंडार की स्थापना भी । हुई है एवं उदयपुर में आपकी प्रेरणा-निश्रा में इसी चातुर्मास के दौरान ॥ त्रि-मंजिले 'अचलगच्छ जैन भवन' का भूमिपूजन- खनन हुआ है। गुरु निश्रा में रहकर कई जगह अंजनशाला-प्रतिष्ठा महोत्सवों में भी आपने, अच्छा सहयोग दिया है।
गुरुआज्ञा से आपके वरद हाथ से अगल-अलग स्थानों में तीन आत्माओं की दीक्षा/बड़ी दीक्षा एवं योगोद्वहन के मांगलिक कार्य भी हुए
सं. 2045 में आपकी निश्रा में एक ही साल में चार । छरीपालक संघों का (जामनगर से गिरनारजी, जामनगर से दलतुंगी, राजकोट से पालीताणा एवं जामनगर से कच्छ-72 जिनालय) का भव्य , आयोजन हुआ था।
आपने गुरुदेवश्री की निश्रा में मुंबई से सम्मेतशिखरजी छरीपालक संघ में/सम्मेतशिखरजी के चातुर्मास में एवं सम्मेतशिखरजी: । से शत्रंजय महातीर्थ के छ'रीपालक संघ आदि में भी व्याख्यान के। । उपरान्त अनेक साधु-साध्वी भगवंतों को 6 कर्मग्रंथ-बृहत् संग्रहणी-क्षेत्र । समास-दशवकालिक सूत्रादि की वाचनाएं दी है। सम्मेतशिखरजी से, शत्रुजय के छ'रीपालक संघ में आप दि. 24-2-85 के दिन उदयपुर, भी पधारे थे।
पूज्यश्री ने 25 जितनी लोकोपयोगी पुस्तकादि साहित्य का, । सृजन किया है। (जिसकी सूचि इस किताब के अन्त में दी है।) जिनमें
से 'बहरत्ना वसुंधरा' भाग-1-2-3 (हिन्दी) का विमोचन इसी चातुर्मास । में हमारे श्रीसंघ में हुआ है एवं प्रस्तुत किताब की पूर्णाहुति भी हमारे ,
श्रीसंघ में इसी चातुर्मास में हुई है। आपने संस्कृत भाषा में भी शत्रुजय, , I: गिरनार आदि के अष्टक, छत्तीसी एवं शतक का सृजन भी किया है।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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आपने गुरु आज्ञा से धार्मिक प्रसंगों के मुहूर्त निकालने के लिए। मुहूर्त- ज्योतिष का भी तलस्पर्शी अध्ययन किया है और कई मांगलिक कार्य आपके दिए हुए शुभ मुहूतों में सम्पन्न हुए हैं और हो रहे हैं।
शासन प्रभावना एवं साहित्य सृजन के साथ-साथ आपने | वर्धमान आयबिल तप की 36 ओलियां, अट्राई, नवाई आदि तप भी। किए हैं।
आपकी निश्रा में कुल 3 बार शत्रुजय महातीर्थ की सामूहिक | 99 यात्राएं एवं सर्वप्रथम बार गिरनारजी महातीर्थ की सामूहिक 99 यात्रा का शानदार आयोजन भी सं. 2051 में हुआ था।
आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर कई गांवों-घरों में वैर विरोध । का विसर्जन एवं मैत्री भावना के सृजन के पावन प्रसंग घटित हुए हैं।
सं. 2053 में आपकी निश्रा में शंखेश्वर तीर्थ में चातुर्मास के । दौरान 'बहुरत्ना वसुंधरा' किताब में वर्णित भारतभर के विशिष्ट आराधक । रत्नों का बहुमान का कार्यक्रम करीब साढ़े पांच घंटों तक चला था,
जिसमें अनेक अग्रणी श्रावकों के साथ हजारों भाविकों में उपस्थित । । रहकर अनुमोदना का लाभ लिया था।
®आपकी शिष्य सम्पत्ति में 1. तेजस्वी वक्ता पू.मुनि राज श्री || देवरत्न सागरजी म.सा. 2. स्वाध्याय प्रेमी पू.मुनिराज श्री धर्मरत्नसागरजी । |: म.सा. 3. पू.तपस्वी मुनिराज श्री कंचनसागरजी म.सा. 4. सेवाभावी । पू.मुनिराजश्री अभ्युदयसागरजी म.सा.एवं 5. ज्ञानप्रेमी पू.मुनिराज श्री । भक्तिरत्नसागरजी म.सा. (प्रशिष्य) आपको आराधना, साधना एवं शासन ॥ प्रभावना में सुन्दर सहयोग दे रहे हैं।
आपने हजारों किलोमीटर का विहार करके निम्नोक्त स्थलों को ।। | चातुर्मास से लाभान्वित किया है।
1.बिदड़ा-(कच्छ) 2. बाड़मेर (राजस्थान) 3. कोठारा तीर्थ । (कच्छ), 4. घाटकोपर (मुम्बई) 5. मोटा आसंबिया (कच्छ) 6. देवपुर
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
(कच्छ) 7. कोटड़ा-रोहा (कच्छ) 8. महालक्ष्मी ( तिरुपति एर्पाटमेंट - मुम्बई), 9. माटुंगा (मुम्बई), 10. वडाला (मुम्बई), 11 सम्मेतशिखरजी महातीर्थ (बिहार), 12. नालासोपारा (मुम्बई), 13. डोंबीवली (मुम्बई), 14. महालक्ष्मी (तिरुपति एर्पाटमेंट - मुम्बई), 15. जामनगर (सौराष्ट्र), 16. मांडवी (कच्छ), 17. भुजपुर (कच्छ), 18. बिदड़ा (कच्छ) 19. मणिनगर ( अहमदाबाद), 20. नाराणपुरा ( अहमदाबाद ), 21 बड़ौदा (गुजरात), 22. मांडल (गुजरात), 23 शंखेश्वर महातीर्थ, 24. बाड़मेर ( राजस्थान ) 25. उदयपुर (मेवाड़)
आपने अपने गुरुदेव प.पू. अचलगच्छाधिपति आ. भ. श्री • गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में आगमों के योगोद्वहन विधिपूर्वक परिपूर्ण किये एवं बाद में आपको सं. 2047 फाल्गुन शुक्ल 7 के दिन पालीताणा में 2000 यात्रियों की 99वे यात्रा के दौरान, लगातार 31वें वर्षीतप के तपस्वीरत्न, वर्तमान अचलगच्छाधिपति प.पू. आ. भ. श्री गुणोदयसागरसूरीश्वरजी म.सा. के वरद हाथों से गणविर्य पद से विभूषित किया गया है।
हम शासन देव से प्रार्थना करते हैं कि पूज्यश्री दीर्घायुषी बनकर चिरकाल तक आत्म साधना के साथ शासन प्रभावना के अनेक विद् मांगलिक कार्य करते - करवाते रहें।
पूज्य गणिवर्यश्री के उदयपुर में "संयम- रजत - चातुर्मास" की अनुमोदनार्थ प्रस्तुत किताब पूज्यों को एवं ज्ञान भण्डारों को सादर भेंट देने के लिए हमारे श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ - उदयपुर के ज्ञान खाते में से 11000/- रुपये अर्पण करते हुए हम धन्यता का अनुभव करते हैं।
जैनं जयति शासनम् ।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
अचिंतचिंतामणि नवकार
(यहाँ प्रस्तुत अद्भुत घटना तथा उसका मननीय विश्लेषण 'अचिंतचिंतामणि नवकार में से साभार उद्धत किया गया है। गुलाबचन्द भाई का लगभग 20 वर्ष पूर्व देह विलय हुआ है। संपादक)
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"मुझे कैन्सर का रोग था । दिन-प्रतिदिन व्याधि उग्र बनती जा रही थी। सुधार होने की आशा नहीं थी। पिछले चार-पांच दिन से पानी पीना भी मुश्किल हो गया था। प्यास और वेदना असह्य बन गयी थी । | पेनिसिलिन के इन्जेक्शन दिये जा रहे थे। मुझे प्रत्येक चार घंटों के बाद इंजेक्शन दिया जा रहा था ।
'अब
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उस समय एकाएक मेरे दिमाग में एक विचार कौंधने लगा। अंतिम समय है।' वर्षों पूर्व व्याख्यान में सुने हुए वचन याद आने लगे। 'पूरी जिन्दगी में धर्म न किया हो, किन्तु अन्तिम समय में सभी जीवों से क्षमायाचना कर, वैर विरोध भूलकर सभी जीवों के साथ मैत्रीभावपूर्वक नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया जाए तो आत्मा की सद्गति होती है। इसी कारण मैंने नमस्कार महामंत्र का रटन शुरू कर दिया। मैंने डॉक्टर को भी कह दिया, 'अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, पानी की भी मुझे जरूरत नहीं है।'
मैंने सभी के साथ क्षमायाचना की और जगत के सभी जीवों के साथ मैत्रीभाव की उद्घोषणा की। फिर नवकार का स्मरण खूब भावपूर्वक किया । मेरी शैय्या के आसपास करूण दृश्य दिखाई दे रहा था। घर के लोग रोते हुए मुझे नवकारमंत्र सुना रहे थे।
उस अविस्मरणीय रात को 15 वर्ष हो गये हैं। जीवन दिया। मेरा प्राणघातक कैंसर नवकार के आगे टिक
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नवकार ने मुझे नहीं सका।"
बाहर गाँव से आये एक भाई नवकार के प्रभाव से खुद को मिला अनुभव बता रहे थे। उनकी आवाज में खुद के अनुभव की रणकार थी।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
सायंकाल का प्रतिक्रमण पूरा हुआ। उसके बाद सुरेन्द्रनगर के विशाल उपाश्रय की पहली मंजिल पर एक खिड़की के पास हम बैठे थे। उनकी बात प्रारंभ से अन्त तक सुनने की मेरी जिज्ञासा देखकर उन्होंने विस्तार से अपना वृत्तांत सुनाना प्रारंभ किया।
विक्रम संवत् 2016 का यह वर्ष था। हमारी इस पहली मुलाकात होने से पन्द्रह वर्ष पूर्व यह घटना घटित हुई थी, अर्थात् विक्रम संवत 2001 के आसपास की यह बात है। नवकार द्वारा नवजीवन प्राप्त करने वाले यह बड़भागी गुलाबचन्दभाई आज 27 वर्ष बाद भी रोग मुक्त हैं।
(यहाँ 27 वर्ष लेखक द्वारा लेख लिखते समय जितना समय हुआ था उसके अनुसार होते हैं, यानि यह मूल लेख सं. 2028 में लिखा हुआ है -संपा.)
वे नवकार के आलंबन से धर्माराधना करते हुए अत्यंत शांति से सुखमय निवृत जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
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श्री नमस्कार महामंत्र में रही हुई अचिंत्य मंत्रशक्ति का यह जीवंत उदाहरण अपनी साधना हेतु नई प्रेरणा एवं प्रकाश देता है। क्या यह महारत्न है ? 1 या फिर यह चिंतामणि है ? अथवा कल्पवृक्ष समान (इच्छित फल देने वाला) है? नहीं, नहीं, यह ( नवकार) तो चिंतामणि और कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है।"
यह उद्गार हैं, पूर्व के महापुरूषों के । नवकार की महिमा का वर्णन करते उन्हें लिखना पड़ा कि चिंतामणि एवं कल्पवृक्ष से भी इसकी तुलना नहीं की जा सकती है। परन्तु कलियुग के कलुषित वातावरण में दूषित मनवाला मानव आज जब नवकार गिनता है और जब उसे इच्छित फल नहीं मिलता, तब उसे पूर्व के महापुरूषों के वचनों में अतिशयोक्ति लगती है। वह कहता है
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'यह स्तुतिवचन है, अर्थात् वर घोड़े के उसके गीत गाये जाते हैं।" उसी प्रकार यहाँ उन्होंने
ऊपर चढ़ता है तब नवकार के गीत गाये
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हैं। दुल्हा काला होता है, कुरूप होता है, फिर भी जबशादी करने जाता है तब सभी अच्छे रूपकों से उसके गीत गाये जाते हैं। इन गीतों में जिस तरह वास्तविक वस्तुदर्शन नहीं होता, उसी प्रकार नवकार के गुणगान भी वस्तुस्थिति का निरूपण नहीं करते, किन्तु नवकार के मात्र "गीत" स्वरूप हैं।
आज लगभग सर्वत्र कहा जाता है कि, 'नवकार का जैसा प्रभाव बताया गया है, वैसा दिखाई नहीं देता। हमने बहुत नवकार गिने, किन्तु चमत्कार दिखाई नहीं दिया। यह शिकायत क्यों सुनाई देती है? क्या नवकार में से शक्ति कम हो गई है? या फिर यह झूठी शिकायत है?
क्या कमी है? __नहीं, नवकार की शक्ति भी घटी नहीं है, और यह शिकायत भी झूठी नहीं है। परन्तु इस शिकायत की जड़, जिस प्रकार हम नवकार का प्रयोग करते हैं, उसमें निहित है। एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट होगी। | रोटी गेहूँ के आटे से बनती है, यह हकीकत है, परन्तु गेहूँ के आटे से रोटी तक पहुँचने तक की एक निश्चित प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का यदि एक चरण भी छोड़ दें तो? गेहूँ का आटा लेकर सीधा तवे पर डाल दिया जाये तो रोटी तैयार हो जायेगी? नहीं, उल्टा आटा ही जल जाएगा। रोटी चाहिए तो आटे में निश्चित मात्रा में पानी डालकर गूंदना पड़ेगा। फिर उसमें से लोथें (लोईए) बनाकर, इन लोथों को बेलकर तवे पर डालकर उसे निश्चित मात्रा में ताप देना पड़ेगा तभी आटे से रोटी बनेगी, यह तो रोटी के लिए स्थूल प्रक्रिया की बात हुई। बीच में छोटे-छोटे अनेक चरणों से गुजरना पड़ता है। उसी प्रकार नवकार की जिस महिमा का वर्णन किया गया है, उसे अनुभव करने की भी एक प्रक्रिया है। उस प्रक्रिया की | उपेक्षा करके तो हम नवकार के पास नहीं जाते हैं ना? ।
एक दूसरा उदाहरण लेते हैं : इलेक्ट्रिसीटी की फिटिंग घर में करवाई, वायर डाला गया, बल्ब लगाया गया, बटन भी दबाया, फिर भी प्रकाश नहीं जगमगाये तो? कहाँ गलती है, वह जानने निकलते हैं। बल्ब,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -- वायरिंग, फिटिंग आदि सही हो तो फिर प्रथम नजर कहाँ पडती है? मुख्य स्वीच चाल है? और यदि वो भी चालु हो तो तुरन्त मन में विचार आता है कि "फ्यूज' तो नहीं उडा? नवकार की साधना का "फ्यूज' कौनसा? मेरा कैंसर कैसे मिटा?
नमस्कार महामंत्र की साधना की सच्ची प्रक्रिया और नवकार के "फ्यूज'ष्की पहचान गुलाबचन्द भाई द्वारा की गई नवकार की साधना के वर्णन में से प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने नवकार की साधना किस प्रकार की और उससे उन्हें क्या अनुभव हुआ? यह हम उनके ही शब्दों में देखें।
"मुझे कैन्सर का प्राणघातक रोग हुआ। उसके प्रारंभ के छह महीनों में मेरे सिर में बहुत दर्द होता था। मैंने डॉक्टरों को दिखाया, किन्तु रोग का कोई निवारण नहीं कर सका। एक दिन कफ में खून दिखाई दिया। मेरे पारिवारिक डॉक्टर को बात की। उन्होंने जाँच कर केन्सर होने की बात कही।
मैंने उसके बाद डॉक्टर कपर को बताया, तब उन्होंने कहा, "अभी पेनिसिलिन के इंजेक्शन लो, उससे पहले कोई उपचार हो सके वैसा नहीं है।" गला अंदर से, और बाहर से सूज गया था। इससे पहले भी खुराक तो कम हो ही गई थी। रोटी भी पानी के चूंट के साथ मुश्किल से उतरती थी, अब गला एकदम सिकुड़ गया। दूसरे दिन हमने डॉ. के. मोदी का एपोइन्टमेन्ट लिया। उन्होंने जाँच कर कहा कि, 'रोग बहुत बढ़ चुका है। ट्रीटमेन्ट (उपचार) की बात तो दूर रखें, किन्तु अन्दर से काटकर जाँच (बायोप्सी) करा सकें, वैसी भी स्थिति नहीं है। उन्होंने मेरे पारिवारिक डॉक्टर को एक ओर लेकर कहा कि, 'ये एक-दो दिन के | मेहमान हैं। उन्होंने शांति से आयु पूर्ण हो इसलिए नींद के इंजेक्शन देने को कहा। हम निराश होकर लौटे।
पिछले चार-पांच दिन से गले से पानी नहीं उतरता था। प्यास ऐसी लगी थी कि घड़े के घड़े पानी पी जाऊँ। मैंने अपने पारिवारिक डॉक्टर
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से कहा, 'दूसरा भले ही कुछ न हो, किन्तु मैं पानी पी सकूं ऐसा कुछ करो।' उन्होंने आश्वासन दिया, 'आज रात निकाल दो कल सुबह इस हेतु प्रबंध करूंगा । नली से मैं तुम्हें पानी दूंगा।'
मैं घर आया। प्यास की पीड़ा असह्य थी। मुझे पहले कहा गया है उस प्रकार एकाएक नवकार महामंत्र का स्मरण करने की स्फुरणा हुई।
तब शाम के लगभग साढ़े सात बजे होंगे, मैंने बाहर से कोई नहीं आये, और कुछ भी विक्षेप न हो, इसीलिए घर के सभी दरवाजे बंद करवाये। कुटुम्बीजनों को इकट्ठा कर सभी के साथ खमतखामणे (क्षमायाचना ) किये। जिन्दगी भर में हुए वैर विरोध के लिए सभी से माफी का लेन-देन कर दिया और साथ में जगत के सभी जीवों को खमाकर ( क्षमायाचना कर) अंतःकरण पूर्वक मैत्री भाव की उद्घोषणा की:
खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणई ||
और भावना भाई कि, जगत के सभी जीव सुखी बनें, जगत के सभी जीवों का कल्याण हो, कोई पाप नहीं करें, कोई दुःख प्राप्त नहीं करें। जगत के सभी जीव कर्म से मुक्त बनें।'
मैं अन्तःकरण की गहराई से यह भावना कर नवकार के ध्यान में लग गया। कहीं मेरी दुर्गति न हो जाए इस भय से मैं खूब जागृतिपूर्वक नवकार मंत्र में लीन बन गया। अब मुझे दूसरी कोई आवश्यकता नहीं थी। मुझे सद्गति की धून लग गयी थी। सद्गति हो इसलिए बीस-पच्चीस नवकार और फिर सभी जीवों के प्रति मैत्री की पूर्वोक्त भावना में लग गया। उसमें चित्त लगाने से मैं पीड़ा को थोड़ा भूल गया।
मुझे 11 बजे जबरदस्त उल्टी हुई। पूरा बर्तन भर गया। मैं बेहोश हो गया। घर के लोग समझे कि यह अंतिम स्थिति है। रोना चिल्लाना शुरु हो गया, मैं थोडी देर बाद होश में आया। मुझे कुछ अच्छा लगा। मैंने पानी मांगा। मैं दो-तीन लोटे पानी पी गया, परन्तु मुझे अभी भी वही धून थी कि कहीं सद्गति चूक न जाऊँ। नवकार और भावना चालु रखी।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मेरी माँ ने कहा, 'थोड़ा दूध चलेगा? मैंने कहा, "देखें, लाओ।" मैंने एक कप दूध पी लिया। इससे पहले पांच दिन से पानी का एक बूंट भी गले से उतार नहीं पाता था। नवकार और भावना चालु ही थे।
मुझे रात्रि में नींद आ गई। पिछले छह दिनों से नींद नहीं आई थी। पांच छह घण्टे गाढ निद्रा की। घर के लोग तो अभी तक यही मानते थे कि में दो-चार घड़ी का मेहमान हूँ। मैं सुबह उठा तो महसूस हुआ कि, शरीर में कुछ नई स्फूर्ति है, मानो नया जीवन मिला हो। मैंने चाय पानी लिया। मैं भावना एवं नवकार नहीं छोड़ता था। | मैं धीरे-धीरे दूध, राबडी, वगैरह प्रवाही खुराक लेने लगा। मुझे दूध की मलाई जैसी पौष्टिक खुराक देने लगे। एक सप्ताह में तो मैं शीरा वगैरह लेने लगा। । हमारे पारिवारिक डॉक्टर को साथ में लेकर हम बड़े डॉक्टर को बताने गये। मुझे देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। पूरी बात की। उन्होंने कहा, "तुमने पिछले चार पांच दिन से कुछ खाया पीया नहीं था, तो उल्टी किसकी हुई? गला किससे खुल गया? तुमने क्या उपचार किये थे? वैद्य आदि की भी कोई दवा ली हो तो वह बताओ, जिससे दूसरे मरीजों पर उसका प्रयोग किया जा सके। मैंने कहा मैंने कोई दवा नहीं ली, प्रभ का नाम लिया है।ष्मैंने कोई उपचार किया हो तो जानने के लिए डॉक्टर ने कई प्रश्न किये, किन्तु मेरे पास दूसरा कुछ कहने को नहीं था। डॉक्टर को लगा कि अब कुछ ट्रीटमेन्ट करनी चाहिए। उन्होंने लाइट लेने (सेक कराने) को कहा। मैंने लाइट लेने का निर्णय किया। 28 सीटिंग लाइट (डीप एक्स-रेस ट्रीटमेन्ट) ली। परन्तु मुझे अब तसल्ली हो चुकी थी कि नवकार से ही सब ठीक हो जाएगा। इसी कारण लाइट लेने जाते समय रास्ते में, बस में, घर से निकलते समय, सभी जगह नवकार का रटन चालु रखता।
आराधना के लिए यह कुछ समय मिल गया है, मैं अब चार छह महीने आराधना के लिए निकाल लूंगा। ऐसा मुझे अब लगने लगा। इससे
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अब सद्गति चूक न जाऊँ इसके लिए नवकार और भावना का कार्यक्रम मैंने जारी ही रखा। बीच-बीच में मन की जाँच करता कि क्या विचार चल रहे हैं। दूसरा कोई विचार मन में घुस गया तो सद्गति रुक जायेगी। इस डर के कारण मन पर पूरी चौकीदारी रखता था।
जिस प्रकार घर में कोई चोर डाकु घुस न जाये, इसलिए दरवाजे पर पहरेदार होता है, उसी प्रकार मन में कोई बुरा विचार प्रविष्ट न हो जाए, इसलिए मैने मन के ऊपर आत्मजागृति का पहरा रखा। मैं थोड़े समय में एकदम स्वस्थ हो गया। आज इस बात को 15 वर्ष हो गये हैं।
मेरे लिए तो कैंसर ने फायदा किया। कैंसर न हुआ होता तो शायद में धर्म में जुड़ नहीं पाता। मुझे बचानेवाला नवकार है, ऐसा में मानता हूँ। इसलिए नवकार मेरा सर्वस्व है।
मेरी दिनचर्या ___ मैं तब से ही निवृत्त जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। अभी मेरी दिनचर्या | इस प्रकार है :प्रातः चार बजे उठ जाता है, उठकर ... .... ।
खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मझं न केगई। और 'जगत के सभी जीव सुखी बनें, नीरोगी बनें, मुक्त बनें, कोई पाप का सेवन न करें, इस प्रकार की भावना करके पद्मासन में बैठकर हदय में श्वेत कमल की कल्पना कर, तन्मय होकर एक सौ आठ नवकार एवं उवसग्गहरं की माला गिनता हूँ। फिर थोड़ी देर अरिहंत परमात्मा के श्वेत वर्ण का ध्यान करता हूँ। अन्त में ध्यानस्थ दशा में खड़े महावीर प्रभु को कल्पना में लाकर प्रार्थना करता हूँ कि, 'प्रभु! आपके जैसा ध्यान मुझे कब मिलेगा?' अंत में में आत्मस्वरूप का चिंतन करता हूँ। 2-3 मिनट इसी प्रकार ध्यान करता हूँ, 'मैं अनन्त शक्ति का स्वामी हूँ...इत्यादि तब पांच बजते हैं। मुझे अद्भुत शान्ति का अनुभव होता है।
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मैं फिर प्रतिक्रमण कर गाँव के सभी जिनमंदिरों में जाता हूँ। हमारे गाँव के जिनमंदिर बहुत ही रमणीय हैं। प्रतिमाजी प्राचीन हैं। दर्शन करके आने के बाद नवकारसी करता हूँ। वहां नौ- साढे नौ बज जाते हैं। फिर व्याख्यान होता है तो सुनता हूँ। दस से ग्यारह बजे तक भाभा पार्श्वनाथ के पास जो कार्यक्रम सुबह चार से पांच बजे के बीच करता हूँ, उसे दोहराता हूँ। मुझे यहां बहुत ही शांति मिलती है।
फिर पूजा कर, खाना खाने का समय होने पर खाना खाकर आधा घंटा धार्मिक वांचन करता हूँ। फिर थोड़ी देर आराम करके, दो तीन सामायिक करता हूँ। उसमें नवतत्त्व वगैरह का थोड़ा अभ्यास एवं ध्यानादि करता हूँ।
मैं शाम को भोजन के समय भोजन कर जिनमन्दिरों के दर्शन करके प्रतिक्रमण करता हूँ। बाद में म.सा. होते हैं तो वैयावच्च, भक्ति कर घर आता हूँ। सभी जीवों से क्षमायाचना कर भावना भाकर, नवकार गिनते-गिनते सो जाता हूँ। दो चार नवकार गिनते ही मुझे ऐसी नीन्द आती है कि कब सोये, कहां सोये का पता ही नहीं चलता । नीन्द में "ॐ ह्रीँ अर्ह नमः" या " नमो अरिहंताणं" इस एक पद का जाप तालबद्ध तरीके से घड़ी के टिक-टिक आवाज की तरह चालु रहता है। मैं चलते-फिरते, उठते बैठते, बस में, ट्रेन में, जहाँ समय मिलता है वहाँ 'नमो अरिहंताणं" या "ॐ ह्रीं अर्ह नमः" का जाप चालु रखता हूँ। और आधे-आधे घंटे बाद मन की जांच करता हूँ कि उसमें क्या विचार चल रहे हैं?
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मेरा पिछले दस वर्ष से यह कार्यक्रम चालु है। उसमें पहले पांच वर्ष में कोई निश्चित कार्यक्रम तय नहीं था । किन्तु " जो थोड़ा समय आराधना के लिए मिला है, उसका पूरा उपयोग कर सद्गति साध लूँ।" इस धून से नवकार और प्रार्थना, फिर भावना और नवकार इस प्रकार दिन और रात रटना रखी। उसके बाद में मैंने उपरोक्त प्रकार का एक कार्यक्रम तय कर लिया।
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नवकार के सतत स्मरण का परिणाम
इससे मेरा रोग गया, इतना ही नहीं, मेरी आर्थिक स्थिति भी सुधरी, मानसिक विकास हुआ और मेरा शरीर भी बहुत अच्छा हो गया। मैं लाईट लेने के बाद निश्चित समय के बाद अस्पताल बताने जाता । एक बार वजन करने के कांटे पर नया आदमी था । वजन करने के लिए मेरा नाम पुकारा, "गुलाबचन्द भाई... मैं जाकर खड़ा हुआ। मुझे देखकर उसने कहा, 'तुम क्यों आए ? मरीज को खड़ा करो।' मुझे कहना पड़ा, 'मैं ही मरीज हूँ।' मैं मरीज होऊंगा, ऐसी कोई कल्पना भी न कर सके ऐसा मेरा शरीर हो गया था। आज मैं सभी प्रकार की खुराक ले सकता हूँ । कोई परहेज नहीं रखता। मैं तंदुरूस्त हूँ।
मेरी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो गया है और मेरा मानसिक विकास हुआ हो, ऐसा मुझे अनुभव होता है। आज मैं 2 हजार की सभा में भी नीडरता से बोल सकता हूँ और मेरे विचार सभा में घुसा सकता हूँ। मेरा अभ्यास बहुत कम है और आज तक मैंने सभा में किस प्रकार से बोलना, इसका अभ्यास भी नहीं किया और ना ही किसी का मार्ग दर्शन लिया। फिर भी एक-दो ऐसे प्रसंग उपस्थित हुए, तब मैं दो हजार लोगों की सभा के समक्ष अच्छी तरह से बोल सका था।
कभी मुझे अन्दर से लगता है कि, "अमुक व्यक्ति को मिले बहुत दिन हो गये, उनसे मिलना है, "तो मैं घर से बाहर निकलता हूँ, सीढ़ियां उतरता हूँ कि, वहां वह व्यक्ति सामने से मिल जाता है। काम में कुछ गड़बड़ हुई हो, कुछ दिमाग में नहीं आता हो कि, इसमें क्या करना? तो मैं तीन नवकार गिनकर सोचता हूँ कि तुरन्त मुझे योग्य मार्गदर्शन मिल जाता है। आर्थिक परिस्थिति में ऐसा लगता है कि इतनी जरुरत है, तो सामने से कोई पार्टी मिल जाती है कि " अभी हमारे इतने रूपये संभालो ।" कितनी ही बार स्फुरणा होती है कि अमुक कार्य अमुक प्रकार से करना । एक बार मुझे विचार आया कि 'मूलजी जेठा मार्केट' में दुकान लेनी है। मेरे भाई कहने लगे कि, 'पचास हजार पघड़ी देने के बाद भी
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मूलजी जेठा मार्केट में दुकान मिलना मुश्किल है। वहां दुकान खोलने के बाद भी एक लाख की पूंजी की आवश्यकता पड़ेगी।' इसलिए यह असंभव लगता है।" मगर थोड़े दिन बाद मेरी इच्छानुसार हुआ। दुकान मिल गयी। हम थोड़े महीने बाद मुम्बई में रहने के लिए एक मकान की खोज में थे। हमसे एक व्यक्ति ने बात की कि एक जैन भाई को मकान किराये पर देना है। हमनें भी प्रार्थना-पत्र दिया। तीन सौ प्रार्थना-पत्रों में से हमारा प्रार्थना-पत्र पास हो गया। सभी सुविधायुक्त नया मकान बिना पघड़ी के मिल गया। दो मिनट का स्टेशन का रास्ता और पांच मिनट में जिनमंदिर पहुँच सकें ऐसे अनुकूल स्थान पर मकान मिला था।
मझे ऐसे छोटे-बड़े अनुभव होते रहते हैं। मेरी बहिन को अस्थमा की व्याधि थी। मुम्बई में डॉ. कोहियाजी आदि के पास इलाज करवाया। मिरज ले गये, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। रोग इतना बढ़ा कि सारी-सारी रात आराम कुर्सी पर निकालनी पड़ती थी। थोड़ा भी सोया नहीं जा सकता था। मेरे पास तो उपचार के रूप में यह भावना थी। मैंने उन्हें यह |भावना बतायी। में स्वयं सुबह "सभी जीव निरोगी बनें।" यह भावना करते समय उनके ऊपर विशेष लक्ष्य रखता, उनका नाम लेकर निरोगी बनें ऐसी भावना करता। थोड़े समय में उन्हें कुछ स्वास्थ्य लाभ हुआ।
आज वह एकदम स्वस्थ हैं। __ मन की जांच और भावना
इन सब कार्यों में मुझे मन की जाँच का बहुत महत्त्व दिखाई दिया। में इसलिए जितना संभव हो उतना कम बोलता हूँ। फिर भी किसी प्रसंग में किसी को दो शब्द कभी कह दिये हों या किसी का मन-दुःख हो गया हो तो मेरी भावना का "फ्युज" उड़ जाता है। प्रातः काल भावना के लिए बैठता हूँ लेकिन कार्य आगे बढ़ता ही नहीं है। वह व्यक्ति बीच-बीच में मनोभूमिका में आता ही रहता है। में सामने से जाकर क्षमायाचना करता हूँ, तब जाकर कार्य सरलता से बनता है। एक उदाहरण देता हूँ, एक बार मैंने एक फ्रेम की दुकान पर फोटो मढाने के लिए दिया। बिल
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - साढे सात रूपये का था। मैंने कहा, "इतने नहीं होते हैं। सात रूपये सही हैं।" 'नहीं सेठ! जो कहा है, वह वाजिब है। मुम्बई में यदि आप यह कार्य करवाते हैं तो इससे भी ज्यादा खर्च होता है। फिर भी मैं सात रूपये देकर घर आया। दूसरे दिन जब सवेरे भावना करने बैठा तो भावना सही नहीं हुई। मैंने जांच की, जरुर कहीं भूल हुई है। मैंने फ्रेमवाले की दुकान जाकर उसे कहा, "अली बाबा! आपने कल सही बात कही थी, आपने कार्य बहुत ही अच्छा किया है। यह एक रूपया लो।" वह खुश हो गये। उसके बाद ही मेरी भावना सही चली। कभी मन्दिर में पूजारी के साथ दो शब्द बोल दिये हों तो काम रुक जाता है। फिर दोबारा मन्दिर दर्शन करने जाता हूँ, चार-आठ आने देकर पूजारी को खुश कर क्षमापना करता हूँ, फिर ही मेरा कार्य सही होता है।
मेरी प्रवृत्ति बहुत कम है। इसलिए बाहर के लोगों से काम कम ही पड़ता है और कुटुम्बीजन तो खूब ही अनुकूल हो गये हैं। मैं सभी को | यह भावना बताता हूं। उन्हें कहता हूँ कि, "तुम्हें सुख चाहिये तो सुख
को बोना गुरु करो-दूसरों को सुखी करो, दूसरे सुखी हो ऐसी भावना करो।" इससे मेरा मन बिगड़ने के प्रसंग कम ही आते हैं। फिर भी में मन की जाँच करता रहता हूँ कि मन में क्या विचार चल रहे हैं? मैं किसी से मिलता हूँ या बातचीत करता हूँ, तब भी नीच-बीच में यह मन की जाँच चालु रखता हूँ।
सभी जीवों को सखी देखने की भावना का यह परिणाम आया कि आज सारा विश्व मेरा मित्र बन गया है। मैं किसी अनजान स्थान पर जाता हूँ वहां भी मेरे साथ बात करने वाले मानो चिरपरिचित हों इस प्रकार मित्रता का वर्तन करते हैं। उनको मेरे प्रति प्रेम उत्पन्न होता है और | फिर मुझसे मिलने की तमन्ना मन में रखते हैं।
___ एक बार मैं उठा तो पैर में कोई जन्तु हो ऐसा मुझे महसूस हुआ। मुझे लगा कोई बड़ा जीव है। अंधेरा था। मैं रात्रि में लालटेन या लाईट नहीं रखता हूँ। मेरे उठने का समय हो गया था। मैं बिस्तर सिमटकर
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
भावना में बैठ गया। भावना और नवकार का कार्यक्रम पूरा होते ही बिस्तर उठाकर रखने गया। वहां कंबल में से एक बड़ा बिच्छु निकलकर सीधा-सीधा चला गया। जैसे वह (बिच्छु ) भी मेरी मैत्री भावना सुनने बैठ गया हो, वैसे वैर विरोध भूलकर दो घंटे बैठा रहा। मुझे लगा कि अपनी अल्प शुभ भावना से भी ऐसा परिणाम निकलता हो तो प्रकृष्ट मैत्री के केन्द्र समान श्री तीर्थंकर भगवान जहां विराजमान हों ऐसे समवसरण में नित्य वैरी पशु-पक्षी भी जाति वैर को भूलकर साथ में बैठकर परमात्मा की वाणी का पान करते हैं, तो उसमें आश्चर्य की बात कहाँ ? अपनी
भावना का बिन्दु श्री तीर्थंकर परमात्मा की भावना के सिंधु में मिल जाए तो अक्षय बन जाए। इसी प्रयोजन से मैं नित्य यह भावना भी करता हूं कि परमात्मा की "सवि जीव करुं शासन रसी" की भावना सफल हो।
सभी के सुख और हित की भावना के साथ किये हुए नवकार मंत्र के जाप से मन का ऊर्ध्वकरण होता है, जीवन के संघर्षों में योग्य मार्गदर्शन प्राप्त होता है और संकट का भी धैर्य के साथ स्वागत करने का बल प्राप्त होता है, इतना ही नहीं, इससे मेरा सर्वांगीण विकास हुआ है, ऐसा मैं अनुभव करता हूँ। जैसे-जैसे मुझे अच्छा होता गया वैसे वैसे मैं धर्म में भी आगे बढता गया और व्रत नियम भी लेने लगा।
गत भाद्रपद माह में हमारे यहां श्री नवकार मंत्र का एक लाख का जाप एवं श्री वर्धमान तप की नींव का कार्यक्रम महाराज श्री ने आयोजित किया था। उस समय मैंने भी वर्धमान तप की नींव डाली। कैंसर के रोग के साथ इस दुनिया से विदाई लेने वाले मैंने लगातार बीस दिन तक आयम्बिल और बीच-बीच में उपवास की आराधना की। मुझे इससे बहुत संतोष हुआ। मेरे जीवन में कोई अजीब शान्ति फैल रही है।
वि.सं. 1996 से पूर्व का मेरा जीवन धर्मशून्य था। रात्रि भोजन, फीचर का धंधा, देर रात तक जगना, दूसरे को सुखी देखकर दुःखी होना, यह सब मेरे जीवन का सामान्य क्रम था। उस समय मैंने किसी का अच्छा सोचा भी नहीं, बल्कि किसी का किस तरह नुकसान हो, यही
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सोचता था। मैं आर्त और रौद्रध्यान के मध्य जीवन बीताता था। उस समय | मुझे एक कल्याणमित्र मिल गया। उसने मुझे व्याख्यान में आने की प्रेरणा दी। मैं व्याख्यान सुनने के लिए जाने लगा। उसमें से मुझे बहुत मार्गदर्शन मिला।
___ मुझे इस प्रकार द्रव्य एवं भाव दोनों प्रकार से नवकार ने नया जीवन दिया। मेरा पूरा विकास इसी की बदौलत हुआ। इसी कारण मैं नवकार को ही अपना सर्वस्व मानता हूँ। मैं सुबह-शाम भावना करने से पूर्व नवकार का लक्ष्य रखकर एक श्लोक बोलकर नवकार के प्रति अपने | भाव व्यक्त करता हूँ। यह रहा श्लोक
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्व मम देव देव।।
अर्थ : मेरे लिए माता, पिता भाई, मित्र, विद्या, धन सब तुम ही हो अर्थात् यह सब मिलकर जिन अपेक्षाओं की पूर्ति करते हैं, वह सब मेरी अपेक्षाएं तुझ से ही पूर्ण हो जाती हैं।
नवकार साधना की सही प्रक्रिया ___ श्री गुलाबचन्द भाई को नवकार की साधना और उसकी सही प्रक्रिया अचानक प्राप्त हो गयी। इसी कारण नवकार, उनके लिए अचिंतचिंतामणि बन गया। उन्होंने तो मात्र सद्गति की ही इच्छा की थी, परन्तु नवकार ने तो बिना मांगे ही उन्हें सभी अनुकूलताएं उपलब्ध करवा दीं। इनकी नवकार की साधना शीघ्र फलदायी बनी इसमें इनकी साधना प्रक्रिया के निम्न अंगों का महत्त्व लगता है1 "नवकार ईष्टसाधक है" ऐसी दृढ़ श्रद्धा। 2 सभी के साथ हदय पूर्वक की गई क्षमापना और मैत्री आदि भावना
से शुद्ध हुई मन की भूमिका। 3 अरिहंत का रात-दिन रटन। 4 मन पर सतत पहरेदारी।
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
नवकार के प्रति समर्पित भाव के द्वारा स्वयं के कर्तृत्वभाव का विसर्जन । साधना में इन बातों का क्या महत्त्व है वह हम अब देखेंगे।
(1) साधना की आधार शिला : श्रद्धा
पहली बात यह है कि ' नवकार से सद्गति मिलेगी ही" ऐसे दृढ़ विश्वास के साथ श्री गुलाबचन्द भाई ने नवकार गिने थे। जब यमराज सामने आते हैं, तब ईश्वर के नाम में मानवी सहजता से जुड़ता है। नास्तिक मानव भी मृत्यु के मुख में से बचने के लिए भगवान को पुकारता है। गुलाबचन्द भाई के सामने जब मौत आ रही थी उस समय उन्हें याद आया कि, " नवकार से सद्गति मिल जाएगी", इसलिए वे उसमें दृढ़ विश्वासपूर्वक लीन बन गये।
किसी भी साधना में "श्रद्धा" महत्त्व का बल है। श्रद्धा के अभाव में साधना फल तक नहीं ही पहुंचती । मुम्बई जाने के रास्ते पर चले, पचास माईल जाकर यदि शंका हुई कि यह रास्ता मुम्बई का है या नहीं, तो उस राह में प्रयाण रुक जायेगा । शंकाग्रस्त व्यक्ति भले ही प्रयाण चालु रखे, फिर भी उसमें वेग नहीं आयेगा और किसी भी वक्त उस रास्ते को छोड़ने में देर नहीं लगेगी; उसी प्रकार " नवकार अवश्य ईष्टप्रापक है" यह श्रद्धा जिसे नहीं है, वह नवकार की साधना की पूर्णता तक नहीं पहुंच सकता। ईष्टफल की प्राप्ति से पूर्व ही वह नवकार की साधना को छोड़कर दूसरी किसी साधना के पीछे दौड़ेगा । इसलिए श्रद्धा बिना का नवकार ईष्टसाधक नहीं बन सकता।
अन्न खाने से भूख मिटेगी और शरीर पुष्ट होगा, जहर से मृत्यु होगी और दवा की छोटी पुड़ी से रोग मिट जाएगा, ऐसा मनुष्य को दृढ़ विश्वास है, श्रद्धा है, तसल्ली है, इसी कारण वह बार-बार भूख लगने पर भी अन्न की ओर मुड़ता है और जहर के कण को भी प्रयत्नपूर्वक टालता है। धन बढ़ने से हमेशा सुख बढ़ता ही है ऐसा नहीं दिखता, फिर भी लक्ष्मी से सुख मिलता है ऐसी श्रद्धा होने के कारण मनुष्य काली
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मजदूरी करता है। धन, अन्न और औषधि की शक्ति में हम श्रद्धा रखकर बर्तते हैं, उसी प्रकार नवकार की शक्ति में भी प्रथम दृढ़ श्रद्धा जगानी चाहिये। यह श्रद्धा होने के बाद की गयी साधना बीच में अटकती नहीं है। श्रद्धा होती है तो ईष्टफल की प्राप्ति में होते हुए विलम्ब से या बीच में आती अड़चनों से बिना विचलित हुए साधक दृढतापूर्वक साधना में अडिग रहता है। इसी कारण उसकी साधना फल तक अवश्य पहुंचती है।
असन्तुष्ट बुद्धि श्रद्धा को स्थिर नहीं होने देती है, इसलिए बुद्धि को संतोष देने के लिए, हम थोड़ा यह भी विचार कर लें कि नवकार का |जप किस प्रकार ईष्ट साधक बनता है?
__अश्राव्य ध्वनि तरंगों (SUPER SONICS) की शक्ति का आधुनिक विज्ञान द्वारा दिये गये परिचय से जप की असर समझने में सरलता हुई है। अश्राव्य ध्वनि तरंगें अपने कान की पकड़ में नहीं आ सकतीं, किन्तु विज्ञान ने सिद्ध किया है कि सुनाई नहीं देती तरंगें भी नाजुक यंत्रों की सफाई कर सकती हैं। वह थोड़े ही सेकंडों में पानी गरम कर देती हैं। पार्थिव जगत में ध्वनि तरंगों का इतना असर होता हो, तो क्या यह संभव नहीं कि सतत जप करने वाले व्यक्ति के शरीर और उसके आसपास के वायुमण्डल में जप की ध्वनि तरंगें कुछ सूक्ष्म असर को जन्म दें और साधक के नाड़ी तंत्र और सूक्ष्म शरीर पर असर कर, उसके चित्त में परिवर्तन कर दें? जप से बुद्धि निर्मल बनती है, जिससे साधक मोह को पहचान लेता है और धर्म को समझ सकता है।
प्रतिदिन निश्चित समय पर जप की ध्वनि में एकाग्र होकर, जप करने से चित्त की चंचलता शीघ्र कम होती है और एकाग्रता बढ़ती है। जप करते समय परमेष्ठिओं के गुणों के या दूसरे किसी चिंतन में नहीं पड़कर केवल जप की ध्वनि में लक्ष्य रखकर जाप करना चाहिये। जिससे चित्त एकाग्र होकर जप में जुड़ेगा। इसका अभ्यास होने के बाद स्वतः मानसिक जप होने लग जायेगा। चलते-फिरते, उठते-बैठते, मन में अरिहंत परमात्मा का स्मरण करने की आदत डाली हो तो चित्त अधिक से
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अधिक अंतर्मुख बनता जाता है। मन जब स्वयं अन्तर्मुख रहने लगता है, तब उसकी अशुद्धियां, ईर्ष्या, असूया, तिरस्कार, घृणा, क्रोध, मद, तृष्णा एवं भोग की तीव्र आसक्ति दूर होती जाती है। और चित्त शांत, सम, स्वस्थ बनता जाता है।
उसे अन्य संकल्प विकल्प कम ही रहते हैं। अंतर में रहे हुए डर, जीर्णता, मलिनता और मृत्यु आदि से पर रहे हुए तत्त्व के साथ उसका अनुसंधान बढ़ता जाता है। जिसके कारण साधक स्वयं के कर्मकृत व्यक्तित्व से ऊपर उठता जाता है। इस तरह उसमें आत्मदर्शन की योग्यता विकसित होती जाती है। इस तरह साधक का जीवन उत्तरोत्तर अधिक विकासगामी बनाकर, नवकार उसे उसके ईष्ट मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
उसके साधक को बीच-बीच में भौतिक लाभ भी मिलते हैं, इसका कारण यह है कि निरंतर परमात्मा के स्मरण से उसके पापकर्मों का ह्रास होता है, अर्थात् पापकर्म की शक्ति ( स्थिति एवं रस) घट जाती है। वह निर्बल बन जाती है और पुण्यकर्म सबल बनता है परिणाम स्वरूप आपत्ति टल जाती है, सम्पत्ति मिल जाती है।" ऐसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पासणो" यह सूत्र ज्ञानियों ने दिया ही है। विपत्ति पापकर्म से ही आती है। जिसके पाप नष्ट हो जाते हैं उसकी विपत्ति जिस तरह ओस के बिन्दु, सूर्य निकलते ही अदृश्य हो जाते हैं, उसी प्रकार भाग जाएं, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
किन्तु उस समय साधक को यह स्मरण में रखना चाहिये कि दुःख बिच्छु के डंक के समान है और सुख सांप के डंक के समान है। इसमें आंखों को नीन्द आराम से घेर लेती है, जागृत रहने के लिए मनुश्य को मेहनत करनी पड़ती है। उसी प्रकार सुख में मोह के हमले से ज्यादा सावधान रहना आवश्यक है। धन सत्ता सामाजिक प्रतिष्ठा, कीर्ति या भोग सुख की तष्णा चित्त पर कब्जा न जमाए और नवकार के जप के ऊपर की पकड़ ढीली न पड़ जाये, उसकी सावधानी उस समय साधक को विशेष रखनी चाहिये, नहीं तो मोह का नशा चढ़ने में देर नहीं लगेगी।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? निर्मल भाव से किया गया नवकार का स्मरण कभी निष्फल नहीं जाता है। परन्तु साधक को बिना समय फल देखने की उत्कंठा नहीं रखनी चाहिये। उसे यह समझना चाहिये कि बीज बोते ही फल खाने की आशा रखना मूर्खता है। प्रत्येक वस्तु समय मांगती है।
देख सकें ऐसा फल आने में विलम्ब हो जाए तो यह नहीं कहा जा सकता, कि साधना निष्फल गयी। जिस प्रकार कोई पत्थर तोड़ने के लिए चालीस प्रहार करने पड़े, वहां प्रथम के तीस प्रहार तक तो कोई परिणाम नहीं आया। इकतीसवें प्रहार में पत्थर में दरार आई और चालीसवें प्रहार से पत्थर टूट जाता है। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि पूर्व के तीस प्रहार व्यर्थ गये। ऐसा ही कुएं की खुदाई में होता है। जिस प्रदेश में चालीस हाथ खोदने पर पानी निकलता हो, वहां प्रथम तीस हाथ तक खोदने तक पानी के चिह्न ही नहीं दिखाई देते फिर भी वह प्रयास निष्फल नहीं माना जा सकता। टी.बी. में लम्बे समय तक डेढ़-दो वर्ष औषधि लें तभी ही ठीक होता है। यदि औषधि एक सप्ताह लेने के बाद टी.बी. नहीं मिटता है, तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि औषधि नाकामयाब है। नौकरी करने वाले को भी तीस दिन सेवा देने के बाद ही तनख्वाह हाथ में आती है।
जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में फल प्राप्त करने से पूर्व धैर्य रखकर उद्यम जारी रखना पड़ता है।
लगन, कौशल्य एवं प्रेमपूर्वक सेवा देने वाला नौकर वर्षों बीतने के बाद हिस्सेदार बन जाता है, उसी तरह धैर्य, लगन और निष्ठापूर्वक नवकार का सतत जप करने वाला साधक स्वयं एक दिन परमेष्ठिओं में स्थान प्राप्त करता है, यह निश्चित है।
अब विवाद न कर, आजमाकर देखो। एक संत ने कहा है :"विवाद करे सो जानिये, नुगरे के यह काम, संतों को फुरसत नहीं, सुमिरन करते नाम। जब ही नाम हिरदे धरा, भया पाप का नाश, मानो चिनगी आग की, परी पुराने घास॥"
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - (2) साधना का "फ्यूज" ___ नमस्कार की साधना का दूसरा महत्त्व का अंग है, मन की शुद्ध भूमिका। जिनबिंब विराजमान करने हेतु जिन मन्दिर बनाना हो तो उसके लिए भी शुद्ध भूमि का प्रबंध करना पड़ता है, तो अशुद्ध मनोभूमि में अरिहंत आकर कैसे बैठेंगे? ... (1) खुद के पूर्व के दुष्कृत (गलत कार्यों) की निंदा-गर्दा
(2) स्वयं के एवं दूसरों के सुकृत (अच्छे कार्यों) की अनुमोदना (3) जगत के सभी जीवों के लिए अपनी आत्मा तुल्य मैत्रीभाव
यह हैं, मनोभूमि को शुद्ध करने के साधन। जीव का अशुभ वृत्तियों एवं गलत प्रवृत्तियों में जो अनादि का प्रेम हे वह दुष्कृत की निन्दा करने से कमजोर होता है। उसमें हो रही अपनी भूल समझ में आती है और उससे उन वृत्तियों का अनुबंध रुक जाता है।
सुकृत की अनुमोदना से अच्छी वृत्ति और प्रवृत्ति के प्रति अपना प्रेम व्यक्त होता है और उसका अनुबंध होने से अपनी आत्मा में ऐसी शुभ वृत्तियों एवं प्रवृत्तियों की वृद्धि होती है।
सकल जीवराशी के प्रति आत्मतुल्य मैत्रीभाव रखने से ईर्ष्या, वैमनस्य, वैर, विरोध आदि अशुभ चित्तवृत्तियों का नाश होता है। हमने |देखा कि गुलाबचन्दभाई सकल जीवराशी के प्रति मैत्रीभावना अपनी साधना का "फ्यूज" मानते हैं। किसी को दो शब्द कह दिये हों या किसी को इनके प्रति दुर्भाव जन्मे ऐसा कुछ निमित्त बन गया हो, तो उनकी साधना का फ्यूज उड़ जाता है। वे कहते हैं "ऐसा कुछ बनता है, तब आप तो उत्तम आत्मा हो, भूल मेरी ही है, यह कहकर तुरंत क्षमापना कर लेता हूँ।"
इस तरह शुद्ध बनी हुई मनोभूमि में रहा हुआ नवकार का बीज फल-फूलकर, संसार में भी आत्मा को सुख में झीलाता है और अंत में मोक्षफल देकर ही विराम लेता है। बीज उत्तम हो किंतु बंजर भूमि में
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? उससे उपज नहीं होती, उसमें बीज का दोष नहीं माना जाता, तो मलिन चित्तवृत्तियों से भरी मनोभूमि में नवकार बीज, फल न दिखाये तो उसमें दोष किसका? किसान काली मिट्टी का मूल्य इसीलिए कम नहीं आंकते। अच्छी फसल के लिए मिट्टी एक मुख्य सहकारी कारण है। (3) अरिहंत का मानस सांनिध्य .
गुलाबचन्दभाई की आराधना में दिखाई देता तीसरा प्रमुख अंग है |"ॐ ह्रीं अर्ह नमः" या "नमो अरिहंताण' के लगातार जप द्वारा व्यक्त होती अरिहंत की रटना। इससे श्री नवकार मंत्र में रहे हुए मंत्र चैतन्य को प्रकट करने में मदद मिलती है। मंत्र चैतन्य अर्थात् मंत्र के अक्षरों में रही अव्यक्त सुसुप्त शक्ति।
तंत्रविशारद ईष्टदेव की द्रव्यपूजा का आदर करते हैं, क्योंकि इसके द्वारा पूजक ईष्टदेव के प्रति अधिक अभिमुख बनता है और उससे साधना शीघ्र फलवती बनती है। उसी प्रकार मंत्र विशारद मानते हैं कि किसी भी मंत्र को जागृत करने के लिए, उसके मंत्र चैतन्य को स्फुरित करने के लिए ईष्टदेव के अभिमुख होना आवश्यक है। नाम स्मरण से साधक का मन ईष्टदेव के अभिमुख होता है। मंत्र शक्ति के लिए प्रथम निश्चित |संख्या में जप पुरश्चरण करने का विधान मंत्र साधना में इसी कारण किया होगा, ऐसा समझ में आता है। श्री गुलाबचन्द भाई की "नमो अरिहंताणं" "ॐ ही अहं नमः "के निरंतर जप द्वारा व्यक्त होती, अरिहंत की रटना से नवकार के अक्षरों में रही हुई सुप्त मंत्र शक्ति जाग उठी और नवकार का मंत्र चैतन्य कार्य करने लगा।
अरिहंत परमात्मा के निरंतर रटन से, उनके नाम के सतत जप से साधक का मन उनकी ओर आकर्षित होता है, इससे अरिहंत परमात्मा के गुण साधक की और बहने लगते हैं, जिससे साधक की जीवनशद्धि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। श्री गुलाबचन्दभाई के अनुभव में यह बात हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उनके हदय में नवकार को स्थान मिलने पर उनका जीवन आत्मविकास की ओर बढ़ता है, दुर्भावनाएं एवं
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? दुर्गुण दूर होते हैं और जीवन में धर्म की वृद्धि होती जाती है। नवकार की प्राप्ति से पूर्व जो आर्त-रौद्र ध्यान के मध्य में सटोरिये की तरह अपना जीवन बिताने वाले वे आज श्रावक की उच्चतम कक्षा रूपी संवासानुमति श्रावकपने के नजदीक की भूमिका में रात-दिन धर्म साधना युक्त निवृत्त जीवन व्यतीत कर रहे हैं। (4) अन्तर्मुख वृत्ति
नवकार की साधना में चौथी बात "मन की चौकीदारी" है। साधक मैत्री भाव से मन को शुद्ध कर नवकार गिनने बैठता है, तो भी पुनः इस मन में दूसरा प्रवेश न कर पाए, इसका प्रहरा रखना अनिवार्य है। छद्मस्थ मनुष्य का मन पानी जैसा भावुक द्रव्य है। कोई भी निमित्त मिलते, उसमें बहने में उसे देर नहीं लगती है।
मानवी अर्थात् शरीर, मन और आत्मा। शरीर और आत्मा के बीच में है, मन। यह वकील जैसा है, जिसका अपना कोई पक्ष नहीं है। यह शरीर के साथ मिलकर शरीर का विचार करता है तब, शरीर, पुद्गल एवं कर्म का पक्ष दृढ़ करता है, आत्मा के साथ मिलकर वह आत्मा का विचार करता है, तो आत्मा को जीत दिलाता है। उसकी शरीर और शरीर से संबंध रखने वाली अन्य बाबतों का विचार-चिंता करने की जन्मजात आदत है। आत्मा और उसके साथ संबंध रखने वाली बातों का ध्यान | रखना उसके लिए नया कार्य है, इसलिए मन बार-बार पुराने स्थान पर जाता है। साधक को निरंतर ध्यान रखना चाहिये कि मन किससे मिल रहा है, इसमें कौनसे विचार चल रहे हैं?
मन की शुद्धि एक प्रमुख आधार है। शारीरिक रोगों से भी मानसिक रोग ज्यादा व्यापक होते हैं। हम शरीर की चिकित्सा करवाते हैं, किन्तु मन की चिकित्सा कौन करवाता है? शरीर के कई रोग मन की विकृति से ही उत्पन्न होते हैं। हम आज इस पर बहुत कम ध्यान दे रहे हैं। वास्तव में तो मन की चिकित्सा करनी चाहिये, मन को शुद्ध रखने हेतु उसकी जाँच बहुत जरुरी है।
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घर को भी साफ रखने के लिए प्रतिदिन साफ-सफाई करनी पड़ती है। एक बार सफाई करने मात्र से काम निपट नहीं जाता। फर्नीचर को साफ रखने के लिए ऊपर की धूल एवं रज बारबार झटकनी पड़ती है, उसी प्रकार मन को भी ईष्ट विषयों की प्राप्ति की आकांक्षा का रोग न लगे या दूसरों की ईर्ष्या, असूया, तिरस्कार आदि मलिन भावों की रज न चिपके, इस हेतु, कार्य करते-करते बीच-बीच में जरा रुककर मन की जांच करनी आवश्यक है।
(5) समर्पितता
गुलाबचन्दभाई की नवकार साधना का पांचवा प्रमुख अंग नवकार के प्रति उनका समर्पण भाव है। सामान्य रूप से मनुष्य नवकार गिनता है, किंतु वह उसको समर्पित नहीं होता, क्योंकि उसे यह प्रतीति नहीं होती कि नवकार से उसकी सभी ईष्ट सिद्धि हो रही है।
शास्त्रकार कहते हैं कि ऐसा कोई कार्य नहीं है जो नवकार से सिद्ध नहीं होता है। श्री गुलाबचन्दभाई को केवल शास्त्र वचन से ही नहीं, स्वयं के अनुभव से भी यह प्रतीति हो चुकी है। जिससे वे नवकार की गोद में सिर रखकर जीवन का सारा भार नवकार को सुपुर्द कर देते हैं। उन्हें नवकार में ही माता, पिता, बंधु, धन सबकुछ मिलता है। पूर्व में हमने देखा कि वे नवकार के प्रति अपने भाव, नवकार गिनने से पूर्व एक श्लोक से प्रतिदिन व्यक्त करते हैं।
जहां श्रद्धा होती है वहां समर्पित होते मनुष्य को देर नहीं लगती। मुंबई से पूना जाने के लिए गाड़ी में बैठने के बाद मार्ग में आने वाले बड़े-बड़े पर्वत, नदी, नाले आदि विघ्नों से किस प्रकार निपटना इसकी चिंता कौन करता है? तुम हाथ में नक्शा लेकर नहीं बैठते हो । पूना की टिकट लेकर ट्रेन में बैठने के बाद तुम्हें सही सलामत पूना पहुंचाने की जिम्मेदारी रेल्वे तंत्र उठाता है। नदी-नाले किस प्रकार पार करना, बीच में आते पहाड़ों को किस प्रकार पार करना, यह सब व्यवस्था रेल्वे तंत्र करता है। तुम केवल टिकट लेकर पूना की गाड़ी में बैठ जाओ, ट्रेन तुम्हें
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अवश्य पूना ले जाएगी, यह विश्वास होने के कारण बीच में इतने विघ्न होने के बावजूद भी तुम आराम से सो जाते हो। इसी प्रकार नवकार में. श्रद्धा रखकर उसमें समर्पित होनेवाले साधक को निर्विघ्नता से मुक्तिपुरी तक पहुंचाने की सारी जिम्मेदारी नवकार संभाल लेता है।
जैन कुल में जन्मे हुए हम सभी का सभी का सौभाग्य है कि, अपने को मत - पंथ या नाम रूप की किसी दीवार खड़ी किये बिना, शुद्ध स्वभाव में स्थित सभी मुक्त आत्माएं और नित्य शुद्ध स्वभाव की प्राप्ति के पथ पर निष्ठापूर्वक प्रयास करने वाले सभी साधकों (परमेष्ठियों) के प्रति श्रद्धा और आदर व्यक्त करने वाला - श्री नवकार महामंत्र मिला है।
नमस्कार जप अर्थात्, अमनस्क चित्त और भावशून्य हृदय से नवकार के अक्षरों का रटन मात्र नहीं, किन्तु शुद्ध आत्मस्वभाव में स्थित या शुद्ध स्वभाव की प्राप्ति के पथ पर जाग्रत प्रयास करती हुई आत्माओं का नित्यस्मरणपूर्वक, उनके प्रति श्रद्धा, आदर और समर्पण व्यक्त करने का निरंतर उद्यम है।
नवकार का सबसे बड़ा चमत्कार
इस प्रकार की हुई नवकार की आराधना केवल जप में ही रुक नहीं जाती, यह साधक के जीवन में परिवर्तन ही लाती है।
नवकार के सच्चे साधक का जीवन तदवस्थ ( पहले जैसा) नहीं रह सकता। कोई भले ही कह दे कि हम नवकार गिनेंगे, दूसरा कुछ नहीं करेंगे, किन्तु यह एक सिद्ध सत्य (हकीकत) है कि निर्मल भाव से नवकार का जप करने वाले का जीवन मोक्षलक्षी बने बिना नहीं रहता। ऊपर बतायी प्रक्रिया के अनुसार जो नवकार गिनता है, उसके जीवन में धर्म आये बिना नहीं रहेगा। नवकार का सबसे बड़ा चमत्कार यही है - जहाँ नवकार रहेगा वहाँ पाप टिक ही नहीं सकता ।
हाथ पैर हिलाते हैं तो ही कार्य होता है ऐसा नियम नहीं है, वस्तु स्वभाव भी कार्य करता है। जड़ गिना जाता पारा यदि अनाज के भंडार में रखा जाता है, तो थोड़ा सा भी पारा सैंकड़ों मण अनाज को
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सड़ने से बचाता है। उसी प्रकार जिस मन में अचिंत्य शक्तिशाली अरिहंत परमात्मा का वास होता है, उस मन में दुष्ट वृत्तियों की सड़न उनके साथ कैसे रह सकती है? अर्थात् नवकार आते ही जीवन शुद्ध बनता ही है। मोह का ह्रास होकर, नवकार के सच्चे साधक के हृदय में तप, नियम और संयम क्रमशः खिलते हैं। तप, नियम और संयम की वृद्धि और आत्मभाव की जागृति यह नवकार की साधना का नांपदण्ड है।
अपने जीवन की लगाम नवकार को सौंप देनें वाले को नवकार स्वयं सारथी बनकर, उसे तप, नियम और संयम के रथ में बैठाकर बीच में आती सभी बाधाओं को दूरकर, यात्रा की सुविधा भी उपलब्ध करवाकर सुखपूर्वक मुक्तिपुरी में पहुंचाता है। जगत के सभी जीव, नवकार रूपी कुशल और समर्थ सारथी को अपनाकर शीघ्र शिवपुरी में पहुंचें, यही मंगल कामना ।
( 1 )
किं एस महारयणं? किं वा चिंतामणिव्व नवकारो ? किं कप्पदुमसरिसो ? नहु नहु, ताणं पि अहिययरो ।।
लघु नमस्कार फल स्तोत्र, गाथा
(2) किं वन्निएण बहुणा ? तं नत्थि जयम्मि जं किर न सक्को । काउं एस जियाणं, भत्तिपत्तो नमुक्कारो ।।
(3)
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श्री वृद्ध नमस्कारफल स्तोत्र, गाथा 92 तव - नियम - संजमरहो, पञ्चमुक्कार सारहिपठत्तो । नाणतुरंगम जुत्तो, नेइ नरं निव्वुइनयरं । ।
श्री वृद्ध नमस्कारफल स्तोत्र, गाथा 100
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( कई बार रोगादि बाह्य विघ्न न टले इसी में साधक का हित हो तो नवकार से यह नहीं टलते हैं, इससे साधक को ये नहीं समझ लेना चाहिये कि उसकी साधना निष्फल जा रही है। वाचकों के मन में प्रश्न उठा होगा कि रोगादि आपत्ति न टले इसमें किस प्रकार हित हो सकता
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -- है? कर्मबंध का प्रमुख कारण अपने कर्तृत्व का अभिमान है। कर्तृत्वाभिमान से मुक्त होने में दुःख और प्रतिकूलता सहायक होती है। सामान्य रूप से मनुष्य को जब सफलता मिलती है तब वह उसमें अपने कर्तृत्व को देखता है,किन्तु दुःख मनुष्य को स्वकर्तृत्व के अभिमान से बचाता है। परिणामस्वरूप मोक्ष मार्ग के पथिक के लिए दुःख भी हितकर बन जाता है।)
लेखक-स्व.पू. मुनिराज श्री अमरेन्द्रविजयजी म.सा. (वि.सं.2045 में हमारा चातुर्मास जामनगर में हुआ था। तब स्व. गुलाबचन्दभाई के निवास स्थान की मुलाकात ली थी। वर्तमान में उनके परिजन मुम्बई-मलाड़ (पूर्व) में श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ की वाड़ी में रहते हैं। गुलाबचन्दभाई का स्वर्गवास वि.सं. 2037 में हुआ। अर्थात् केन्सर के बाद भी वे 36 साल तक जीवित रहे।-संपादक)
|| झिलमिलाता जीवनदीप जगमग हो उठा |
इंग्लेण्ड की धरती पर घटित श्री नमस्कार महामंत्र के प्रभाव की सत्य घटना
("अखण्ड ज्योत" पुस्तक में से यह घटना पढ़ने के बाद डॉ. सुरश भाई झवेरी का पता प्राप्त करके उनके साथ पत्र व्यवहार किया। उनके वक्तव्य का आयोजन दादर, नालासोपारा तथा डोम्बीवली में हमारी निश्रा में हुआ। वह सुनकर कई आत्माएं नवकार महामंत्र को नियमित आराधना में जुड़ गई। प्रथम बार गुजराती में जब इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया, तब वे "अखिल भारतीय हिंसा निवारण संघ" के मानमंत्री के रूप में अनुमोदनीय सेवा कर रहे थे। हाल में वे सुरत रहकर जीवदया के कार्य कर रहे हैं। यहां "अखण्ड ज्योत" में से उनका वक्तव्य उद्धृत किया जा रहा है। वहाँ उनकी पत्नी का नाम "शांता" के बदले "मंजुला" होने के कारण नाम में सुधार किया गया है। - सम्पादक)
_ (नमस्कार महामंत्र ने जिनके जीवन को भौतिकवाद की दिशा से उच्चतम आध्यात्मिकता की ओर मोड़ा, वे हदय रोग के विशेषज्ञ डॉ. झवेरी (M.D.) ने अहमदाबाद खानपुर (माकुभाई सेठ का बंगला) में पोष
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सुदी चौदस से शुरू हुए उपधान तप के दौरान बुधवार दि. 26.2.75 को सुबह 9.00 बजे से 10.15 बजे तक श्री नमस्कार महामंत्र के यथार्थ | गौरव की पहचान कराने वाले झनझनाहट भरे शब्दों वाली रोमांचक शैली में नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से स्वयं प्रभुशासन के आराधक किस प्रकार बने? उसकी जानकारी दी। उसका लगभग अक्षरशाः बयान यहां आराधक पुण्यवान आत्माओं की श्रद्धा के स्थिरीकरण के शुभ आशय से व्यवस्थित संकलन कर राजकोट वाले श्री शांतिलाल मेहता ने पेश किया है।)
- सम्पादक (अखण्ड ज्योत)
मैं देवों को भी दुर्लभ श्रावक जीवन की यथार्थ सफलता, विरतिधर्म की यथासंभव आराधना द्वारा देव-गुरु कृपा से पिछले दस-बारह वर्ष से कर के सौभाग्यशाली बना हूँ। इससे पूर्व मेरे जीवन को अभक्ष्य भोजन, विषय-विलासिता और शरीर के ममत्व के विषम अनिष्ट आदि भयंकर उन्मार्ग से बचाने वाले, तारण-तारणहार, अनंत उपकारी, पंच परमेष्ठी भगवंतों के अनंत प्रभाव से भरपूर, शाश्वत, अनादि सिद्ध श्री नवकार महामंत्र की मेरे जीवन में बनी सत्य घटना इस प्रकार है -
धर्मान्ध-झनूनी मुस्लिम शासन काल में धर्मान्धता और कूट राजनीति के भ्रमरजाल में फंसे उस समय के भारत में एक-छत्रीय सल्तनत के अधिपति (जिसने चित्तौड़ की धर्मान्धता भरी भयंकर लड़ाई में साढ़े चमौतर मण जनोईयों का ढेर हो जाए इतने हिन्दुओं का नाश किया, और जिसके अत्याचारी आक्रमण से बचने के लिए सैंकड़ों सतियों ने शीलव्रत की रक्षा हेतु अग्नि में शरीर को समर्पित कर भारत की अद्भुत कीर्ति में अभिवृद्धि की, जो सवा सेर चिड़ियों की जीभों का नाश्ता करता था, ऐसे भयंकर हिंसा में रचे पचे हुए) अकबर बादशाह को जिन्होंने अपने त्याग-तप-संयम के बल पर प्रभु शासन की अविचल नींव समान जयणा के मार्ग की ओर मोड़ा और वर्ष में छः माह हिंसा बंद करवाने का फरमान जारी करवाया, इतना ही नहीं, किन्तु उसको भी लगभग मांसाहार के त्याग द्वारा अंग्रेजी एवं बंगाली साहित्यकारों की दृष्टि में लगभग जैन
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बना दिया, ऐसे महान कार्यों द्वारा जगद्गुरु का यथार्थबिरुद प्राप्त कर उस काल में अद्भुत शासन प्रभावना करने वाले प.पू.आ.भ. श्री हीरसूरीश्वरजी म.सा. के पुनित जन्म से धन्य बनी हुई गुजरात, राजस्थान और बनासकांठा के त्रिवेणी संगम पर, गुजरात के छोर पर आये पालनपुर शहर में सेठ श्री सौभाग्यचन्द लक्ष्मीचन्द झवेरी के यहां जैन कुल के संस्कारों से शोभती कमला देवी की कुक्षी से वि.सं. 1986 महा सुदि 13 दिनांक | 11.2.1930 की रात्री में मेरा जन्म हुआ।
मेरे पूर्व के पुण्योदय की कमी के कारण छ: वर्ष की उम्र में शिर छत्र रूप पिताजी की छत्रछाया हमेशा के लिए मेरे लिए गुम हो गई। वात्सल्य भरे दादाजी और तीर्थस्वरूप माताजी के विशिष्ट दुलार तले मेरा लालन पालन हुआ।
श्राविका के संस्कारों से सम्पन्न माताजी मुझे अभक्ष्य भोजन, रात्रि भोजन, अपशब्द, असत्य, झगड़े आदि से बचाने हेतु छोटे-छोटे कथानकों से वृत्तियों को मोड़ने का प्रयास करती। वह धर्मकथाएं-महापुरुषों की रोमांचक बातें सोने से पूर्व सुनाकर भावी जीवन निर्माण में अमूल्य योगदान करती। विवेकदृष्टि सम्पन्न दादाजी भी पिताजी की ओर से मिलनेवाले सुंदर प्रशिक्षण और अच्छे उदात्त संस्कारों की कमी को पूरी करने का अत्यन्त वात्सल्यपूर्वक ध्यान रखते थे।
. वे मुझे गोद में बैठाकर नवकार, 24 तीर्थकरों के नाम, अपने साधु कैसे? अपना धर्म कैसा? वगैरह हितकर तत्त्व बालसुलभ शैली में मनोरंजन की पद्धति से समझाते थे।
हमको योग्य उम्र होने पर व्यावहारिक शिक्षण के प्रारंभ से पूर्व दादाजी उपाश्रय में साधुओं के पास ले जाते, धार्मिक पाठशाला में मौखिक पढ़ाने हेतु भी पहुंचाते, समझा बुझाकर भेजते। कभी अनादिकाल के संस्कार वश चौपट, गिल्ली डंडा आदि के खेल के कारण पाठशाला में नहीं जाता , तब पाठशाला भेजने हेतु दादाजी दंडा (गेडी) लेकर पीछे चल पड़ते। वात्सल्यपूर्वक धार्मिक शिक्षण की आवश्यकता को समझने
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? वाली दीर्घ दृश्टि से दादाजी का दंडा कभी पीठ पर भी पड़ता।
इसी कारण इच्छा से या अनिच्छा से दादाजी की निगरानी के नीचे इस मूढ जीवात्मा को आज जो धर्मदृष्टि यत्किंचित् प्राप्त हुई है, उसके मूल कारणों में माताजी की ओर से मिले धार्मिक संस्कारों के साथ, पिताजी की निश्रा-छाया की कमी पूरी करने वाले दादाजी की अच्छे संस्कार और धार्मिक शिक्षण देने की अपूर्व तमन्ना आज विशिष्ट कारण रूप लगती है। इसी के प्रभाव से मेरे जीवन में पाप का डर एवं साधु | भगवन्तों के प्रति विनय इन दो बातों के संस्कार स्थिर हो गये।
___ मेरे पूर्व के पुण्य में भावी योग से ऐसी त्रुटि रह गई कि श्रावक कुल की व्यवस्थित प्राप्ति नहीं हुई। स्थानकवासी संप्रदाय के संस्कारों के कारण, मोह के संस्कारों को कम करने के लिए श्री वीतराग प्रभु के |दर्शन, वंदन, पूजन आदि के संस्कार नहीं मिले। फिर भी घर के धार्मिक वातावरण और धार्मिक पाठशाला के शिक्षण के कारण यह बात दिमाग में पूरी तरह बस गई कि "धर्म उत्तमोत्तम वस्तु है। हम संसार में 18 पापस्थानक में फंसे हुए हैं। इसी कारण साधु ही सर्वोच्च जीवन जीने वाले हैं। इसलिए पूज्य साधु-साध्वी भगवंत जहां मिले, वहां उनका यथोचित वंदनादि विनय करना चाहिए।"
मेरा व्यावहारिक शिक्षण पाठशाला में प्रारंभ हुआ। पूर्व के पुण्य योग से व्यावहारिक शिक्षण के साथ धार्मिक शिक्षण अनिवार्य था। इसी कारण से धर्म की ओर वृत्तियां ज्यादा केन्द्रित हुई।
___ मैंने ई.स. 1946 में मेट्रिक की परीक्षा अच्छे क्रमांक से पास की। दूसरी ओर धार्मिक शिक्षण में भी सामायिक, प्रतिक्रमण, 35 बोल के थोकड़े, कई छंद, सज्झायें आदि कंठस्थ हो गये थे।
इसी दौरान मेरे छोटे भाई का देहांत चार वर्ष की छोटी उम्र में योग्य डॉक्टरी इलाज का अभाव, आर्थिक संयोगों की कमजोरी और | निष्णात डॉक्टरों की कमी आदि कारणों से हुआ।
जिससे मेरे मन में सहजता से ऐसी धारणा बैठ गई कि-'अपने को
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बड़ा होकर डॉक्टर बनना और गरीबों को मुफ्त दवा देनी, व वास्तव में दुःखी न हों, वैसी स्वयं देखभाल कर दुःखियों का दुःख अपने को दूर करना।'
.. इस प्रकार की धारणा भावियोग से प्रतिदिन दृढ़ होने के कारण मेट्रिक पास होने के बाद उच्च अभ्यास के लिए मुबंई जाने का तय होने पर सभी कुटुम्बियों की सम्मत्ति होने के बावजूद जीवन के शिरछत्र रूप माताजी के चरण पर हाथ रखकर मुम्बई जाने के लिए आज्ञा मांगी।
___ उस समय मुंबई के संबंध में सुनी हुई बातों के कारण माँ का धार्मिक हदय संकट में पड़ गया, किंतु दूसरी और कौटुंबिक-आर्थिक स्थिति के विचार से सीधा इन्कार करने के बदले इतना ही कहा कि,-"बेटा सुरेश! जो संस्कार तुझे यहाँ मिले हैं, उसे संभालकर रखना। | मुझे इस बात का विश्वास दे कि सात व्यसनों में से तू एक भी व्यसन के फंदें मे नहीं फंसेगा। तू अभक्ष्य भोजन से अपने आप को भ्रष्ट होने नहीं देना।"
मैंने पतितपावन माता के शब्दों की गांठ बांधकर दृढ़ अभिग्रह रूप माँ के चरणों पर हाथ रखकर दृढता दिखाई, जिससे मैंने अत्यन्त प्रसन्न हुई माँ के अमी भरे आशिष को प्राप्त कर मोहमयी मुम्बई में पढ़ने के लिए पैर रखे।
मुंबई के विलासी वातावरण में कॉलेज जीवन प्रारंभ हुआ। मैं कुदरत के किसी अज्ञात संकेतानुसार डॉक्टरी पढ़ाई में उत्तरोत्तर सफलतापूर्वक आगे बढ़ने लगा। किन्तु पूर्व के पापोदय के कारण डॉक्टरी लाईन में बायोलॉजी और एटोनोमी के टेक्नीकल विज्ञान के पाश्चात्य तरीके से टेबल पर चारों पैर खोलकर जीवित मेंढक को मारकर प्रेक्टीकल करने से आयी निष्ठूरता एवं संस्कार विहीन लक्ष्मी और बुद्धि के घमंड में भान भूले, मौजशोक में ही जीवन का सर्वस्व मानने वाले मित्रों की संगत में विटामिन्स आदि की चर्चा के बहाने "अभक्ष्य होने के कारण मांसाहार नहीं किया जा सकता, ब्राण्डी नहीं पीनी चाहिये, यह सब बकवास है,
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मात्र छलावा है। अरे! अंडों में क्या आपत्ति है? ये तो निर्जीव हैं। नींबू के रस की तरह यह भी एक पौष्टिक रस है "आदि अनेक कुतर्कों की धारा में मेरा अज्ञानी जीव बहने लगा। । किंतु मुंबई रवाना होते समय माँ के पैरों पर हाथ रखकर बार-बार दी हुई तसल्ली और "बेटा! जो तुम इन चीजों का उपयोग करोगे तो तुम मेरे बेटे नहीं! मैं तेरी माँ नहीं! और मैं ऐसे अपवित्र हुए तेरे मुख को भी नहीं देखुंगी "-ऐसी टंकार भरी वाणी दिल में बार-बार गुंज उठती। अशुभ संस्कारों एवं धार्मिक संस्कारों के बीच जोरदार घमासान छिड़ा रहता, अंत में मेरे पाप के उदय के कारण मैं अशुभ संस्कारों में फंस गया।
एक बार में पारसी, कैथोलिक, युरोपियन आदि मांसाहारी मित्रों की पार्टी में होस्टल के सहपाठियों के साथ गया। सभी अपने-अपने तरीके से अभक्ष्य पदार्थो के आग्रहपूर्वक आदान-प्रदान में मित्रता की सफलता मान रहे थे।
मेरे सामने भी आमलेट की डिश आई। आस-पास के मित्रों ने मेरी प्रबल आनाकानी के बावजूद मुझे तरह-तरह के "धर्मी, वेदज्ञ, ओल्डमैन," आदि ताने देकर डिश हाथ में लेने को प्रेरित किया और चम्मच पकड़कर मेरे मुँह में डालने की अंतिम तैयारी तक कर ली।
परन्तु भला हो, हकीकत में मेरे धर्म जीवन को अनमोल रूप से बनाने वाली माँ का। ___एकदम अंतिम समय में मेरी माँ का कल्पना चित्र मेरे सामने उभर आया। "बेटा सुरेश! जो तुमने अपने शरीर को अभक्ष्य पदार्थों से अपवित्र कर दिया तो, तेरे अपवित्र कलंकित काले मुँह को देखने के बजाय मैं मौत को सहर्ष स्वीकार कर लूंगी। इन शब्दों का रणकार गूंज उठा और धड़ाम कर डिश मेरे हाथ में से गिर गई। छुरी कांटे कहीं उछल गये। मुझे ऐसी घृणा हुई कि उल्टियाँ होना शुरु हो गयीं। मेरे मित्रों ने मुश्किल से मेरा हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले जाकर, योग्य उपचार कर मुझे स्वस्थ किया।
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बस! वो क्षण मेरे जीवन की यादगार दास्तान बन गयी। मैं उसके बाद इंग्लैण्ड की धरती पर वर्षों तक रहा, विदेशों में बहुत घूमा, लेकिन शराब या मांसाहार के सामने आंख भी नहीं उठाई।
मैं इस प्रकार मोहमयी मुंबई में कॉलेजियन जीवन में भी प्रबल पुण्य योग से जुआ और परस्त्री के भयंकर पाप से भी नौ गज दूर रहा। यह सब धर्म संस्कार का सिंचन करनेवाली माता का प्रताप है।
एक बात का मुझे आज भी दुःख होता है, कि जैन कुल में जन्म लेने के बावजूद कंदमूल आदि अनंतकाय, वासी, द्विदल, अभक्ष्य, अचार आदि का कड़क प्रतिबंध, स्थानकवासी संप्रदाय के कुछ ढ़ीले नियमों के कारण नहीं होने से रात्रि भोजन, बर्फ, आईस्क्रीम, आलु, शकरकंद, गाजर आदि अनतंकाय तथा बहु बीज फलों का सेवन, वासी, द्विदल आदि की मर्यादाओं का खुलेआम भंग करने का पाप मेरे जीवन में बिना रोक-टोक फल - फुल गया।
इस प्रकार मेरी जीवन नैया पाप के समुद्र में डगमगा रही थी। फिर भी किसी पुण्य घड़ी में त्रिकरण शुद्ध हृदय से किये गये पुण्य के उदय से डूबते को पाटिये के समान मेरा विवाह पालनपुर के चुनीलाल न्यालचन्द मेहता (जो चुस्त मूर्तिपूजक आचरण वाले थे) की सुपुत्री मंजुला के साथ हुआ। वह मेरे आज के धार्मिक जीवन के प्रारंभ की एक महत्त्व की कड़ी है।
यदि मेरी पत्नी के रूप में संस्कारी सुश्राविका मंजुला नहीं होती, तो मेरा जीवन कैसा होता? इसका विचार ही मन में खलबली उत्पन्न कर देता है।
इस प्रकार स्थानकवासी संप्रदाय में जो अमुक श्रावक जीवन से संबंधित प्रभुपूजा, बीतराग प्रभु की भक्ति, भक्ष्याभक्ष्य विवेक, विशिष्ट तपश्चर्या और जीवन को विरति धर्म की ओर ले जाने वाली सही चाबियों की मेरे जीवन में कमी थी, वह मूर्तिपूजक माता-पिता के कुल के संस्कारों से समृद्ध विवेकी, विनयी, सुशील, संस्कार संपन्न, मंजुला जैसी सुश्राविका को पत्नी के रूप में प्राप्त करने से दूर हो गयी और पाप
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? के भंवर में फंसे मेरे जीवन को टर्निंग पोइंट प्राप्त हुआ और मैं आज प्रभुशासन की यथाशक्ति आराधना द्वारा भवसागर पार करने के लिए उद्यमशील बना हूँ, यह सब प्रभाव वास्तव में साधर्मिक सुश्राविका रूप धर्मपत्नी मंजुला का है, यह बात निर्विवाद है।
फिर भावी के संकेत अनुसार ममत्व के कारण मूर्तिपूजक की कन्या कैसे लें? यह प्रश्न उग्र होने के बावजूद मेरे भावी पुण्योदय के कारण मुझे ऐसा निर्णय लेने की अंतःस्फुरणा हुई कि "बस शादी करुंगा तो इसी के साथ ही''। अंत में मेरी इच्छा माता के वात्सल्य के कारण पूरी हुई।
जिसके परिणामस्वरूप मुझे मेरे जीवन के विकास में कम होते हए तत्त्वों की पूर्ति के लिए मौका आकस्मिक रूप से मिला!!!
यह बात आगे दी गई मेरे जीवन की घटना से ज्यादा स्पष्ट होगी। समय के प्रवाह के साथ मैंने 22 वर्ष की चढ़ती हुई युवावस्था में M.B.B.S. होकर M.D (Part I) सन् 1953 में पास की। इस समय माताजी के अत्यन्त आग्रह से सन् 1954 में मंजुला के साथ मेरा विवाह हुआ। नवपरिणीता के रूप में आई मंजुला ने सुश्राविका के रूप में फर्ज समझकर मेरे जीवन को संस्कार की दिशा में मोड़ने के लिए मेरे मनोविज्ञान का अभ्यास सजगता से किया।
उसने मेरी इच्छा और प्रवृत्ति के अनुकूल रहकर M.D (Part II)में अधिक अच्छे गुणांकों से उत्तीर्ण होने में मुझे बहुत सहयोग दिया। (सन् 1956 में)
मैंने सामान्य रूप से दुर्लभ गिनी जाती M.R.C.P. (लंदन की) डिग्री प्राप्त करने की तमन्ना पूरी करने के लिए इंग्लैण्ड जाने की बात कटम्बीजनों के समक्ष पेश की, तो सभी ने आर्थिक रूप से, सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ने आदि के कारण मेरी बात मंजूर की, किंतु मेरे जीवन की सच्ची प्रहरी मेरी माँ ने विरोध किया। मुंबई जैसी मोहमयी नगरी में संस्कारों का निकंदन होने से भयभीत (जो मेरे जीवन में हकीकत में घटित हुई थी) मेरी माँ ने सोचा कि, 'मेरी कुक्षि से अवतरित संतान ज्यादा पैसे कमाकर शायद दुनिया में प्रसिद्धि प्राप्त कर दे या फोरेन रिटर्न |
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बनकर ज्यादा प्रतिष्ठा, कमाई और यशकीर्ति प्राप्त कर ले, किंतु इंग्लैण्ड जैसे संस्कार विहीन म्लेच्छ (अनार्य) प्रदेश में रहने के परिणाम से मेरी संतान संस्कार संपत्ति से दरिद्र बन जाएगी, उसका क्या!!!
बहुत महिनों तक धर्म संस्कार युक्त हदय वाली माता ने पुत्र की भौतिक आबादी, संपत्ति मान-प्रतिष्ठा को धार्मिक संस्कारों की सुरक्षा हेतु उपेक्षित करने जितना कठोर हदय रखा। मुझे भी भावीयोग से मेरे वैसे पाप का उदय होने वाला था इसलिए ऐसा कदाग्रह उत्पन्न हुआ कि परमोपकारी माँ के हदय के दर्द को पहचान न सका।
मेरी पत्नी मंजुला ने साथ चलने की इच्छा जताई। मोहान्धता के कारण मुझे तो यह अच्छा लगा कि पत्नी साथ में होगी तो विदेश में मौज-शौक अच्छी तरह से होंगे। मेरी जीवनशुद्धि का ध्यान रखने वाली सुश्राविका का हदय धारण करने वाली पत्नी ने सहायक बनकर मेरी माँ को समझाया कि "मैं आपके संतान की जीवनशुद्धि की प्रहरेदारी करूंगी। मैं श्राविका हूँ। मेरे भरोसे आप हंसते मुख से विदाई दीजिए!!!!"
अंत में बड़ी मुश्किल से माँ ने सम्मति दी। ई.स. 1957 में मैं पत्नी एवं एक पुत्री के साथ ज्यादा अभ्यासार्थ इंग्लैण्ड की ओर रवाना हुआ।
मैंने इंग्लैण्ड पहुँचने के बाद पुण्य योग से सभी सुविधा मिलने से ई.स. 1958 में M.R.C.P. लंदन की सबसे उच्च मानी जाने वाली डिग्री प्राप्त की।
डिग्री मिलने के साथ ही मेरी इंग्लैण्ड के बड़े अस्पताल में सम्मान के साथ सर्वोच्च स्थान पर जल्दी नियुक्ति हो गई।
मुझे स्टेण्डर्ड अनुसार सुंदर फ्लैट, विशाल केडेलिक गाड़ी, दुनिया भर के अमन-चमन और भोग सुखों की भरपूर सामग्री, भोग-विलास के अति आधुनिक साधनों की सुलभता आदि पापानुबंधी पुण्य के उदय से सामग्री मिली।
मुझे घर में श्राविका रोज बहुत कहती, समझाती! 'हम कौन हैं?
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कौनसे कुल के? अपना आचार ही वास्तविक संपत्ति है।' इत्यादि बातें रोज मधुर शब्दों में कहती-समझाती, किंतु मैं उस समय भावी में होने वाले पाप के उदय को खींच लाने वाली प्रबल मोह की धारा में भान भूला श्राविका का कुछ नहीं सुनता था। उस समय मेरे जीवन में ऐसा उन्माद था, कि मैं प्रति सप्ताह 5 सेर आलु, 3 सेर प्याज, 1 सेर लाल मूली को हजम कर लेता था!!! इतना होने के बावजूद भी जीव को कोई पश्चात्ताप नहीं। मन में कोई दुःख नहीं। विषय वासना का भी पार नहीं। दिन क्या या रात क्या? तिथि क्या? और पर्व क्या? मद-मस्त बने सांढ की तरह मेरा जीवन एकदम अमर्यादित बन गया!!!
इन सबके बावजूद श्राविका ने कभी भी बेरुखी नहीं दिखाई। वह |मेरी अच्छी बूरी प्रत्येक आज्ञा को न जाने क्यों शिरोधार्य करती रही। किन्तु अब समझ में आता है कि यह सब श्राविका ने दूरगामी दृष्टि से सोचकर मनोवैज्ञानिक तरीके से ही किया। इसमें मैं कई बूरे पापों से बच गया, यह श्राविका की दूरगामी दृष्टि का ही फल है!!! इस प्रकार मेरे जीवन के निर्माण में पूरी रुचि लेने वाली श्राविका ने ही वास्तव में पत्नी के रूप में मेरी पथप्रदर्शिका बनकर सफल मेहनत की, ऐसा आज कृतज्ञता से मेरा हदय बोल रहा है। | मैं डॉक्टरी उच्च डिग्री प्राप्त करने इंग्लैण्ड आया, फिर भी पुण्य बल के कारण चाहिए उससे कई गुना ज्यादा मिली पौद्गलिक भव्य सामग्री की भरमार में विवेक बुद्धि खो बैठा। मैंने छोटी वय में गरीबों के आँसू पोंछने के ध्येय से डॉक्टरी लाइन ली थी, लेकिन भौतिक सुखों की अनर्गल सामग्री से वापिस भारत जाने की इच्छा ही मर गयी। भारत से पत्र आते ही रहते, बडे भाई टकोर भी करते कि "भाई! अब देश में कब आना है? वहाँ के विलासी जीवन में, अपनी संस्कार संपत्ति को मत | गंवा! अभ्यास हो गया, M.R.C.P. की डिग्री मिल गई, अब भाई! वतन में आ जा! यहाँ की असहाय दुःखी गरीब जनता का मित्र बन।" धर्मसंस्कारों की प्रहरी माँ के भी बहुत मीठे उपालम्भ आते, किंतु "अंधा आगल आरसी, बहेरा आगल गीत" की तरह कर्म के कठोर उदय ने मेरे ।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हदय को पत्थर बना दिया था। मुझे कोई असर नहीं हुआ। किंतु भावी के गर्भ में क्या छिपा है? उसे तो सर्वज्ञ प्रभु के बिना कौन जान सकता है?
मुझे ई.स. 1961 के जनवरी के प्रारंभ में, सामान्य बुखार और कमर के रोग की शुरूआत हुई। तात्कालिक सामान्य उपचार किये। लेकिन धीरे-धीरे दर्द जोर पकड़ता रहा। पीड़ा के कारण मैं विशिष्ट चिकित्सक के रूप में मेरे कर्तव्य की भी उपेक्षा करता गया। बाद में मेरे ऊपर के डॉक्टर की सलाह से खून जाँच, एक्सरे-स्क्रीनिंग आदि कराये, किंतु सभी सामान्य ही आये। दर्द का कुछ कारण समझ में नहीं आया।
6 फरवरी को रोग ने उग्र रूप धारण कर लिया, शरीर का तापमान बढ़ा, बुखार बढ़ा, कमर का दर्द असह्य हो गया।
हमारे विभाग के डॉ. खान को तात्कालिक बुलाया। मैंने उस समय श्राविका को कहा, "इस रोग की अमुक दवा का मुझे उल्टा असर होता है, इसलिए डॉ. खान को यह बता देना।" इस प्रकार सूचना देने के बाद डॉ. खान 12 बजे तक नहीं आए, जिसके कारण श्राविका नित्यक्रम निपटाने बाथरुम में गई और डॉ. खान आ गये। उन्होंने वेदना से विहवल बने मेरी जाँच की। जिस दवा से मुझे उल्टा असर होता था, वही दवा भावी योग से दे दी। एकाध घंटे में जोरदार रीएक्शन हुआ। दर्द ने कहर ढा दिया। रहा नहीं जाये, नारकी के जैसी भंयकर वेदना की चक्की में पीलाता रहा। जोर से चिल्लाने लगा, उल्टियों से आंतें बाहर आने लगीं। मेरे पास रहे डॉ. भी घबराने लगे।
मेरे विभाग के सबसे बड़े डॉ. गिब्सन को तात्कालिक बुलाया, हमारे अस्पताल के सभी डॉक्टरों की कोन्फ्रेंस हुई, सभी ने मेरी जाँच की, परन्तु वे मेरे रोग का निदान भी नहीं कर पाये। मैंने इस जीवन में आसक्तिपूर्वक भोगे विषय और अभक्ष्य भोजनादि से बांधे हुए तीव्र पापकर्म के उदय ने सबको भुला दिया, सभी व्याकुल हो उठे। मेरी कार्यशैली, हंसमुख स्वभाव और पुण्य के प्रभाव से इंग्लेण्ड जैसी धरती पर भारतीय होने के बावजूद मेरे प्रति सभी का प्रबल प्रेम था।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - परिणामस्वरूप केस की गंभीरता देखकर मेरी श्राविका एवं दो कोमलवय की पुत्रियों का भविष्य के विचार से सभी घबरा गये। डॉ. गिब्सन ने तुरंत लंदन की सबसे बडी "दी हेमरस्मीथ हॉस्पिटल" में फोन | किया, वहां अच्छे से अच्छे उपचार के साधन हैं। उसके बिना रोग का निदान संभव नहीं था। उन्होंने ऐसा लगने से वहां भर्ती करने का शीघ्र | निर्णय लिया, लेकिन पापकर्म बीच में आया। सामने से फोन आया कि | यहाँ अभी पलंग खाली नहीं है, वेटिंग लिस्ट भी बहुत लम्बी थी। अब
क्या? किंतु वापिस पुण्य ने जोर पकड़ा। डॉ. गिब्सन ने प्रेम के कारण हिम्मत न हारते हुए, धैर्य से हॉस्पिटल के सबसे बड़े अधिकारी प्रो. स्केन्डिंग को पूरी बात समझाई। बड़े अधिकारी ने कहा, "बात सही! किंत नियमानुसार सारा कार्य होता है। मैं प्रेम के कारण कानून का भंग नहीं कर सकता।" परन्तु प्रेम के कारण डॉ. गिब्सन की ज्यादा आरजु भरी बात से नरम बने, बड़े अधिकारी ने कहा कि,-"एक उपाय है। कोशिस करके देखो। अपने प्रधानमंत्री के लिए एक रुम खाली है। किंतु उनकी सम्मति के बिना वह रुम नहीं मिल सकता।" ___डॉ. गिब्सन, प्रो. स्केन्डिंग और दूसरे तीन मित्र जो M.P | (MEMBER OF PARLIAMENT) थे, तुरंत ही प्रधानमंत्री हेरोल्ड श्री मेकमिलन से मिले।
प्रधानमंत्री के समक्ष डॉ. गिब्सन ने संक्षेप में सारी बात की और विशेष में कहा कि-"अपने देश में भारत से अभ्यास हेतु आया हुआ, किंतु बहुत बुद्धिमान और अपने अस्पताल की यशस्विता को बढ़ाने वाला, छोटी उम्र के बावजूद बहुत होशियार डॉ. यदि इलाज के अभाव में मर जाये, तो अपने देश की प्रतिष्ठा बिगड़ेगी, इसलिए थोड़ा ध्यान देकर अपने स्पेशियल कमरे की इजाजत दें।"
आज तक ऐसी घटना नहीं घटी थी, कि प्रधानमंत्री के स्पेशियल कमरे के लिए किसी को इजाजत दी गई हो। प्रधानमंत्री कुछ गंभीर बने। आकाश की ओर नजर डाली, किंतु मेरे भाग्य ने साथ दिया। प्रधानमंत्री
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? के हदय को लगा कि-" हिन्द का युवान, यशस्वी कार्य करने वाला डॉ. यदि मृत्यु शैय्या पर हो और अस्पताल में स्थान के अभाव में इलाज न मिलने के कारण मृत्यु की शरण में चला जाए, उसमें मेरे देश की कीर्ति कितनी कलंकित होगी।" उन्होंने तुरंत ही लिखित आज्ञा दी।
इस प्रकार 6 फरवरी सोमवार को रोग बढ़ा। मंगलवार खून-एक्सरे आदि की जाँच में गया। बुधवार को डॉ. खान ने बारह बजे गोली दी। दोपहर को रिएक्शन हुआ और शाम को लंदन के सबसे बड़े अस्पताल में प्रधानमंत्री के स्पेशियल कमरे में, जहां मनष्य के जीने की इच्छा को संतोष देने के लिए अत्याधुनिक साधन तैयार थे, मैं वहां भर्ती हुआ।
पुण्य के जोर से, श्रीमंत मनुष्य तो क्या? सत्ताधीश को भी तुरंत नहीं मिले वैसे सुन्दर अस्पताल के स्पेशियल कमरे में आया। किंतु अब उपचार का क्या? फिर वापिस पापकर्म बाधक बना।
लंदन के अच्छे से अच्छे डॉक्टरों की कोन्फ्रेंस हुई। कमर में हो रहे दर्द की गंभीरता ने सभी को चकित कर दिया। गंभीरतापूर्वक संपूर्ण सावधानी के साथ, सभी की संमतिपूर्वक स्पष्ट निदान हुआ और उसके निवारण के लिए तत्काल सर्जरी ऑपरेशन की बात पर सभी ने भार दिया।
सभी को यह लगा कि रोग का स्वरूप ऐसी कक्षा तक पहुँच गया है, कि अंदर भंयकर सड़न-मवाद (रसी) बनने की शुरूआत हो गयी थी, जिससे अल्प समय में मृत्यु नजदीक होने का डॉक्टरों को अंदेशा लगा। तात्कालिक ऑपरेशन से शायद बच जाए, किंतु कमर के नीचे का भाग पेरेलाइसिस (लकवा) की तरह शून्य निष्क्रिय हो सकता है। ऐसा अभिप्राय होने के बावजूद तात्कालिक भारी दवाई की खुराक से इलाज शुरु किया। पुनः डॉक्टरों की बैठक हुई, घंटे-घंटे की रिपोर्ट पर पुनः विचार होने लगे, मेरी वेदना का पार नहीं था। मैं जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने लगा और घंटे-घंटे में मोर्फीया के इन्जेक्शन द्वारा राहत देने का प्रयास हाने लगा। दूसरों के भयंकर असाध्य रोगों का उपचार करने वाले, मेरे लिए ही आज
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कोई निश्चित दवा नहीं दिखती थी। लंदन के अच्छे M.D. डॉक्टरों की बुद्धि भी शून्य हो गई हो वैसे किंकर्तव्यमूढ़ बन गये। ऑपरेशन की बात भी अनिश्चित उपाय की तरह थी। फिर वह ऑपरेशन जोखमी भी था। | ऐसे सभी जटिल हालातों में भी धर्म की आराधना द्वारा मिले हुए ज्ञान-विवेकशक्ति के बल द्वारा श्राविका धैर्यपूर्वक मेरी परिचर्या करती थी! अंतिम स्थिति में पहुंचे हुए और वेदना से विह्वल पति की चिंताजनक |दशा, इंग्लैण्ड जैसी अनजान धरती, सगे-संबधी कोई नहीं, रूपये बहुत होने के बावजूद अंतरंग आश्वासन रूप कोई नहीं, यह सब होने के बावजूद मेरे हदय को आघात न लगे, इसके लिए चेहरे पर तनिक भी शोक-खेद की लकीर लाये बिना, हँसते चेहरे से श्राविका मुझे बारबार सांत्वना देती थी।
क्या करना? इस सोच में गुरुवार और शुक्रवार बीत गये। शुक्रवार को वेदना का पार नहीं। मेरे पैर में लकवे का असर होने लगा। | जीवन-मृत्यु का प्रश्न खड़ा हो गया। मेरी वेदना की स्थिति को नहीं देख सकने के कारण अंत में डॉक्टरों ने शुक्रवार की शाम को ऑपरशन का ही निर्णय किया। मुझे न्यूरो सर्जिकल सेंटर में ले जाया गया।
जिस समय मुख्य द्वार से एम्बूलेंस कार प्रविष्ट हुई, लगभग उसी समय न्यूरो सर्जिकल डिपार्टमेंट के सर्वोपरी ऑपरेशन के निष्णात डॉ. सर ज्योफ्री नाइट (DR. SIR. GEOFRY NIGHT) दो दिन के अवकाश में | पर्यटन के लिए पिछले दरवाजे से अपनी कार में लंदन से बाहर चले गये! रे कर्म! तेरी अकल कला! जीवन मरण के झूले में मैं वेदना से घबराकर जोखमी ऑपरेशन के लिए तैयार हुआ तो बड़े डॉक्टर ही गैरहाजिर!!! | कैसी पाप कर्म की लीला!!!
किंतु मेरे किसी अज्ञात पुण्य कर्म की रेखाओं के कारण विदश में भी खून का कोई संबंध न होने के बावजूद सीनियर न्यूरो सर्जन डॉ. निकलसन ने भाई से भी ज्यादा वात्सल्य से हिम्मत रखकर किसी न किसी उपाय की खोज में सर्जिकल डिपार्टमेंट के एसीस्टेन्ट डॉ. रीड को
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
फोन किया। उनके साथ फोन पर मेरे रोग की भयंकरता, ऑपरेशन की अनिवार्यता, देश की प्रतिष्ठा, 'सर ज्योफ्री नाइट अवकाश पर हैं, आदि बातें कीं।
डॉ. रीड ऐसे विचित्र स्वभाव के थे, कि आउट ऑफ ड्यूटी के समय कितनी भी इमरजेन्सी में अस्पताल में पैर नहीं रखते । 'सर्विस के समय सर्विस' के सिद्धान्त पर जड़ता से चलने वाले थे। यह सब होने के बावजूद भी मेरे पुण्य से प्ररित होकर डॉ. रीड का पत्थर हृदय भी पिघल
गया।
पूरे अस्पताल के डॉक्टरों, नर्सों, कर्मचारियों आदि सबके भारी आश्चर्य के बीच ऑफ ड्यूटी के समय (बीस वर्ष की उनकी सर्विस में कभी ऐसा नहीं हुआ था फिर भी) डॉ. रीड मेरी जाँच करने शनिवार प्रातः सात बजे आये ।
'ओ बाप रे!' 'ओ डॉक्टर ! मुझे बचाओ', 'नहीं रहा जाता' आदि चिल्लाते हुए मेरी जाँच उन्होंने की। डॉ. रीड बोले कि - " यह कोई खास गंभीरता की बात नहीं है। हम सुबह तक राह देखते हैं, ऐसा कहकर चले गये। किंतु मेरे पाप कर्मों ने अधिक जोर पकड़ा, दर्द अति असह्य होने लगा। चीखें, रोने, चिल्लाने से डिपार्टमेंट गरज उठा। मुझे प्रति घंटे मोर्फीया के इंजेक्शन से घेन में रखा जाता था, तो भी घेन का असर कम होते ही चीखने-चिल्लाने की आवाज शुरु हो जाती ।
इस तरह शनिवार का पूरा दिन दर्द, घेन, चीखने-चिल्लाने में पूरा
हुआ।
रविवार को सुबह ऑपरेशन के लिए पूर्व तैयारियाँ शुरु हुईं। डॉक्टरों की दृष्टि में मेरी हालत अत्यंत नाजुक थी। ऑपरेशन करने के बाद भी 90 प्रतिशत तो क्या 95 प्रतिशत आशा नहीं थी, कि रोगी जीवित रहेगा, इसलिए मेरी सार संभाल में खड़े पैर रहने वाली श्रीमती झवेरी के हस्ताक्षर CEMATION MORF पर कराने की सर्जन की सूचनानुसार ड्यूटी " डॉ. पर तैनात डॉक्टरों ने नर्स को सूचना दी। किंतु साथ में कहा ि
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - झवेरी को पता न चले उस प्रकार श्रीमती झवेरी के हस्ताक्षर करवाना।"
मुझे उल्टियाँ बारबार होती थीं। कमर में कांटे चुभोए जा रहे हों, वैसी अकथ्य वेदना थी। अत्यंत असह्य रोग की पीड़ा हो रही थी।
श्राविका लगभग दस बजे छोटी दो पुत्रियों को मेरे पास बिठाकर मीठे-ठंडे शब्दों से आश्वासन देने लगी। मुझे कुछ सुझ नहीं रहा था, बेचैनी खूब थी। मैं जैसे-तैसे करवट बदलता था। श्राविका मस्तक के ऊपर हाथ फेरकर नवकार सुना रही थी। किंतु मुझे किसी भी प्रकार से चैन नहीं होता था।
में जैसे ही करवट बदलकर दूसरी ओर मुंह करके सोया, वैसे ही नर्स ने मौका देखकर गुलाबी रंग का कागज (जिसमें सारी जानकारी नर्स ने भर रखी थी, केवल श्रीमती झवेरी के हस्ताक्षर बाकी थे) दिया। इशारे से तुरंत हस्ताक्षर करने का सूचन किया। । श्राविका भी अवसर की नजाकतता देखकर फॉर्म पर हस्ताक्षर करने को तैयार हुई, उतने में दर्द की पीड़ा से बेचैन बने, मैंने करवट बदली और अचानक गुलाबी पर्ची पर मेरी पत्नी को हस्ताक्षर करते देखकर चौंक उठा।
"हें! बस! कोई आशा नहीं! मुझे कोई नहीं बचाएगा! यह फॉर्म तो केस फेल हो जाए तो अंत में शव की अंतिम क्रिया करने में कानूनी बाधा न आये उसके लिए है। इसी फॉर्म पर मैंने सैकड़ों हस्ताक्षर कराये, हाय! विधाता आज यही फार्म मेरे लिए !!!
बस! वास्तव में कोई मुझे बचा सके वैसा नहीं है !!! हे प्रभु! कहाँ मेरा वतन? कहाँ यह अनजान धरती! इस प्रकार मैं असहाय दुःखी बनकर आँखें मुंदकर आकाश की ओर देखता रहा। अत्यन्त आर्त हदय से पुकार रहा था कि- "हे अशरण शरणभूत! हे निराधारों के आधार! हे पतित पावन! अब मुझे तेरा ही सहारा है! कठिन कर्मों के भीषण उदय में सभी साथ छोड़ते हैं। किन्तु हे प्रभु! मैं तो तेरी शरण में हूँ। " ___अरिहंत...अरिहंत...शब्द हदय में गुंज उठे।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
छोटी उम्र में दादा के डंडे के डर से भी पाठशाला में प्राप्त किया धार्मिक शिक्षण मेरे काम आया। मुझे ऐसा लगा
'हे जीव ! तेरे किये हुए तुझे भोगने हैं... पाप करते समय कितनी तीव्र आसक्ति से घुल-मिलकर हृदय की उमंग थी ? अब वह पाप उदय में आया तो हे जीव ! क्यों आकुल व्याकुल हो रहा है?
-
इस समय मुझे मेरे भूतकाल में किए गए पाप (इस जीवन में आजादी से किये हुए अभक्ष्य भोजन, रात्रि भोजन और वासना, विलास एवं विकारों की पोषक प्रवृत्तियाँ ) याद आये... हृदय थरथर कांपने लगा... विद्या और बल का अभिमान सिकुड़ने लगा... और मन में से आवाज आई कि- " तुझे इसमें से मुक्त होना हो, तो विश्ववत्सल, करूणा के भंडार, अरिहंत प्रभु को याद कर... उनके द्वारा प्ररूपित धर्म की शरण स्वीकार ... मैं कुछ क्षण आँखें बंद कर समुद्र में नाव डूबने की तैयारी हो वैसी असहाय स्थिति में अंतःकरण की गहराई में से सहज रूप से हो रही पुकार - अरिहंत... अरिहंत के नाद को सुनने लगा ।
मुझे थोड़ी देर बाद अंतःस्फुरणा हुई कि, वात्सल्यमयी माता ने मुझे विदेश विदाय करते समय चंदन की माला मेरे हाथ में रखते हुए कहा था कि "बेटा ! प्रतिदिन एक पक्की माला गिनना ! ! !' किंतु आज तक मैंने पुण्य के उदय से धारणा से अधिक भौतिक भोगविलास की सामग्री मिलती रहने के कारण उस माला का स्मरण तक नहीं किया, फिर भी श्राविका ने अपनी फर्ज समझकर उस चंदन की माला को मेरे सिरहाने के पास रखी थी।
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सच्चे आर्तभाव से...शरणागत भाव से... अनन्य भाव से... तुम ही माता, तुम ही भ्राता... त्वमेव शरणं मम... सरल भाव से सिरहाने रखी माला लेने की शक्ति न होने से द्रव्य से माला न लेने के बावजूद मैं भाव से श्रीनवकार की शरण में पहुँच गया था। मेरे द्वारा थोड़ी देर में सहजता से णमो अरिहंताणं... णमो सिद्धाणं इस प्रकार एक के बाद एक श्री नवकार महामंत्र के पद हृदय की अतल गहराई में से गिने जाते रहे।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? | धीमी गति से, किंतु धाराप्रवाह जप शुरू हुआ...
कितना समय हुआ उसका मुझे पता नहीं, किंतु ऐसे धाराप्रवाह श्री नवकार महामंत्र के जाप में खो गया। प्रति घंटे घंटी बजाकर नर्स का ध्यान आकर्षित कर मोर्फीया का इंजेक्शन लेने वाला मैं करीब तीन घंटे तक बिल्कुल शांति से ध्यानस्थ बनकर बिस्तर पर पड़ा रहा। | परिणाम स्वरूप दस-दस मिनट से होने वाली उल्टियां बंद हो गई। कमर का असह्य दर्द सामान्य हो गया। वेदना और पीड़ा से उत्पन्न हो रही विह्वलता गायब हो गयी! मैं आंतरिक परमशांति के साथ श्री नवकार महामंत्र के स्मरण की घेन में पड़ा रहा।
मेरी यह स्थिति देखकर श्राविका ने मुझसे बोलचाल नहीं की और किसी भी कारण मेरे स्वामीनाथ निद्रामय हो गये हैं, या घेन की गहरी असर उन पर छा गयी है, तो अब बाद में बात, ऐसा सोचकर वह नहाने-धोने का जरुरी काम निपटाने रुम में गयी।
दर्द की असह्य पीड़ा से पीड़ित होकर प्रति घंटे घंटी बजाकर नर्स का ध्यान आकर्षित करने वाले डॉ झवेरी ढाई से तीन घंटे होने के बाबजूद क्यों हिल-डुल नहीं रहे हैं? रोग की वेदना को चीखों द्वारा क्यों व्यक्त नहीं कर रहे हैं?... कहीं डॉक्टरों के कहने के मुताबिक डॉ. झवेरी मर तो नहीं गये हैं...!!!
मेरी देख-रेख में रही नर्स ने बिना हिलने-डुलने के कारण मेरे शरीर को फिराकर नब्ज आदि की जाँच की, किंतु कुछ समझ में नहीं आने के कारण उसने सीनियर रेसिडेन्ट सर्जन डॉ. निकलसन को फोन करके तुरंत बुलाया।
डॉ. निकलसन स्फूर्ति से आये। भयंकर चीखने-चिल्लानेवाले, उल्टियों से त्रस्त हुए मुझे शांत निद्रा में सोया हुआ देखकर, डॉ. निकलसन ने साथी डॉक्टरों को साथ में लेकर नाड़ी-हार्ट-ब्लडप्रेशर आदि की जाँच की, तो उन्हें अस्पताल के घंटे-घंटे के चार्ट में दर्ज रिपोर्ट से
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बहुत अच्छी स्थिति लगी।
डॉ. निकलसन सोच में पड़ गये-"शारीरिक स्थिति गंभीर नहीं होने के बावजूद यह बोलते क्यों नहीं?" बेहोश अवस्था जेसा भी लगता नहीं! डॉ. निकलसन ने डॉ. झवेरी...झवेरी! 'इस तरह दो-तीन बार जोर से पुकारा तब धीरे-धीरे मैं स्वस्थ-जाग्रत हुआ। डॉ. निकलसन ने चकित होकर पूछा, "डॉ. झवेरी कैसे हो? बोल क्यों नहीं रहे थे? बेहोश थे क्या?"मैंने कहा कि "मेरे प्यारे! मैं काफी स्वस्थ हूँ! मैं होश में हूँ।"
"मेरा दःख दर्द गायब हो गया है। मेरा रोग रुक गया है। उसकी तीव्रता कम हो गयी है। मेरे प्रभु ने मेरा हाथ पकड़ा है। मैं खूब शांति में हूँ। अब मुझे मॉर्फीया की जरूरत नहीं है।"
में इस प्रकार कहकर अरिहंत-अरिहंत करते हुए पुनः श्री नवकार के ध्यान में खो गया। मेरी आंखें एकाग्रता से शून्य आकाश की ओर स्थिर हो गयीं, मानो वे मेरे तरणतारणहार प्रभु को देख रही थीं...
मेरी स्थिति की विचित्रता देखकर, विचार में पड़े डॉ. निकलसन उस समय कोई भी ट्रिटमेंट दिए बिना गंभीरता से सोचने के लिए अपने केबिन में चले गये।
परन्तु पहले की तरह मेरी स्थिति शांत और शून्यवत् देखकर नर्सी एवं ड्यूटी पर के डॉक्टरों ने "मै बेहोश हो रहा हूँ" ऐसा समझकर बड़े डॉक्टर को समाचार दिये।
सर्जिकल डिपार्टमेंट के सबसे बडे डॉ. रीड, डॉ. निकलसन के पास से प्राथमिक जानकारी लेकर डॉ. निकलसन के साथ मेरे पास बारह बजे आये।
में अरिहंत प्रभु के ध्यान में एवं श्री नवकार मंत्र के शब्दजाप में लीन था। मेरा दुःख दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा था। मुझे अब दवा की या नींद की जरूरत नहीं थी। ट्युब द्वारा कठिनाई से उतरने वाला पेशाब अब आराम से होने लगा था।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पेरेलाइसिस (लकवा) का असर कमर के नीचे के भाग में पिछले दो दिनों में ज्यादा मात्रा में शुरु हुआ था। जिससे मेरे पैर शून्यवत् हो गये थे। उसमें भी काफी सुधार हुआ। मेरे पैर मैं अपने हिसाब से हिला सकता था। .
डॉ. रीड और निकलसन तो यह सब देखकर भौंचक्के रह गये। दोनों एक दूसरे के सामने देखने लगे, यह क्या? सहसा डॉ. रीड के मुँह से GOD IS GREAT (भगवान महान् है ) शब्द निकल पड़े। दूसरे सहयोगी डॉक्टरों, नौं, कंपाउण्डरों एवं मरीजों को भी इस घटना ने बहुत प्रभावित कर दिया। वे भी "वी ट्रस्ट इन गोड" के शब्द दोहराने लगे।
इस प्रकार रविवार के दिन 10 बजे से 12 बजे के बीच भयंकर दुःख तथा वेदना के कारण असहाय-अशरण अवस्था के बोध के कारण मोह की नींद में सोयी मेरी आत्मा जाग उठी और पंच परमेष्ठी की शरण में लीन बन
पहले हाय-वोय करता चीखता-चिल्लाता मैं सभी के आश्वर्य के बीच में रविवार को बारह बजे के बाद धेन के इंजेक्शन के बिना भी एकदम शांत-स्वस्थ बनकर ध्यान की मस्ती तथा श्री नवकार के जप में लीन हो गया।
दर्द की तीव्रता तो 12 बजे दूर हो गई थी, किन्तु दर्द के मूल स्वरूप में भी 30-40 प्रतिशत कमी हुई थी। इसलिए डॉक्टर ऑपरेशन की बात भूल गये थे!
ऐसे भी वे जोखमी ऑपरेशन मुख्य सिविल सर्जन (कि जो दो दिनों के अवकाश पर थे) की सलाह बिना करने को तैयार नहीं थे, उसमें भी मेरे रोग की स्थिति अप्रत्याशित रूप से शांत होती देखकर ऑपरेशन का जोखिम उठाना वे वाजिब नहीं मानते थे। ____ एलोपथी विज्ञान के अनुसार भयंकर जोखिमी दिखाई देता ऑपरेशन और रविवार को बारह बजने के बाद ऑपरेशन की खास जल्दबाजी नहीं हो ऐसी स्थिति, ऐसी दुविधाभरी स्थिति में निर्णय लेने का साहस न करते
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हुए 'सिविल सर्जन डॉ. सर ज्योफ्री नाइट जाँच कर, जो निर्णय लें वो सही, 'ऐसा सोचकर सभी आश्चर्य, चिंता और संशय की स्थिति में खेलने लगे।
सोमवार सुबह आठ बजे सर्जरी डिपार्टमेंट के सबसे बड़े डॉ. सर ज्योफ्री नाइट ड्युटी पर हाजिर हुए कि तुरंत डॉ. निकलसन, डॉ. रीड और अन्य भी सहायक डॉक्टरों ने मेरे केस को कौतूहल, भय, विस्मय आदि के भाव चेहरे पर व्यक्त करते हुए, उनके समक्ष प्रस्तुत किया। डॉ. नाइट |ने मुझे अत्यंत सजगता से जांचा और वे हाउसींग सर्जन डॉ. रीड पर अत्यंत गुस्सा करते हुए बोले कि -'इतना गंभीर केस, तुम अभी तक इसे ऑपरेशन थियेटर में नहीं ले गये? सर्जरी करने में इतना विलम्ब कैसे? अंदर सेप्टिक कितना हो गया है? ___वे मेरी पत्नी श्राविका और छोटी दो बालाओं को देखकर बोले, "क्या तुम्हारी मानवता मर गयी है? तुम्हें ऐसे मासूम बच्चों एवं छोटी उम्र की पत्नी पर भी दया नहीं आयी? 'तुमने इस केस में इतना विलम्ब कैसे किया?'' आदि आक्रोश भरी वाणी से सभी को उपालंभ देकर, तुरंत स्ट्रेचर गाड़ी मंगवाकर मुझे ऑपरेशन थियेटर में ले जाने की कड़क सूचना के साथ डॉ. नाईट "राउण्ड का कार्य जल्दी से निपटाकर मैं ऑपरेशन थियेटर में आ रहा हूँ" इस प्रकार कहकर गये।
डॉक्टरों और नर्सी ने तुरंत तैयारी कर मुझे इंजेक्शन, दवा की गोलियाँ देकर खून चढ़ाकर-कपड़े बदलकर तैयार किया। स्ट्रेचर गाड़ी में सुलाकर ऑपरेशन थियेटर में ले जाने लगे।
उस समय कल सुबह गुलाबी फार्म पर हस्ताक्षर करने से ऑपरेशन की गंभीरता को जानकर श्राविका के रूप में मुझे विशिष्ट प्रकार से आश्वासन देने के लिए मेरी पत्नी मेरे सामने एकटक से देखकर कुछ कहने की सोचने लगी, लेकिन मोह के प्रभाव से जैसे मैं मृत्यु की गाड़ी में बैठकर मृत्यु की ओर जा रहा हूँ, ऐसी कल्पना से ऐसे प्रेम के आवेग से मेरी पत्नी एकदम विह्वल बनकर अश्रूपात करने लगी।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मैने खूब स्वस्थतापूर्वक कहा कि- "मंजुला! देव गुरु की कृपा से मैं बहुत स्वस्थ हूँ। अब मैं मरनेवाला नहीं। तुम तो समझदार हो। सब समझती हो, तुमने मुझे कई बार धर्म की शरण लेने का कहा, किन्तु मेरे पाप के उदय के कारण मुझे वह बात अच्छी नहीं लगती थी।
खैर.... 'अब तो मैं एकदम मृत्यु का दरवाजा खटखटाकर श्री नवकार महामंत्र के आलंबन से वापिस आया हूँ...। मेरा रोग शांत हो गया है! तुम बिल्कुल चिंता मत करना। मैं शरीर में जमा हो गये कचरे को निकालने ऑपरेशन थियेटर में जा रहा हूँ। बाकि अब कोई जोखिम नहीं हैं इसलिए कुछ भी चिंता मत करना... मैं देवगुरु की कृपा से और श्री नवकार के प्रताप से ज्यादा स्वस्थता प्राप्त करने जा रहा हूँ। फिर भी अगर मुझे कुछ हो जाये तो भी अब मुझे जरा भी डर नहीं लगता। मेरी गति अच्छी ही होगी। श्री नवकार रूपी रखवाला पाया है.... अब कोई चिंता नहीं...।
यदि मेरा शरीर छुट जाये, तो तुम तथा दोनों बालिकाएं स्वदेश जाकर असार संसार का मोह त्यागकर आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़कर अनमोल मानव अवतार को सफल करना...लो अभी.... मि...च्छा....मि....दु....क्क.....इं....।'
श्राविका ने भी मोह के आवेश को दूर कर मेरे हदय को आश्वासन देते हुए कहा कि," स्वामीनाथ! आप श्री नवकार में मन को लगाकर रखना। हमारी कुछ भी चिंता मत करना। देवगुरु कृपा से सब अच्छा होगा। अरिहंत....अरिहंत का स्मरण चालु रखना।"
मेरा हदय श्राविका के वचनों से संतुष्ट हुआ। मैं श्री नवकार के जप में लीन बन गया। स्ट्रेचर ऑपरेशन थियेटर में पहुंचा। मुझे ऑपरेशन टेबल पर लिया। डॉ. सर ज्योफ्री नाइट, डॉ. रीड,डॉ. निकलसन आदि बड़े डॉक्टर एवं सहायक अनेक डॉक्टरों ने बहुत सावधानी के साथ मेरा ऑपरेशन शुरू किया।
सोमवार सुबह में श्री नवकार की गोद में रहकर खूब स्वस्थ बना
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? था, फिर भी पाप कर्म के उदय से भोगवृत्ति और लालसा के अतिरेक से किए गए अत्यंत अमर्यादित खान-पान से इकट्ठे हुए कचरे को निकालने हेतु ऑपरेशन टेबल पर जाना पड़ा।
श्री नवकार महामंत्र की छत्र छाया के नीचे खूब स्वस्थता के साथ सोमवार को 11 बजे प्रारंभ हुआ ऑपरेशन दोपहर 4 बजे पूरा हुआ। छः
औंस जितना मवाद निकला और फेफड़ों में से पाँच हड्डियाँ सड़ी हुई निकलीं।
सभी डॉक्टर चकित बन गये कि इतना सारा मवाद निकला, इतनी सड़ी हुई हड्डियाँ निकलीं, फिर भी यह मरीज किस प्रकार जीवित है, और इतनी भंयकर बिगड़ी हुई स्थिति के बावजूद कल बारह बजे से रोग नहीं जैसा कैसे हो गया? रोग भयंकर होने के बावजूद रोगी स्वस्थ किस प्रकार रहा? यह क्या चमत्कार! सभी के हदय में 'गोड इज ग्रेट' (GOD IS GREAT) शब्द गुंज रहे थे।
मुझे चार बजकर दस मिनट पर स्ट्रेचर के द्वारा वापिस मेरे बिस्तर पर लाया गया। मैने वहां आते ही तुरंत फोन उठाकर डायल घुमाया। श्राविका को धर्म पर श्रद्धा मजबूत थी ही। फिर भी ज्यादा विश्वास जगे, इसलिए अस्पताल के फोन कंट्रोलर को मिसेज झवेरी का फोन जोड़ने को कहा। कंट्रोलर ने भूल से अस्पताल की मैट्रन के कमरे से जोड़ दिया। | मेट्रन को मेरी तबीयत की गंभीरता और ईश्वरीय शक्ति का चमत्कार बतानेवाली रविवार की अद्भुत घटना एवं ग्यारह बजे शुरु हुआ ऑपरेशन चार बजे पूरा हुआ, यह सब जानकारी थी ही। जिससे टेलीफोन में मेरी आवाज सुनकर, वह क्षण भर तो चमक गई और टेलीफोन में भाव विभोर होकर "गोड इज ग्रेट' बोलकर 'ओह डॉ. झवेरी! हेपी आर यु' (तुम खुश हो?) "थेंक यु" कहकर मैट्रन ने श्राविका के साथ बात कराने के लिा न जोड़ दिया।
मैंने फोन पर श्राविका को कहा कि "मैं एकदम स्वस्थ हूँ, श्री नवकार की कृपा से ऑपरेशन के....नहीं...नहीं....मृत्यु के टेबल पर से
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? चार बजे उतरकर मेरे कमरे में वापिस आ गया हूँ। मुझे देव-गुरु कृपा से |श्री नवकार मंत्र के रखवाले अजीब तरीके से द्रव्य एवं भाव दोनों दुःख से निकाल चुके हैं। मैं धन्य हूं!'
"जिस प्रकार डूबते हुए को पाटिया हाथ में आता है, उस प्रकार इस म्लेच्छ भूमि पर मेरी आत्मा को वीपरित दिशा से वापिस मोड़नेवाला | श्री नवकार मुझे साथीदार के रूप में मिल गया!!! "
तुरंत दोनों बालिकाओं को साथ लेकर, आनन्द के साथ अस्पताल आकर, मुझे खूब प्रसन्न देखा तो श्राविका वास्तव में भक्ति से गद्गद हो गई। उस समय बातचीत के दौरान बड़ी बेटी से जानने को मिला कि. | श्राविका ने घर में इग्यारह बजे से केसरियाजी के फोटो के समक्ष श्री नवकार महामंत्र का जप किया और शुभ समाचार आये तो ही अन्न पानी लेना, ऐसा अभिग्रह किया था।
तदुपरांत उसने मेरी स्वस्थता और ऑपरेशन की सफलता हेतु व्रत | नियम-तप-जप आदि करने का संकल्प किया था।
मेरे जीवन में अचानक आई छोटी सी बीमारी ने भयंकर रूप लिया और बड़े-बड़े डॉक्टर भी घबराएं, वैसे जोखमी ऑपरेशन का समय आया, वह वास्तव में "तीव्र भाव से किए हुए पाप और पुण्य का फल तुरंत मिलता है' इस शास्त्रीय नियमानुसार यथार्थ था और प्रकृति के संकेत अनुसार द्रव्य ऑपरेशन से अंदर की गंदगी के रूप में मवाद और सड़ी हुई हड्डियाँ आदि दूर हुए एवं ऑपरेशन की पूर्व भूमिका में अत्यन्त तीव्र वेदना में याद आये श्री नवकार महामंत्र के जप और स्मरण से मेरी आंतरिक पाप वासनाओं का भी भाव ऑपरेशन हो गया, जिससे मेरी दृष्टि पर आया हुआ मोह का आवरण दूर होकर, विवेक, बुद्धि का उदय हुआ।
परिणामस्वरूप ऑपरेशन के बाद इलाज हेतु मुझे अस्पताल में रहना पड़ा, किंतु मेरी वृत्तियां, विवेक बुद्धि के उदय से एकदम बदल गई, जिससे आज तक नर्स या स्टॉफ की लेडिज के साथ मात्र मनोरंजन के खातिर हंसकर बातें करने से होता दृष्टि कुशीलता का छुपा पाप सर्वथा
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बंद हो गया और अब तक हुए उस पाप की घृणा मन में बैठ गयी।
मुझे बाल्यावस्था में दादा और तीर्थ स्वरूप माँ द्वारा समझायी गयी तथा पाठशाला में सीखायी हुई शील धर्म की महिमा और उसकी मर्यादाओं का महत्त्व सही रूप से स्पष्ट तरीके से समझ में आने लगा।
मैं एकदम अच्छी तरह से और जल्दी से खून को बढ़ाकर स्वास्थ्य प्राप्त करुं ऐसे आशय से डॉ. निकलसन, डॉ. रीड और उनके नीचे रहे निष्णात डॉक्टर, सबसे बड़े डॉ. ज्योफ्री नाइट के निर्देशानुसार विटामिन के इंजेक्शन आदि का कोर्स प्रेम से देते थे। फिर भी उनकी धारणा अनुसार मेरा शरीर कवर -अप न होने के कारण वे सोच में पड़कर दूसरे डॉक्टरों की कॉन्फ्रेंस बुलाने आदि की तैयारी करने लगे।
मुझे इस बात का पता चलने पर डॉ. निकलसन से मैंने स्पष्टता पूर्वक बात की कि, "जाति, देश और कुल का रिश्ता नहीं होने के बावजूद आप जो हमदर्दी एवं प्रेम से मेरे लिए सावधानीपूर्वक इलाज की योजना बना रहे हो, और अच्छी से अच्छी शक्तिवर्धक दवाइयां इंजेक्शन देने के बावजूद मेरे शरीर की नजाकत स्थिति तुम्हें कठिनाई में डाल रही है, उसका कारण शायद आपके ध्यान में नहीं भी आये, किंतु मुझे हकीकत में जिस परमात्मा की शक्ति ने बचाया, उस शक्ति के अनुरूप जीवनचर्या के लिए योग्य वातावरण मुझे यहां नहीं मिलता है, उस तनाव के कारण आपकी ओर से मिल रही पूरी सुविधा के बावजूद मैं शारीरिक स्वस्थता प्राप्त नहीं कर पा रहा हूँ। इसलिए मेरे शरीर में शक्ति प्राप्त करने हेतु मुझे घर जाने दो।"
डॉ. निकलसन यह बात सुनकर काफी देर तक विचार में डूबे, किंतु अंत में मेरी बात पर विश्वास कर, कमर तक प्लास्टर चढ़ाकर |एम्ब्यूलेन्स कार में मुझे घर पहुंचाया।
..धर्म संस्कार में रंगी हुई श्राविका पत्नी, किसी भी प्रकार की हलन-चलन न कर सकुं वैसे कमर तक के पक्के प्लास्टर में जकड़े हुए, एकदम अपंग हालात में मुझे देखकर भी जरा भी नाराज या परेशान हुए
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बिना मेरी छोटी-बड़ी सभी जरुरतें खड़े पैर, उमंग के साथ पूरी करने लगी। साथ ही साथ मेरे अंतर की जगी हुई दृष्टि के अनुसार जीवन को संयमी बनाने हेतु समझाती और अज्ञान दशा में किये गये पापों की गहीं-निंदा करने हेतु जाग्रत करती थी।
बीमारी से पूर्व भी श्राविका मुझे अक्सर यह सब बातें समझाती, किंतु उस समय मेरी अंतरात्मा मोह के आवरण से वासना के माहौल में विवेक शून्य बनने के कारण, यह सब टिक टिक रूप लगता, जिससे अधिकांश बार तो आंखों के आगे कान करता, केवल पत्नी के प्रति राग के कारण सामने जवाब नहीं देता था।
किंतु अब मुझे श्राविका के अन्तर में मेरी आत्मा को दुर्गति से बचाने के लिए, भाव वात्सल्य का अनुभव होने लगा। जिससे मैं प्लास्टर में जकड़ी हुई स्थिति में भी श्राविका की सूचना के अनुसार मानसिक रूप से धार्मिक जीवन जीने की तैयारी करने लगा।
श्री नवकार महामंत्र के निरंतर स्मरण एवं किये हुए पापों की गर्दा, आत्मचिंतन और कर्तव्य की जागृति आदि में मेरी तत्परता बढ़ती गई।
उस समय मेरी स्थिति ऐसी थी कि चम्मच भी उठाना मेरे लिए मुश्किल था, जब कि एक समय ऐसा था, कि दो युवान आदमियों को कंधों पर बिठाकर पहाड़ पर चढ़ सकता और उतर सकता था। मुझे जीवन में साक्षात् अनुभव हुआ कि औदयिक भाव का शरीरबल धर्मबल से ही टिकता है, फालतु मद-अभिमान का कोई अर्थ नहीं!!!
दुनिया में कहा जाता है कि, 'जो होता है वह अच्छे के लिए होता है।' उसी के अनुसार मुझे प्लास्टर की अवस्था में चिंतन और आत्मगर्दा करने का अधिक समय मिला, परिणामस्वरूप विवेक दृष्टि की कक्षा ऊँची होने लगी। जिससे मुझे 'सच्ची भूख में भोजन का सच्चा स्वाद' की तरह मेरे जीवन को शादी के प्रथम दिन से ही धार्मिक दृष्टिकोण देने के लिए प्रयत्नशील श्राविका के आज तक की सूचनाओं की अवगणना की भूल वास्तव में पीड़ा देने लगी।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? स्वयं की परवाह किये बिना खड़े पैर मेरी अच्छी-बुरी स्थिति में भी धार्मिक जीवन की देखरेख रखने वाली श्राविका ने तत्परता दिखाते हुए, मुझे पाप मार्ग से बचाने हेतु सुंदर हितशिक्षाएं देकर कर्तव्य का मार्ग अपनाया था।
ऐसी आदर्श श्राविका को पत्नी के रूप में प्राप्त कर, मेरे धार्मिक जीवन का निर्माण इसके सहारे ही हुआ है और होगा, इस विचार से उल्लास से क्षण भर प्लास्टर की जकड़न की वेदना भूल जाता और श्राविका के प्रति आज तक जो केवल कामवासना का पोषक साधन समझकर द्रव्य प्रेम था, वह मेरे आंतरिक जीवन को धर्ममय बनाने वाली साधर्मिक के रूप में भावप्रेम एवं गुणानुराग में परिवर्तित होने लगा।
वास्तव में धर्म-संस्कार विहीन म्लेच्छ धरती पर मेरे जीवन की कायापलट को स्थायी रूप देने से मैंने उसे मेरे जीवन की संचालक धर्मगुरु के रूप में स्वीकार किया है।
मैं इस प्रकार द्रव्य और भाव दोनों प्रकार के इलाज से थोड़े ही दिनों में ठीक हो गया।शरीर, सोचा था, उससे भी ज्यादा शक्तिशाली बन गया। जहाँ जिंदगी और मौत का सवाल था और सभी डॉक्टरों को लगता था कि शायद ऑपरेशन से जीवन बच जाये तो भी कमर के नीचे के भाग से पेरेलाइसिस की असर से दोनो पैरों में लकवा होने की पूरी संभावना थी, किंतु मैं सभी के आश्चर्य के साथ, बिना आलंबन से सहजता से चलने की स्थिति में पहुँच गया। मैं सबके मन में एक प्रश्नरूप बन गया।
अंत में लंदन की मेडिकल ऐसोशियेशन की खास मिटिंग में हमारे अस्पताल के डॉक्टरों ने समाधान पाने के लिए, लंदन के प्रख्यात अनेक M.D. डॉक्टरों को आमंत्रित किया। उस मिटिंग में डॉ. निकलसन ने मेरे केस की जानकारी प्रारंभ से लेकर अंत तक पेश की। मेरे केस की प्री-स्क्रीप्शन, दी गई दवाइयां, इंजेक्शन एवं विशिष्ट इलाज की जानकारी डॉ. रीड के मार्ग दर्शनानुसार पेश की।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - ___मेरे रोग का प्रकार, कमर में विचित्र दर्द, मवाद और हडिड्यों में सड़न किस प्रकार शीघ्रता से हुआ? पेरेलाइसिस की संभावना, ऑपरेशन के खतरे आदि बातों की जानकारी सर ज्योफ्री नाइट ने सरलतापूर्वक डॉक्टरों की सभा के समक्ष पेश की।
तीन घंटे तक अनेक सर्जिकल बिन्दुओं की चर्चा करने के बाद भी ऑपरेशन की पूर्व भूमिका और सफलता के कारणों का कोई स्पष्ट निर्णय नहीं हो सका। अंत में GOD IS ALMIGHTY तथा GOD ONLY KNOW या GOD IS GREAT आदि बोलने के साथ भारतीय डॉक्टर की धर्मश्रद्धा एवं प्रभु-विश्वास की प्रशंसा के साथ सभी डॉक्टर कुतूहल और विस्मय के मिश्रित भावों के साथ ईश्वरीय शक्ति की प्रेरणा के साथ बिखरे।
इस सभा की जानकारी से मेरी आत्मश्रद्धा बहुत मजबूत हुई। संसार में हकीकतों से कोई इन्कार नहीं कर सकता, इसलिए एलोपथी विज्ञान भी जहाँ सोच में पड़ गया, वैसी विषमतर स्थिति में से गुजरता हुआ जीता जागता मैं सबके कुतूहल रूप बना, जिससे मैं इस स्थिति का सर्जन करने वाली ईश्वरीय शक्ति में ज्यादा श्रद्धा प्राप्त कर सका।
मैंने इसी कारण सभी भौतिक साधन जब बेवफा बने तब मृत्यु के मुख में से जिस शक्ति ने मुझे बाहर निकाला, उस शक्ति को वफादार बने रहने के लिए, जीवन में धर्म एवं श्री नवकार महामंत्र के प्रति पूर्ण समर्पण भाव लाने के लिए, पाँच तिथि अभक्ष्य अनंतकाय का भक्षण बंद किया। दूसरे उपायों से भी जीवन में पौद्गलिकता के स्थान पर सात्त्विकता को स्थान दिया।
मैंने पूर्ण स्वस्थ होने के बाद लाखों की कमाईवाली भी नौकरी से इस्तीफा दिया, क्योंकि जिस धर्म ने, जिस श्री नवकार ने मुझे मृत्यु के मुंह में से बचाया अब तो उसी की छत्र-छाया में जीवन को सफलतापूर्वक बिताने के ध्येय से मैंने भारत वापिस जाने का निर्णय किया। मैंने सहदय डॉक्टर मित्र बंधुओं और अस्पताल की सलाहकार समिति, प्रबंध समिति के सदस्यों के प्रेम भरे इन्कार के बाद भी मुश्किल
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? से सभी को समझाकर भारत वापिस आने की पूर्व तैयारी प्रारंभ की। शुभ दिन में दो बेटियों एवं श्राविका के साथ भारत की ओर प्रयाण किया। मैंने उसी समय मन में दृढ़ निश्चय किया कि-'भारत की धरती पर पैर रखते ही वासना एवं आसक्ति को एकदम तिलांजलि न दे सकू तो भी जरुरी मर्यादाओं को विरति धर्म के विशिष्ट पालन से तय कर लेना है।'' पूरे प्रवास के दौरान धार्मिक जीवन के साथ संबंध जोड़ने की सुंदर योजनाएँ श्राविका के साथ विचार कर तय की।
मुंबई बंदरगाह पर स्टीमर जब किनारे पर पहुँची, तो मैंने तुरंत | भारत की भूमि को अत्यंत भावपूर्वक नमन किया। मैंने एवं श्राविका ने भारत की भूमि पर पैर रखते ही ईशान कोण (दिशा) में सीमंधर स्वामी परमात्मा को साक्षी रखकर भावपूर्वक घुटने टिकाकर, नमस्कार कर धर्मशासन की छत्र छाया के नीचे जीवन जीने का दृढ़ संकल्प किया।
मुझे आज तक जिन अभक्ष्य पदार्थों को खाने से मजा आता था, शरीर का पोषण मानकर मैं खूब आनंदित होता था, अब उन्हीं में नरक के भंयकर दुःख मानकर उन्हें आत्मा के शोषक मानने लगा। इसलिए तीव्र पश्चात्ताप के भाव के साथ अनंतकाय आदि अभक्ष्य पदार्थों का एकदम यावज्जीव त्याग कर दिया। उसी प्रकार सात व्यसन, रात्रि भोजन, अभक्ष्य, अचार, आदि पापों का भी पच्चक्खाण श्री सीमंधर स्वामी परमात्मा की साक्षी में लिया।
मुझे लेने आये परिजन (संबंधी) समझे कि डॉ. झवेरी और उनकी पत्नी कितने विनीत हैं कि हमारे पैर छू रहे हैं। किंतु वास्तव में हम दोनों संसारी जीवन को धर्म के पंथ पर चढ़ाने की पूर्व-भूमिका का निर्माण कर रहे थे।
पालनपुर आकर परमोपकारी, भाववात्सल्य के भंडार एवं जिनके डंडे की मार के डर से प्राप्त किये धार्मिक शिक्षण की बदौलत इंग्लैण्ड जैसी म्लेच्छ धरती में वेदना के सागर में भी श्री नवकार महामंत्र का स्मरण द्रव्य एवं भाव समाधिजनक हुआ, वे दादाजी जीवित नहीं थे, इसलिए
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हदय को दुःख हुआ फिर भी उनके असीम उपकारों के बदले में भाव से दादाजी के पैर धोकर उस चरणामृत को मस्तिष्क पर चढ़ाने की भावना द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की। ___ मैंने धर्म-वात्सल्यमूर्ति, वास्तव में जीवनसंस्कारदात्री माताजी के चरणों में कृतज्ञता भरे आँसू बहाकर घटित बात संक्षेप में कही। - विशेष में-"आपके द्वारा दी गयी चंदन की माला से श्री नवकार के किये गये द्रव्य जप के प्रताप से ही अंत में मेरा उद्धार हुआ, इस सबका
श्रेय आपको है" इत्यादि कहकर मैंने माताजी की चरण रज सिर पर |चढ़ायी।
मैं बाद में व्यवसाय के कारण ई. स. 1964 में कलकत्ता आया। वहाँ डॉक्टरी कार्य प्रारंभ किया, पुण्य योग से लंदन की तरह यहाँ भी | भौतिक संपत्ति जरूरत से ज्यादा मिलने लगी। किंतु अब मेरी अन्तरात्मा जागृत होकर विकारी वासनाओं के दबाव से मुक्त रह सकी।
मुझे प्रबल पुण्योदय से मेरे एक जिगरी दोस्त ने एक बार प्रेरणा दी कि विनयविजयजी महाराज (स्व. पु.आ. श्री विजयभक्ति सूरीश्वरजी के शिष्य, वर्तमान में स्व. पू.आ. श्री विनयचंद्रसूरीश्वरजी महाराज) बहुत सुंदर व्याख्यान देते हैं, एक बार जरूर जाओ। मैं बार-बार दोस्त की प्रेरणा से एक रविवार को समय निकालकर व्याख्यान सुनने गया। पू. महाराजश्री की संयमलक्ष्मी से शोभायमान काया, प्रशांत चेहरा, मीठी मधुरी वाणी से मेरा मन आकर्षित हुआ।
फिर कभी जिनमंदिर में दर्शन करने के लिए पधारे हुए पूज्य श्री विनयविजयजी महाराज मंदिर में से बाहर निकले और मैं मेरे मित्र के साथ घूमने निकला था। किंतु छोटी उम्र में दादाजी की ओर से तथा धार्मिक पाठशाला में ऐसा शिक्षण मिला था कि जैन साधु भगवंत- प्रभु महावीर के त्याग धर्म का पालन करने वाले को देखकर तुरंत हाथ जोड़ने चाहिए। इस संस्कार के कारण मैंने जूते उतारकर उन्हें विनयपूर्वक नमस्कार किया। पूज्य गुरुदेव ने मधुर स्वर से धर्मलाभ कहा। मेरी विनति से
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मांगलिक सुनाया। पूज्य गुरुदेव की संयमित काय चेष्टा, जयणापूर्वक (सावधानीपूर्वक) चलने की पद्धति आदि की अमिट छाप मेरे हदय पर
पड़ी।
उसके बाद रविवार को व्याख्यान सुनने गया। पूज्य गुणविजयजी महाराज (तपस्वी) की प्रेरणा से मैंने गुरुवार को अस्पताल बंद कर सप्ताह में दो दिन (रवि-गुरु) नियमित व्याख्यान सुनना प्रारंभ किया।
विनयविजयजी महाराज की सुंदर शास्त्रानुसारी व्याख्यान शैली, महापुरूषों के सुंदर जीवन चरित्रों के प्रसंगों को अच्छी तरह से पेश करने की कला, पूज्य गुणविजयजी महाराज की धर्म कार्यों से संबंधित विविध सूचनाएँ, घर में श्राविका की हार्दिक प्रेरणा और उसका धार्मिक साथ लेकर सर्वप्रथम श्री शामला पार्श्वनाथ प्रभुजी की अट्ठम से मेरे धार्मिक जीवन की शुरुआत हुई।
उसके बाद उत्तरोत्तर अनेक त्यागी, तपस्वी साधु भगंवतों, आचार्यों, पदस्थ मुनियों आदि के धार्मिक परिचय-धार्मिक वातावरण आदि के प्रताप से यथाशक्ति व्रत-नियम, तप-जप, पौषध, प्रतिक्रमण आदि धर्म क्रियाओं से जीवन धन्य-पावन बन गया।
पैसे कमाने की दृष्टि से कलकत्ता की भूमि अनुकूल होने के बाद भी, धार्मिक वातावरण और संयमी जीवन बिताकर धार्मिक अपूर्व प्रेरणा देनेवाले मुनियों के सहवास की कमी के कारण, श्राविका की प्रेरणा से ई.स. 1971 में कलकत्ता छोड़कर हम अहमदाबाद आ गये।
यहाँ आने के बाद धार्मिक जीवन में मेरी सुंदर प्रगति हुई। मैंने श्री वर्धमान तप की 31 ओलियां की। पूज्य शासन प्रभावक आचार्य देव श्री देवेन्द्रसागरसूरिजी की प्रेरणा-निश्रा में परमानंद जैन संघ (वीतराग सोसायटी, पालडी, अहमदाबाद-1) की ओर से हुए उपधान प्रसंग पर महान पुण्य के योग से श्री नमस्कार महामंत्र की आराधना विधिपूर्वक अढारिया (पहला उपधान) करने से आराधने (साधने) का सौभाग्य मिला।
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मैंने श्राविका को 47 दिन का उपधान करवाकर प्रथम माला पहनाकर जीवनोपकारिणी श्राविका के उपकार का यत्किंचित् ऋण अदा किया।
वक्तव्य:- डॉ. सुरेशभाई सोभागचन्दजी झवेरी 301 अर्थ एपार्टमेन्ट, पार्श्वनगर, कॉम्पलेक्स,
472949
कैलाशनगर, सगरामपुरा - सुरत 395002 (गुजरात) दूरभाष
वैर विसर्जक, मैत्री सर्जक श्री नवकार
यहां पेश की गई रोमांचक, बोधप्रद घटना एक मासिक में पढ़ी थी। उसे सं. 2041 के मुम्बई- वडाला चार्तुमास के दौरान व्याख्यान में पेश करने पर एक श्रावक से जानने को मिला कि इस घटना से जुड़े तत्वचिन्तक भाई दूसरे कोई नहीं, परन्तु वर्षों से गोड़ीजी (पायधुनी) में हर शनिवार को जिनका आध्यात्मिक वार्तालाप आयोजित होता है, वे श्री किरणभाई स्वयं हैं। उसके बाद किरण भाई के पास प्रत्यक्ष में इस घटना का आलेखन करने का निवेदन किया, परन्तु कुछ कारणों से उन्होंने अनिच्छा दर्शायी। फिर भी यह घटना अनेक आत्माओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायक होने से उसका सारांश यहां अपनी यथामति से पेश कर रहा हूँ। उसमे अपूर्ण दशा के कारण कोई क्षति हो तो हार्दिक मिच्छामि दुक्कड़ - संपादक
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शंखेश्वर तीर्थ में नमस्कार महामंत्र के परम आराधक, अध्यात्मयोगी, अजातशत्रु प. पू. पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. आदि पूज्यों की निश्रा में एक त्रिदिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसमें तीसरे दिन की रात में नवकार के बारे में एक प्रश्नोत्तरी आयोजित की गई थी। मुझे विविध जिज्ञासुओं के प्रश्नों के प्रत्युत्तर देने थे।
रात्रि में लगभग 11 बजे प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम पूर्ण होते ही सभा का विसर्जन हुआ। सभी श्रोता अपने-अपने स्थान पर गये, परन्तु एक भाई वहां बैठे थे। सभा के व्यवस्थापक ने उनसे पूछा : 'तुम्हें अभी कुछ पूछना है' यह सुनते ही वह भाई कुछ आवेश में आकर कहने लगे। "मेरे को कुछ भी नहीं पूछना, परन्तु केवल इतना ही कहना है कि, मेहरबानी
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करके अब तुम ऐसे सब नाटक बन्द करो। तुम लोगों ने तीन दिनों में नवकार मंत्र की महिमा के बारे में जो भी भाषण ठोके हैं, वे सब बेतुके हैं। नवकार मंत्र का वर्तमान समय में ऐसा कुछ भी प्रभाव नहीं है, यह बात में स्वयं के अनुभव के आधार पर छाती ठोककर कहता हूँ।" अप्रत्याशित ऐसे शब्द सुनकर व्यवस्थापक भाई तो हिल ही गये । अन्त में वे उस भाई को मेरे पास लाये और पूरी हकीकत बताई।
मुझे भी इस केस का संशोधन करने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। मैंने उस भाई से प्रेमपूर्वक पूछा: " आप मुझे बता सकोगे कि आप ने अब तक किस-किस प्रकार से नवकार की आराधना की और कितने नवकार गिने ?" प्रत्युत्तर में उन भाई ने अपने हाथ बताते हुए मुझे कहा कि "यह देखो, 36 वर्ष से नवकार गिनते-गिनते मेरी अंगुलियों की लकीरें घीसने लगी हैं। प्राचीन हस्तलिखित प्रतों वगैरह में दर्शायी हुई एवं महात्माओं के पास सुनी हुई ऐसी कोई प्रक्रिया शेष नहीं रही जो मैंने 36 वर्षों की आराधना के दौरान न आजमायी हो। अरे, सर्दी में कड़कड़ाती ठन्ड ठण्डे पानी में खड़े रहकर तथा गर्मी में चारों ओर अग्नि के ताप के बीच में रहकर नवकार जप के प्रयोग किये, परन्तु परिणाम शून्य ही आया । मुझे न तो किसी चमत्कार का अनुभव हुआ, न ही मानसिक शांति का भी अनुभव हुआ।
इसीलिए 36 वर्ष पूर्व माँ के पास से जिस शंखेश्वर दादा के समक्ष नवकार सीखा था, उसे वापिस आज दादा को लौटाने के लिए ही मैं आया हूँ। इसलिए मेहरबानी करके नवकार मंत्र की महिमा के बारे में अब और कुछ भी उपदेश मत देना! "
यह सुनकर क्षण भर के लिये तो मैं भी चकित रह गया। मुझे महामन्त्र के प्रभाव के बारे में पूरी-पूरी श्रद्धा थी, तो दूसरी ओर 36 वर्ष की साधना के बाद भी परिणाम शून्यता का, दृष्टान्त भी मेरे सामने चुनौती के रूप में खड़ा था। मैंने मनोमन गुरुदेव की शरण लेकर नवकार का स्मरण किया और दूसरे ही क्षण मेरे मन में एक विचार आया कि,
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? "इस भाई ने बाह्य विधियां तो बहुत की हैं, परन्तु अभ्यंतर विधि में कोई त्रुटि होनी चाहिये। उसके बिना ऐसा नहीं हो सकता है।"
मैंने उस त्रुटि को खोजने हेतु उनके व्यावहारिक जीवन के बारे में | थोड़ी पूछताछ की। उसमें इनके छोटे भाई की बात निकलते ही वे एकदम आवेश में आ गये और कहने लगे कि 'इस हरामखोर का नाम भी मेरे मुंह से नहीं बुलवाना। छोटी उम्र में हमारे माता-पिता की मृत्यु होने के बाद मैंने बड़े भाई के रूप में मेरा कर्तव्य समझकर उसका पालन पोषण किया। उसको पढ़ा-लिखा कर व्यवसाय में लगवाया और विवाह भी करवा दिया। परन्तु उसने शादी के बाद अपनी पत्नी के उकसाने से ज्यादा धन प्राप्त करने हेतु मेरे पर कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया है। इस नालायक ने सभी उपकार भूलकर मेरे पर अपकार किया है। इसलिए मैं भी अब तो उसे नहीं छोडूंगा। मैंने भी उसके ऊपर मुकदमा दर्ज किया है। मेरा चाहे जो भी हो, परन्तु इस नालायक को एक बार ऐसा बोधपाठ पढ़ा दूंगा कि जिन्दगी भर भूल नहीं पाएगा।" इत्यादि आवेश में बहुत बोलने के बाद उस भाई का आक्रोश कुछ शान्त हुआ, तब मैंने उनसे कहा कि, "अब हम मूल बात पर वापिस आते हैं। देखो, आपने भले ही 36 वर्ष में कई विधियां आजमायी हैं, किन्तु मैं बताता हूँ, उस विधिपूर्वक मात्र 6 महीने ही तुम नवकार की आराधना करो और उसका परिणाम यदि न दिखाई दे तो फिर तुम नवकार दादा को सौंप देना और तुम्हारे साथ मैं भी नवकार को छोड़ दूंगा!!!"
(मैंने बाद में यह बात पू. गुरुदेव श्री भद्रंकर विजय जी म.सा. के पास पेश की तब उन्होंने मुझे उपालंभ देते हुए कहा कि, "अपने से नवकार छोड़ देने की बात नहीं की जा सकती। उस भाई का कोई निकाचित कर्मोदय हो और उसे फायदा न हो तो क्या तुम भी नवकार को छोड़ दोगे?" ऐसा कहकर उन्होंने मुझे प्रायश्चित्त भी दिया। परन्तु श्री नवकार महामन्त्र के प्रति अनन्य श्रद्धा के कारण ही मेरे से इस तरह बोला गया था। मुझे पूर्ण विश्वास था कि बाह्य तथा अभ्यन्तर विधि से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सही प्रकार से नवकार की आराधना की जाये तो उसका परिणाम अवश्यमेव ही अनुभव में आता है।)
उस भाई ने कहा, "मुझे लगता है कि मैंने नवकार आराधना की प्रकाशित-अप्रकाशित सभी ही विधियां प्रयोग कर ली हैं। इसलिये आप जो विधि बताओगे, वह भी मैंने प्रयोग कर ली ही होगी। इसलिये व्यर्थ आग्रह मत करो। कुछ होने का नहीं है। ___मैंने कहा, "मुझे विश्वास है कि जो विधि बताऊंगा, वह विधि आपने प्रयोग में नहीं ही ली होगी। इस विधि को यदि आप करोगे तो आपको नवकार की आराधना का परिणाम अवश्य ही मिलेगा। परन्तु छह महीने तक नियमित रूप से इस विधि को करने का आप यदि मुझे वचन दोगे, तो ही यह विधि मैं आपको बता सकुंगा।" । मेरी ऐसी तसल्लीपूर्वक बात सुनकर उस भाई ने सोचा कि, '36 वर्ष नवकार गिने तो चलो 6 महीने अभी और गिन लुं। और उन्होंने कहा "भले, आप कहोगे उस प्रकार से छः महीने में और भी नवकार की आराधना करने के लिये तैयार हूँ।"
___ मैंने कहा "ऐसे तो यह विधि सरल है, फिर भी मुझे शंका है कि विधि सुनने के बाद आप इस विधि को करने को शायद तैयार नहीं होंगे।"
उस भाई ने कहा "मैं विश्वास दिलाता हूँ कि, आप जिस प्रकार से विधि बताओगे उस प्रकार से मैं छः महीने तक करुंगा ही!"
...और अन्त मे मैंने विधि बताते हुए कहा "देखो, विधि दो प्रकार की होती है, एक बाह्य विधि, दूसरी आभ्यंतर विधि। निश्चित दिशा, स्थान, आसन, माला, मुद्रा, धूप,दीप वगैरह बाह्य विधि में आते हैं, जबकि समस्त जीव-राशी के प्रति मैत्री-प्रमोद, माध्यस्थ्य-करुणा आदि भावनाओं से भावित अंतःकरण, वगैरह आभ्यंतर विधि में आता हैं। आपने आज तक बाहय विधियाँ तो अनेक प्रकार की आजमायी हैं, परन्तु उसके साथ आभ्यंतर विधि का तालमेल बिठाना ही चाहिये। उसमें त्रुटि रहने से
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? आपकी साधना निष्फलता में परिणत हुई है। नवकार मन्त्र में जिन परमेष्ठी भगवन्तों को नमस्कार करते हैं, उनका जगत के जीव मात्र के साथ मैत्री | भाव होता है। इसलिये जब तक अपना चित भी समस्त जीवराशि के साथ मैत्री भाव से अधिवासित न बने, एकाध भी जीव के साथ दुश्मनी का भाव या वैर का बदला लेने की वृत्ति काम करती हो, तब तक पंच परमेष्ठी भगवतों की कृपा प्राप्त करने की पात्रता अपने में नहीं आ सकती है। पात्रता के बिना साधना में सफलता कैसे मिले? इसलिये मेरी आपको सर्वप्रथम सलाह यह है कि आप अपने छोटे भाई के साथ हार्दिक क्षमापना कर लें।"
इतना सुनते ही वह भाई वापिस कुछ आवेश में आकर कहने लगे "नहीं, नहीं, यह कदापि नहीं हो सकता। गलती उसकी और क्षमापना में कैसे करूं? मैं क्षमा मांगने जाऊँ तो उसका जोर खूब बढ़ जायेगा। हम तो अचानक रास्ते में आमने-सामने हो जाते हैं, तो भी हमारी आँखें कतराती हैं और अलग अलग रास्ते में चले जाते हैं। ऐसी स्थिति में क्षमापना का कैसे संभव हो सकता है? और आपके कहने से शायद मैं क्षमा मांगने चला भी जाऊँ, तो भी वह तो क्षमापना नहीं ही करेगा, बल्कि न सुन सकें ऐसे शब्द ही सुनाएगा। इसलिये मेहरबानी करके इस बात का आप आग्रह नहीं करें तो ही अच्छा होगा।"
मैंने कहा, "देखो, मैंने आपको पहले से ही कह दिया था कि मैं बताऊंगा वह विधि सरल होने के बावजूद भी आप शायद नहीं कर सकोगे। फिर भी आपने विश्वास दिलाया तब ही मैंने यह महत्त्व की बात आपको बतायी। अब यदि आपको इस प्रकार करने से छोटे भाई की ओर से क्षमा मिलने की संभावना नहीं ही दिखती है तो आपको एक दूसरी विधि बताता हूँ। वह आपको अवश्य करनी होगी। इसमें आपको छोटे भाई के पास जाकर क्षमापना की बात नहीं आयेगी, परन्तु इस विधि के अनुसार करने का वचन दो तो ही, में आपको विधि बताऊंगा। वह भाई सहमत हुए, तब मैंने कहा, "भले आप छोटे भाई के पास जाकर क्षमा न
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मांग सको, तो भी हदय में उसके प्रति बदला लेने की तीव्र वासना है, उसका हो सके उतना विसर्जन करके प्रतिदिन सुबह जप करते समय प्रभुजी के फोटो के दोनों ओर आपके भाई और भाभी का फोटो रखकर ऐसी प्रार्थना करो कि-'मैं जो जप कर रहा हूँ, उसका फल जो भी हो वह मेरे भाई-भाभी को मिले... बस, यह प्रार्थना करके यथाशक्य | एकाग्रता पूर्वक 1 पक्की माला का जप नियमित रूप से 6 महीने तक करना और प्रति 15 दिन में मुझे एक पत्र लिखकर तुम्हें जो कुछ अनुभव होता हो, वह मुझे लिखना।"
वह भाई वचनबद्ध होने के कारण, थोड़ी आना-कानी के बाद अन्त में ऐसा करने को तैयार हो गये। हम एक दूसरे का पता लेकर अलग हुए। | उस भाई का पन्द्रह दिन के बाद पत्र आया। उसमें लिखा था कि "आपकी बतायी विधि के अनुसार रोज नियमित जप करता हूँ, किन्तु अभी खास कुछ भी अनुभव नहीं हुआ।" मैंने प्रत्युत्तर में लिखा, "चिन्ता नहीं, फल के लिये अधीर बने बिना विधिवत् जप चालु रखो।" फिर बीस दिन के बाद उनका पत्र मिला, जिसमें लिखा था, "थोड़े दिनों से मुझे विचार आता रहता है कि, हे जीव, तेरे छोटे भाई पर किस लिये गुस्सा करता है? उसका कोई दोष नहीं है। शादी होने से पूर्व तो वह आदरपूर्वक वर्तन करता था। शादी के बाद पत्नी के उकसाने से ही उसका व्यवहार बदला है। इस कारण भाभी का ही दोष लगता है। परन्तु भाई तो निर्दोष है। इसलिए उसके प्रति द्वेष रखना उचित नहीं।"
मैंने लिखा, "अच्छी बात है। प्रार्थना और जप चालु रखना।" पन्द्रह दिनों के बाद फिर उसने पत्र में लिखा था कि, "अब मुझे लगता है कि | भाभी पर भी द्वेष रखने जैसा नहीं है। प्रत्येक जीव कर्म के आधीन हैं।
और हे जीव! तुमने पूर्व भवों में इनके प्रति विपरीत वर्तन किया होगा, इसलिए आज इनको तेरे प्रति ऐसा व्यवहार करने को मन होता है। इसलिये वास्तव में दोष तेरा ही है, दूसरे किसी का नहीं है। इसलिए किसी पर भी द्वेष नहीं रखना चाहिये।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मैंने लिखा, "खुब आनन्द की बात है। आपकी नवकार साधना अब सम्यक् हो रही है। इसी प्रकार प्रार्थना जप चालु रखना।"
फिर कुछ दिनों के बाद, मेरी बतायी विधि अनुसार प्रार्थना-जप शुरु करने के करीब चार महीने हुए, तब उस भाई का 22 पन्नों से भरा विस्तृत पत्र मेरे पास आया, जिसका संक्षिप्त सारांश निम्नलिखित था।
"सचमुच आपका आभार प्रदर्शित करने के लिये मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं। आप के द्वारा बतायी विधि के अनुसार नवकार साधना करने से आज सगे-भाइयों के बीच वर्षों से खड़ी दीवार सम्पूर्ण रूप से दूर हो गयी है, आज मेरे आनन्द का पार नहीं है। बात ऐसी बनी कि थोड़े दिन पहले मुझे नवकार के प्रभाव से अंतःस्फुरणा जगी कि,हे जीव! यदि वास्तव में तुझे यह लगता है कि भाई-भाभी का कोई दोष नहीं है। तेरे ही कर्मों का दोष है, तो फिर भाई-भाभी के साथ नहीं बोलना तथा कोर्ट-झगड़े किस लिए? फिजुल में दुनिया को तमाशा देखने को मिले, समय और सम्पत्ति की बरबादी हो तथा भवोभव बैर की परम्परा चले, क्या यह इच्छने योग्य है? इसलिए हे जीव! चाहे कुछ भी हो, परन्तु तू सामने से चलकर तेरे छोटे भाई-भाभी से क्षमापना कर ले। तेरे हदय के शुद्ध पश्चात्ताप का जरुर उन पर असर होगा और पंच परमेष्ठी भगवन्तों की कृपा के अचित्य प्रभाव से सभी कार्य अच्छा होगा।' मेरी यह भावना मैंने अपनी धर्म पत्नी को बताई तब मुझे प्रत्युत्तर मिला कि, "मुझे भी पिछले कितने ही दिनों से ऐसे ही विचार आते थे। परन्तु आपको | यह बात पसन्द आएगी या नहीं यह शंका होती थी, जिससे आपको नहीं बता सकी। परन्तु आज तुम्हारे मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझे अत्यंत आनन्द हुआ है।
इस तरह नवकार के प्रभाव से हम दोनों की सोच एक समान देखकर मैंने कहा,"चलो तब तैयार होते हैं, धर्म के काम में विलंब नहीं करना चाहिए, और हम दोनों छोटे भाई-भाभी के घर जाकर उनसे क्षमापना करने के लिए हमारे घर से बाहर पैर रखने की तैयारी करते थे,
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उतने में गली में खेलने गया हुआ हमारा बच्चा दौड़ता - दौड़ता आकर कहने लगा, "पिताजी पिताजी! मेरे चाचा-चाची अपने घर आ रहे
हैं।"
मैंने कहा, "हो नहीं सकता, तेरी समझ में फर्क होगा, वे तेरे चाचा-चाची नहीं, दूसरे कोई होंगें। अथवा चाचा चाची होंगे तो वे अन्य कहीं जा रहे होंगे। अपने घर वो नहीं आयेंगें।"
बच्चे ने कहा, "दूसरे कोई नहीं परन्तु चाचा-चाची ही हैं, इतना ही नहीं परन्तु उन्होंने खुद मुझे कहा है कि, 'तेरे माता पिता को सूचना दे कि, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं। "
यह बातचीत चल ही रही थी कि उतने में मेरे छोटे भाई भाभी सचमुच हमारे घर की ओर आते दिखाई दिये। क्षण भर तो मैं स्तब्ध बन गया और सोचने लगा कि " यह मैं क्या देख रहा हूँ? वास्तव में यह बात स्वप्न है या सत्य? मैंने अपने शरीर पर चीमट भरकर तसल्ली की कि यह बात स्वप्न नहीं परन्तु सत्य है। मैंने अपने भाई- भाभी से मिलने के लिए पैर उठाये... उतने में तो छोटा भाई ही मेरे पैरों में गिरकर जोर-जोर से रोते हुए कहने लगा, "बड़े भाई मेरा अपराध माफ करना! आपके अगणित उपकारों को भूलकर, स्वार्थान्ध बनकर पिता तुल्य आप पर मैंने कोर्ट केस किया । अरररर ! धिक्कार हो मुझे।" इत्यादि बोलते-बोलते उसका गला भर गया। भाभी की आंखों में से भी पश्चात्ताप के आंसुओं की गंगा बह रही थी। वह भी कह रही थी कि, "वास्तव में दोष तो मेरा ही है ! मेरे उकसाने से ही आपके छोटे भाई ने आपके खिलाफ केस किया। वास्तव में मुझ पापिन ने ही सगे भाइयों के बीच फूट डाली है। धिक्कार है, मुझे...!" मैंने दोनों को बोलने से रोकते हुए कहा, 'तुम्हारा दोष नहीं है। दोष तो मेरा ही है। 'पूत कपूत हो जाते हैं, परन्तु अभिभावक कु अभिभावक नहीं होते हैं इस कहावत को भूलकर ज्येष्ठ बन्धु होकर भी मैंने तुम्हारे खिलाफ केस किया। में ज्येष्ठ बंधु के रूप में अपनी फर्ज अदा करने से चूका हूं। बाहर से विविध प्रकार की धर्म आराधनाएं करने
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? के बावजूद भी मैं कषायों की गुलामी न छोड़ सका। परन्तु आज कोई धन्य समय में पंच परमेष्ठी भगवन्तों की अचिंत्य कृपा से हम दोनों को अपनी भूल का ख्याल आया और हम तुम्हें 'खमाने' के लिए आने की | तैयारी करते थे, वहीं तो अप्रत्याशित रूप से तुम दोनों यहां आ पहुंचे।
खैर, जागे तब से सवेरा, और भूले वहां से दुबारा गिनें' इस उक्ति के अनुसार भूतकाल को भूलकर आपस में हिलमिल कर रहने की शुरुआत करें। कहा भी है कि, 'सुबह का भूला अगर शाम को घर वापिस लौटता है, तो उसे भूला नहीं कहते। आज का भोजन हम साथ मिलकर यहीं करेंगे।'
और दोनों देवरानी-जेठानी सगी बहिनों की तरह हिल-मिल कर रसोई बनाने लगीं। हम सभी ने प्रेमपूर्वक एक दूसरे को खिलाकर खाना खाया। उसके बाद छोटे भाई ने कहा, 'बड़े भैया! आपने मेरे पर कई उपकार किये हैं, उसी प्रकार अभी भी एक उपकार करना है।' ___मैंने कहा, "मैंने कोई उपकार नहीं किया, मात्र अपना फर्ज अदा करने का प्रयत्न किया है और आज से लेकर मेरे जैसा काई भी कार्य हो तो निःसंकोच मुझे बताना।"
छोटे भाई ने कहा,"आप जानते हो कि मेरा बेटा अब उम्र लायक हुआ है। बहुत कोशिस करने के बावजूद भी उसके लिए कोई कन्या देने के लिए तैयार नहीं, इसलिए अब यह कार्य आपको ही करना है।
मैंने कहा, "भले मैं कोशिस करुंगा' और आपको बताते हुए आनन्द होता है कि हम दोनों के बीच समझौता होने की बात चारों और फैलते ही दस दिनों में ही सामने से योग्य कन्या का प्रस्ताव आया और मैंने उसे स्वीकार कर लिया। दोनों का विवाह होने की तैयारी है।
वास्तव में आप मुझे न मिले होते, तो मैं अचिंत्य चिंतामणी नवकार महामंत्र के ऊपर श्रद्धा खो बैठता और कौन जाने बैर की आग में जलकर मेरी आत्मा कौन सी दुर्गति की अधिकारी बन जाती! वास्तव में आप मेरे परम उपकारी गुरु हो..!
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मैंने जवाब में लिखा कि "यह सब प्रभाव आपने 36 वर्षों से द्रव्य से भी जो नवकार का जप किया उसका है। उसके ही प्रभाव से आपको सम्मेलन के समय ही शंखेश्वरजी आने की भावना हुई। मैं तो निमित्त मात्र हूँ। बाकी वास्तव में प्रभाव तो पंच परमेष्ठी भगवन्तों की अचिन्त्य कृपा का ही है। इसलिए अब यावज्जीव 'शिवमस्तु सर्व जगतः की प्रार्थना पूर्वक उत्तरोत्तर चढ़ते भावों से नवकार की साधना चालु रखना। इससे ही आपका सर्वांगीण विकास होगा....।"
सभी जीव इस सत्य घटना से प्रेरणा प्राप्त कर वैर का विसर्जन तथा मैत्री का सर्जन करने वाले नवकार महामन्त्र की सम्यक् प्रकार से साधना करके देवदुर्लभ मानव भव को सफल बनायें, यही मंगल कामना। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
प्रवक्ता : श्री कान्तिलाल भाई पारेख (किरण भाई) अलसभा, कोर्ट, 5 वीं मंजिल, मरीन ड्राईव, मुम्बई फोन नं. 298897
वनस्पति पर नवकार का प्रयोग
विदेशों में अभी अभी ऐसे संशोधन हुए हैं कि शब्द द्वारा रोग मिटा सकेंगे, कपड़े धोये जा सकेंगे, पत्थर तोड़े जा सकेंगे, ताले खोले जा सकेंगे, प्रसूति कराई जा सकेगी, हीरे को काट सकेंगे। शब्द द्वारा आदमी का खून भी किया जा सकेगा !
मंत्राधिराज श्री नवकार में रहे हुए अक्षरों के उच्चारण द्वारा जबरदस्त आन्दोलन पैदा होते हैं। विशिष्ट संयोगवाले इन शब्दों से अकल्पनीय असर पैदा हो सकता है।
जिस प्रकार एस्पों, एनासीन या स्टोपेक जैसी गोली लेने के साथ तुरन्त असर दिखाती है, उसी प्रकार नवकार मन्त्र भी अपना तुरन्त असर बता सकता है, यदि इसे सम्पूर्ण विधिपूर्वक गिना जाये तो ।
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नागपुर के पास में खाकरी गांव के एक खेत की दो क्यारियों में प्रयोग किया गया। एक साथ दोनों क्यारियों को बोया गया। एक समान ही खाद दोनों में डाली गयी, एक ही कुएँ के पानी से दोनों क्यारियों को सींचा गया, अन्तर केवल इतना ही था, कि प्रथम क्यारी में सिंचते पानी को नवकार मन्त्र से मंत्रित करने के बाद सिंचा जाता था, जबकि दूसरी क्यारी को बिना मंत्रित पानी दिया जाता था। समय होते अंकुर फूटे, फूल उगे, फल आने लगे। परिपक्व स्थिति निर्मित होते ही फल इकट्ठे किये गये। तोड़े हुए फलों का वजन किया गया। नवकार मंत्र से प्रभावित पानी पीने वाली क्यारी में से कुल 40 किलो ककड़ी की फसल निकली। जबकि दूसरी क्यारी में मात्र 16 किलो ककड़ी की फसल निकली।
ऐसे ही प्रयोग मुम्बई थाणा बन्दरगाह पर आए हुए आश्रमों में हुए थे, और नवकार मन्त्र के दिव्य चमत्कारों का अनुभव वहाँ के लोगों ने किया
था।
जब मन-वचन-काया के तीनों योग से नवकार मन्त्र को गिना जाएगा तब अपने औदारिक तैजस-कार्मण इन तीनों शरीर पर उसका असर होगा। यदि कार्मण शरीर पर नवकार मन्त्र का बिजली-करंट लग जाये, तो अपना बेड़ा पार है। (प्रेरणापत्र' में से साभार)
लेखक-पू.पं. श्री हेमरत्नविजयजी म.सा. (वर्तमान में आचार्य)
नमस्कार ही चमत्कार झुकाने वाला मिले, वहां झुकने वाली दुनिया भले ही ऐसे बोलती सुनाई देती है कि, 'जहां चमत्कार वहां नमस्कार!' किंतु जिन्हें नवकार को समझना है, जिन्हें नवकार में निष्ठा है और नमस्कार की दुर्लभता जिसके दिल-दिमाग में आरपार बैठ गई है, वह तो यही बोलेगा कि भाई! अपने को नमस्कार मिला, यही चमत्कार है! नमन योग्य पूज्यों के सामने अक्कड़ रहने में गौरव का अनुभव करने वाली दुनिया बहुत बड़ी है। इस दुनिया में
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रहने के बावजूद अपने को नमस्कार मंत्र मिला और सुदेव, सुगुरु, सुधर्म की गोद में बिना शर्त शरणागति प्राप्त करने की विनयशीलता पाई। इससे बढ़कर दूसरा कौन सा चमत्कार हो सकता है? जगत और जनता में भले ही 'चमत्कार वहां नमस्कार" की महिमा होती है, किंतु जैनशासन एवं जैनसंघ 'नमस्कार ही चमत्कार" की श्रद्धा का ही गुंजन होना चाहिये। ऐसा गुंजन जिसके वांचन से अधिक दृढ़ बने, ऐसे अर्वाचीन प्रसंगों के लेखन के पीछे यही भावना है कि सभी नमस्कार को चमत्कार मानने की श्रद्धा में ज्यादा मजबूत और स्थिर रहने का बल प्राप्त करें।
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- आ. विजयपूर्णचन्द्रसूरि
जहाँ औषधियाँ हारती हैं, वहाँ आस्था विजयी बनती है।
इस दुनिया में इलाज या औषधि ही बड़ी वस्तु नहीं है। यदि महान वस्तु कोई है तो वह है, आस्था ! जिसके अंतर में आस्था होती है, उसके लिए पानी भी अमृत समान है, और आस्था रहित आदमी के लिए अमृत पानी जितना भी कार्य नहीं कर सकता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि औषधियों में परम औषधी आस्था है। वैद्यों में परमवैद्यराज विश्वास है और दवाइयों में रामबाण दवा श्रद्धा है। जिसके पास इन तीनों का खजाना है, वे केन्सर जैसी व्याधि में भी ठीक होकर नीरोगी बन जाते हैं। इन तीनों का जिसके पास अभाव है, उसे सर्दी जैसा सामान्य रोग भी श्मशान पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। ऐसी श्रद्धा एवं आस्था यदि यंत्र-मंत्र एवं तंत्र के अधिराज समान नवकार के प्रति हो, तो ऐसे रोगी का देहरोग के साथ भव रोग भी ठीक होकर बेड़ा पार हुए बिना रहता नहीं है।
यहां प्रस्तुत एक सत्य घटना पढ़ने के बाद ऊपर कहे हुए शब्द हृदय में गुंजे बिना नहीं रहेंगे। साथ में यह भी होगा कि महामंत्र के पास भौतिक दुःख दूर करने की भीख मांगना, प्रसन्न हुए चक्रवर्ती के पास झूठे
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भोजन से भरा प्याला भर खाना मांगने जैसा है। प्रसन्न हुआ चक्रवर्ती तो भिखारी की पूरी झोंपड़ी को ही सोने से भरने में समर्थ है, उसके पास अपना प्याला झूठे भोजन से भरने की मांग की जा सकती है क्या ? इसी प्रकार महामंत्र का प्रभाव तो, जिस में से समग्र रोग-दुःख उपाधि एवं संकट पैदा होते हैं, उस भवरोग को ही जड़ से उखाड़ने में समर्थ है, इसलिए उसके आगे शरीर के ही सामान्य दुःख- रोग को दूर करने के लिए रोने की पागलता की जा सकती है क्या? इस सत्य घटना का सम्बन्ध रतनचन्द हेमचन्द नाम के एक व्यक्ति के साथ जुड़ा हुआ है। सन् 1950 की यह घटना है। तब किसी कमनसीब पल में रतनचन्द हेमचन्द के गले पर एक गांठ दिखाई दी। थोड़े ही समय में इस गांठ का निदान 'कैन्सर" के रोग के रूप में हुआ। कैंसर अर्थात केन्सल । रतनचन्द की आंखे भौंचक्की रह गयीं। मानो उसे मध्याहन में तारे दिखाई देने लगे। जीवन में धर्म की आराधना करने का जिसने लक्ष्य रखा हो, उसकी ही रक्षा करने के लिए ऐसी आपत्ति में धर्म हाजिर होता है। रतनचन्द के जीवन में धर्म के नाम पर शून्य था, जिसके कारण उनकी दौड़ दवा एवं दवाखानों (अस्पतालों) की ओर चली, किंतु जैसे दवाइयां लेते गये, कैन्सर की गांठ बढ़ती गई।
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भारत के सभी ख्यातिप्राप्त डॉक्टरों के सम्पर्क का परिणाम जब शून्य आया, तब रतनचन्द के जीने की इच्छा उसे अमेरिका तक ले गयी और वहां पहुँचकर उन्होंने इलाज करवाये। इन उपचारों के पीछे उन्होंने नौ लाख जितनी बड़ी राशि पानी की तरह बहायी, फिर भी जो फलश्रुति आई, उसे देखकर जीने की सभी आशाएं छोड़कर रतनचन्द भाई पुनः मुम्बई आये ।
मुम्बई आगमन के बाद कोई अजीब समय आया और शरणदाता तत्त्व के रूप में महामंत्र पर रतनचन्द की दृष्टि स्थिर हुई। आज तक नवकार तो बहुत गिने थे, नवकार के महिमा के प्रति आज तक सुना भी बहुत था, किंतु उसमें श्रद्धा-विश्वास का भाव आज तक नहीं मिलाया
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था, वह इस क्षण मिलाया और उन्होंने विचार किया कि, अब इन दवाओं को समुद्र में फेंककर, महामंत्र की गोद में जीवन रखकर शान्ति-समाधि से मरना क्या गलत है? जीवन में जो शान्ति समाधि स्वप्न में भी नहीं देखी थी, उसे मृत्यु के समय प्राप्त करने हेतु वे मैदान में डट गये।
25 फरवरी 1950 का दिन, जैसे मौत का संदेश लेकर आया है, ऐसा सबको लगा । रतनचन्द का गला फूलकर इतना बड़ा हो गया था कि पानी की एक बूंद भी अंदर नहीं जाये और प्यास तो ऐसी लगी थी कि जैसे पूरा सरोवर ही पी जाये। मुम्बई के प्रसिद्ध कैन्सर निष्णात डॉ. भरुचा को यह संकेत अन्तिम समय के लगते ही उन्होंने यह बात नजदीक के संबंधियों को बता दी। रतनचन्द को भी इस संदेश की भनक आ गयी। डॉक्टरों के विदाय होते ही उन्होंने घटस्फोट करते हुए कहा,
"ये सब दवाएं समुद्र में फेंक दो! मेरे मुंह पर लगी यह सब पाईपलाइनें (नलियां) कचरे के ढेर पर फेंक दो! दवा की एक बोतल की भी इस कमरे में अब आवश्यकता नहीं है। मैं आज तक शान्ति-समाधि से जीवन जीने में असफल रहा, किंतु अब मुझे इस असफलता की आंधी में फंसकर मृत्यु को नहीं बिगाड़ना है । मेरी इच्छा है कि अब महामंत्र की गोद में जीवन समर्पित कर शान्ति से मरना ! मैं अब घड़ी दो घड़ी का मेहमान हूँ। इसी कारण इस कमरे में मेरी अन्तिम आराधना में विक्षेप डालने कोई नहीं आये, ऐसी मेरी भावना है। सुना है कि नवकार की निष्ठा की रक्षा जो करता है, उस नवकार निष्ठ आत्मा की रक्षा भी कोई अगम्य तत्त्व करता ही है। अब शायद यह शैय्या मेरी अन्तिम शैय्या बन जाये, तो अभी से ही सभी के साथ "खामेमि सव्वजीवे" और "मित्ति मे सव्वभूएसु" का संदेश सुना देता हूं। यदि जीवित रहा, तो बाद में इससे भी ज्यादा हंसते ह्रदय से मिलूंगा और मृत्यु अनिवार्य हुई तो, जब ऋणानुबंध जुड़ेगा, तब फिर मिला जायेगा ।
रतनचन्द का परिवार रोगी के इस अरमान को अमल में लाने हेतु कमरे के बाहर चिंतित चेहरे से बैठ गया । दवाइयों के भूत-प्रेत एवं नलियों
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? की डाकण से मुक्त बने रतनचन्द कोई अलौकिक अनुभूति कर रहे थे। उनके शरीर में शक्ति नहीं होने के बावजूद मन में मजबूती, महासागर में ज्वार की तरह चढ़ गई थी। जीवन का अन्त सुधारने का उनका निर्णय अडिग एवं वीरता भरा था। किसी प्रकार की मांग या शर्त रखे बिना "नमो अरिहंताणं" और "सर्वत्र सुखी भवतु लोकः'' इन दो पदों की ध्वनि जैसे इनके श्वासोच्छ्वास के साथ बहने लगी। इन दो मंत्रों के जाप में जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गये वैसे-वैसे उनके आसपास कोई अद्भुत शान्ति बढ़ती गयी। जो शरीर बिस्तर में भी आराम नहीं मान रहा था, वह शरीर इस जाप की पलों में पीड़ा रहने के बावजूद वेदना के वेग को कम अनुभव करने लगा।
रतनचन्द ने महामंत्र की चरण-शरण में इस प्रकार शरणागति स्वीकार की, कि वे स्थल-काल के भेद को भी भूल गये। जप करते-करते शाम हो गई। उसी प्रकार रात्री का भी आधा भाग बीत गया।
मानो की रोगी के शरीर का सारा रोग एक साथ इकट्ठा होकर बाहर निकलना चाहता हो, उसी की प्रतीति करवाती एक जोरदार खून की उल्टी हुई, इस उल्टी के बाद रतनचन्द को एक अलग ही प्रकार की राहत महसूस हुई। इस उल्टी में मानो शरीर का समग्र कैन्सर बाहर निकल गया हो, ऐसा उन्हें लगा। ___रतनचन्द ने सुबह जल्दी कमरे का दरवाजा खोला तब बाहर चिंतित
चेहरों की लाईन थी। उन्होंने रात को अनुभव की गई राहत की बात करके कुछ घन्टों बाद कहा कि "मुझे ऐसा लगता है कि, जो गला अब तक पानी की बुंद भी उतारने को तैयार नहीं था, वह अब गर्म दूध भी उतार लेगा।
दूध का गिलास आया। रतनचन्दभाई महिनों के बाद गरम-दूध का गिलास गटक गये। सभी को आश्चर्य हुआ। श्मशान के दरवाजे से इस प्रकार जीवन के यौवन काल में प्रवेश करते हुए रोगी को देखकर सभी महामंत्र की अद्भुत शक्ति को भक्ति से प्रणाम करने लगे।
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? रतनचन्दभाई दवा-दारु को देशनिकाला देकर आस्था के आधार पर
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महामंत्र के जप में घंटों तक खो जाते, उस समय जो अनुभूति होती वह उन्हें अवर्णनीय लगती । 'नमो अरिहंताणं" और 'सर्वत्र सुखी भवतु लोकः" का जप थोड़े अधिक दिन तक चला और रतनचन्द के शरीर में, कैन्सर का कोई असर सोगन्ध खाने के लिए भी नहीं रहा । फिर तो फ्रूट और बाद में अनाज भी कैन्सर - ग्रस्त इस गले में से नीचे उतरने लगा। जिस 24 फरवरी को डॉक्टरों ने जीवन की अन्तिम रात बतायी थी, उससे ठीक दो महिने बाद जब रतनचन्द चलकर डॉ. भरुचा के पास पहुंचे, तब एक बार तो डॉक्टर को लगा कि यह क्या! रतनचन्द का प्रेत शरीर तो मेरे सामनें नहीं खड़ा है? उन्होंने एकाएक रोगी को कहा, "मेरे लिए यह पहला ही अनुभव है, जब इस प्रकार कोई रोगी श्मशानघाट जाकर यमराज के हाथ में ताली मारकर छुट गया हो ! तुम्हें कौन सी दवा लागु हुई? नाम तो बताओ, जिससे कैन्सर के बारे में हो रहे संशोधन सफल हो सकें?"
रतनचन्द ने कहा, "यह अद्भुत शक्ति का चमत्कार है। रोग को मार भगाने हेतु जब औषधियों से भरा हिमालय हताश हदय से हार स्वीकार करता है, तब महामंत्र पर रखी गई आस्था आकर विजय का मार्ग जताती है। औषधि में भी शक्तिपात करने की महाशक्ति यदि किसी में है, तो वह आस्था के पास है। ऐसी आस्था से की गयी आराधना ने ही मुझे जीवन मौत के इस युद्ध में भारी विजय दिलायी है। अठारह लाख से भी ज्यादा सम्पत्ति एवं वर्षों का समय भी मेरे केन्सर को मिटाने को तो दूर रहा, उसे बढ़ने से भी न रोक सका। वहां एक पैसे का भी खर्च किये बिना एक रात में मैं जो रोगमुक्त बना हूँ, वह प्रभाव हमारे नवकार मंत्र एवं मेरे द्वारा की गई उसकी आस्थापूर्वक आराधना का है। "
दवा एवं दवाखाने से सम्बंधित बात में ही श्वास लेने वाले डॉक्टर के लिए तो यह बात नयी ही नहीं, आश्चर्यकारी भी थी। अगोचर - अप्रत्यक्ष को श्रद्धा की नजर से नहीं देखने वालों के लिए यह सत्य घटना एक
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चमचमाता तमाचा था। आस्था की बात भले ही परोक्ष थी, किन्तु उसका शुभ परिणाम तो प्रत्यक्ष ही था । इसलिए उसका इन्कार नहीं किया जा
सकता था।
रतनचन्द की जब डॉक्टर ने जांच की तब उनके नाखून में भी रोग का कोई संकेत दिखाई नही दिया। उन्होंने अपने ज्ञान के सामने समस्या रूप बनी इस घटना का कई दिनों तक बुद्धि के स्तर पर मनन- मंथन किया, किन्तु इसका रहस्य जानने में वे असफल ही रहे ! इसका कारण यह था कि जहां श्रद्धा- आस्था का आश्रय लेना अनिवार्य था, वहां उन्होंने (डॉक्टरों ने) तर्क-बुद्धि की सहायता स्वीकारी थी ।
नोट : " मंत्र यंत्र तंत्र विज्ञान" मासिक, जनवरी 1980 के अंक के आधार पर यह सत्य घटना लिखी है।
लेखक - प.पू. आ. श्री विजयपूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.
चम्बल की खतरनाक घाटियों में 13 दिन
(इस सत्य घटना को पढ़ने से पूर्व )
(28 दिसम्बर 1973 को घटित एकं चिन्ताजनक घटना का हूबहू शब्दचित्रण आत्मकथा की शैली में, इस कथा के नायक राजेन्द्र, सुरेश, नवीन, और चीनुभाई के मुंह से पेश किया जा रहा है। उन दिनों अपहत हुए यह चारों युवक चंबल की घाटियों में से 13 वें दिन मुक्त हुए। पेशगी की राशि देने से पूर्व हुई इस मुक्ति के पीछे किसी दैविक शक्ति का विराट हाथ था। इन जवानों ने मुक्ति के बाद 'चित्रलेखा' के सहतंत्री से भेंटवार्ता की। यह घटना चित्रलेखा में भी छपी थी। किन्तु दैविक शक्ति को 'चित्रलेखा' ने केवल सौगंध, मनौती जैसे लूले लंगड़े शब्दों में पेश किया। इस दैविक शक्ति का सच्चा परिचय सभी को मिले, इसलिए इस घटना का आलेखन करना जरुरी लगा, क्योंकि महामंत्र नवकार और शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के प्रभाव से परिचित होकर सभी सच्ची मुक्ति का मनोरथ कर सकें, ऐसे तत्त्व से यह कथा भरपूर है | )
सर्दी की सुबह थी और सर्दी देश के पूर्वी हिस्से की थी। सूर्य का
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? उदय हो गया था, किन्तु अभी तक कातिल-ठण्ड का प्रभाव सिमटा नहीं था। सूनसान जंगलों में से अकेली सड़क पर हमारी बस आगे बढ़ रही थी। मुंबई से हमारा प्रवास प्रारम्भ हुआ था। देश के पूर्वी हिस्से के कल्याणक-तीर्थ हमारी आंखों के सामने तैर रहे थे।
हम 28 दिसम्बर 1973 को आगरा से शौरिपुरी जाने के लिए रवाना हुए। शौरिपुरी के शिखर हमें पुकारते हुए दिखाई देते थे। किन्तु किसे पता था कि विधि के मोड़ विचित्र होंगे? बस वटेश्वर के पास जा रही थी, उतने में अचानक ही सात-आठ डाकुओं का आक्रमण हुआ। उन्होंने हमारी बस को रोक दी। कल्लोल करती बस में एकदम करुण सन्नाटा छा गया। सभी के मुंह में 'शंखेश्वर का स्वामी' आ बसा और सभी मन ही मन नमस्कार महामंत्र का जप करने लगे।
डाकुओं के लिए पल-पल कीमती था। बंदूक की नोंक पर उन्होंने लूट चलायी। किसी की नकद राशि झपटी, तो किसी के गहने छिने गये। किन्तु यह तो फिल्म का टेलर ही था। फटी आंखो से हम विचारों के सागर में डूब रहे थे, उतने में वहाँ हम चारों को डाकू फिरौती (बान) के रूप में पकड़ कर चलते बने। उनका ऐसा अनुमान था कि इनमें मफतलाल ग्रुप की सुखी संतानें है, इसलिए फिरौती के रूप में मुंह मांगी बड़ी राशि मिलेगी।
बस में बैठे सभी हमारी इस धरपकड़ को देखते ही रह गये। वे दूसरा कर भी क्या सकते थे? डाकुओं की बंदूक की नोंक ऐसी जोरदार थी कि, उनके सामने एक शब्द भी बोलने में जान की जोखिम थी। ऐसे जंगल में रक्षा भी कौन करे? चारों ओर डाकुओं का ही राज था?
बंदूकबद्ध छः डाकू और हम चार। इस प्रकार हमारी दस की टुकड़ी जल्दी से गहन जंगल की ओर चलती बनी।
डाकुओं के हाथ में रही हुई बंदूक का डर, हमें तेज गति से दौड़ाता था। थोड़ी देर में तो हम कहाँ के कहाँ दूर-दूर जंगलों में चले गये। समाचार पत्रों में पढ़ी हुई कहानियों में चंबल की घाटियों एवं वहां
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - के डाकुओं की करुण कहानियां ताजी होने लगीं। यहाँ किसका सहारा था। हमारे मुंह में महामंत्र नमस्कार और शंखेश्वर की श्रद्धा सभर रटना थी।
पत्थर एवं कांटो से भरी धरती थी। शहरी सुविधाओं का शौक, हमको आगे बढ़ने से रोकता था। किन्तु यहाँ तो दौड़ना ही था। फेफड़े फूल जायें इस प्रकार की दौड़ में थोड़ी भी गति धीमी होती तो, डाक बंदूक की नोंक बताकर उस धीमी गति को बढ़ा देते थे।
जंगली-रास्ते ऐसे टेढे-मेढे अनजान थे कि यहाँ भोमिया भी भूल जाये। दूर-दूर दृष्टि जाते ही. हमसे निराशा भरी चीख निकल जाती, हाय! , | इस दौड़ का अन्त नहीं आयेगा क्या?
दो घण्टे की रखड़पट्टी के बाद किसी नदी के प्रवाह की कलकल ध्वनि सुनायी दी और हमको आराम की आशा लगी, किन्तु यह आशा निराशा में पलट गई। डाकुओं ने तो कपड़े ऊँचे किये और हमें कठोर आवाज से कहा "साले! खड़े क्यों रह गये! चलो, नदी में आगे बढ़ो!"
सर्दी के मौसम की कातिल ठण्ड! सांय सांय आवाज़ के साथ बहती ठंडी हवा! और वापिस नदी के पानी में दौड़ना! हमारे हदय कांप उठे। डाकुओं के सामने आंख भी ऊँची करने की ताकत किस में थी? हमारा जल प्रवास प्रारम्भ हुआ। हमको पानी में पैर रखते ही लगा 'यह पानी हमारी चेतना को बर्फ तो नहीं बना डालेगा न?
यह यमुना नदी थी। डाकुओं की सजग चौकीदारी के साथ हमारी दौड़ शुरु हुई। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गये वैसे वैसे नदी की गहराई बढ़ती गयी। पानी कमर तक आया। एक स्थान पर तो नदी में लकड़ियां गाढी हुई दिखाई दे रही थीं, उस तरफ से हमारा प्रवास आगे बढ़ते गया।
यमुना के मध्य में आने पर तो पानी छाती तक पहुंच गया। अंग अंग में भय की धड़कन तो थी ही! उसमें एकदम ठण्डा पानी आया। डाकू अभी तक मौन ही थे, इनकी घुरकती हुई आंखों में से निकलती भय की छाया ही हमें डराने को पर्याप्त थी। ऐसी भयानक धड़कन के
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? साथ ही हमने नदी के उस पार पैर रखे।
वहाँ से एक डाकू अलग हो गया और वह दूसरे रास्ते से जाने लगा। अभी तक उसने मुंह पर कपड़ा बांधा हुआ था।
हमें लगा कि यह शहर की खबरें पहुंचाने वाला होना चाहिए। शहर में ही इसे रहना पड़ता होगा, इसलिए पहचाना न जाए, इसकी सतत चिंता के कारण वह इस प्रकार रहता होगा?
अब समतल जमीन का अन्त आया। दूर-दूर तक दिखाई देती गहन | घाटियाँ चंबल के घाटी प्रदेश की पहचान दिखा रही थीं। __हम पानी से लथपथ कपड़ों से घाटियों की पगडिओं पर चलने लगे। हमें लगा, डाकू शायद अपने को छोड़ दें, तो भी यह रास्ता अपने ध्यान में कैसे आयेगा? डाकुओं से नजर बचाते हुए हमारे में से नवीनभाई ने गुप्त रखी हुई घड़ी एवं अंगुठी एक शिला के पीछे डाल दी अंगुठी से भी उस समय हमारे मन में, रास्ते की पहचान अधिकतर कीमती थी। । घाटियों के भेदी प्रवास को अभी कुछ मिनट ही हुए होंगे, वहां दूसरी नदी दिखाई देते ही हमारा होश उड़ गया। दूसरी नदी का घड़कन भरा प्रवास भी पूरा हुआ। पुनः घाटियाँ आयीं! पुनः दौड आरम्भ हुई। अब तो सूर्य भी मध्याह्न में आ गया था। ठंड अब शान्त हो गयी थी किन्तु पेट पुकारने लगा था। बिना खाये-पिये हम शहरी किस प्रकार इस दौड़ को पूरी कर सकते थे? डाकुओं ने अपने पास कंधे पर बंदूकें रखकर अपना भारी-सामान भी हमारे पर लादकर जो कमी शेष रह गयी थी, उसे भी पूरी कर दी थी! उसमें तीन सेना (मिलेटरी) के थैले, एवं दो पोटले एवं एक पानी की बोतल थी!
ढाई घन्टे की भटकन के बाद एक घाटी आयी। डाकुओं को यह स्थान सुरक्षित लगा। इन्होंने प्रवास रुकवाया। सब खड़े हो गये।
एक ओर डाकुओं की पंक्ति बैठी, दूसरी ओर हमारी। हमें भविष्य के भेद समझ में नहीं आ रहे थे। उतने में तो डाकुओं ने लूट का माल बाहर निकाला। हमें लगा शायद यहाँ लूट का बंटवारा किया जाएगा।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? लूट में एक दर्जन घड़ियाँ, पोना दर्जन अंगूठियाँ, आधा दर्जन सोने की चूड़ियाँ, तीन-चार नेकलेस और 4100 रूपये नकद आये थे।
यह लूट का सामान देखते ही हमारे स्वजन हमारी आंखों के सामने आ गये। सभी सामान उनका ही लूट कर इकट्ठा किया गया था। अंगूठियाँ एवं घड़ियाँ तो वही की वही थीं, किन्तु आज वे खून के आंसु खींच लाती थीं।
डाकू मस्ती में थे। जिनकी अंगुली में जो अंगूठी फिट हुई, उसे उसने पहन लिया। सभी के हाथ में घड़ियाँ बंधी थीं। किसी ने तो दो-दो घड़ियाँ पहनी थीं। किसी के हिस्से में गहने आये।
हम अपनी आंखों के आगे यह नाटक देख रहे थे, किन्तु तनी हुई बंदूक की नोंक के आगे हम लाचार थे। बंटवारा होने के बाद अचानक हमारी तलाशी ली गई। किन्तु लूटे हुओं के पास क्या मिलेगा?
हमारे में से राजेन्द्र की जेब में से एक भीगा हुआ सिगरेट का पैकेट निकला। डाकू बीड़ी पीने लगे और अपने-अपने हिसाब से बातें शुरु की। एक डाकू को मजाक करने का मन हुआ। उसने पूछा 'ए, तेरा नाम क्या? तेरी मुम्बई की सफेद बीड़ी तो भीग गई है। ले, यह देशी बीड़ी पी।"
राजेन्द्र में अब कुछ हिम्मत आयी। अपना नाम बताकर वह बोला, "सिगरेट तो अभी सूख जाएगी किन्तु तुमने जो अंगूठी पहनी है, वह मेरी शादी की है। यह अंगूठी निकलने से तो अपशकुन गिना जाता है!" डाकृ ने अंगूठी निकाल कर राजेन्द्र को दे दी। चंबल की घाटी में मानवता के दर्शन पहली बार हुए। हम मानने को तैयार नहीं थे, किन्तु इस घटना ने हमारे विचार बदले। अब हम में बातचीत करने की हिम्मत आई। सुरेश ने कहा ''हमको प्यास लगी है।' डाकू ने वॉटरबेग देते हुए कहा, 'पानी थोड़ा है, इसलिए घी की तरह पीना। ____ हमने गले को भिगोकर संतोष कर लिया। जीभ पर कई बातें आकर खड़ी थीं। किन्तु बंदूक की नोंक का भय, हम पर अभी भी सवार था। .
थोड़ी देर बाद भूख सताने लगी। उतने में तो डाकुओं ने प्रवास
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - वापिस प्रारंभ कर दिया।
लगभग ढाई बजे वापिस पड़ाव डाला गया। डाकुओं ने एक गठरी में से बासी रोटियां निकाली। किन्तु उनकी हालत देखकर ही हमारी भूख भाग गयी। ___हमने कहा "भूख नहीं है।"
डाकुओं का सरदार अब चीख पड़ा "खाये बिना प्रयाण कैसे हो सकेगा? चलो, हम साथ में बैठकर खा लेते हैं।"
हम मन मारकर टुकड़ा-टुकड़ा खाने लगे। पानी की कमी थी। दो-दो बूंट पानी हमारे हिस्से में आया। डाकू अब निर्भय थे। आराम शुरु हुआ। सभी अपनी-अपनी कहानी सुना रहे थे। किन्तु हमारे पर तो अभी भी चौकीदारी जारी थी। एक बंदूक तो बराबर हमारे सामने खिंची हुई रहती थी। हम बोले "अब हम कहाँ भागकर जाने वाले हैं? बंदूक की नोंक को जरा दूसरी ओर रखो, तो हमारे जीव को कुछ शान्ति मिले।"
डाकुओं के साथ थोड़ी टेढी-मेढी बातें हुई, मुख्य बात को पूछने की हिम्मत बहुत देर से आई। अंत में हमारे में से एक ने पूछा- "इन चंबल की घाटियों से हमारा छुटकारा कब होगा?" डाकू हंस पडे। इस हास्य की आवाज भी खतरनाक थी। जवाब मिला-"फिरौती के लिए तुम्हारा अपहरण हुआ है। तुम्हारे मां-बाप से मुंह मांगी रकम लेने के बाद ही हम तुम्हें आजाद करेंगे।" .
बेचैनी भरा दिन पूरा हुआ। प्रकृति की मुक्त हवा में, विश्रान्ति के स्वप्न हमारी आंख में खेलने लगे, किन्तु उतने में तो प्रयाण पुनः प्रारम्भ हुआ।
डाकुओं की दूरदर्शिता को देखकर हम दंग रह गये। वे पड़ाव में गिरे हुए बीड़ी के टुकड़ों एवं माचिस की तिलियों को दूर-दूर घाटियों में फेंकते थे।
. सर्दी की रात की ठंडी हवाएँ पुनः शुरु हुई। चंबल की घाटी में सर्दी की रात, मानो बर्फ की वर्षा से प्रारम्भ होती है, ऐसी धड़कन से हमारा शरीर कांपने लगा।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? डाकू भी आखिर मानव थे। थैले में से कंबल निकालकर हमें ओढने के लिए दिये। उनकी दृष्टि से अब कठिन से कठिन प्रवास शुरु हो रहा था। चोर की तरह आगे बढ़ने की कठोर सूचना के बाद पैर आगे चल पड़े। हाथ में या साथ में प्रकाश का कोई साधन नहीं था। अंधेर में प्रयाण शुरु हुआ। खड्डे आते, पत्थर आते, पर्वत आते किन्तु चलने से ही छुटकारा था। हमारी स्वतंत्रता को बंदूक की नोंक के आगे शरणागत होना ही पड़ा था।
हमारी टुकड़ी के आगे एक डाकू चलता था। रास्ते के पहचान की जिम्मेदारी उसके सिर पर थी। आधे-पोन घंटे की कमर-तोड़ भाग-दौड़ के बाद हमें दूर-दूर दीये दिखे। अंधेरे में दिखाई देते यह दीप हमें आशाप्रद लगे, किन्तु वह आशा भी मर गयी। टिमटिमाते दीपों की दिशा को छोड़कर डाकू दूसरी ही दिशा में चलने लगे। | इस प्रवास में खेतों में खड़ी फसल को पैरों से चीरनी पड़ी। हम भी डाकुओं की चिंता को जान गये। लगभग नौ बजे हमारा प्रयाण रुका। डाकू किसी की प्रतीक्षा में थे। हमें लगा-'रात यहीं बितानी पड़ेगी' किन्तु उतने में एक डाकू आ गया। हमें आश्चर्य हुआ। वह थोड़ा सा सामान लेकर आया था। उसमें पानी भी था, नमक-मिर्च भी थी। वह रास्ते के खाने की सामग्री थी। डाकू खाना खाकर डरते हदय से सोने लगे। हमें भी आराम करने के लिए सूचना दी।
परन्तु बेचैनी के बीच चैन कहां? हमारी आंख के सामने तो सुबह की लूट का करुण दृश्य घूम रहा था। अभागिन ये माताएं अपहत पुत्रों के | पीछे कैसा करुण रुदन कर रही होंगी? स्वजनों की सिसकियां कैसी ददिली होंगी? ऐसे अनेक विचार हमारे हदय में घूम रहे थे। काले आकाश के बीच में भी हमें दूर-दूर ध्रुव तारे के स्थान पर हमारी अडिग श्रद्धा दिखाई देती थी। हमारे अन्तःकरण में शंखेश्वर का अजपा-जप अजीब अभयता भर रहा था।
नीरव-रात गहरी होती गयी। हमारी नींद कहीं खो गयी थी। दूर-दूर
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गाड़ी के होर्न की धीमी आवाज और बहुत ही कम प्रकाश हमारी आंखों को आशा की किरण बताकर अदृश्य हो जाते थे। एकाध गाड़ी यहाँ आये तो ! किन्तु यह संभव कहाँ था?
मध्यरात्रि हुई, ना हुई, डाकू वापिस तैयार हो गये। एकदम प्रयाण की तैयारी हो गयी। हमें भी तैयार किया गया।
मध्यरात्रि की कठिनाई भरी मुसाफिरी वापिस शुरु हुई। दूर-दूर सड़क की दिशा की ओर बढ़ रहे हों ऐसा हमें आभास हुआ। गाड़ी का होर्न सुनते ही डाकू खड़े रह जाते थे। थोड़ी देर बाद सड़क आयी। हम सब बहुत ही सावधानी से सड़क पार कर एक खेत के पास खड़े रहे। लगभग तीन - चार घण्टों की भागदौड़ में आराम का अनुभव ही नहीं हुआ।
खेत गन्ने का था। फसल बहुत घनी एवं उन्नत थी। डाकू उसमें घुस गये। वह थोड़ी देर जाकर खड़े रहे। गन्ने की फसल चारों ओर खड़ी थी। डाकू किले के बीच खड़े हों, ऐसी निर्भयता अनुभव कर रहे थे। वहीं सोने का आदेश दिया।
हम सभी सो गये। कठोर परिश्रम किया हुआ था, इसलिए नींद जोरदार आयी। दूसरे दिन का सूर्योदय हुआ, तब यातना भरे चौबीस घण्टे पूरे होने का संतोष हम न मान सके, क्योंकि अब आनेवाली तकलीफों से हम अनजान थे। चंबल की घाटियों में दौड़धूप चालु ही रहा। दूसरा दिन पूरा हो गया। तीसरा एवं चौथा दिन भी उदय होकर अस्त हो गया । पांचवा दिन भी आया और गया किन्तु चंबल की घाटी हमें लम्बी और अधिक लम्बी लगने लगी। इतने सफर के बाद भी उसका अन्त नहीं आ रहा था। इन दिनों में हम डाकुओं के साथ ठीक-ठीक हिलमिल गये थे ।
हम चारों के नाम से डाकू परिचित हो गये थे। वो हमें राजेन्द्र, नवीन, सुरेश और चीनुभाई के नाम से ही बुलाते थे। हम भी ज्यादातर डाकुओं को नाम से ही बुलाते थे। गोपी नाम का जो सरदार था, उसे हम ठाकुर कहकर ही बुलाते थे। हमको उसकी मानवता का भी अनुभव हुआ था। हमारे में से एक के चप्पल जब टूट गये, तो दूसरे दिन हमें केनवास
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बूट दिये।
• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
एक दिन बातों ही बातों में बात निकली। डाकुओं ने कहा, "तुम्हारे घरवालों को चार लाख रूपये फिरौती देकर तुम्हें मुक्त कराने की बात कही है। अब जो होगा वह सही । "
तब हमने कहा 'हमारे परिवारजन एक लाख भी इकट्ठे करने की स्थिति में नहीं हैं।" तब डाकुओं ने कहा, "हमें बनाने की कोशिस रहने दो। तुम्हारे में से अकेले मफतलाल ही चार लाख रूपये देने में समर्थ हैं।" हमें लगा, " इनको कैसे समझाया जाये कि मुम्बई में कोई एक ही मफतलाल नहीं है, जो करोड़पति हो ।
एक बार हमने कहा कि, "तुम्हें छोड़ना हो, तब हमें छोड़ना किन्तु एक पत्र तो लिखने दो, जिससे हमारे मां-बाप को कुछ शान्ति मिले। | डाकुओं ने अन्तरदेशीय पत्र भी दिया। हमने उसे लिखा भी सही ! परन्तु वह पोस्ट नहीं हुआ। हमारे आगे ही उसे जलाया गया था।
चंबल से बाहर की गतिविधियों की जानकारी रखने की इनकी चतुरता वास्तव में दिल को आश्चर्यचकित कर देती थी। एक दिन उन्होंने कहा कि, 'हमारी पकड़ में से तुम छूट नहीं पाओगे। तुम्हारे स्वजनों ने पुलिस थाने में शिकायत लिखाई है। विनोबा भावेवाले तुम्हें मुक्त कराने हेतु माथा-पच्ची कर रहे हैं, किन्तु यह तो चंबल की घाटी है। चाहे कितनी भी मेहनत करेंगे, हमारा पता भी नहीं जान पायेंगे।
पांचवे दिन हम चलते चलते थक कर चूर हो गये थे। रसोई सामग्री में भरपूर सामान आया, जिससे हमें, हमारी मुक्ति के लिए दीर्घ अवधि का थोड़ा ख्याल आया। एक बार खीर खिलाते डाकुओं ने कहा " पैसे तो तुम्हारे बाप के है ना?"
अब हम से रहा नहीं गया। एक ने कहा, " ठाकुर को पूछ के तो देखो! कितने में पटते (निपटते हैं? अपने प्रत्येक के मां-बाप 10-10 हजार निकाल सकने की क्षमता वाले हैं।"
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बातचीत शुरु हुई, किन्तु लाखों की यह आशा चालीस हजार में कैसे संतोष करे? दो-दो दिन की बातचीत के बाद हम 75 हजार पर आकर अटके और डाकू दो लाख पर !
एक रात डाकुओं में भय-भरा सन्नाटा छा गया। दूर-दूर से पुलिसों की लाइटें चमकने लगीं, किन्तु डाकुओं के चंबल की घाटियों के भेदी ज्ञान के आगे पुलिस की क्या क्षमता ?
भयाक्रान्त डाकुओं ने फिर से बातचीत शुरु की। हमारे में से राजेन्द्र ने एक लाख रूपये लाकर हमको छुड़वाने का तय किया। जाने के लिए छः तारीख तय हुई, लेकिन 5 तारीख को पुनः सौदा टूटता दिखा।
उस रात हम स्थान परिवर्तन कर रहे थे, उतने में एक डाकू आया । उसने ठाकुर से कहा, ‘“इतने सस्ते में निपटाओगे? मैं बी.ए. पास डाकू हूँ। इनके पते मुझे लिखवाना । में मुम्बई से पूरी जानकारी लेकर बताऊँगा ।
छः तारीख की शाम तक बी.ए. पास डाकू की बहुत प्रतीक्षा की, | लेकिन वह हमारे नाम-ठाम का पता लगाकर नहीं आया। डाकुओं ने हमारे माता-पिता को एक पत्र लिखवाकर उसके नीचे हमारे हस्ताक्षर करवाये । उसमें हमे लिखना पड़ा कि, 'यदि पुलिस की कार्यवाही नहीं हटाओगे तो हमें मुक्ति नहीं मिलेगी। हमारी सुरक्षा के लिए भी पुलिस का पहरा हटाने का प्रयास करना । '
ठाकुर की असमंजसता का अब पार नहीं था। बी.ए. पास डाकू के भरोसे राजेन्द्र को अभी तक रवाना नहीं किया था और उन भाई साहब को मुंह बताने की भी फुर्सत नहीं थी। दूसरी तरफ सिर पर भय के बादल बढ़ते जा रहे थे।
कंकर कंटकों ने पैरों को लहुलुहान कर दिया था। दो-ढाई बजे बेटरी का प्रकाश आया। सभी डाकुओं में हड़कंप मच गया। किन्तु थोड़ी देर में यमुना की घाटियाँ आईं। इन में से होकर छिपते छिपते सभी चंबल की अभयता में कूद पड़े। अब दो दिन तक यहां कैसा भय? डाकुओं ने आराम का श्वास लिया। डाकुओं को सात तारीख की रात को एक लाख
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का सौदा फिर याद आया । हममें से राजेन्द्र ने बात चलाई। निर्धारित अवधि की तारीख राजेन्द्र को बहुत नजदीक लगी। खुद आगरा जाये । स्वजन यदि वहां से मुम्बई गये हों तो खुद को मुम्बई जाना पड़े। अन्त में मुश्किल से तारीख तय हो गई। स्थान भी तय हो गया । 12 तारीख को राजेन्द्र को एक लाख रूपये नकद लेकर कमतरी चन्द्रपुर आने का तय हुआ।
हमें बातचीत की सफलता से अपनी मुक्ति की आशा लगी। चार लाख का सौदा एक लाख में निपटा, इसमें हमको हमारी श्रद्धेय मूर्ति का विश्वास और नवकार के जाप का अदृश्य हाथ ही कारण लगा ।
आठ तारीख को ठाकुर ने अपने हाथ से रोटियां बनाकर हमे खाना खिलवाया। राजेन्द्र को उन्होंने सौ रूपये एवं थोड़े खुले पैसे (रेजगी) किराये के लिए दिये। दोनों पक्षों की ओर से शपथ - विधि हुई । ठाकुर ने लाख रूपये में अपहतो को छोड़ने एवं कोई भी गलत खेल नहीं खेलने की सौगंध ली। राजेन्द्र की ओर से धोखा हुआ तो ठाकुर ने सुरेश, नवीन और चीनुभाई पर बन्दुक की नाल से गोली दागकर खतम करने का मजबूत निर्णय भी बताया। राजेन्द्र ने भी वचन दिये। इस बात से पुलिस को अनजान रखकर, दी गई अवधि पर हाजिर होने का प्रण लिया, और हम तीनों की आंसुभरी विदाई लेकर राजेन्द्र फिरौती की रकम लेने अकेला रवाना हुआ।
सौदे में दो दिन का विलम्ब हुआ। इतनी देर में तो डाकुओं को गिरफ्तार करने हेतु चंबल के चारों ओर एक ओर हजार पुलिस की फौज सजग हो गयी । ठाकुर लाख के स्वप्न देख रहा था, किन्तु प्रभु भक्ति की शक्ति कोई अलग ही चमत्कार बताना चाहती थी। 28 दिसंबर को हमने चंबल की घाटियां देखीं। आज 8 जनवरी थी । अर्थात् चंबल में हमारा ग्यारहवां दिन था। आज दोपहर डाकुओं ने राजेन्द्र को आगरा जाने के लिए छोड़ दिया था, किन्तु इस प्रकार उन्होंने एक प्रकार का संकट मोल लिया था। चंबल की चारों ओर लगाई गई पुलिस देख ले तो पूरी बाजी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - चौपट होने की संभावना थी। ठाकुर सावधान हो गया था। आसपास के हालचाल से वाकिफ रहने हेतु ठाकुर ने थोड़े डाकुओं को छिपा दिया था। हमको अब अपनी चिन्ता नहीं थी। राजेन्द्र की कुशलता के लिए हम बार बार प्रकट प्रभावी श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की प्रार्थना करते थे। महामंत्र का जाप चालु ही था। राजेन्द्र की कुशलता ही अब हमारी कुशलता थी। उसे पुलिस की खड़ी फौज के बीच में से निकलकर आगरा पहुंचना था।
दोपहर दो बजे राजेन्द्र ने चंबल से विदा ली थी। राजेन्द्र लगभग साढ़े छः बजे भादरण स्टेशन के सिग्नल को देखकर हर्ष विभोर बन गया। इन चार घण्टों का कठिन प्रवास भगवान श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ और महामंत्र नवकार की सहायता के बिना फलीभूत होना मुश्किल था। राजेन्द्र की अडिग श्रद्धा अभय-कवच बन गयी और वह सही-सलामत रूप से स्टेशन पर पहुंच गया। गाड़ी मिलने की संभावना नहीं थी। छः बजे थे और गाड़ी का समय साढ़े पांच बजे का था, फिर भी राजेन्द्र ने प्लेटफॉर्म पर पैर रखा और गाड़ी की सीटी सुनाई दी। जानने को मिला कि आज गाड़ी आधा घण्टा विलम्ब से थी। अन्तर के आंगन में विराजमान श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ दादा को मन ही मन नमन कर राजेन्द्र गाड़ी में बैठ गया।
गाड़ी आगरा की तरफ रवाना हुई। छः से रात दो बजे तक का समय राजेन्द्र ने विचार समुद्र में गोता खाते हुए पूरा किया। सुबह का दृश्य उसकी आंखों के सामने ही था। सुरेश, नवीन एवं चीनुभाई अभी चंबल की चंगुल में ही थे। उनका विचार इसकी आंखों को, इसके अंतर को आराम करने नहीं देता. था। आगरा पहुंचते ही स्वजनों में फैलनेवाले विस्मय की भी वह कल्पना कर सकता था। ___वह दो बजे आगरा पहुंचा। राजेन्द्र सीधा ही यात्रियों की खोज में निकला। स्टेशन मास्टर से पूछताछ करने पर उन्हें राजेन्द्र पर शक हुआ कि क्या इन डाकुओं की लूट अभी तक शेष है!
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राजेन्द्र ने बात को स्पष्ट किया। चंबल की घाटी में अपहृत हुए युवकों में से ही एक राजेन्द्र को देखकर मास्टर के आश्चर्य का पार नहीं रहा । वह उसे रामनारायण गुप्ता के वहां ले गये। अपहत युवकों के सगे सम्बंधी गुप्ता के घर पर ही थे। आयंबिल का तप ! महामंत्र नमस्कार का जप ! और दादा शंखेश्वर का रटन। तप जप और रटन के अखंड त्रिवेणी संगम से गुप्ता का घर श्रद्धामन्दिर बन गया था। जब तक गुम हुए युवक न मिलें तब तक श्रद्धा की शरण न छोड़ने की सभी की तैयारी थी । राजेन्द्र ने गुप्ता के घर प्रवेश किया और सभी फटी आंखों से उसे देखने लगे। शंका-कुशंकाओं की अनेक परछाइयां सभी की आंखो के सामने से गुजरने लगीं।
" रे ! राजेन्द्र अकेला ! सुरेश का क्या हुआ? नवीन कहां है? चीनु नहीं आया?" यहां का वातावरण और सगे-संबंधियों के ऊँचे स्वरों को देखकर ही राजेन्द्र की आँखों में पानी भर आया। उसका आगमन अभी कइयों को एक आश्चर्य लगता था। पुलिस में खबर देने के लिए टेलीफोन के नंबर घुमाने की तैयारी देखकर राजेन्द्र बोल उठा, 'ठहरो ।'
और राजेन्द्र ने अपनी वचनबद्धता की बात की। सभी के हाथ नीचे हो गये। दूसरा हो भी क्या सकता था? धर्मसंकट था। एक ओर सरिता एवं दूसरी और सिंह का घाट था। किस संकट से बचा जाये ?
राजेन्द्र के सिर पर लाख रूपये इकट्ठे करने की भारी जिम्मेदारी थी। इस जवाबदारी को भूलना अथवा विलम्ब करने का आखिरी अंजाम तीन युवकों की मौत ही थी । लाख रूपये इकट्ठे करने हेतु मुम्बई का सम्पर्क अनिवार्य था। राजेन्द्र ने टेलीफोन घुमाना प्रारंभ किया किन्तु विधि के मोड़ों की इसे क्या खबर थी? जिस अदृश्य शक्ति के चमत्कार को प्राप्त कर वह स्वयं आगरा पहुंचा था, उसका मुख्य चमत्कार बाकी ही था। राजेन्द्र को पैसा इकट्ठा करते छोड़कर अब कुछ चंबल की घाटी के बारे में बात करें।
चंबल के चारों ओर हजार की संख्या में पुलिस पहरे से सज्ज थी ।
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ऐसी घटना अभी तक चंबल ने देखी नहीं थी, और इस बार पुलिस का पंजा खतरनाक था। डाकुओं के कई रिश्तेदारों को पुलिस ने कंद कर लिया था। पल-पल डाकू पुलिस के सिकंजे में फंसते जाते थे। उत्तरप्रदेश की सीमा पर अडीग दिवार बनकर पुलिस खड़ी रह गयी थी। मध्यप्रदेश में डाकू भाग न सकें, इसलिए तो जमुना नदी की नाकाबंदी थी ही । पुलिस चाहती तो एक-एक करके कई डाकुओं को गिरफ्तार कर सकती थी। किन्तु ऐसा करने में अपहत युवाओं की जान को जोखिम में डालना
था।
ठाकुर और अन्य तीन युवक तो चंबल की रहस्यभरी घाटियों में छिपे हुए थे, किन्तु पल-पल खतरे के जो समाचार आ रहे थे, उससे ठाकुर अत्यन्त चिन्तामग्न था। हम सुरेश, नवीन एवं चीनुभाई, ठाकुर का हताश एवं भग्न हृदय देखकर बिगड़ती हुई परिस्थितियों को समझ गये थे, किन्तु हमें तो मुख्य चिन्ता राजेन्द्र की थी।
एक डाकू आया, वह हार का संदेश लाया था। गोपी ठाकुर के पूरे कुटुम्ब - उसकी मां, पत्नी, बेटे और साले को पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया था। अपहत युवाओं के लिए अपने को इतना बड़ा संकट सहना पड़ेगा, ऐसी ठाकुर को कल्पना भी नहीं थी । शान्ति मिशन की दौड़ भाग उसकी आंखों के सामने डोल रही थी । एक जमाने के जुल्मी डाकू सिलदारसिंह और लोकमन के जुल्म उसको याद आने लगे। उसे लगा, 'इन सभी का पाप क्या मुझे ही भुगतना पड़ेगा?'
डाकू आसपास की प्रजा एवं गाँवों के विश्वास के सहारे से ही गुप्त रह सकते थे। प्रजा एवं किसान भी बारी-बारी से डाकुओं को समझाने लगे कि, "गोपी! अब मजा नहीं है ! युवकों को छोड़ दो, नहीं तो अनदेखा भी देखना पड़ेगा । "
ठाकुर को बी.ए. पास डाकू पर बहुत गुस्सा आया। यदि छः तारीख को राजेन्द्र को भेज दिया होता तो आठ-नौ तारीख तक लाख रूपये हाथ में आ जाते, यह पुलिस का पहरा उठ गया होता। किन्तुं स्वयं लोभ की
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लहर में फंसा और आज वातावरण एकदम बिगड़ गया। ठाकुर का साला हिरासत में था। उसने पुलिस को वचन दिया कि 'तुम आज मुझे छोड़ दो! कल यदि युवक मुक्त न हो जायें, तो तुम मेरी लाश पर दंगा खेलना।" डाकू का वचन अर्थात् वचन ! डाकू छोड़ा गया, और वह चंबल की घाटियों की ओर भागा।
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नौ तारीख का पूरा दिन ठाकुर के लिए परेशानी भरा था। हम देखते थे किं, वह बात करते-करते गरम हो जाता था। सभी हमारी मुक्ति की ही बात कर रहे थे। किन्तु ठाकुर को कैसे भी करके बारह तारीख तक बात आगे बढ़ानी थी। जिन युवाओं के लिए इतना - इतना खर्चा किया, उन्हें एक पैसा भी लिए बिना छोड़ना, उसका हदय मानता नहीं था ।
उतने में शाम के समय एक डाकू आया, वह ठाकुर का साला था। उसने सीधी ही आज्ञा दी, "गोपी, तुम इन युवाओं को मुक्त कर दो! या फिर मुझे खत्म कर दो! लो, यह बन्दूक ! " ठाकुर ने पूरी बात सुनी। साले की समर्पण की प्रतिज्ञा के आगे झुकने के अलावा उसे कोई सहारा दिखाई नहीं दिया।
कइयों की सहानुभूति गुमा बैठे डाकू जल्दी निर्णय लेने में अशक्त थे। साले के लिए पल-पल कीमती था। उसने दूसरी बार कहा ' गोपी! विचार क्या कर रहे हो ? पकड़ा गया तो जीवन भर की कमाई मिट्टी में मिल जायेगी। इस बार पुलिस इस प्रकार कोपायमान हुई है कि, एक डाकू जीवित नहीं रह सकेगा ! और मेरे लिए तो मेरे वचन की कीमत है। या तो निर्णय ले, या ले यह बन्दूक ! और कर दे मुझे खत्म!" और उस डाकू ने हवा में बन्दूक के एक-दो धमाके किये। बाद में उसने बन्दूक की नाल अपनी छाती की ओर रखी। दूसरे ही क्षण खेल खत्म हो जाता किन्तु गोपी खड़ा हो गया। साले की बन्दूक छीनकर उसने युवाओं की मुक्ति मान्य रखी!
हम तो सात बजे ही एक घाटी की ओट में सो गये थे। बारह तारीख से पहले मुक्ति की तरफ देखना भी व्यर्थ था। वहां अचानक ही
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•जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
ठाकुर ने हमें जगाया। हमें लगा, वापिस भटकन कहां से आयी ?
उतने में तो ठाकुर को आवाज आई "हम तुमको मुक्त करते हैं, तुम अभी ही चले जाओ।"
यह क्या! यह सत्य था कि स्वप्न ! हम आंखें मसल रहे थे, आज नौ तारीख की रात है। राजेन्द्र इतना जल्दी आ गया ? लाख रूपये की फिरौती क्या डाकुओं को मिल गयी? वहाँ तो गोपी वापिस बोला, "खड़े हो जाओ! हम तुमको मुक्त कर देते हैं। "
अप्रत्याशित मुक्ति के पीछे के रहस्य का हम विचार करें, इससे पहले ही गोपी के साले एवं दो तीन किसानों ने हमको सहानुभूति बताई और हम उसी रात चंबल की घाटी को सलाम कर चलते बने।
कौन सी शक्ति ने हमको मुक्ति दिलाई ? चंबल की चंगुल में से हमको छुड़ाने का भार किसने वहन किया? हमें समझ में नहीं आ रहा था ! प्रश्न का जवाब हमने आकाश के तारों से पूछा, तो जवाब के रूप में हमारे कानों में "महामंत्र" के शब्द घूमने लगे और आंखों के सामने शंखेश्वर पार्श्वनाथ के इस मन्दिर की एवं मूर्ति की अभय देने वाली आकृति उपस्थित हो गयी !
आठ बजे प्रारंभ किया वह प्रवास एकदम मध्य रात 12 बजे तक अनवरत चार घंटे चला और एक गाँव में हमारा आतिथ्य तय हुआ । चार घंटे के इस प्रवास में जमुना का छाती तक पानी आ गया था, किन्तु इस समय तो उस में भी सुख का अनुभव हो रहा था । कीचड़ भरे खेत भी पार किये । कोई राह, बिना कंकर-कांटों की नहीं थी। फिर भी हमें वह मार्ग मक्खन समान लगा । हम दस जनवरी को सुबह आगरा पहुंचे। हमारे इस अप्रत्याशित आगमन को राजेन्द्र और स्वजनों ने हर्ष के आंसुओं से अभिनन्दित किया। एक कमरे में हम सब थोड़ी देर रोते ही रहे। चंबल की घाटियां अभी तक आंखों से दूर नहीं होती थीं। कुछ अनुभव, कई प्रसंग, ऐसे बन जाते हैं कि, मणिमुक्ता की तरह उनका संरक्षण भी दिल की तिजौरी में ही हो सकता है।
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
चंबल की उन खतरनाक घाटियों में बिताये हुए बेचैनी भरे 13 दिन और बेचैनी में भी, अभय देने वाली, महामंत्र श्री नमस्कार एवं श्री शंखेश्वरजी की दैविक शक्ति भी एक ऐसा ही प्रसंग है। दिल की तिजौरी में हम इसका संरक्षण करेंगे और अंधकार एवं आपत्ति का मार्ग आयेगा, तब इस तिजौरी में से, इस मणि मुक्ता के प्रकाश से राह को प्रकाशित करेंगे और प्रकाशयात्री बनने का गौरव हांसिल करेंगे।
लेखक - पू. आ. श्री. विजयपूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.
'रिवॉल्वर जब खिलौना बनता है।
सूर्य का उदय अभी-अभी ही हुआ था। महाराष्ट्र की धरती के दो शहर धूलिया एवं पांचोरा का राजमार्ग वाहनों के आने जाने से जीवंत लग रहा था। आज से 50-75 वर्ष पूर्व इस राजमार्ग पर तरह-तरह के वाहन यात्रा करते थे। इसमें एक घोड़ागाड़ी में कुछ युरोपियन एवं पक्के जैन श्री खीमजीभाई हीरजी लोड़ाया, धूलिया से पांचोरा जा रहे थे। खीमजीभाई का अंग्रेजी भाषा पर अच्छा प्रभुत्व था और व्यापार की दृष्टि से उनका परदेशी जनता के साथ कभी कभी सम्पर्क होता था। इसी कारण आकर्षक अंग्रेजी भाषा वह बोल सकते थे।
खीमजीभाई को महामंत्र नवकार पर भारी आस्था थी। वे मानते थे कि व्यापार धंधे के लिए परदेशी जनता के साथ सम्पर्क रखने के बावजूद भी वे जैनत्व को टिका सके थे, वह प्रभाव महामंत्र का ही था। जिसके कारण वे नियमित नवकार मंत्र का जप करते थे और जब परदेशी प्रजा को मांसाहार की भयंकरता समझाने का मौका मिलता, तब नवकार मंत्र का स्मरण कर इस मौके को झड़प लेते थे ।
युरोपियनों के साथ धूलिया से पांचोरा जा रहे खीमजीभाई की बातों का विषय था- " भारतीय संस्कृति की भव्यता" । घोड़ागाड़ी की मुसाफिरी के खुशनुमा वातावरण में अभी चर्चा का रंग जमा ही था, उसमें एकाएक बाधा पड़ी। वे युरोपियन शिकार के बड़े शौकिन थे। उसमें भी जब इनकी
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नजर दूर-दूर दौड़ते हुए एक हिरण के वृन्द पर पड़ी तब वे अपनी रिवॉल्वर को तैयार करने लगे। खीमजीभाई इन सभी का इरादा तुरन्त ही समझ गये, इसलिए उन्होंने कहा, "भारतीय संस्.ति में एक महत्त्व की बात कही है कि, 'जो वस्तु लेने के बाद पुनः वापिस लौटाने हेतु यदि हम समर्थ नहीं हैं तो, वह वस्तु हमें नहीं लेनी चाहिये! इस एक सिद्धान्त का ही यदि हम सब अमल कर दें तो, यह दुनिया स्वर्ग से भी अधिक सूहावनी हो जायेगी।"
युरोपियनों के मन पर शिकार की कड़ी धून लगी थी, फिर भी उन्होंने कहा, "इसमें क्या बड़ी बात है? जो नहीं दे सकते, वह नहीं लेना" इसमें कौन सा बड़ा दर्शनशास्त्र है?" खीमजी भाई ने कहा "तो | ऐसा करो, तुम मुझे वचन दो, कि जो लेकर हम वापिस नहीं दे सकते हैं, उसे लेने का कभी प्रयास भी नहीं करेंगे।"
युरोपियनों को यह बात एकदम सरल लगी। उन्होंने तुरन्त कहा, "जाओ, दिया वचन। जो वस्तु लेने के बाद वापिस नहीं दे सकते उसे कभी नहीं लेंगे।"
खीमजीभाई ने रहस्य का स्फोट करते हुए कहा, "तो अब यह रिवॉल्वर मुझे दे दो, तो ही तुम वचन का सही पालन कर पाओगे। तुम्हारे वचन पालन में रिवॉल्वर बाधक बनने जैसी है।"
युरोपियनों की आंखें आश्चर्य से भर गयीं। उन्होंने कहा "उस हिरणों के वृन्द को देखते ही शिकार का हमारा शौक जागृत हो उठा
और उसी क्षण में रिवॉल्वर तुम्हें कैसे दे सकते हैं? और इस नियम के साथ रिवॉल्वर का सम्बंध भी क्या?" खीमजीभाई को लगा कि, मित्रों को अब सही सिकंजे में फंसा सकें, ऐसा मौका है। इस कारण उन्होंने कहा, "देखो, इस रिवॉल्वर के द्वारा तुम हिरणों के प्राण लोगे ना? अब लिए हुए प्राण वापिस हिरणों को देकर तुम हिरणों को पुर्नजीवित करने में समर्थ हो? यदि तुम्हारे पास ऐसी ताकत है, तो मुझे रिवॉल्वर नहीं चाहिये, तो तुम शिकार खेलो, इसमें भारतीय संस्:ति को बीच में बोलने का कोई
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
अधिकार नहीं है।"
युरोपियन अब क्षोभित हुए। उन्होंने आश्चर्य अनुभव करते हुए कहा, " खीमजीभाई ! यह तो तुम दांव-पेच का खेल खेले! हमें ऐसा मालुम होता तो हम वचन से बंधे ही नहीं होते। तुम्हारी बात सच्ची, हम वचनबद्ध हैं, यही भी सही है। किंतु यह शिकार की मौज मनाने का मौका कभी कभी मिलता है, इसलिए अपने संबंध झारी रखने हो तो मेहरबानी करके अब दुबारा इस वचनबद्धता को स्मृति में मत लाना।"
खीमजीभाई ने मित्रों की इस चेतावनी की परवाह किये बिना ऐसे शौक को तिलांजली देने हेतु बहुत - बहुत समझाया। किंतु जब उन्हें लगा कि 'मेरे समझाने का कोई अर्थ नहीं निकलेगा' तब मौन हो गये और मन ही मन महामंत्र का जप करने लगे। अपनी आंखों के सामने कोई हत्याकाण्ड खेला जाए, यह बात उन्हें हरगीज मंजूर नहीं थी। ऐसे क्षणों में भी उनका अन्तर कहता था कि, " मारने वाले से बचाने वाले के पास ज्यादा बल और शक्ति का भण्डार भरा हुआ होता है।"
खीमजीभाई ने मन ही मन एक दृढ़ निर्णय करके अन्तिम बार मित्रों को समझाने का प्रयास किया, किन्तु निष्फल ! हिरणों की आवन जावन से सौन्दर्य भरपूर धरती पर युरोपियन रिवॉल्वर साथ में लेकर गाड़ी से उतरे । खीमजीभाई के मन में विचार आया कि, 'अबोल जीवों के खून से धरती न रंगी जाय और पापियों की दुष्ट इच्छा पूरी न हो, इस हेतु नवकार मंत्र का प्रभाव इस माहौल में शक्तिपात करे तो कैसा अच्छा?' इस विचार को बल देने हेतु वे एक पेड़ के नीचे काउस्सग्ग की मुद्रा में खड़े हो गये। इनके अन्तर में से आवाज आ रही थी कि, 'प्रबल संकल्प शक्ति कभी भी निष्फल नहीं जाती है।'
खीमजीभाई काउस्सग्ग मुद्रा में खड़े रह गये और युरोपियन अपने शिकार के शौक को पूरा करने मैदान में आये। हिरणों का समूह जब बहुत ही नजदीक में दिखाई दिया, तब उनके आनन्द का पार नहीं था। उन्होंने फौरन रिवॉल्वर में से गोलियां दागीं। उनके अन्तर में विश्वास था
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कि. अभी ही सात-आठ हिरण गिर पड़ेंगे। किन्तु यह विश्वास एकदम झूठा निकला। मानों अदृश्य शक्ति ने हिरणों को बचाने हेतु हाथ लम्बाया हो, उस तरह गोलियां निष्फल गयीं। हिरणों के कानों में जैसे रिवॉल्वर के धमाके गुंजे ही न हों, उस तरह वह वृन्द अपनी मस्ती में मस्त था। ___धमाका सुनते ही खीमजीभाई ने आंखें खोली और सामने जो दृश्य दिखाई दिया उससे उनके आनंद का पार न रहा। उडते पक्षी को गिराने वाले युरोपियनों की यह रिवॉल्वरें नजर सामने रहे हुए निशाने को साधने में निष्फल साबित हुई थीं। साथ में ही हिरणों का बाल भी बांका नहीं हुआ था।
"हारे हुए जुआरी की तरह युरोपियनों ने नजर के सामने ही रहे शिकार को किसी भी प्रकार प्राप्त करने हेतु गोलियों पर गोलियां छोड़ीं, किन्तु सभी निष्फल! खीमजीभाई अभी काउस्सग्ग ध्यान में ही थे। उनको संबोधित कर उन्होंने निराश होकर कहा "चलो अब आगे बढ़ते हैं, कुदरत हमारी सहायता नहीं कर रही है, इसलिए शिकार का हमारा शौक अधूरा ही रह गया। तुमने कोई मंत्र-तंत्र किया लगता है। नहीं तो हमारी रिवॉल्वरें इस तरह कभी निष्फल नहीं जाती हैं।"
सभी ने घोड़ागाड़ी में स्थान लिया। खीमजीभाई ने कहा, "समझाये न समझे, परन्तु हारकर समझे, वह इसका नाम।" युरोपियन मित्रों के समक्ष उनकी रिवॉल्वरों को खिलौने में बदलने वाली अद्भुत शक्ति के रूप में महामंत्र का उल्लेख करने की अनुकूल बात की राह देखते खीमजीभाई घोड़ागाड़ी में बैठे, तब उनके अंतःकरण का प्रत्येक तार महामंत्र का गीत गा रहा था।
लेखक - प. पू. आ. श्री विजय पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. -जब महामंत्र रक्षक बनता है।
"कदम-कदम पर प्रतिपल जहाँ खून के आंसु उमड़ें ऐसी कंटक-कंकर भरी राह पर चलने वाला जवांमर्द कहलाता है।" विराट एक
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
ऐसा ही जवांमर्द था । " हिम्मत से मर्दा तो मदद में खुदा ।" जिसमें शौर्य होता है, हिम्मत होती है, जवांमर्दी होती है, ऐसे जवांमर्दों की सहायता खुदा भी करना है। विराट में शौर्य था, जवांमर्दी थी, तो फिर इसका रक्षण महामंत्र करे, इसमें आश्चर्य क्या! विसनगर था उसका वतन ! उम्र मात्र पन्द्रह वर्ष !
विराट अभी तो पैदा होकर खड़ा हुआ था ! शैशव का श्रृंगार अभी तो उसके शरीर पर ही था! फिर भी उसके दिलो-दिमाग में नमस्कार महामंत्र के प्रति अटूट श्रद्धा थी। वह महामंत्र का अनन्य भक्त था ! महामंत्र के भक्ति गीत सदैव उसके दिल में गूँजते थे।
एक बार पन्द्रह वर्ष की उम्र में विराट के मन में तीर्थाधिराज शत्रुंजयकी महायात्रा करने की उत्कण्ठा जगी । उसके स्मृति-पट पर भगवान आदिनाथ की अलबेली प्रतिमा खड़ी हो गई। 'दादा' का वह मुखारविन्द ! वह विशाल काया ! वह अनोखी अस्मिता से शोभते अधर ! और करुणा बहाते यह नयन युगल ! ऐसी मधुर स्मृति विराट के दिलो-दिमाग में बैठ गई। मानो शत्रुंजय विराट को पुरानी याद दिला रहा था। उसके उर का ऊर्मि - तंत्र भी मानो उसे यात्रा करने हेतु निकलने की आवाज दे रहा था। उर के ऊर्मितंत्र की आवाज को भला कौन मना कर सकता है?
एक दिन विराट ने शत्रुंजय यात्रा के लिए प्रयाण कर दिया। भगवान आदिनाथ के दर्शन हेतु तरसते उसके तन-मन कुछ आनन्द महसूस कर रहे थे। विराट पन्द्रह वर्ष की उम्र में अकेला यात्रा के लिए निकल पड़ा। उसने विसनगर से शत्रुंजय की ओर जाने वाली ट्रेन में अपनी बैठक जमायी ।
ट्रेन एक के बाद एक स्टेशन से होकर आगे बढ़ रही थी ! विराट का मानस भी कोई सुहावनी स्वप्नसृष्टि की यात्रा में चला गया था।
विराट ट्रेन में बैठे-बैठे भी शत्रुंजय की मानसिक यात्रा कर रहा था। इसके मानसपटल के समक्ष शत्रुंजय का पहाड़ उपस्थित होता था
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? और विराट भक्तिभरे हदय से उसके कंकर-कंकर के प्रति श्रद्धानवत हो जाता था। उसका हदय तीर्थाधिराज की सिढ़ियां चढ़कर भगवान आदिनाथ के रमणीय रंगमण्डप में पहुंच जाता और झुक जाता, दादा की अशरण-शरण चरण में!!!
बस, इस प्रकार ट्रेन आगे बढ़ रही थी और विराट की यह रंगीन स्वप्नों की हारमाला भी आगे बढ़ती जा रही थी। एक के बाद एक स्टेशन को छोड़कर आगे बढ़ती ट्रेन सोनगढ़ स्टेशन पर खड़ी रही।
विराट जिस डिब्बे में बैठा था, उस डिब्बे में से एक जनसमूह नीचे उतरा और एक अज्ञात दिशा की ओर बढ़ने लगा। उस समूह के पीछे विराट भी ट्रेन से नीचे उतरा। आसपास नजर घुमाई और उसकी आंखों के आगे 'सोनगढ' का बोर्ड खड़ा था।
विराट आश्चर्य सहित सोचने लगा, मैं डिब्बे में से क्यों नीचे उतरा? मेरी मंजिल तो शत्रुजय है! और वह डिब्बे में बैठने हेतु वापिस मुड़ा, किन्तु यह क्या! उसके कदम मानो इस डिब्बे की ओर वापिस जाने को सर्वथा मना कर रहे थे और वह समूह जिस दिशा की ओर गया, वहां जाने के लिए तरसने लगे। विराट ने अपने कदम ट्रेन की ओर वापिस | मोड़ने की भारी कोशिस की। उस अज्ञात दिशा की ओर जाने को चाहते हुए कदमों को शत्रुजय की राह की ओर मोड़ने के लिए विराट ने बहुत प्रयास किया, किन्तु वे कदम नहीं माने! वह दिल वापिस नहीं मुड़ा! और विराट ने महामंत्र नमस्कार का स्मरण किया, अलबेले आदिनाथ को याद किया और वह समूह जिस दिशा की ओर जा रहा था, उस ओर अपनी दौड़ शुरू की।
विराट का मन भी आश्चर्य अनुभव कर रहा था कि, शत्रुजय को भेंटकर मृत्युंजय बनने के लिए निकला हुआ में इस प्रकार अज्ञात दिशा की ओर क्यों जा रहा हूँ, मुझे कोई अजीब आकर्षण इस समूह की ओर खींच रहा है। क्या मेरी सोची हुई यह शत्रुजय की सुहावनी स्वप्न-सृष्टि साकार हुए बिना ही इस प्रकार बिखर जायेगी? विराट ने आगे दृष्टि
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - दौड़ाई तो वह समूह आगे ही आगे बढ़ रहा था।
विराट पुनः विचारों की गहरी दुनिया में घूमने निकल पड़ा। "क्या | मेरे दादा से मेरा मिलन नहीं होगा? क्या मैं शत्रुजय के सुखद-स्पर्श से |वंचित ही रहूँगा? नहीं, नहीं, ऐसा करने से दादा का मिलन नहीं होगा।
इस स्पर्श से मैं क्यों वंचित रहूं। इस टोले से अलग होकर यदि मैं | सोनगढ़ की राह पकडूं तो मेरा दादा से मिलन अवश्य होगा और शत्रुजय का स्पर्श भी मुझे अवश्य मिलेगा।'
विराट की विचारमाला रुक गई। उसने चारों ओर नजर डाली, सोनगढ़ स्टेशन के सिग्नल अच्छी तरह दिखाई दे रहे थे। दूर-दूर स्टेशन से रवाना हुई ट्रेन का काला धुंआ और ट्रेन की सीटी की आवाज सुनाई देती थी।
विराट ने वहां से पलायन करने का विचार किया, मन को मजबूत बनाया और उसने सोनगढ़ की ओर वापिस मुड़ने के लिए कमर कसकर मेहनत की, किंतु उसके वे प्रयत्न कामयाब नहीं हुए, इसके कदम स्थिर बनकर रह गये। सोनगढ़ की तरफ वापिस मुड़ने की वे साफ-साफ मना कर रहे थे। अन्त में विराट थक गया। मन और तन के संग्राम में तन ने |मन को शिकस्त दी। विराट इस समूह की ओर नजर डालकर आगे बढ़ने लगा। वह समूह हँसता तो पार्श्व भूमि में मानो एक अट्टहास फैल गया हो, ऐसे माहौल का निर्माण हो जाता था। वह समूह कदम बढाता तो ऐसे |लगता था कि मानो धरती कांप रही हो।
विराट का मन मजबूर था! लाचार था! असहाय था! उस समूह के पीछे जाने को विराट का मन मानता नहीं था, फिर भी कोई अज्ञात बल उसे समूह की ओर धकेलता था और विराट मजबूर होकर उस की ओर जा रहा था।
महामंत्र नमस्कार इसके होठों के आंगन पर खेल रहा था। भगवान आदिनाथ की प्रतिमा उसकी आंखों के आगे प्रत्यक्ष होती थी और तीर्थ सम्राट श्री शत्रुजय का पहाड़ उसके स्मृति-पट पर खड़ा-खड़ा आशिष दे
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
रहा था !!
इस प्रकार नमस्कार मंत्र का रटन करते-करते विराट आगे बढ़ रहा था। समूह एवं विराट में अब ज्यादा फासला नहीं था, वह थोड़ा चला और दूर- सुदूर नजर डाली तो वह समूह रुक गया और वह बातों की महेफिल में मशगूल बना था।
बातों में मशगूल बने समूह में से एक आदमी ने पीछे नजर की तो उसे विराट अपने पीछे आता दिखाई दिया। उसने अपने सरदार से कहा, 'सरदार ! देखो कोई छोटा बालक आता दिखाई दे रहा है! कैसा सुन्दर है!' "हाँ, हाँ, देखो, उस वृक्ष के नीचे से गुजर रहा है ! उसके मुंह पर फैला तेज कैसा मोहक है ! गौर वर्ण ! उसका तन बदन भी कैसा सुरेख एवं सुदृढ़ है। अभी उम्र तो छोटी लगती है, फिर भी उसके मुख पर फैले गांभीर्य का गुण कैसा भव्य लगता है।" लड़के का आकर्षक शरीर देखकर सरदार भी बोल उठा। समूह थोड़ी देर वहां खड़ा रहा, उतने में विराट उनके पास आ गया। समूह के सरदार ने विराट से बात करने के लिए बहुत प्रयत्न किया, किन्तु विराट नहीं बोला, वह तो महामंत्र के जप में लीन बन गया था। विराट शत्रुंजय पर स्थित मन्दिरों के मानसिक दर्शन में लीन हो गया था। अन्त में समूह का सरदार थका और उसने आगे बढ़ने की आज्ञा दी। विराट भी उनके पीछे-पीछे हो गया। समूह आगे बढ़ता जा रहा था। सूर्य अस्त हो गया था । आकाश में उभरे हुए अंधकार के बादल अब अंधकार - जल बरसाने लग गये थे। धरती पर थोड़ा-थोड़ा अंधकार फैल रहा था।
प्रकाश एवं अंधकार में समूह रास्ता काट रहा था। उसके पीछे विराट भी खिंचा जा रहा था। वे अब एक गहरे जंगल को पारकर खुले मैदान में आ गये थे।
एक छोटी सी पहाड़ी के किनारे-किनारे चलने के बाद उस जनसमूह के रहने का स्थान आता था और अंधेरा भी अब गहरा होने से सबने चलने की गति बढायी ।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? पहाड़ी के किनारे-किनारे चलने के बाद एक पगडंडी अलग होती थी। इस पगडंडी के आमने-सामने हरा घास खड़ा-खड़ा डोल रहा था।
उन्होंने पगडंडी पर चलना आरंभ किया, उनके पीछे विराट भी आ रहा था। समूह तो निर्भय बनकर चल रहा था। लेकिन विराट तो अभी नया था, इसलिए वह भय के साथ महामंत्र के जपपूर्वक आगे बढ़ रहा था। वह समूह एवं विराट पगडण्डी पर चलते-चलते एक गहरी पल्ली (बस्ती) के पास आ पहुंचे और अन्दर प्रवेश किया, तब चारों ओर अंधेरा था।
"मंत्र, तंत्र और यंत्र में ऐसी शक्ति छिपी हुई होती है कि, जिसके सहारे अघटित भी घटित हो जाता है। स्वप्न में भी कल्पना न कर सकें, ऐसी वस्तुएं साकार होकर सामने खड़ी हो जाती हैं।
विराट के जीवन में भी ऐसा ही कुछ बना था, इसी कारण तो विसनगर से शत्रुजय जाने के लिए निकला हुआ विराट एक अंधेरी बस्ती में पहुंच गया। वह जिस डिब्बे में बैठा था, उसमें एक लटेरों का समूह भी था। उस लूटेरों ने ही विराट पर वशीकरण किया था।
विराट का रूप-रंग और कोमल वय देखकर उस समूह ने एक ऐसी आकर्षण विद्या विराट पर डाली कि, जिससे विराट को उसकी ओर स्वतः आकर्षण उत्पन्न हो और अपने मन की इच्छा फले। इस लूटेरों के अरमान वास्तव में फलीभूत हुए भी सही। विराट पर छोड़ी गयी इस आकर्षण विद्या ने अचूक कार्य किया और विराट लूटेरों की बस्ती की तरफ खींचा हुआ आया।
सरदार को विराट की आवश्यकता थी, इसलिए उसने विराट को मनाने हेतु उसके चरणों में सुख-सामग्री भेंट करने का निर्णय किया। मखमल की सेज पर विराट को सुलाया गया। अलग-अलग खाद्य सामग्री इसके आगे रखी गयी। किन्तु विराट भक्त था महामंत्र का, उपासक था, जैन शासन का! वह रात को कैसे खाये? दिनभर के चलने की थकान थी! आंखों में नींद नहीं थी, फिर भी विराट सेज पर सो गया।
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मन्त्राधिराज का स्मरण करते-करते विराट सुख शैय्या में लेट रहा था, किन्तु इसकी आंखों में नींद नहीं थी।
काली काली मध्यरात्रि । बस्ती का सुना वातावरण । धरती के अज्ञात कोने में अकेली बस्ती । और इस पूरे पराये वातावरण के बीच स्वयं अकेला!
विराट की आंखों के आगे यह पूरा दृश्य चित्रपट की तरह आगे बढता और उसका हृदय हिल उठता।
धरती पर फैले हुए अंधकार का काला पर्दा धीरे-धीरे दूर हो रहा था और सफेद-सफेद तेज कण आकर धरती को प्रकाशित कर रहे थे। विराट सेज में से बैठ गया। उसने मंत्राधिराज के चरणों में घुटने टेककर प्रणाम किया और वह सिद्धाचल की सुन्दर मूर्ति को मनोमन वन्दना कर
रहा था।
पुनः सरदार के वही प्रयत्न! वही स्नेहयुक्त विनतियां। फिर भी विराट नहीं माना ! उसके मुंह पर फैले विषाद के बादल नहीं ही बिखरे !!!
इस तरह एक दो और तीन दिन बीत गये ! विराट की याददाश्त में जब सिद्धाचल के संस्मरण उमड़ आते तब उसका वियोगी दिल उसके मिलन के लिए रो पड़ता। जब इस प्रकार चारों ओर से आयी विपत्ति की जंजाल विराट का मन फंस जाता, तब वह दौड़ जाता मंत्र सम्राट की शरण में। मंत्र सम्राट की शरणागति से वह आश्वासन का अनुभव करता था !
विराट फिर एक बार विचारों के गहरे समुद्र में कूद पड़ा। 'क्या अब इन विराट जंजीरों को तोड़कर भाग जाना असंभव बात है? क्या भगवान आदिनाथ के पास दिल की दो-चार बातें करने का मेरा ख्वाब खाक होकर उड़ जायेगा? नहीं नहीं, अभी भी जो में मेरे मन को मर्द बनाऊ, मेरे जीवन में युवाशक्ति का जोरदार प्रवाह बहाऊं, तो मेरा यह ख्वाब सिद्ध हो जायेगा। मेरे सोचे हुए अरमान आकार प्राप्त कर सकेंगे।' विराट का विचार प्रवाह रुका और उसने सामने देखा तो सरदार उसके सामने खड़े थे और रिझाने के प्रयत्न कर रहे थे।
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सरदार के प्रयत्न सरेआम निष्फल हुए। उन्होंने बहुत प्रयास किए, | परन्तु विराट के मुंह के चबूतरे पर हास्य का एकाध कबूतर भी दाना चुगने नहीं आया!
विराट पुनः विचारों की दुनियां मे उतर गया, 'जब महामंत्र रक्षक बनता है, तब विपत्तियों के अडिग पहाड़ भी हिल जाते हैं, और इन पर्वतों में विराट दरारें आ जाती हैं!'
विराट की विचारधारा आगे बढ़ी। 'क्या महामंत्र मेरा रक्षक नहीं? किसकी ताकत है कि मंत्राधिराज मेरे पास हो और मेरा बाल भी बांका कर सके? जगत् के विराट तख्त पर ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो इस मंत्राधिराज के सामने टक्कर झेल सके? तो क्या मैं भी महामंत्र को मेरा रक्षक बनाकर और नमस्कार का अभेद्य कवच धारण करके यहां से किसी भी प्रकार से भाग जाने के कार्य में साहस करके आगे बढुं, तो | मेरा कार्य कामयाब नहीं होगा? जरुर कामयाब होगा।'
विराट के अंतर में से एक विराट प्रतिध्वनि बाहर निकली और विराट की अंतर गुफा में वह प्रतिध्वनि गुंजने लगी। इस प्रतिध्वनि ने विराट को नया जोश दिया, नयी जवांमर्दी प्रदान की! उसका दिल किसी | भी प्रकार से अब पल्ली को छोड़ देने हेतु कटिबद्ध बना और अन्त में दृढ़ निश्चयी बना कि, आज तो जरुर इस पल्ली को ठोकर से उड़ाकर चल ही निकलना है तय किये हुए सिद्धाचल की राह पर...! विराट की विचारमाला रुकी। वह किसी भी प्रकार से पल्ली में से भाग निकलकर सोरठ के अलबेले "दादा' को मिलने हेतु दृढ़-निश्चयी बना। विराट को श्रद्धा थी, कि अपने इस महाभारत कार्य को पूरा करने के लिए मंत्राधिराज अवश्य सहायता करेंगे। उसे विश्वास था कि महामंत्र उसमें ऐसा पीठबल भरेगा कि, जिस पीठबल से वह विघ्नों के विराट वारिधि को लांघकर भी अपनी मंजिल को हासिल कर लेगा।
विराट में आज शौर्य फूट पड़ा। उसमें आज एक ऐसी जवामर्दी, एक ऐसा जोश, एक ऐसा विश्वास उत्पन्न हो गया था कि जोश, जवांमर्दी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? और विश्वास के त्रिवेणी संगम पर खड़ा होकर वह नया इतिहास रच सके। आकाश के महासागर में सफर करती सूर्य की नौका सागर-किनारे आ रही थी। झिलमिल होंती सूर्य की रश्मि करीब अस्त होने जा रही थी। संध्या आकाश के आंगन में इन्द्रधनुषी रंगों की रंगोली बना रही थी।
विराट बैठा-बैठा पलायन करने की योजना बना रहा था। इस अंधेरी पल्ली में आये आज उसे तीन दिन बीत चुके थे। इस तीन दिनों में विराट ने पल्ली की समस्त कार्यवाही का सूक्ष्म निरीक्षण कर लिया था। सरदार किस प्रकार बाहर जाता है, बाहर जाने के लिए वह कौन सी कीमीया से द्वारोद्घाटन करता है और किस समय. वह बाहर जाता है, इन सभी बातों से विराट पूरा वाकिफ बन गया था। और इस पूरी जानकारी के आधार पर ही वह अपनी योजना का निर्माण कर रहा था।
पूरी पल्ली निद्रा की गोद में सो जाने की तैयारी कर रही थी, तब विराट भी अपनी शैय्या में लेट गया, उसको अपनी योजना को पूरी करने हेतु पैर भरने थे।
वह महामंत्र का स्मरण करते-करते समय व्यतीत कर रहा था। मध्यरात्रि में विराट उठ बैठा। उसने आसपास एक उड़ती नजर फेंकी तो सब जगह सुनसुनाहट थी। पूरी पल्ली भर नीन्द में थी, सरदार भी घोर निद्रा में था।
विराट ने मन ही मन विचार किया, "मौका सुन्दर है! मेरे मार्ग में रुकावट आये, ऐसा कुछ नहीं है। वह उठा और द्वार की तरफ आगे बढ़ा।
विराट के मन में दुबारा कमजोरी का विचार आंदोलित हो गया. 'क्या मैं यह गलत साहस तो नहीं कर रहा हूँ। योजना यदि पकड़ी गयी तो मेरा आखरी अंजाम मौत के अलावा क्या हो सकता है?' उसके शरीर में भय से कंपकंपी छूट गयी!!! किंतु वह जवांमर्द बन गया। जब महामंत्र | रक्षक बनता है, तब आपत्ति का धुंआ गायब हो जाता है और
सफलता का सूर्य प्रकाशमान हो उठता है। विराट ने महामंत्र का स्मरण |किया! आदिनाथ दादा को दिल में धारण किया और उस कंटक भरे मार्ग
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
पर आगे बढ़ा।
विराट सरदार के पास आकर खड़ा हुआ। उसने भारी सावधानी से सरदार का कोट पहन लिया और वह सरदार के वेश में सज्ज हो गया। सरदार के सिरहाने के नीचे दबाई हुई एक छोटी सी लकड़ी खूब सावधानी से निकाल ली और पल्ली के द्वार की ओर कदम बढ़ाये ।
विराट जब द्वार के आगे आकर खड़ा हुआ तब एकदम मध्यरात हुई थी। श्रद्धेय सच्चा हो, श्रद्धा सच्ची हो और साधना भी सच्ची हो, तो श्रद्धेय, श्रद्धा और साधना के त्रिवेणी संगम पर खड़ा साधक सिद्धि के सर्वोच्च शिखर पर अवश्य पहुंचता है !
विराट भी एक ऐसे त्रिवेणी संगम पर खड़ा था, उसका श्रद्धेय महामंत्र था, महामंत्र के प्रति उसकी श्रद्धा अविचल थी और इसकी महामंत्र की साधना भी अविचल थी !
उसे पल्ली में आये तीन दिन व्यतीत हो चुके थे। विराट तीसरे दिन कटिबद्ध बन गया था कि 'किसी भी प्रकार से बस्ती को ठोकर मारकर गिरिराज की राह अपनाकर, दादा के पास पहुंच जाना है। '
विराट तीसरे दिन की मध्यरात्रि में उठा, वह सरदार के वेश हुबहु से सज्ज होकर द्वार की ओर आगे बढ़ा।
उसने महामंत्र का स्मरण कर दरवाजे को ठोकर दी। ठोकर पड़ने के साथ ही पल्ली का द्वार खुल गया। विराट जब बाहर निकला, तब पल्ली के द्वारपाल विराट को सलाम कर रहे थे।
जब महामंत्र रक्षक बनता है, तब कितनी भी कठिन योजना पूरी हो जाती है।
सरदार के वेश में बाहर निकले हुए विराट की योजना भी क्षेम कुशलता से पूरी हो गई। विराट बाहर निकल गया! द्वारपालों को शंका भी नहीं हुई। वह भी विराट को सरदार समझकर उसकी राह में पत्थर नहीं बने।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बस्ती को ठुकराकर विराट एक खुले मैदान में आ खड़ा हुआ। चारों ओर मानो अंधकार की प्रलय-वर्षा हो रही थी। इस काले अन्धकार को भेदता हुआ थोड़ा-थोड़ा आकाशी उजाला विराट को राह बता रहा था।
विराट के दिल में मंत्राधिराज श्री नमस्कार का "अजपाजप चालु था। इस जप में से बहती बेहद शक्ति के सहारे विराट विरान पथ काट रहा था।
विरान राह! काली मध्यरात्रि! हिंसक पशुओं के आक्रमण का भय! अनजान राह! और खुद अकेला!
इस कल्पना से ही विराट के चेहरे पर दहशत फैल जाती। किन्तु | यह दहशत का दावानल पुनः बुझ जाता। वह विचार करता, 'भले ही मैं
असहाय हूँ, और साथी-सगों से अलग हूँ, किन्तु महामंत्र मेरा रक्षण कर रहा है! फिर भय कैसा? भले ही मेरे आगे राह नहीं , पीछे कोई पगडण्डी नहीं और पास में कोई विरान रास्ता भी नहीं, फिर भी एक फरिस्ता मेरी अंगुली पकड़कर चला रहा है! महामंत्र मेरे आगे तेज गति से दौड़ रहा है! अंधेरी रात में आई विपत्तियों के बीच समुद्र में भी "दादा" आदीश्वर का ध्रुव तारा मेरे जहाज को चला रहा है, फिर दहशत कैसी? फिर भय कैसा?'
रात्रि काफी बीत चुकी थी! विराट भी अब दौड़-दौड़कर थक गया | था। उसके कदम किसी विश्रामस्थल की खोज में थे। उसके नेत्र भी अब थोड़े आराम को चाह रहे थे। कदम आगे बढ़ने से मना कर रहे थे। फिर भी आगे बढ़े बिना छुटकारा नहीं था।
विराट टेकरी के किनारे-किनारे चलकर अब जंगल में आ चुका था। पथ अभी बहुत लम्बा था। मंजिल अभी तो दूर-बहुत दूर थी। फिर भी मंजिल को पाना अनिवार्य था। विराट ने चारों ओर नजर फेंकी, किन्तु आसपास कोई विश्राम कर सके ऐसा स्थान दिखाई नहीं दिया! उसने दूर-सूदूर नजर दौड़ाई, तो एक छोटी-सी देहरी जैसा कुछ आंख के आगे दिखाई दिया।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - विराट ने मजबूर बने हुए मन को भी मनाकर अपना प्रयाण जारी रखा। चलते हुए उसका मन इसी विचार में डूबता था कि, 'महामंत्र के आगे कौन-सी वस्तु असम्भव है। महामंत्र में ऐसी विराट शक्ति छिपी हुई है कि जब वह अन्तर्हित ताकत जगती है, जब उस छिपी हुई विराट शक्ति का ऊर्चीकरण होता है, तब आपत्तियों का पहाड़ हिल जाता है और वह साधक को जाने के लिए रास्ता दे देता है।
विराट सोचने लगा, "क्या मेरे जीवन में घटित हुई यह कंपकंपी भरी और रोमांचक घटना इस बात की साक्षी नहीं देती?
कहां वह अंधकारमय बस्ती और कहाँ उन लूटेरों की प्राणनाशक भीड़ में जकड़ा हुआ मैं! क्या इस गहरे अंधकार में से उजाले में आना संभव था? क्या इस प्राणनाशक कैद को तोड़-फोड़कर स्वतंत्र होने का स्वप्न में भी संभव था? मगर वह सब साकार होकर खड़ा रहता है, जब महामंत्र रक्षक बनता है।'
विराट के कानों में घंटी का मधुर स्वर टकराया। उसने देखा तो खुद देहरी के एकदम पास आ पहुंचा था। एक घटादार वृक्ष की छाया में देहरी खड़ी थी। चार-पांच कदम दूर देहरी का द्वार था। देहरी छोटी, फिर भी रम्य थी।
विराट का तन-मन अब विराम चाहता था। इसने देहरी में थोड़ा आराम करने का विचार किया।
विराट पंक्तियों पर चढकर चोतरे में आराम करने हेतु बैठ गया। देहरी के चारों ओर का वातावरण खूब ही खुशनुमा था। मंद मंद बहता पवन विराट को आनन्द देता था। विराट का मन इस स्थान को छोड़कर आगे जाना नहीं चाहता था, फिर भी आगे बढ़ने के अलावा कोई सहारा नहीं था।
विराट को ख्याल था कि, मंजिल अभी बहुत दूर है और यात्रा भी अभी लम्बी करनी है। वह खड़ा हुआ। चारों ओर का विहंगम दृश्य देखा, तो उसकी नजर दूर-सुदूर से आते हुए एक सिपाही (लूटेरे) पर पड़ी।
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
विराट के रोम-रोम में भय की कंपकंपी छूट गई। उसके तन-बदन पर दाना चुगने बैठे आनन्द के कबूतरों की पांखें फूटीं और उड गये। वह गंभीर बनकर सोचने लगा, 'ओह ! क्या मैं वापिस पकड़ा जाऊँगा? क्या उस अंधकारमय बस्ती का आतिथ्य अभी मेरे सिर पर लिखा हुआ है? मेरा मंत्राधिराज मेरी सहायता नहीं करेगा? क्या किस्मत अभी मेरे पर खुश नहीं है? नहीं, नहीं, इस सिपाही की क्या ताकत है कि, मुझे गिरफ्तार कर सके ? जब मंत्राधिराज मेरा रक्षक है, तब किसकी हिम्मत है। कि मेरे सिर का बाल बांका कर सके ?
विराट ने देखा तो अभी सिपाही ठीक-ठीक दूर था। उसने वहां से तुरन्त भाग जाने का निर्णय किया। दिल के ऊर्मि वाद्य से महामंत्र का भक्तिगीत ललकार कर विराट हिरण की तरह तेज कदम बढ़ाने लगा ।
कहां इस विरान राह से अनजान और मात्र पन्द्रह वर्ष की उम्र का विराट ? और कहां वन जंगलों में रात-दिन घुमता सिपाही ?
विराट की हिरण छलांगें चालु ही थीं! एक श्वास से वह दौड़ा ही जा रहा था, किन्तु एक जानकार सिपाही की नजर पर चढ़ा हुआ बालक कहां तक टिक सकता?
"खड़े रहो!" सिपाही ने एक आवाज दी।
विराट ने देखा, तो सिपाही एकदम पास आकर खड़ा था। अब खड़े रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। विराट खड़ा रहा। फिर भी उसके अन्तर में ईमान एवं जिगर में श्रद्धा थी और दिल में विश्वास था कि चाहे वैसा भक्षक तत्त्व भी साधक को हैरान-परेशान नहीं कर सकता, जब महामंत्र रक्षक बनता है ! विराट निर्भय बनकर खड़ा था। उसके शरीर पर भय की एक पतली सी रेखा भी नहीं खींचाई ! अधर पर अजपाजप" था, मंत्र सम्राट का ! दिल में वह प्यारी तस्वीर खेलती थी, अलबेले आदिनाथ की !
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सिपाही ने सरदार की आज्ञा विराट के आगे पेश की, 'किसी भी प्रकार से आकाश एवं पाताल एक करके भी विराट को गिरफ्तार करो'
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - यह सरदार की आज्ञा थी।
सिपाही ने विराट को कई प्रकार से समझाया कि, 'विराट! जो तुम सरदार के आज्ञांकित होकर रहोगे, तो तुम्हें बस्ती में किसी प्रकार का दुःख नहीं होगा। सरदार खुद अपनी विरासत और बस्ती का सार्वभौमत्व तुम्हें सौंपना चाहते हैं। परन्तु इस सिपाही की प्रार्थना कामयाब नहीं हुई। विराट सामने से सिपाही को समझाने लगा कि, "तुम मुझे गिरफ्तार करके ले जाओगे, इससे तुम्हें क्या फायदा है? मेरे तन-बदन को देखो। अभी मैं बालक हूँ। अभी मैं अविकसित गुलाब हूँ। तुम मुझे पकड़ लोगे, तो मेरे सोचे हुए रंगीन अरमान बिखर जायेंगे। मेरे अरमानों का आलम नष्ट हो जायेगा। नहीं चाहिये मुझे यह सार्वभौमत्व!!! मुझे चाहिये केवल आजादी! अनमोल आदिनाथ और प्राण प्यारा नमस्कार!!!"
विराट इतना बोलकर रुक गया, किन्तु उसके शब्दों में जोश था, नहीं कि आजादी की भीख मांगती लाचारी! सिपाही विराट का जोश देखेंकर स्तब्ध बन गया। वह सोचने लगा कि, 'क्या छोटे बालक में भी ऐसी नीडरता, ऐसी जवांमर्दी, ऐसा जोश और ऐसा उत्साह हो सकता है? क्या ऐसे बालक को गिरतार कर सरदार के समक्ष पेश करना महापाप नहीं? तो फिर में क्यों यह महापाप कर अपनी मानवता को कुचल दूं। जाने दो! नहीं गिरफ्तार करना इस बालक को! सरदार से कह दूंगा कि, 'आसपास की धरती के कण-कण में विराट की खोजबीन की, परन्तु विराट की परछाई भी नहीं मिली!'
सिपाही ने घूर कर देखा तो विराट के मुख पर कोई मंत्र-जप चल रहा था। उसने कहा "तू तेरे तय किये हुए मार्ग पर आगे बढ़ विराट! मैं पल्ली में वापिस जाता हूं और कह दूंगा कि, 'नहीं मिला विराट!' सिपाही
पीछे मुड़ा।
विराट के उर-उदधि में उमंग की ऊर्मियां उछलने लगीं। उसके मुख में से एक आकाश चीरती आवाज बाहर आयी कि, "तब विश्व भर का कोई भी तत्त्व किसी भी समय बाल बांका नहीं कर सकता, जब
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? महामंत्र रक्षक बनता है।"
विराट की मंजिल अब दूर नहीं थी! वह थोड़ा चला, वहां तो 'सोनगढ़' के सिग्नल उसे दिखाई दिये! जब सोनगढ़ के प्लेटफॉर्म पर विराट ने कदम रखे, तब पालीताणा जाने वाली ट्रेन उसकी राह देखती खड़ी थी।
विराट ने उस ट्रेन में अपना आसन बिछाया, तब उसके अंतरंग के कोने-कोने को रोंदकर वायुमण्डल में बहता एक अन्तर्नाद महामंत्र के अद्भुत सामर्थ्य को गाता गाता अनन्त में विलीन हो रहा था
'तब चाहे जैसी अंधकारमय घाटी में फंसे हुए महामंत्र के साधक को राह मिलती है और वह गुमराह हुआ साधक अपनी मंजिल को प्राप्त करता है; जब महामंत्र रक्षक बनता है।'
लेखक - प.पू.आ. श्री वि.पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.
-श्रद्धा और मंत्र की ताकत
श्रद्धा तो आश्चर्यमयी शक्ति सम्पन्ना एक चमत्कारिक वस्तु है। ऐसी श्रद्धा का जिसके पास सहारा नहीं होता, ऐसे इन्सान के सामने भगवान भी खुद खड़े हो जाएं, तो भी इसके लिए पत्थर के पुतले जैसे ही साबित होते हैं। और श्रद्धा का जिसे सहारा हो, ऐसे श्रद्धालु को प्रभु की प्रतिमा दर्शन दे, तो भी इस दर्शन में से साक्षात् प्रभु को प्राप्त करने की धन्यता वह अनुभव कर सकता है। यह ताकत श्रद्धा की है।
ऐसी अतुल-बली श्रद्धा की ताकत और मंत्राधिराज श्री नमस्कार की बेजोड़ ताकत का संगम प्राप्त कर कैसा चमत्कार सर्जित करती है, इसके प्रत्यक्ष वर्णन की यह एक सत्य घटना है। इस घटना के नायक को हम 'जिनदास' के नाम से पहचानेंगे। क्योंकि सही नाम प्रकट करने की इसकी कीर्ति-कामना नहीं है। गुप्तता की गुफा में रहने में खुशी अनुभव करते ये विरले आदमी हैं। ...
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ___ जिनदास को नवकार खानदान से मिला था। इस मंत्र के गहरे रहस्यों की इसे कोई विशेष जानकारी नहीं थी, इसलिये इस महामंत्र पर दिल की गहराई में से ज्ञान गर्भित श्रद्धा का अभिषेक करने का सद्भाग्य उसे कहाँ से मिले? फिर भी सामान्य श्रद्धा के जल बिन्दु छांटने का थोड़ा सौभाग्य तो जरूर जाग्रत था, जिससे वह प्रतिदिन महामंत्र पर अपनी आस्था के आधार पर नियमित जाप करने का व्रत अतिशुद्ध प्रकार से रख सकता था। इस जाप के पलों में बहुत बार इसके हदय में से ऐसी भावना के तरंग उठने लगे कि इस मंत्र का कोई प्रभाव-परचा मुझे देखने को मिले तो कैसा अच्छा! इस भावना की सफलता की प्रतीक्षा में कई पल, दिन, महिने और वर्ष बीत गये। परन्तु भावना के इस तंरगों में संभावना की कोई रंगरेखा वह नहीं ही देख सका।
जीवन में कभी विचित्र क्षण भी आता है, कि जब मनुष्य का सोचा हुआ होता है कुछ, और बन जाता है दूसरा ही कुछ! कई बार दुर्घटना आशीर्वाद में बदल जाती है, तो कभी आशीर्वाद, दुर्घटना की ओर | भीषण मोड़ ले लेता है। जिनदास के जीवन में एक बार ऐसा ही विचित्र समय आया।
जिनदास का एक अजैन मित्र शक्ति का उपासक था और शक्ति उपासक भौपे के साथ उसका अच्छा परिचय था। इस मित्र ने एक दिन जिनदास को कहा, "जिनदास! यह दुनिया तो अजीब-गजब की विचित्रताओं का एक मेला है। श्रद्धा की आंख खोलकर देखा जाए तो इस मेले का आनन्द अनुभव किया जा सकता है। इच्छा हो, तो शक्ति की उपासना का परचा (चमत्कार) देखने के लिए आने हेतु मेरा निमंत्रण है। एक भोपा ऐसा प्रत्यक्ष चमत्कार बता सकता है। गंगा घर-आंगन में ही आयी हुई है।"
जिनदास का कुतुहल यह बात सुन कर अपने मन को वश में न रख सका। इसको लगा कि, 'भले ही मैं जैन हूँ, किन्तु देखने में क्या आपत्ति है? मुझे विश्वास है कि, मेरे मन में चल रहा महामंत्र नवकार का अजपाजप मेरी श्रद्धा को जरा भी विचलित नहीं होने देगा।'
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मित्र के आमंत्रण को स्वीकार करते हुए जिनदास ने कहा कि, "तेरे आमंत्रण से तो 'जो खाना था वही वैद्य ने कहा, जैसा अनुभव कर रहा हूँ। चलो, इस प्रकार भी चमत्कार देखने को मिलता हो तो क्यों अवसर चुका जाए?"
दोनों मित्र शक्ति माता के मन्दिर पहुंचे। जिनमन्दिर के शांत प्रशांत वातावरण में रमे हुए जिनदास को शक्ति मन्दिर का वातावरण अत्यंत विचित्र लगने लगा। माता का विशेषण पाती 'शक्ति देवी' की प्रतिमा पर मातृत्व की महिमा गाने वाला कुछ भी दिखाई नहीं देता था। शक्ति माता के इस देह पर नख से लेकर शिर तक ऐसे चिह्न लदे हुए थे कि, एक बार तो बहादूर भी देखकर घबरा जाये! जो कमी थी, उसकी पूर्ति भोपे की इस भीषण-भयंकर, अकल्पनीय, कंपकंपी छूट जाये ऐसी मुखाकृति ने कर दी।
शक्ति के उपासक मित्र ने भोपे से कहा कि "यह मेरा एक जैन मित्र है। शक्ति माता का चमत्कार आंखों से देखने की इसकी इच्छा है। इस कारण मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि, आप शक्तिमाता को इस मित्र के शरीर में प्रवेश करवाकर चमत्कार दिखाओ।"
भोपे ने "हाँ" कहकर सिर हिलाते हुए कहा, "शक्ति माता तो प्रकटप्रभावी देवी है। इसका चमत्कार बताना, मेरे लिए कठिन कार्य नहीं है। मैं मेरा प्रयोग शुरु करता हूँ। जिसको भी चमत्कार अनुभव करना हो, वे इस वर्तुलाकार स्थान में आसन जमाकर बैठ जाएं।"
भोपे की आज्ञा अनुसार जिनदास वहां बैठ गया। उसके लिए चारों ओर भय का वातावरण नया-नया ही था। इसलिए अभय का सहारा पाने हेतु उसने मनोमन महामंत्र का जाप शुरु कर सारा नाटक देखने का निर्णय किया। पल दो पल में वातावरण ने ज्यादा भयानक मोड़ ले लिया। नगाड़े बजने लगे। दातून के टुकड़े चारों ओर फिंकने लगे। जल छिड़काव से आसपास की जमीन भीग गई। थोड़ा समय बीता और भोपे के शरीर में किसी का प्रवेश होने का अहसास होने लगा।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? जोर-जोर से धुनते हुए भोपे ने विधि का दूसरा चरण प्रारम्भ किया। वह खड़ा हुआ। अपने कुंडलाकृति स्थान में से बाहर आकर, वह जिनदास की ओर गया। शक्तिमाता को जिनदास के शरीर में प्रवेश करवाने का प्रयोग अब शुरु हुआ। भोपे ने जिनदास की एक प्रदक्षिणा दी। प्रदक्षिणा पूरी होने के साथ ही हताशा से घिरा हुआ भोपा पैर से पीछे जमीन को | ठोकता हुआ अपने बैठने के स्थान पर बैठ गया। उसको ऐसा आभास होने
लगा कि, शक्तिमाता जिनदास के शरीर में प्रवेश करने में असमर्थ है। किंतु वह ऐसे हताश हो, ऐसा नहीं था। वह दुबारा खड़ा हुआ। हिम्मत कर उसने गोले में बैठे जिनदास की प्रदक्षिणा दी, परन्तु परिणाम वैसा ही आया। पैर ठोककर उसको स्वयं के आसन पर बैठ जाने का किसी अदृश्य शक्ति ने मानो आदेश दिया हो। __ . दो बार हताश हुआ भोपा, अब इस बात को अपनी प्रतिष्ठा एवं नाक का प्रश्न मानकर, चाहे किसी भी प्रकार से शक्तिमाता को जिनदास के शरीर में प्रवेश करवाने के जनून के साथ पुनः खड़ा हुआ। क्रोधावेश के साथ उसने तीसरी प्रदक्षिणा पूरी की, किंतु उसका स्वप्न सिद्ध नहीं हुआ। हवा के वेग से जिस प्रकार तिनका वापिस आता है, उसी प्रकार | भोपा पीछे धकेल दिया गया और हताशा भरे हदय से अपनी बैठक पर | गिर पड़ा। उसके तन-मन पर छायी निराशा एवं लाचारी को देखकर शक्ति के उस उपासक ने भोपे के शरीर में प्रवेश किये हुए माताजी को विनति करते हुए कहा कि -
"माताजी! आपका आह्वान इसलिए ही करने में आया है कि, जैन मित्र जिनदास आपके चमत्कार का प्रत्यक्ष साक्षी बन सके। इसलिए में आपको आशा भरे हदय से झुक झुककर फिर से विनति करता हूँ कि, आप स्वयं जिनदास के शरीर में प्रवेश कर, इसे चमत्कार बताने की कृपा करें!!!" भोपे के माध्यम से, इस विनति करने वाले को शक्तिमाता ने कहा, "इस जैन भाई के शरीर में प्रवेश करने हेतु मैं लाचार हूँ। इसके आसपास, इसके इष्टदेव के जाप से बने हुए चमत्कारिक तेजस्वी वर्तुल,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? इसके शरीर में प्रवेश करने से मुझे रोकते हैं और मुझे वापिस लौट जाना पड़ता है।"
किनारे आ पहुँची नाव को बचा लेने की आरजु के साथ फिर विनति हुई- "आप इस प्रकार निराश हो जायें तो कैसे चलेगा? किसी भी प्रकार से आप चमत्कार दिखाइये, ऐसी मेरी अंतर की कामना है। उपाय में कमी हो तो सूचित करावें। हम सब कुछ करने के लिए तैयार हैं।" ।
भोपे के माध्यम से पुनः उत्तर मिला- "हां, एक उपाय है। यह जैन भाई अपने इष्टदेव का जाप करना बन्द कर दें, यह अपने इष्ट मंत्र का आजीवन त्याग का मुझे वचन दें, तो मेरा अवरोध दूर होगा और मैं इसके शरीर में प्रवेश कर सकूँ । इसके अलावा मेरा चमत्कार देखने का कोई उपाय नहीं। मैं चाहे कितनी भी शक्तिशाली गिनी जाती हूँ, किंतु इस भाई के द्वारा जपे इष्ट मंत्र से उत्पन्न होते तेज वर्तुल मेरी आँखों को अंधी बना देते हैं। इन वर्तुलों को छेदकर मैं आगे जाने में अक्षम बन जाती हूँ। इसलिए यह मेरी शर्त मान्य हो, तो ही में चमत्कार बताने में समर्थ हूँ। बोलो, मान्य है, यह मेरी शर्त?"
इस सवाल-जवाब ने जिनदास के हदय में अलग ही प्रकार का निर्णायक मनोमंथन पैदा कर दिया। वह विचारों में चढ़ा, "ओह! चमत्कार तो मेरे घर में ही मेरी प्रतीक्षा कर रहा है और मैं इसकी शोध के लिए इधर उधर भटक रहा हूँ। मेरा नवकार कितना बलवान है कि इसके जप में से निकलती ज्योति ने शक्तिमाता को भी हार दिलायी है। नवकार के प्रति में कोई दृढ़ निष्ठा नहीं रखता, मैंने ऐसी कोई शिक्षा लेकर, नवकार को ही मुद्रालेख नहीं बनाया! खानदान से मिले नवकार की में मात्र एक माला ही जपता हूँ। मेरी श्रद्धा की सीमा केवल इतनी ही है। फिर भी ऐसी नाम मात्र की श्रद्धा भी इस प्रकार का चमत्कार दिखा सकती है, तो नवकार के प्रति मेरी श्रद्धा को यदि समझपूर्वक अपनाऊं, तो मेरा बेड़ा भवसागर से ही पार नहीं हो जायेगा?"
चमत्कार प्राप्त करना था किस शक्ति का, और चमत्कार हाथ लग
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? गया दूसरी ही किसी शक्ति का! जिनदास ने मन ही मन पक्का निर्णय लेकर, अपने मित्र को कहा "मुझे जो चमत्कार देखना था, वह देख लिया है। इस प्रसंग ने अत्यंत ही सचोट रूप से साबित कर दिया है कि, शक्तिमाता को हार स्वीकार करनी पड़ती है, ऐसी प्रचण्डं ताकत मेरे नवकार मंत्र में है। अब इतना ऐसा चमत्कार मिलने के बाद, यदि मैं नवकार की निष्ठा को छोड़ दूं, तो मेरे जैसा मूर्ख शिरोमणि दुसरा कौन कहलायेगा?" शक्तिमाता को विसर्जित कर दिया गया। सबके मुंह पर अलग-अलग प्रकार के आश्चर्य की तरंगें अंकित हुई थीं। भोपे के मन में आश्चर्य समाता न था। अपनी पराजय की नींव खोजने हेतु जिनदास को इतना ही पूछा कि,"तुम्हारे इष्टमंत्र का पाठ जानने का मेरा अधिकार है?"
जिनदास का आनंद और अहोभाव छलक उठा। इसने जवाब में | केवल इतना ही कहा कि, "नमो अरिहंताणं" ।
__(मुक्तिदूत के आधार पर) लेखक - प.पू. आ. श्री वि. पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. मोहनभाई के मनमोहक अनुभव
विपुल पुण्य के कारण मेरा जैन कुटुम्ब में जन्म हुआ। इसी के साथ मुझे सभी धार्मिक प्रवृत्तियों के संस्कार मिले। नवकार से सब कुछ मिल जाता है और रोग-शोक-भय वगैरह अनिष्ट तत्त्व दूर होते हैंइस प्रकार जानने को मिला था। मैं इसी कारण बाल्यावस्था में संकट के समय नवकार गिनता और संकट दूर हो जाता था।
मुझे बारह वर्ष की उम्र में लालवाड़ी में एक मवाली लड़का हंटर निकालकर मारने आया। मैंने तब हंटर छीनकर उसे ही फटकारा। वह रोता हुआ जाकर अपने सरदार को बुला लाया। मैं तो घर जाकर पलंग के नीचे छिपकर नवकार गिनने लगा। दादी माँ ने उसे जैसे तैसे समझा कर विदा दी। इस प्रकार महासंकट में से बचने के कारण नवकार पर मेरी श्रद्धा मजबूत हुई।
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
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मुझे बहुत ही गुस्सा आता था, जो मुझे पसंद नहीं था। मैं सुधरने के लिए प्रतिदिन प्रतिक्रमण, चैत्यवंदन, सामायिक, तपश्चर्या, व्याख्यान - श्रवण और धार्मिक वांचन करता था, फिर भी गुस्सा कम नहीं हुआ। मैंने शादी के बाद एक बार पिताजी को भी थप्पड़ मारी थी तथा डेढ़ वर्ष की पुत्री को भी मारता था। घर में भी इस प्रकार का गुस्सा देखकर पत्नी से रहा नहीं जाता और वह कहती कि, 'इतना सारा धर्म करने के बाद भी गुस्सा करते हो यह अच्छा नहीं है।" मैं कहता, " अच्छे कार्यों के लिए किया गया गुस्सा खराब नहीं गिना जाता।" तेईस वर्ष की उम्र में मैंने जाना कि शुद्धि रखने से धर्म आराधना शीघ्र फलीभूत होती है। न्यायपूर्वक प्राप्त की गयी सामग्री से जीवन निर्वाह किया जाये तो ही पूरी शुद्धि होती है। धर्म की शुरुआत मार्गानुसारी के पहले गुण न्याय संपन्न वैभव" अर्थात् न्याय से प्राप्त की गयी सामग्री से होती है। इस हेतु आवश्यकताएं कम से कम होनी चाहिये, यह ज्ञान प्राप्त होते ही मैंने इस दिशा में प्रयत्न शुरु किया । मैं ढाई महिने तक बाजरे की रोटी एवं पानी दो टाईम एवं डेढ़ माह तक केवल भीगे हुए मूंग पूरे दिन में एक बार ही खाता था। यह मुझे जम गया। आयंबिल करके जीया जा सकता है, ऐसी श्रद्धा बैठ गयी। मैंने सस्ते एवं टिकाउ कपड़े पहने। इस प्रकार मेरे एक दिन का खर्चा 20 नये पैसे आता था। मुझे लगा कि इसमें 30 नये पैसे का दूध जोड़ दिया जाए तो आराम से जीया जा सकता है। सद्भाग्य से पत्नी एवं पुत्री का भी साथ मिला ।
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मैंने 24 वर्ष की उम्र में आमदनी के लिए बड़ा वाहन चलाने का लाइसेंस प्राप्त किया था। धंधे में प्रतिस्पर्धा होने से अप्रामाणिक भी होना पड़ता था । कभी-कभी बेईमानी का सहारा भी लेना पड़ता था। इसलिए मैंने वह धंधा बन्द कर दिया। जिससे मेरे हिस्से का लाभ पिता के हिस्से में जाने से टेक्स ज्यादा भरना पड़ता था । इस कारण भाइयों ने मुझे समझाया कि तेरे हिस्से के कारण ज्यादा टेक्स बच जाता है, इसलिए तुम्हारा परिवार हमें बोझ रूप नहीं होगा। मैनें फिर से हिस्सा चालु किया, । तब से धंधा संभालने में जो समय बीतता था वह बच गया और मैं सारा
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
दिन धार्मिक वांचन - चिंतन करने लगा।
पत्नी बीमार हो गई। गांव एवं शहर के डॉक्टरों ने क्षय रोग बताया । उपचार हेतु 90 इंजेक्शन लिए किंतु सुधार नहीं हुआ। वहां एक साधर्मिक भाई ने पुस्तक में लिखित यह उपाय बताया, "रोग मिटाने हेतु नवकार के पांच पदों के अक्षर उल्टे क्रम से बोलना।" मैंने तथा पत्नी ने उल्टा नवकार गिनना प्रारंभ कर दिया। जिसके प्रताप से मुंबई जाकर निष्णात डॉक्टरों को बताने पर मालूम पड़ा कि क्षय नहीं है। न्युमोनाईटीश के लक्षण हैं। केमीपेन की सामान्य गोली खिलाई और ठीक हो गया।
मुझे 28 वर्ष की उम्र में पंडित धीरजलाल टोकरशी शाह की बालग्रंथावली की तीन पुस्तिकाएं 'महात्मा नो मेलाप',' मन जीतवानो मार्ग, 'सिद्धिदायक सिद्धचक्र' (तीनों गुजराती) पढ़ने से नवकार का विशेषार्थ पसंद आ गया। मैंने प्रतिदिन समझपूर्वक नवकार के विशेषार्थ पर चिंतन करने का प्रारंभ कर दिया। पहले 40 मिनट लगते थे किंतु जैसे-जैसे ज्यादा जानने को मिलता गया वैसे-वैसे समय बढ़ता गया । प्रतिदिन एक बार नवकार समझने में साढ़े चार घंटे लगते। उसके बाद ग्यारह बजे दंतशुद्धि, स्नान, भोजन वगैरह हो सकता था। इसका अत्यधिक असर हुआ। छः माह में गुस्सा बहुत कम हो गया। मैं धर्म के आदेश का पालन करने लगा। मेरा साढ़े छब्बीस वर्ष पुराना अस्थमा का रोग भी मिट गया, जिसे डॉक्टरों ने असाध्य कहा था ।
अब मेरा वर्तन सुधर गया। जिससे सबको मेरे प्रति अरुचि कम होने लगी। मेरी बुद्धि में वृद्धि होती गई। जिससे मैं लोगों में आदर पाने
लगा।
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मुझे सिद्धियों एवं लब्धियों की आवश्यकता महसूस हुई, किंतु जब तक मेरे हाथ से इनका दुरूपयोग हो, तब तक ये न मिलें तो अच्छा- ऐसी भावना थी। 36 वर्ष की उम्र में धर्मज के जाड़ेजा नउभा की गले की तकलीफ मिटे तो अच्छा ऐसे भाव होते, मैंने उनके गले को ज्यों ही हाथ लगाया त्यों ही गले में ठंडक बहने का अनुभव हुआ, ओर गले की पीड़ा मिट गई। यह अप्रत्याशित घटना थी, किंतु मुझे लगा कि मुझ में शक्ति
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? प्रकट हुई होगी। मैंने स्वयं निरीक्षण किया तो जाना कि,"कोई मेरा बिगाड़े तो भी वह सुधरे और सुखी बने-ऐसे भाव मुझ में रहा करते हैं।"
मेरी 37 वर्ष की उम्र में दि. 6.1.70 को रचके से हमारे छः बैलों के पेट फूल गये थे। लोगों ने कहा कि सप्ताह भर पहले इसी कारण से एक स्वस्थ गाय तुरंत मर गई थी। उपचार करने जितना समय भी नहीं था। तत्काल सभी बैल अच्छे हों, इस भावना के साथ मैंने उल्टा नवकार समझना चालु किया। पन्द्रह मिनट में नवकार के अर्थचिंतन के बाद सभी बैल स्वस्थ हो गये!
इसके बाद हमारी बाड़ी के चौकीदार शम्भु बारोट की गर्दन एक ओर मुड़ नहीं रही थी, उसे बारह दिन हो जाने से वह चिंता करने लगा था। वह अच्छा हो जाये ऐसे भाव के साथ-साथ मैं उल्टा नवकार संक्षेप में समझ गया। वह घर पहुंचा तब पता चला कि गर्दन एकदम सही हो गयी है। प्रत्यक्ष प्रमाणों को देखकर पुत्री एवं पत्नी को भी नवकार को समझने की इच्छा जगी। मैंने उन्हें सन् 1971 में मार्च से अगस्त तक प्रतिदिन डेढ़ घन्टे तक नवकार के विशेषार्थ को समझाया और उन्होंने भी नवकार समझने की आराधना प्रारंभ कर दी।
___ कुछ कष्ट अपने भले के लिए होते हैं। मेरी लम्बी बीमारी के कारण में धर्म की ओर मुड़ा हूँ। इसलिए मैंने हितकारक आपत्तियों के अतिरिक्त अन्य आपत्तियां दूर हों ऐसी भावना के साथ नवकार का प्रयोग करने का निर्णय लिया।
लायजा से पैदल संघ जब सुथरी पहुंचा तब संघपति की माला हीरबाई जेठा खेतु को पहनाने के समय हाजिर रहने हेतु हम जीप गाड़ी में जा रहे थे। तब बाड़ा गांव में पहुंचे और मोड़ने पर भी गाड़ी नहीं मुड़ी। ब्रेक लगाकर दीवार की ओर जाती हुई गाड़ी को रोका। ऐसा लगा कि अब सुथरी पहुँना संभव नहीं है। मैंने नवकार चालु कर दिया, फिर गाड़ी चालु कर देखी तो वह चल पड़ी। मोड़कर देखा तो मुड़ी। सावधानीपूर्वक सुथरी तक गाड़ी चलाकर ले गये। वहां पहचान के ड्राईवर को गाड़ी की जांच करने को कहकर हम उपाश्रय पहुँचे। ड्राईवर ने दूसरे
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - ड्राईवर को बुलाकर जीप चालू की, किंतु थोड़ा ही आगे जाने पर पहिये अपने आप मुड़ने के कारण गाड़ी तालाब की पाली पर चढ गयी और उल्टी हो गई। मोड़ने का स्टियरिंग काम नहीं कर रहा था। बाड़ा से सुथरी तक वह गाड़ी कैसे आई इस बात का सभी को आश्चर्य हुआ। उस ड्राईवर को जब दिमाग की तकलीफ हुई तब डॉक्टरों ने कहा कि जीवनभर यह लंबी दूरी तक गाड़ी चला नहीं सकेगा। एक साथ पन्द्रह मील ही चला सकेगा। उसने मुझे मंत्र द्वारा स्वस्थ करने की विनति की। मैंने नवकार समझने का प्रारंभ किया। उसे अपने शरीर पर मयूर पंख फिरता हो, ऐसा अहसास हुआ। बाद में वह एकदम स्वस्थ हो गया।
नवकार के प्रभाव से मेरी पवित्र इच्छाएं तुरंत फलीभूत होने लगीं। जब लायजा के मंदिर के एक भगवान का तिलक चोरी हो गया तब मैंने भावना भाई कि "ले जाने वाले को सद्बुद्धि मिले और वापिस रखकर जाये।" दस दिन में कोई तिलक वापिस रखकर चला गया। उसमें मात्र | एक लाल नंग कम था।
मझे विचार आया कि, 'सविधा के लिए, यात्रार्थ एवं व्याख्यान श्रवण हेतु जाने के लिए अच्छी गाड़ी मिल जाए तो बहुत अच्छा रहे।' ठीक दो महिनों में मेरे भाई ने अपने-आप गाड़ी भेज दी।
एक युवान के गले में बड़ी गांठ निकली थी। दवा से नहीं मिटी। उसको देखा तब मुझे लगा कि इसकी गांठ मिट जाये तो अच्छा। इस निमित्त से नवकार को एक बार समझ कर पूरा किया। थोड़े समय के बाद उसकी गांठ मिट गई! _ 'हमारे क्षेत्र का जबरदस्त चोर चोरी करना बंद कर दे'- ऐसे भाव जगते ही मैंने नवकार को एक बार समझ कर पूरा कर लिया। उस चोर |ने दो वर्षों में चोरी करना छोड़ दिया। अब तो वह अपने धार्मिक संतों की भक्ति एवं लोगों की सेवा करता है।
किसी के निकाचित कर्म होते हैं, तब उसकी तकलीफ असाध्य होने के कारण मेरे प्रयत्नों के बावजूद मैं सम्पूर्ण नवकार पूरा नहीं कर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - सकता। हमारी बाड़ी की कुत्ती बिमारी के कारण खा-पी नहीं सकती थी, किन्तु मेरी भावना हुई कि वह ठीक हो जाए तो अच्छा, ऐसी भावना के साथ नवकार समझने का प्रारंभ किया। मैं नवकार पूरा नहीं कर सका। थोड़े दिनों बाद वह मर गई। भोंकने से उसके गले में सड़न हो गई थी। आयुष्य ज्यादा न हो या पुण्य मजबूत न हो तो उसे बचाना मुश्किल है। __एक श्राविका ने अपनी दीक्षा के पहले मुझे खुजली दूर करने के लिए पानी मंत्रित कर देने को कहा था। मैंने पानी पकड़कर पूरा नवकार समझकर पानी उन्हें दिया कि सुधार दिखाई दिया। जिससे दूसरी बार पानी | मंगवाया और अच्छा हो गया।
मैंने एक हरिजन की योग्यता देखकर उसे जीवन के रहस्य समझाये। उससे उसका जीवन नीति एवं धर्ममय बन गया। एक नास्तिक गिने जाते हाईस्कूल के हेडमास्टर को उनके शास्त्र के आधार पर नवकार की समझ दी, तो वे महा-आस्तिक बन गये हैं। एक हाईस्कूल की मुख्य शिक्षिका को सिद्ध अवस्था समझाने से उन्हें सिद्ध बनने की उत्सुकता उत्पन्न हुई।
नवकार को समझने का सीखने से कइयों के जीवन बदल गये हैं। मंदबुद्धि वाले की बुद्धि में वृद्धि हुई है। सद्बुद्धि हो गयी है। जिनको धार्मिक क्रियाएं अरुचिकर लगती थीं, उन्हें रस से भरी हुई लगने लगी हैं। ऐसे कलियुग में पवित्र बनने के लिए आस्तिक बनने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह वास्तव में बड़े से बड़ा चमत्कार लगता है। जरुरी है, उन्हें सहायता देने की। नवकार के भावगुणों के बारे में समझाने की व्यवस्था हो जाये, तो कइयों का कल्याण हो जाए।
लेखक - श्री मोहनलाल धनजी फुरिया मु.पो. लायजा मोटा,तहसील, मांडवी-(कच्छ) पिन : 370475 पठान के भूत पर नवकार का प्रभाव . सं. 2042 की बात है। हम चातुर्मास से थोड़े दिन पूर्व मुम्बई के एक गाँव में गये थे। वहाँ लगभग 45 वर्ष की उम्र के एक कच्छी जैन
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
भाई, बीस वर्षों से ईर्ष्या पीड़ित . अमुक व्यक्तियों द्वारा करवायीं गयी मैली विद्या के प्रयोग के कारण अत्यंत परेशान हो रहे थे। ये भाई हमारे पूर्व परिचित थे। वे स्वभाव से बहुत सरल हैं, उनके कहने के अनुसार 20 वर्ष पहले वे भी मैली विद्या के प्रयोग या भूत-प्रेत का लगना आदि नहीं मानते थे। परन्तु आज जब वे स्वयं लगभग बीस वर्ष से मैली विद्या के शिकार बनकर परेशान हो रहे हैं, तभी से वे भी अब इस बात को मानते हैं।
उनके शरीर में कोई अरबस्तानी पठान की आत्मा प्रवेश कर बहुत ही कष्ट देती है। अनेक प्रकार के नाटक करवाती है। जब भी वे किसी प्रसिद्ध तांत्रिक के पास इस भूत को दूर करवाने जाते, तब तुरन्त ही वह उनके शरीर में अचानक कोई भयंकर वेदना उत्पन्न करवाकर प्रायः उन्हें नहीं जाने देता। डॉक्टरों ने उन्हें पूर्ण नीरोगी घोषित किया है।
अनेक ख्यातिप्राप्त मन्त्रवादियों ने भी उनके इस भूत को दूर करने के लिए प्रयोग किये, कि तुरन्त वह अरबस्तानी पठान अत्यन्त भयंकर गर्जनाओं के साथ अरबस्तानी भाषा में उसे मार डालने की धमकियां देना प्रारंभ कर देता, और आखिर मंत्रवादी निष्फलता ही प्राप्त करते हैं।
इस भाई को अपनी कुल देवी पर भी आस्था है। वे घर में कुलदेवी की तस्वीर के सामने प्रतिदिन धूप-दीप करते हैं, इसलिए कभी कुलदेवी भी उनके शरीर में प्रवेश कर उनकी रक्षा करती है। परन्तु कुलदेवी सात्त्विक प्रकृति की है। वह पठान अत्यन्त आसुरी प्रकृति वाला है। इसलिये उसे सम्पूर्णतया हटा नहीं सकती, किन्तु इस भाई की जान लेने भी नहीं देती है।
एक बार वे भाई मेरे पास आये थे और अपनी परिस्थिति से अवगत कराया। तब उनके घर में प्रतिदिन एक आयंबिल करने का एवं 'नवकार' और 'उवसग्गहरं' का जाप करने की सलाह दी। परन्तु उन्होंने कहा कि, 'जब भी मैं ऐसे सात्त्विक उपाय करने का विचार करता हूँ, तब थोड़ी देर में घेर चढ़ना शुरु हो जाती है और घंटों तक, कभी 4-5 दिन तक भी घेर में रहना पड़ता है और कभी तो छाती में अचानक ऐसा
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - दबाव आता है कि, मुझे वह जाप छोड़ देना ही पड़ता है।'
मैं एक दिन संयोग से उनके घर गोचरी के निमित्त गया और उस भाई और उनकी धर्मपत्नी के कहने से मांगलिक सुनाने की शुरुआत की, कि अचानक भयंकर गर्जना के साथ वह भाई एकदम उछल पड़े और गुस्से के आवेश में डरावनी आकृति करके अरबी भाषा में धमकियां देने लगे। ऐसा हमेशा होने से उनकी पत्नी तथा दो बालक अरबी भाषा के थोड़े शब्दों के भावार्थ, हावभाव वगैरह से समझ सकते हैं। इससे उन्होंने कहा कि, "यह आपको कहना चाहता है कि अपने धर्म के मन्त्र बोलना बंद करो, नहीं तो तुम्हें मार डालूंगा।"
यह सुनकर मैंने उस पठान के प्रति मैत्री-भाव का चिन्तन कर मन में ही नवकार महामन्त्र का स्मरण चालु रखा और थोड़ी देर में वह पठान चला गया और उसकी जगह पर जिन लोगों ने इस मैली विद्या का प्रयोग किया था, वे दो महिलाएं उस भाई के शरीर में प्रवेश कर रोती-रोती करुण स्वर में कहने लगी कि, "महाराज साहब! हमें बचाओ। हम बहुत दुःखी हैं! हमारा उद्धार करो।"
मैंने उनसे कहा, "तुम किस लिये दूसरे जीवों को परेशान करने हेतु ऐसे प्रयोग करती हो? ऐसे प्रयोगों को बन्द करो और दूसरों को सुख दोगे तो सुखी बनोगे।"
उन्होंने कहा, "हम सब समझते हैं, परन्तु क्या करें, लाचार हैं, जिस प्रकार कोई शराबी शराब के नुकसान का ख्याल होते हुए भी उसे छोड़ नहीं सकता, उसी प्रकार हम भी यह व्यसन छोड़ नहीं सकते। "
उनको अपना परिचय देने को कहा परन्तु उन्होंने कहा, "हमारे जैसे पापियों का परिचय प्राप्त करके क्या करोगे? यह बात रहने दो।"
फिर उनको प्रासंगिक थोड़ी हितशिक्षा दी और थोड़ी देर में वे महिलाएं भी चली गयीं, तब स्वस्थ बने हुए उस भाई के समक्ष बड़ी शान्ति सूत्र आदि मांगलिक सुनाया और उन्हें उपाश्रय आने को कहा। वह भाई थोड़े समय के बाद अपनी धर्मपत्नी के साथ उपाश्रय में
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? आये। हमने आचार्य भगवन्त को पूरी हकीकत से वाकिफ करा दिया था। आचार्यश्री द्वारा उनके मस्तक पर वासक्षेप डालते ही फिर वह अरबस्तानी पठान जाग्रत हुआ और गुस्से में अपनी भाषा में मुट्ठी उठाकर धमकियां देने लगा।
हमने पूज्य श्री से कहा "आप रहने दो, हमको नवकार का प्रयोग आजमाने की अनुमति दो। "पूज्य श्री ने कहा 'ठीक है'। थोड़ी देर बाद वह भाई जब मूल स्वरूप में आ गये तब हम उनको उपाश्रय के एक कमरे में ले गये। हमारे में से एक मुनिवर उनके सामने बैठे। बाकी के उनके पास खड़े रहे। वज्रपंजर स्तोत्र द्वारा आत्म-रक्षा करके मुनिवर द्वारा नवकार सुनाते ही तुरन्त वह पठान चिड़ गया और पहले से भी ज्यादा उग्र आवाज से धमकियां देने लगा। इसलिए तुरन्त हम सब मुनियों ने तालबद्ध रूप से बड़ी आवाज से नवकार महामंत्र का रटन शुरु किया। पठान के गुस्से का पार न था। वह तरह-तरह की भयंकर मुद्राओं से मुनिवर को डराने लगा। वह अत्यन्त मजबूत मुद्री उठाकर एकदग जोर से मुनिवर के मुंह तक लाता। मानो कि अभी ही वह मुनिवर की बत्तीसी तोड़ डालेगा या उनको मार डालेगा। कमजोर हदय के व्यक्ति का कदाचित् हदय ही बैठ जाये ऐसी भयंकर गर्जनाएं, फुकारे, चीखें तथा चेष्टाएं वह करने लगा, फिर भी महामंत्र के पृष्ठ-बल से जरा भी घबराये बिना मुनिवर भी उच्च स्वर से तालबद्ध नवकार का रटन करते ही रहे।
पठान ने लगभग 20 मिनट तक खूब तूफान किया, परन्तु वह नवकार के अदृश्य, अभेद्य, कवच के कारण मुनिवर को स्पर्श भी नहीं कर सका। इससे हिम्मत में आकर मुनिवर ने उसके बाल पकड़ लिये। तब उसका मुंह एकदम दयापात्र जैसा हो गया। अन्त में -"अब मेरा नमाज पढ़ने का समय हो जाने से मैं जाता हूँ," इस प्रकार के शब्द अरबस्तानी भाषा में उच्चारण कर वह चलता बना। उसके बाद एक कश्मीरी प्रेत जो पहले इस भाई को परेशान करता था, परन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप होते ही अब उसे यथासम्भव सहायता करता था, वह उस भाई के शरीर में आया। उसकी भाषा में कोई-कोई हिन्दी के शब्द आते थे,
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? जिससे हम उसका भावार्थ कुछ समझ सकते थे। हमने उसकी सम्मति प्राप्त कर उसे हिन्दी भाषा में कई प्रश्न पूछे, जिसके उसने अपनी भाषा में संतोष जनक जवाब दिये। वह भी 20 मिनट के बाद चलता बना और वह भाई अपने असली स्वरूप में आ गये।
नवकार के शब्दों के रटन में इतनी शक्ति विद्यमान है, तो विधि पूर्वक नवकार साधना में कितनी ताकत हो सकती है? इत्यादि विचार करते हुए हमारा अन्तःकरण नवकार को अहोभाव पूर्वक नमस्कार कर रहा था।
लेखक - प.पू. गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा.
"जीवन साथी नवकार को नहीं ही छोडूंगी।
हमारे परम उपकारी गुरुदेव सा. श्री वसंतप्रभाश्रीजी म.सा. को नवकार महामन्त्र की साधना करते हुए अनेक विशिष्ट अनुभव हुए हैं। उनमें से तीन अनुभव यहां प्रस्तुत कर रही हूँ, जो पढकर एकाध आत्मा भी नवकार महामन्त्र की आराधना में जुड़ेगा तो मैं अपना प्रयास सफल मानूंगी।
. "देवी उपसर्ग में अडिगता" वर्षों पूर्व जब पू. गुरुवर्या श्री ने श्री नवकार महामन्त्र का विधिवत् नियमित जाप शुरु किया था, उसके कुछ दिन बाद ही उन्हें विविध प्रकार के उपद्रव होने लगे। कभी आन्तरिक तो कभी बाह्य उपद्रव लगातार तीन वर्ष तक चले। उन्हें कभी तो जाप करने में एक दो महिने तक बिल्कुल भाव नहीं जगते, आलस्य आने लगता, फिर भी दृढ़ निश्चयी गुरुवर्या ने जाप चालु ही रखा। तय किया हुआ जाप जब तक पूरा नहीं होता तब तक मुँह में पानी भी नहीं डालने का उनका संकल्प था।
. एक बार तीन वर्ष बाद वे मांडवी (कच्छ) में विराजमान थीं, तब तीन दिन तक रात के समय ब्रह्मांड फट जाए ऐसी भयंकर आवाजें सुनाई देतीं। उन्होंने चौथी रात सोने का स्थान बदल दिया तो भी पहले से ज्यादा
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भयंकर आवाजें सुनाई देनें लगीं और थोड़ी देर बाद कोई छाती पर बैठकर डराने लगा, "तेरा नवकार छोड़ती है या नहीं?"
पू. गुरुवर्या श्री ने निडरतापूर्वक कहा " मर जाउंगी, फिर भी अपने जीवनसाथी नवकार को नहीं छोडूंगी। यह भवोभव का मेरा साथी है, इसलिए इसका त्याग किसी भी संयोगों में नहीं करूंगी !!! "
ऐसी बहस लगभग बीस मिनट तक चली। परन्तु पू. गुरुवर्या श्री की निश्चलता देखकर अन्त में सब शान्त हो गया और कोई दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। उसने कहा, "मैंने आपको बहुत परेशान किया है। कृपा करके मुझे माफ कर दो। उन्होंने कहा " मेरी ओर से माफी ही है, परन्तु इस प्रकार दूसरे किसी को परेशान नहीं करना और धर्म को स्वीकार कर लेना।"
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"तथास्तु" कहकर वह अंतर्धान हो गया था ! ! !
" समवसरण के दर्शन हुए"
एक बार पू. गुरुवर्या श्री अपनी रत्नाधिक साध्वीजियों के साथ शंखेश्वर गये हुए थे। कुल चार ठाणे थे। पू. गुरुवर्या श्री की शंखेश्वर में अट्ठम करने की खूब भावना थी, परन्तु संयोगवशात् बड़ों की तरफ से अनुमति न मिल सकी । पूज्य श्री जब राधनपुर पहुंचे तब वह अट्ठम की भावना के साथ रात्री में नवकार महामन्त्र का स्मरण कर निद्राधीन हुए, और उन्होंने स्वप्न देखा, "एक बड़े हॉल में बहुत साध्वीजी विराजमान थीं। वहां अचानक एक बड़ा नाग आया, जो अत्यन्त ही चमकदार तथा कान्तिमय था । पू. गुरुवर्या श्री ने अन्य साध्वीजियों से पूछा, "ऐसे बड़े नाग को देखकर आपको भय नहीं लगता। तब वयोवद्ध साध्वीजी ने कहा ' यह तो धरणेन्द्र देव हैं, इसलिए हमें भय नहीं लगता ।
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उतने में एक छोटा सा बालक रोता- रोता वहां आया। पू. गुरुवर्या श्री उसे उठाने के लिए जाते हैं, तब कोई उन्हें कहता है, "यदि तुम इस बालक को उठाओगे तो यह नागदेव तुम्हें डंक मारेंगे।" पूज्य श्री ने कहा,
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'भले ही डंक मारे, परन्तु मैं इस बालक को रोता हुआ तो नहीं देख सकती। उन्होंने ऐसे कहकर बालक को उठाया और उसे नवकार महामन्त्र सुनाया। तब बालक ने बहुत ही हर्षित होकर उन नागदेवता से कहा 'बापा, बापा ! मुझे जो आवश्यकता थी, वह मिल गया। आप इन्हें कुछ वरदान दो।"
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तब नागराज ने पू. गुरुवर्या श्री को कहा, "मांगो, मांगो, तुम्हें जो चाहिये वह दे दूं।" पूज्य श्री ने कहा, 'मुझे दूसरा कुछ नहीं चाहिये, किन्तु मैं शंखेश्वरजी जा रही हूँ। वहां मेरी अट्ठम करने की भावना है। वह निर्विघ्नता से पूर्ण हो, इतना ही चाहती हूँ।'
"तथास्तु" कहकर नागराज अदृश्य हो गय। बाद में पूज्य श्री शंखेश्वर पहुंचे। उन्होंने बड़ों की अनुमति प्राप्त कर अट्ठम तप किया। उन्हें तीसरे उपवास में रात को सोते समय थोड़ी चिन्ता हुई कि सुबह समय पर उठा नहीं गया तो रोज के संकल्प के अनुसार जाप कैसे हो सकेगा ? जाप पूर्ण किये बिना मुंह में पानी भी नहीं डालने का संकल्प
था।
वे इसी चिन्ता में सो गये और रात को 12 बजे निद्रा दूर होते ही बैठ गये और नवकार महामन्त्र का जाप करने लगे। दस-बारह नवकार गिने कि वहां तो भीड़भंजन पार्श्वनाथजी नये रूप धारण करने लगे । पू. गुरुवर्या श्री कहने लगे, 'आप तो वीतराग भगवान हों, तो फिर नये-नये रूप लेकर मुझे क्यों खेला रहे हो।
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फिर भी वह दृश्य चालु रहा। तब पू. गुरुदेव श्री ने कहा आप मुझे श्री सीमन्धर स्वामी भगवान के दर्शन करवाओ।" और, वास्तव में वहां पूज्य श्री को अद्भुत समवसरण के दर्शन हुए। उसमें विराजमान हुए श्री सीमंधर स्वामी भगवान अमृत से भी मधुर वाणी में " प्रमाद त्याग" विषय पर देशना दे रहे थे। भगवन्त के शब्द भी पूज्य गुरुवर्या श्री को स्पष्ट सुनाई दिये । पूज्य श्री के आनन्द का पार नहीं रहा। थोड़ी देर बाद घंटनाद सुनाई दिया। समवसरण अदृश्य हो गया। उसके स्थान पर पुनः
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भीड़भंजन दादा आ गये और काफी समय के पश्चात् वे भी अदृश्य हो गये, तब घड़ी में दो डंके बजे। इस प्रकार पूज्य श्री ने दो घंटे तक किसी अलौकिक दुनिया का अनुभव किया। फिर सुबह तक नवकार जाप में ही लीन रहे, सोये नहीं। और सुबह जब वे मन्दिर में दर्शन करने गये, तब वहां भी रात में दिखाई दिये उसी ही स्वरूप में भीड़भंजन दादा पार्श्वनाथजी के दर्शन हुए और अपूर्व आनन्द की अनुभूति हुई ।
शरीर का होश खो गया
एक बार मांडवी (कच्छ) में पू. गुरुवर्या श्री ने खीर के 20 एकासने एवं मौन सहित एक लाख नवकार के जाप का संकल्प लिया था। प्रतिदिन 50 पक्की माला का जाप होता था। तब पू. गुरुवर्या श्री एक दिन जाप में ऐसे खो गये थे, कि उनके शरीर पर बहुत चींटियां चढ़ गई और कपड़ों में छिद्र हो गये। चींटियां ऐसे डंक देने लगी तो भी बहुत देर तक पूज्य श्री को पता नहीं चला। इस प्रकार नवकार महामंत्र के जाप के द्वारा पूज्य गुरुवर्या श्री ने देहाध्यास पर ठीक-ठीक विजय प्राप्त कर लिया। ऐसे तो दूसरे कई अनुभव हैं, परन्तु पूज्य श्री यथासंभव इन अनुभवों को किसी को नहीं बताते हैं। फिर भी किसी को इन अनुभवों को पढ़कर नवकार मंत्र के प्रति अटल श्रद्धा जगे और उसकी आराधना द्वारा आत्म-कल्याण साध सके ऐसे शुभ संकल्प से यहां तीन प्रसंग पेश किये हैं। "
लेखिका : प.पू. अचलगच्छाधिपति श्री की आज्ञावर्तिनी सा. श्री वसन्तप्रभाश्रीजी की शिष्या सा. श्री चारुधर्माश्रीजी
जहाँ नमस्कार वहां चमत्कार
मैंने संवत् 2030 में कच्छ- वांढ में पूज्य सा. श्री वसंतप्रभाश्रीजी म.सा. का परिचय होने पर प्रतिदिन नवकार मंत्र की एक पक्की माला गिनने की प्रतिज्ञा ली। नवकार की यह माला गिनने में शुरुआत में तो मैं केवल आदेश की पालना मात्र करता । मेरा पुण्य योग कहो या नवकार का प्रभाव कहो- मेरा धार्मिक शिविरों में भाग लेने का पुण्य जगा ।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पूज्यपाद गुरु भगवन्तों की वाणी के प्रभाव से हदय में जैन शासन के प्रति बहुमान पैदा हुआ। जीवन में परिवर्तन की शुरुआत हुई। ___एक बार पू. मुनिराज (वर्तमान में पंन्यास) श्री चन्द्रशेखरविजयजी म. सा. ने शिविर में नवकार के प्रभाव का एक दृष्टान्त सुनाया। (यह दृष्टान्त विस्तार से जानने हेतु इसी पुस्तक में "श्रद्धा और मन्त्र की ताकत" पढ़ें) इसमें एक अन्यधर्मी भाई कोई जैन भाई को अपना धर्म महान है और कैसा चमत्कारिक है, यह बताने के लिए एक तांत्रिक के पास ले गया। इधर जैन भाई तान्त्रिक को देखते ही बिना श्रद्धा से केवल नवकार गिनते रहे। वे तान्त्रिक के पास गये थे चमत्कार देखने, परन्तु अपने जीवन में ही चमत्कार का सृजन हो गया। तान्त्रिक इस जैन भाई के शरीर में मैली विद्या को प्रवेश करवाना चाहता था। आखिर में वह तान्त्रिक हारकर जैन भाई से कहता है कि, 'तुम जो मन्त्र गिन रहे हो, उसके प्रभाव से मेरी शक्ति काम नहीं कर सकती।' इससे जैन भाई के जीवन में "टर्निग पॉइंट" आया। बिना श्रद्धा से गिना हुआ नवकार भी जो ऐसा चमत्कार बता सकता है, तो बहुमान पूर्वक और श्रद्धापूर्वक इसका जाप किया जाये तो क्या चमत्कार नहीं कर सकता है, यह सवाल है। "बावाजी का वशीकरण निष्फल गया"
उपर्युक्त दृष्टान्त को पूज्य गुरु भगवन्त से सुने हुए एक सप्ताह ही बीता कि मेरे जीवन में ऐसा ही एक प्रसंग उपस्थित हुआ। सं. 2035 का साल था। मैं दोपहर के समय अपनी दुकान पर बैठा था। मेरे साथ दूसरे तीन लोग बैठे थे। इतने में एक अघोरी बावाजी को मैंने दुकान की ओर आते देखा। लगभग साढ़े छह फीट की लम्बाई, भरावदार चेहरा, लाल-लाल बड़ी आंखें, विशाल कपाल, सुदृढ़ काया, एक हाथ में त्रिशूल
और दूसरे हाथ में कमंडलू, गले में रुद्राक्ष की माला। उसको देखते ही डर लगे, ऐसा दिख रहा था। बावाजी जैसे ही आकर खड़े हुए वैसे ही मुझे शिविर का उपर्युक्त दृष्टान्त याद आया। मैंने मन में नवकार गिनने का शुरु किया। मेरे पास बैठे भाई भी थोड़े अस्वस्थ हो गये। बावा
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अपलक दृष्टि से मेरे सामने देखता रहा। किसी वशीकरण के प्रयोग की तरह ही, बिना कुछ बोले करीब पांच मिनट होने लगे। मैंने भी खूब श्रद्धापूर्वक नवकार का जाप चालु रखा। कुछ ही क्षणों के बाद बावाजी ने मौन तोड़ते हुए मुझे कहा, 'बच्चा, तुम कोई विद्या जानते हो?' मैंने जवाब दिया "हमारे पास आप जैसी विद्या कहां से हो सकती है?" उन्होंने कहा "तुम झूठ बोलते हो, तुम अभी जो मंत्र जाप करते हो, इससे मेरी वशीकरण विद्या निष्फल हो रही है।" फिर प्रश्न किया, "तुम्हारी शादी हो गई?" अब मुझ में हिम्मत आ गयी थी। मैंने वापिस प्रश्न किया "आप अपनी विद्या से बताओ।" उन्होंने कहा, "शादी हुई नहीं है, मगर [15 दिन में तय हो जायेगी।" मुझे इस वर्ष कोई शादी करनी ही नहीं थी
और शादी की कोई बात भी नहीं चल रही थी। मुझे लगा कि बावाजी गलत बोल रहे हैं।
फिर बावाजी ने मुझे 100 से 110 के बीच की कोई संख्या सोचने को कहा। मैंने मन में 105 सोचा। दूसरे ही क्षण उन्होंने कागज पर 105 लिख दिया। यह देखकर मैं चकित हुआ। बावाजी जाते-जाते कहते गये, "तेरा मंत्र जोरदार है। मेरे इतने वर्ष की साधना और शक्ति आज अपना चमत्कार नहीं दिखा सकी। छह महीने बाद आऊंगा" यह कहकर बावा चला गया, वह आज तक नहीं आया। उसके बाद 15 दिन में मेरी सगाई और एक महीने में शादी हो गई। उस दिन से ही नवकार मंत्र के ऊपर मेरी श्रद्धा अत्यंत बढ़ गई।
उसके बाद तो नवकार मंत्र के प्रभाव से छोटे-बड़े अनेक प्रसंगों द्वारा नवकार के प्रति मेरी श्रद्धा उत्तरोत्तर बढ़ती ही गयी। उसमें से दो-तीन प्रसंगों का यहां उल्लेख करता हूँ। "नवकार ने जीवन बचाया "
आयंबिल की ओली के दिन थे। मैंने भी ओली करने का निर्णय किया। आयंबिल का तीसरा दिन और इसी दिन एक ट्रक का सौदा हुआ। और दोपहर एक बजे से दो बजे तक मैं जोगेश्वरी (ईस्ट) में श्रीपालराजा
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - का रास पढ़ता था। मैं ट्रक लेने मलाड़ गया। वहाँ डेढ़ बज गये। मुझे रास पढ़ने जल्दी पहुंचना था। मैंने मलाड़ से जोगेश्वरी आने के लिए रिक्शा किया। रिक्शे ने सम्राट टॉकीज के आगे रोड़ डिवाइडर से टक्कर खाई और वह उलट गया।
मैं और रिक्शाचालक दोनों नीचे दब गये। लगभग 400 लोगों की |भीड़ इकट्ठी हो गई। उन्होंने मुझे एवं रिक्शावाले को खींचकर जैसे-तैसे बाहर निकाला। मुझे सिर में मामूली चोट आयी थी, परन्तु रिक्शावाले का एक हाथ और एक पैर कट गया। उसका बहुत खून बह रहा था। रिक्शे के पीछे एक ट्रक वाला था, उसने मुझे कहा, 'सेठ! आपका नसीब |जोरदार है, कि मेरी अचानक ब्रेक लगी, नहीं तो आप दोनों खत्म हो जाते।" रिक्शा चालक की हालत गंभीर थी। उसे अस्पताल ले जाया गया
और मैं वापिस जोगेश्वरी आया। दो दिन तकलीफ रही, परन्तु बाद में मैं ठीक हो गया। रिक्शे में मेरा नवकार जाप चालु था। मुझे आयंबिल के तप और नवकार के जाप ने नया जीवन दिया।
एक बार हम तीस जने टिटवाला गये थे। वहां से वापिस आते सभी लोग तीन तांगो में जम गये। इस ओर रास्ता संकरा और एक नाला आता था। वहां लगभग 25 फीट की ऊंचाई थी। सामने से रिक्शा आ रहा था। रिक्शे के हॉर्न के कारण घोड़े भड़के और रास्ते के पास में मुड़े। हम तांगे सहित ऊपर से 25 फीट गहरी खाई में गिरे। परन्तु मेरी रोज की आदत के अनुसार घर से बाहर निकलने के बाद चलते-फिरते या कोई भी वाहन में बैठा हूँ, तब नवकार महामंत्र का रटन चालु ही रहता है, उसी प्रकार आज भी नवकार का स्मरण चालु ही था। परिणामस्वरूप जहां बचने की भी संभावना नहीं थी, वहां किसी को भी विशेष कुछ लगा नहीं गिरने के बाद मुझे पांच मिनट में होश आ गया। मैं तांगे में आगे ही बैठा था। तब मुझे वह पंक्ति याद आ गयी| "जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?'
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मैली विद्या निष्फल हुई
एक बार में नवपद जी की ओली में जोगेश्वरी संघ के लोगों के आग्रह से श्रीपाल रास पढ़ता था। उस दौरान एक दिन एक अधेड़ उम्र की बहिन मेरे पास आई और आंखों में आंसू के साथ हाथ जोड़कर मुझ से माफी मांगने लगी।
मैं तो अचानक यह दृश्य देखकर आश्चर्य में पड़ गया। क्योंकि मैं उस बहिन को पहचानता ही नहीं था। उसी प्रकार उनका मेरे साथ कोई बुरा व्यवहार भी नहीं हुआ था। इसलिए बड़ी उम्र की इन बहिन को मेरे समक्ष हाथ जोड़कर माफी मांगते देख मुझे बड़ा दुःख हुआ। मैंने उनसे माफी मांगने का कारण पूछा। तब उन्होंने सरलता से कहा कि, "तेरी ऐसी वक्तृत्व शक्ति देखकर मुझे ईर्ष्या जगी। परिणाम स्वरूप तुम्हें परेशान करने हेतु तुम्हारे ऊपर मैली विद्या का प्रयोग किया, परन्तु नवकार मंत्र के प्रभाव से तेरा पृष्ठ बल मजबूत होने से इस मैली विद्या का तेरे ऊपर कोई असर नहीं हुआ। परन्तु इस प्रयोग से मैं ही पीड़ा भुगत रही हूँ। अब तो तुम मुझे माफ करो तो ही में इस पीड़ा से मुक्त हो सकती हूँ।"
मैंने तुरन्त उस बहिन से कहा कि, "मेरी तरफ से मैं तुमको माफी | देता हूँ। मुझे तुम्हारे प्रति जरा भी दुर्भाव नहीं है।" यह सुनकर उस बहिन ने मुझसे पुनः गद्गद हदय से माफी मांगकर वहां से विदा ली। फिर तो लगभग प्रतिवर्ष वह मुझ से सांवत्सरिक क्षमापना अवश्य करती रही।
इस घटना के बाद तो नवकार के प्रति मेरी श्रद्धा बहुत ही बढ़ गई और श्री देव-गुरु की असीम कृपा से संवत 2044 तक तीन बार एकासना और ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा के साथ एक-एक लाख नवकार जाप का अनुष्ठान किया। पहले किसी छोटी सभा में बोलने का मौका आता तो, पैर कांपते थे और नहीं बोला जाता, लेकिन आज नवकार के प्रभाव से ऐसा आत्मविश्वास आ गया है कि, हजारों की भीड़ को संबोधित करते हुए थोड़ी भी हिचकिचाहट नहीं होती है।
विविध पूजन पढ़ाने के अवसरों में भी प्रत्येक स्थान पर खूब सुन्दर
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असर होता है।
अनेक बार सगे- सम्बंधियों के अन्तिम समय पर उनके मस्तिष्क पर हाथ घुमाते नवकार गिनने से असह्य वेदना तुरन्त शान्त होकर, वे अत्यन्त ही समाधिपूर्वक पण्डित मृत्यु को प्राप्त किये हों, वैसे अनुभव हु हैं।
वास्तव में शास्त्रों में नवकार महामंत्र की जो महिमा बताई गयी है, उसमें जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है। श्रद्धापूर्वक महामंत्र का स्मरण करने से आज भी उसकी महिमा का अनुभव किया जा सकता है, ऐसा मैं उपर्युक्त अनुभवों से विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ।
लेखक : विधिकार श्री नरेन्द्रभाई रामजी नन्दु विभा सदन, सहकार रोड़, जोगेश्वरी (वेस्ट) मुम्बई - 400102 दूरभाष : 6208524 (नि.) 6285014 (दुकान)
= नवकार मन्त्र ने बचाया
(राजकोट से प्रकाशित होते हुए "परमार्थ" मासिक के ई. स. 1986 जुलाई मास के अंक में से साभार उद्धृत - सम्पादक)
शंखलपुर गांव। इस गांव के दक्षिण में 5 किलोमीटर दूर वर्षों पुरानी गुफाएं थीं। ये गुफाएं असंख्य कारीगरों ने इस प्रकार पत्थर में से कुरेदी होंगी मानो, अजायबघर जैसा लगता है । गुफाओं में नाना प्रकार, के पत्थर के रथ, सूर्यरथ, नटराज, शंकर का तांडव नृत्य, कई ऋषियों, चौबीस तीर्थंकरों एवं अन्य कलाकृतियां तराशी हुई थीं। ये सभी मूर्तियां पहाड़ में ही कुरेदी हुई थीं। एक स्थान पर सभामण्डप । इस सभामण्डप में बत्तीस खम्भे । चाहे उस स्थान से उन्हें गिन सकें। परन्तु वास्तविकता यह थी कि कोई भी खम्भा एक-दूसरे का बाधक नहीं था। गुफा की रचना ऐसी थी कि, जिस रास्ते से यात्री जाते हैं उसी रास्ते से वापिस आना पड़ता। प्रवेश द्वार ऐसा था कि, सामान्य रूप से यात्री जाने की हिम्मत भी न करें। क्योंकि, इस गुफा के मुख्य द्वार के ऊपर हजारों मणों की एक
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - विशालकाय शिला बिना सहारे लटकती थी। हजारों यात्रियों ने इस गुफा | का अवलोकन किया था। गांव से दूर होने के कारण गांववासियों को इसके विषय में बिल्कुल रस नहीं था। उनके मन में यह सामान्य वस्तु थी। .
सरोड़ी गावं में हेमचन्द भाई वाणिक का परिवार रहता था। यह कुटुम्ब अत्यन्त सुखी था। उनको संतान के रूप में पांच पत्रियां एवं एक पुत्र पीयूष था। पीयूष दसवीं कक्षा में पढता था। वह अत्यन्त धार्मिक वृत्ति वाला था। छोटी उम्र में मन्दिर नियमित जाने की उसकी आदत थी। एक भी दिन ऐसा नहीं होता, जिस दिन मन्दिर में पीयूष हाजिर न हो। स्वास्थ्य अनुकूल न होने पर वह घोड़ागाड़ी करके भी हेमचन्द भाई के साथ मन्दिर जाता था। उसकी सवेरे तथा शाम को "नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं," ऐसे नवकार मंत्र की पचास माला गिनने के बाद ही रात्रि में सोने की आदत थी। वह खुद यह मानता था कि, आज जगत में मानवों का विश्वचक्र चलता है, उसमें दैवी कृपा है और क्षण-क्षण महावीर स्वामी साथ में ही हैं। कई बार पीयूष स्वप्न में तेजपूंज का दर्शन करता था। इस विषय में वह मानता था कि आत्मा का उच्च कोटि के साथ सम्पर्क हुआ है। परन्तु यह बात परिवार के किसी सदस्य को नहीं बताता था।
इसी गांव की हाईस्कूल के घनश्याम भाई दवे आचार्य था। वे अच्छे स्वभाव के थे। बच्चों को शिक्षण के संस्कार के साथ-साथ खेलकूद के प्रत्येक साधन भी हाईस्कूल में बसाये थे। वे व्यायाम के समय विद्यार्थियों को खेलकूद स्वयं खेलाते थे। एक दिन आचार्य साहब ने उच्चतम कक्षा के विद्यार्थियों से कहा कि, "तुम्हें पर्यटन के लिये चलना हो तो प्रत्येक विद्यार्थी अभिभावक की सम्मति के हस्ताक्षर वाला सहमति | पत्र तथा पन्द्रह रूपये लेते आना।" अतिरिक्त खर्च शाला में से किया जाएगा। उसी प्रकार खाने के लिए प्रत्येक विद्यार्थी को टीफीन की व्यवस्था स्वयं को करनी होगी। शाम को देर रात्रि में वापिस लौटेंगे।" यह कहकर प्रत्येक विद्यार्थी को हाईस्कूल का पत्र दिया। विद्यार्थी बहुत-बहुत खुश हुए। मुकेश मॉनीटर ने कहा, "साहेब, पर्यटन के लिए कब चलेगें?' तब
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आचार्यजी ने बताया कि, "आज से पांचवे दिन पर्यटन के लिए चलेंगे। सवेरे छः बजे प्रत्येक विद्यार्थी को टीफीन के साथ आना होगा। जिस विद्यार्थी के अभिभावक की सहमति नहीं होगी, उसे बस में प्रवेश नहीं मिलेगा ।"
शाम को स्कूल से छुटकर पीयूष ने संमति पत्र अपनी माता के समक्ष पेश किया। माता चारुलता ने कहा कि, "तेरे पिताजी पेढ़ी (दुकान) पर हैं वे आये तब समझाना और उनके हस्ताक्षर ले लेना। अन्तिम निर्णय तो तेरे पिताजी को ही करना है।" रात्रि में पिताजी हेमचन्द भाई पेढी (दुकान) से आये । खाना खाने के बाद पीयूष ने बात की कि, पिताजी! मुझे अपने शिक्षकजी के साथ पर्यटन पर जाना है, इसलिए इस पत्र पर हस्ताक्षर कीजिए और मुझे 15 रूपये दीजिए। मैं कल अध्यापकजी को दोनों दे दूंगा।
यह बात सुनते ही हेमचन्द भाई ने कहा कि, "पीयूष, तू अभी मेरी दृष्टि मे बहुत छोटा है। तेरी पांच बहिनें हैं और तू मुझे बहुत प्यारा है। तुझे बाहर भेजने के लिए मेरा मन बिल्कुल नहीं मानता। तुम कहो तो मैं तुझे जहां कहे वहां घुमाने के लिए ले जांऊ, परन्तु तुम पर्यटन की बात छोड़ दो।"
" परन्तु पिताजी, अब आप जरा भी चिन्ता मत कीजिये। जिसका मैं स्मरण करता हूं, वे महावीर स्वामी मेरे श्वासोच्छ्वास में समाये हैं, मेरे रोम-रोम में महावीर स्वामी के नाम का नाद निकलता है। वे स्वयं मेरे साथ हैं, तो फिर आपको चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है? मैं अपनी माला साथ में ले लूंगा। सुबह बस में पच्चीस माला फेर लूंगा और शाम को यदि देरी होगी तो बस में ही दूसरी पच्चीस मालाएं फेर लूंगा। बाकी मैं बाहर निकलुं तब से आपको मानना है कि मैं और महावीर स्वामी साथ में हैं। समग्र ब्रह्माण्ड हिल जाये तो भी आप अपने हृदय को मजबूत रखियेगा । मुझे महावीर स्वामी के ऊपर पूरा भरोसा है। मेरा कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता है।" इस प्रकार बताने पर पिताजी ने पत्र पर तुरन्त
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हस्ताक्षर कर दिये और पन्द्रह रूपये हाथ में दिये और कहा कि, "पीयूष! तुम खुशी से पर्यटन में जाओ, यहां किसी की चिन्ता मत करना। वह सम्मति पत्र तथा पन्द्रह रूपये लेकर तुरन्त नवकार मंत्र की माला फेरने बैठ गया।
पीयूष ने ग्यारह बजे हाईस्कूल में सभी विद्यार्थियों के साथ संमति पत्र और पन्द्रह रूपये घनश्याम शिक्षकजी को दिये। इस प्रकार एक सौ विद्यार्थियों के संमति पत्र एवं रकम एकत्र हुई। दो बसों का रिजर्वेशन करवाया गया। तीन दिन बाद शाला के दो शिक्षक तथा आचार्य साहब एवं सौ विद्यार्थियों सहित बस शंखलपुर की गुफा के पर्यटन के लिए सात बजे रवाना हुई।
रास्ते में वासुकी मन्दिर तथा वर्षों पहले अपने प्राणों का बलिदान दिये हुए दो सौ बड़े-बड़े पालीये (शहीदों के पुतले) देखे। पता करने पर मालूम पड़ा कि इस स्थान पर दो विवाह की जान तथा डाकुओं के साथ लड़ाई हुई थी, उसके पालीये हैं। बराबर दस बजे शंखलपुर गांव के पास से बसें गुजरी। गांव से गुफा 5 किलोमीटर दूर थी, एवं गांव के पास में से रास्ता जाता था। उससे गांववासी लोग देख सकते थे कि बस में यात्री हैं या प्रवासी। गांव के पास से गुजरती बसें ग्यारह बजे गुफा से आधा किलोमीटर दूर खड़ी रहीं। शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने अब पैदल प्रवास आरंभ किया। विद्यार्थियों में कौतूहल था कि, "कौन-कौन सी मूर्तियां होंगी? पत्थर के पहाड़ों में से किस प्रकार खुदाई का कार्य हुआ होगा? कितने वर्ष पुरानी गुफाएं होंगी?' इत्यादि बातें करते-करते ठीक 12 बजे गुफा के द्वार के आगे एक सौ तीन प्रवासी लोगों का वृन्द आकर खड़ा
हुआ।
गुफा में से आरपार निकला जा सकता है या नहीं? यह कोई जानता नहीं था। परन्तु उसकी रचना कोई ऐसे जादुई कारीगरों ने की थी |कि, सूर्य के प्रकाश की किरणें हर जगह दिखाई देती थीं। आचार्यजी के साथ विद्यार्थियों ने गुफा में प्रवेश किया। प्रथम गणपति की मूर्ति थी।
हर जगह दिखाई देती थीं आचायजा
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? शरीर चार और मुंह एक। किसी भी दिशा से देखो, मुंह सामने ही दिखाई देता है। आगे बढ़ते तमाम तीर्थंकरों की मूर्तियां, महावीर स्वामी, विष्णु गंधर्व आदि की मूर्तियां देखकर, आगे बढ़ते भगवान शंकर की तांडव नृत्य की मूर्ति के दर्शन किये। एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया कि, 'साहेब, यह मूर्ति नाच करती कैसे दिखाई दे रही है?' | तब आचार्यजी ने बताया कि, जब जब पृथ्वी का प्रलयकाल आता है, तब-तब ऐसा कार्य भगवान शिवजी को सौंपने में आता है और पृथ्वी डोलने लगती है। यह बात हुई, इतने में तो वहां कड़कड़ाहट करते भयंकर भूकम्प की आवाज हुई और पूरी गुफा शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के साथ डोलने लगी। आचार्यजी ने कहा, "विद्यार्थियों! आगे आओ, यह तो वास्तव में भयंकर रूप से धरती कम्पित हो रही है। भूकम्प आया है। कोई घबराना नहीं।" विद्यार्थियों में चीख चिल्लाहट और दौड़भाग शुरु हो गई। आचार्य श्री ने कहा कि, "डरो मत, हिम्मत रखो, गुफा के बाहर भी कम्पन है। घबराने की कोई बात नहीं। प्रभु का स्मरण करो। पीयूष ने तो माला निकालकर नवकार महामंत्र का जाप जोर से बोलकर प्रारम्भ किया और कहा, 'प्रभु महावीर! आप मेरे साथ हो।' इस समय शंकर के तांडव नृत्य की मूर्ति के पास सभी एकत्र होकर एक दूसरे से टकराने लगे। कोई उतावला विद्यार्थी भागने की कोशिस करता, लेकिन उसे वापिस बुला लिया जाता। भूकम्प के तीन झटकों के बाद धरती स्थिर हुई। यह भूकम्प सार्वत्रिक था। जिससे गुफा के द्वार के पास लटकती हजारों मण की शिला जिस प्रकार सन्दूक पर ढक्कन लग जाये, उस प्रकार गुफा के प्रवेश द्वार पर सिमट गयी। आने-जाने का मार्ग बन्द हो गया। आधे इन्च की जगह ऊपर के भाग में गुफा और शिला के बीच रह गई थी। जिससे सूर्य के प्रकाश की किरण सीधी गुफा में आती रही और हवा भी मिलती रही। शिक्षक एवं विद्यार्थी गुफा के द्वार के पास आये और देखा कि द्वार बन्द हो गया है। सभी ने सोचा कि इतने लोगों से शिला को हटाया नहीं जा सकता है और न ही काटा जा सकता है। जिससे आचार्यश्री ने सभी विद्यार्थियों को आश्वासन देकर प्रभु का स्मरण करने को कहा। यह तो
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प्राकृतिक विपदा है। पीयूष ने एक छोटा स्थान देखकर एक आसन में बैठकर नवकार मंत्र का जाप प्रारंभ किया, और सोचा कि महावीर स्वामी मार्ग दिखाएं तो अच्छा, नहीं तो मौत की मुझे चिन्ता नहीं । महावीर स्वामी मेरे साथ हैं । शंखलपुर की गुफा आधा किलोमीटर दूर होने के कारण बस के ड्राईवर एवं कण्डक्टर ने देर रात तक राह देखी । प्रत्यक्ष गुफा तक जांच की, परन्तु वे गुफा जैसा नहीं दिखाई देने से बस को वापिस अरोड़ी गांव में ले आये।
सार्वत्रिक भूकम्प होने से अरोड़ी गांव में प्रवासी बस के वापिस आने की सभी राह देख रहे थे, किन्तु जब जल्दी सवेरे बस खाली आते | देखी तो गांव में हाहाकार मच गया। गांव के सौ विद्यार्थियों में से पच्चीस तो पास के गांवों के थे। गांव वाले शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के वापिस न आने से ढूंढने के लिए ड्राईवरों एवं कंडक्टरों से मिले एवं जानकारी प्राप्त की। पीयूष के पिता साधन सम्पन्न होने के कारण अन्य लोगों के साथ शंखलपुर की गुफाओं तक घूम आये। परन्तु गुफाओं का पता नहीं चला। जगह-जगह बड़ी तिरछी लम्बी शिलाएं देखकर उन्होंने माना कि शायद दूसरे स्थान पर गये होंगे, एवं भूकंप के कारण कहीं फंस गये होंगे। रात को अरोड़ी गांव के लोग वापिस आये । स्वंय शंखलपुर के लोग भी गुफा ढूंढने गये, किन्तु शिला कुदरती रूप से इस प्रकार ढक गई थी कि, वास्तव में गुफा कहाँ है, वे यह तय नहीं कर पाये। गुफा में फंसे शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को दो दिन से पानी एवं भोजन नहीं मिला, इससे उनकी शक्ति क्षीण होने लगी, जिससे वे शान्ति से बैठकर इष्टदेव का जाप कर रहे थे।
केवल पीयूष हिम्मत रखकर एक आसन में बैठकर नवकार मंत्र की माला फेरता था। वह जैसे-जैसे जाप करता गया, वैसे-वैसे कुदरती शक्ति शरीर में बढ़ती गई। स्फूर्ति भी ज्यादा लगती, जिससे वह सबको कहता कि, 'मित्रों! एवं साहेबजी ! तुम सब विश्वास रखना। अपने को बचाने वाला मिल ही जायेगा । वास्तव में शिला देखकर लगता था कि उसे नहीं
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हटा सकते हैं, यह सब जानते थे। इस घटना को घटित हुए दस दिन हुए, सभी जगह खोजबीन हुई, किन्तु अरोड़ी गावं के वासियों के प्रयत्न निष्फल हुए । ग्यारहवें दिन मध्यरात्रि में पीयूष नवकार मंत्र का जाप कर रहा था। वहां प्रत्यक्ष तेजपुंज का गोला उसके सामने दिखाई दिया। उसे भी आश्चर्य हुआ। यह प्रकाशित गोला गोल-गोल घूमकर छोटा होता जा रहा था और पास में आ रहा था। वह इस बारे में कुछ सोचे, उससे पहले ही छोटा एक प्रकाशित बिन्दु उसके मुंह द्वारा पेट में चला गया, वह उसने प्रत्यक्ष देखा । यह घटना घटित होने के बाद उसे नीन्द आ गई और स्वप्न आया कि, 'पीयूष, तुम डरना नहीं। तेरे तप के प्रभाव से तुम्हें बचाने वाले कल सवेरे आ पहुंचेगें। तू समझ, तेरे लम्बे पुण्य के बल से दूसरे जीव भी बच जायेंगे।' उतने में तो वह नीन्द में से जगा तब प्रातः काल हुआ है ऐसा लगा । इस तेजपुंज का असर उसी समय राधनपुर शहर के कॉलेज के प्रिन्सिपल जे.जे. साहब को हुआ। वे उम्र में दूसरे प्रिन्सिपल साहब से छोटे थे। वे भी विविध प्रकार के खेलकूद के शौकिन व मायालु थे एवं बातें करते तो जैसे मुंह से अमृत वर्षा हो रही हो वैसा लगता था। धर्म के संस्कार उन्हें पूर्वजों से मिले हुए थे। इस प्रकार का स्वभाव होने के कारण उनको भी उसी समय प्रथम उगता सूर्य अत्यन्त घुमता हुआ दिखाई दिया और थोड़ी देर बाद तेजपुंज बन गया। उन्होंने स्वप्न में देखा कि, कोई दिव्य पुरुष ने एक ही आवाज में कहा कि, " जयन्ति शाह ! तू जाग, जान ले कि तेरे ही एक सौ तीन बालक आज से ग्यारह दिन पहले भूकम्प से शंखलपुर गांव से पांच किलोमीटर दूर गुफा में जीवित हैं, वे अरोड़ी गांव के हैं। गुफा का द्वार भूकम्प से बन्द हो गया है। वहां अनेक शिलाएं हैं, जिससे वह गुफा कहां है - वह प्रश्न तुझे सतायेगा । परन्तु मैं तुम्हें सबूत दे देता हूं कि वहां जाते ही दायीं बाजू के रास्ते पर हजारों मण की शिला आयेगी और उस शिला का तुम निरीक्षण करोगे तो तुझे उस पर कुदरती रूप से खुदे अक्षरों में म...हा...वी...र लिखा होगा। उस शिला के ऊपर लम्बी तिरछी आधे ईन्च की दरार है। उससे वे सभी बच गये हैं। वहां तेरे कॉलेज के विद्यार्थियों
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? से कुदालें, घण आदि ले जाकर दरार के पास से तोड़ना प्रारंभ करना क्योंकि वहां से पत्थर कमजोर हो गया है, जिससे दो तीन घंटों में बड़ा छेद हो जायेगा। उसमें रस्सी डालकर प्रत्येक को बाहर खींच लेना। सन्देश सुना न?" और "जय जिनेन्द्र" कहकर स्वप्न एकदम बन्द हुआ। घड़ी में देखा तो पोने पांच बजे थे।
प्रिन्सिपल साहब तुरन्त ही क्वाटर पास होने के कारण कॉलेज गये और चौकीदार और गार्ड को जगाकर दस विद्यार्थियों के नाम बताकर उन्हें बुलाकर लाने के लिए कहा। आधे घंटे में विद्यार्थी तथा गांव के दस मख्य लोग आये। दसों विद्यार्थियों से दूसरे विद्यार्थियों को बुलवाने का निर्देश दिया और खुदाई के साधन मंगवाये। पांच मालवाहक ट्रकें तथा कॉलेज की गाड़ी तथा दस आगेवान एवं विद्यार्थियों के साथ वे अरोड़ी गांव जाने के लिए रवाना हुए। एक घंटे में अरोड़ी गांव पहुंच गये। प्रवास की जानकारी प्राप्त करते हुए जानने को मिला कि दो शिक्षक, आचार्य श्री तथा सौ विद्यार्थी शंखलपुर की गुफाएं देखने गये थे,जो अभी तक वापिस नहीं आये। उन्होंने अपने को आये स्वप्न की जानकारी दी। तुरन्त अरोड़ी गावं में से श्री हेमचन्दभाई का पूरा कुटुम्ब तथा इस गांव के सौ लोग जरुरी अतिरिक्त साधन सामग्री के साथ प्रिन्सिपल साहब की टुकड़ी के साथ शंखलपुर की राह पर गये। ठीक ग्यारह बजे पूरा काफिला शंखलपुर की गुफाओं के पास पहुंच गया। प्रिन्सिपल साहब बारिकी से निरीक्षण करते हुए गुफा के द्वार को बन्द करने वाली शिला पर तुरन्त अक्षर पढ़ने लगे, 'म...हा...वी...र'। और उन्होंने कहा, 'ग्रामजनो एवं विद्यार्थियों! आपको इस शिला पर चढ़ना होगा। वहां से चट्टान तोड़ना शुरु करना होगा। बाहर एवं अन्दर के जीवों को चोट नहीं लगे इसका सम्पूर्ण ध्यान रखना। पूरे समुदाय ने महावीर का जय जयकार करके निरन्तर घणों के प्रहार व लोहे की कोस से पत्थर तोड़ने का कार्य शुरु किया। एक घन्टे की मेहनत के बाद दीर्घ पट्टी में आधे फुट की शिला तोड़ी। उतने में नवकार मंत्र का जाप सुनाई दिया। शोर, आवाजें, बचाओ, बचाओ की
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
चीखें सुनाई दीं। प्रिन्सिपल साहब स्वयं शिला पर गये एवं जोर से आवाज की। उतने में तो चेतनहीन लड़के नजदीक आये और चिल्लाये कि, 'हमें तत्काल पानी दो, हम प्यास से पीड़ित हो रहे हैं।' 'अरे भाइयों! तुम अब एक घंटा धीरज रखो, तुम्हें बचाने के लिए ठेठ अरोड़ी तथा राधनपुर से लोग आये हैं।' पीयूष के कुटुम्ब को पता लगा कि लड़के जीवित हैं, उससे उसके कुटुम्ब में नये प्राणों का संचार हुआ। अन्दर के लड़कों के दूर हटते ही गुफा तोड़ने का कार्य शुरु किया । एक ही घण्टे में दो फीट चौड़ा दीर्घ खड्डा हो गया। नीचे बीस फीट की कई रस्सियां डालकर विद्यार्थियों को एक के बाद एक निकाला। अन्त में आचार्य साहब बाहर आये और प्रेम से सगे भाई की तरह सबसे मिले। सभी लोग ट्रक में अरोड़ी गांव की ओर गये। दो घंटे में अरोड़ी गांव पहुंच गये। पूरा गांव हर्ष के हिलोरे लेने लगा और सर्वत्र आनन्द छा गया। तेज के पूंज समान प्रिन्सिपल साहब ने अपने विद्यार्थियों एवं आगेवानों के साथ राधनपुर का रास्ता काटना शुरु किया ।
अरोड़ी, राधनपुर, तथा पास के गांवों में विद्यार्थियों को कुदरती कैसे सहारा मिला, किसने मार्गदर्शन दिया, इसकी चर्चा कई दिनों तक होने लगी। पीयूष एवं प्रिन्सिपल जे. जे. साहब को दर्शन देने वाले स्वयं म...हा... वी... र थे। उन्होंने जगत् के समक्ष सन्देश दिया कि नवकार मंत्र की शक्ति कितनी प्रबल है तथा खुद का किया हुआ धार्मिक कार्य किसी दिन निष्फल नहीं जाता है। केवल विश्वास एवं समय की आवश्यकता होती है। सर्वत्र महावीर का जय-जयकार बोला गया।
लेखक
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एम.एस. पाटड़िया
तिर्यंच को तारने वाला नवकार
(गाय मरकर देवी बनी!)
संवत् 2028 में जबलपुर में घटित यह घटना है। दोपहर डेढ़ बजे मेरे घर के परिसर में एक अनजान गाय बीमार होकर गिरी । मैंने उसे घास
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पानी दिया। किन्तु मुझे उसकी स्थिति अच्छी नहीं लगी, इस कारण उसके नजदीक जाकर उसके कान में नवकार मंत्र सुनाना शुरु किया। नवकार के सुनते ही उसको शान्ति मिल रही है ऐसा मुझे लगा। मुझे देखकर उसकी आंखों में से आंसू झरने लगे। मैं उसे जाते-आते प्रेमपूर्वक सारा दिन नवकार सुनाती रही। मैंने शाम को फिर उसके पास बैठकर नवकार मंत्र चालु किया और गाय भी मानो श्रद्धापूर्वक एक नजर से मेरे सामने देखकर पीड़ा में भी प्रेम से सुनती गयी। मैंने उने सागारिक अनसन करवाकर सिद्धगिरि की शरण दिला दी। उसे उसकी यात्रा करने की प्रेरणा दी। अन्त में नवकार मंत्र सुनते हुए उसके प्राण पखेरु उड़ गये। प्रिय स्वजन की तरह मैंने उसे गड्ढे में दफना कर उस पर माटी एवं 5 किलो नमक डाला।
मेरे पति छ: माह बाद अचानक बीमार पड़े। मैं रात में सोयी हुई थी। तब मुझे एकदम दिव्य प्रकाश दिखाई दिया। मैं पहले डर गयी। किन्तु नवकार का स्मरण करने से थोड़ी मजबूती आयी। मैंने हिम्मत करके पूछा "आप कौन हो? यह प्रकाश कैसा है? मुझे समझ में नहीं आता।" उतने में उस प्रकाशपुंज में से एक दिव्य आकृति पैदा हुई और कहा, "मुझे नहीं पहचाना? मैं तुम्हें मदद करने आयी हूँ।" यह कहकर गाय का रूप ले लिया और कहा कि, 'तुमने मुझे नवकार सुनाया, उसके प्रभाव से मैं देवी बनी हूँ!" मैंने कछ मांग नहीं की। फिर भी देवी ने कहाँ, "तेरे पति को कल सवेरे नौ बजे नीन्द लेने देना। वे स्वस्थ हो | जायेंगे।" ऐसा ही हुआ। वे सवेरे 9 बजे से शाम को 5 बजे तक नीन्द में | ही रहे। तबीयत अच्छी हो गयी। पति को भी श्रद्धा बैठ गयी।
संवत् 2041 में पोष माह में पुनः देवी ने स्वप्न में कहा, "तुम्हारी सन्तान पर महाकष्ट आने वाला है, संभालना।" मैंने मेरे दोनों पुत्रों को दो दिन घर में ही रोका।. कॉलेज भी नहीं जाने दिया। दो दिन में अहमदाबाद से समाचार आया कि मेरी अहमदाबाद रहती पुत्री छप्पर के ऊपर से गिर गई. है। हालत गंभीर है। हम सभी अहमदाबाद गये। संकट
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - जानकर देवी को याद किया। बचाव हेतु विनति की। परन्तु उन्होंने कहा कि, "उसकी आयु कम होने से उसे बचाने की मेरी शक्ति नहीं है। तुम्हारी पुत्री बुधवार को सवेरे 9 बजे मृत्यु प्राप्त करेगी।" अन्तिम समय नजदीक जानकर, आशा को अन्तिम आराधना करवाने में सगे-सम्बंधियों का बहुत ही विरोध व कड़वे वचन सुनने पड़े। किन्तु आत्मा की गति का प्रश्न था। तब ऐसे विरोध की परवाह कैसे की जाये! वास्तव में आशा ने सवेरे 9 बजकर 5 मिनट पर नवकार स्मरण करते-करते देह त्याग दिया। उसके चक्षुदान करने की सम्मति उसके पास से ले ली थी और उसी के अनुसार चक्षुदान किया।
इस प्रकार पुत्री के अकाल अवसान से मन शोकमग्न रहता था। तब एक रात फिर देवी ने स्वप्न में कहा, "चिन्ता मत करो। नवकार के प्रभाव से तुम्हारी पुत्री की सद्गति हुई है।" मैंने अपनी पुत्री के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की। उस देवी ने मुझे मेरी पुत्री, जो नवकार के श्रवण के प्रभाव से देवी बनी थी, उसके मुझे दर्शन करवाये। जिससे मुझे बहुत सन्तोष हुआ। उस देवी ने कई बार अपने पास से धन वगैरह भी मांगने के लिए आग्रह किया। किन्तु अब तक मैंने उससे ऐसा कुछ नहीं मांगा है। वास्तव में इस घटना से नवकार के प्रति मेरी श्रद्धा एकदम बढ़ गई है। सभी नवकार मंत्र की आराधना करके अपना आत्म-कल्याण साधे। यही शुभभावना
लेखिका : द्रौपदी बेन शाह (मड़ागुंद वाले) बंगला न. बी 1 बी, फर्स्ट गेट के पास, सेण्ट्रल स्कूल के सामने,
ओडनस एस्टेट अम्बरनाथ पिन : 421501 फोन नं. 2262 उपर्युक्त घटना संक्षेप में पार्वचन्द्रगच्छीय सा. श्री ॐ कार श्री जी के पास सुनी थी एवं उनका पता लिया। उसके बाद हमने अम्बरनाथ जाकर द्रौपदी बेन के मुख से यह घटना सविस्तार सुनी। सं. 2043 में डोंबीवली चौमासे में रविवारीय प्रवचनमाला के दौरान हमारे कहने से द्रौपदी बहन ने विशाल सभा के समक्ष अपने
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अनुभव की यह घटना पेश की। जिसे सुनकर अनेक आत्माओं के हदय में नवकार महामंत्र के प्रति भारी श्रद्धा पैदा हुई। द्रौपदी बेन के वक्तव्य का सार यहां पेश किया गया है। शास्त्रों में नाग, समड़ी, चूहा, बन्दर , बैल, वगैरह अनेक तिर्यचों को भी अन्त समय में नवकार के श्रवण से देवगति आदि सद्गति प्राप्त होने की बात पढ़ने को मिलती है। उसकी यथार्थता उपर्युक्त अर्वाचीन घटना पढ़ने से अवश्य समझ में आयेगी। एक बार गाय -देवी ने द्रौपदीबहन को पूछा कि, "जब तुम्हारी आयुष्य पूर्ण होगी तब तुम्हारी मृत्यु किस प्रकार से होना तुम चाहती हो?" द्रौपदी बहन ने कहा कि, "मैं चाहती हूं कि, मैं रोग आदि से पीड़ित होकर और दूसरों को भी परेशानी हो इस प्रकार नहीं मरूं, किन्तु सहज भाव से ही मेरे प्राण जायें।"
और ऐसा ही हुआ। कुछ साल पहले द्रौपदी बहन का 'हार्ट एटेक' से अवसान हुआ है। - संपादक)
अब तुम नवकार के करोड़पति बनो
___ मैं पू. पंन्यासप्रवरश्री भद्रंकरविजयजी म. सा. के संसारी भतीजे श्री चिमनभाई भोगीलाल का पुत्र हूँ। संवत् 1985 में साहेबजी का | जामखंभालिया के पास के गांव में चातुर्मास था। तब मैं पर्युषण करने वहां गया था। उस समय साहेब ने मुझे बिठाकर पूछा, "हसमुख! इतनी दौड़भाग करता है, कुछ कमाता है कि नहीं?" मैंने कहा, "साहेब, सुबह से रात तक नौकरी करता हूँ। मुश्किल से 250 रुपये मासिक कमाता हूँ। साहेब, कुछ ज्यादा कमा सकुं, ऐसा कोई उपाय बताओ।" साहेब ने उत्तर दिया, "जब तक तेरे पूर्व के पापों का क्षय नहीं होगा, तब तक कुछ नहीं मिलेगा। पाप क्षय के लिए तो नवकार एटम बम्ब के समान है। उससे एक साथ इतनी बड़ी तादाद में पापों का क्षय होगा, कि जितने तुम नये पापों का बंध नही कर सकोगे। इससे तेरे पुण्य का बेलेन्स बढ़ने लगेगा और सभी वस्तुएं तेरे आस-पास घूमने लगेंगी। "उनकी बात मुझे पसन्द आ गयी। मैंने कहा, "आज से मैं नवकार की शरण में जाता हूँ। मुझे आशीर्वाद दो।" उन्होंने मुझे प्रतिदिन एक माला गिनने का सूचन कर, नवकार मंत्र का दान किया। वह एक-एक पद बोलाते गये, उस प्रकार मैं
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बोलता गया। नवकार पूरा होने के बाद उन्होंने वासक्षेप डालकर आशीर्वाद दिया।. उन्होंने मुझे कहा, "तू छः महीने तक नियमित गिनना। तू जरुर ऊपर आ जायेगा। कितना ऊपर आता है वह तू किस प्रकार गिन सकता है, उस पर आधारित रहेगा।"
मैंने उनके आशीर्वाद से उसी दिन से एक पक्की माला गिनना प्रारंभ किया। ऐसे तो मैं मुम्बई में शेयर बाजार के दलाल के वहां मासिक 200 से 250 रु. के वेतन पर काम करता था, जहां सुबह से रात के नौ बजे तक काम करना पड़ता था। ___ जाप शुरु करने के तीन माह बाद मेरे एक मामा ससुर, जो वर्षों से जापान रहते हैं, उनका अचानक पत्र आया कि, "यहां एक घर के आदमी की जरुरत है। तुम जापान आओ तो तुम्हें पचास हजार वार्षिक तनख्वाह खाने-पीने के साथ दूंगा। तुम्हें मेरे साथ ही रहना होगा। इस कारण लगभग 30-40 हजार की बचत होगी।" मुझे तीन महिनों में ही नवकार का प्रभाव दिखाई दिया। साहेबजी के पास जाकर विगत बताकर पूछा, 'जाऊँ या नहीं?' उन्होंने कहा, 'जहा सुखं' किन्तु वहां जाकर नवकार मंत्र को. मत भूलना। मैंने ता. 4.2.66 के दिन पहली बार विदेश प्रयाण किया। मैंने वहां ज्यादा समय मिलने के कारण 10 माला गिनना शुरु किया। जब शुरुआत की, तब एक माला में 20 मिनट लगती थी। धीरे-धीरे एकाग्रता बढ़ने से 7 मिनट में एक माला होने लगी। फिर प्रतिदिन 25 माला गिनना शुरु किया। जब पहला नव लाख जाप पूरा किया तब वार्षिक तनख्वाह दो लाख हुई। मैंने वहां 13 वर्ष तक काम किया। फिर मैंने जब उनका काम छोड़ा, तब मेरी वार्षिक आय तीन लाख तक पहुँची। मैं 1977 में नौकरी छोड़कर मुम्बई आया। साहेबजी से मिला, जाप की प्रगति बतायी। वे खुश हो गये। उन्होंने कहा, तेरे पूरे घर में नवकार फलीभूत हुआ है। अब एक माला गिनते वक्त केवल 1मिनट लगती थी। जाप दुगुना किया। जिससे हर छः माह में नौ लाख नवकार जाप पूरा होने लगा। साहेब ने कहा, "अब तू नवकार का करोड़पति बन।" मैंने उनकी आज्ञा
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मस्तक पर चढ़ायी। साहेबजी की कृपा से मेरी गाड़ी पटरी पर चढ गयी। आज मेरा 14 वीं बार नौ लाख का जाप चालु है। इसलिए साहेब जी की कृपा से नवकार का करोड़पति बना हूँ। मैं परमात्मा से भवोभव करोड़ों नवकार गिन सकुं ऐसी शक्ति मांगता रहता हूँ। मुझे नवकार मंत्र के प्रभाव से निम्नलिखित अनुभव हुए हैं।
(1) मन में किसी भी प्रकार की इच्छा उत्पन्न होती है, तो तुरन्त ही पूरी हो जाती है। सुबह कुछ खाने-पीने का मन हो तो शाम तक वह मिल जाता है।
(2) जो काम करने के लिए पहले सुबह से रात्रि तक भटकना पड़ता | था, वह काम अब महीने में एकाध दिन करने से हो जाता है। मानसिक शान्ति रहती है, एकाध काम में 10-20 हजार रूपये मिल जाते हैं।
(3) पैसे खत्म होने आते हैं तब मन में होता है कि अब घर खर्च खत्म होने आया है तो कहीं से भी एकाध धन्धा ऐसा हो जाता है कि, मेरी आवश्यकता से ज्यादा मिल जाता है।
(4) मैं स्वाभाविक रूप से किसी को भी कुछ कहता हूँ तो लगभग सही हो जाता है। इस कारण बोलने के लिए बहुत संभालना पड़ता है।
(5) आठ-दस दिन में साहेबजी स्वप्न में आकर आशीर्वाद देते हैं। ___ मैं जाप करने सुबह उठकर तुरन्त बैठता हूँ। पांच हजार नवकार गिनने के बाद ही दातुन करता हूँ। सुबह जो जाप में एकाग्रता आती है, इतनी रात में नहीं आती। मैं सवा-डेढ घंटे में जाप पूरा कर लेता हूँ। मैं जब नवकार मंत्र का जाप चालु करता हूँ, तब हमेशा मुझे एक उबासी आती है। लगता है कि जैसे किसी शक्ति का शरीर में प्रवेश हो रहा हो। बस फिर जाप की गति एकदम बढ़ जाती है। जब जाप पूरा होता है तब वापिस एक उबासी आती है। इससे आयी हुई शक्ति शरीर में से जा रही हो, वैसा लगता है। । ये मेरे अनुभव हैं। प्रत्येक व्यक्ति को सुखी होना हो तो एक माला
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? का जाप तो अवश्य ही करना चाहिये, ऐसा मेरा अनुभव कहता है।
लेखक : श्री हसमुख माई सी. शाह ई. सीमला हाऊस, 203 ए, दूसरी मंजिल, ओफ नेपीअनसी रोड़,
मुम्बई - 36 फोन नं. 8121348 पं. अभयसागरजी म.सा. के अजीब अनुभव
आगम विशारद, सुविशुद्धसंयमी, पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्रीअभयसागरजी म.सा. वर्तमानकाल में नवकार मंत्र के उत्तम कोटि के साधकों में से एक थे। वे प्रतिदिन रात्रि में साढे ग्यारह बजे से डेढ़ बजे तक नवकार मंत्र की साधना करते थे। परिणाम स्वरूप उनको कई विशिष्ट प्रकार के अनुभव होते थे। उन्हें कई बार भविष्य में होनेवाली घटनाओं का पहले से पता चल जाता था। यहां उनके जीवन के थोड़े प्रसंगों को पेश कर रहा हैं, जो वाचकवृन्द की नवकार महामंत्र के प्रति अटूट श्रद्धा जगाने के लिए सहयोगी बनेंगे।
भावी घटना का पूर्व संकेत ___ एक बार पूज्यश्री अपने पिता गुरुदेव उपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. आदि मुनिवृन्द के साथ कपड़वंज से बालासिनोर (पंचमहाल जिले में) होकर जा रहे थे। तब बालासिनोर में रात्रि में नवकार की साधना के दौरान पू. श्री को अंतः स्फुरणा हुई कि, "गोधरा जल उठेगा, इसलिए आगे का विहार रोक रक्खो।"
उन्होंने यह बात अपने गुरुदेव को कही और वहीं टींबा गांव में रुक गये। वहां उनको समाचार मिला कि, "कौमी हुल्लड़ के कारण गोधरा में चारों ओर भयंकर आग की आतिशबाजी खेली जा रही है।" वास्तव में महामंत्र, माता अपने बालक का रक्षण करती है, उससे भी अधिक सावधानी पूर्वक साधक का सभी प्रकार से रक्षण करता है। जरुरत है, श्रद्धापूर्वक उसे समर्पित होने की! जरुरत है, नियमित रूप
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? से अनन्य शरण भाव से इस माता की गोद में आलोटने की।
प्लास्टर अदृश्य हुआ
सं. 2027 में उंझा संघ के आग्रह से पूज्य श्री का चातुर्मास उंझा में तय हुआ था। उन्होंने चातुर्मास प्रवेश के लिए अहमदाबाद से विहार किया। परन्तु आषाढ़ वद 30 को रीक्षे के साथ उनकी भिड़न्त हुई। पैर में फैक्चर हो गया। फिर भी आत्मबल से डेढ़ किलोमीटर चलकर वैद्यराज के पास पहुंचे। उन्होंने 18 दिन का प्लास्टर बांध दिया और विहार न करने का आग्रह किया। परन्तु पू. श्री रात्रि में नवकार महामंत्र की साधना में स्थिर हुए और अजीब चमत्कार हो गया। पट्टी-पाटे सभी अदृश्य हो गये थे। उसके साथ दर्द भी गायब हो गया। जैसे कुछ ही हुआ न हो उसी प्रकार दूसरे दिन पूज्य श्री ने उंझा की ओर विहार किया और समय पर चातुर्मास प्रवेश भी हो गया ।
चौथी बार दिल का दौरा... फिर भी ... !
सामान्यतः दूसरे या अन्त में तीसरे हार्ट अटेक के बाद कोई भी रोगी जीवित नहीं रह सकता, ऐसा डॉक्टरों का मानना है । परन्तु पूज्य श्री ने महामंत्र की साधना के द्वारा चार चार हार्ट अटेक आने के बाद भी मृत्यु के सामने टक्कर झेलकर डॉक्टरों को भी आश्चर्य में डूबो दिया । चौथे हार्ट-अटैक से पहले पूज्य श्री ने नवकार की साधना के द्वारा मिली हुई पूर्व चेतावनी के अनुसार शिष्य वृन्द को कह दिया कि, "मुझे 72 घंटे तक जगाने की कोशिस नहीं करना। किसी भी प्रकार की दवा या इन्जेक्शन मत देना। इतना ही नहीं, मेरे शरीर को स्पर्श भी मत करना । " और वे मानो कि बेसुध हो गये (या नवकार मैया की गोद में लेट गये) और 72 घंटों के बाद वे स्वयं होश में आ गये, तब वे सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ थे। डॉक्टरों ने भी यह देखकर मुँह में अंगुली डाल दी ।
जम्बूद्वीप के दर्शन हुए
पूज्य श्री को एक बार राणकपुर के जिनमन्दिर में दर्शन करते हुए एकाएक पूरे जम्बुद्वीप के दर्शन हुए और अन्तर सूचना मिली । तदनुसार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पालीताणा में तलेटी के पास आगम मन्दिर के पीछे विशाल जम्बूद्वीप का निर्माण हुआ है। जैन आगमों के कथनानुसार पृथ्वी सूर्य के आसपास नहीं घूमती, परन्तु सूर्य-चन्द्र जम्बूद्वीप के केन्द्र में रहे हुए मेरूपर्वत के आसपास घूमते हैं, उससे ऋतुओं का परिवर्तन, दिन-रात आदि गणितबद्ध तरीके से होते हैं। यह बात प्रेक्टिकल रूप से साबित करके विज्ञानवाद में फंसी हुई नयी पीढी को धर्म के प्रति अश्रद्धा से बचा लेने के लिए पूज्य श्री ने नवकार द्वारा प्राप्त हुई अन्तर सूचना के अनुसार जम्बूद्वीप योजना का निर्माण किया। वहां भव्य जिन मन्दिर का भी शास्त्रानुसारी विधिपूर्वक निर्माण करवाया गया है।
सं. 2041 में उपर्युक्त जिनमन्दिर की प्रतिष्ठा फा. सु. 6 को तय हुई। परन्तु प्रतिष्ठा से तीन दिन पहले उनके पैर के ऊपर वजनदार पेटी गिरने पैर में फैक्चर हो गया। ....... भावनगर के डॉक्टर ने उन्हें इलाज हेतु भावनगर आने का आग्रह किया। 6 साधु पाट पर बिठाकर अस्पताल लेकर गये थे। परन्तु महामंत्र की साधना के बल पर पूज्य श्री तीसरे दिन पैरों से चलकर प्रतिष्ठा-महोत्सव में पहुंच गये और प्रतिष्ठा करवायी। फा. सु. 7 को पैरों से चल कर आदपर गांव गये। । वहीं से चढकर गिरिराज की यात्रा की। फा. सु. 8 को आगम मन्दिर वापिस आ गये! नवकार ने मार्गदर्शन भेजा
इस प्रकार पं. श्री अभयसागरजी म.सा. के अजीब अनुभवों की प्रसादी पेश करने के बाद, अब मेरे दो अनुभव बता रहा हूँ। | हम सं. 2021 के वर्ष में राजस्थान में नाकोड़ाजी तीर्थ की यात्रा
करने हेतु जा रहे थे। किन्तु हम मार्ग भूल गये। संयोग से अन्य साधुओं से अलग हो गये थे। चारों ओर रेगिस्तान था। ऊपर आकाश एवं नीचे धरती थी। पक्षी या पेड़ का भी नामोनिशान नहीं था।
अन्त में एक टेकरी पर बैठकर आंखे मून्दकर भावपूर्वक नवकार
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
तथा उवसग्गहरं का बारी-बारी से जाप किया। थोड़ी देर बाद आंखें खोलकर देखा तो 5 किलोमीटर दूर एक मुसाफिर ऊंटनी पर बैठकर जा रहा था। मैंने तेज आवाज लगाने के साथ दण्डे पर कपड़ा बान्धकर ऊँचा किया। जिसे देखकर मात्र 10 मिनट में वह 6 फीट लम्बा पठानी वेशभूषा वाला आदमी आ गया और रास्ता बताया। क्षण भर बाद मैंने पीछे देखा तो वह अदृश्य हो गया था !
फिल्म की तरह जवाब पत्र मिला
मैं ई. स. 1958 में 16 वर्ष का गृहस्थावस्था में था। मैं तब मैट्रिक की परीक्षा में 4 बड़े माप के पन्ने का अंग्रेजी प्रश्नपत्र देखकर एकदम घबरा गया। ऐसे भी मेरी अंग्रेजी कमजोर थी। मैं अन्त में आंखे बन्द कर नवकार एवं उवसग्गहरं का क्रमशः जाप करने लगा। ऐसे भी बड़ों की | प्रेरणा से प्रतिदिन एक माला तो अवश्य गिनता था । और वहां तो चमत्कार हो गया। जाप करते-करते बन्द आंखों में फिल्म की तरह प्रश्नों के उत्तर दिखने लगे और जिससे उत्साह में आकर मुझे जितने उत्तर याद रहे वे लिखे और 50 प्रतिशत अंक प्राप्त किये !
लेखक पू. गणिवर्य श्री महायशसागरजी म.सा. (हाल आचार्य) (इसमें पू. पंन्यास श्री अभयसागर जी म.सा. के अनुभवों में से कुछ घटनाएं पालीताणा में उनके स्वयं के मुख से भी सुनी थी। पुनः सं. 2043 में मुम्बई मलाड़ में पू. गणिवर्य श्री महायशसागरजी के पास से सुनी थी। उनका सारांश यहां पेश किया गया है - सम्पादक)
नवकार मंत्र का अजीब प्रभाव
(यहां पेश किये गये 6 अजैन प्रसंगों सहित कुल 7 प्रसंगों शतावधानी पू. आ. भ. श्री विजयकीर्तिचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा लिखित संपादित "संस्कार नी सीढी.' "प्रसंग परिमल, " 'तेजस्वी रत्नों" तथा धर्मतत्त्व प्रकाश" में से साभार उद्धृत किये गये हैं - सम्पादक)
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उत्तरप्रदेश में आये हुए झांसी शहर की यह ताजी घटना है। जिसे
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अभी तक एक दशक भी पूरा नहीं हुआ है। एक मुसलमान, जैन साधु के परिचय में आया। जैन साधु के त्याग का एवं उनकी असरकारक वाणी का उसके हदय पर कोई अजीब सा प्रभाव पड़ा। उसने मांस-मदिरा का त्याग किया, इतना ही नहीं, बल्कि त्यागी गुरु के पास से नवकार मंत्र भी सीखा। पवित्र और निर्मल बनकर वह उसका प्रतिदिन जप करने लगा। धीरे-धीरे नवकार मंत्र के ऊपर उसकी आस्था अत्यन्त मजबूत बनी।
ऐसे पवित्र आचार-विचार से यह मुसलमान अपनी कौम में से अलग पड़ने लगा। दूसरे मुसलमानों को यह कैसे पसन्द आये? उन्होंने इस मुसलमान को बहुत-बहुत समझाया कि यह नाटक छोड़ दे, किन्तु वह श्रद्धालु मुसलमान अडिग रहा। वह अपने विचारों से जरा भी विचलित नहीं हुआ।
इससे अन्य मुसलमान नाराज हुए और उनमें से एक मुसलमान ने उसे जान से मारने का निर्णय किया। उसके लिए टेढे-मेढे कई विचार करने के बाद उसने एक उपाय आजमाया। वह एक जहरीले सर्प को उठा ले आया और वह श्रद्धालु मुसलमान जहां हमेशा सोता था, वहां उसके बिस्तर के नीचे उस सर्प को इस प्रकार रखा कि भागकर न चला जाये। उस समय वह श्रद्धालु मुसलमान उपस्थित नहीं था। किंतु जब वह रात को वहां आया और सोने की तैयारी करके हमेशा के अनुसार नवकार मंत्र का स्मरण करने लगा, तब उसे अपने आप ऐसा आभास हुआ कि मेरे बिस्तर के नीचे सर्प है। इसलिए वह तुरन्त उठा और बिस्तर ऊँचा करके देखा तो सांप घबरा रहा था। उसी क्षण सांप वहां से भाग गया।
इस श्रद्धालु मुसलमान ने गुरुदेव के मुख से नवकार मंत्र की अनोखी महिमा सुनी ही थी और यह घटना घटी। इससे उसके हदय में अनन्य श्रद्धा प्रकट हुई। इधर वह सर्प वहां से डरकर जिस मुसलमान ने इस सर्प को रखा था, उसी के घर सीधा चला गया और उसकी एक बेटी सो रही थी, उसे डंक मारा। लड़की की चीख से वहां शोर मच गया और चारों ओर से लोग दौड़े चले आये। लड़की का बाप वह
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मुसलमान भी इतने में वहां आ पहुंचा। उसे यह पता नहीं था कि मेरी पुत्री को सांप ने डंक मारा है। उसके हदय में आज अपार खुशी थी कि आज उस भक्त मुसलमान का ठीक पत्ता मैंने काटा है, किन्तु घटना यह घटी कि श्रद्धालु मुसलमान तो नवकार मंत्र के प्रभाव से एकदम बच गया, उसे कोई तकलीफ नहीं आई और वह तो निश्चित बनकर सो गया। वह दुष्ट मुसलमान अपनी पुत्री के पास आया तब उसे पता चला कि मेरी पुत्री को सांप ने डंस दिया है, जिससे उसके होश उड़ गये। उसने कई उपचार करवाये। मंत्रवादियों को बुलाया, किन्तु जहर नहीं उतरा। आशा-निराशा में बदल गई। मुसलमान दुःखी हुआ और "हाय! मेरी पुत्री मर जायेगी। किसी ने उसका जहर नहीं उतारा, अब क्या होगा?'' इस चिन्ता में आन-भान भूल गया।
- थोड़ी देर बाद उसे स्वयं आभास हुआ कि, 'वास्तव में मैंने दूसरे को मारने का प्रयास किया था, उसका यह परिणाम है, कि आज मेरे स्वंय के लिए रोने का समय आया। "जो खड्डा खोदता है वही उसमें | गिरता है" यह कहावत सही हुई है, किन्तु अब क्या होगा?"
इतने में इसे एक विचार आया कि, 'अब उस श्रद्धालु मुसलमान के पास जाऊँ और उसके चरणों में गिरकर अपने अपराध की क्षमा मांगे। वह जरुर मेरी पुत्री के प्राण बचा सकेगा।' वह विलम्ब किये बिना उस श्रद्धालु मुसलमान के पास दौड़ा। वह घोर निद्रा में निश्चित बनकर सोया हुआ था। उसे इस भाई ने उठाया। "कैसे आना हुआ" श्रद्धालु मुसलमान ने पूछा।
"भाई साहब! मैं आपके चरणों में गिरता हूँ। मुझे मेरे अपराध की क्षमा दो! मैं अपराधी हूँ।"
वह श्रद्धालु मुसलमान विचार में पड़ गया कि, "यह किसकी माफी मांग रहा है? क्या बोल रहा है? कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"
"क्या हुआ भाई? किसलिए माफी मांगते हो? तुमने मेरा कोई अपराध नहीं किया है। ऐसे क्यों अनुचित बोल रहे हो?" श्रद्धालु
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मुसलमान को यह खबर न थी कि वह कारनामा भाई साहब का ही था। उस दुष्ट मुसलमान ने सच्चाई उगली, तब इस श्रद्धालु मुसलमान को पता चला कि मेरे बिस्तर के नीचे सांप रखने वाले यही भाई थे। माफी मांगने के बाद टूटे-फूटे शब्दों में वह दुष्ट मुसलमान बोला, "बचाओ, बचाओ, | |मेरी प्यारी पुत्री के प्राण बचाओ!"
"क्यों, क्या हुआ?" श्रद्धालु मुसलमान ने पूछा?
"मेरी पुत्री को सांप ने डंक मारा है और वह बेहोश हो गई है।। सभी उपाय आजमाए, किन्तु सभी निष्फल गये हैं-'" उसने जवाब दिया। श्रद्धालु मुसलमान बोला कि "मैं कोई मंत्रवादी थोड़े ही हूँ?"
उसने कहा कि "भले ही आप मंत्रवादी न हों, किन्तु मुझे विश्वास है, कि आप ही बचा सकेगें।"
"तो ठीक है चलो, दूसरे के प्राण मेरे से बचते हों तो मैं तैयार हूँ।" ___ कितनी भलाई की भावना! अपने प्राण लेने के लिए तैयार होने वाले, अपना बुरा करने वाले का भी कल्याण हो, ऐसी इस श्रद्धालु मुसलमान की भावना थी। वह तुरंत उठा और मुसलमान के साथ चल पड़ा। लड़की के होश-हवास उड़ गये थे। मंत्रवादियों ने हाथ झिड़क दिये थे। बचाव का कोई उपाय नहीं था।
ऐसी विकट स्थिति में उस श्रद्धालु मुसलमान ने नवकार पढ़कर उसके ऊपर पानी छिड़का, वहां अजीब चमत्कार खड़ा हो गया। जहर उतर गया। जैसे नया जन्म लिया हो उस प्रकार शैय्या पर से उसकी पुत्री उठकर बैठ गई। सभी हर्षातुर बनकर उस श्रद्धालु मुसलमान पर फिदा हो गये। सभी के मुंह से सहजता से निकल गया कि, "कैसी परोपकार परायणता? कैसी मंत्र शक्ति? धन्य है, धन्य है!"
एक अपराधी पर भी रहम नजर रखना कोई जैसी-तैसी बात नहीं थी। ऐसी आत्माएं जगत् में बहुत विरल ही होती हैं।
नवकार मंत्र अनादिकालीन है, इसका प्रभाव अजीब है। शास्त्रों में
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - स्थान-स्थान पर इसके प्रभाव के दर्शन कराने वाले अनेक दृष्टान्त भरे पड़े। हैं। किन्तु गिनने वालों में श्रद्धा होनी चाहिये। अधीर और अस्थिर भाव से गिनते हों, चित्त कहीं और भटकता हो, हदय बुरी भावनाओं के कचरे से भरा हो, वहां फल की आशा कैसे रखी जा सकती है? मलिन वासनाएं जहां वास करती हों, वहां ऐसा प्रभाविक मंत्र फलित नहीं होता है-यह स्वभाविक है।
आज मनुष्य में श्रद्धा नहीं, विश्वास नहीं, गिनने के साथ वह परिणाम की मांग करता है। बस दुनिया के पौद्गलिक सुखों की आशा से ही नवकार गिनते हैं, तब उसका फल भी वैसा ही होगा।
. नवकार मंत्र गिनने की अपने को फुर्सत नहीं मिलती, और अन्य मंत्र गिनने के लिए हम दो चार घंटे निकाल देते हैं। कभी गुरु महाराज पूछते हैं, 'क्यों भाई! नवकार गिनते हो न?' तब हम जवाब देते हैं कि, "साहेब! बहुत गिने, किंतु कुछ दिखाई नहीं देता।" ऐसी अनास्थायुक्त तो आपकी भावना है उसके ऊपर। प्रेम, श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक, चौदह पूर्व के सार रूप नवकार मंत्र के जाप में लयलीन बनो। उस समय दुनिया को | एकदम भूल जाओ। शास्त्रकार कहते हैं कि -
'नवकार इक अक्खरं, पावं फेडेई सत्त अयराणं। पन्नासं च पयेणं, पणसय सागर समग्गेणं।।'
'नवकार मंत्र का एक अक्षर बोलने से सात सागरोपम के पापों का विनाश होता है। नवकार मंत्र के एक पद का जाप करने से 50 सागरोपम और पूरे नवकार का जाप करने से 500 सागरोपम के पापों का विनाश होता है। एक चित्त होकर विधिसहित भाव से नौ लाख नवकार का जाप करने वाला जानवर या नरक गति में नहीं जाता है।
नवकार मंत्र जैसा दुनिया में दूसरा कोई मंत्र नहीं है। ऐसे अपूर्व नवकार मंत्र को छोड़कर कौन दूसरे मंत्र-तंत्र में अनुरक्त होगा?
इसलिए हे महानुभावों! परम मंगलकारी, आधि, व्याधि और उपाधि से बचाने वाले, सुख-समृद्धि-दातार, समग्र दुःख का विनाश करने वाले,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? चौदह पूर्व के सार, अनादिसिद्ध ऐसे नवकार मंत्र का खूब-खूब स्मरण | करो और मुक्ति वधू को प्राप्त करो।
मानव जिससे देव बनता है।
साला एवं बहनोई की घटित यह ताजी घटना है। वि. सं. 1997198 की यह सही हकीकत है।
मारवाड़ का शिवगंज जैनों की बड़ी आबादी वाला शहर. है। वहां के एक श्रीमंत गृहस्थ बीमार पड़े। इन सेठ के बहनोई मद्रास रहते थे। बहनोई को लगा कि साले की तबीयत खराब है, आखरी अवस्था है, मुझे जाना चाहिये। किंतु सांसारिक अनेक जिम्मेदारियों के कारण वहां नहीं जा सके और साले के प्राण उड़ गये। साले की मृत्यु के बाद एक बार बहनोई रात्रि में शैय्या पर सोये हुए थे। तभी स्वप्न में अपने साले को देखा। बातचीत में साले ने कहा कि, "मैं अभी व्यंतर देवलोक से तुम्हारे साथ बातचीत कर रहा हूँ। बहनोई ने पूछा कि, तुम व्यंतर गति में कहां से? आश्चर्य की बात है कि तुम व्यंतर लोक में पहुंच गये।'! .
तब पूर्व के साले ऐसे व्यंतर देव ने जवाब दिया, "भाई! तुम्हारी बात एकदम सही है। मेरा जीवन ऐसा सुन्दर एवं आदर्शमय नहीं था कि |जिससे मैं व्यंतरलोक में उत्पन्न हो सकू। किंतु मैं बिस्तर पर था, जीवन
की आशा नहीं थी तब सगे-सम्बंधियों ने गुरुदेव को विनति की। गुरु महाराज ने मुझे अंतिम आराधना करवाई, खूब-खूब नवकार सुनाए और कुछ प्रतिज्ञाएं भी दी और मेरे जीवन में हुई गल्तियों की निंदा गर्दा करने करने का सूचन दिया। बस, इन गुरुदेव ने मुझे नवकार मंत्र सुनाये, इसके ध्यान से मेरे प्राण निकले। इसके प्रभाव से मैं नीच गति में जाने वाला आज व्यंतर देवलोक में उत्पन्न हुआ हूँ।"
इतनी बात होने के बाद बहनोई जग गये और रात की बात दिमाग में रखी। अभी वे मद्रास में थे। मद्रास से इन्होंने तुरंत ही शिवगंज पत्र लिखा कि, "जब मेरे साला गुजर गये, उस समय कोई गुरु महाराज वहां |
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पधारे थे? उनका नाम क्या था? वह पूरी जानकारी के साथ मुझे पत्र लिखना।"
___ तुरंत ही पत्र का प्रत्युत्तर आया कि, "तुम्हारे साले को अंतिम आराधना करवाने गुरु-महाराज पधारे थे। उनका पावन नाम पू. आचार्य देव श्रीमद् विजयलक्ष्मणसूरीश्वरजी महाराज था। वे खीमेल से विहार कर गुजरात की तरफ पधार रहे थे और एक दिन के लिए यहां रुके थे, तब उन्होंने उसी दिन यहां तुम्हारे साले को अंतिम आराधना करवाई एवं नवकार मंत्र सुनाये थे।"
पत्र पढ़ते ही बहनोई को वस्तुस्थिति की सत्यता समझ में आ गयी। अहो! नवकार मंत्र का कैसा अजीब प्रभाव है! वास्तव में ऐसा अच्छा महामंत्र मिलने के साथ भी हम प्रमादी बनते हैं। श्रद्धा एवं विश्वास नहीं रखते हैं। बस उसी ही दिन बहनोई के हदय में भारी परिवर्तन आया। यह भाई कोई जैसे-तैसे आदमी नहीं हैं, एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। उन्होंने खुद ने मुझे हकीकत सुनाई थी, जिसे मैंने अक्षर रूप दिया है।
नवकार मंत्र का प्रभाव दर्शाने वाले भूतकाल के कई दृष्टान्त हमने सुने हैं, किन्तु वर्तमान काल में भी चमत्कार दिखाने वाली घटनाएं एवं |वैसी हकीकतें प्रकाशित होती रहती हैं।
नवकार मंत्र का प्रभाव और उसकी महिमा का वर्णन करने बैठ जायें तो पुस्तकें ही पुस्तकें लिख दें, फिर भी इसकी महिमा नहीं गायी जा सकती है। नवकार मंत्र की महिमा गाना अपनी शक्ति के बाहर की बात है। हमें नियमित रूप से प्रातः काल में पवित्र बनकर शुद्ध मन से नवकार मंत्र का ध्यान करना चाहिये। जिससे अपना दिन मंगलमय बीते, जन्म-जन्म के पाप दूर होकर आत्मा पवित्र बने।
"यह तो हमारे लड़के भी जानते हैं।"
यह एक सत्य घटना है। इस बात को अभी तक 60 वर्ष भी नहीं
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हुए हैं। गुजरात में त्यागी साधु - मुनिराजों का आवागमन अतिसुलभ है। एक प्रसिद्ध त्यागी गुरुदेव के व्याख्यान में एक मुसलमान नियमित हाजिर रहता था। व्याख्यान की शैली की अजीब छटा, रोचक शैली और प्रभावपूर्ण प्रवचनों ने मुसलमान के हृदय में गहरी छाप छोड़ी। तब वह मुसलमान गुरुदेव का पूर्ण भक्त बन गया। गुरुदेव ने उसे नवकार मंत्र सिखाया, और इस मंत्र की अजीब महिमा का भी साथ में वर्णन किया और कहा कि, 'इसके प्रभाव से मानव चाहे वह कार्य कर सकता है, विघ्नों एवं विपदाओं से मुक्ति पाता है, और सभी कामनाएं पूरी होती हैं, इसलिए हमेशा नवकार मंत्र का ध्यान करना, खूब जाप करना ।
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मुसलमान को जैन साधु से अथाह प्रीति थी। उनका वचन आदर | से स्वीकार कर लिया। नियमित रूप से वह मुसलमान नवकार गिनता है, उसकी श्रद्धा अटल है। वह समझता है और मानता है कि, मैं नवकार मंत्र के बल से चाहे जो कार्य कर सकता हूँ।
एक बार एक श्रीमंत जैन गृहस्थ अपने बाल बच्चों आदि पूरे परिवार सहित बैलगाड़ी में बैठकर दूसरे गांव जा रहे थे। वह मुसलमान भी उसी रास्ते से जा रहा था। सेठ ने पानी साथ लिया था लेकिन थोड़ा होने के कारण समाप्त हो गया था। बच्चे रोने लगे - " पिताजी, पानी! पिताजी, पानी!" किंतु इस भयानक जंगल में पिता कहां से पानी लाये ?
पिता ने चारों ओर नजर घुमाई, किंतु कहीं भी कुंआ, बावड़ी, तालाब नजर नहीं आया। पिता विचार में पड़ गये, 'क्या करना ? ऐसे घोर जंगल में से पानी कहां से लाना ?' उस मुसलमान ने सोचा कि सेठ को पानी की आवश्यकता है। इनके बच्चे पानी के लिए रो रहे हैं।
तुरंत ही उसने सेठ से कहा, "सेठजी! जरा रुको, मैं पानी लाकर देता हूं।"
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सेठ ने कहा, 'भाई ! हमने बहुत तलाश की है। यहां पानी नहीं है, तो तुम कहां से पानी लाओगे ? जाने दो। जल्दी आगे बढ़ें और घर पहुंच जायें।
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"सेठजी! देखो तो सही, अभी पानी लाकर देता हूँ।" "ले आ पानी, तेरी मेहरबानी ।" मुसलमान ने चार पांच कदम दूर जाकर जमीन पवित्र कर एक रुमाल बिछाया और कुछ गुनगुनाने लगा। सेठ सोचते हैं, यह क्या कर रहा है। ऐसे क्या पानी मिल जाने वाला है?
सेठ का धैर्य खत्म हुआ और बोल उठे, "भाई साहब! रहने दो, हम जा रहे हैं। ऐसे पानी नहीं आयेगा ।" किंतु वह मुसलमान तो अपने ध्यान में मस्त था। थोड़े ही क्षण बाद वहां मीठे पानी का कुंड दिखाई दिया। इस मीठे पानी के कुण्ड में से मुसलमान ने लोटा भरकर सभी को पानी पिलाया। सेठ की खुशी का पार नहीं रहा। सेठ ने सोचा कि यह तो परमात्मा जैसा है। लड़के खुश हो गये और सेठ बोल पड़े, " वाह रे मुसलमान। "
"
सेठ ने मुसलमान से कहा, "मुझे यह तो बता किं, तुम रुमाल बिछाकर क्या गुनगुना रहा था ? मुसलमान ने बताया- 'सेठ साहब! गुरु महाराज ने मुझे एक मंत्र बताया था और उन्होंने कहा था कि इस मंत्र के प्रभाव से तेरी सभी इच्छाएं पूरी होंगी, विघ्न एवं विपदाएं दूर होंगी। मुझे गुरुजी के वचन के ऊपर पूर्ण श्रद्धा थी, जिससे मैंने इस मंत्र का ध्यान किया।" इसके प्रभाव से तुरंत ही पानी का कुंड तैयार हो गया । "
" किंतु यह मंत्र कौन सा है, यह तो बता?" सेठजी बोले ।
"सेठजी, आपको इस मंत्र से क्या काम है? आपका काम हो गया है ।" - मुसलमान ने बताया ।
सेठजी कहते हैं कि " वह हमारे कठिन समय में काम आयेगा, यदि इस समय तुम नहीं होते तो पानी के बिना लड़के मर जाते, इसलिए हमें यह मंत्र बता दो, ताकि हम भी कठिन प्रसंग में इसका प्रयोग कर हमारी इच्छा पूर्ण कर सकें।"
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सेठ ने खूब आग्रह किया तब मुसलमान बोला- 'सेठजी ! सुनो, 'नमो अरिहंताणं... नमो सिद्धाणं..." वगैरह नवकार मंत्र के नवपद वह शुद्धता से बोलने लगा।
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'यह तेरा मंत्र । " ?
सेठ कहते हैं
मुसलमान कहता है- "जी, सरकार। "
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'अहो ! यह तो हमारे घर के बाल बच्चे और घर के सभी लोग जानते हैं। जा... जा... हम तो प्रतिदिन गिनते हैं फिर भी कुछ नहीं होता, यह पानी का कुण्ड तो कुदरती बना है, इसमें मंत्र का प्रभाव नहीं है ।" - सेठ बोले ।
"ऐसा? आप यह मंत्र प्रतिदिन गिनते हो? आप यह मंत्र जानते हो? इसमें कुछ नहीं ?" - मुसलमान ने प्रश्न किया।
देखा ! सेठजी स्वंय अश्रद्धालु थे। नवकार मंत्र के ऊपर का विश्वास खो बैठे थे। इस मुसलमान को दृढ श्रद्धा थी, पूर्ण विश्वास था। वह सेठजी के संसर्ग से विश्वास खो बैठा।
मुसलमान ने फिर पानी का कुंड बन जाये इस इच्छा से नवकार मंत्र का ध्यान किया, बहुत नवकार गिने, किंतु कुंड या पानी का नामोनिशान नहीं आया । मुसलमान ने सोचा कि, सेठजी की बात सही है, इस मंत्र में कुछ नहीं है।
आज ऐसी कई आत्माएं बिचारे कइयों की श्रद्धा लूट रही हैं। स्वयं अश्रद्धालु होते हैं, और दूसरों को भी अश्रद्धालू बनाते हैं। फिर मुसलमान गुरु महाराज से मिलता है और सही हकीकत पूछता है।
तब गुरु महाराज ने सत्य हकीकत सुनाई। सेठ की बात सुनकर गुरु महाराज को बहुत खेद हुआ। ऐसे लोगों को स्वयं को विश्वास नहीं होता इसलिए दूसरों को भी विश्वास से चलित करते हैं। वास्तव में जैन धर्म आज बनियों के हाथ में आया है। प्रथम क्षत्रियों के हाथ में था। स्वप्नों के वर्णन में आता है कि, उकरडे (गन्दगी का ढेर ) पर कल्पवृक्ष उगा, यह सही बात है।
विश्वास रखना पड़ता है, बिना धर्म के ऊपर यदि विश्वास नहीं रखा जाये तो धर्मकार्य कहां से फलीभूत हो ? फल मीठा चखना है, बातें
दुनिया के सभी व्यवहारों में विश्वास व्यवहार भी नहीं चलता है।
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बड़ी करनी हैं, और श्रद्धा में गोल-मटोल चूड़ी जैसा शून्य, तो कैसे चले ? इसलिए श्रद्धा मजबूत बनाओ। अपनी श्रद्धा अस्थि मज्जा जैसी होनी चाहिये। रग-रग में, देव, गुरु और धर्म के प्रति अपना विश्वास होना चाहिये। ऐसी दृढ़ श्रद्धा और विश्वास से की गयी धर्म क्रिया का फल अवश्य मिलता है।
पारसी भाई का प्रेरक पत्र
श्रीमद् पू. आ. देव श्री लक्ष्मणसूरीश्वरजी म.सा. तथा शतावधानी पू. आ. श्री विजय कीर्तिचन्द्रसूरीश्वरजी को भाई सोराब दाराशा के प्रणाम होना जी। आपने मुझे जो प्रेम से तुम्हारा " प्रसंग परिमल" पुस्तक भाईजी ठाकोरभाई शाह के साथ भेजा, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। आपने एक सामान्य आदमी को भी बहुत ही प्रेम के साथ याद कर मेरे साथ बातचीत हुई उसे एवं उसका बोध, आपने मुझे समझाया था, उसका शब्दो - शब्द " एक पारसी भाई" नाम के शीर्षक से आपकी पुस्तक में छपाया है। मैं आपको मेरे थोड़े अनुभव आपके दिये हुए मंत्र " नमो अरिहंताणं" के लिए लिखता हूँ। जो पसंद आये वो लोग इसे साधारण मंत्र समझें या अवधूत मंत्र समझें परन्तु मेरे लिए तो एक आशीर्वाद है। यह मंत्र मैने आपके पास लिया था, उस समय आपने एक पुस्तक दी थी। वह मैंने पढ़ी किंतु उसमें से ऊपर का मंत्र ही मैंने मुखपाठ कर लिया था, इस पर मैं प्रतिदिन जाप करता आया हूँ। इसका असर मेरी पूर्णश्रद्धा के कारण कहो या आप साहेब की दुआ से कहो, मुझे तो इसमें हर प्रकार से फतेह मिली है। आशा करता हूँ कि जिन्दगी भर भी मिलती रहेगी।
(1) मुझे बिच्छू उतारने का बहुत शौक है। किसी का बिच्छू का जहर चढ़ा हो, तब मैं यह मंत्र बोलकर 3 बार हाथ ऊपर से नीचे झटक लेता हूं। इस प्रकार तीन बार करने से चाहे जैसा कातिल बिच्छू नीचे डंक के स्थान पर आ जाता है। फिर पीड़ित व्यक्ति को हाथ की कोहनी से हाथ तक और पैर की कोहनी से लेकर पैर तक इस प्रकार धोने का
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - कहता हूं। उसके बाद उनको दूध,चाय, पानी, शक्कर खिलाता हूं और मैं होंठ हिलाये बिना मन में नवकार गिनता हूँ। उससे लोगों को बहुत जल्दी आराम होता है।
(2) आधा माथा दर्द करता हो (चाहे जितना पुराना हो) तो निश्चित रग (नाड़) दबाकर यह मंत्र चालु करता हूँ। जिससे तीन चार दिन में, किसी बार 1-1 दिन में आराम प्राप्त कर वापिस पांच वर्ष तक दर्द नहीं होता है।
बोलो साहेबजी! ऐसे मंत्र पर मुझे श्रद्धा कैसे न हो? आशीर्वाद तो आपका ही है न?
(3) सिर दर्द हो तो 7 दिन करता हैं। (4) बुखार हो तो 3 दिन करता हूँ।
(5) नजर भी लाफा लेकर तुरंत उतारता हूँ। परन्तु मंगल एवं शनिवार यह बहुत जोश वाले दिन सिद्ध होते हैं।
साहेब! मैं एक पाई (पैसा) किसी से लेता नहीं हूं। और उस आदमी का या मेरे अपने आदमी के हाथ का भी प्रेम से दिया हुआ भी उस समय खाता या पीता भी नहीं हूँ। किसी भी दिन कोई खाने पर बुलाये तो साफ मना कर देता हूँ। गुस्सा आये तो माफी चाहता हूँ। किन्तु मैं उस पर कुछ भी स्वार्थ रखे बिना अचल श्रद्धा के साथ मंत्र मनन करता हूँ। बोलो तो साहेब। यह बात आप जानते हो? मैने यह मंत्र जाप कर अपने कठिन दिन भी संतोष के साथ व्यतीत कर धीरज से बिताये हैं। जो अभी के मेरे धंधे के बारे में बुरा भला कहते हैं, उन्हें कुछ भी जवाब नहीं देता, उन्हें मैं आशीर्वाद देता हूँ कि वे लोग सही बोलें। यदि में ऐसे नहीं करूं तो मेरी की हुई मेहनत पानी में मिल जाये और मैं वैसा का वैसा नादान रहूँ और अज्ञानी कहलाऊँ। मैं तो मेरा जीवन कैसे अच्छा बने उसकी कोशिस करता हूँ।
यद्यपि मेरे से हजारों पाप होते होंगे उससे मैं पापी तो कहलाऊंगा ही, क्योंकि मेरे विचार तो अच्छे और बुरे रहते ही होंगे। साहेब पत्र पूरा
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? करता हैं। गलती हुई हो तो क्षमा करना। फिर एक बार आपके आशिष एक गरीब पर बरसाना जी। जिससे मुझ जैसे को परोक्ष रहने के बावजूद भी ज्ञान बोध मिलता रहे।
लिखी. आपका दरबाशा
दिनांक : 9.1.70 नोट : मैंने इस मंत्र पर सिद्धि प्राप्त की है परन्तु यह टिक कर रहे बस! ("धर्मतत्व प्रकाश")
नरेन्द्र को नवकार फाला) ऐसे तो मैं खंभात का निवासी हूँ। वर्तमान में शांताक्रूज (मुम्बई) में रहता हूँ। मैं जाति से वीसा नागर वणिक (जैनेतर) हूँ। किन्तु मेरे पड़ोसी अहमदाबाद के जैन हैं। उनकी प्रेरणा से उस समय शांताक्रूज में विराजमान जैन मुनि श्री कीर्तिचंद्रविजयजी म.सा. का समागम हुआ। उन्होंने मुझे कुछ उपयोगी पुस्तकें दीं। मैं प्रतिदिन सुबह शाम 108 नवकार गिनने लगा। लगभग नवकार गिनते मुझे दो वर्ष होने आये हैं। उससे पहले मुझे कुटुम्ब निर्वाह की चिंता थी। रात को कई बार नीन्द नहीं आती थी। सामान्य बातों में ही क्रोध चढ जाता था। नवकार मंत्र गिनना प्रारंभ करने के बाद सबसे बड़ा फायदा हुआ। आज मैं एक मिल में अच्छी तनख्वाह वाला कर्मचारी हूँ। नीन्द तो नियमित आती है किन्तु समता भी अधिक रहती है।
अभी हमारी मिल में एक घटना घटी। मिल मालिक ने मुझे कहा कि, "अपने पास अब अच्छी क्वालिटी के फुर्तीले मशीन आये हैं, जिससे काम ज्यादा होगा। इसलिए पन्द्रह लोगों को अपने को छुट्टी देनी है।" इन पन्द्रह लोगों को काम पर आने का मना किया। इसमें से कितनों ने तो मुझे गालियां दी और न कहने योग्य शब्द कहे। किन्तु मैंने उन पर जरा भी गुस्सा नहीं किया, कारण कि मुझे भी उनको छुट्टी देने के कारण दुःख हुआ
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
कि अब इनके आश्रित बच्चे क्या खायेंगे? थोड़ी देर बाद ही मेरे सामने रोष प्रकट करने वाले मुझसे माफी मांगने लगे। मैं घटना के समय नवकार मंत्र गिन रहा था। मेरी तनख्वाह पांच सौ रूपये से बढकर एक हजार आठ सौ रूपये हुई है।
लेखक - नरेन्द्र माणकलाल मोतीवाले,
(" प्रसंग परिमल' में से)
धनजीभाई धन्य बने
पन्द्रह दिन पहले की ताजी बात है। साणंद के म्यु. प्रेसीडेंट मोटर द्वारा राजकोट गये थे। वहां से चोटीला होकर वापिस आते साणंद के पास पहुँचे तब अचानक मोटर बन्द हो गई। धनजी भाई मोटर में ही बैठे थे। बैठे-बैठे सहजता से नीन्द आ गई, कि पीछे से एक माल से भरी ट्रक तेज गति से आ रही थी। धनजी भाई के साथ वाले ने हाथ ऊँचा करके ट्रक वाले को धीरे से चलाने का ईशारा किया, परन्तु ट्रक वाले ने तेज गति जारी रखी। जिससे ट्रक धनजी भाई की गाड़ी से टकराई और धनजी भाई की गाड़ी एक बड़े गड्ढे में गिर गई।
सामने एक बड़ा पेड़ था । यदि गाड़ी इस पेड़ से टकरा जाती तो गाड़ी का चकनाचूर हो जाता। किंतु आश्चर्य की बात यह थी कि गाड़ी गड्ढे में गिरने के बावजूद किसी को कोई चोट नहीं लगी और सब आबाद बच गये। बचने का कारण सभी को एक ही मिला कि इस घटना के समय धनजी भाई "अरिहंत... अरिहंत" जपते थे। श्री धनजी भाई पटेल जैनेतर होने के बाद भी तीन वर्ष पूर्व पु. गुरुदेव विजयलक्ष्मणसूरीश्वरजी म.सा. के समागम में आये। फिर उनके व्याख्यानों का उनके ऊपर जोरदार असर होने लगा और तब से वे नियमित नवकार मंत्र गिनने लगे।
वे अपने मित्रों एवं शुभेच्छकों को भी समय-समय पर दर्शनार्थ लाकर व्याख्यान सुनवाते हैं। उनके मित्र मण्डल में घांची मोची, पटेल, ब्राह्मण इस प्रकार विविध जातियों का समावेश होता है। सभी भाइयों ने
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पू. महाराज श्री के उपदेश से मांस मदिरा का त्याग किया है। सभी नियमित नवकार मंत्र का स्मरण करते हैं। ( तेजस्वी रत्नों' में से) वैद्यराज श्री रामचन्द्रजी के तीन चमत्कारिक अनुभव
सतारा के पास आऐ पुसेसावली गांव के निवासी वैद्यराज श्री रामचन्द्र बापुराव सूर्यवंशी, मराठा (क्षत्रिय)जाति के हैं, परन्तु वे जैन धर्म पर अपूर्व आस्था रखते हैं। वे ई. स. 1976 में मुम्बई में श्रेष्ठी सांकलचन्द भगाजी के सम्पर्क में आने से नवकार मंत्र गिनने लगे। अजोड़ आस्था से नवकार मंत्र का स्मरण करने से उनके जीवन में अनेक बार चमत्कारिक घटनाएं घटित हुई है, एक बार वे साईकल पर बैठकर रास्ता काट रहे थे। साईकल में घंटी नहीं थी। रास्ते में ही बड़ा सांप पड़ा था। वह नजदीक आते ही साईकल के सामने फण ऊँचा कर खड़ा हो गया। वैद्यराज पहले तो घबराने लगे किंतु नवकार मंत्र याद आते ही उसे गिनने लगे। अचानक घटनाद सुनाई दिया। सांप उसी क्षण वहां से पलायन कर गया।
दूसरी एक घटना में वे एक गांव जा रहे थे। तब रास्ते में | एक कुत्ता भोंक रहा था... और वह भोंकता कुत्ता उनके पीछे पड़ गया। वैद्यराज समझ गये कि कुत्ते का यह रुदन अशुभ है।, परन्तु उसका डर नहीं था। वे आगे बढ़ने लगे। थोड़े दूर जाते ही कुत्ते ने वैद्यराज को तीन प्रदक्षिणा दीं। बाद के क्षणों में द्रुत गति की रेल से भी तेज एक सर्प उनके सामने आने लगा। किंतु आश्चर्य की बात यह थी कि वैद्यराज के सर्कल में अर्थात् कुत्ते ने प्रदक्षिणा दी थी, इस जगह पर सर्प प्रवेश नहीं कर सका, वहीं स्तंभित हो गया। वैद्यराज तो हमेशा के साथी नवकार के | ध्यान में वहां तल्लीन हो गये। सांप गायब!
तीसरी घटना भी चमत्कारिक है। एक बार वैद्यराज अपने मित्र बाबुराव एवं एक किसी अन्य के साथ ट्रक में बैठकर सतारा से कराड़ जा रहे थे। रास्ते में एक बड़े पत्थर के साथ टकराने से ट्रक के आगे का भाग टूट गया। किंतु तीनों में से किसी को भी थोड़ी सी भी
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चोट नहीं आई। उसका मुख्य कारण यह था कि इस घटना के समय वैद्यराज नवकार मंत्र के स्मरण में एकाग्र बन गये थे।
वैद्यराज कोल्हापुर के मि. शाह के सम्पर्क में आये वि.सं. 2015 में कोट में शतावधानी पंन्यासजी म. श्री कीर्तिविजयजी गणिवर्य के प्रवचन सुनने का योग प्राप्त किया। उस समय चल रहे " अमर कुमार और नवकार मंत्र का प्रभाव" पर से वे प्रभावित होकर नवकार में स्थिर बने । नवकार की गहरी श्रद्धा मजबूत बनी वहां से उन्होंने नवकार मंत्र गिनने की शुरुआत की। वे प्रतिदिन एक हजार नवकार जिनमन्दिर में बैठकर ही स्थिरता से गिनते हैं। उन्होंने नवपद जी की नौ ओलियाँ भी पूर्ण की हैं। (" प्रसंग परिमल " ) लेखक/संपादक शतावधानी प. पू. आ. भ. श्री विजयजकीर्तिचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा.
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( नवजीवन देने वाला नवकार
दस वर्ष पहले की बात है। गर्मी के मौसम में हमेशा की तरह मेरा पंजाबी मित्र मेरी दुकान पर आया था। वह आर्थिक रूप से दुःखी, जीवन से उबा हुआ, संबंधियों द्वारा छोड़ा हुआ, दुःख से पीड़ित, करुणा पात्र
था।
जबकि वह बुद्धि से होशियार था। कल्पनाशक्ति में प्रवीण था। मशीनरी की फिटिंग में कुशल कारीगर था। परन्तु रूप एवं रूपये के पीछे वह मान भूल जाता । पैसे मिले कि तुरंत गलत रास्त से पूरे करने, रूपवती ललना मिली कि तुरंत विषय विकार का शिकारी बन जाता। ऐसा था, उसका जीवन ऐसी थी, उसके जीवन की पद्धति ।
एक दिन की बात है। मेरी टेबल पर " सचित्र नवकार" हिन्दी पुस्तक पड़ी थी। उसकी छपाई ने, उसके आकर्षक चित्रों ने उसके सरल विवेचन ने और चमकते कागज ने मित्र को ललचाया। मित्र ने पुस्तक को
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हाथ में लिया। जो धर्म के नाम से ही दूर-सुदूर रहना चाहता था, उसी मित्र ने शान्ति से, विचार पूर्वक पुस्तक का वांचन शुरु किया।
उसने पुस्तक का अक्षर-अक्षर पढ़ा। उसमें लिखा था "भव-भव के दुःख काटे" "परमातम (परमात्म) पद देता"। इन शब्दों को पढ़ते, उसके ऊपर का विवेचन पढ़ने से उसकी सोई हुई आत्मा जाग उठी। नाच उठी। सुषुप्त चैतन्य जागृत हो गया। महाप्रभाविक मंत्र जिसने अमर कुमार को "अमर" बनाया, सर्प की "फूलमाला' बन गई, रंक भिखारी को राजा |बना दिया, तो मेरा उद्धार नहीं होगा?
जो मंत्र, सभी काल में, सभी स्थानों पर प्रभावक रूप से प्रसिद्धि प्राप्त किया हुआ हो, वह मंत्र निश्चित ही मेरे लिए उत्तम औषधि है। सुखी होने का उपाय है।
पंजाबी ने मझे पछा - "मझे पस्तक दोगे? यह मंत्र में गिन सकता हूँ? इससे मेरे दुःख दूर होंगे?" मैंने कहा "मित्र! इसके लिए मुझे गुरुदेव की आज्ञा लेनी पड़ेगी।"
परन्तु मैं आगे कुछ नहीं बोला। मेरे मौन से मित्र को आश्चर्य हुआ। मित्र ने पूछा-"विनोद भाई! कैसे अटके?" मैंने कहा"मित्र! तेरे ऊपर मुझे दया आती है। मंत्र लेने के लिए कुछ करना पड़ेगा। कुछ देना पड़ेगा। कुछ छोड़ना पड़ेगा। तो तुम क्या करोगे? तेरा जीवन दूषित है। यह दूषण छोड़ने पड़ेंगे।
"मन को पवित्र किए बिना मंत्र नहीं साधा जा सकता। जीवन नहीं सुधरेगा तो तेरा उद्धार जगत् में नहीं होगा। बोल! यह सब तुझसे होगा? "मित्र ने कहा-विनोद भाई! मैं सभी छोड़ दूंगा। तुम कहोगे वैसा करुंगा। जैसे जीने के लिए कहोगे, वैसा जीवन जीऊंगा। ऐसे भी भूखा मरता हूँ, बेकार घुमता हूँ। धर्म की शरण में जाने से भूखा मरा तो भी मेरा कल्याण तो होगा। मेरा उद्धार तो होगा।" । दूसरे दिन सोने का सूर्योदय हुआ। मैं और मेरा मित्र उपाश्रय गये। पू. मुनिराज श्री जितेन्द्रविजयजी महाराज ने मित्र को मंत्र दिया। मित्र को
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सीख दी। मित्र ने भी अयोग्य जीवन छोड़ दिया। असभ्य विचार त्याग दिया। निंदनीय प्रवृत्तियां छोड़ दीं।
अब मेरा मित्र स्नेही बना। अब वह त्रिकाल मंत्राराधना करता है। उसने केवल आठ दिन में आश्चर्यकारी घटनाएं अनुभव कीं। वह इस प्रकार थीं।
पहले जो पुत्र-परिवार उससे बात नहीं करता था, उसके सामने नहीं देखता था, वह परिवार सुख-दुःख के समाचार पूछने लगा। पेट भर के प्रेम से खाना देने लगा।
दूसरा-पहले जो वह सारा दिन बिना मालिक के पशु की तरह भटकता था। दुकान-दुकान की ठोकरें खाता था। बेकार, बिना लगाम जीवन जीता था, अब उसे अच्छा काम मिला। अच्छा नाम मिला। वह बुद्धि का प्रयोग करते ही दो पैसे बचाने लगा।
तीसरा, घर के द्वार पर गाय-भैंस बंधी हुई थी, वह जब-जब बछड़े को जन्म देने वाली होती, तब सर्प-नागराज दर्शन देते। दूध पीकर चले जाते, किन्तु आज अचानक नागराज पधारे। जाने के लिए बहुत उपाय किये, किन्तु वह नहीं गये। दूध पीने के लिए रखा, लेकिन नहीं पीया। पकड़ने के लिए प्रयत्न किये, लेकिन नहीं ही पकड़ाए।
अब! क्या करें? सभी घबराये। वहीं मित्र को मंत्र का स्मरण आया। पूरे परिवार को विनति की कि, "दूध का कटोरा लाओ और शांति से बैठ जाओ। मैं मंत्र पढता हूँ।" मित्र ने शांत चित्त से निर्मल हदय से, पवित्र मन से नवकार मंत्र का ध्यान किया। आश्चर्य की बात! नागराज तुरंत शांति से चले गये। परन्तु थोड़ी ही देर में अपने परिवार के साथ चार की संख्या में पधारे। उस समय भी मित्र ने, पूर्व · की तरह महाप्रभाविक मंत्र का एकाग्रचित्त से ध्यान किया और नागराज चले गये।
बात तो बहुत लम्बी है किन्तु...नवकार के कारण पंजाबी धर्म के मार्ग की और मुड़ा। नवकार के स्मरण से वह पवित्र शुद्ध बना। नवकार के ऊपर की श्रद्धा से पंजाबी को नया जीवन जीने की राह मिली। यही
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? प्रभावक मंत्र तुम्हें हमें-सबको तारेगा। उसमें शंका नहीं है।
अनुभव - विनोद एस शाह लेखक - "विजयभद्र"
R.
जंगल में मंगल
(एक अद्भुत चमत्कारिक घटना) "नमस्कार वहां चमत्कार" बाबत का आपका परिपत्र मिला था, तब तक मेरे स्वयं के जीवन में, जब कि मैं धार्मिक पत्र का संपादक हं फिर भी एक भी ऐसी घटना नहीं घटी थी। ओर कुछ लोगों की कपोल-कल्पित बातें, मेरी मान्यता में नहीं आये वैसी मिली थीं। दृढ़ धर्मी श्रावक होने के बावजूद संयोगवशात् चमत्कार के ऊपर मेरी श्रद्धा नहीं बैठती थी। क्योंकि मैं केवल कर्मवाद को ही मानता हूँ।
मुझे संयोगवशात् आपका परिपत्र मिलने के बाद, मेरे कुटुम्ब के साथ वर्षाकाल के दिनों में गीर के जंगलों में जाने का मौका मिला। तब नवकार के चमत्कार की घटना घटी जो लिखकर भेज रहा हूँ।
हम राजकोट के स्थानकवासी परिवार के सदस्य हैं। मेरी एक छोटी बहिन इन्दिरा जैतपुर में ब्याही हुई है। अभी वह राजकोट रहती है। उनकी कुलदेवी कनकाई माताजी हैं। बहिन कोई सौगन्ध लेकर बैठ गई कि मुझे अपनी कनकाई माताजी के दर्शन करने के लिए तत्काल जाना है। बहनोई व्यवसाय के कारण परदेश रहते थे। जिससे उसने किसी भी परिस्थिति में मुझे साथ चलने का आग्रह किया।
कनकाई माताजी का स्थान जूनागढ जिले में गीर के घने जंगल के बीच सत्ताधार से 24 किलोमीटर की दूरी पर आया हुआ है। गीर का जंगल गुजरात सरकार द्वारा अभयारण्य के रूप में घोषित किए जाने से उसकी सीमा के अन्तर्गत छोटे से गांव में रहे हुए पशुपालकों को भी दूसरी जगह भेज दिया गया है। चारों ओर तारबन्दी कर चैक-पोस्ट
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? स्थापित किया हुआ है। उसकी इजाजत के बिना जंगल में जाना सख्त मना है।
हमें पूछताछ करने पर पता चला कि चालु मास के समय गीर में जाने के सभी रास्ते बन्द होते हैं। चलने के मार्ग पर छः-छः फीट की घास आ जाती है। एवं रास्ते में आते अनेक छोटे-बड़े झरने पानी से भरपूर होते हैं। इसलिए गीर के चैक-पोस्ट अर्थात् प्रवेश द्वार से जाने नहीं दिया जाता है।
परन्तु कठोर सौगंध लेकर बैठी छोटी बहिन इन्दु को समझाना बहुत कठिन था। आखिर हिम्मत करके एक एम्बेसेडर गाड़ी में मैं, मेरी धर्मपत्नी, मेरी पुत्री, दोनों छोटी विवाहिता बहिनें, दो छोटे भानजे तथा एक छोटी भानजी, बड़े बहनोई श्री कनुभाई सेठ (एडवोकेट) तथा ड्राईवर सहित छोटे-बड़े दस सदस्यों ने राजकोट से सुबह जल्दी 5-30 बजे गीर की ओर प्रयाण किया।
राजकोट से कनकाईनेस 167 कि.मी. होता है, जिससे हमने सोचा कि तीन घण्टे में निर्धारित स्थान पर पहुँच जायेंगे। हम जूनागढ़ समय पर पहुँचकर चाय पानी करने के बाद मैंदरड़ा होकर सासण की तरफ आगे बढ़े। सासण पहुंचने के बाद वनरक्षक अधिकारी ने सलाह दी कि, "चातुर्मास के कारण सभी रास्ते बन्द हैं। इस मौसम में कनकाई के जंगल में जाना उचित नहीं है। क्योंकि भयंकर जंगल में दिन में वन के राजा मस्ती में पड़े होते हैं, और रास्ता भी आपको नहीं मिलेगा।" उनको हमने अपनी बहिन की प्रतिज्ञा की बात की। तब उन्होंने कहा कि, "शायद सताधार के रास्ते से जाया जा सकेगा, इसलिए उस रास्ते से प्रयत्न करो।" हम 27 कि.मी. मैंदरड़ा वापिस आये।
वहां से बीलखा बीसावदर के मार्ग से सताधार पहुँचे। सताधार से जंगल में जाने का रास्ता भूलने से हमें दस कि.मी. जाकर वापिस सताधार आना पड़ा और फिर पूछताछ करने के बाद सताधार से दक्षिण दिशा की ओर जंगल में दाखिल हुए ओर योग्य मार्ग पर आगे बढे। हम गहरी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? झाड़ियों में फिर रास्ता भूल गये। बल्कि रास्ता ही नहीं मिला। भयंकर और घने जंगल में अभयारण्य के कारण कोई मानवीय बस्ती नहीं, रास्ता एकदम खराब था।
जिस मार्ग से हम जा रहे थे, वहां चार-चार फीट लम्बी घास उगी हुई थी। जैसे-जैसे धीरे-धीरे कछुए की रफ्तार से गाड़ी आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे जंगल की भयंकरता और बढ़ती जा रही थी। चार कि.मी. आगे बढ़ने के बाद ड्राइवर, मेरे बहनोई-कनुभाई तथा मेरी भी हिम्मत टूटती जा रही थी। घनी झाड़ी, हवा की लहरों के कारण पत्तों की सर्रसर्राहट, पशु-पक्षियों का कलरव, एकदम शांति, हमें दोपहर एक बजे का समय
ओर निरूपायता से गाड़ी खड़ी करनी पड़ी। हमें डर था, कहीं किसी भी दिशा में से जंगली प्राणी या वन का राजा आ गया तो! क्या स्थिति होगी? गाड़ी खराब हुई तो? वातावरण में नीरव शून्यता तथा गंभीरता बढ़ती जा रही थी। परिवार के सभी छोटे-बड़े व्यक्तियों के मुख पर ग्लानि तथा डर की रेखाएं छा गई थीं। ऐसे ठंडक भरे वातावरण के बीच में भी पसीने के बिन्दु स्पष्ट नजर आते थे। किसी को किसी से बात करने की रुचि ही नहीं थी।
ड्राईवर एवं कनुभाई सेठ नीचे उतरे, शायद कोई आदमी मिल जाये तो पूछ लें कि कनकाई का कौन-सा रास्ता है? मैं भी नीचे उतरा, किन्तु स्त्री वर्ग को अकेले छोड़कर, मुझे रास्ता खोजने जाना उचित नहीं लगा। जिससे मैं गाड़ी के कांच बन्द कर बाहर खड़ा रहा। मैंने परिवार के प्रत्येक स्त्री सदस्यों एवं बालकों को कहा कि - "अब केवल अपने नवकार का सहारा है। सभी छोटे-बड़े नवकार मंत्र चालु कर दो। इसके प्रभाव से कुछ रास्ता निकल जायेगा।" सभी ने एक आवाज से महामंत्र का जाप चालु कर दिया। अरे! पांच वर्ष का अमीश (भानजा) भी आंखें बन्दकर के तेज गति से नवकार मंत्र बोलने लगा। उसी समय थोडे दूर एक झोंपड़ी में से एक किसान जैसा वृद्ध, मेरे बहनोई को मिला और बोला कि, "दायें ओर धीरे-धीरे आगे बढो। आधा कि.मी. जाने के बाद
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? वन-विभाग की चेक पोस्ट आयेगी और वहां से दस कोस जाने पर माताजी का मन्दिर आयेगा।"
सभी को थोड़ी शान्ति हुई। नवकार मंत्र के साथ धीरे-धीरे गाड़ी आगे बढ़ी। थोड़ी दूर, वन-विभाग का चैक-पोस्ट आ गया। तब सभी के मुंह पर हर्ष की रेखाएं छा गयीं और लगा कि नवकार मंत्र का प्रभाव कितना है!
बात यहां से अटकती नहीं है। हमारी जंगल के गार्ड से | पूछताछ चालु थी। उसी समय जंगल के अधिकारी श्री सिंहा साहब जीप से वहां आए। हमारी पूछताछ के बाद उन्होंने सलाह दी कि, "वर्तमान में कनकाई जाना उचित नहीं है। रास्ता बहुत ही खराब है। पिछले तीन महिनों से हम भी वहाँ नहीं गए और तम्हारे साथ तो स्त्री वर्ग है, तब व्यर्थ जोखिम लेना उचित नहीं है। खड्डों, टेकरों और घाटियों के कारण तुम्हारी गाड़ी खराब हो जाये तो तुम्हारी स्थिति खराब हो जाएगी। मेरी सलाह है कि तुम यहां से वापिस जाओ।" परन्तु हमने मन ही मन निर्णय कर लिया था कि नवकार महामंत्र के प्रभाव से यहां तक पहुँच गये हैं तो इसी नवकार मंत्र के प्रभाव से निर्विघ्नता से निश्चित स्थल तक पहुँच जायेंगे।
हम हिम्मत से आगे बढ़े। खड्डे, टेकरियां, घना जंगल, दोनों किनारों पर घाटियों से बहते झरनों को पार कर, नवकार मंत्र के जाप के साथ 24 कि.मी. का रास्ता ढाई घण्टों में काटकर कनकाई के घोर जंगल के बीच माताजी के मन्दिर की ध्वजा के दर्शन हुए, तब परिवार के सदस्यों और बालकों के मुख पर आनंद की रेखाएं छा गई और सभी खूब मस्ती में आ गए। सभी को विश्वास हुआ कि यह नवकार मंत्र एक अद्भुत चमत्कारिक महामंत्र है।
लेखक - रसिकलाल सी. पारेख
तंत्री - "जैन क्रान्ति' पाक्षिक 31-36 करणपरा, राजकोट - 360001
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नवकार के नित्य जाप से, निश्चय होता जय-जयकार
(बैशाखी की गुलामी गई)
80-85 वर्ष पहले की बात है। कच्छ में अंजार के पास में आंबरड़ी गांव में पू. दादा श्री जीतविजयजी म.सा. का आगमन हुआ। थोड़े दिनों के प्रवास के दौरान, पूज्य श्री के व्याख्यानों का आयोजन हुआ। एक बार पूज्य श्री ने सभा में देखा तो एक झोरा परिवार के भाई की अनुपस्थिति थी, जो प्रतिदिन व्याख्यान में अवश्य आते थे। दूसरे दिन झोरा भाई आए तब अनुपस्थिति का कारण पूछने पर श्री झोरा ने बताया कि "साहेब क्या करूं? लाचार हूँ, पैर की तकलीफ के कारण बैशाखी बिना चला नहीं जा सकता। कल वह टूट गई थी। सुथार को सही करने के लिए दी हुई थी। इस कारण न आ सका। क्षमा करें गुरुदेवा"
" तेरे जैसे को बैशाखी की गुलामी?"
"गुलामी चाहता कौन है? किंतु परवशता से सब करना पड़ता है। आप इस गुलामी से छुड़ाओगे?"
"तुझे छूटना हो तो छुड़ा दूंगा। किंतु मैं कहूं वह मानना पड़ेगा। बोल, मानेगा?"
"जरूर...जरूर... गुरुदेव! आप का नहीं मानूंगा तो किसका मानूंगा? आज्ञा फरमाईये।"
__ "तो गिन अभी ही नवकार मंत्र की पांच पक्की माला और देख नमस्कार का चमत्कार।"
उस भाई ने तो बैशाखी के सहार वहीं खड़े-खड़े ही माला गिनना शुरू कर दिया। चार माला पूरी हुई। पांचवी माला आधी होते ही चमत्कार का सृजन हुआ। बैशाखी जमीन पर गिर गई और श्री झोरा के पैर की सम्पूर्ण तकलीफ गायब हो गई। झोरा ने पांचवी माला पूरी करके चलने की शुरूआत की तो उनको स्वयं को आश्चर्य हुआ। यह क्या?
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - एक सामान्य आदमी की तरह स्वयं चल रहे थे। उनके आश्चर्य का पार नहीं रहा। यह बात पूरे गांव में फैल गई। सभी श्री नवकार महामंत्र का एवं पू. गुरुदेव के आशीर्वाद का प्रत्यक्ष चमत्कार देखकर आश्चर्य में डूब गए। वह भाई तब से जीवन के अंत तक प्रतिदिन कम से कम नवकार की पांच माला अवश्य गिनते थे। ___ यह बात आंबरड़ी के लोग तथा वागड़वाले भाई अच्छी तरह से जानते हैं। भूकंप में निष्कंपता देता श्री नवकार
वि.सं. 2012 की साल में आषाढ़ सुदि 14 के दिन कच्छ-भचाउ नगर में पू. आ.श्री विजय कनकसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में श्रावक चौमासी प्रतिक्रमण कर रहे थे। प्रतिक्रमण पूरा होने के बाद श्रावक सामायिक पाल रहे थे। तभी अचानक ही धनन न न... धरती कांपने लगी। पूरा उपाश्रय हिलने लगों जैसे ट्रेन चल रही हो!
"अरे! यह तो भकंप...भागो, भागो की आवाज के साथ सामायिक पाले बिना ही कितने श्रावक तो भागने लगे। उनका भागना सहज था, क्योंकि उपाश्रय नया बना हुआ था और उसकी छत पर सैंकड़ो मण पत्थर पड़े थे। ___ ऐसी विषम परिस्थिति में पू. सूरिजी ने स्वस्थतापूर्वक कहा-"सभी शांति से यहां बैठ जाओ, मन में नवकार गिनो, कुछ भी नहीं होगा।" सभी बैठ गए। नवकार गिनने लगे। धरती का कंपन बंद हो गया। ओह! कितने बड़े आश्चर्य की बात थी कि, उपाश्रय गिरना तो दूर रहा परन्तु छत के ऊपर का एक पत्थर भी नीचे नहीं गिरा। इतना ही नहीं किले के अन्तर्गत गांव के भी मकान नहीं गिरे थे। जबकि भचाउ से थोड़े ही दूर अंजार-धमड़का आदि गांवों में बहुत जन-धन की हानि हुई थी। यह बात सभी अच्छी तरह से जानते हैं। आनन्द की बाढ़ आई
वि.सं. 2030 मागशीर्ष माह में राता महावीर (राज.) में उपधान चल रहा था। अध्यात्मनिष्ठ पूज्य पंन्यासजीश्री भद्रंकरविजयजी म.सा., अ
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? यात्मयोगी पूज्य आ. श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. पूज्य मुनि श्री प्रद्योतन वि. (बाद में सूरिजी) आदि मुनि मंडल की शुभ निश्रा में सुन्दर आराधना चल रही थी।
तब पूज्य मुनि श्री प्रीतिविजयजी म. ने नवकार मंत्र के जापपूर्वक | 62 वीं ओली पूर्ण कर उपवास की तपश्चर्या शुरू की। तीर्थ का स्थान
अतिरमणीय है। चारों ओर पर्वत की हारमाला में बसा हुआ राता महावीर तीर्थ देखते ही मन को हर लेता है। वह साधना के लिए उत्तम स्थान है। | यह तीर्थ लोगों के शोर से कोसों दूर है।
पू. प्रीति वि. म. उपवास के दौरान पूरा दिन भगवान के पास जाप में ही लीन रहते थे। ऐसे तीर्थ और ऐसे साधक महापुरुषों की निश्रा से जाप में उत्तरोत्तर स्थिरता बढ़ती जा रही थी। पूज्य श्री को 11 वें उपवास की रात के समय कुछ अवर्णनीय आनंद का अनुभव हुआ। वे एकाएक बड़ी आवाज से नवकार गिनने लग गये। सभी साधु जाग्रत हो गये। पंन्यासजी एवं सूरिजी भी जाग गए। उन्होंने पूछा "क्या कर रहे हो? नवकार मन में गिनो, बड़ी आवाज से क्यों गिनतो हो?'' "आपकी बात सही है, किंतु अंदर से नवकार की 'ध्वनि' का आनंद इतना सारा उमड़ रहा है कि मैं रह नहीं सकता। कोई शब्द ही नहीं हैं। इस आनंद का वर्णन करने के लिए। अत्यंत आनंद के आवेश से नवकार मैं नहीं बोलता, किन्तु मेरे से स्वतः ही बोला जा रहा है।" ऐसा कहकर वापिस सरल स्वभावी मुनिश्री 'नमो अरिहंताणं...नमो सिद्धाणं.... नमो आयरियाणं..." ऐसे नवकार बोलते ही रहे। दूसरे दिन दोपहर तक नवकार का उच्चारणपूर्वक जाप चालु ही रहा। पूज्य पंन्यासजी म.सा. ने खुलासा करते हुए बताया कि-"सरल और एकाग्रचित्त से सतत नवकार गिनने से ऐसी कई प्रकार की अनुभूतियां होती हैं। किसी को प्रकाशपुंज के दर्शन होते हैं, किसी को असीम आनन्द का अनुभव होता है। अन्तर्ग्रन्थि का भेद होते ही भवचक्र में अननुभूत आनंद की अनुभूति होते ही साधक आनंद से नाचने लग जाता है। इसमें कोई भी नयी बात नहीं है।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
बाढ़ का पानी बैठ गया
वि.सं. 2035 में वागड़ वाले साध्वीजी श्री चन्द्राननाश्रीजी की शिष्याएं चातुर्मास में मोरबी में स्थित थीं। वे मच्छु नदी की भयंकर बाढ़ में फंस गईं। बाढ़ का पानी प्रति सैकंड ऊँचा बढ़ रहा था । साध्वीजी इसलिए तुरंत ही ऊपर की मंजिल पर चले गए। किंतु यह राक्षसी बाढ़ थोड़ी देर में वहां तक भी पहुंच गई। कुशल साध्वीजी पाट पर बैठीं। वहां भी पानी आने से दूसरा पाट रखा। वह भी पानी से डोलने लगा । तब उसे डोरी से बांधकर ऊपर तीन साध्वीजी बैठ गईं। उन्होंने अट्ठम के पच्चकखाण और सागारिक अनशन पूर्वक नवकार का जाप चालु किया। जब तक बाढ़ का संकट रहा, तब तक जाप चालु रखा। धीरे-धीरे बाढ़ का पानी घटने लगा। और साध्वीजी नवकार के प्रभाव से आपदा से बच गईं।
बेहोशी में भी श्री नवकार का जाप
इसी मोरबी मच्छु की एक दूसरी घटना है। एक भाई चुंगीनाके में खोखे पर बैठा था और अचानक ही बाढ़ दौड़ती आई। वह भाई तुरंत ही लकड़ी के केबिन पर चढ़ गया। किंतु जहां बड़े-बड़े मकान भी बह जाते हैं, वहां इस बेचारे केबिन की क्या ताकत ?
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पानी के प्रवाह से केबिन डोलने लगी और उस भाई ने अंतरसे नवकार को पुकारा, 'ओ नवकार! मैंने तेरा सदा जाप किया, तेरी अनन्यभाव से आराधना की है और क्या तुम अब मेरी सहायता नहीं करोगे? ओ शंखेश्वर दादा ! बचाओ...! बचाओ...!" इस प्रकार पूकारपूर्वक प्रार्थना करके वह भाई नवकार के जाप में खो गया। परन्तु उस राक्षसी बाढ़ ने तो जैसे कुछ ध्यान ही नहीं दिया। बाढ़ का प्रवाह केबिन के साथ उस भाई को लेकर चलता बना। नवकार में ही एकाकार बने उस भाई के शरीर में पानी भर गया। वह बेहोश हो गया।
उस भाई को ग्यारह दिन बाद बेहोशी से मुक्ति मिली तब भी उसकी अंगुलियों के वेढों पर अंगूठा घूम रहा था और मन में नवकार चालु था। किंतु चारों ओर देखा तो वह मोरबी में नहीं था। वह बाढ़ के
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? प्रवाह में बहकर कच्छ के छोटे रण में पहुंच गया था और पास के मालिआ गांव के लोगों ने उसे बचा लिया था।
जहां क्षण भर में ही हजारों लोग प्राणमुक्त हो गये थे, वहाँ 11 दिन के बाद भी बच जाना कोई सामान्य घटना नहीं कही जा सकती थी!
लेखक - "मुनीन्द्र" महाप्रतापी श्री नवकार [ श्री नवकार महामंत्र का प्रभाव वर्णनातीत है। अटल श्रद्धा से इसका स्मरण किया जाए तो हलाहल कलियुग में भी वह मनोवांछित पूर्ण करता है। मेरे जीवन में भी ऐसे प्रसंग अनेक बार बने हैं। प्रत्येक घटना ने मेरी श्रद्धा को बढ़ाने का कार्य किया है। सभी घटनाएं याद करके नहीं लिख सकता हूँ। फिर भी कुछ महत्त्व की घटनाएं इस प्रकार हैंतन के रोगों को हरण करने वाला श्री नवकार
गृहस्थावस्था में बालवय में मेहसाणा की श्रीमद् यशोविजयजी जैन पाठशाला में अध्ययन हेतु रुका हुआ था। उस दौरान मैं बीमार पड़ा। डॉक्टरों के उपचार प्रारंभ किये, खाना बंद हो गया। डॉक्टरों ने क्षय रोग (T.B.) का निदान किया। फ्रूट और दूध के ऊपर जीवन टिका के रखना था। सगे संबंधी चिंता में पड़ गये। डॉक्टरों ने तो उन्हें खुला कह दिया कि "केस खत्म है।" सुधरने की आशा नहीं है। यह समाचार फैलते हुए मेरे पास आये।
क्षणभर आश्चर्य लगा,"क्या मैं मर जाऊँगा? नहीं, मुझे इस प्रकार नहीं मरना है, तो फिर क्या किया जा सकता था? डॉक्टर तो निरूपाय थे।" किंतु उसी समय श्रीनवकार, हदय में आया। श्री नवकार की शरणागति स्वीकारी। जीवन नवकार के चरणों में धर दिया। दवा छोड़ दी। | रात-दिन श्रीनवकार का जाप चालु किया। साथ में अनाथीमुनि की तरह संकल्प किया कि, "यदि इससे मैं बच गया तो जल्दी ही चारित्र लूंगा।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? वास्तव में नवकार ने चमत्कार किया। रोग कहीं भाग गया। डॉक्टर आश्चर्य में पड़ गये। श्री नवकार ने मुझे नयाजीवन दिया। मैंने किए हुए संकल्प के अनुसार चारित्र लिया, जिसे आज 58 वर्ष होने आये हैं। देवी आपत्ति से बचाने वाला श्री नवकार
एक बार विहार करते हुए हमारे साधु स्थंडिल भूमि पर गये। कौन जाने क्या हुआ? कोई कब्रिस्तान में या अन्य वैसे स्थल में पैर पड़ गया, अथवा दूसरा कुछ भी हुआ किंतु रात के 12 बजे और वे साधु रुदन करने लगे।
उनसे कारण जानने का प्रयत्न किया, किंतु जवाब नहीं मिला। अंत में श्री आदीश्वर प्रभु का नाम बुलवाने का प्रयत्न किया। तब वे साधु "या अल्ला" ऐसा बोलने लगे, और फिर तो एक घंटे तक अंग्रेजी में भाषण देते ही रहे।
मुझे लगा कि कोई दैवी उपद्रव है। जिससे उस साधु को पकड़कर उसके आगे श्री नमस्कार महामंत्र का जाप शुरू कर दिया, धीरे-धीरे जैसे जाप का बल बढ़ा, वैसे-वैसे वह दैवी प्रकोप कम होने लगा। बढ़ती श्रद्धा एवं धीरज से जाप चालु रखा कि घंटे में तो वह व्यंतर देव साधु का शरीर छोड़कर भाग गया।
साधु तो अंग्रेजी पढ़े हुए नहीं थे, परंतु उनके अंदर रहे हुए व्यंतर देव ने ही यह सब नाटक किया था। परंतु श्री नवकार महामंत्र के दृढ़ विश्वासपूर्ण जाप के प्रताप से व्यंतर ऐसा अदृश्य हुआ कि उसके बाद उस साधु को कभी ऐसा उपद्रव नहीं हुआ। विषम विषहर श्री नवकार
एक बार विहार करते-करते एक गांव में स्थिरता की। लोगों को विश्वास था कि जैन साधु जानकार होते हैं। इसलिए कभी-कभी जैनेतर भी उपाश्रय में आते थे।
उन दिनों में ऐसा बना कि घास लेने के लिए जाती हुई किसी बहिन को सर्प ने दंश दिया। पहले तो सामान्य उपचार किये। किंतु
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
धीरे-धीरे जहर शरीर में फैलने लगा। गांव छोटा था । विशिष्ट वाहन व्यवहार की व्यवस्था नहीं थी। जिससे किसी विशिष्ट डॉक्टर आदि के पास ले जाने की अनुकूलता भी नहीं थी।
गांव के लोग मेरे पास आये, "महाराज ! जो चाहे वह करो किंतु इस बहिन का जहर उतारो। " कौन जाने, किसने प्रेरणा दी। किंतु मैंने श्री नवकार का एक चित्त से जाप शुरू कर दिया।
महामंत्र का प्रभाव कोई अजीब कोटी का होता है, जो इसकी शरण में जाता है उसे यह कभी निराश नहीं करता । मात्र जरूरत होती है थोड़े धैर्य की ।
विश्वास के साथ धैर्य बल मिलता है तब कार्य अवश्य सिद्ध होता है। यहाँ भी वैसे ही हुआ। शरीर में फैले विष का वेग कम होने लगा । धीरे-धीरे विष की ताकत एकदम नष्ट हो गई। मेरा जाप जब मैंने पूर्ण किया। तब उस बहिन को कुछ भी नहीं हुआ हो वैसे हाथ जोड़कर श्री नवकार का अभिनंदन कर रही थी।
उपसर्ग रक्षक श्री नवकार
उस समय हम मालव प्रदेश में विचरण कर रहे थे। इस प्रदेश के लोग धर्म-स्वरूप से अनजान थे, उससे कभी बिना समझ में साधु को उपद्रव कर बैठते थे।
विहार करते हुए धारानगरी में आने का हुआ। प्राचीन तीर्थ भूमि होने से शान्ति से जिन मंदिरों के दर्शन किये।
यथायोग्य समय पर स्थंडिल भूमि की ओर जाने लगे तब अज्ञानी लोगों नें प्रथम अपशब्दों से उपद्रव की शुरूआत की। लोगों का समूह बड़ा होने लगा। मैंने भयभीत होकर अभय देने वाले श्री नवकार महामंत्र का स्मरण चालु किया।
लोगों का उपद्रव चालु था। मेरा जाप चालु था। उन्होंने पत्थर फेंकना प्रारंभ किया। मैं शान्ति से अपने स्थान की ओर जाने लगा। पत्थर बढ़ने लगे। पत्थर लगने से हाथ में रही हुई तरपणी के टुकड़े हो गये ।
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? किंतु नमस्कार, महामंत्र के प्रताप से मेरे शरीर को एक पत्थर भी स्पर्श | नहीं कर सका।
इस प्रकार मानव सृजित उपसर्ग-आपत्तियां भी श्री नवकार के प्रभाव से कुछ नहीं कर सकती हैं। इन सभी घटनाओं से मेरे हदय में श्री नवकार के प्रति अटल विश्वास पैदा हुआ। केवल श्री नवकार के जाप से कितनों के भूत-प्रेत, व्यंतरादि उपद्रव दूर होने की घटनाएं मेरे जीवन में घटित हुई हैं। सामान्य आपत्तियों का तो पता ही नहीं चलता, कहां भाग गईं। ऐसा महाप्रतापी श्री नवकार है। शर्त है केवल इसके आगे समर्पित होने की। आज तक नवकार ने किसी को छोड़ा नहीं और जो इसके प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं, उन्हें कभी छोड़ेगा भी नहीं।
लेखक - प.पू.आ.म.श्री. विजयअरिहंतसिद्धसूरीश्वरजी म.सा.
नवकार मंत्र का प्रभाव
(यहां पेश किये गये चार अर्वाचीन दृष्टान्त नवकार महामंत्र के उत्तम आराधक पू. पं. श्री अभयसागरजी म.सा. द्वारा सम्पादित "महामंत्र ना अजवाला" पुस्तक से साभार उद्धृत किये गये हैं - सम्पादक)
छोटा सा गांव उसका संकड़ा मार्ग। लोकवर्ण के नाम से पहचानी जाती एक कौम के महात्मा का गांव में आगमन हुआ। उका भगत के नाम से प्रसिद्ध इन महात्मा के दर्शन करने हेतु आसपास के गांवों से इनके अनुयायी बड़ी संख्या में इकट्ठे हुए।
सभी रास्ता रोककर बैठे थे। उका भगत के पैर स्पर्श करने की स्पर्धा चल रही थी।
' श्रीकांत को स्टेशन की तरफ जाने की त्वरा थी। उसे समय पर स्टेशन पहुँचकर, शहर की ओर जाने वाली गाड़ी पकड़नी थी। उसे रास्ता रोककर बैठे और खड़े रहे जनसमूह के बीच में से जाना था। वह दो हाथ जोड़कर स्वयं को मार्ग देने की विनति समूह को कर रहा था, किंतु मार्ग नहीं मिल रहा था। इतने में उका भगत की आवाज सुनाई दी - |
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। स पूछा। .
-- जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? - "श्रीकांत को जाने दो, इसे मार्ग दो, इसे श्मशान पहुंचने में देरी होगी।"
भगत की आज्ञा हुई इसलिए जन समुदाय ने तो उसे मार्ग दिया, किंतु श्रीकांत के पैर रूक गए। ___ "श्मशान में?" - उसने भगत से पूछा।
जवाब में भगत कुछ नहीं बोले, केवल थोड़े से मुस्कुराए।
"भगत! मैं तो अपने मित्र दिव्यकांत के विवाह में जा रहा हूँ। श्मशान में नहीं।"श्रीकांत ने कहा।
"कैसा विवाह और कैसी बात। जाओ, जल्दी, जाओ, अन्यथा गाड़ी रवाना हो जायेगी और तुम पीछे रह जाओगे।" उका भगत इतना ही बोले। उन्होंने श्रीकांत को स्टेशन की ओर जाने का ईशारा किया। ____ गाड़ी रवाना हो जाए, इससे पहले स्टेशन पहुँचने की जल्दी थी, इसलिए श्रीकांत ने वहाँ से पैर उठाए। | वह समय पर स्टेशन पहुँचा, टिकिट लेकर बैठा और गाड़ी रवाना हो गई। किंतु श्रीकांत के मन में उका भगत की श्मशान वाली बात ऐसी बैठ गई कि विवाह में भाग लेने का जो आनन्द था, वह लुप्त हो गया। दिल में कंपन बैठ गई।
उका भगत की भविष्यवाणी श्रीकांत के अंतःकरण को सताने लगी। गाड़ी. तो अपनी हमेशा की गति से आगे बढ़ रही थी, किंतु उसे लगा कि ड्राईवर गाड़ी बहुत धीरे चला रहा है। आखिर शहर आया। टेक्स: करके श्रीकांत ने दिव्यकांत के घर की ओर दौड़ लगाई।
उसे वहां पहुंचते ही शादी के गीत के बजाय मृत्यु की सिसकियां सुनाई देने लगीं। विवाह के दिन ही केवल दो. घंटों की अप्रत्याशित बीमारी से दिव्यकांत की आत्मा दिव्यधाम की तरफ चल पड़ी थी। ___डॉक्टर तो दस इकट्ठे हुए थे। किंतु दिव्यकांत की बीमारी का निदान कर सकें उससे पहले ही दिव्यकांत के प्राणपखेरू उड़ गये थे। उस उका भगत की भविष्यवाणी सही हुई थी। विवाह का आनन्द लेने के बदले,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? |श्रीकांत को श्मशान जाना पड़ा।
मित्र की मृत्यु के बाद श्रीकान्त अपने गांव वापिस आया, उस दौरान उसके दिमाग में एक ही विचार उमड़ रहा था। उस उका भगत के पास ऐसी कौन सी विद्या है, जिसके कारण वह ऐसी सत्य भविष्यवाणी बोल सके?
"यह विद्या तो अति अद्भुत है। ऐसी शक्तियां प्राप्त की जाएं, तो जिंदगी सफल हो जाये।" ऐसी इच्छा श्रीकांत के मन पर कब्जा कर बैठी थी।
. श्रीकांत को जाँच करने पर इतना जानने को मिला कि उका भगत मेलड़ी माता के उपासक थे और वार त्यौहार, समय बेसमय उनके मुंह से निकलती भविष्यवाणी सही होती थी। भविष्य कथन कर सकने की शक्ति प्राप्त करने की प्रबल उत्कंठा श्रीकांत के हदय में जाग गई थी। उसने उका भगत के पास से वह विद्या, किसी भी प्रकार से प्राप्त करने का निश्चय किया।
भगत का पता प्राप्त कर श्रीकान्त उका भगत के गांव की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर जिस मोहल्ले में भगत रहते थे, वहां पहुंच गया। भगत का घर कहाँ है, ऐसा किसी से पूछने से पहले ही पास में स्थित झोंपड़ी के बंद दरवाजे के पीछे से एक आवाज आई! "आओ, आओ, श्रीकांत भाई! तुम आए तो सही!" श्रीकांत के आश्चर्य का पार न रहा। यह आदमी क्या सर्वज्ञ है? झोपड़ी में बैठा-बैठा बंद दरवाजे के पीछे से नाम लेकर पुकारता है। भगत की बहु ने झोंपड़ी का दरवाजा खोला। श्रीकांत अंदर आया। "निकाल दो, श्रीकांत भाई! यह विचार तुम्हारे मन में से निकाल दो, तुम्हारे जैसे का इसमें काम नहीं।" उका भगत गंभीरता से बोले।
"भगत, मुझे यह विद्या प्राप्त करनी है।" - श्रीकांत बोला।
"मुझे पता है। इसके बिना तुम यहां दौड़े नहीं आते। किंतु तुम्हारे लिए इसमें पड़ने जैसा नहीं है, तुम्हारा यह काम नहीं है। जैसे आए हो वैसे वापिस जाओ। जो करते हो, वही करते रहो।"
भगत मना करते रहे, वैसे-वैसे श्रीकांत मजबूत बनता गया। "मुझे तो
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यह विद्या प्राप्त करनी ही है। वापिस जाने के लिए नहीं आया। 'कार्य साधयामि वा देहं पातयामि', मर जाऊँगा वह मंजूर है किंतु अब तो यह विद्या प्राप्त करने से ही छुटकारा है। " श्रीकांत जिद्द पकड़कर वहीं बैठ गया ।
" किंतु श्रीकांत भाई! इसमें भारी हिम्मत की आवश्यकता पड़ेगी। दिल में थोड़ा सा भी डर लगा, तो फिर जीवन का खतरा है। " भगत ने कहा ।
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"हिम्मत का अभाव नहीं है और डर तो मैं रखता ही नहीं। वीतराग प्रभु की शरण है। आप, आपको ठीक लगे वह रास्ता बताओ।" श्रीकांत ने जवाब दिया।
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श्रीकांत के चेहरे के सामने थोड़ी देर देखकर उका भगत बोले'भाई यह तो मैली विद्या ! हम रहे मिथ्यात्वी लोग! हमको तो सब चलता है, तुम्हारे से यह सहन नहीं होगा । "
"मैली हो या घेली, मुझे यह विद्या प्राप्त करनी ही है। " दृढ़तापूर्वक श्रीकांत ने फिर से जवाब दिया।
उका भगत थोड़े मुस्कुराए, फिर बोले- "ठीक है, मैं लिखाता हूँ, वे सभी वस्तुएं बाजार से ले लेना। मंत्र तो छोटा ही है। अमावस की रात में, ठीक बारह बजे, यहां के श्मशान में पहुंच जाना। मैं बता रहा हूँ, वह सब व्यवस्था करके, फिर मंत्र पढ़ने लगना । तुमको भयभीत करने की कोशिस की जायेगी, मगर डर गये तो तुम्हारी लाश वहां रहेगी। नहीं डरे, मजबूत रहे, तो एक घंटे के बाद 'मांग, मांग, मांगे वो दूँ ऐसी आवाज सुनाई देगी। किंतु आवाज सुनते ही मत मांगना । उसको कहना कि साक्षात् उपस्थित नहीं होगे, दर्शन नहीं दोगे, तब तक नहीं मांगूंगा। सफेद वस्त्रों में
वह मानव के आकार में हाजिर होगा। वहां अग्नि जलती होगी, उसके
प्रकाश में उसकी परछाई नहीं पड़ेगी। बस, पैर धरती से 18 अंगुल ऊपर होंगे और परछाई न पड़ती हो तो समझ लेना कि वह स्वयं हाजिर है, फिर मांग लेना । "
श्रीकांत ने जेब में से डायरी और लेखनी निकाली और बोला
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? "लिखाओ, वस्तुओं के नाम लिखाओ।"
"किंत श्रीकांत भाई! मेरी बात मानो! इसमें जीवन का खतरा है। और तुम जैसे गौर वर्णी का यह काम नहीं। जाने दो, यह बात छोड़ दो।" भगत ने फिर से श्रीकांत को विनति की। किंतु भविष्यफल कहने की शक्ति में श्रीकांत का मन ऐसा चिपक गया था, जैसे शहद में मक्खी चिपके!
उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी।
भगत ने बाद में, उसे खरीद के लाने की वस्तुओं की सूची तैयार करवाई। उसकी विधि समझाई, फिर श्रीकांत के कान के पास अपना मुंह लाकर उसके कान में एक मंत्र सुनाया।
"यह सब तो बहुत सरल काम है।' श्रीकांत हर्ष से बोल उठा। | जवाब में भगत फिर से मुस्कुराए।
श्रीकांत अमावस्या की काली रात में श्मशान पहुंच गया। भगत की बतायी सारी वस्तुएं वह साथ लाया था। उसने लकड़ियों का ढेर कर, उसे अग्नि से जलाकर और उसमें घी होम कर मंत्रोच्चार शुरू किया।
दस मिनट में ही भंयकर चीखें सुनाई देने लगीं। चित्र -विचित्र आवाजें आने लगीं। जो मण्डला.ति बनाकर श्रीकांत उसमें बैठा था, उसके बाहर कंकालों की वर्षा होने लगी। चारों और खून की बौछारें उड़ने लगीं। डाकणों और शाकिनिओं की हुंकारें, पड़कारें एवं गर्जनाएं होने लगीं।
कच्चा-पक्का हो तो हदय ही बंद हो जाये, ऐसी भयानक परिस्थिति खड़ी हो गई। किंत श्रीकांत भी कच्चे दिल का आदमी नहीं था, वज्र हदयी और दृढनिश्चयी उस आदमी की नजर , प्राप्त होने वाली सिद्धि पर थी, उसने इन सभी तूफानों की कोई परवाह नहीं की। उसने जरा भी घबराये बिना मंत्रोच्चार एवं घी का होम चालु ही रखा।
आधे घन्टे बाद तो इस तूफान ने भंयकर रूप धारण कर लिया। | एक ओर से विकराल भैंसे दौड़ते नजर आये। दूसरी तरफ से कई सर्पो
की फुफकारें सुनाई देने लगीं। सिंह की गर्जनाएं सुनाई देने लगीं। प्रकृति ने तांडव मचाया हो, ऐसे मृत्युनादों की परंपरा श्रीकांत के कर्णपट को छेदने
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लगी, किंतु वह डरा नहीं, डिगा नहीं ।
"कार्यं साधयामि वा देहं पातयामि " ऐसा मजबूत संकल्प कर आये इस बहादुर आदमी ने जरा भी डिगे बिना। मंत्रोच्चार क्रिया, पूर्ण स्वस्थता और एकाग्रतापूर्वक चालु ही रखी। पन्द्रह मिनट बीत गए, कंकालों के ढेर अदृश्य होने लगे। खून से रंजित भूमि पुनः मूल रंग में प्रकट हुई। आवाजें बन्द हुई, डरावना वातावरण बदल गया। उसके बदले हवा में इत्र की खुशबू आने लगी। दूर-दूर घंट बज रहा हो, वैसी आवाजें आने लगीं, संगीत के कई वाद्ययंत्र चारों ओर बजने लगे।
• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
ठीक एक घंटा बीतते ही उका भगत के कथनानुसार पीछे की दिशा में से, आकाश में से आ रही हो, वैसी मधुर किंतु प्रतापी आवाज आई। "मांग, मांग, मांगे वो दूँ।"
" मेरे सामने हाजिर हो" श्रीकांत ने अब सिंह की तरह गर्जना की। 'हाजिर होने का क्या काम है ? चाहिये वो मांग ले" जवाब आया।
"
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""
'प्रत्यक्ष हो, मेरे सामने स्वयं आकर खड़े हो, तुम हाजिर न होगे, तब तक मैं नहीं मांगूँगा " - श्रीकांत ने कहा । तुम डर से मर जाओगे, मेरा रूप डरावना है। " परवाह नहीं।" "जल जाओगे, मेरे अंगों में से आग निकलती है।" "फिक्र नहीं।"
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" प्रत्यक्ष देखने का आग्रह छोड़ दो, इसमें तुम्हारा अहित होगा"
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'आना हो तो आ, नहीं आना हो तो तेरी इच्छा" - इतना कहकर श्रीकांत ने पुनः मंत्रोच्चार चालु किया ।
" बंद करो, मंत्रोच्चार बंद करो" ऊपर से आवाज आई।
"तो फिर प्रत्यक्ष हाजिर हो' श्रीकांत ने आज्ञा की।
"मुझे आना हो, तो भी मैं नहीं आ सकता" - जवाब मिला ।
क्यों?"
" तुम्हारे आसपास जो तेज का गोला दिखाई दे रहा है, उसे पहले मिटा दो।"
जवाब मिला।
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•जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
श्रीकांत ने विस्मित होकर देखा, तो कोई अद्भुत प्रकाश का गोला उसके आसपास गोल चक्कर काट रहा था। उस प्रकाश की बात उका भगत ने श्रीकांत को नहीं कही थी, थोड़ा विचार करने के बाद श्रीकांत ने जवाब दिया -" यह प्रकाश का गोला भी तुम्हारी ही माया है, समेट लो।" "यह मेरी माया नहीं है । "
" तो फिर यह क्या है? " - श्रीकांत ने पूछा ।
" तुम नवकार मंत्र के आराधक हो ? - सामने से प्रश्न हुआ। "हां! किंतु उससे क्या?"
" यह महाप्रभावक मंत्र है। इसका यह तेज है। यह मेरे से सहन नहीं होगा, इसे समेट लो, तो मैं हाजिर होउँ ।"
"यह गोला मैंने नहीं बनाया, इसे समेंट लेने का उपाय क्या है?"
" जीवनभर नवकार मंत्र को याद नहीं करने की प्रतिज्ञा लो। उसी समय यह तेज का गोला अदृश्य हो जायेगा। फिर मैं हाजिर हो जाऊँगा । मैं हाजिर होकर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण कर दूंगा। प्रतिज्ञा ले लो। इस मंत्र के आराधक के सामने खड़े रहने की मेरी शक्ति नहीं है। तुम प्रतिज्ञा लो। नवकार मंत्र की आराधना, रटना, स्मरण या उच्चारण आज के बाद जिंदगी में तुम नहीं करोगे, ऐसी प्रतिज्ञा, स्वयं नवकार मंत्र की सौगंध लेकर करो। "
श्रीकांत अंतरिक्ष में से आ रही यह आवाज सुन रहा था। नवकार मंत्र का उच्चारण नहीं करने की प्रतिज्ञा लेने का वह "मैला देव" उसे कह रहा था। ऐसी प्रतिज्ञा ली जाए तो ही वह तेज पुंज अदृश्य होगा और तो ही वह वहां हाजिर हो सकता था।
श्रीकांत विचारों में डूब गया। नवकार मंत्र का यह प्रभाव?" वह मन ही मन बोल उठा । उसका विचार प्रवाह चालु हो गया । वापिस आवाज आई, "तुम्हें सिद्धि चाहिये? नवकार मंत्र का रटन छोड़ देने की प्रतिज्ञा नहीं लो, तब तक मैं प्रत्यक्ष नहीं हो सकता हूँ। प्रत्यक्ष हुए बिना
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - यह सिद्धि मैं तुम्हें नहीं दे सकता।"
श्रीकांत ने जवाब नहीं दिया।
"जल्दी करो, प्रतिज्ञा ले लो। अद्भुत सिद्धि प्राप्त करने का यह । अवसर मत जाने दो।" | श्रीकांत चुप ही रहा, उसका मन गद्गद हो गया, 'अहो! नवकार मंत्र का ऐसा, अपूर्व चमत्कार है? अद्भुत सिद्धि देने की शक्ति रखने वाला यह देव भी, इसके प्रभाव के सामने, लाचार बन गया है।' श्रीकांत के मन में विचारधाराएं चल पड़ी।
___ "मैं कैसा मूर्ख! महामूर्ख!" नमस्कार महामंत्र का रटन में बचपन से करता आया हूँ, फिर भी इसके प्रभाव से अनजान ही रहा, और ऐसी एक तुच्छ लौकिक शक्ति प्राप्त करने के लिए मैंने ऐसा भीषण पुरूषार्थ किया।" श्रीकांत का अंतर रो पड़ा।
"प्रतिज्ञा लो, प्रतिज्ञा लो, जल्दी करो। हाथ में आए अवसर को जाने मत दो, जिन्दगी भर पछताओगे।" -ऊपर से फिर आवाज आई।
श्रीकांत का मौन नहीं टूटा। "प्रतिज्ञा ले लूँ, तो जन्म-जन्मान्तर में पछताना ही मेरे भाग्य में रहेगा।" वह विचार कर रहा था।
"विचार मत करो, आया हुआ मौका दुबारा नहीं मिलेगा"- पुनः आवाज आई।
किंतु श्रीकांत का लक्ष्य तो अब नवकार मंत्र में ही स्थिर हो गया था। "ऐसा महाप्रभावक मंत्र जिससे यह देव भी डरता है, ऐसे महामंत्र का त्याग करके मुझे क्या प्राप्त करना है?"
"जन्म-जन्मांतर की तपस्या पर पानी फेरना है? भवो-भव की पुण्याई का अपने हाथ से अग्नि संस्कार करना है?' श्रीकांत के अंतर की गहराई में से यह जवाब आया।
"नहीं, नहीं, यह तो सोने के बदले पत्थर लेने जैसी बात है, ऐसा कभी नहीं हो सकता। ऐसी एक करोड़ सिद्धियां भी मिलती हों, तो भी मैं
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नवकार मंत्र के त्याग करने की मूर्खता नहीं कर सकता । " श्रीकांत के अन्तःकरण में यह निर्णय हो गया।
" तब मैं जाऊँ?" - उस मैले देव ने पूछा।
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श्रीकांत को अब कुछ भी जवाब देने की आवश्यकता नहीं लगी। वह चुप रहा। उसने नवकार मंत्र का जाप वहीं श्मशान में चालु कर दिया।
"स्वामी मुझे आज्ञा दो, जाने की अनुज्ञा दो। आपकी आज्ञा जब तक नहीं मिलेगी, तब तक मैं यहां से नहीं जा सकता । कृपा करो, मेरे पर दया करो। "चला जा" इतने दो शब्द बोलो।" वह देव अब लाचारी दिखा रहा था ।
" चला जा । " - श्रीकांत ने आज्ञा दी।
रात भर श्रीकांत वहीं बैठा रहा। नवकार मंत्र का जाप, वह वहां बैठा-बैठा, करता ही रहा। वहां उसकी आत्मा को समाधिभाव मिल गया। सूर्यनारायण की किरणों नें श्रीकांत के शरीर को स्पर्श किया तब उसने अपने नेत्र खोले ।
उसके चारों तरफ पुष्प बिखरे हुए पड़े थे। इसके गले में पुष्पों की माला थी। जब वह प्रसन्नचित्तता से वहां से उठकर गांव की ओर चलने लगा तब गगन में से आ रहे दिव्यनाद ने वातावरण को भी प्रफुल्लित बना दिया था।
केन्सर केन्सल हो गया है
जिसके हृदय में श्रद्धा का दीपक प्रकाशमान हो, उसे आंधी या तूफान में भी आंच नहीं आती है । संसारसागर से पार होने हेतु जीवन पथ की मंजिल पर पहुंचने के लिए हृदय में जो नवकार मंत्र रूपी दीपक प्रकाशमान हो और श्रद्धा की ज्योति जगमगाती होगी तो लाखों परेशानियों में भी राह मिल जायेगी । दृढ़ एवं गहरी श्रद्धा ने कई ही जीवों को मोक्ष का मार्ग बताया होगा । इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलेगा कि
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कितने ही दुःखियों के दुःख क्षण भर में नष्ट हो गये, कई जीवों का जीवन आबाद हो गया। श्रीपाल, चंदराजा वगैरह सैंकड़ों उदाहरण मिलेंगे। इन सभी ने भवसागर के नाविक के रूप में नवकार मंत्र का सहारा लिया था।
यह तो हुई केवल भूतकाल की बात । परन्तु आज के पंचमकाल के अणु-युग में भी नवकार मंत्र का प्रभाव अभी भी उतना ही फैल रहा है। काल के अनेक थपेड़ों के बावजूद भी उसके प्रभाव में, उसकी अमोघ शक्ति में तिल मात्र की भी कमी नहीं हुई, यह कोई महामंत्र का कम प्रभाव है? काल के थपेड़ों के बावजूद कई युगों के बाद भी नमस्कार महामंत्र - महामंत्र ही रहा है।
आज के समय का ही एक दृष्टांत, यह बात सिद्ध कर देगा। छोटी उम्र से ही मुझे नवकार के प्रति श्रद्धा थी। ई.स. 1962 की बात है। मेरे शरीर पर दिसंबर की शुरूआत में किसी रोग के चिह्न दिखाई दिये। मैंने शुरूआत में तो विशेष ध्यान नहीं दिया। परन्तु 15 दिसम्बर के लगभग एक महिला स्त्री डॉक्टर से मिलने पर उसने बताया कि तुम्हारे शरीर में कैंसर है और तुरंत अहमदाबाद जाने की सलाह दी। लगभग एक सप्ताह बाद हमने अहमदाबाद की ओर प्रयाण किया। उस दौरान निरंतर नवकार मंत्र का जाप चालु ही था । अहर्निश उसका ही रटन करती थी। संयोग से कहो या नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से कहो मगर अहमदाबाद के वाडीभाई साराभाई अस्पताल के स्पेशियल कमरे में सुविधा मिल गई। ख्याति प्राप्त स्त्री डॉक्टर मिस पंड्या की देखरेख मिली। यह सभी समयानुसार ही मिल गया। यह प्रभाव नवकार मंत्र का ही! दूसरे शब्दों में कहूं तो श्रद्धा मुझे यहां खींच लाई । मेरे जीवन का सुकान आकस्मिक रूप से ही कुशल सुकानी के हाथ में चला गया ।
मैंने अस्पताल में आने के बाद भी निरंतर मंत्र का जाप चालु ही रखा । मेरी दवाइयों एवं डॉक्टरों से कई गुना ज्यादा श्रद्धा नवकार मंत्र में थी। मुझे श्रद्धा के अटूट धागे से ही रोग की जानकारी जल्दी प्राप्त हो सकी, ऐसा मेरा अंतःकरण मानता है। मुझे कोबाल्ट के सेक देने शुरू
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? किये, सार-संभाल बढ़ती गई वैसे-वैसे मेरी श्रद्धा भी उत्तरोत्तर बढ़ती गई। मैंने चौबीस घंटे नवकार का स्मरण चालु ही रखा। आखिर महामंत्र के प्रति श्रद्धा की विजय हुई। मेरा सिर्फ डेढ़ महिने में ही प्राणघातक कैंसर जैसे रोग से छुटकारा हो गया। दवाइयों, डॉक्टरों का साथ था ही, परंतु उन सभी का साथ दिलाने वाला अनमोल महामंत्र नवकार ही था। 'नवकार महामंत्र रूपी चुम्बक के आकर्षण से भौतिक साधन खींचकर आ गए, ऐसा कहना ज्यादा योग्य है।
अन्त में मुझे फिर से विश्वास हो गया कि, हदय की गहराई से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती है, यदि उस प्रार्थना में श्रद्धा सुदृढ़ हो।
यदि यह लेख एकाध आत्मा को थोड़ा भी हिला सके या किसी के हदय में नमस्कार महामंत्र के प्रति श्रद्धा प्रकट कर सके तो यह लेखनी सफल हुई है, ऐसा मानूंगी।
अग्नि शीतल होवे तत्काल
गुजरात के एक गाँव में एक श्रावक रहता है। वह अत्यंत धर्मचुस्त और नवकार के प्रति श्रद्धालु है। उसके जीवन में घटित हुई यह घटना है।
वह एक बार रात में 11-30 बजे सोये हुए थे। उनके घर के पास में घास भरा हुआ था , उसमें अचानक आग लग गई। आग विकराल रूप धारण करे, उससे पहले ही , पास के मौहल्ले में कलह होने से लोग जाग रहे थे। वे आग की लपटें देखते ही तुंरत दौड़े। उन्होंने पास में रहा पानी का पंप चालु कर दिया। पानी डालते ही आग शांत हो गई। जिससे थोड़ा सा भी नुकसान नहीं हुआ। यदि वह आग आगे बढ़ती तो पूरे मोहल्ले को राख कर डालती। उस भाई ने जगकर जैसे ही यह लपटें एवं कोलाहल देखा, वैसे ही नीचे आकर, मन में नवकार का जाप चालु ही रखा था।
एक बार इस भाई की बेटी मैट्रिक के बाद S.T.C. की पढाई कर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
रही थी । वहाँ उसे टाइफॉइड होने से बहुत कमजोरी आ गई। परीक्षा को केवल 15 दिन शेष थे। बहिन को घर आने की इच्छा होते ही उसके लिए अपने पिताजी को पत्र लिखा। पिता ने पत्रोत्तर में लिखा कि, "तुझे जितना याद रहे उतना पढ़ना और प्रतिदिन नवकार का स्मरण करना और बिल्कुल नहीं घबराना। अंत में परीक्षा में पेपर लिखते समय नवकार गिनकर जो याद रहे वह लिख डालना। "जहां उत्तीर्ण होने की भी आशा नहीं थी, उसके बदले नवकार के प्रभाव से 60 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए। उसके बाद नौकरी के लिए प्रार्थना पत्र पेश करते ही उसे तुरंत गांव में अच्छी नौकरी मिल गई। इस तरह नवकार मंत्र का प्रभाव अजीब है। इसलिए वाचक भी श्रद्धा रखकर उसे जीवन में उतारें।
श्री नमस्कार महामंत्र का तेज
संध्या का समय था। सूर्य धीरे-धीरे क्षितिज में अदृश्य हो रहा था। पशु-पक्षी अपने स्थान की ओर जा रहे थे। जिनमंदिर के शिखर पर मोर बैठा था। जैसे जगत को महान संदेश देता हो- "अरे! जीवों, संसार के भौतिक सुखाभास में तुम किसलिए खोये हो? क्या तुम्हें वीतराग देव के दर्शन करने की अभिलाषा नहीं जगती है? मैं कैसा प्रभु के दरबार में बैठा हूँ! कितनी शांति ! कितनी प्रफुल्लता !
किंतु अरे, जैसे मोर की मूक बात का जवाब मिल रहा हो वैसे मंदिर में घंटनाद हुआ। जगमलसेठ अपनी हमेशा की आदत के अनुसार प्रभु दर्शनार्थ पधारे थे।
प्रभु दर्शन करके वे आज सुबह ही पधारे महाराज साहेब को वंदन करने गये । " प्रभु! आपने यहाँ पधारकर हमें पावन किया । " महाराज साहेब को वंदन कर जगमल सेठ बोले, "कहो, गांव में धर्म के प्रति कैसी रुचि है?" " रुचि तो प्रभु अब कहाँ रही है? लोगों की धर्म के ऊपर से श्रद्धा उठती ही जा रही है। किंतु आप यदि उपदेश देंगे तो लोगों का मानस पलट सकता हैं। "
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - "भले ही, मैं कल व्याख्यान दूंगा"-मुनिराज ने गंभीरता से कहा। दूसरे दिन सवेरे भाविकों की भीड़ लगी। बहुत लम्बे समय के बाद साधु महाराज के मुख से धर्मोपदेश सुनने को मिलेगा, इस कारण सभी के मुँह पर आनंद था। ___ मुनिराज ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। देवदर्शन नहीं करने वाले श्रावकों ने प्रतिदिन प्रभु दर्शन हेतु आने का निश्चय किया। . ___ "जिस प्रकार नाव से सागर पार किया जाता है, उसी प्रकार महामंत्र से भवसागर पार किया जाता है। जैन शासन में मनुष्य को | भवसागर से पार करने के लिए महामंत्र नाव है। कितने भी कठिन समय में नवकार महामंत्र का स्मरण करने से कठिन से कठिन विघ्नों का नाश होता है। बात इतनी ही है कि उसका स्मरण दिल से होना चाहिए।"-मुनिराज ने सभी को महामंत्र का पाठ सिखाया। ___परन्तु इतने से मंत्र पर श्रद्धा बैठे कहां से? श्रोताओं ने. केवल आश्चर्य व्यक्त किया। उनको इस मंत्र के ऊपर इतना विश्वास नहीं आ रहा था।
"हे जिन! अचिंत्य महिमावान आपकी स्तवना तो दूर रही, परन्तु आपका नाम स्मरण भी तीन जगत के जीवों का इस संसार में रक्षण करता है।"-मुनिराज ने अपना वक्तव्य आगे बढ़ाया।
इतने में तो 'प्रभु, प्रभु बोलता हुआ एक आदमी आया और मुनिराज के चरणों में गिर पड़ा। उसकी आंखें लाल थीं। उसके कपड़े भीगे हुए थे। उसके पैरों में से खून निकल रहा था। वह अति थका हुआ लग रहा था।श्रोताजन आश्चर्य में डूब गये। यह क्या? मुनिराज आगंतुक की तरफ घुर-घुरकर देख रहे थे। उन्हें वह कहीं देखा हुआ लग रहा था।
"गुरुदेव! मैं खंभात के सेठ सौदागर जगमल शाह का पुत्र हूँ।" "कौन, सेठ जगमल शाह?"
" हाँ, गुरुदेव! मैं जगमलशाह का पुत्र हूँ। धर्म पर मुझे श्रद्धा नहीं, मेरे पिताजी को मेरी नास्तिकता से बहुत दुःख होता था। मुझे बहुत
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? समझाते, तब मैं कहता कि, पिताजी, आप मुझे चमत्कार बताओ, तो मैं मानूं।"
"मेरे पिताजी गंभीरता से उत्तर देते कि, "बेटा, अन्तःकरण की स्वच्छता और दुनिया से अलिप्त मन रखकर प्रभु का स्मरण करने से वे अवश्य प्राप्त होते हैं।"
मैं उनकी बात हंसकर टाल देता, पिताजी अत्यंत दुःखी होते थे।
एक बार आप जब खंभात में विराजमान थे और व्याख्यान दे रहे थे, तब अपने नास्तिक मित्रों के साथ मैं आ पहुँचा, उस समय आप नवकार महामंत्र संबंधी बात कर रहे थे। आपने कहा था -
"नमस्कार पुण्य रूपी शरीर को उत्पन्न करने वाली माता है। जीव रूपी हंस के लिए विश्रांति का स्थान नवकार है।"
."श्री नवकार मंत्र का जाप करने से आत्मा के शुभ कर्म का आश्रव (आगमन) होता है, अशुभ कर्मों का संवर (रोक) होता है, पूर्व कर्म की निर्जरा (नाश) होती है, बोधि सुलभ होती है, लोकस्वरूप का ज्ञान होता है, और सर्वज्ञं कथित धर्म की प्राप्ति कराने वाले पुण्यानुबंधी पुण्यकर्म का उपार्जन होता है।"
"साधक को यह श्रद्धा रखनी चाहिये कि मेरे उद्देश्य की पूर्ति इसी जाप के प्रभाव से ही होगी।"
में आपकी बात सुनकर बहुत हँसा और जावा बंदरगाह व्यापार के लिए रवाना हो गया। यह बात तो विस्मृत हो गई। ___मैंने जावा से बहुत माल हिंद के लिए भरा। हमारी सफल यात्रा बिना किसी विघ्न के चल रही थी। खंभात बंदरगाह आंख की पलक | जितना दूर था और हमारे जहाज तूफान में फंस गये। किनारे आई नौका
जैसे बीच समुद्र में चली गई। हमें ख्याल भी नहीं था कि, अचानक ऐसा होगा। हमारे जहाज मीलों दूर समुद्र में चले गये।
तूफान के झोंके हमारे मजबूत जहाजों पर हमला करने लगे। हमने |
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
बहुत तूफान के झोंके देखे थे, किंतु ऐसा नहीं देखा था।
"और... और क्षणभर में हमारे जहाज टूटकर टुकड़े हो गये। हमारे नाविकों एवं खलासियों के हाथ, कुदरत के सामने लाचार बने । सागरराज की प्रचंड आवाज ने हमें बहरा बना दिया और हमारे नाविक एवं खलासी कहीं अदृश्य हो गये।
किंतु... किंतु... रे! मेरी किसी पूर्वभव की पुण्याई होगी, जिससे उस जहाज के एक पाटिये से मैं चिपका रहा । जीवन की कोई आशा नहीं थी । प्यारे साथीदार गायब हो गए थे। जहाजों में भरा हुआ लाखों का माल सागरराज निगल गये थे। अरे, प्राण से भी प्यारे जहाज भी टूटकर टुकड़े हो गये थे। रहा था केवल मैं और... और उस समय मुझे आपके इस महामंत्र का स्मरण हो आया। मैं जिन्दगी में पहली बार नास्तिक में से. आस्तिक बना। मैंने इस महामंत्र का स्मरण किया और तूफान के थपेड़ों से मैं बेहोश हो गया।
जब मैं होश में आया तब किनारे पर पड़ा था। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि मैं जीवित हूँ। मैंने अपने गाल पर चिमटी भरी तब मुझे लगा कि मैं जीवित हूँ। मैंने तुरंत फिर से महामंत्र का स्मरण किया और वहां से चलने लगा। चलते-चलते इस गांव में आ पहुंचा। यहाँ आते समाचार मिले कि आप यहीं विराजमान हो और तुरंत ही मैं आपके चरणों में आलोटने आ दौड़ा।"
इतना कहते ही वह फिर मुनिराज के चरणों में गिर पड़ा।
सभी मुग्ध बन गये।
मुनिराज ने कहा, " देखा न, यह महामंत्र का तेज । "
सभी के दिल में सच्ची श्रद्धा बैठ गई। सभी ने जिनशासन का जयघोष गुंजायमान कर दिया।
लेखक / सम्पादक : प. पू. पंन्यास श्री अभयसागरजी म.सा.
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -
कमली का भयंकर कष्ट टला
मेरे पेट में वि.सं. 2026 में तीव्र शूल की वेदना हुई। ऐसे तो बारह महिने पूर्व से भूख नहीं लगती थी। डॉक्टर को बताने पर उसने कहा कि लीवर में सूजन है। दस इंजेक्शनों का कोर्स लेना पड़ेगा। किंतु छोटे गांव में रहने के कारण चार कोस दूर डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगाने जाना पड़ता था। बस आदि का साधन आने-जाने के लिए नहीं था। घर पर डॉक्टर बुलावें तो खर्च भारी पड़ता था, इस कारण मैंने उपेक्षा की। मेरी कम भूख के कारण उपवास आदि तपस्या अच्छी तरह से होने लगी। जिससे मैं बीस-स्थानक के उपवास आदि करती थी। इससे मुझे ठीक लगता था।
किंतु बाद में एक दिन मेरा पूरा शरीर जकड़ गया। पेट में थोड़ा दर्द शुरू हुआ और थोड़े ही दिनों बाद तीव्र वेदना होने लगी। मांडवी वगैरह बड़े गांवों में डॉक्टरों को बताने पर उन्होंने कहा कि, "ऑपरेशन करवाना पड़ेगा। उसके लिए भी मुम्बई या अहमदाबाद जाओ। यहां हमारा काम नहीं।" अब मेरे लिए बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। मेरे पतिदेव मध्यप्रदेश में नौकरी करते थे, जिससे उन्हें तार करके बुलाया। उनको आने में लगभग दस दिन निकल गये। किंतु इतने दिनों में शल की तीव्र वेदना खूब चालु रही। मेरे मन में विचार आया कि, "मुंबई जाकर ऑपरेशन कराऊं और शायद मर भी जाऊँ तो अस्पताल में मुझे नवकार सुनाने वाला भी कोई नहीं मिलेगा।" ___मांडवी के पास कच्छ कोडाय गांव में मेरे परमोपकारी योगनिष्ठा गुरुवर्या श्री गुणोदयश्रीजी म. सा. का चातुर्मास था। आषाढ़ माह के दिन थे। बरसात लगातार बरस रही थी। मांडवी अस्पताल में से वापिस गांव जाना ओर वहां से फिर मुम्बई के लिए रवाना होना बहुत ही मुश्किल होने से मैंने अपने पुत्रों को कहा कि -"मुझे यहां से गुरुवर्याजी के पास ले चलो। तुम्हारे पिताजी आयें तब तक मुझे वहीं रहना है। वहां में अंतिम समय की सभी विधि कर लँ. क्योंकि अब मुझे इस बीमारी में से बचने)
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - की आशा नहीं लगती।"
इस विचार से हम कच्छ-कोडाय पू. गुरुवर्याजी के पास चले गए। पू. गुरुवर्याजी को विनति की कि, "मेरी वेदना की शांति के लिए श्री संघ को कहकर सवा लाख नवकार मंत्र का जाप करवाओ।" मेरी इस विनति को स्वीकार कर एक दिन पूरा श्री संघ जाप में बैठ गया। मेरी वेदना किसी से सहन नहीं होती थी। इस प्रकार लगभग आठ दिन व्यतीत हुए। वेदना तीव्र थी वह मंद पड़ गई। इस दौरान मेरे पतिदेव भी आ गये। हम मुंबई के लिए रवाना हो गये। किंतु नवकार मंत्र के प्रभाव से मेरे पति को रास्ते में एक आदमी मिल गया। उसने बातचीत में बताया कि, "मुंबई जाकर ऑपरेशन मत करवाना। किंतु मांडवी-भूज रोड़ पर दहीसरा गांव आता है। वहां एक वैद्य रहता है। वह पेट दर्द का बहुत अच्छा ईलाज करता है।" वगैरह बहुत भारपूर्वक कहा।
जिससे हमने सोचा कि, मुम्बई पहंचने से पहले बीच में दहीसरा गांव में वैद्य को बताते जाएं, इस आशय से टेक्सी वाले को कहा, "थोड़ी देर रुककर भी हमें दहीसरा ले चलो।" वहां वैद्य के पास जाकर जांच करवाई। वैद्य ने कहा कि,"कमली हो गई है। अब फुटने की तैयारी में है। मुश्किल से एक-दो दिन निकलेंगे और अंदर फुट गई तो खेल खत्म।" वैद्यजी को पूछने पर उन्होंने बताया कि, "हां मेरे पास उपाय है, किंतु डाम्ब का! डॉक्टरों का आखरी उपाय ऑपरेशन एवं वैद्य का अंतिम उपचार डाम्ब देने का!" हम बहुत सोच में पड़ गये। वैद्य को भारपूर्वक पूछने पर उसने बताया कि "हां! मेरे उपचार से यह बाई ठीक हो जायेगी
और इसके लिए मैं लिखित में कागज पर लिखकर देने के लिए तैयार हूँ।" साथ के संबंधियों (पतिदेव वगैरह) ने मुझे पूछा। मैंने कहा-"भले ही वैद्यजी से उपचार करावें। मुझे मुम्बई नहीं जाना है। घर जाकर मरूंगी तो नवकार मिलेगा। मुम्बई में तो पराधीन हो जायेंगे।" इस प्रकार हम डाम्ब दिलाकर मुम्बई के बजाय वापिस घर पर आये। वर्षा के कारण घर बड़ी मुश्किल से पहुंचे। कीचड़ में गाड़ी के पहिये फंस जाते और उनके ऊपर पानी आ जाता था। गांव में कच्चा रास्ता होने से बस या टेक्सी वहां नहीं
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - जा सकती थी। इस प्रकार मुश्किल से घर पहुंचकर, वैद्य के कहने के अनुसार उपचार करने से पेट के भाग में जो गांठ थी वह बाहर आ गई।
छोटी केरी के आकार की पत्थर जैसी कठोर गांठ बाहर की ओर निकल आई। वैद्यजी के कहने के मुताबिक उपचार करने से गांठं बाहर की ओर फुटी। नल में से पानी की धार छुटे उस प्रकार मवाद एवं काले खून का फव्वारा छूटा। रोग लगभग पेट के दाहिने हिस्से में से होकर पीछे करोड़रज्जु (रीढ़) तक कठोर पत्थर की तरह इकट्ठा हो गया था। यह सब वैद्यजी के उपचार से ही फुटकर मवाद और काले खून से मिश्रित |चार-पाँच किलो कचरा बाहर निकल गया। इस प्रकार में मौत में से
नवकार महामंत्र के प्रभाव से बच गई। उसी समय में हमारी पहचान के |पास के गांव में दो जने पच्चीस से पैंतीस वर्ष की उम्र के, इसी प्रकार के रोग से मुम्बई में मर गए थे। यह सब देखकर मुंबई में रहने वाले हमारे संबंधियों ने अति दबाव के साथ पत्र लिखे कि, 'तुम मुंबई आ जाओ और ऊँट वैद्यों के भरोसे कच्छ में कैसे बैठे हो?' ऐसे कई कारणों से उनके मन के समाधान के लिए हम रोग के निदान हेतु मुम्बई गये। वास्तव में रोग का उपचार तो हो गया था। किंतु कमजोरी बहुत आ गई थी। इस कारण हवाई जहाज द्वारा मुझे मुम्बई ले गये। वहाँ निदान हुआ। पूरी जाँच की किंतु किसी प्रकार के जंतु नहीं हैं और सामान्य फोड़ा है, इस प्रकार डॉक्टरों ने कहा। शक्ति का उपचार करके हम वापिस देश (कच्छ) में आ गये।
हम मुम्बई में हरकिशन अस्पताल में थे। इसी दौरान हमारे पास के गांव कच्छ-भोजाय की एक बाई को इसी अस्पताल में लाया गया। मेरे जैसी ही उनके रोग की स्थिति थी। किंतु डॉक्टरों ने जाँच करके खून का कैंसर बताकर छुट्टी दे दी। अस्पताल में भी उस बाई को रखने की आवश्यकता महसूस नहीं की। वह देश (कच्छ) में सात माह की तीव्र वेदना के बाद मरण की शरण में गई।
नवकार महामंत्र के प्रभाव का मुझे एक दूसरा अनुभव भी हुआ है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - कच्छ में छोटे गांव में रहने के कारण हमें प्रत्येक वस्तु लेने के लिए तथा आटा-चक्की नहीं होने के कारण अनाज पिसवाने पास के गांव में जाना पड़ता था। हमें कभी आस-पास के गांवों में अकेले भी आना-जाना पड़ता था। एक-एक कोस की दूरी पर दूसरे गांव होने के कारण आने-जाने में डर भी नहीं लगता था। मैं एक दिन दोपहर में मध्याह्न के समय पास के गांव में जा रही थी। मुझे वापिस आते समय ज्यादा सामान होने से बस का सहारा लेना था, जिसके लिए मैं दोपहर को रवाना हुई। रास्ते में एक बड़ा गहरा जलाशय आता था। अचानक मेरी नजर जलाशय के उस ओर गई। वहाँ सामने की ओर से कुत्ते जैसा कोई प्राणी तेज गति से आ रहा था। पहले तो मुझे लगा कुत्ता होगा। किंतु बाद में अचानक ख्याल आया कि लोग कहते हैं कि इस क्षेत्र में एक भगाड़ नाम का हिंसक प्राणी घुमता है और भेड़ एवं बकरों को परेशान करता है। मैं डरकर मन में नवकार मंत्र का स्मरण करती खड़ी रह गई। मैंने बारह नवकार गिनकर मन में संकल्प किया कि जो हिंसक जानवर हो तो यह रास्ता छोड़कर दूर चला जाए। मैंने नवकार मंत्र गिनकर पड़कार किया तो तुरंत ही सामने से आता प्राणी वापिस मुड़कर दक्षिण दिशा में किनारे की ओर चला गया। मैं पूर्व में जा रही थी। वह सामने आ रहा था। यदि हम दोनों सीधे-सीधे चलते रहते तो खाली जलाशय में आमने-सामने हो जाते। वहाँ किसी की आवाज भी सुनाई नहीं देती। ऐसी गंभीर परिस्थिति थी। किंतु मैं रास्ते में अकेले कहीं भी जाना हो तो नवकार मंत्र को रक्षक के रूप में रखकर नवकार गिनती-गिनती चलती जाती हूँ, ऐसी आदत हो गई है। जिससे इस हिंसक प्राणी पर अचानक मेरी नजर पड़ गई। वह सामने किनारे पर था और में इस किनारे पर थी। जिससे नवकार मंत्र के प्रभाव से मेरी रक्षा हो गई। इसी तरह दूसरे भी दो-तीन प्रकार के अनुभव हैं। वास्तव में अचिंत्य महिमा वाले नवकार मंत्र का प्रभाव ऐसे कलिकाल में भी अनुभव में आता है, यह अद्भुत है।
लेखिका-अ.सौ.पानबाई रायशी हरशी गाला(कच्छ-चांगड़ाईवाले) मुकाम पोस्ट - लायजा (मोटा) तहसील- माण्डवी, कच्छ-गुजरात पिन : 370475
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
मंत्र छोटा, महिमा बड़ी में मेरा अनुभव बताने एवं नवकार महामंत्र की महिमा एवं उसका प्रत्यक्ष प्रभाव कैसा है? वह कहने के लिए इस लेखनी को कागज पर अंकित करने का प्रयास करता हूँ। जैन धर्म में नवकार मंत्र का स्थान ऊँचा है। जो मानव नवकार मैया की गोद में चला जाये उसका यह अवश्यमेव रक्षण करता ही है। इसमें शंका का कहीं कोई स्थान नहीं है। बाकी श्रद्धा का तेल डालना जरूरी लगता है।
पन्द्रह वर्ष पूर्व मेरे बड़े भाई (तरुण भाइ) तीर्थरत्नसागरजी ने केसरीयाजी तीर्थ में दीक्षा ग्रहण की। उस समय मैंने एक सौगंध , नवकार मंत्र की माला गिनने की ली, वह नियमित गिनता रहा और मेरे हदय में अजीब उत्साह बढ़ने लगा।
एक दिन मैं मुंबई सामान खरीदने गया और गुंडों की एक टोली ने मुझे घेर लिया। मैंने नवकार का स्मरण शुरू किया। मेरा नौकर माल लेकर मेरे साथ चल रहा था। इस टोली को मैं पहचान गया, किंतु छुटना मुश्किल था। चारों ओर व्यापारियों को देखा किंतु सहायता करने आये ऐसा कोई दिखाई नहीं दिया, क्योंकि गुंडों के सामने कौन फँसे? किंतु मेरे श्वासोच्छ्वास में महामंत्र का स्मरण गूंज रहा था। साक्षात् इस मंत्र ने हदय कमल में प्रवेश कर मेरा रक्षण किया। इन गुंडों ने मेरी टांग में टांग | डालने का बहुत प्रयत्न किया। नौकर आगे निकला तो उसका सामान गिरा डाला, फिर भी मैं मौन रहा। मैं थोड़ा आगे बढ़ा तो उन लोगों ने कहा, "हमारे साथ चलो। " मैं और नौकर गये तो एक अंधेरे युक्त बिल्डींग में ले गये। गुंडों ने धारदार चाकू बाहर निकाला, जो देखकर अच्छे-अच्छों की आँखे बंद हो जाएं। ऐसे समय में मृत्यु के मुँह में से बचाने वाला हिम्मत देने वाला यह महामंत्र ही था। उन्होंने धमकाते हुए कहा, "जो हो वह दे दो। " मैंने कहा -"यह सामान एवं थोड़े पैसे हैं। चाहिए तो ले लो।'' किंतु वास्तव में उस समय ऐसे चमत्कार का सृजन हुआ कि गुंडों
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - की बुद्धि कुंठित हो गई। उनको कुछ भी नहीं सूझा। तब मेरे पास थैले में करीब पाँच हजार रूपये एवं शरीर पर चेन, अंगूठी और घड़ी थी। उन्होंने कहा-"भाग यहाँ से जल्दी भाग।" मैं और नौकर साथ में वहाँ से चलते बने। अचिंत्य चिंतामणी समान इस महामंत्र के प्रभाव से मैं बाल-बाल बच गया। किंतु अब जब यह दृश्य मेरी आँखों के सामने आता है, तब आँखें आंसुओं से भीगी बन जाती हैं। हदय में से रणकार उठती है कि उस समय मेरा रक्षक... मित्र...आधार जो मानूं वह नवकार ही था। तब से मेरे मन में नवकार के प्रति अनन्य श्रद्धा पैदा हो गई है। घर आकर बड़ों के आगे बात पेश करते समय आस-पास के सभी आँखों में से बहते पानी को नहीं रोक सके। नवकार मंत्र के प्रभाव से सभी आश्चर्यचकित रह गये। सभी एक ही आवाज से बोल उठे कि "मंत्र छोटा है, किंतु महिमा बड़ी है।'
लेखक -अनिल केशवजी देढिया 14/शील निकेतन, दूसरी मंजिल, एच ऑफ सोसायटी रोड,
ओवरसीज बैंक की गली, जोगेश्वरी (पूर्व) __मुम्बई -400060,फोन नं:- 6343569
1 संसार में सार मंत्र नवकार ।
यहां से चार दृष्टांत के लेखक पू. गच्छाधिपति आ.म. श्री जयघोषसूरीश्वरजी
म.सा. के प्रशिष्य प. पू. मुनि श्री जयदर्शनविजयजी म.सा.
होनी-अनहोनी तो जीवन यात्रा की धूप-छांव है। अंग्रेजी में उक्ति 4-MAN PROPOSES, GOD DISPOSES.
सांसारिक जीवन में गृहस्थ जीवन अंगीकार करने की मजबूरी आयी, किन्तु जिनशासन के प्रति प्रेम से पुष्पित पुण्योदय के प्रभाववश वैवाहिक काल में दस सालों में कुल बारह बार तीर्थयात्रा समूह में करने-कराने के पुण्यावसर आये। सांसारिक सहधर्मचारिणी का सहकार भी
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
सौजन्य युक्त था। जिसके कारण ई. सन् 1987 में झरिया निवासी श्री | शामजीभाई शेठ के सांनिध्य में सम्मेतशिखर तीर्थ की यात्रा बस द्वारा 50 यात्रियों के साथ 28 दिनों में उल्लास सह सम्पन्न हुई।
बस उसी यात्रा के बाद अन्तिम तीर्थयात्रा, 28 दिन के यात्रा प्रवास के साथ कुल गुजरात और राजस्थान के प्रसिद्ध - अप्रसिद्ध 108 तीर्थों की स्पर्शना करने हेतु आयोजित किया, जिसके पश्चात् चारित्र जीवन अंगीकार करने की भावना थी। वैसे भी बचपन की अनजान उम्र से ही तीर्थयात्रा का प्रेम ऐसा साहजिक था कि भावना की भव्यता के साथ तब तक हिन्दुस्तान के 250 से अधिक तीर्थों की यात्रा दो से अधिक बार और शिखरजी की यात्रा 35 बार हो चुकी थी । अनमोल अनुभवों के साथ बैंग्लोर से दिनांक 26.1.1988 मंगलवार के मंगल महूर्त में हम सभी ने अहमदाबाद जाने के लिए ट्रेन से प्रस्थान किया। कुल 50 यात्रार्थियों के साथ हठीसिंह की वाड़ी से शुभारंभ किया। जिससे पूर्व ही 28 दिन की सफल यात्रा हेतु हम सभी ने मिलकर एक दिन में 28 से अधिक आयंबिल किये थे और गुरु भगवन्तों के मांगलिक प्रवचनोपदेश से प्रस्थान किया।
उत्साह उमंग और उन्नति को लक्ष्य में रखकर सभी ने बस द्वारा यात्रा करना प्रारंभ किया। हम श्री शंखेश्वरजी, तारंगाजी, आबुजी, राणकपुर, आदि प्रमुख तीर्थों की सुन्दर स्पर्शना करते-करते ठीक 14 वें दिन दिनांक 6.2.88 को सुबह जैसलमेरजी तीर्थ से आगे बढ़ते हुए शाम को करीब चार बजे के पूर्व ही बाड़मेर पहुंचे, जहां पर चौविहार हेतु अल्प मुकाम किया और शाम को ही नाकोड़ाजी जाने हेतु प्रस्थान किया।
नाकोड़ाजी रात्रि को 9-30 से पहले पहुंचने का अंदाज था किन्तु भवितव्यता कुछ और थी । हररोज हमारे साथ ही रात्रिभोजन का त्याग कर लेने वाला बस ड्राईवर उस दिन ही प्रमादी बना, और न जाने बाड़मेर - नाकोड़ा के बीच रास्ते में संघपति की 5-6 यात्रा बसों के ड्राईवरों के साथ भोजन हेतु कुछ देर रुका। हमें भी उसकी कार्यदक्षता को लक्ष्य में रखकर उसकी इच्छा में सहमत होना पड़ा, किन्तु जब कोई घटना नियति के आधीन हो, कौन क्या कर सकता है ?
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? भक्ति गीतों की रमझट के बाद हम सब पूरे दिन की आराधना से थके हुए थे, जिससे मैंने बस की अन्तिम 6 सीटों के स्थान को छोड़कर बांये ओर की एक सीट पर स्थान लिया, और कुछ निद्रावस्था का अनुभव था। साथ-साथ नवकार मंत्र का स्मरण भी चालु था। लम्बे सफर के बाद नाकोड़ाजी तीर्थ सिर्फ 17 कि.मी. दूर था कि अचानक स्थानान्तर के करीब 15 मिनट के समय बीतने के साथ ही बस सामने से आ रही ट्रक के साथ टक्कर खा बैठी। कोई विस्फोट सी आवाज अनुभव करते ही हम सब सजग हो गये, किन्तु बस की रफ्तार और गति-दिशा चालक के हाथ से बाहर हो गयी थी। वातावरण की गंभीरता और भयानकता ऐसी थी कि सब यात्री अवाक् थे, किन्तु मेरे मुख में नित्य स्मरण से आत्मसात् जैसा नमस्कार महामंत्र स्पष्ट निकल गया। बस को ट्रक की टक्कर से लगे धक्के के कारण, मैं भी सीट पर से गिर गया था, किन्तु मृत्यु का सहज भय, नवकार उच्चारण में रूपान्तरित हो गया। बस मुख्य मार्ग से उतर कर रेत की पगडंडी पर जा रही थी। चालक स्वयं का भी सन्तुलन नहीं रहा था, जिससे सारी की सारी बस पलटी खाकर मृत्यु का शस्त्र बन जाने में कुछ ही देर थी कि...नमस्कार का मेरा उच्चारण चमत्कार का कारण बन गया। सिर्फ दो नवकार का स्मरण पूरा हुआ न हुआ, बस चालक ने विचित्र चाल और गति-दिशा आदि पर नियंत्रण लेकर बस को ब्रेक लगाकर रास्ते के नीचे एक ओर रेतवाली जगह पर रोक दी।
बस चालक स्वयं भयभीत होकर खिड़की से उतरकर अकस्मात् स्थल पर भाग गया जो कि करीब 500 फीट दूर था। इस ओर यात्रा प्रवास के मुख्य संचालक की जिम्मेदारी के कारण मैं भी अपनी खिड़की से कूदा और देखता हूँ कि दुर्घटना बहुत ही भयप्रद घटी थी। बस बीच के भाग की ओर से कट गयी थी। जिससे, सर्वथा पीछली सीटों के यात्री में से कुल 12 यात्री (पुरुष-स्त्री) रास्ते पर गिर गये थे। भयानकता तो यह थी कि अकस्मात् में एक छोटी बच्ची के साथ कुल आठ यात्रियों की मौत हो चुकी थी। और एक युवान स्त्री यात्री ने निकट के बालोतरा अस्पताल में पहुंचते ही मूर्छितावस्था में प्राण त्याग दिया। कुल आठ स्त्री
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - और एक पुरुष के साथ नौ की संख्या में मौत की करुण घटना घटी, जिसकी खबर टी.वी. समाचार के माध्यम से चारों ओर फैल गयी।
किन्तु... इस आश्चर्यकारी बचाव के बाद जैसे ही मन कुछ स्वस्थता का अनुभवी बना कि ख्याल में आया कि जिस नवकार के चमत्कार से मैं स्वयं बच गया उस नवकार मंत्र से सम्बंध रखने वाली चित्र-विचित्र घटनाएं साथ में घटी थीं। जैसलमेर हमारे यात्रा प्रवास में स्पर्शित 68वां तीर्थ था, जो नवकार के 68 अक्षर के साथ मेल रखता था। बस का नम्बर था GRX-9 और दुर्घटना के शिकार बने ठीक 9 यात्री जिसका सम्बंध नवकार मंत्र के नौ पदों के साथ था। अकस्मात् भी रात्रि के 9 बजे के बाद हुआ था। पता नहीं कि चारित्र की भावना के प्रताप से सहधर्मचारिणी का बचाव, बस का सामान डिक्की से गिर कर |500-500 फीट बस के साथ खींचे जाने पर भी कैसे हुआ? और सिर्फ दो तीन टांके मस्तक से खून बहने के कारण आये। एक बहन के हाथ पैर कट गये, और एक की पैरों की हड्डी टूटी, किन्तु नवकार के प्रभाव से बड़ी दुर्घटना होते बची। आज भी क्षतिग्रस्त यात्री इस घटना के साक्षी बन जीवन बीता रहे हैं।
इसी महामंत्र नमस्कार के प्रभाव से और भी तीन बार मृत्यु के मुँह से बाहर निकलने का सत्यावसर अनुभवित किया है, जिसके बाद नवकार के प्रभाव से मंत्र के प्रति सद्भाव बहुत ही बढ़ गया है। खास उल्लेखनीय प्रसंग उपरोक्त घटना में यह बना है कि जीवन में नौ लाख का जाप गुरु मुख से उच्चर कर कॉलेज जीवन में ही पूर्ण किया था, जिसकी बदौलत अकस्मात् के पूर्व ही स्थानान्तरण करने की अगम प्रेरणा हुई, और जिस स्थान पर ठीक 15 मिनट पहले बैठा था उस स्थान को ग्रहण करने वाले दो यात्री स्वर्गवासी बने थे। जिसकी दर्दनाक याद आज भी सताती है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -
मन्त्र नवकार को सतत नमस्कार |
जो कार्य आयास बिना ही उत्पन्न हो जाये उसे अनायास कहते हैं। अकस्मात् भी अनायास होता है। वैसी आकस्मिक घटनाओं में उल्लेखनीय प्रस्तुत प्रसंग जीवन का सत्य प्रसंग है। प्रस्तुति का सार यही है कि नमस्कार महामंत्र में जो अचिंत्य शक्ति है, उसकी अभिव्यक्ति अनेक ग्रन्थों में तो है, किन्तु स्वानुभव की प्रतीति इन सभी अभिव्यक्तियों से आगे निकल जाती है। __सांसारिक अवस्था में व्यावसायिक और व्यावहारिक कार्यों से प्लेन में ही आकाशी सफर करने का 202 बार मौका आया। किन्तु आसाम की राजधानी गोहाटी से कलकत्ता की हवाई जहाजी सफर स्मरणीय बन गयी है। SAFARI Co. के INTERNAL AUDIT को पूर्ण कर बम्बई जाने के लिए कलकत्ता की FLIGHT दिनांक 11.1.1989 बुधवार को लेने AIR PORT पहुंचा।ठीक 4-30 शाम का प्लेन था और आगे कलकत्ता से मुम्बई का प्लेन रात 8-30 बजे का था। किशोर अवस्था से ही नवकार जाप की रुचि और अभ्यास के कारण ऐसा नियम बनाया था कि जब भी सफर करना हो प्लेन में प्रवेश करते ही 12 नवकार का जाप TAKE OFF के समय और LANDING के वक्त भी 12 नवकार का जाप आवश्यक रूप से करना।
वर्षा ऋतु और पूर्वभागीय क्षेत्र के कारण संध्या गाढ बनी थी, और कुछ-कुछ अन्धकार शाम को 4-30 के बाद महसूस होता था। उस BOING PLANE में कुल 93 मुसाफिर में से मैंने पिछले हिस्से की खिड़की का स्थान ग्रहण किया। AIR HOSTESS के ANOUNCEMENT के बाद कमर पर बेल्ट लगा लिये और नियत समय पर PLANE ने उड़ान की तैयारी की। RUNWAY के एक छोर पर पहुंचकर PILOT ने प्लेन को मोड़ा और अब TAKE OFF के हेतु रफ्तार ग्रहर कर प्लेन |RUN WAY पर दौड़ने लगा। करीब 175 कि.मी. प्रति घन्टा की रफ्तार
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
की गति प्राप्त हुई। जब तक PLANE 3/4th RUN WAY का हिस्सा व्यतीत कर चन्द सेकण्डों में तो आकाश में अद्धर हो जाने वाला ही था कि.... अचानक धमाके सी आवाज आई और विमान की चाल बदलने लगी। खिड़की में से देखा तो बाहर की मशीन से आग के गोले निकले जा रहे थे। मुख में नवकार का जाप आदत - अभ्यास मुताबिक चालु ही था। भयानक आवाज और विचित्र रुकावट से दौड़ रहे प्लेन में सब यात्री भयभीत बन गये और मैं तो खास चौकन्ना बन गया, क्योंकि अहमदाबाद | AIRPORT पर PLANE CRASH में सभी यात्री के मौत की घटना ताजी थी, और वेसे भी सुना था कि विमानी सफर में उड़ान व उतार की घड़ियां नाजुक होती हैं। भय से कुछ मुक्त व कुछ व्याप्त बना मैं नवकार को स्पष्ट उच्चारण पूर्वक गिनने लग गया कि उसी समय ऊपर की CABIN में से LUGGAGE गिरने लगा । विमान पर PILOT का नियंत्रण नहीं जैसा रहा, जिससे विमान हवाई पट्टी छोड़कर निकट के एक खेत में चलने लगा। पथराव राह पर बैलगाड़ी में बैठने से जो स्पन्दन अनुभवित हों, वैसे झटके उस समय लगने लगे।
सब के प्राण ऊँचे हो गये। मैंने भी मानो आने वाली मौत की संभावना से मन मजबूत कर नवकार की ही शरण ली। रफ्तार से भाग रहे विमान के PILOT ने सबको अकस्मात् से बचाने के प्रयास में 8-10 TYRES को BURST कर दिया, जिससे विमान की गति खेत में अत्यल्प बन गई। किन्तु विमान के WHITE PETROL की आग से खेत में भी अग्नि प्रसरण होने लगा, और मैंने कुछ अन्धकार के वातावरण में ही देखा कि विमान की चारों और धुंआ फैल गया था। क्षणों में उड़कर आकाश में अद्धर होने के बजाय वही विमान अपनी आग झपट से सबके प्राण पंखेरु उड़ा दे ऐसी कल्पना में मेरे श्वासोच्छ्वास अद्धर हो गए किन्तु मुख से नवकार स्मरण न छूटा वह न ही छूटा ।
अचानक विमान धक्के की आवाज के साथ खेत में कोई वस्तु से टकराकर खड़ा रह गया। तब तक आग और धुंआ चारों ओर फैलने लगा
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - था।
किसी भी समय विमान BLAST से मौत की सफर बन सके वैसी | EMERGENCY का हम सभी अनुभव कर रहे थे कि COCKPIT से उद्घोषणा हुई कि सभी यात्री विमान चालक द्वारा उतारी गयी |EMERGENCY LADER से जमीन पर कूद जाने के लिए पैर से जूते-चप्पल निकाल दें, अपने सामान को भी छोड़कर दरवाजे पर आ जायें। हम सब प्राण बचाने के लिए दरवाजे की ओर जाने लगे कि अचानक LIGHT चली गई। जैसे-तैसे पिछले हिस्से के मुसाफिर हम सब
आगे के दरवाजे पर पहुंचे। और हमें सभी की तरह कूदाया गया। हाथ में | IMPORTANT PAPER की ब्रीफकेस थी। उसे छोड़ न सका किन्तु धक्केबाजी में वह अटैची टूट गयी। खेत में गिरते ही हमें MILITARY
और FIRE BRIGADE वालों ने REFUGEE की तरह वहां से एयरपोर्ट तक के करीबन एक कि.मी. तक दौड़ाया ताकि सब बच जायें, और दुर्घटना का शिकार न बनें।
फूली सांस के साथ क्रम से आबाल-गोपाल सभी जब हवाई अड्डे पहंचे तब पता चला कि विमान किसी वस्तु से टक्कर खाकर खेत में चला गया, किन्तु PILOT की समय सूचकता से दुर्घटना नहीं हुई थी। । कुछ पता न चला, किन्तु हमें तुरन्त गौहाटी के एक पांच सितारा HOTEL में ले जाया गया। और कलकत्ता की यात्रा दिनांक 12-1-1989 गुरुवार को घोषित कर दी गई। शाम के समय के बाद रात्रि में दूरदर्शन समाचार में भी समाचार प्रसारित हो गये थे।और दूसरे दिन जब समाचार पत्र देखा तो उसमें भी 'दुर्घटना होने से बची' ऐसे समाचार छप गये थे।
हकीकत यह थी कि AIRPORT AREA के एक छोर पर का WATCHMAN अपने कार्य में व्यस्त था, इतने में दो बैल हवाई पट्टी पर पहुंच गये। विमान के आवाज से भयभीत होकर भागते-भागते हमारे ही विमान से टकरा गये थे। जिससे बैलों की काया तो खून की नीक बन गयी और देह हड्डी का ढेर, परन्तु विमान के मशीन घर्षण के कारण
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अग्नि प्रक्षेप करने लगे। फिर भी सभी यात्रियों की जान बचाने हेतु विमान चालक ने कठोर श्रम किया, जिससे विमान खेत में चला गया। किन्त.....
सबसे आश्चर्यकारी घटना तो यह थी कि विमान खेत की एक विशाल शिला से टकराकर रुक गया, जहाँ से कुछ ही आगे पानी का गहरा नाला था। मैं तो श्रद्धा से यही मानता हूँ कि एक मात्र मेरा नवकार जाप ही सभी के रक्षण का निमित्त बना। वरना आग लगना, खेत में चले जाना और वहां भी गहरे पानी के गड्ढे में गिरकर अकस्मात् में मर जाने के बजाय होनी का ही न होना कैसे हो सकता था?
उत्सुकता के साथ गुरुवार के दिन दोपहर में SPECIAL PLANE में गौहाटी से कलकत्ता जाने के पूर्व RESTAURANT की छत से देखा तो हमारा वह विमान करीब 1 कि.मी. दूर खेत में एक खिलौने सा पड़ा है, जिसकी एक ओर की पंख जमीन तक झुक गयी है। फिर भी नवकार के प्रभाव से प्राण और सामान दोनों बच गये।
बंधन मुक्ति की सत्यानुभूति
धर्मास्थायुक्त वह किशोरावस्था थी। जैन धर्म के मर्म तक पहुँचना दूर था किन्तु कोई पुण्योदय का काल था कि मुझे संसारी अवस्था में मैट्रिक के अभ्यास पूर्व ही झरिया नगर में भवोपकारी गुरु महाराज का सम्पर्क हुआ। तपस्वीरत्न निःस्पृही गुरु महाराज के श्रीमुख से सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में ही नमस्कार महामंत्र के नवलाख जाप की प्रतिज्ञा सम्प्राप्त हुई। दिनांक 21-10-1971 के शुभ दिन जाप का शुभारंभ सिर्फ गुरुवचन श्रद्धा और पूर्वभवों के तथाप्रकार के संस्कार से प्रारंभ किया। वैसे तो यही नवलखा आठ-दस साल तक में पूरा हो ऐसी गिनती से दस साल में पूर्णाहूति की प्रतिज्ञा थी, किन्तु जापारंभ के पश्चात् प्रवर्धमान भावना के बल से कॉलेज जीवन के बीच ही सिर्फ चार साल में पूर्ण हुआ। जब-जब जाप किया संकल्प - मनः शुद्धि - सहजता और सरलता पूर्वक किया । तब तो नवकार जाप ही नवपदावर्त, नंदावर्त, शंखावर्त, या फिर अन्य विधि
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का ज्ञान या फिर नवलखा जाप से दुर्गति निवारण के उपरांत चमत्कारों की परम्परादि का सविशेष ज्ञान भी नहीं था, किन्तु इस पूर्ण जाप के बाद जीवन में जो-जो भी विशिष्ट चमत्कारों का स्वानुभव किया उसमें से मरणांत प्रसंग से प्रमुक्ति की यह सत्य घटना यहां सर्वजनलाभार्थ शब्दांकित है।
दिन-दिनांक की नोंध रह गई है, किन्तु इ.स. 1982 की घटना है। सफारी ब्रांड स्यूटकेस के कर्नाटक संपूर्ण के एक मात्र डिस्ट्रीब्यूटर के नाते बैंग्लोर में नया व्यवसाय प्रारंभ किया था। काम का बोझ कुछ ज्यादा रहने से शाम के चौविहार के बाद फिर ऑफिस (दफ्तर) में आकर अकेले कार्य निपटाना होता था ।
दक्षिण प्रदेश धर्मभीरू माना जाता है। जिससे चोरी गुंडागर्दी - डकैती आदि के प्रसंग तो शायद ही सुनने में आते थे। इसलिए रात्रि में भी अकेले बैठना कोई भयप्रद नहीं था । किन्तु वह धारणा गलत साबित हुई। एक दिन....
अचानक, प्रथम माले के ऑफिस में मैं था और ऑफिस की लाईट चली गई। और तुरंत पश्चात् घोड़े की खुर के आवाज सी सुनाई देते ही मैं चौंक उठा। कुछ लोग अंधेरे में ही दफ्तर की सीढ़ियों को चढ़कर मेरी Cabin की ओर आ रहे थे। भय की संवेदना में ही मन में आशंका उत्पन्न हुई कि हो न हो कुछ गड़बड़ है। तुर्त ही मुंह से 'कौन है'? की आवाज निकल गई।
और उसी वक्त मेरे मुख पर किसी ने चकाचौंध Light का क्षेप किया। अंदाज आ ही गया कि कोई अन्जान लोग मुझ पर आक्रमण करने हेतु सिनेमा स्टाईल में लाईट का Fuez उडाकर आए हैं और उनकी मुराद दुष्ट है। किन्तु अकल्पित इस आफत के वक्त न जाने नवलखा जाप के बाद भी नित्य स्मरित नवकार महामंत्र ही मुख पर अनायास आ गया। आंखे चौंधिया गई थीं और मैं भी भयभ्रांत था कि मुझे मूर्च्छित करने हेतु किसी ने मुख पर पेट्रोल-सा जलद पदार्थ छिंट दिया, जिससे मृत्यु का भय
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? प्रकट हो गया। पल दो पल में तो जैसे अशिष्टता में कुछ बाकी हो वैसे आगंतुक गुंडों में से एक ने गले में फंदा डाल दिया। परिणाम यह आया कि कुछ मूर्छितावस्था में ही मैंने नवकार का जाप दृढ़ कर दिया और मौत की कुशंका में एक मात्र शरण महामंत्र का ले लिया। क्षण में तो गले का फंदा भीषण बनने लगा, और मेरे हाथ में कुछ न रहा, सिर्फ गले की घोंट और प्राण बचाने एक हाथ से मजबूत फंदे को पकड़ लिया। जिसके कारण श्वासोच्छ्वास लेने-छोड़ने में कुछ कम तक़लीफ महसूस हुई। तब तक तो सब प्रक्रिया मौन थी। इसी वक्त एक ने कठोर स्वर में कहा कि, "पैसे देना है कि प्राण खोना है?"
सत्य हकीकत का पर्दाफाश हो गया। व्यवसाय संपूर्ण नीति का था। जिससे नकद सौ-दो सौ रूपये से ज्यादा राशि पाकिट में नहीं थी, किन्तु चैक द्वारा ही व्यावसायिक आदान-प्रदान होता था। मैंने गुंडों के प्रश्न का प्रत्युत्तर प्रदान करते हुए कहा कि, "मेरे पास नकद राशि नहीं है किन्तु सुबह में चैक लिखकर दे सकता हूं।" जवाब के इस वक्त नमस्कार मंत्र से वंचित रहा किन्तु शायद इसी के कारण गुंडों में से किसी एक को सद्बुद्धि उत्पन्न हुई।
जिसके कारण उसने गले में डाला फंदा शिथिल किया। परन्तु तब तक गले में लाल लकीर-सी रेखा दबाव-तनाव के कारण उत्पन्न हो गई थी। फिर भी उनकी अपेक्षा पूर्ण न होने से फिर एक ने मेरी पीठ पर चाकू से स्पर्श किया,दूसरे ने आवाज रोकने मुंह में कपड़ा ढूंसा और तीसरे ने मेरी ही कुर्सी से मेरे हाथ-पैर बांध देने की दुश्चेष्टा भी की।
अंजाम यह हुआ कि फिर मुसीबत और भयानकता की मिश्र संवेदना में मुख में नवकार जाप आने लगा किन्तु मेरी शारीरिक शक्तियाँ सीमित रह गई। ठीक ऐसी नाजुक क्षणों में चमत्कार हुआ.....
ऑफिस का दरवान अपने कार्य से कहीं बाहर था, उतने में मौके का लाभ लेकर इन बदमाशों ने पांच-दस हजार की लालच में ऐसा कुकर्म करने की हिम्मत की थी। आगे कुछ होवे इतने में ही तो वही
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? दरवान वापस लौटा था, जिसने देखा कि पहली मंजिल पर अंधकार है नीचे का दरवाजा खुला हैं और ऊपर में शोरबकोर जैसी आवाज है, जरूर कुछ गड़बड़ है। तुरंत ही वह आवाज देता हुआ ऊपर आने लगा कि गुंडे सावधान हो गए। फिर भी उन्होंने उसे भी डराकर वापस भेजा न भेजा इतने में चौथा गुंडा जो कि कुछ न मिलने से स्यूटकेस के बक्से खोल रहा था, उसने और अन्य ने मिलकर तीन स्यूटकेस की चोरी की। हाथ में जापान की घड़ी थी, अमरीका की CROSS BRAND कलम थी और सौ-दो सौ की नकद रकम लेकर चारों गुंडे भागने लगे। और मुझे व्यग्र हालत में ही जमीन पर गिराकर संतोष लिया था। ___प्राण तो आबाद नवकार चमत्कार से बच गये थे, किन्तु बंधन के कारण विचित्र स्थिति का अनुभव हो रहा था। दर्द और दमन में ही कुछ समय नवकार के जाप के साथ व्यतीत किया कि तब तक वापस लौटा गुरखा लालटेन और अन्य व्यक्तियों के साथ ऊपर आया। चारों ओर अस्तव्यस्त कागजात और बिखरी वस्तुओं के बीच ही हमदर्दी के साथ मेर निकट आकर प्रथम मुंह से ढूंसे हुए कपड़े निकाले और बाद में रस्सी के बंधन से मुक्त किया। ___मैंने नवकार के साथ उसका भी उपकार महससू किया। किन्तु काय प्रहारादि से कुंठितावस्था में कुछ बेचैनी का ही अनुभव करके मौनावस्था में ही प्रत्युपकार की अभिव्यक्ति की। थोड़ी देर क बाद में जब पूर्ण होश में आ गया था, देखा कि संसारी पिताजी भी समाचार मिलते ही आ गए थे, साथ में फैमिली डॉक्टर भी थे। .
गुंडों की धमकियां होने पर भी परिवार वालों ने पुलिस | COMPLAINT दाखिल करवाई। बरसों बीत गये हैं इस घटना को किन्तु आज भी नवकार प्रभाव से प्रभावित हो अनेक समय जाप में प्रधानता उसी की रखता हूं।
नमस्कार ही एक तारणहार। जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घटती हैं जिसे याद कर जीवन पर्यन्त
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? आश्चर्य का अनुभव होता रहता है। सांसारिक अवस्था में तो तीन बार प्रत्यक्ष मौत के मुख से निकलकर धर्मश्रद्धा और वैराग्य में ठीक-ठीक अभिवृद्धि हुई थी। किन्तु एक आश्चर्यप्रद घटना दिनांक 3-7-99 शनिवार (द्वि.जेठ वदि चौथ) के दिन सुबह-सुबह 5-40 के समय घटित हो गई।
वि.सं. 2055 (ई.स. 1999) का चातुर्मास गच्छाधिपति श्री जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञा से श्री महावीर नगर जैन उपाश्रय-नवसारी में तय हुआ था, जहाँ चातुर्मास प्रवेश हेतु मंगल दिन दिनांक 8-7-99 रविवार का था। ठीक उसके ही एक दिन पूर्व श्री आदिनाथ संघ के नूनत उपाश्रय में था। शुक्रवार की रात में श्रावकों को प्रतिक्रमण करवाने वक्त सज्जाय के स्थान पर मृत्यु की समाधि से संबंधित पद गीत में सुनाये और समझाया कि जब जीवन की अंतिम क्षण आवे तब दुष्कृत गर्हा-सुकृत अनुमोदना और चार शरण ग्रहण करके पंडित मृत्यु प्राप्त कैसे की जाय।
- प्रतिक्रमण के पश्चात् श्रावकादि ज्ञान-गोष्ठी कर स्वगृह की ओर चले गये, जबकि मैं जाप में प्रविष्ट हो गया और कुछ देर से संथारा कर सो गया। शुक्रवार के दिन भी आयंबिल का विघ्नहारी मंगलकारी तप था और शनिवार को भी आगे-आगे आयबिल ही करना था। शुक्रवार की रात्रि देहश्रम विसर्जन हेतु व्यतीत हो गई और शनिवार को ब्राह्ममूर्त में उठकर ध्यान में प्रवेश किया। . ग्रीष्म ऋतु के दिन उजाला लगभग पौने छह-छह बजे तक प्रर्याप्त हो जाता है। इसलिए प्रातःकालीन प्रतिक्रमण पौने छह के आसपास प्रारंभ करना था। किन्तु ठीक पांच पचास मिनट पर उपाश्रय के विशाल मकान में चरचराहट की आवाज आयी। मेरा ध्यान भंग हो गया। आवाज विचित्र-सी थी, और लगा कि कहीं गोलीबार हो रहा है। किन्तु कुछ ज्यादा विचार करूं-न-करुं इतने में तो ऐसी भयानक आवाज आयी कि लगा जैसे तोपगोले कहीं से छूटे हैं। __इन्हीं दिनों में पाकिस्तान-भारत के बीच सीमा रेखा के संबंध में
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - गहरा तनाव चालु था और साथ नोर्थोड्रोमस ने की हुई भविष्यवाणी के मुताबिक दुनिया में होने वाले प्रलय की बातें-अफवाहें भी चल रही थीं। मन-मगज में भी ऐसे ही विचारों ने प्रभाव डाला था इसलिये धूम-धूड़ाके की आवाज के साथ ही ध्यान तो भंग हो गया किन्तु मन भी चौंक गया।
अचानक देखता हूँ तो आंखों के सामने उपाश्रय की छत से कुछ मिट्टी, रज और पत्थर गिरने चालु हो गये। गबराहट में न जाने मन का तनाव तेज हो गया। पाकिस्तान द्वारा अणुशस्त्र प्रयोग विचार भी कल्पना बन आ गये। फिर भी ऐसी भयानक और कुछ अंधकार-उजाले की दुर्घटना के वक्त भी देव-गुरु की कृपा, संयम साधना की सतर्कता और गृहस्थावस्था से ही नमस्कार महामंत्र की संकल्प-साधना के प्रभाव-प्रताप से आँखों के सामने मौत की परछाई-सा डरावना दृश्य देख मुख में नवकार महामंत्र आ गया।
उपाश्रय में मेरे अलावा उस सयम और कोई न था, और संपूर्ण उपाश्रय का गोरखा भी नीचे था। पाठशाला के शिक्षक भी सुबह-सुबह दर्शन हेतु बाहर गये थे। ऐसी स्थिति में परिस्थिति के मुताबिक मैंने सिर्फ | एक ही नवकार का प्रकट जाप सहज भयावस्था में कर लिया, और संथारा छोड़ कर जोरों से प्रवेशद्वार की ओर भागा। दरवाजे को खोलकर जैसे ही बाहर निकल कर जान बचाने नीचे सीढ़ी उतर गया उतने में ही बहुत बड़े धमाके के साथ उपाश्रय की बड़ी गेलेरी में बनाए गए स्टील के कठहरे और प्लास्टर ऑफ पेरिस की सिलिंग जिसको एल्युमिनियम के छड़ों से जोड़ा गया था, वह सारी-की सारी सिलिंग और गेलेरी की रीलिंग एक साथ उपाश्रय में आ गिरी। __में तो बाल-बाल बच गया, किन्तु इस घटना के साथ जो जो आश्चर्यप्रद बातें जुड़ी हैं उसे सभी की धर्मश्रद्धा बढ़े इसलिए संक्षिप्त भाषा में प्रस्तुत करने की लालच रोक नहीं सकता हूँ।
जिस स्थान पर उपाश्रय का ढांचा उतरकर टूट गया, उसी जगह पर में अपने अगले वक्त की स्थिरता के दौरान रात्रि को संथारा करता था।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
किन्तु दिनांक 2-7 शुक्रवार की सिर्फ एक रात्रि के लिए ही इसी उपाश्रय में बीताने और फिर शनिवार को विहार कर निकट के चिंतामणि पाश्र्वप्रभु के उपाश्रय में बीताकर रविवार को चातुर्मास प्रवेश करना था । सिर्फ एक रात्रि की चिंता थी, इसलिए जहाँ दुर्घटना हुई वहां संथारा न करते हुए सिर्फ तीन चार मीटर ही दूर संथारा किया था । स्थान बदलने का कोई उद्देश्य न था, फिर भी बचना था तो बच गया।
ऊपर की सिलिंग गिरी किन्तु न तो कुछ चोट आई न मेरी उपधि या गोचरी के पात्र आदि को क्षति हुई। मिट्टी का ढेर गिरा किन्तु सभी संयम की वस्तु के चारों ओर, जबकि संथारा और सामग्री पर कुछ गिरा तक नहीं।
दूसरा, रात्रि को लगभग एक बजे ही नवकारादि जाप किये थे। दुर्घटना के समय भी भयानक कल्पना में भी नवकार को ही स्मरण में लिया है। साथ-साथ आयंबिल का महातप भी था। नवकार जप-आयंबिल तप और ब्रह्मचर्य के खप ने ही संयमजीवन की रक्षा की है, ऐसा खास प्रतीत हो रहा है।
सुबह समाचार फैलते ही श्रावक-श्राविकाएं आने लगे और कहने लगे कि, "महाराज साहब, किसी का पुण्य आपके काम में आया है। अच्छा हुआ कि यह सिलिंग न आप पर गिरी, न व्याख्यान के समय या प्रतिक्रमण के समय गिरी किन्तु कोई न था तभी गिरी । "
मैं भी मन में सोचने लगा कि सिलिंग को गिरना ही था तो अंधेरी रात्रि के मध्य में न गिरी और प्रातः समय ही गिरी, जबकि रात्रि का विश्राम हो चुका था, कुछ-कुछ उजाला होने से लोग भी जग चुके थे। वरना देखी हुई घटना और की हुई अनुभूति में भयानकता शायद दुर्घटना के बाद भी मन को परेशान कर सकती थी ।
जो भी हो दिनांक 8-7 रविवार को श्रीसंघ में चातुर्मास प्रवेश बहुत उल्लासमय वातावरण में हो गया और व्याख्यान में ही बीती घटना को याद कर सभासमक्ष प्रस्तुत भी की, जिसे सुनकर अनेक लोग धर्मतत्त्व की श्रद्धा में स्थिर हो गये ।
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नवकार ने इज्जत बचाई (यहां पेश किये गये 6 दृष्टांत "नवकार मंत्र ना चमत्कारो" में से साभार उद्धृत किये गये हैं- संपादक)
मुम्बई के अमीर परिवार की एक बहिन अपने किसी संबंधी के वहाँ राजकोट में प्रसंग निपटने के बाद एक दो दिन में जाने की तैयारी कर रही थी, वहीं तो मुम्बई से अचानक फोन आया कि तुम तुरंत आ जाओ, गाड़ी भेजी है। |.. शाम को गाड़ी लेने के लिए आ गई, किंतु साथ में कोई व्यक्ति नहीं था। उस बहिन ने पूछा -"क्यों कोई आया नहीं?" ड्राइवर ने कहा-"कोई आ सके, वैसा नहीं था। इसलिए सेठ ने मुझे अकेला भेजा है। आपको अभी चलना है। प्रातःकाल से पहले मुंबई पहुँचना है।।
वह बहिन थोड़ी हिचकिचायी, किंतु ड्राइवर घर का विश्वासपात्र एवं वफादार था, इसलिए वैसे मन में कोई डर नहीं था। फिर भी युवावस्था और अद्भुत रूप इन दोनों के साथ राजकोट से मुंबई तक की यात्रा रात्रि के समय में और वह भी अकेले युवान ड्राइवर के साथ, यह थोड़ा लोकहंसी का विषय बनता ही है। इसलिए अपनी सखी को साथ ले लिया। इस प्रकार दोनों बहिनों को गाड़ी में पीछे की सीट पर बिठाकर दरवाजा बन्द करके ड्राइवर ने गाड़ी मुम्बई की ओर रवाना कर दी।
वह राजकोट से काफी आगे निकल गये। फिर रात में एक गांव से थोड़े दूर ही थे। और इन दोनों बहिनों को लघुशंका होने के कारण उन्होंने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को कहा। - ड्राइवर ने कहा-"सेठानी माँ! थोड़ी ही दूरी पर गांव है। वहाँ जाकर शंका निपटाना।" किंतु वह बहिन रोकने की स्थिति में नहीं थी इसलिए गाड़ी खड़ी की।
दोनों बहिनें गाड़ी में से नीचे उतरी। सामने की साइड में लघुशंका |निपटाकर वापिस गाड़ी में बैठने की तैयारी कर रही थी, वहीं तो अचानक
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'खड़े रहो' की तेज आवाज सुनते ही सब चौंक उठे।
देखते हैं तो हाथ में बंदूक लेकर 4-5 लूटेरे जैसे लोग दोनों बहिनों को घेर कर खड़े थे। हष्टपुष्ट शरीर, लम्बी-लम्बी मूँछें, बड़ी-बड़ी आँखें और भरावदार चेहरा ... सिर पर साफा पहने हुए यह लोग डाकुओं की किसी टोली के लगते थे।
दोनों बहिनें बहुत डर गईं। अब क्या करना चाहिये- कुछ समझ में नहीं आ रहा। ड्राइवर भी खड़ा खड़ा कांप रहा था ! आखिर उस श्रीमंत बहिन ने कहा कि " भाई, तुम्हें क्या चाहिए? लो, यह मेरे सभी गहने तुम्हें दे देती हूँ।" इस प्रकार कहकर अपने शरीर के उपर शोभायमान हो रहे सभी गहने उतारने लगीं, किंतु वह बंदूकधारी तो कहता है कि "नहीं, यह नहीं चाहिए, तुम इस ओर चलो!" ऐसा कहकर सामने की दिशा बतायी। इस कारण वे किंकर्तव्यविमूढ़ बन गये, कारण कि 'इस ओर चलो' अर्थात् क्या? यह तो शील के उपर संकट आ गया। अब क्या करना ? इसमें से किस प्रकार बचना? ऐसे विचार करने लगीं।
वह लूटेरा भी घन की लूट प्रतिदिन करता होगा। किंतु आज उनका रूप देखकर जैसे उसे भी रूप की लूट करने का मन हो गया। इसलिए तो उसने बस यही आग्रह रखा कि, 'इस ओर मेरे साथ चलो।'
तब उस बहिन को अचानक ही नवकार महामंत्र याद आया । वह बस, मन ही मन में इसका रटन करने लगी। नवकार महामंत्र के अधिष्ठायक देवों को कह दिया कि, " आज मेरे शील की रक्षा करना आपके ही हाथ में है, हे प्रभु! मुझे बचाओ !" जब खूब भावपूर्वक नवकार का जाप होता है, तब वहीं चमत्कार होता है। उस भोग- भूखे डाकू की कामवासना अचानक उतर गई। उसे मन में लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूँ? और तुरंत पूछता है कि, " तुम कहाँ से आये हो?" -" राजकोट से।" "कहाँ जा रहे हो?" "मुम्बई । " " जाओ बहिन जाओ । रूप एवं एकांत देखकर मैं पिशाच बनने जा रहा था। किंतु अब मेरी अंतर आत्मा ही मुझे धिक्कार रही है। तुम खुशी से जा सकती हो। मेरे अपराध
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? की क्षमा करना।" इस प्रकार कहकर उस सरदार ने सभी बंदूक धारियों की ओर इशारा किया और सभी चलने लगे। | दोनों बहिनों ने भी गाड़ी में बैठकर ड्राइवर को जल्दी गाड़ी रवाना
करने को कहा। उनके प्राण में प्राण आये थे। । साथ में रही हुई बहिन तो यह एकदम ऐसा परिवर्तन कैसे हो गया? किस प्रकार हुआ? उस पर ही आश्चर्यचकित बन गयी! किंतु नवकार जहाँ होता है वहाँ ऐसे तो कितने ही आश्चर्य बनते हैं, वह बात उस बहिन को कौन समझाये?
: नवकार ने माल बचाया
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. एक जैन गृहस्थ भाई का दृष्टांत कभी पढ़ने में आया था। उसकी आर्थिक परिस्थिति तो एकदम सामान्य किंतु नवकार महामंत्र पर उसकी श्रद्धा असामान्य थी! जब जब फुर्सत मिलती कि मन में नवकार मंत्र का जाप चालु ही होता। ऐसे ही कहो कि कभी फुर्सत मिलती ही नहीं , या तो काम या तो जाप!
इतने में उनके कोई संबंधी उन्हें मुम्बई ले गये और अपनी जवाहरात की दुकान पर बैठाकर दलाली करने का काम सौंपा। वह भाई इस धंधे में धीरे-धीरे मकान किराये पर लेकर वहीं अपने परिवारजनों के साथ रहने लगा। ____ एक बार यह नवकारप्रेमी अपने सेठ के वहाँ से लगभग पन्द्रह-सोलह हजार की कीमत के विविध हीरों का पैकेट लेकर किसी ग्राहक को बताने गये होंगे। वापिस आते समय सोचा कि अब घर जाकर भोजन और थोड़ा आराम करके फिर दुकान जाऊँगा, और वैसा ही किया। उन्होंने दो घण्टे बाद वापिस दुकान जाते समय पैकेट संभाला। सभी जेब देखे, किन्तु वह पैकेट नहीं मिला। बार-बार देखा, किंतु पैकेट हो तो मिले ना! वह तो कभी का इन भाई के बिना ध्यान में खिसक कर रास्ते में किसी की राह देख रहा था।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अब वह भाई घबराये। किंतु नवकार महामंत्र पर श्रद्धा होने के कारण, जिस मार्ग से घर आये थे, उसी मार्ग में पैकेट को खोजने चलने लगे। मन में नवकार मंत्र का रटन और मुम्बई की सड़क पर हीरों का पैकेट खोजने निकल पड़ी उनकी नजर!
मोहमयी मुम्बई नगरी और ट्राफिक का पार नहीं, जहाँ पाँच का नोट गिर जाए तो पांच मिनट बाद भी मिलना मुश्किल, तो पन्द्रह-सोलह हजार रुपयों के हीरे और दो घंटे बाद किस प्रकार मिल सकें?
किंतु उस भाई को तो ऐसी श्रद्धा थी कि, नवकार गिनता-गिनता जाऊँ तो अवश्य पैकेट कहीं से भी मिल जायेगा और हुआ भी वही। चमत्कार हुआ!
उन्होंने थोड़े ही दूर चलते एक कपड़े की दुकान के पास से गुजरते किसी की आवाज सुनी। "खड़े रहो! तुम्हारे हीरों का पैकेट यह रहा, यहाँ आओ।" उस भाई की नजर उस ओर गयी। देखा तो धूल में सटा हुआ वह पैकेट! दौड़कर, उठाकर, खोलकर देखा तो वही, सभी हीरे सुरक्षित!
उनके आनंद का पार न रहा। पैकेट बंदकर जेब में डालते ही पहले विचार आया कि 'चलो, जिन्होंने मुझे पैकेट बताया उनका आभार प्रकट करके, उनको कुछ इनाम दूं।'
किंतु आश्चर्य! चारों ओर नजर घुमाई किंतु वे भाई दिखाई नहीं दिये!...
दिखे भी कहाँ से! वह इस दुनिया का औदारिक शरीरी मानव हो ही नहीं सकता। वह होगा वैक्रिय शरीरी कोई देव, जो नवकार का अधिष्ठाता हो और उसके भक्त की मदद करने वहाँ आया हो। यहाँ का मानव पैकेट बताये ही कहाँ से? और बताये तो एकदम चलता न बने।
तब मानना ही पड़ेगा कि यह नवकार महामंत्र ही कर सकता है।
जादू के उपर जादू
हम जामनगर के चातुर्मास के बाद महेसाणा पढ़ने के लिए गये थे।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - वहाँ हमारा अभ्यास अच्छा चलता था। उस दौरान वहाँ संघ की पाठशाला में बालकों को धार्मिक शिक्षण देने वाले श्रीयुत लालचंद भाई का परिचय हुआ। उनके साथ नवकार के बारे में चर्चा निकलती। उन्होंने नवकार के चमत्कार के अपने स्वानुभव सुनाये। जो उनके ही शब्दों में पेश करता हूँ।
उन्होंने कहा कि, "साहेब! छोटी उम्र से ही मुझे नवकार के प्रति बहुत श्रद्धा थी। एक बार हमारे गांव में कोई मदारी आया, जो छोटे बडे जादू के खेल लोगों को दिखाता था। उसके हाथ की सफाई के खेल एवं जादुई करिश्मों से गांव के लोग मोहित हो गये। पूरे गांव में उसकी चर्चा होने लगी। लोगों के टोले के टोले उसके जादू का खेल देखने जाने लगे। में भी इस टोले में शामिल हो गया। गांव के चौराहे पर उसका खेल शुरू होने की तैयारी में था। गांव के लोग गोल घेरा बनाकर खड़े हो गये। मैंने बीच में अपनी जगह निश्चित की।
डमरू बजा और उस जादूगर के जादुई करिश्मे प्रारम्भ हुए। उसमें एक खेल ऐसा आया कि उस जादूगर ने एक खाली बर्तन खड़े लोगों में से एक को बुलाकर उसके हाथ में पकड़ाया। दर्शकों में से आया हुआ आदमी भी उत्साह से बर्तन ले लेता है। फिर वह जादूगर ऐसा कुछ मंत्र पढ़ता है। जिसके कारण दर्शक के हाथ में रहा हुआ खाली बर्तन गर्म होने लगता है। इसलिए जिस भाई ने बर्तन पकड़ा था , वह उसे छोड़कर चला जाता है, क्योंकि उसके हाथ जलने लगते हैं।
यह देखकर मुझे भी कुतूहल जगा और उस टोले को चीरकर मैं उस मदारी के आगे पहुँच गया। मैंने कहा कि-"लाओ, मुझे दो यह बर्तन, मैं पकड़ सकता हूँ।" उसने कहा कि -"नहीं पकड़ सकोगे, अभी छोड़कर भाग जाओगे।" मैंने कहा कि, "तुम दो तो सही।" सभी लोग मेरे सामने देखने लगे। मैंने वह खाली बर्तन हाथ में लिया और मदारी के सामने खड़ा हो गया। वह मन में मंत्र बोलने लगा।
इस ओर मुझे भी लगा कि, यह तो कुतूहल वृत्ति से में यहाँ आ गया। यदि मदारी ने इस बर्तन को गरम कर दिया तो फिर मैं क्या
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? करूंगा? सभी के सामने हँसी का पात्र बनना पड़ेगा। इतने में उस समय मुझे नवकार याद आ गया। मैं मेरे में रही संपूर्ण श्रद्धा को इकट्ठी करके उस बर्तन को हाथ में रखकर शुद्ध भाव से मन में नवकार का जाप करने लगा। और चमत्कार हुआ!
प्रत्येक के हाथ में जाते ही थोड़ी देर में जो बर्तन एकदम गर्म होने लगता, वह मेरे हाथ में बहुत समय हो गया, किंतु ऐसे का ऐसा रहा। मुझे उस मदारी ने पूछा कि 'क्यों गर्म हुआ?' मैंने कहा, "नहीं, बिल्कुल ठंडा है।" उसे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे? क्या बात है? क्या कमी है? ऐसा सोचकर बार-बार अपनी क्रिया करता है, किंतु नवकार मंत्र के प्रभाव से मुझे कुछ नहीं हुआ और मैंने तो पूर्ववत् बर्तन को हाथ में पकड़ रखा था।
अब, उस मदारी से रहा नहीं गया। हजारों लोगों के बीच में उसका खेल गलत होने लगा। जिससे उसे क्रोध चढ़ गया। वह गरम होकर कहने लगा कि, "क्या तुम भी कोई मंत्र पढ़ रहे हो?" मैंने कहा कि, "मैं तो कुछ भी जादू नहीं जानता, न कोई मंत्र-तंत्र मेरे पास में है।"
फिर तो उसका कुछ नहीं चला। लोग हंसते-हंसते चले गये। उस मदारी ने मुझे खूब पूछा कि, "भाई, सच कहो! तुम कुछ जानते हो? नहीं तो ऐसा हो ही नहीं सकता। मैंने जीवन में कई बार यह जादू बताया है, किंतु ऐसा कभी नहीं हुआ।"
तब मैंने उसे नवकार मंत्र की बात की। उसे कहा कि, "मैं तो दूसरा कुछ नहीं जानता, किंतु यह हमारा परम चमत्कारी नवकार महामंत्र गिन रहा था।"
महेसाणा में पं. श्री लालचन्दभाई ने इस प्रकार की हकीकत द्वारा स्वयं का स्वानुभव सुनाया। किंतु, मुझे तो लगा कि उस मदारी को कौन समझाए कि यह नवकार मंत्र तो जादू के उपर जादू करने वाला है। वास्तव में, जादूगर के खेल को धूल दिखलाने वाला नवकार मंत्र ही हो सकता है। नवकार मंत्र तो दिव्य जादूगर है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
अजीब करिश्मा नवकार का "NAVKAR IS DEVINE MAGICIAN''
पणिया श्रावक की याद इस कलिकाल में दिलाने वाला और संतोषपूर्वक जीने वाला एक श्रावक भाई।
__थोड़े वर्ष पूर्व ही जिनके जीवन में नवकार के इस चमत्कार का सृजन हुआ था।
उस भाई का प्रतिदिन नवकार की एक पक्की माला गिनने का नियम था! रात को सोने से पहले 108 नवकार गिनते ही, नहीं तो उन्हें नींद नहीं आये।
एक बार उस भाई को पास के गांव में जाना पड़ा। वह पैदल ही प्रवास कर उस गांव में पहुँच गये और कार्य निपटाकर शाम को वापिस घर रवाना हुए।
किंतु रास्ते में ही रात हो गई। घर अभी दूर और अंधकार घोर था। उन्हें इस कारण रास्ते में ही एक वृक्ष के नीचे रात्रि व्यतीत करने का विचार आया और आसपास की जगह थोड़ी साफ कर वे सोने की तैयारी करने लगे। आज उनकी नवकार की एक माला गिननी शेष थी। किंतु आज माला तो घर रह गई थी। अब क्या करना? इसलिए 108 नवकार मंत्र गिनने की विधि सही हो, उस दृष्टि से आस-पास पड़े कंकड़ पत्थरों में से कुछ अच्छे और गोल छोटे कंकड़ों को इकट्ठा किया। फिर उन्होंने 108 गिनकर शेष सभी फैंक दिये।
अब उन नमस्कार-आराधक भाई ने अपना जाप शुरू किया। कंकड़ो के ढेर में से एक कंकड़ उठाते, उस पर एक नवकार गिनकर पास में रख देते... इस प्रकार, एक के बाद एक सभी कंकड़ों पर नवकार गिनकर दूसरी ओर ढेर करने से, उनका 108 नवकार का जाप पूर्ण हुआ।
किंतु अब उनको विचार आया कि, 'उन पत्थरों को क्या मैं फैंक
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? दूं? अरे! यह तो अब परमेष्ठि मंत्र के जाप से मंत्रित बन गये हैं। इसलिए फेंके नहीं जा सकते हैं। मैं इन सभी पत्थरों को तो साथ में ले जाऊँ। घर रमूंगा। यहाँ तो किसी के पैर में आने से आशातना होगी। .
इस प्रकार विचार कर उन भाई ने वे 108 कंकड़ अपनी धोती के एक छोर में बांध लिये और रात्रि व्यतीत करके सवेरे अपने घर पहुँचे। पत्नी ने नहाने के लिए पानी वगैरह रखा। भाई नहाने गये। वह कपड़े बदलते धोती में से कंकड़ों को निकालना भूल गये।
इस ओर उनकी पत्नी ने वह कपड़े देखे। गांठ में कुछ बंधा हुआ देखकर उसे खोला!
वहाँ तो चमत्कार! वह बहिन देखते ही सन्न रह गई। क्योंकि कंकड़ों के स्थान पर उसमें जगमगाते-चमकते अति-कीमती रत्न दिखाई दे रहे थे। बहिन को लगा कि, 'यह क्या? मेरे पति के पास ऐसे कीमती रत्न कहाँ से आये? किस प्रकार लाये? क्या वे आज धर्मच्युत हुए हैं?'
इस प्रकार अनेक प्रश्नों की हारमाला उसके दिमाग में घूमने लगी। इतने में ही उसके पति आ पहुँचे। इस प्रकार विचारमग्न पत्नी को देखकर उन्होंने पूछा- "भद्रे! क्या बात है? किसका विचार कर रही हो? और हाथ की मुट्ठी में क्या है?"
ऐसा कहकर देखने के लिए मुट्ठी खोलने गये, तब बहन ने मुट्ठी | खोलते हुए कहा, "नाथ! क्या रत्नों को देखकर आप भी धर्म से चलित हुए हो? कभी आपने ऐसा नहीं किया, आज कैसे?"
उस भाई को यह सुनकर धक्का लगा और साथ में धोती के छोर |में रात को खुद द्वारा बाँधे हुए कंकड़ों को रत्नों के रूप में देखकर वे अर्चभित रह गये।
किंतु फिर यह जानकर कि यह सब नवकार का ही प्रभाव है, अपनी पत्नी को कहा कि- "भद्रे! मैंने अभी तक परद्रव्य को पत्थर के समान माना है। तो आज ऐसे कैसे कर सकता हूँ? किंतु, यह तो नवकार मंत्र की लीला है।" यह कहकर पूरी बात विस्तार से सुनाई।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पत्नी यह सुनकर बहुत आनंदित हो गई। साथ में नवकार मंत्र के प्रति भी उसकी श्रद्धा बढ़ी।
नवकार महामंत्र के आराधक यह भाई तो कंकड़ों को साथ में लेकर भी निहाल हो गये!
ऐसा है, यह नवकार का चमत्कार!
दुर्घटना में से बचाया 10
अहमदाबाद शहर में आये हुए खानपुर संघ के दो अग्रणी भाई। | एक भूरमलजी बालाजी और दूसरे शाह हसमुखलाल मफतलाल।
भूरमलजी इस संघ के प्रमुख थे। उनका एवं उनकी धर्मपत्नी पतासाबेन दोनो का वर्षीतप चल रहा था। भूरमलजी की भावना हस्तिनापुर जाकर पारणा करने की थी। उन्होंने हसमुखभाई से बात की और उन्हें साथ में बताया कि हम वहाँ से श्री सम्मेतशिखरजी की भी यात्रा कर लेंगे।
हसमुखभाई को सम्मेतशिखरजी जाने की भावना थी ही, इसलिए वे तैयार हो गये।
एक छोटी मेटाडोर किराए से लेकर दोनों भाइयों ने अपने परिवार के साथ में यात्रा की पूरी तैयारी कर शुभ दिन अहमदाबाद से प्रयाण किया। सं. 2040 में वैशाख सुदि-3 (अक्षय तृतीया) के दिन श्री भूरमलजी तथा श्री पतासान ने वर्षीतप का पारणा हस्तिनापुर में शांतिपूर्वक किया। पारणे के बाद आसपास के तीर्थों के दर्शन करके दोनों परिवार श्री सम्मेतशिखरजी महातीर्थ पर पहुँच गये।
उन्होंने शिखर जी पहुँचने के बाद वहाँ थोड़े दिन रुककर खूब भाव से यात्राएं की। अब अहमदाबाद वापिस जाना था। भोमियाजी देव के अंतिम दर्शन करके सभी ने आगे जाने हेतु शिखरजी की धर्मशाला छोड़कर अपना सामान वगैरह मेटाडोर में व्यवस्थित रख दिया और सभी
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अपनी-अपनी सीट के उपर बैठ गये। गाड़ी चालु हुई और कुछ ही देर में | पक्की सड़क पर उन दो परिवारजनों को लेकर गाड़ी दौड़ने लगी।
वह शिखरजी से निकलकर के 'बारइ' पहुँचे और वहाँ गाड़ी खड़ी रखवायी, क्योंकि नवकारसी का समय हो गया था। परन्तु नवकारसी करने की किसी की भावना न होने से आगे जाकर वहां नवकारसी करेंगे, ऐसा विचार कर वापिस गाड़ी में बैठ गये और गाड़ी पुनः चालु हो गई।
शिखरजी के बाद रास्ता सही नहीं था। इसमें "बारई' का रास्ता बहुत संकरा है। उसमें दोनों ओर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गहे थे। इसलिए सामने से आ रहे वाहनों को क्रॉस करने में दोनों ड्राइवरों को बहुत ही ख्याल रखना पड़ता था।
अब "बारई" से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर दूर निकले होंगे कि सामने से एक ट्रक आता दिखाई दिया। मेटाडोर में हसमुखभाई ड्राइवर के पास की सीट पर बैठे थे। इस कारण सामने से आ रहे तेज गति वाले ट्रक को देखकर और आसपास थोड़ी-थोड़ी देर से आ रहे गड़ों की ओर दृष्टि करके एक गहरी विचारधारा में डूब गये। क्योंकि ट्रक गलत साईड में चल रहा था।
अब लगभग 100-150 फीट दोनों गाड़ियों की दूरी थी। संकरे रास्ते में गलत साइड में तथा तेज गति से आते ट्रक को देखकर हसमुखभाई को लगा कि यह ट्रक निश्चित ही आज अपनी जान लेगा और तुरन्त आँखे बन्द करके नवकार मंत्र का स्मरण करने लगे, क्योंकि अब उसके अलावा दूसरा कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था।
__ नवकार महामंत्र के ध्यान में एकतान बने हुए हसमुखभाई अभी |उसी प्रकार ध्यानमग्न थे और ट्रक गुजर गया। साथ में दुर्घटना भी घटी ही, किन्तु बहुत बड़ा चमत्कार हुआ!
हसमुखभाई को ध्यान में धक्का लगा और आंखें खोलकर देखा तो वह ट्रक उस मेटाडोर को जोरदार टक्कर मारकर आगे बढ़ गया था, और उसके परिणाम स्वरूप मेटाडोर पास की टेकरी पर चढ़ गई। काँच टूट
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
गये थे। सभी को मौत प्राप्त हो ऐसी भिड़न्त थी ।
फिर भी जहां नवकार का स्मरण-रटन और ध्यान हो वहां पूछना ही क्या?
थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जहां भयंकर गहरे गड्ढे थे यदि वहां इस ट्रक के साथ भिड़न्त होती तो?
किन्तु टक्कर ऐसे स्थान पर न होकर दो गड्ढों के बीच में गड्ढे रहित एवं टेकरी के पास वाले स्थान पर हुई थी।
यह पहला चमत्कार!
फिर दूसरी भी कोई अनहोनी न होते हुए किसी के हाथ में, किसी के पैर में, किसी के चोटें आई थीं और सभी की जान बच गई। यह दूसरा चमत्कार !
अन्दर बैठे हुए सभी को शरीर में केवल थोड़ी ही
उस समय हसमुखभाई ड्राइवर के पास ही आगे बैठे थे। सामने का काँच टूट गया था। जिसके कितने ही टुकड़े उछले थे, मगर जो ड्राइवर को या उनको नहीं लगे थे। सभी को थोड़ी-थोड़ी चोटें लगी थीं। जब कि उनको कुछ नहीं लगा था। यह तीसरा चमत्कार!
फिर तो धीरे-धीरे सभी को बाहर निकाला गया। हसमुखभाई के अलावा सभी को चोटें लगी थीं। इस ओर मेटाडोर भी काफी क्षतिग्रस्त हो गई थी। इस कारण वह अभी चलने की स्थिति में नहीं थी ।
उतने में एक यात्रिक बस आती दिखाई दी और उसमें सभी को बैठाकुर 'बारई' पहुँचाकर वहाँ के अस्पताल में इलाज हेतु रखा। अहमदाबाद समाचार भेजने पर संघ में भी सभी को आघात लगा । श्री संघ ने उनके निमित्त सामूहिक आयंबिल किए। उसमें 500 भाई बहिनों ने भाग लिया था।
दो-तीन दिन 'बारई' गांव में रुककर सभी की मरहम पट्टी करवाई और सभी अच्छे हो गये और अपने काम-धंधे में वापिस लग गये।
किंतु नवकार महामंत्र की अजीब मदद ऐसे समय में मिली की,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? उसके प्रभाव से सभी को नया जन्म मिल गया। उसकी स्मृति तो सभी के लिए अविस्मरणीय घटना बन गई!
अमरीका में अजायबी
ऐसा ही एक चमत्कार चार वर्ष पूर्व अमरीका देश में हुआ। इसकी हकीकत एक भाई के पास से सुनने को मिली।
हिन्दुस्तान के हीराचंदभाई एक अच्छे श्रावक! वह काफी समय से अमरीका में रहते हैं। उनको भी अशातावेदनीय कर्म के प्रभाव से ऐसे ही किसी प्राणघातक रोग ने जकड़ा। उन्होंने बहुत इलाज करवाये, परंतु परिणाम अच्छा नहीं आया। रोग रात-दिन बढ़ता ही जा रहा था।
अंत में ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ी। ऑपरेशन बहुत जोखिम | भरा था। डॉक्टरों ने कह दिया था कि, 'इस भाई के बचने की कोई संभावना नहीं है।'
फिर भी बचाने का उनका प्रयास पूरा ही था। किंतु ऐसे प्रत्येक ऑपरेशन से पहले रोगी के पास से उसके हस्ताक्षर CEMATION FORM (गुलाबी कार्ड) पर करवाये जाते हैं। जिससे शायद न बच सके तो डाक्टरों की जबाबदेही न रहे।
इस प्रकार, ऑपरेशन के पूर्व की यह औपचारिकताएं निपटाकर उन भाई को ऑपरेशन टेबल पर लिया गया। ऑपरेशन रूम बंद कर ऑपरेशन की शुरूआत की। बाहर बैठे हुए उनके सभी सगे-संबंधी, पत्नी-पुत्र आदि उदासीन होकर अंतर से भगवान को प्रार्थना कर रहे थे। क्योंकि जीवन-मृत्यु का प्रश्न था।
किंतु ऑपरेशन करवाने वाले वह भाई नवकार मंत्र के आराधक थे। उनको नवकार के प्रति बहुत श्रद्धा थी। उन्होंने तो इसलिए ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश के साथ ही, 'जो होने का होगा वह होगा, ऐसा मानकर नवकार मंत्र का जाप अविरत रूप से चालु कर दिया था। ऑपरेशन रूम
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बंद होने के साथ ही उन्होंने दोनों आँखें बंद की -
"अब. सौंप दिया इस जीवन को भगवान तुम्हारे हाथों में" के भाव के साथ वे नवकार मंत्र के जाप में उतर गये। साथ में ऐसा संकल्प कर लिया कि ऑपरेशन पूर्ण होने के बाद ही आँखे खोलनी हैं। "
और अत्यंत आश्चर्य हुआ। चार घंटे लगातार यह ऑपरेशन चला। बाहर बैठे हुए घरवालों के तो प्राण ऊँचे-नीचे हो रहे थे कि, क्या होगा? "हे भगवान! हमारी रक्षा करना! हमारे साथ में रहना!" कैसी है यह दुनिया! जहाँ जीवन मृत्यु का प्रश्न उपस्थित होता है तो तुरंत, 'भगवान हमारी रक्षा करना' की प्रार्थना करती है। किंतु... भगवान को ऐसे प्रार्थना न करते, हए हम ही भगवान के साथ रहें तो? उनकी आज्ञानुसार जीवन जीयें तो? तो ऐसी प्रार्थना ही नहीं करनी पड़ेगी।
खैर! यहाँ तो नवकार मंत्र ने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई। मौत से मिलने जा रहे उस भाई को रोक दिया। ऑपरेशन सफल हुआ। डॉक्टर ने बाहर आकर सभी को बधाई दी। सभी को आनन्द ही आनन्द हुआ।
किंतु चमत्कार...? ___यह कोई चमत्कार नहीं था, क्योंकि विशेष चमत्कार तो ऑपरेशन के बाद हुआ।
उस भाई को अब शेष इलाज के लिए 8-10 दिन तक अस्पताल में ही रुकना था। इसलिए वह तो केवल नवकार के जाप में ही अपना समय पूर्ण करने लगे। सार-संभाल चलती और एक सूत की माला हाथ में लेकर हीराचंदभाई की नवकार मंत्र की आराधना भी चलती।
उसका प्रभाव उस बड़े अस्पताल में ऐसा पड़ा कि जितने ऑपरेशन होते उन सभी के सगे-संबंधी हीराचंदभाई के पास आते और उनके लिए नवकार गिनने को कहते, "भाई हमारे लिए भी भगवान को ऐसी प्रार्थना करना।"
"WE TRUST IN GOD. WE TRUST IN YOUR NAVKAR"..
हमें तुम्हारे नवकार पर श्रद्धा है, विश्वास है। आप गिनोगे तो जरूर हमारा आदमी भी इस ऑपरेशन से बच जाएगा।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - हीराचंदभाई को ऐसे समय अमरिकन गोरे लोगों की ऐसी श्रद्धा देखकर आश्चर्य होने लगा। वे सभी के लिए नवकार गिनने लगे। किसी भी भाई-बहिन का ऑपरेशन शुरू होता और उनके लिए वे भाई तुरंत माला हाथ में लेकर नवकार मंत्र गिनने बैठ जाते।
यह क्रम वे जितने दिन उस अस्पताल में अपनी सार-संभाल के लिए रहे, उतने दिन तक नियमित चला और चमत्कार यह हुआ कि जितने दिन वे भाई उस अस्पताल में रहे, उतने दिनों में जितने ऑपरेशन हुए वे सभी ऑपरेशन सफल हुए। वैसे ही सैंकड़ों मरीज उस अस्पताल में इलाज करवाते थे, उनमें से किसी की मृत्यु उतने दिनों के दौरान नहीं हुई, जहाँ एकाध की मौत तो प्रतिदिन होती ही थी।
नवकार मंत्र का यह कोई जैसा-तैसा चमत्कार था? सभी डॉक्टरों, नों, कंपाउण्डरों, कर्मचारियों और रोगियों के लिए यह एक आश्चर्य बन गया था। नवकार मंत्र तो ऐसी कई मुसीबतों में अपनी मदद करता है। अपने पास रहता है। किंतु प्रश्न यह है, कि हम कितने नवकार के पास खड़े रहते हैं? उसके साथ अपनी दोस्ती कैसी जमी है?
लेखक-प.पू. मुनि श्री अपूर्वरत्नसागरजी म.
तथा प. पू. मुनि श्री मुक्तिरत्नसागरजी म. जादूगर के. लाल के अनुभव
विश्व के श्रेष्ठ जादूगर के. लाल पू. गणिवर्य श्री कीर्तिसेन विजय जी म. को उपाश्रय के स्थान में वंदनार्थ आये। दोनों के बीच एक घंटा वार्तालाप चला। जो जनता की धर्मश्रद्धा-आत्मश्रद्धा, अहिंसक वृत्ति को बढ़ाने वाला होने से उसका यहाँ संक्षिप्त सार दिया गया है। । सौम्यस्वभावी जादूगर के. लाल ने पू. गुरुवर्य को भावपूर्वक वंदना की और जमीन पर बैठ गये। पू. गुरुदेव श्री ने धर्मलाभपूर्वक आशीर्वाद दिया। इस समय संघ के प्रमुख श्री रमणीकलाल भाई वड़ेचा, लिओ क्लब
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? के प्रमुख श्री महेन्द्रभाई शाह और अन्य अग्रगण्य महानुभाव उपस्थित थे। । पू. गुरुदेव श्री ने पूछा, "तुम्हारे जीवन में कौन-सी ऐसी साधना, विद्या या जादू है कि तुम जादू कर लोगों का मनोरंजन करते हो?" के. लाल ने कहा, "इसमें कोई साधना, विद्या या जादू नहीं। मात्र परमात्मा के साथ अनुसंधान, ऊपर वाले के संकेत, फूर्तिली प्रक्रिया, लोगों का भ्रम
और मानसिक संकल्प काम करता है।" | पू. गुरुदेव- "ऊपर वाले के साथ अनुसंधान में आप क्या करते हो?" के.लाल- "प्रथम भावपूर्ण हदय से तीन नमस्कार महामंत्र गिनता हूँ।" वैसे ही मेरे स्टाफ का प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने इष्टदेव का स्मरण करता है। धूप -दीप करने के बाद ही हमारा शो प्रारम्भ होता है।
"बचपन में जब मैं 11 वर्ष का था, तब से ही मुझे नवकार मंत्र के ऊपर श्रद्धा, प्रेम, विश्वास है। इसलिए कोई भी प्रक्रिया इष्टदेव के स्मरणपूर्वक ही करता हूँ। जिससे अन्दर से संकेत मिलते रहते हैं।'
"बहुत-बहुत मरणांत कष्ट में भी मुझे नवकार के स्मरण से संकेत मिलते ही रहते हैं। जिससे निर्विघ्न कार्य पूर्ण होता है।"
"विमान की दुर्घटना के प्रसंग पर... लेडी कटिंग के प्रयोग में किए गये विश्वासघात के प्रसंग में, बनासकांठा की अकाल की परिस्थिति में आने का साहस वगैरह प्रसंगों में मुझे नवकार के स्मरण के द्वारा अंदर से तुरंत ही संकेत- जवाब आते हैं। उसके अनुसार मैं करता हूँ और मेरे सभी प्रयोग निर्विघ्न पूर्ण होते हैं। ऊपर वाले की तरफ से संकेत, सूचना मार्गदर्शन मिल जाता है।
"विद्याएं दो प्रकार की होती हैं- पिशाची और दैविक...।"
पिशाची में जीवहत्या करनी पड़ती है। जबकि मैंने दैविक विद्या द्वारा जीवहत्या बंद करवाई। पहले जादूगर 10 रूपये में कबूतर लाकर उसे मारकर हाथ चालाकी से जीवित कबूतर रखकर लोगों को हैरत में डालते थे। मैंने जादूगरों में यह हत्या का पाप बंद करवाया। मैं शराबबंदी एवं अंहिसा का पक्षधर हूँ।"
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
" एक बार परदेश जाते, मेरी पूजा की विशेष पेटी भूल गया। जिस कारण विशेष विमान के द्वारा मंगवाई, पूजा की, फिर शो (खेल) प्रारम्भ किया। "
मैं छः महिने मेरा प्रयोग चालु रखता हूँ। फिर एक माह कलकत्ता में आराम करता हूँ। वापिस छः माह चालु रखता हूँ, जिसमें जापान, अमेरिका, होंगकोंग वगैरह स्थानों पर जाना होता है।" सरल और शांत प्रकृति के के. लाल ने अपने स्वानुभव बताये । निष्कपट भाव से साधना की जानकारी दी। उन्हें आनन्द हुआ। भावपूर्वक गुरुपूजन कर वासक्षेप
डलवाया।
पू. गुरु महाराज - " अब संसार सागर को तैरने का जादू सीखने जैसा है। दूसरी बार दर्शनार्थ मिलने की इच्छा के साथ सभी बिखरे ।
( डीसा से प्रकाशित होने वाले "रखेवाल" दैनिक के दि. 15.10.85 के अंक में आए समाचार की कटिंग पू. गणिवर्य श्री कीर्तिसेन विजयजी म. सा. (हाल आचार्य श्री) ने भेजी, जो साभार यहाँ पेश की गयी है | )
समाधि मरण की चाबी - श्री नवकार &
मेरे पिताजी की युवावस्था भारत की आज़ादी की लड़ाई के समय बीती होने से वे देशभक्ति के रंग में रंगे हुए थे, जिससे वे व्यापार-व्यवहार में नीति एवं नैतिक मूल्यों का पूर्णतः ध्यान रखते थे। उनके जीवन में सादगी, सच्चाई, प्रामाणिकता एवं मानवसेवा जैसे गुण पूर्ण रूपेण विकसित थे।
जीवन के अंतिम दिन कच्छ में बीताने की इच्छा होने के कारण, पीछे के दिनो में वे व्यापारिक व्यवहारों से निवृत्त होकर कच्छ - कांडागरा गांव में रहते थे।
एक दिन उनके गले के पास गांठ दिखाई दी। कच्छ के स्थानीय | डॉक्टर को बताने पर उसने मुंबई जाँच करवाने की सलाह दी। वहां के
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
निष्णात डॉक्टर ने उसे कैंसर के तीसरे चरण की गांठ घोषित की। सब घबरा गये । टाटा अस्पताल में इलाज शुरू हुआ। सम्पूर्ण रोगमुक्त हो सकें ऐसी परिस्थिति नहीं थी। उस गांठ की पीड़ा अतिशय त्रासदायक न बने इस कारण आयुर्वेदिक उपचार आरंभ किये, जिससे पीड़ा कम हो गई किंतु मानसिक शांति नहीं मिली।
उस दौरान हमारे संबंधी श्री चांपशी प्रेमजी उनको प्रतिदिन सवेरे नवस्मरण सुनाते ओर धार्मिक वांचन करते थे, जिसमें पिताजी लीन हो जाते थे। उन्हें प्रतिदिन सुनकर नवस्मरण मुखपाठ हो गये थे। चांपशीभाई एक बार बोलने में भूल गये तो उन्होंने तुरंत भूल सुधार दी। एक दिन हमारे हितैषी, मित्र श्री के. के. शाह आए और उन्होंने विनम्रभाव से बताया कि, "यदि तुम पू. आ. भ. श्री विजयलक्ष्मणसूरीश्वरजी म.सा. को विनति कर घर पर पगले करवाओ और उनके आशीर्वाद मिले तो जरूर इस बीमारी से राहत मिलेगी।" पू. पिताजी साधु-संतों के विशेष परिचय में न होने के कारण और उस विषय में संपूर्ण श्रद्धा नहीं होने के कारण उनकी अनुमति मांगी। उन्होंने किसी पुण्य से आनन्दपूर्वक सम्मति दे दी। मैं के. के. शाह के साथ पू. आचार्य भगवंत से मिला और उन्हें घर पर पगले करने की विनति की। पू. कीर्तिचन्द्रविजयजी म.सा. ने कहा कि, "ऐसे तो म.सा. किसी के घर पर पगले करने नहीं जाते हैं। हम दूसरे किसी संत को भेजते हैं।" किंतु पू. आ. श्री को विनति करते ही उन्होंने तुरंत सम्मति दर्शायी और पू. कीर्तिविजयजी म. सा. को कहा कि, "मुझे इनके घर जाने की विशेष जरूरत है।" दूसरे दिन सुबह जल्दी पू. आ.भ. घर पधारे। पिताजी को पूछा, 'क्या करमशीभाई ! ज्यादा तकलीफ है?" पिताजी ने गर्दन हिलाकर 'हाँ' का इशारा किया। पू. श्री ने कहा " सभी साथ में मांगलिक सुनो।" मांगलिक सुनने के बाद पिताजी ने -"पू.आ.भ. का गुरुपुजन करना है तथा कुछ वहोराना है। अंतिम समय है, इसलिए लाभ लेना है" ऐसी भावना व्यक्त कर गुरुपूजन करके पछेड़ी बहोरायी। पूज्य श्री ने कुछ अभिग्रह लेने को कहा। पिताजी ने कहा कि, " अभिग्रह लेकर पहले भी पाल नहीं सका। इसलिए इस हेतु आग्रह मत करो। " पू. श्री ने
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कहा कि, "मेरा अभिग्रह पाल सकें ऐसा होगा, किंतु वह तुम्हारी अंतर की इच्छा से लेना होगा । " और पूज्य श्री ने पिताजी पाल सकें ऐसे ही अभिग्रह का सूचन किया । " चौबीस घंटों में केवल एक नवकार मंत्र का जाप !" वासक्षेप डालकर पूज्य श्री ने नवकार मंत्र प्रदान किया। पिताजी को बहुत ही आनन्द हुआ।
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हम प्रतिदिन पूज्य श्री के विहार स्थल पर जाकर वासक्षेप ले आते ओर उनकी सूचना के अनुसार सुबह थोड़ा वासक्षेप सिर पर और थोड़ा वासक्षेप जीभ पर रखते। अंत में उनका विहार सोलापुर की ओर हुआ तब उन्होंने कहा, 'श्रावक को पूछना, नवकार गिनते हैं ना?" पिताजी को बताने पर उन्होंने कहा, "केवल सोने का समय छोड़कर बाकी के समय मेरे मन के भीतर नवकार का रटन चालु रहता है।" ऐसा कहकर उनकी आंखों में हर्ष के आँसु आ गए। पूज्य श्री को बताने पर उन्होंने कहा
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'अब मुंब्रा मुकाम पर चांदी की डिब्बी ले आना।" उसके अनुसार मुंब्रा जाते समय इन्होंने चांदी की डिब्बी में वासक्षेप दिया। हम जिसका उपयोग उनकी सूचना के अनुसार करने लगे ।
पिताजी की मानसिक शातिं में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी। वे खूब श्रद्धापूर्वक सुबह धार्मिक वांचन सुनने लगे। अपना अंतिम समय नजदीक जानकर दि. 12.4.70 रविवार को दोपहर लगभग 4 बजे अंगूठी, चांदी का कंदोरा तथा घड़ी उतार देने को कहा, जो वे बहुत वर्षों से पहनते थे । उन्होंने नीचे सोने की इच्छा जताई। जो बैठ भी नहीं सकते थे वो एकदम होश में पैर लम्बे कर सो सके। उन्होंने रात्रि में बराबर 10-10 बजे समाधिपूर्वक देह त्याग दिया। उनके अंत तक नवकार मंत्र का रटन चालु था। उनकी घड़ी तकिये के पास रखी हुई थी। जो बराबर 10 बजकर 10 मिनट पर बन्द हो गई थी। जड़ और चेतन का यह कैसा अजीब संयोग ! और पूज्य श्री द्वारा दिया गया वासक्षेप भी पूर्ण हो गया था !
दूसरे दिन सुबह अंतिम क्रिया करनी है, यह खबर बाजार में फैलते ही श्री वेलजी भाई मोरारजी की धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मीबेन ने कहा कि
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'क्या कहते हो ? आज रात मैंने सपने में करमशीमामा को गिरिराज पर
आदीश्वर दादा की पूजा करते देखा । "
उन कुदरती संकेतों से हमारे परिवार की श्रद्धा बढ़ी। यही मार्ग जीवन में अपनाने जैसा है, ऐसा लगता रहता है।
नवकार मंत्र के प्रभाव से सभी को मृत्यु के समय ऐसी मंगलमय समाधि प्राप्त हो, यही प्रार्थना ।
लेखक - श्री कांतिलाल भाई करमशी विजपार जस्मिन स्टोर्स, डॉ. आम्बेडकर रोड़, परेल, मुम्बई- 12 फोन नं.- 4131306
महामंत्र की महिमा
मैं सं. 2035, सन् 1980 भादरवा सुदि चौदस (अनंत चौदस ) को सुरत से जंबुसर एक प्रोफेसर मित्र के साथ वापिस आ रहा था। मेरी रेलगाड़ी में बैठकर सुरत से भरूच आने की भावना थी । वहाँ स्टेशन मार्ग की ओर ट्राफिक जाम होने से, एक एस. टी. बस खड़ी रही। हमें उसमें बैठकर जाने का मौका मिला। हम सबसे पीछे बैठे थे। हम दोनों बैठने के बाद खड़े होकर सबसे आगे ड्राइवर की सीट के पीछे के भाग में खाली जगह होने के कारण वहाँ जाकर बैठे। कुछ चैन नहीं पड़ा ।
नवकार मन में रमता था । वहाँ अन्दर से आवाज आयी । "उतर जाओ'", पीछे जो बस आ रही है, उसमें बैठ जाओ।" मन नहीं माना। फिर से आवाज आयी, "पीछे के भाग में चला जा ।" चलती बस में साथ के भाई को खड़ा कर वापिस बस की पीछे की सीट पर जाकर बैठे। बस के अन्दर के यात्रियों को आश्चर्य हुआ। बस हाइवे पर पूरे जोश से जा रही थी।
मेरे अंदर से तो एक ही आवाज बार-बार आ रही थी । " उतर जा, पीछे आ रही बस में बैठ जा ।" परन्तु होनहार होता ही है। उसे कौन मिथ्या कर सका है? समय का भान नहीं रहा। नवकार का स्मरण हृदय
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? में था। हाईवे पर गाड़ियों का यातायात बढ़ा। हमारी बस आगे निकल गयी। पीछे आती बस पीछे रह गयी।
वहाँ एकाएक आकाश टूटे, बिजली गिरे वैसी भंयकर धमाके की आवाज कानों के परदे को चीर गयी। देखा तो मैं उछलकर बस के तलिये पर पड़ा था। बस में करूण-क्रन्दन, चिखना, रोना सुनाई दे रहा था। मुझे बस की सलाखा छाती के भाग में एवं घुटने पर लगने से हदय एवं |साथल के भाग में गहरी चोटें आयी थीं। श्वास अद्धर हो गया था। प्राण कंठ में आ गये थे। असह्य वेदना के बीच चेतन चमकता था।
एस.टी.बस. एवं सामने से आ रहे ट्रक के टकराने से प्राणनाशक दुर्घटना घटी थी। राह पर खून बह रहा था। कांच के टुकड़े रास्ते में बिखर गये थे। ट्रक एवं बस के टूटे हुए हिस्से उछलकर इधर-उधर पड़े थे। वाहनों का आना जाना रुक गया था। बेहोश एवं चोटग्रस्तों के रुदन ने वातावरण को हिला दिया था।
मेरे साथ के प्रोफेसर को काफी चोटें लगी थीं, किन्तु कौन जाने कैसे वे बच गये। उन्होंने मुझे बस से उतारकर जमीन पर सुलाया। वे छाती पर हाथ फेरने और कहने लगे, "तुम्हें कुछ नहीं होगा, ठाकुरजी का स्मरण करो। भगवान अच्छा करेगा। वेदना मिट जाएगी। स्मरण करो।"
वेदना ऐसी थी कि, लग रहा था, अभी प्राण पखेरू उड़ जायेंगे। मैंने उनसे कहा, "यह शरीर गिर जाए तो इसे घर पहुंचाना।"
भाई ने हिम्मत बंधायी, "तुम्हारा दर्द मिट जाएगा। चिन्ता मत करो। प्रभु का स्मरण करो।"
वातावरण में वेदना की चीखे सुनाई दे रही थीं। चारों ओर उदासी फैल गयी थी। विषाद के बादल मंडरा रहे थे। न उठ सकें, न बैठ सकें, न कह सकें, न सह सकें वैसी भयंकर वेदना ने शरीर पर अपना साम्राज्य |जमा दिया था। मौत सामने दिखाई देती थी। किन्तु नवकार का स्मरण इसे
चेतावनी देता था। 'कुछ भी नहीं होगा, घबराने की जरूरत नहीं है', अंदर से कोई आश्वासन देता था। उस समय एकाएक एक कार वहाँ से गुजर
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रही थी । दुर्घटना का दृश्य देखकर, जहाँ मैं पड़ा था, वहाँ आकर खड़ी रह गयी। साथ के मित्र ने पूरी बात की, और मुझे अपनी कार में बिठाकर पास के अस्पताल में ले जाने की विनति की। उन्होंने विनति स्वीकार की। कार में तीन भाई थे। सुरत से झघड़ीया यात्रा करने जा रहे थे। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया। रास्ते में नवकार, बृहत् शांति सुनायी। परम पूज्य गुरुदेव का स्मरण आया। हृदय से उनके दर्शन किये। मैं न बोल सकुं वैसी हालत में भी नवकार बोलने लगा।
वेदना विराम हुई । दुःख दूर हुआ। उतने में तो अंकलेश्वर आ गया। अस्पताल के पास छोड़कर, कार झघड़िया के रास्ते दौड़ने लगी।
अंकलेश्वर के डॉक्टर ने मुझे बहुत हिम्मत दी । योग्य दवाई दी। शरीर पर कुछ हिस्सों में भयंकर चोटें लगी थीं। श्री देव गुरु की कृपा से साथ वाले प्रोफेसर मित्र मुझे रात को अंकलेश्वर से भरूच होकर जम्बूसर छोड़ गये। मैंने परिवार में किसी को भी पता न चले, उस प्रकार रहने का प्रयत्न किया, जैसे कुछ हुआ ही न हो, वैसे सोने का प्रयास करने लगा । किन्तु दुःख जाग्रत था । शरीर चुगली खाता था। मुश्किल से सुबह हुई । जंबूसर के डॉक्टर की सेवा ली।
यह समाचार मुंबई मिलते ही परम स्नेही, सेवाभावी, साधर्मिक प्रेमी उपकारी सेठ श्री खीमजीभाई (बाबुभाई ) छेड़ा (कांडागरा वाले) जंबूसर दौड़ आये। उन्होंने मुंबई आने को कहा। थोड़े दिनों बाद मुबंई गये और खीमजी भाई की सावधानी भरी सार-संभाल के नीचे, बोम्बे होस्पीटल के डॉक्टरों की प्रेमभरी सेवा मिली। दवा मिली। नया जीवन मिला।
ऐसा है इस मंत्राधिराज नमस्कार महामंत्र का प्रभाव! अद्भुत और अनुपम ! उसकी अचिंत्य शक्ति सक्रिय बनकर, सभी घटनाओं के पीछे इस जीवन का रक्षण करती थी ।
महान् पुण्योदय से मिले हुए इस महामंत्र को हृदय में विराजमान करके अपने को मिला हुआ मानव जीवन सफल करना चाहिए। प्रत्येक श्वास में इसे याद करना चाहिए। इस मंत्र की महिमा अपरंपार है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? परदेश में रहते एक भाई पर हदय रोग का हमला हुआ। उसे इंग्लैण्ड के एक अस्पताल में दाखिल किया। उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया। हदय बंद हो गया था।
डॉक्टर ने जाँच कर बताया, "HE IS DEAD" (वह मर गया है)उनके शरीर के उपर कपड़ा ढक दिया। सगे-सम्बंधियों को खबर दी और लाश सौंपने के लिए तैयारी होने लगी। स्ट्रेचर पर देह रखकर ऑपरेशन थियेटर से बाहर आये। उतने में ढके हुए कपड़ों में से आवाज आयी, "नमो अरिहंताण!" डॉक्टरों एवं सगे-सम्बंधियों को भारी आश्चर्य हुआ। कपड़ा दूर किया। उस भाई ने आंखें खोलीं। सभी को देख कर बोल उठे, "नमो अरिहंताणं"। बैठकर सभी को बताया कि "इतने समय तक मैं पूज्य गुरु महाराज के पास था। "उन्होंने मुझे नवकार गिनने के लिए कहा। मैं नवकार गिनता रहा था। मैंने कहा, 'मुझे देर हो रही है, मुझे जाने दो। सभी मेरी राह देख रहे होंगे।' किन्तु गुरु महाराज ने मुझे रोके रखा। फिर भी मैं आज्ञा लेकर वापिस आ गया हूँ।"
यह सुनते ही सभी झुक पड़े। आज भी यह भाई स्वस्थ हैं। मिलते हैं, तब कहते हैं कि "अब मैं दो बातों में मजबूत बन गया हूँ। मौत चाहे तब आये, मौत का गम नहीं है। दूसरा पूज्य गुरुदेव की कृपा से नवकार मेरा प्राण बन गया है। मैं श्वास-श्वास में उसका स्मरण करता रहता हूँ।"
ऐसे तो कितने ही दृष्टांत जगत में देखने को जानने को मिलेंगे। शास्त्रों में लिखा है कि, "जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?" इस संसार में कषाय रूपी ताप से पीड़ित, कर्मरूपी मैल से मलिन, तृष्णारूपी, तृषा से तृषातुर बने हुए जीव को सच्चा विश्राम देने वाला नमस्कार महामंत्र ही है। ज्ञानी भगवान कहते हैं कि, इस असार संसार में यदि कोई सारभूत वस्तु हो, तो वह एक नवकार मंत्र ही है।
श्री नवकार जैन शासन का सार है। चौदह पूर्व का सम्यग् उद्धार है। सभी मंगलों में प्रथम मंगल है, सभी श्रेयों में प्रथम श्रेय है।
वह घोर उपसर्गों को भी नाश करता है। दुःख को नष्ट करता है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मन के वांच्छित पूर्ण करता है। भव समुद्र को शोखता है। इस लोक एवं परलोक के सुख का मूल वही है।
सभी पापों का नाश करने वाले, संसार का विलय करने वाले, कर्म को निर्मूल करने वाले, केवलज्ञान की प्राप्ति कराने वाले, सकल संघ को सुख देने वाले, कल्याण की परम्परा को प्राप्त कराने वाले, अनन्त संपदा को देने वाले, जन्म-मृत्यू की जंजाल में से जीवों को छुड़ाने वाले इस नवकार मंत्र की महिमा वाणी से वर्णनातीत है। शब्द भी उसे समझाने के लिए कम पड़ते हैं।
ऐसे तरण तारणहार, परमपद को प्राप्त कराने वाले, शिवसुख को देनेवाले, सिद्धपद पर स्थापित कराने वाले, अचिंत्य सामर्थ्ययुक्त नवकार को इस हदय के अनंत अनंत नमस्कार...।
लेखकः- प्रो के.डी. परमार,
__ श्रावक पोल, देरासर शेरी,
मु.पो. जंबूसर, जिला-भरुच पिन-392150 (उपरोक्त घटना के आलेखक प्रो. के.डी. परमार ने जन्म से अजैन होने के बावजूद नवकार मंत्र के अजोड़ आराधक स्व. पू.पं. श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. के सत्संग से जैन धर्म प्राप्तकर साधना द्वारा अत्यन्त अनुमोदनीय आत्मविकास साधा है। उन्होंने वडाला, नालासोपारा तथा डोंबीवली आदि में हमारी निश्रा में सभा के समक्ष नवकार महामंत्र तथा जिनभक्ति विषय पर अत्यंत मननीय वक्तव्य पेश किया था- संपादक)
भूत का भय भाग गया! __ मूल ईडर के वतनी श्री शशिकांत भाई अहमदाबाद में कमरा किराये लेने के लिए घूमते थे। उन्हें बहुत तलाश करने पर कमरा तो मिला, किंतु कमरे की मालकिन वृद्धा ने कहा कि, "तीन मंजिल खाली नहीं हैं। चौथे मंजिल पर एक कमरा खाली है। किंतु उस कमरे में कोई किरायेदार सात दिन से ज्यादा नहीं टिकता है। इसलिए तुम विचार करके आना।"
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शशिकांत भाई ने वह खाली कमरा ले लिया और प्रतिदिन नवकार मंत्र का जाप पूर्ण श्रद्धा से करने लगे। वह 12 वर्ष तक वहां रहे, किंतु उन्हें किसी उपद्रव का अनुभव नहीं हुआ। उनकी धर्म और नवकार के प्रति श्रद्धा ज्यादा दृढ़ बनी। आज वे ईडर में बहुत ही अच्छी आराधना कर रहे हैं।
"बरसात का विघ्न टला"
अहमदनगर (महाराष्ट्र) में छत्तीस करोड़ नवकार मंत्र के आराधक पू. आ. देव श्री यशोदेवसूरिजी म.सा. का चातुर्मास था। तब एक शासनप्रभावक भव्य वरघोड़ा निकलने वाला था किंतु उसी ही दिन बहुत बरसात हुई। पूरी तैयारी होने से वरघोड़ा बंद नहीं रहना चाहिये ऐसा सोचकर आचार्य श्री ने केवल अपना हाथ ऊँचा करके कहा- 'बरसात! बंद हो जाओ।" तुरंत बरसात बंद हो गई और वरघोड़ा अच्छी तरह से सम्पन्न होने के बाद वापिस बरसात चालु हो गई।
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"मुसलमान नवकार गिनता है"
शंखेश्वर के पास कुंवारद नाम का छोटा गांव है। वहां एक बूढ़ा मुसलमान रहता है। गांव में शिखरबद्ध जिनालय है। वह बूढ़ा प्रतिदिन दर्शन करने जाता है। वह लगभग सारा दिन " चत्तारिमंगलं " आदि 4 शरण और नवकार मंत्र का जाप करता रहता है। वह कहता है कि, " कोई भी कार्य रुक जाता है, तो मैं पूर्ण करा सकता हूँ।" वह बहुत साधु-साध्वीजी के परिचय में आया है। उसके जाति भाइयों ने उसे समझाया कि- " तुम जैन मंदिर क्यों जाता है?" मगर वह कहता है ' वही सत्य है, इसलिए मैं तो वहां जाऊँगा।" उसने मांसाहार आदि का त्याग किया है। वह भविष्य की कोई-कोई बातें भी पहले से कह देता है।
" दुर्घटना से बचे"
बारामती (महाराष्ट्र) के पास में सेटफल नाम का छोटा-सा गांव है। उसमें जैनों के दो घर हैं। एक बार एक भाई को वहां से सोलापुर व्यापार करने जाना पड़ा। वह भाई वापिस आते ट्रक में बैठे-बैठे नवकार गिनने लगा। ट्रक में आठ भाई थे। ट्रक दो किलोमीटर गया कि पेड़ के साथ
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? टकराया। सभी को चोटें आईं। कितनों को अस्पताल ले जाना पड़ा। किंतु | यह भाई नवकार मंत्र गिनते रोड़ पर आराम से खड़े थे। उन्हें कोई चोट नहीं लगी थी। "भूत का भय दूर हुआ"
थोड़े वर्ष पूर्व पू. आ. श्री धर्मसूरिजी म.सा. (काशीवाले) की इच्छा हुई कि काशी (बनारस) में जैन तत्त्व के अभ्यास के लिए एक बोर्डिंग-स्कूल खुले। छोटे स्थान पर स्कूल प्रारंभ की। विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने के कारण बड़े स्थान की जरूरत पड़ी। अंग्रेजों की खाली कोठी मिल गई। किंतु लोगों ने कहा कि, "इस मकान में भूत रहता है। किसी को रहने नहीं देता। बालक भी घबराये। किंतु आचार्य म.सा. कहते हैं कि, "तुम आराम से रहना, मैं चौबीस घंटे जाग्रत रहूंगा। किंतु प्रत्येक विद्यार्थी को 108 नवकार मंत्र का जाप और प्रतिदिन एक आयंबिल करना होगा।" प्रवेश के दिन से शुरूआत करवाई। महिने बीत गये किंतु किसी को कोई तकलीफ नहीं हुई। अंग्रेज किराया लेने आये। तो आचार्य श्री ने कहा, "हम भाड़ा नहीं देंगे। चाहिये तो मकान खाली करके देंगे।" अंग्रेजों ने कहा, "क्या भूत चला गया है?" आचार्य श्री ने कहा- "भूत तो मुझे प्रतिदिन दिखाई देता है, किंतु हमारे प्रत्येक के जाप और आयंबिल के तप से कुछ भी नहीं कर सकता।" अंग्रेज चुप हो गये। विद्यालय खाली करने की बात नहीं की। | "आग ठंडी हो गई"
संवत् 2019 में कलकत्ता में एक संघर्ष के दौरान जैनों का मकान जलाने उपद्रवी आये। सभी जैन जान को हाथ में लेकर नवकार के ध्यान में बैठ गये। वे लोग पेट्रोल डालते परन्तु आग नहीं लगती थी। दो घंटे मेहनत की परन्तु जला नहीं। इतने में पुलिस आ गई और सभी उपद्रवियों को पकड़कर ले गई। जैन बच गये।
"कैंसर केन्सल हो गया" ___ हमारे ईडर (गुजरात) में सन् 1985 के चातुर्मास में सुनी हुई घटना
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-जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? - है। मूल वडाली निवासी पोपटलाल कालिदास हाल ईडर में रहते हैं। जिनको चार वर्ष पूर्व कैंसर हो गया था। टाटा हॉस्पीटल में बताने पर जानने को मिला कि अब वे ज्यादा दिन नहीं जियेंगे। तब उनकी पत्नी ने सूचन किया कि "आपको जाना ही है, खाना नहीं खाया जाता तो सिद्धचक्र एवं नवकार के ध्यान में बैठ जाओ और आज से ही निर्णय कर लो कि यदि बच गया, तो प्रतिवर्ष आसोज एवं चैत्र महिने की आयंबिल की ओली पारणे सहित ईडर में करवाऊँगा और एक पूजन पढ़ाऊँगा।" वह एक महिने में अच्छे हो गये। डॉक्टर को बताया तो वे भी आश्चर्य में पड़ गये। आज भी वे स्वयं आयंबिल तो नहीं कर सकते, किंतु ऊपर की आराधनाएं चालु ही हैं। "सवा लाख नंवकार से अच्छा हो गया"
बड़ौदा में हीरालाल का लड़का, जिसकी उम्र दो वर्ष की ही थी। किसी बीमारी के कारण उसकी गंभीर परिस्थिति हो गई थी। डॉक्टरों ने हाथ झिड़क दिये। इसलिए वह भाई उस बालक को गायत्री मंत्र वाले के पास ले गये। उस साधक की शक्ति से कइयों की बीमारी समाप्त हो गई थी। उसने बालक को बैठाकर प्रयोग चालु किया। किंतु बालक के
अंग में कोई शक्ति नहीं आ रही थी। साधक के कान में आवाज आई, |"बालक जैन है। उसे एक लाख नवकार का जाप और पालिताणा की यात्रा करवाओ।" एक महिने में अच्छा हो जायेगा। बालक वास्तव में अच्छा हो गया और आज भी जीवित है। "डाकू डर गये।"
बैंग्लौर (कर्नाटक) से एक भाई सोने के बिस्कुट व्यापार के लिए लेकर आ रहे थे। थैले पर शंका होने से दो गुंडे पीछे पड़ गये। उस भाई ने जो टिकट ली थी, उसी के पास वाली सीट पर गुंडों ने अड्डा जमाया। वह बहुत दांव खेलने लगे। थैले वाले भाई बहुत घबराये और नवकार मंत्र गिनने लगे। उन लोगों का बस नहीं चला। वे भाई मुंबई दादर उतरे। वहां से झवेरी बाजार जाने के लिए टेक्सी की। उन गुंडों ने भी उसी टैक्सी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? वाले को ज्यादा पैसे की लालच दी और वे उसी टैक्सी में बैठ गये। टैक्सी पूरी गति से जाने लगी। वह भाई,"माल तो जायेगा साथ में जान भी जायेगी" ऐसा सोचकर श्रद्धापूर्वक नवकार गिनने लगे। ___अंत में टैक्सी पूरे जोश में विपरीत चलती हुई सीधी झवेरी बाजार में जिस दुकान पर उस भाई को जाना था वहां आई, और ड्राईवर बोला, "पेट्रोल खत्म!" वह भाई तो थैला लेकर, उतरकर सीधे दुकान में पहुंच गये। ड्राईवर गुंडों के पास पैसे मांग रहा था। किंतु गुंडों ने उस दुकान से बुलाकर उस भाई से माफी मांगी और टैक्सी का किराया मांगा। भाई समझे, मैं बच गया यह काफी है। ऐसा सोचकर गुंडों को फिर से ऐसा न करने की प्रतिज्ञा के साथ किराया देकर रवाना किया। "कार कमाल से बची"
बैंगलौर से साउथ इंडिया फ्लोर मिल वाले पू.आ. श्री भद्रंकरसूरि जी म. सा. के दर्शन करने मैसूर जा रहे थे। वे रास्ते में गाड़ी में बैठे-बैठे नवकार गिन रहे थे। अचानक कर्म संयोग से गाड़ी उलटी हो गई। फिर भी उसमें किसी को कोई भी पीड़ा नहीं हुई।
लेखक - प.पू. आ. श्री विजय वारिषेण सूरिश्वरजी म.सा.
० जुल्मखोर झुक गये ० प.पू. बन्धुत्रिपुटी के उपदेश से सायन संघ के उपक्रम से जूनागढ़ पोरबंदर में अतिवृष्टि के कारण निराधार बने गांवो के लोगों को सहायता दिये जाने का निर्णय किया। सायन माटुंगा के 10 भाई पृ. वजूचाचा के निर्देशन में दि. 3.7.83 को राजकोट की ओर रवाना हुए। हमने आवश्यक वस्तुओं की सूची तैयार की। स्थानीय तथा सेवाभावी संस्थाओं के मुख्य व्यक्तियों की मदद से प्रत्येक परिवार को वह सामान पहुंचाया। हम जूनागढ़ में तीन दिन वितरण कर चौथे दिन पोरबंदर पहुंचे। पोरबंदर के बारे में सुना था कि वहां गुंडागिरी ज्यादा है। इसलिए थोड़ी सावधानी जरूरी थी। हम पोरबंदर शाम को चार बजे होटल में पहुंचे। होटल का
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--जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मालिक जैन होने से चौविहार के लिए व्यवस्था की। वहां हमारे पहचान के सेवाभावी श्री कुमारपालभाई वी.शाह से मिलना था। किंतु वे तीन दिन के लिए आसपास के गांवों में गये हुए थे। इसलिए हम स्थानीय प्रमुख व्यक्तियों से मिलकर नुकसान वगैरह की जानकारी लेते थे। साथ में सत्संग भी चालु था। . हम लगभग रात्रि 9 बजे कमरे में बैठे थे। वहां बाहर कोलाहल हो रहा हो ऐसा लगा। इसलिए हमने कमरे का दरवाजा बंद किया। उतने में दो युवक बन्दूक तलवार के साथ कमरे के आगे से गुजरे। हमारे पास राहत सामग्री एवं 35000 रुपये नकद थे। हमें उसके कारण थोड़ी सी घबराहट लगी। किंतु हमारे साथ के भाई श्री देवराज गाला एवं श्री रमेश गाला ने एक चित्त से नवकार मंत्र की धून चालु की। थोड़ी ही देर में उस युवान ने दरवाजे के पास आकर उसे धक्का मारा अन्दर से कड़ी टूट गयी। किंतु दरवाजा नहीं खुला। शेष रहे सभी भाई भी धून में शामिल हो गये।
पास के कमरे में धक्का मारते ही दरवाजा खुल गया। वहां से जो मिला वो लेकर होटल में ही एक कोने में बैठ गये। नवकार मंत्र की धून अखंड रूप से अपूर्व श्रद्धा के साथ चालु थी। हमें ग्यारह बजे जांच करने पर पता चला कि वे अभी तक होटल में ही हैं। आखिर 12-30. 1-00 बजे उनको नवकार के सामने झुकना पड़ा। वे होटल छोड़कर भाग गये।
हमने लगभग तीन बजे धून पूरी की तब श्री देवराज गाला ने कहा कि, 'वह टोली तो अपने लिए बहुत उपकारी थी, जिसके कारण हमने जागृति एवं श्रद्धापूर्वक नवकार का स्मरण किया। फिर सवेरे तक धार्मिक चर्चाओं के साथ बहुत ही उपयोगी सत्संग हुआ, जो हमारे जैसों के लिए जीवन का "टर्निंग पॉइन्ट' साबित हुआ।
नवकार मंत्र के अचिन्त्य प्रभाव का यह हमारा प्रत्यक्ष अनुभव अनेक आत्माओं के लिए धर्मश्रद्धावर्धक बनता रहे, यही परम तृपालु परमात्मा को अन्तर की प्रार्थना।।
लेखक - श्री हसमुख भाई कपासी सायन-मुम्बई
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•जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
व्यंतरिक मार गायब हो गई
बड़ौदा जिले में बोड़ेली तीर्थ के आसपास 500 गांवों में अहिंसा का प्रचार हुआ है। इसमें बड़ौदा एवं पंचमहाल इन दोनो जिलों में 50 मील के क्षेत्र में परमार क्षत्रिय जैन धर्म का पालन करने लगे हैं। नवकार मंत्र का स्मरण करने लगे हैं। हमने इस क्षेत्र में 12 वर्ष विचरण किया, जिसके परिणाम स्वरूप अनेक लोगों ने व्यसन त्याग दिये हैं।
इसमें एक गांव डुम (पंचमहाल) में हजार घर की बस्ती है। जिसमें दामाभाई भालसिंह नाम का एक परिवार रहता है। उसमें एक भाई को व्यंतरिक मार पड़ती थी, किंतु कौन मारता है, वह दिखाई नहीं देता था । बहुत समय तक ऐसा होता रहा। वह शांति के लिए भोपों के पास दोरे धागे, कामण, टूमण सभी करा चुके थे, किंतु शांति नहीं मिली। इस दौरान हम उनके गांव गये । उस समय में मुनि अवस्था में ही था। आचार्य पदवी नहीं हुई थी। घर में शांति हो, इस निमित्त से हमारी निश्रा में घर में पार्श्वनाथ पंच कल्याणक पूजा का आयोजन किया। अपने सगे-सम्बंधियों को आसपास के गांवो से आमंत्रण देकर बुलाया। भजन मंडलियां बुलाई। आये हुए मेहमानों एवं गांब के लोगों को खाना खिलाया। फिर सभी विदा हुए। हमने विहार नहीं किया था इसलिए दामाभाई का परिवार साथ में | होकर हमारे पास आया। दामाभाई, गणपतभाई, मोहनभाई, आदि ने जिस कमरे में व्यंतरिक मार पड़ती थी, वह भी एक ही भाई को, वगैरह जानकारी मेरे सामने प्रस्तुत की। मैंने उन्हें नवकार महामंत्र की महिमा बताकर कहा, "शुद्ध नवकार आता हो तो मेरे सामने बोलो। " गणपतभाई ने बोल दिया।
उनको लक्ष्य करके मैंने कहा, "तुम स्नान करके शुद्ध कपड़े पहनकर जिस कमरे में व्यंतरिक मार पड़ती है, उसमें धूप-दीप के साथ नवकार मंत्र का जाप करो।" इस प्रकार करने से एक ही महिने में शांति हो गई। सभी सदस्य आकर मुझे मिले और बात की कि, " आपका बहुत
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बड़ा उपकार हुआ। घर में शांति हुई।"
अभी इस परिवार के सभी परमार क्षत्रिय जैन धर्म का शुद्ध पालन कर रहे हैं। सभी खेत-बाड़ी, बाग-बगीचे का कार्य करके सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके परिवार में से एक युवक ने आचार्य श्री चन्द्रोदयसूरीश्वरजी के पास दीक्षा ली है।
लेखक - पू.आ.श्री इन्द्रदिन्नसूरिजी म.सा.
"नवकार और मैं" 7
सौराष्ट्र में श्री पादलिप्तपुर -पालीताणा और दूसरी ओर प्यारा गढ़ गिरनार। इस गिरनार की गोद में गांव जैतपुर। बाल्यकाल में मुझे माताजी अंगुली पकड़कर जैन पाठशाला में ले जाते थे। ज्ञानदान देने वाली बहिन ने "नवकार" सिखाया। जैनशाला में छोटी-छोटी कथा-वार्ताओं की पुस्तकें रखते थे। मैंने अमर कुमार की कथा पढ़ी। अमर कुमार को नवकार मंत्र कैसा फलीभूत हुआ था, वह बात मेरे मन में अंकित हो गई। मैंने क्रमशः पंच प्रतिक्रमण पूरे किये। नवस्मरण भी कंठस्थ किये।
प्रतिदिन नवकार गिनने का चालु किया। नवकार के प्रति अहोभाव जाग्रत हुआ। फिर तो मैंने आराधना, जाप, स्मरण शुरू किया। एक बार श्री शंखेश्वर तीर्थ में 27 दिन अखंड नवकार के जाप की आराधना का प्रसंग था। वहां पहुंचने के बाद मुझे समाचार मिले कि महिलाओं के लिए जाप अलग उपाश्रय में रखा है।
मैंने इस प्रकार अखंड मौन सहित 27 दिन एकासन तप के साथ साधना की। पू.पं. श्री भद्रंकरविजयजी म.सा., प.पू. श्री अभयसागरजी म.सा, पू. जंबूविजयजी म.सा. आदि की निश्रा में नवकार मंत्र पर व्याख्यान एवं वार्तालाप रखा हुआ था। किरण भाई, रिखबदासभाई वगैरह भी थे। नवकार मंत्र पर विस्तार से विवेचन होता था। साधना पूरी हुई। परंतु जो आनंद प्राप्त हुआ, उसका वर्णन नहीं हो सकता। फिर तो मुझे पू. आचार्य भगवंतों आदि पदस्थ मुनियों के सत्संग में
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आगे और आगे मंत्र में डुबकी लगाने से बहुत ही मिला। अनेक ग्रन्थों का वांचन किया। मन को प्रतीति हुई कि मन शुद्ध करने की कला नवकार मंत्र में ही है। हम जन्मे तब से ही गहराई में उतरना सीखे ही नहीं हैं। जैसे, जैसे एकाग्रता आती है, वैसे-वैसे नवकार मंत्र पर भाव जाग्रत होते हैं।
मेरे जीवन को नवकार मंत्र ने कितनी ही बार बचाया है। मैं अनेक आपत्तियों, विघ्नों में नवकार मंत्र के स्मरण से बच गई हूँ। मैं साधु जीवन में विहार, आक्रमण एवं विपत्ति में नवकार मंत्र के प्रभाव से जरूर कुशलक्षेम रही। इस प्रकार जीवन में नवकार मंत्र को प्राप्तकर, जानकर, उसकी अद्भुत आराधना-साधना, जाप-स्मरण किया है। मुझे प्राणघातक असाध्य रोग की ढाई दशक से जोरदार वेदना चालु है। जिसमें पेष्टिक अल्सर और आंतों के चार ऑपरेशन हुए हैं। मैं अंतिम ऑपरेशन के समय काफी घबराई । कारण? ऑपरेशन खतरनाक था। मुझे स्ट्रेचर पर डाला । कुछ होश था। मेरे हाथ की अंगुलियों की रेखाओं पर अंगूठा घुम रहा था। मेरे साथ की साध्वीजी ने कहा, "शाता ( कुशलता) में हो?" मैंने तुरंत हाथ बताया।
मेरा ऑपरेशन सफल हुआ! एक माह अस्पताल में रहना था। उस दौरान में पूरा दिन जाप करती । असहय वेदना, गर्मी का समय, सात दिन तक पानी का बुंद भी पी नहीं सकी थी। ऐसे संयोगों में "नवकार मंत्र और उवसग्गहरं स्तोत्र" दूसरी ओर "लोगस्स सूत्र की माला और महापुरूषों एवं महासतियों के चरित्रों का चिंतन" यह त्रिवेणी संगम था। स्वाध्याय और मौन साथ-साथ ! अस्पताल से उपाश्रय आये ।
शारीरिक आराम के साथ वांचन, चिंतन जाप की हारमाला चालु थी। प्रत्येक बाबत में श्रद्धा से, एकाग्रता से नवकार मंत्र जीवन में घुलमिल गया है। इस प्रकार मंत्र पर सचोट आस्था बैठ गई।
मैं चातुर्मास में नवकार की आराधना-जाप विशेष रखती हूँ। जेनशाला में "नवकार, उसका अर्थ और प्रभाव" इस विषय पर निबंध प्रतियोगिता वगैरह का आयोजन होता है। वैसे ही पुण्य प्रकाश का स्तवन
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - कंठस्थ करवाती हूँ। उसकी 7 वीं ढाल में गाथा नं. 4 से 7 तक की पंक्तियों में नवकार मंत्र के प्रभाव का वर्णन करती बुलन्द घोषणा है। बारबार उसका चिंतन करती करवाती हूँ। नवकार में भाव एवं प्रभाव दोनों भरे हुए हैं।
__एक बार विहार में, रास्ते के बीच में (पांच-सात फीट से कुछ अधिक दूरी पर) जहरीले नागराज फण ऊँची कर स्थिर थे। हम घबराये। एकदम दौड़कर सामने पड़े पत्थर के ओटे पर चढ़ गये। कंपकंपी! अब क्या करना? हम केवल दो ही साध्वियाँ थीं। नागराज ने तो अड्डा जमा दिया। हम भी वहां से भाग सकें वैसा नहीं था। हम एक घंटे तक नवकार एवं उवसग्गहरं गिनते ही रहे। नागराज पास के खेत में चले गये। हम भी गांव की और चले। भय और संकट दूर हुआ।
ऐसी चमत्कारिक घटनाओं से किसका हदय नाच न उठे! फिर तो चलते-फिरते, सोते-जगते, किसी भी कार्य में "नवकार" साथी होता है। कोई भी पूजन हो तो आठ दिन तक मेरा हदय नाचता रहता है। मंत्रों-श्लोकों से मेरा दिल बहुत द्रवित हो जाता है, इतना ही नहीं, हजारों | की भीड़ में, चतुर्विध संघ की उपस्थिति में भी मेरा अंतर भीग जाता है। मेरे नयनों में से हर्षाओं का स्रोत बह जाता है। मैं किसी अगम्य, अगोचर, अवर्णनीय भाव में डूब जाती हूँ। इसमें भी जब सिद्धचक्र पूजन में यह श्लोक चालु हो "श्री सिद्धचक्रं तदहं नमामि" तब अवश्य रो पड़ती हूँ। "नमः" शब्द कितना भाववाचक... कैसे भाव टपकते हैं! उसमें भी नमस्कार परमेष्ठि भगवंतों-गुरुजन-बड़ों आदि को किया जाता है। जिसके कारण विनयादि गुण प्रकट होते हैं। जीवन में लघुता आती है। जो झुकता है वह सबको अच्छा लगता है। हम क्षमा मांगते हैं (खमाते हैं) उसमें भी यही भाव है। इसलिए "नमामि और खमामि" यह दो शब्द अपने जीवन का सार है। प्राणी मात्र को नमो और खमो (क्षमा मांगो)।
नमो शब्द में करुणा आत्मीयता, नम्रता, मैत्री आदि भाव भरे पड़े हैं। नवकारमय बन जायें तो सहजता से उत्तमोत्तम गुण प्रकट होते हैं।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? . नवकार मंत्र की शक्ति अदम्य है। उसकी ताकत अद्भुत है। उसका सामर्थ्य भी अनूठा है।
अनंतों को तारने वाला श्री नवकार मंत्र है। जिसने शरण ली, उसका बेड़ापार है। अचित्य नवकार मंत्र की आराधना द्वारा तन-मन की शद्धि होती है। साधना द्वारा परम पद प्राप्त होता है। जीवन जीने की कला नवकार मंत्र है।
मेरे जीवन में एक नवकार मेरा साथी है। नवकार अर्थात् "सर्वस्व" है। "नवकार और मैं" ऐसा नवकार के साथ मेरा घनिष्ठ संबंध है। हम सभी श्री नवकार मंत्र की आराधना- साधना कर परम पद की प्राप्ति करें। यही मंगल भावना।
लेखिका - सा. श्री पद्मयशाश्रीजी
नवकार मेरा मित्र है
बाल्यावस्था में माता ने मुझे नवकार सीखाया। कण्ठस्थ करने के बाद उसके प्रति अहोभाव जाग्रत हुआ। 21 वर्ष की उम्र में स्कूल तथा | जैन शाला में शिक्षिका के रूप में जुड़ने का प्रसंग उपस्थित हुआ।
शाला में लिखित एवं मौखिक परिक्षायें देनी थीं। उसके अभ्यास क्रम में अर्थ-भावार्थ-प्रश्नोत्तर वगैरह आता था। प्रार्थना के प्रारम्भ में श्री नवकार मन्त्र की धून बोली जाती थी। फिर पाठ का अध्ययन शुरू होता था। धीरे-धीरे अर्थ का अभ्यास चलता, जिसमें नवकार मन्त्र और उसके प्रभाव का वर्णन आया। हमारे वीर-वनीता मण्डल ने अमरकुमार का नाटक रखा। उसे देखते ही संसार में नवकार मंत्र की शरण सच्ची है, ऐसी सचोट धारणा बैठते ही मैंने नवकार मंत्र का नित्य जाप शुरू किया।
गाँव में पूज्य आ.भ., पदस्थ मुनिवर एवं साध्वीजी पधारते रहते थे। चातुर्मास भी होते रहते थे। इस प्रकार नवकार मंत्र की मेरी आराधना आगे बढ़ी। मैंने एकासन की तपस्या से नवकार मंत्र की नौ दिन की आराधना की। दूसरी बार सं. 2039 में अड़सठ अक्षरों की उपवास से आराधना
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - की। इस आराधना से तन-मन की शुद्धि हुई। फिर मैंने किसी भी कार्य की | शुरूआत में नवकार मंत्र का रटन चालु किया। यह नवकार मन्त्र मेरे जीवन में ऐसा घुल मिल गया, कि अब मन इसमें ही पिरोया हुआ रहता है। __हम एक बार हमारे मण्डल की ओर से महाराष्ट्र से तीर्थभूमियों की यात्रा के लिये निकले। अचानक बस खराब हो गयी। बहिनों की संख्या ज्यादा थी। व्यवस्था करने के लिए पुरूष वर्ग में पाँच ही भाई थे। सभी घबरा गये। रात्रि का समय... क्या करना? चिंतित हुए। हमने तुरन्त ही नवकार मंत्र का जाप शुरू किया। करीब चार घण्टे बाद सामने के गाँव से बस आयी। दोनों बसों के ड्राइवर मिलकर मेहनत करने लगे। हम बहिनों का जाप अखण्ड चालु था। बस व्यवस्थित हो गयी। हम सबको बहुत आनन्द हुआ। हम उस दिन का यात्रा प्रवास कर जैसे-तैसे अपने-अपने घर पहुंचे। जाप और आराधना से, मंत्र के प्रभाव से आपत्ति में से मुक्त हुए। मेरी दिन-प्रतिदिन श्रद्धा-आस्था बढती गयी। दृढ़ता बढ़ी। मंत्र रग-रग में समा गया। एक बार मेरे ऊपर असाध्य रोग ने हमला किया। निष्णात डॉक्टरों की सलाह से मुझे अस्पताल जाना पड़ा। ऑपरेशन करना पड़े, वैसी स्थिति थी। ऑपरेशन करने का दिन आया। सभी के हदय में कम्पन थी। सभी गम्भीर बन गये थे। मैंने ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश किया। मेरे मन में कुछ भी गम, चिन्ता नहीं थी। बस श्री नवकार का रटन। ऑपरेशन सफल हुआ। मुझे आठ दिन बाद घर लाये। बोलने का बन्द था। केवल प्रवाही देते। ऐसी स्थिति में अखंड जाप एवं स्मरण करना नियमित चालु था। मंत्र के बल से ही अच्छा हुआ। यह बात बराबर हदय में उतर गयी।
कोई पूछे, तब मैं छाती ठोक कर जबाब देती हूँ कि, "मुझे कुछ नहीं है। श्री नवकार की शरण ही मेरे रोग में सहाय रूप है।" में अभी भी खूब आनन्द से आराधना-साधना-जाप करती हूँ। ... हम जहाँ-जहाँ तीर्थयात्रा पर गये, वहाँ-वहाँ भी अनेक चमत्कार घटित हुए। इसमें श्री नवकार मंत्र, नवस्मरण और स्तोत्रों के रटन से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? दुर्घटना, आपत्ति, आक्रमण, विघ्नों, दुःख-दर्दी से बच गये हैं। "नवकार मेरा साथी है," ऐसी पंक्ति हम सभी के हदय में गुंजती रही है। हम क्षेम कुशलता से हमारे वतन में आ जाते हैं। हम पूजा भावना आदि किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में श्री नवकार मंत्र मंगल के रूप में प्रारम्भ में ही बोलते हैं। ऐसे परम मंगलकारी नवकार मंत्र के प्रभाव से, ध्यान से, जाप से हम सभी शाश्वत सुख-शान्ति प्राप्त करें! परम पद प्राप्त करें, यही मंगल कामना।
लेखिका- श्रीमती पुष्पावती सी.शाह लेडी कीकाभाई प्रेमचन्द जैन पाठशाला-मुख्य अध्यापिका,
1428, गुरुवार पेठ, वसंत निवास, पूना-2 (महाराष्ट्र) चोरी हुई आंगी वापिस मिल गई है
हमारे गाँव झींझुवाड़ा में संवत् 2022 में पू. महाभद्रविजयजी म.सा. तथा महासेनविजयजी म.सा. आदि मुनि भगवन्तों का चातुर्मास था।
पू. महान तपस्वी मुनिराज श्री महाभद्रविजयजी म.सा. व्याख्यान में सुन्दर शैली से उपदेश देते थे और नवकार मंत्र का प्रभाव और आत्मोन्नति के लिए नवकार मंत्र ही परम औषधि है, वगैरह दृष्टान्तों द्वारा उपदेश देते थे। पू. महासेनविजयजी म.सा. 'नमो अरिहंताणं' पद की माला के जाप द्वारा करोड़पति बनवाने का प्रयत्न करते थे, और कम से कम दस माला प्रतिदिन गिनने से तीस वर्ष में करोड़पति (मंत्र जाप के हो जाओ, ऐसा कहते थे।
इससे मैंने वह जाप शुरू किया। उससे पहले भी मेरी प्रतिदिन एक पक्की नवकार की माला चालु ही थी। ... मेरी दीक्षा लेने की भावना कितने ही समय से थी। किन्तु पत्नी एवं पुत्र के साथ लुं तो ज्यादा अच्छा, वैसी भावना थी।
मुझसे पूर्व, मेरे पिताश्री एवं लघु बांधव ने सं. 1990 में दीक्षा ली
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
थी। उसमें पिता बहुत ही आत्महितचिंतक थे। वे संसार में रहकर भी साधु जैसा जीवन जीते थे। उन्होंने 35-45-60-70 उपवासों की उग्र तपस्याएँ 50 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने के बावजूद की थी। बीच में ज्ञान प्राप्ति भी चालु थी । ऐसे उत्तम पिता के वारिस होने के कारण सं. 1966 में उनके 70 उपवास के समय हमारे घर के जितने लोग गये थे, उन्होंने मिलकर 70 उपवास करने का सोचा। इस उत्तम विचार से मैंने अट्ठाई की । इससे पूर्व मैंने छट्ट, अट्टम भी नहीं की हुई थी। फिर भी अट्ठाई अच्छी हुई। उससे ही तप-जप में वृद्धि हुई ।
पिताजी श्री विलासविजयजी म.सा. के आशीर्वाद से हमारे घर में हम चार भाई एवं दो पत्नियाँ और लड़के भी मासक्षमण तक की तपस्याएं कर सके हैं।
लघु बांधव श्री ॐकारविजयजी म.सा., गुरु विनय भक्ति में ओत प्रोत होकर ज्ञान में बहुत ही आगे बढ़ गये। वह तत्वज्ञानी और विचक्षण होने से आचार्य पद योग्य हुए और उन्होंने सं. 2010 में आचार्य पद प्राप्त किया।
मेरे बड़े लड़के की 10 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने की भावना हुई। यह भावना समझ पूर्वक की है ऐसा जानकर, मैंने शिखर जी की यात्रा करवाकर अत्यन्त ठाठपूर्वक घर आंगन में ही महोत्सवपूर्वक दीक्षा दिलायी। वे आज यशोविजयजी म. सा. (हाल आचार्य) के रूप में ज्ञानध्यान में आगे बढ़ रहे हैं।
इस प्रकार मेरे परिवार एवं रिश्तेदारों में से कई दीक्षित हुए। माताजी के पिताजी, माता, मौसी का लड़का, भानजी एवे तीन फोई परिवार के साथ दीक्षित हुई हैं। आज न्याय विशारद एवं आगमों के उद्धारक के रूप में कार्य करने वाले पू. जम्बूविजयजी म.सा. वर्तमान में शासन उन्नति का कार्य कर रहे हैं। उनके पास विदेशों से पढ़ने के लिए लोग आते हैं। उनका भी उस साल चातुर्मास समी में था।
ऐसे अनेक आलंबनों से मेरी दीक्षा की भावना प्रबल बनी और सं.
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - 2022 में मैं नवाणु यात्रा करने परिवार के साथ गया। पत्नी की | बाल्यावस्था से ही दीक्षा की भावना होने के बावजूद माता-पिता की ढील के कारण उत्साह दब गया। किन्तु शादी के बाद भी उसका दही बन्द था। उसे हमारे घर. के वातावरण में आराधना का सुन्दर वेग मिला, जिससे ही छोटे पुत्र जसवन्त को दीक्षा दिलाने में सभी सम्मत हुए थे।
उस समय मेरी दीक्षा की भावना होने के बावजूद छोटा पुत्र महेन्द्र पाँच वर्ष का होने के कारण थोड़ा समय रुककर गृहस्थ जीवन में ही हो सके उतनी सुन्दर आराधना में करता था। | पुत्र महेन्द्र को भी नवाणु यात्रा के समय विधि पूर्वक एवं भक्ति पूर्वक आराधना से वैराग्य वृद्धि, हुई दीक्षा लेने की भावना हुई। मैट्रिक की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर धार्मिक अभ्यास हेतु पाटण रुका और पंच प्रतिक्रमण-प्रकरण-भाष्य आदि का अभ्यास किया। उसने प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने का एवं गर्म पानी पीने का प्रारम्भ किया।
मेरी दीक्षा संवत् 2023 में तय हुई और उस समय महेन्द्र तथा उसकी माँ की तीव्र इच्छा न होने के कारण उनको छोड़कर मेरी दीक्षा का मुहूर्त निकलवाया। उस समय मेरी एक भत्तीजी की भी भावना थी।
हम दोनों समाज के रिवाज के अनुसार बन्दोले खा रहे थे और अन्तिम महीने के दिनों में महेन्द्र एवं उसकी माँ भी हमारे साथ दीक्षा लेने को तैयार हो गयी। साथ में एक भत्तीजी जो इस साल ही शिखरजी की यात्रा करके आयी थी, उसकी भी हमारे साथ ही दीक्षा लेने की भावना होने से हम पांचो की दीक्षा सं. 2023 माघ सुदि 10 को तय हुई।
एक ही परिवार की पाँच दीक्षा होने से गाँव में खूब उत्साह था। आमंत्रण पत्रिकायें गाँवों गाँव भिजवाई गयीं। साथ-साथ में गाँव वालों ने अपने अपने सगे-सम्बन्धियों को पत्र लिखे कि, 'ऐसा अनुपम अवसर बार-बार देखने को नहीं मिलता हैं। और हमको कहते कि, 'चाहे जितने मेहमान आयें, उनकी व्यवस्था के लिये हम सभी खड़े पैर तैयार हैं। ___ महोत्सव माघ सुदि 3 से प्रारम्भ हुआ। प्रतिदिन पूजा, आंगी एवं
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - भावना होती थी। गायक खूब भक्ति जमाते थे।
पूजारी बसरामभाई ने माघ सुदि 8 के दिन मुझे पूछा कि, 'आज कितनी आंगी करूं?' मैंने कहा कि, 'नीचे मूलनायक भगवान तथा दोनों बड़े जिनबिम्बों की करना।' उसने उस प्रकार की। माघ सुदि 9 को वरघोड़ा और सन्मान पत्र का कार्यक्रम था। उस कारण पूजारी ने पूछा कि, 'आज कितनी आंगी रचाऊं?' मैंने कहा, "नीचे तीन भगवान और ऊपर मूलनायक भगवान की रचाना।"
प्रतिदिन बाकी के सभी जिनबिम्बों को बरक लगाता था। उस प्रकार सभी जिनबिम्बों की अंग रचना करके पूजारी ने नीचे बोर्ड के ऊपर लिखा कि, "ऊपर आंगी है, इसलिये दर्शन करने पधारना।" | हम सभी वरघोड़े के बाद नवकारसी के कामकाज में लाभ ले रहे थे कि दो आदमी आंगी मुकुट सहित लेकर भाग गये।
उसके बाद एक श्राविका ऊपर दर्शनार्थ गयी और आंगी न देखने पर नीचे आकर पूजारी को कहा कि 'तुम लिखते हो कि ऊपर आंगी है। |किन्तु आंगी कहाँ रची है?'
पूजारी ने कहा, 'मैंने रची है, फिर ऐसे कैसे हो सकता है?' ऊपर जाकर देखा तो आंगी-मुकुट गायब! तुरन्त नीचे आकर सूचना दी कि"आंगी चोरी हुई है।" मुझे समाचार मिलते ही दुःख हुआ कि मेरे कहने से ही आंगी रचाई और गयी तो मेरी जिम्मेदारी है, यह समझकर मैंने बहुत ही भाव पूर्वक नवकार मंत्र का स्मरण किया। फिर गांव के एवं मेरी दीक्षा के प्रसंग को दिमाग में रखकर सोचा कि इस गांव का कोई व्यक्ति | ऐसा कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मेरा जीवन इस प्रकार का था। सभी के साथ मेरा प्रेम ऐसा था कि मेरी दीक्षा के समाचार से सभी को दुःख होता था कि अब कैसे होगा। इसलिए मुझे कहते थे कि, "आप तो बिना दीक्षा ही, दीक्षा जैसा जीवन जी रहे हैं फिर किसलिए दीक्षा ले रहे हैं? हमारा क्या होगा?" तब मैं कहता, "यदि मैं दीक्षा के बाद प्रमादी बनुं तो कहना कि
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? घर में रहकर भी तीन चार घन्टे आराधना करते थे, तो उसे कैसे प्रमादी बने?"
छोड़कर
अब आंगी के समाचार गांव में फैल गये। पुलिस को बात की और कहा " इस गाँव में कोई ऐसा नहीं होगा, किन्तु बाहर से आये गये लोगों की जाँच हो तो ज्यादा अच्छा। पुलिस अधिकारी भी समझ गया । तुरन्त गाड़ी मंगवाकर अधिकारी तथा दूसरे तीन-चार आदमी बैठे और बड़े स्टेशनों पर समाचार देने निकले। "
उस समय टेलीफोन वगैरह की व्यवस्था नहीं थी। आश्चर्य की बात यह हुई कि जो दो आदमी आंगी चुराकर ले गये वह दसाड़ा - चौराहे पर किसी ट्रक द्वारा पहुँच गये थे और उन्हें तत्काल दूसरे किसी गांव भागना था। पुलिस की गाड़ी को दूसरी गाड़ी समझकर इन दोनों ने हाथ ऊँचाकर रोकने की सूचना दी। पुलिस ने भी ऐसे अनजान लोगों को देखते ही गाड़ी रोक दी। पुलिस को देखते ही एक चोर भागा, दूसरा भागता उसके पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया और थैली में देखा तो आंगी - मुकुट थे । तुरन्त ही पुलिस अधिकारी चोर तथा आंगी लेकर आये।
हम प्रतिक्रमण करके आये, वहां समाचार मिले कि आंगी मिल गयी है। यह चमत्कार देखकर सभी आश्चर्य मुग्ध - बन गये ।
वास्तव में यह नवकार मन्त्र का ही प्रभाव था । यदि आंगी नहीं आयी होती तो दीक्षा की उमंग भंग हो जाती। किन्तु चमत्कार से आंगी आ गयी और उत्साह में और अभिवृद्धि हुई।
इस चमत्कारिक घटना के बीच हमारी दीक्षा अत्यन्त आनन्द - उत्साह के वातावरण में सम्पन्न हुई।
नवकार मंत्र की विशुद्व आराधना द्वारा सभी आत्म श्रेय साधें, यही मंगल कामना ।
लेखक - पू. आ. विजय भद्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पू. मुनि श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा.
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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यह पथ दर्शक कोन होगा?
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मैंने छः वर्ष की कोमल वय में मातृश्री वेजबाई के साथ दीक्षा ली थी। कच्छ-डुमरा के रहने वाले हमने ललाट में चारित्र धर्म का सौभाग्य प्राप्त किया। मेरे 86 वर्ष के दीक्षा पर्याय में वर्तमान में 92 वर्ष की वृद्ध उम्र है। फिर भी पाँचों इन्द्रियों की मजबूती, शरीर सम्पति का अपूर्व वैभव 25 वर्ष के युवान को भी शर्माता है। वह सभी प्रभाव यदि किसी का है तो वह प्रकट प्रभावी पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध का ही है।
नवकार मन्त्र के प्रबल प्रभाव से मेरे मन में जो-जो भावनायें होती हैं, वे सभी मानो अनायास ही पूर्ण हो जाती हैं। छः वर्ष का बालमानस...संसार की भौतिकता का जहाँ स्पर्श भी नहीं हुआ, ऐसे अभी तक के सयंम जीवन में कभी रत्नत्रयी की आराधना में स्खलना नहीं आयी। सभी भावों की सिद्धि का साधन है, केवल मन्त्राधिराज। संसार अटवी को निर्भय रूप से पार करने का मार्ग अर्थात् नवकार मन्त्र...। ___मैंने 86 वर्ष के संयमी जीवन में गाँव-गाँव विहार करते कितने ही तीर्थों की यात्रा की। जीवन को सम्यग् दर्शन से निर्मल बनाया। हम एक बार परम तारक तीर्थकर भगवन्तों के कल्याणकों की भूमि बिहार प्रान्त में विहार कर रहे थे। उस समय आज की तरह रोड़, रास्ते नहीं थे, जिससे गहन जंगलों से गुजरना पड़ता था। हम भयंकर जंगल में जा पहुंचे। चारों ओर से जंगली जानवर दौड़-भाग करते हुए जैसे बैण्ड बाजों से सामैया न कर रहे हों, वैसा आभास हो रहा था! मानव के पदचिह्न का नामोनिशान |दृष्टि पर नहीं आ रहा था। दूर-सुदूर नजर डालते मानो आँखें बाहर न आ गयी हों ऐसा लग रहा था। हम रास्ता भूल गये थे। वन की वनस्पतियां भी मानो नाराज हो वैसे काउस्सग्ग ध्यान में स्थिर हो गयी थीं। पवन-देव तो अदृश्य हो गये थे। ऐसे घोर जंगल में स्त्री की कितनी ताकत? आखिर तो नारी अबला ही है ना? हदय की धड़कन बढ़ गयी। सहवर्ती श्रमणी वृन्द आकुल व्याकुल बन गया। सभी ही हिम्मत हार जाते तो, कौन
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - किसको आश्वासन देता? अन्त में मैंने सभी को सांत्वना दी और उपधि-पातरे उतारकर दृष्टि पडिलेहण कर के सभी श्रमणियाँ भूमि पर बैंठी। हम एकाग्रचित्त से मन्त्राधिराज नवकार के ध्यान में लीन बन गये। हमने अरिहन्त-सिद्ध आदि पंच परमेष्ठी की शरण रूप, भवजलधि तारक तिनका पकड़ लिया। नवकार को सर्वस्व बना दिया। अभी तो 5-10 और |15 मिनट हुए ही नहीं, इतने में तो हमने कोई मानव नजदीक आते देखा। वह पास में आकर तुरन्त ही सीधे मार्ग पर चढ़ाकर अदृश्य हो गया। कहाँ गया, उसका कुछ भी पता नहीं चला!
स्वप्नवत् सभी कार्य हो गया। कौन होगा? कहाँ से आया? घोर अटवी में आना... अदृश्य हो जाना...मैं यह सभी जब विचार करती हूँ, तब मस्तक झुक जाता है, नवकार महामंत्र की शरण में।
मेरा नवकार मन्त्र के 'अजपाजाप' से जीवन आगे बढ़ रहा है। एक बार शंखेश्वर जाते हम रास्ता भूले। वहाँ एक घुड़सवार आकर पथ बताकर अदृश्य हो गया। ऐसे-ऐसे अनेक चमत्कारों से महामन्त्र नवकार और जैनशासन के प्रति अपूर्व श्रद्धा ज्यादा दृढ़ बनती है। वैराग्य भाव की वृद्धि होती है।
लेखिका- सा. श्री नेमश्रीजी (साबरमती) "जीभ में अमी वापिस आ गयी!"
हम संवत् 2029 के वर्ष का वांकानेर चातुर्मास पूर्ण करके संवत् 2030 में विहार कर शीतकाल में मोरबी आये। वहाँ अचानक मेरी तबीयत बिगड़ने पर (सर्दी,बखार) डॉक्टर की सेवा ली। डॉक्टर अति तेज असर वाली दवा देकर रोग को फुर्ती से काबू में लेना चाहते थे। अति तेज असर वाली दवादयों से रीएक्शन हुआ। रात को एकाएक जीभ सूख गयी एवं अन्दर खींचने लगी। मैंने जीभ को दांतों के बीच दबाकर रखी तो जीभ मोटी (जाडी ) होती गयी। मैंने मन में नवकार का स्मरण किया। दांत की पकड़ ढीली की तो वापिस वही खींचान। रात का समय होने से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पानी तो पिया नहीं जाता। सहवर्ती साध्वीजियों को जगाकर मेरी तकलीफ जताई। सभी घबराये, कहीं लकवा तो नहीं हो गया? उपाश्रय में एक गृहस्थी बहिन सोये थे। उन्होंने डॉक्टर को बुला लाने की बात कही। रात को डॉक्टर आये तो भी क्या? किन्तु बहिन न माने। वह डॉ. को बुलाकर लाये। डॉ. जैन ही थे। उन्होंने देखा और कहा, 'लकवा तो नहीं है, किन्तु क्या है यह समझ में नहीं आता।' दवा तो सुबह ही लेनी थी। डॉ. चले गये। जैसे-तैसे रात व्यतीत की। सूर्योदय के बाद उपचार किये। दिन में थोड़ा ठीक लगा। सूर्यास्त हुआ और चौविहार का प्रत्याख्यान किया। शाम का प्रतिक्रमण हुआ। और वापिस वही तकलीफ शुरू हुई। मुंह में थूक ही नहीं और जीभ खींचने लगी। अब क्या करना? पोष माह की ठण्डी व लम्बी रात! सभी मेरे पास आकर बैठ गये। मैंने कहा, "चिन्ता मत करो। नवकार की धून मचाओ।' में भी एक से ध्यान नवकार मन्त्र की आराधना में जुड़ गयी। संथारा एवं स्व-आत्म-आलोचना कर ली। वापिस मन नवकार मन्त्र में जोड़ दिया। शायद प्राण जाये, तो भी मैं चिन्ता रहित थी। मौत भूला न दे इसलिये में सावधान थी। धून चालु ही थी। एकाएक रात को 11 बजे मुंह में अमी आ गया। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने सभी से कहा, "नवकार मन्त्र के प्रभाव से मेरे मुँह में अमी आया है। अब तुम चिन्ता मत करो!" किन्तु इस प्रकार प्रतिदिन होने लगा। रोज की तकलीफ और रोज का नवकार मन्त्र का जाप! मेरी गुरुबहिनें एवं संसारी बहिनें जाप आराधना करती थीं। परिस्थिति चिन्ताजनक थी। अन्त में मोरबी के तमाम डॉक्टरों तथा वैद्य की भी सेवा ली, किन्तु तकलीफ दूर नहीं हुई।
संघ ने राजकोट से डॉ. बुलवाने का कहा, किन्तु मैंने कहा, "नहीं, अब डॉ. को बुलाना नहीं है। तुम्हारी बहुत अभिलाषा हो तो नवकार का नौ लाख का जाप करवाओ।" 65-70 बहिनें जाप में जुड़ीं। प्रतिदिन सतत चार घण्टे जाप होता था, नौ दिन में जाप पूरा हुआ और मुझे भी ठीक हो गया। आज बिल्कुल अच्छा है। जय हो अमी दाता महामन्त्र नवकार की।
लेखिका- सा. श्री मीना कुमारी (लीबड़ी सम्प्रदाय)
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
नवकार से अभिमन्त्रित रजोहरण का चमत्कार
थाणा जिले में वसई ( माणेकपुर) में बिजली की सप्लाई कभी खराब हो जाती है। ई. स. 1998 में डॉ. देसाई के भानजे एक ऑपरेशन अधूरा रहने के कारण पावर हाउस पर पूछने गये कि, 'लाईट कब आयेगी। पुलिस ने उसके ऊपर लाठी और बन्दूक के प्राणघातक प्रहार कर मौत की शरण में भेजा। पुलिस के अत्याचार से मृत्यु होने के बावजूद श्मशान यात्रा शान्त रही, किन्तु पुलिस ने ही युवानों को छेड़ा और दंगा हुआ। क्रुद्ध युवकों का टोला एवं पुलिस धर्मस्थानक के आगे आमने-सामने आ गये। धर्मस्थानक को मन्दिर समझकर पुलिस ने उसके ऊपर पत्थर की मार की। हो हल्ले की धड़ाधड़ से धर्मस्थानक में विराजते पू. मुनिश्री जगदीश मुनिजी नीचे आये तो पुलिस ने मुनिश्री के ऊपर भी लाठीचार्ज किया । म.सा. ने पंच परमेष्ठि की आराधना कर रजोहरण को पुलिस के ऊपर फेंका और पुलिस भाग गई। किन्तु म.सा. पर लाठी चार्ज की बात से बाहर तनाव बढ़ गया। संघ के कार्यकर्ता एवं गांव के मुख्य लोग वगैरह तुरन्त म.सा. के पास पहुंच गये। किन्तु उनको निजानन्द में मस्त देखकर वे दिविमुढ़ हो गये। सभी मुख्य लोग मिलकर पुलिस चौकी गये । पुलिस तथा वसई के नेता ताराबाई वर्तक ने पू. मुनि श्री से माफी मांगी। यह समाचार 'जन्मभूमि', 'प्रवासी' तथा 'नवशक्ति' वगैरह अखबारों में दि. 13.10.84 के दिन प्रकाशित हुए थे।
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अभयदाता श्री नवकार
दि. 18.09.1983 बकरी ईद का दिन था। घाटकोपर सांघाणी एस्टेट उपाश्रय के पास में रास्ते पर नवकार मंत्र का स्मरण करते प्रातः स्मरणीय पू. जय- माणेक प्राण तपस्वीजी महाराज के सुशिष्य निडर, स्पष्ट तथा सत्य वक्ता पू. जगदीश मुनि बकरियों के समूह के पास आकर खड़े रहे। वे वहां आगे खुल्ले में होने वाली निर्दोष बकरियों की कत्ल रोकने तथा
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- -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? निर्दोष जीवों को बचाने के ध्येय के साथ अडिग निश्चय के साथ उनकी कत्ल नहीं करने के लिए समझा रहे थे। वहां एक अलमस्त हष्टपुष्ट आदमी हाथ में छुरा लेकर घुस आया। पू. म.सा. अडिग रहे। उन्होंने लेश मात्र भी घबराये बिना उस आदमी को समझाने का प्रयत्न किया। विनति की, किन्तु वह जरा भी मानने के लिए तैयार नहीं था। तब महाराज साहब ने दूसरी बार विनती की कि, "इस प्रकार खुली कत्ल करना कानूनी अपराध है। हिन्दुओं के सामने इस प्रकार खुली कत्ल नहीं की जा सकती है। साधु सन्तों का नहीं मानोगे तो परिणाम अच्छा नहीं आयेगा।"
कसाई ने गुस्से में आकर पू. म.सा. के ऊपर छ: इन्च लम्बा तथा दो इन्च चौड़ा छुरा फेंका। बचाव के लिए म.सा. ने सामने रजोहरण धरा। म.सा. जान बचाने के लिए भागने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने वहां से जरा भी डिगे बिना महामंत्र नवकार का स्मरण करते हुए रजोहरण छुरे के सामने किया। छुरा गिर गया। म.सा. ने बदले की भावना से आये हुए कसाई के ऊपर रजोहरण घुमाया और वह अलमस्त धरती पर ढल गया। वह पौने दो घंटे तक. बेहोश पड़ा रहा। म.सा. के पास ऐसा कोई हथियार या साधन नहीं था कि जिससे वह पीड़ित हो और होश गुमा बैठे। केवल नवकार मंत्र का जाप, शुद्ध चारित्र, सत्य आचरण, मूक जीवों के प्रति अनुकम्पा, यह उनका बल था। वे नवकार मंत्र का जाप करते-करते उपाश्रय में वापस लौटे। मामला ज्यादा उत्तेजित बने या आसपास में रहने वालों को परेशानी न हो उसके लिए श्रावकों ने पुलिस में सूचना दी और लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस संरक्षण मांगा। परन्तु पुलिस ने कोई सहानुभूति नहीं दिखाई।
वह पहलवान जैसा आदमी, जिसने पू. म.सा. पर छुरे का वार किया था वह रजोहरण के स्पर्श होते ही बेहोश होने पर वहां खड़े दूसरे लोग रफ्फुचक्कर हो गये। उनको बिना काम के लफड़े में पड़ना पड़ेगा, ऐसा डर लगा।
वहां उतने में दूसरे मौलवी आये। अपनी नजर से यह घटना न
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? देखने वाले मौलवी चमक उठे। पुलिस बुलवायी। पू. म.सा. पर आरोप लगाया कि "इस महाराज ने हमारे आदमी को पीटकर बेहोश कर दिया है।" किस कारण पिटाई की, उसकी जांच करने पुलिस उपाश्रय आयी। पू. महाराज साहेब ने अपना हथियार बताया। रजोहरण देखकर पुलिस आश्चर्य व्यक्त कर हंसने लगी। सभी मौलवियों ने रजोहरण हाथ में लेकर देखा। बराबर जांच की, सभी ठण्डे हो गये। पुलिस तथा सभी मौलवियों ने महाराज से माफी मांगी। पू. महाराज साहब ने तुरन्त बेहोश पड़े पहलवान के पास आकर फिर से नवकार मंत्र का स्मरण करके चत्तारि मंगलं का मांगलिक सुनाते वह पहलवान होश में आते ही पू. म.सा. श्रीजगदीशमुनिजी के चरणों में गिर पड़ा। बकरियों का वृन्द छोड़ दिया गया। एक भी बकरी काटी नहीं गयी। सलामती के लिए पुलिस पूरा दिन वहां बैठी रही, मगर कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। बड़ी संख्या में बकरियों को सौराष्ट्र की पांजरापोल में रवाना कर 450 बकरियों के जीवों के अभयदाता बने।
यह सब चमत्कार बताने के लिए नहीं था। जान को जोखिम में डालकर पू. जगदीश मुनि श्री द्वारा किया गया यह कार्य "अहिंसा परमो धर्मः" को चरितार्थ करने के लिए था। उसमें नवकार मंत्र का प्रभाव था, शासन देव की सहायता थी और पू. जय-माणेक-प्राण तपस्वीजी जैसे गुरु की, निडर सत्यवक्ता, शासन की शान बढ़ाने वाले पू. जगदीश मुनिश्री को आशिष का फल है।
लेखक - बाबुलाल ए. सेठ
माला सुनहरी हुई, सुगंध से महक उठी
- थोड़े वर्ष पूर्व जब नौ ग्रह साथ में होने की बात थी, तब अफवाहों का बाजार तेज चल रहा था। स्थान-स्थान पर भय को टालने हेतु धार्मिक अनुष्ठान होने लगे। स्थानक में अखण्ड जाप में मैंने भी नाम लिखवाया। मुझे जल्दी सवेरे सबसे पहले शुरूआत करनी थी। दो चार दिन तो
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पिताजी साथ आये, किन्तु प्रतिक्रमण करने इतना जल्दी कोई नहीं आता। इसलिए इनको एक घंटा बैठा रहना पड़ता। यह मातृश्री को अच्छा नहीं लगा और एक शाम उन्होंने कहा "कल से तुम्हें जाप करना हो तो अकेली चली जाना। कोई छोड़ने नहीं चलेगा।" में माताजी के कठोर शब्दों से रोयी। फिर भी शान्त होकर नवकार गिनते सो गई। मैं दूसरे दिन प्रतिदिन के अनुसार तैयार होकर नवकार गिनते चली गयी। भय तो साथ में ही था। जैसे ही स्थानक के दरवाजे को हाथ लगाया, वहां एक जोरदार आवाज आयी। मैं भयभीत होकर सीधी दौड़ी। स्थानक में विराजमान महासतीजी प्रेमकुंवरबाई स्वामी तथा कंचनबाई स्वामी ने मुझे पकड़ लिया। प्रेम से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए नवकार सुनाने लगे। थोड़ी देर में ही मैं स्वस्थ हुई। उन्होंने हकीकत पूछी। मैंने कहा, "आपने कुछ भी नहीं सुना?" उन्होंने कहा, "नहीं, हमने तो केवल तेरी चीख ही सुनी।" मैंने कहा, "मुझे डराने कोई पीछे पड़ा था।" उन्होंने कहा, "अच्छा बेटा! अब डर मत रखना। नवकार मंत्र के पास किसी की ताकत नहीं है। चल अब जाप में बैठ जा।" पन्द्रह मिनट में भय शान्त हुआ। जाप में स्थिरता आई। वहां तो माला के मणके सोने के बनते गये। अन्त में मेरू भी सोने का बन गया। माला सुगन्ध से महक उठी। एक घंटे बाद दूसरी बहिन ने माला हाथ में ली तब मेरे दिल में भय का नामोनिशान नहीं था। हदय में अपूर्व शान्ति थी।
फिर दूसरा दिन आया। घर से निकली और डर लगा। नवकार मंत्र याद आया। मैंने गली के बाहर पैर रखा और कुत्ता साथ में हो गया। मुझसे सहसा बोला गया, "भाई तू चला जा। दूसरी गली के कुत्ते तुझे हैरान करेंगे।" वह मूक भाषा में पूंछ हिलाता हुआ स्थानक तक रक्षक के रूप में साथ चला। स्थानक आते मैंने कहा, "भाई! अब जा।" पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं था। 21 दिन निरंतर ऐसा हुआ। जाप अखण्ड रहा वैसे सुगन्ध भी अखण्ड रही। उसके ही प्रभाव से मेरी संयम की भावना जाग्रत हुई।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
MBERS
अन्यायी लेख का अन्त आया!
वर्षों पहले कच्छ-भुजपुर में किसी भी सम्प्रदाय में कहीं भी चातुर्मास न हो, ऐसा ताम्बे के पत्र पर लेख था।
यह बात 1977 में आठ कोटि मोटी पक्ष के जेतबाई स्वामी के मन में आयी। उन्होंने इस अन्यायी लेख को मिटाने का दृढ़ संकल्प किया। आषाढ़ी पूनम को कुछ श्रावक-श्राविकाओं की व्यक्तिगत सहायता से भुजपुर चातुर्मास हेतु प्रवेश किया। विरोधियों ने तय किया, किसी भी परिस्थिति में गाँव में साध्वीजी को रहने नहीं देना है, गाँव के बाहर निकालना है। उन्होंने भुज-अंजार-मुन्द्रा से सरकारी अधिकारियों को बुलाकर धमकीयाँ दीं। वातावरण उग्र बनता जा रहा था, किन्तु महासतीजी तो अत्यन्त स्वस्थता से नवकार के जाप में लीन थे। अन्त में महासतीजी ने रास्ता निकाला। उन्होंने कहा, "साधु पक्खी प्रतिक्रमण करने बाद गांव नहीं छोड़ सकते। ऐसा साधु का आचार है। इसलिये यदि हमको गाँव में नहीं रहने देना चाहते हो, तो हम चार ठाणे हैं। हम प्रत्येक को साढ़े तीन हाथ की जमीन दे दो। हम देह त्याग कर देंगे। इस प्रकार मरकर जा सकते हैं, जिन्दा नहीं। तो अब आपको, जो योग्य लगे वह करो।" ___सत्य का जय हुआ। आदेश मिला, सुख से बिराजो सतीजी। किन्तु द्वेषी आत्माओं ने अपना काम चालु रखा। वे उपाश्रय के बाहर अनाज के दाने बिखेर कर जाते। हरी घास डालकर जाते। जिससे महासतीयाँ बाहर नहीं जा सकें। किन्तु भाविकों ने पूरी सेवायें दीं। वह अनाज के दाने पक्षियों को डालकर आते और घास-चारा जानवरों को। अन्त में हैरान करने वालों ने थककर सांवत्सरिक क्षमापना की। वास्तव में सत्य का जय हुआ। अन्यायी लेख का अन्त हुआ। परिणाम स्वरूप भुजपुर में प्रतिवर्ष अच्छे चौमासे होते हैं। वहां अनेक तपस्वी एवं संयमी आत्माएं पैदा हुई हैं।
लेखिका-सा.श्री सुनन्दाबाई महासतीजी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - 70 सांप का जहर उतर गया
" (दिनांक 22.7.79 के "संदेश' दैनिक पत्र में 'अगोचर मननी अजायबी' विभाग में प्रकाशित हुए उपरोक्त लेख का कटिंग श्री मणिलालभाई पी.मेहता (कांदीवली-मुम्बई) ने भेजा, जो यहां साभार पेश किया जा रहा है- सम्पादक)
बहुत वर्ष पहले की बात है। तब जयराम भाई एक छोटे से गांव की शाला में शिक्षक थे। अपने गाँव से चार मील की दूरी पर आयी इस गाँव की शाला उन्हें इसलिए अनुकूल लगी कि अपने गाँव के घर में ही रहकर वे नौकरी के लिए आना जाना कर सकते थे। दो रसोड़ों के स्थान | पर एक ही होना, यह लाभ भी लेने जैसा था।
बाप-दादाओं की समृद्ध परम्परा में एकाएक पलटा आया, इस कारण जयराम भाई को ऐसा गणित बिठाना पड़ा था। बाकी यदि वह रिद्धि सुरक्षित रही होती या अपने छोटे-छोटे भाइयों को पढ़ाने की जिम्मेदारी न होती तो इस अकेले आदमी को ऐसे आंकड़ों में रस कहां से होता!
__ जयरामभाई जहां नौकरी करने जाते थे, उस शाला में इनके गांव के लड़के-लड़कियां भी पढ़ने जाते थे, इसलिए जाते एवं आते इनके साथ एक बड़ी वानर सेना साथ में रहती। बोरड़ी को हिलाकर बोर खाता-खाता या झाड़ पर हा-हू करता सामने दांत निकालता यह वृन्द जयराम भाई के | निर्देशन में शाला आता-जाता था। इस टोले में पांचवी कक्षा के बच्चों से लेकर ग्यारहवीं कक्षा के मुंछ के बाल उगे न हों ऐसे और आधी पेन्ट के गणवेश में शरमाते संकुचाते लड़के भी होते थे। जयरामभाई को भी इस हा-हू करते लड़कों की टोली के बीच आनन्द आता, उन्हें इसमें अपना बालपन ऐसा का ऐसा बिना मुरझाया हरा भरा लगता था।
जयरामभाई जाते और आते लड़कों को हंसी मजाक में व्यवहार के तरीके, आदि की बातें करते। किसी दिन संस्त के श्लोकों की रिमझिम रहती, तो किसी दिन अन्ताक्षरी का खेल खेला जाता।
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
हंसते खेलते बालकों के बीच गंभीर प्रकृति के जयराम भाई हलके फुलके बने रहते। वह भारतीय संस् ति, भारतीय जीवन की परम्पराएं, ईश्वर के प्रति श्रद्धा, प्रार्थना - स्तुति, मंत्रपाठ ऐसे अनेकों गंभीर विषयों के साथ विचित्र पहेलियाँ, विनोदी चुटकले एवं गणित के खेलों की चर्चा भी करते रहते। वह चलता - घुमता एक वर्ग ही हो ऐसे शाला से आते जाते इन सभी बातों का ज्ञान इन बच्चों को जाने-अनजाने में ही देते थे। आज तो शायद ही देखने को मिले ऐसी गहरी आत्मीयता शिक्षक एवं विद्यार्थियों के इस टोले के बीच जुड़ी हुई थी।
जयरामभाई अपने विषय के निष्णात थे ही, लेकिन धर्म के प्रति अनुपम अनुराग के कारण इन्होंने धर्म चिन्तन की अलग-अलग शाखा प्रशाखाओं का वांचन किया था। उसमें मंत्र तंत्र एवं योग | आराधनाओं का भी समावेश था। इतना ही नहीं, हिन्दु सन्तों, जैन साधुओं एवं मुसलमान पीर- फकीरों के प्रति इनका एक समान आदर था। इन सभी बातों के संस्कार बालकों के ऊपर सतत श्रवण से दृढ़ होते जाते थे।
ऐसे ही एक दिन की बात है। बालकों का बड़ा टोला जयराम भाई के साथ-साथ हंसी मजाक करता सुबह 10 बजे के पास घरों के बीच से गुजर रहा था। वहाँ सामने कंधे पर पंलग उठाकर आठ दस लोगों का टोला इनको मिला। कौतूहल से लड़के उंची गर्दन करके खड़े हो गये ।
किसी आदमी को साँप ने काटा था। जहर चढ़ने के बाद वह बेहोश हो गया था । उसका जहर उतारने के लिए उसके सगे-सम्बन्धी किसी प्रसिद्ध गारूड़ी के पास उसे पलंग पर डालकर ले जा रहे थे।
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एक लड़के ने जयरामभाई से अचानक प्रश्न किया, 'काका! गारूड़ी जहर किस प्रकार निकालता होगा?" लड़के जयरामभाई को काका कहते थे। दूसरे एक बड़े लड़के ने अपना ज्ञान दर्शाने के लिए, काका बोले उससे पहले ही जबाब दिया, 'मंतर मारकर ।' सभी लड़कों के कान सतर्क हो गये, काका क्या कहते हैं? किन्तु काका कुछ ही नहीं बोले । इनके मौन से जैसे बदला चुकाना हो, वैसे प्रश्न पूछने वाले लड़के ने
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? 'काका मंतर तो आपको आता है,
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कहा,
न!" चुपचाप खड़े लड़कों के टोले में से सभी कहते हैं, 'काका आप ही जहर
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पड़ेगा। "
आप सांप का जहर उतार दो जोर से बड़ी आवाज फूट पड़ी। उतारो ना, आपको उतारना ही
इतने शोर से पलंग उठाकर जाते वे लोग रुक गये। एक दो लड़के दौड़कर उन्हें बुला लाये। लड़कों ने अब जिद्द पकड़ ली थी, काका को अब कुछ करना ही पड़े वैसा ही था, इसके बिना लड़के उनका पीछा छोड़ें वैसे नहीं थे।
जयरामभाई ने मुख्य मार्ग को छोड़कर, पास के खेत में पलंग ले लेने की ने सूचना दी । लड़कों का टोला भी छोर पर से खेत में घुसा और बीच में रखे पंलग से थोड़े दूर सभी गोला बनाकर खड़े रह गये | M
जयरामभाई ने कभी ऐसा प्रयोग किया नहीं था। वे जहर उतारने का गारूड़ी मंत्र भी नहीं जानते थे, किन्तु इन्हें नवकार मंत्र पर गजब की श्रद्धा थी। इन्होंने इष्टदेव का स्मरण कर नवकार मंत्र पढ़ना शुरू किया। सभी देखने वालों की जैसे सांस रुक गयी थी। सभी देखने वाले जैसे निष्प्राण पुतलों की तरह खड़े थे। हवा रुक गयी थी। पक्षी भी जैसे चहचहाहट भूलकर अनुशासित रुप से चुपचाप खड़े मानव टोले को सहकार दे रहे थे। जयरामभाई के होठ हिल रहे थे, किन्तु मन्त्रोच्चार मन में होता था ।
स्तब्ध और चित्रवत् बनी हुई इस सृष्टि में थोड़ी देर बाद कुछ संचार हुआ। पंलग में सिर पर वस्त्र ओढ़ाया हुआ वह सोया हुआ लड़का जैसे थोड़ा हिला । फिर थोड़ी देर में उसने करवट बदली, और उसके बाद अचानक खड़ा होकर उल्टी करने लगा। कितनी ही देर तक वह उल्टियाँ करता रहा। थोड़ी देर उसकी आंखें स्थिर हो गयीं। वह वस्त्र से मुंह पोंछकर पंलग पर से खड़ा हुआ । उसका जहर उतर गया था।
आज भी जयरामभाई को तो यह सब किस प्रकार बना वह आश्चर्य रूप ही लगता है। किन्तु उस समय जो बच्चे थे और अब बड़े
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? युवक बने हैं, वे कभी जयरामभाई से मिलते हैं तब यह घटना याद किये बिना नहीं रहते। तब उनकी आंखों में चमकता आदर का भाव जयरामभाई को गद्गद बना देता है। इससे नवकार मंत्र में इनकी श्रद्धा अधिक और अधिक दृढ़ बनती है।
"संदेश" साप्ताहिक में से।
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चिन्ता चूरक श्रीनवकार __ अचलगच्छाधिपति प.पू आचार्य भगवन्त श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में शिखरजी से सिद्धाचलजी महातीर्थ के छः'री' पालक संघ में दिनांक 11.3.85 चैत्र वदि पंचमी सोमवार को नित्य नियम अनुसार सुबह आबु जी पहाड़ पर चढ़ना प्रारम्भ किया। हम पहाड़ पर आबु देलवाड़ा और अचलगढ़ दर्शन कर आये। आबु से उसमें नये यात्रिक भी इसी संघ में जुड़ने वाले थे। जिसमें मेरे पिताजी और छोटी बच्ची सोनल (5 वर्ष) आये थे। ऊपर सभी मिले तब तो आनन्द हुआ, परन्तु दूसरे दिन 12.3.85 को वापिस तलेटी मुकाम होने से जल्दी नीचे उतर जाना था।
दिन की नित्य आराधना पूर्ण होने के बाद शाम को प्रतिक्रमण के पश्चात् नवकार मंत्र गिनकर सोने की तैयारी हो रही थी। परन्तु मेरे मन में एक बात ऐसी सता रही थी कि न किसी से कही जा सकती, न सही जा सकती। क्योंकि पिताजी की नजर एकदम कम थी। मुझे इतनी चिन्ता होती थी कि इतनी जल्दी प्रातःकाल में पिताजी का हाथ पकडूंगी या बच्ची को उठाकर चलुंगी? कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मुझे चिन्ता में सारी रात नींद नहीं आयी। मैंने पूरी रात नवकार मंत्र का ध्यान किया। मेरी चिन्ता परमेष्ठी भगवन्तों को सौंप दी। मन में तय किया कि, नवकार मेरी रक्षा करेगा। ___वास्तव में नवकार मंत्र से एक घटना बनी। सुबह का प्रतिक्रमण किया। वहीं माईक में सार्वजनिक सूचना सुनी कि, 'किसी को जल्दी
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विहार नहीं करना है। पू. मुनि श्री तीर्थरत्नसागरजी की बड़ी दीक्षा आबु तीर्थ में होगी। उसके बाद सभी प्रयाण करेंगे।' वह सुनकर मेरे दिल में कितनी शान्ति - कितना आनन्द हुआ होगा उसकी कल्पना करना मुश्किल है । परन्तु यह सारा प्रभाव महामंत्र का ही है। हमने बड़ी दीक्षा पूर्ण होने के बाद पहाड़ से उतरना प्रारम्भ किया। 5 वर्ष की बच्ची इतना चल नहीं सकती, परन्तु एक अक्षय खजाने का अनुभव होने से मुझे जरा भी डर नहीं लगा। बस नवकार मंत्र का स्मरण करते बच्ची को उठाकर पूरा पहाड़ उतर गयी । उसमें मुझे बिल्कुल थकान महसूस नहीं हुई। बल्कि हृदय में किसी अद्भुत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही थी। उसके बाद जीरावल्ला पहुंचे। वहाँ नये यात्रिकों को बेच, बिस्तर मिले। तब संघ के उप कन्वीनर श्री किरणभाई ने साफ कह दिया कि, "इतनी छोटी बच्ची संघ में नहीं चलेगी। इसे पहले घर छोड़कर आओ।" सोनल छोटी थी। फिर भी जब से यह घर से निकली, तब से इसे दादा के दर्शन की तीव्र इच्छा जगी हुई थी। वह हमको कहती, 'मम्मी मैं आपके साथ चलूंगी।' पालीताणा दादा के दर्शन करने की इसकी उत्कण्ठा बढ़ती जा रही थी। वह प्रतिदिन भगवान के दर्शन करते प्रार्थना करती, बाल भाषा में कहती कि, 'हे भगवान!' मुझे दादा के दर्शन करवाना। अरे... शाम को आचार्य साहब को वन्दन करने जाती तो वहाँ भी कहती कि " महाराज साहब ! मुझे ऐसे आशीर्वाद दो कि मैं दादा के दर्शन कर सकूं। मैंने बच्ची से कहा कि तू नवकार का रटन करती रहना, तो जरूर दादा के दर्शन होंगे।
शंखेश्वर तीर्थ आते ही
इसके बालमानस में यह बात ऐसी बैठ गयी थी कि कई बार रात को नींद में भी इसके होठ हिलते तो, " हे दादा-नमो अरिहंताणं... "शब्द निकलते। इस प्रकार हम शंखेश्वर तीर्थ आ पहुंचे। किरण भाई ने कह दिया कि, " आज बच्ची को ' भले ही।" परन्तु मुझे तो चिन्ता होती थी। इस ओर सोनल कहती, "मुझे घर छोड़ आओगे, तो मैं तुम्हें भी जाने नहीं दूंगी।" फिर तो हम दादा के दर्शन करने गये। वहाँ पूजा की और बस, दादा के ध्यान में बैठ
भेज देना।" मैंने कहा
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गये। थोड़े समय बाद मैंने आँखें खोलीं तो मेरे आश्चर्य के बीच में वहाँ मेरी फुफी ने बताया कि, हम तो पालीताणा दर्शन करने जाने वाले थे, रास्ते में तुम्हारे फुफा ने कहा कि "चलो शंखेश्वर जाकर आयें। संघ के भी दर्शन होंगे। रास्ते में विचार बदलते हम शंखेश्वर आये हैं। अब कल पालीताणा जायेंगे।" ऐसा चमत्कार देखकर मेरे आनन्द का पार नहीं रहा । बच्ची को फुफी के साथ पालीताणा भेज दिया। वहां दादा के दर्शन करने के बाद वह घर भी पहुंच गयी। वास्तव में नवकार है, वहां चमत्कार अवश्य होता है।
यदि यह स्मरण अविरत रूप से चालु रहे तो वास्तव में आत्मा का उद्धार हुए बिना नहीं रहेगा।
लेखिका - श्री रंजनबेन आणन्दजी गडा (गांव - कच्छ खारुआ वाले) हाल डोंबीवली (पूर्व) जिला- थाणा,
अनिष्टों को रोकने वाला महामंत्र नवकार
अनुयोगाचार्य पू. श्री खांतिविजयजी म.सा. का झींझुवाडा चातुर्मास वि.सं. 1983-84 में होने से दस वर्ष की उम्र में उनका समागम हुआ। बचपन में माता-पिता का स्वर्गवास होने से पिताजी के बड़े भाई वैद्य पानाचन्दभाईजी की छाया में उनके सभी धर्म संस्कारों के साथ नवकार मंत्र के प्रति अपूर्व श्रद्धा भेंट में मिली ।
पू. सुवहित मुनिवरों के अक्सर चातुर्मास तथा आचार्यों और उनके परिवार का जाना आना होने के कारण नवकार मंत्र के उपर प्रवचन, नवकार मंत्र की समूह आराधना एवं अति उत्तम साहित्य के वांचन, श्रवण, और मनन से श्री नवकार मंत्र के प्रति अविचल प्रेम जगा । जैसे जैसे मेरी नवकार मंत्र के जाप की मात्रा बढ़ती गयी वैसे वैसे नवकार मंत्र का अदृश्य बल प्रकट होने लगा। जिसके कारण जीवन का प्रत्येक पल जैसे नवकार के साथ बीत रहा है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? . निम्नलिखित छोटे-बड़े अनेक चमत्कारों ने नवकार के प्रति मेरी श्रद्धा में वृद्धि की।
मैं बचपन में मित्र के साथ कपड़े धोने गया था। कपड़े धोने के बाद तालाब में नहाने के लिए पड़े। स्नान की मस्ती में गहरे पानी का ख्याल नहीं रहा। हम डूबने लगे। यदि मदद न मिलती तो निश्चित ही डूब जाते किन्तु किसी अनजान व्यक्ति ने हम दोनों के हाथ पकड़कर बाहर निकाला। हम स्वस्थ होते उससे पहले ही वह आदमी चला गया!
संवत् 1995 के पोष सुदि 9 प्रभात में नवकार मंत्र का चमत्कारी योग देखा। परोपकारी पानाचंदभाईजी जिनकी पूरी जिन्दगी परोपकार में ही व्यतीत हुई थी, उनके छोटे भाई देवचन्दभाई की पत्नी अर्थात मेरे मातृश्री को सुबह छाणों के पिंजरे में से छाणे (गोबर का ईंधन) लेते दाहिने हाथ की तीसरी अंगुली में भयंकर काले नाग ने डंस दिया। वे बेहोश होकर गिर गये। भाईजी बिल्कुल घबराये बिना नवकार मंत्र का स्मरण कर जान को जोखिम में लेकर अपने मुंह से इस डंस का जहर चूसने लगे। डंस चूसते जाते और नमक के पानी तथा तिल के तेल के कुरले करते जाते। | इकट्ठे हुए सभी यह देखकर आश्चर्यमुग्ध बन गये। मातृश्री होश में आ |गये। मृत्यु का भय हट गया। चारों ओर से धन्यवाद की वृष्टि हुई।
भाईजी की आखरी अवस्था में संवत् 1995 के पोष सुदि 9 को | इनकी तबीयत खूब बिगड़ी। गला बार बार सूखने लगा। उन्होंने घर में | |सभी को कहा, "मेरे पीछे रोना नहीं।" सबने सहमति दी। रात में खांसी
और कफ की बहुत ही पीड़ा थी, किन्तु वह समता भाव में रहे। नवमी की रात को गले में कफ भर गया। वह निकल नहीं सका। दो चम्मच पानी पीने से कफ की पीड़ा कुछ शान्त हुई। प्रभात में चार बजे उठकर बैठ गये। धीरे-धीरे सभी सुन सकें वैसे नवकार मंत्र बोलने लगे। नवकार बोलते-बोलते बिस्तर में ढल पड़े। शरीर छोड़कर यह दिव्य आत्मा उर्ध्वगामी बनी। यह चमत्कार देखकर नवकार के प्रति इतना प्रेम जगा कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - एक बार बैलों की पीठ पर सामान रखकर बेचने वाले चलते फिरते कुछ व्यापारी बाहर गांव से आये। उनके साथ आये हुए गेहूं की आवश्यकता होने से देख रहा था। एक सिपाही ने आकर मुझे कहा, "तुमको थानेदार बुलाते हैं।" सिपाही साधारण ड्रेस में था। मैंने कहा,"अभी मैं काम कर रहा हूँ, इसलिए एक घण्टे बाद आऊँगा।" फिर तो मैं बात ही भूल गया। पन्द्रह-बीस दिन बाद बजाणा. मजिस्ट्रेट कोर्ट की
ओर से समन्स आया कि तुम पुलिस के कहने के बावजूद थाने नहीं गये, इसलिए तुम्हारे पर पुलिस केस हुआ है। तुमको लिखित दिनांक को कोर्ट में हाजिर होना है। राई से पहाड़ बन गया। मैंने तय समय पर बारह नवकार गिनकर कोर्ट के दरवाजे में प्रवेश किया। बहस शुरू हुई। नाम, गांव, जाति वगैरह लिखा। फिर पूछा, 'धन्धा क्या?' मैंने कहा, "मेडिकल प्रेक्टिश्नर।" और साहब ने हाथ में से पैन नीचे रखा और पूछा, "तुम गुनाह कबूल करते हो?" मैंने कहा, "साहब मैंने कोई गुनाह किया ही नहीं है।" फिर दस-बारह लाइनें लिख कर मुझे कहा, "तुम्हें निर्दोष घोषित किया जाता है।" पुलिस प्रोसिक्युटर को कहा कि "इनका व्यवसाय रजिस्टर्ड वैद्य के रूप में है। ये रोगी की जांच करते हों, रोगी के घर जाने की जल्दी में हों तो थाने में कैसे हाजिर हो सकते हैं? इतना ही नहीं तुमने भी कानूनी नोटिस नहीं दिया।" इस प्रकार मुझे निर्दोष घोषित |किया। । ऐसे छोटे-बड़े अनेक चमत्कारों ने मेरे हदय में श्री नवकार मंत्र के प्रति श्रद्धा को दृढ बनाया है। परिणाम स्वरूप आज सं. 2041 के प्रारंभ में मैंने 71 वर्ष की उम्र में 81 लाख नवकार का जाप पूर्ण किया है। एक करोड़ जाप पूर्ण करने की भावना शासनदेव पूर्ण करें यही प्रार्थना।
लेखक - वैद्यराज श्री कांतिलाल देवचन्द शाह मु.पो. झींझुवाड़ा वाया - विरमगाम पिन नं. - 382755
= गले की गांठ-गायब हुई
चूड़ा (सौराष्ट्र) के अ. सौ. समजुबेन खीमजी भाई पटेल के गले में
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अज्ञात गांठ निकली थी। गले में से पानी भी नहीं उतरता था। उस समय विलायती (अंग्रेजी) दवा या इन्जेक्शनों का ग्रामीण प्रजा में बिल्कुल कम प्रचार था। वैसे भी विलायती दवा नहीं लेनी, वैसी मान्यता थी। फिर भी| वे परिवार के आग्रह से 50-60 रू. के इन्जेक्शन और दवाई लेने को तैयार हुए। वहाँ हम विहार करते हुए चूड़ा पहुँचे। समजु बहिन अपने परिवार के साथ वंदनार्थ आये। मैंने औपचारिक वार्तालाप और धर्म ध्यान का उपदेश दिया। साथ में आये बहिन चन्दनबेन ने समजुबेन की पीड़ा की बात की। मैंने सहजता से कह दिया, "हम पटेल, किसानी शरीरवालों से विलायती दवाई, इन्जेक्शन लिये जा सकते हैं? दया धर्म कर महामन्त्र नवकार का स्मरण करो।" यह सुनकर बहिन ने मन में गांठ बांध दी। उन्होंने बहुत समझाने पर भी दवा नहीं ली। वे श्रद्धा पूर्वक नवकारमंत्र का स्मरण करते रहे। अजीब चमत्कार हुआ। उसी रात गले में आराम हो| गया। जहाँ पानी भी गले में नहीं जाता था, वहां सवेरे दूध ले लिया। शाम को खिचड़ी दूध और दूसरे दिन बाजरे की मोटी रोटी भी!!! "जलोदर शान्त हुआ"
भृगुकोट के एक राजपूत बहिन को जलोदर हो गया था। वैद्यों के अनेक उपचार करने के बाद भी फर्क नहीं पड़ा। हम विहार करके वहां गये तब बहिन ने अपनी पीड़ा की बात की। उन्होंने भावना व्यक्त की कि ऐसी पीड़ा से अच्छा है कि भगवान की भक्ति करके मर जाऊँ। उनकी श्रद्धा और भावना देखकर मन्त्र का पाठ करवाया। उनकी इच्छानुसार एकांतर उपवास करने की प्रेरणा की। अचित्त पानी वगैरह का ज्ञान करवाया। तीन माह तक एकान्तर उपवास, नवकार जाप तथा भक्तामर स्तोत्र की प्रभावी गाथा-उद्भूत जलोदर... की पूरी माला गिनने के बाद रोग चला गया। पीड़ा गयी। उसकी नवकार महामन्त्र पर श्रद्धा दृढ़ हुई। __"कुत्ते ने प्रतिक्रमण किया (पीछा छोड़ा)!"
____ कच्छ प्रदेश में अंजार से एक कि.मी. दूर विहार करते हुए साथ के साधु पीछे रह गये। एक बड़ा बाघ जैसा कुत्ता सामने आया। आगे के
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - दोनों पैर मेरी छाती पर रखकर वह मेरे चेहरे पर दांतों से काटने के लिए तैयार हो गया था। मैंने मौन होने से लकड़ी से दूर करने का निर्दोष प्रयास किया, किन्तु निष्फल गया। मैं जोर से नवकार बोलने लगा। कुत्ता घेरा छोड़ता ही नहीं था। में तेजी से भाग कर रोड़ की एक ओर बैठकर निर्भय मन से नवकार गिनने लगा। कुत्ता आक्रमण करना छोड़कर आश्चर्य के साथ पिछले पैरों से धूल उड़ाता चलता बना। "पीर की छाया दूर हुई"
पालियाद के एक युवान को मुसलमान पीर के स्थान से छाया लगी। वह घर आकर उर्दू भाषा में असंबद्ध वार्तालाप करने लगा। तीर्थकर भगवान एवं देवी का पाठ करते वह पीर शरीर में प्रवेश कर बोलने लगा, " मैं इसको नहीं छोडूंगा, मेरी जगह को इसने नापाक कर दी। मैं इसकी जान लूंगा। मैंने महामन्त्र नवकार का जाप कर प्रतिकार किया, "फिरस्तों को तो बच्चों की भूल माफ करनी चाहिये "इत्यादि कहा। अन्त में उसने कहा कि, "आप कहते हो इसलिए मैं चला जाता हूँ।" उसके बाद वह युवक स्वस्थ होकर आज मुम्बई में सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा है। उसके कहने के अनुसार पीर ने जाते-जाते कहा कि, "तुम्हारे गुरु एवं धर्म पर श्रद्धा रखना। जैन गुरु तुम्हारी रक्षा करने वाले हैं। अब मैं तुम्हें हैरान नहीं करूंगा।" "नाग भाग गया "
बोटाद के धर्मप्रेमी रसिकभाई गांडालाल वोरा (रेल्वे क्लर्क) वेगन में| खड़े रहकर रेल्वे के माल की नोट करते थे। उस समय वेगन के किसी। कोने में से निकले हुए भंयकर नाग ने उनके पैर को घुटनों तक लपेट | लिया। पेपर-पन्सिल हाथ में रह गये। रसिक भाई स्वस्थता से नवकार मन्त्र का स्मरण करने लगे। मजदूर चिल्लाने लगे। शेष रहे मजदूर कूदकर वेगन में से उतर गये, किन्तु वोरा साहब तो ध्यानस्थ योगी की तरह खड़े रहकर नवकार मन्त्र का जाप करते रहे। नाग पैर में से नीचे उतरकर वेगन से बाहर निकल गया। रसिकभाई अभी ऐसा ही मानते थे कि नाग पैरों में
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
लिपटा हुआ है। हकीकत में यह नाग के लिपटने का असर था। मजदूरों एवं अन्य दर्शकों ने पास में आकर सावधान कर आंखें खोलने को कहा, तब वे श्रद्धापूर्वक आँखें खोलकर कहने लगे कि, "यह सब नवकार का प्रताप है।"
" जंगल में मंगल हुआ"
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यह घटना भी रसिकभाई के जीवन की है। उनको गार्ड के रूप बढ़ोतरी मिलने से वे एक बार माल (गुड्स) ले जा रहे थे। डिब्बे में गड़बड़ होते ही उसे इन्जिन से अलग कर इन्जिन व ड्राइवर आगे के स्टेशन की ओर रवाना हुए। मालगाड़ी में बहुत माल, अन्धेरी रात, जंगल प्रदेश में हाथ में लालबत्ती लेकर घन्टों तक नवकार का जाप करते वह अकेले रहे थे। निश्चित घन्टों के बाद इन्जिन आगे के स्टेशन के मास्टर और रेल्वे के कर्मचारियों को लेकर वापिस आया। वे मालगाड़ी को व्यवस्थित कर यथास्थान पर निर्विघ्नता से पहुँचे।
लेखक - मुनि श्री अमीचन्दजी महाराज (बोटाद सम्प्रदाय)
जीवनदाता श्री नवकार
चौदह पूर्व के सार रूप नवकार महामन्त्र की नियमित आराधना करने वाले को तो अनेक लाभ होते ही हैं, किन्तु केवल आपत्ति के समय में भी महामन्त्र की शरण में जाने वाली आत्मा उस आपत्ति में से क्षेमकुशलता पूर्वक पार उतर जाती है, उससे सम्बन्धित मेरे जीवन का एक अनुभव पेश करता हूँ।
मेरी एक बच्ची शीतल उम्र 8 वर्ष तथा एक बेटा उदयन उम्र साढ़े तीन साल दोनों स्कूल में पढ़ते हैं। स्कूल में पढ़ने के कारण आसपास के छोटे बच्चों के सिर में से जूँ एक- दूसरे बच्चे पर आ जाती हैं। मेरी पत्नी को दाहिने हाथ में लकवा होने के कारण बालकों के बाल सँवारने में तकलीफ रहती है। हमने पिछले वर्ष दि. 7-7-85 शनिवार के दिन बाजार
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में से जूँ निवारक दवा खरीदी और रात को दस बजे सोते समय दोनों बच्चों को दवा लगा कर हम सो गये। ऊपर पंखा चालु था। कमरे के खिड़की-दरवाजे बन्द थे। मेरे पास में मेरा बेटा सोया हुआ था। वह सुबह चार बजे अचानक उठकर घबराहट में 'करन्ट आता है' ऐसे कहने लगा। मैंने लाइट करके देखा कि कोई वायर टूटा हुआ नहीं, चूहे या किसी जीव-जन्तु ने वायर नहीं तोड़ा। वह फिर पाँच बजे चिल्लाने लगा तब उसके मुँह में से झाग निकल रहे थे।
उस समय मेरी बेटी के भी मुँह में से झाग निकलने लगे। दोनों बच्चे बेहोश हो गये। मैंने तुरन्त दोनों बच्चों को सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया। डॉक्टर घबरा गये थे। मैंने नवकार मंत्र बोलना शुरू किया । लड़का छोटा होने से उसे दवा का असर ज्यादा हुआ था। इलेक्ट्रीक मोटर जैसे कुएं में से पानी खींचती है, वैसे उसके नाक में पतली नली लगाकर फेफड़ों में से जहरी दवा छोटी मोटर से खींचने लगे और जहर कम किया। ऑक्सीजन गैस के बोतल दोनों के लिए शुरू किये।
दोनों के जहरी दवा वाले बाल काट डाले । दि. 8-7-85 को रविवार होने से दवाइयों की दुकाने देरी से खुलने के कारण हमें दवा के लिए रिक्शे में बैठकर फाँके मारने पड़े।
मैंने सतत नवकार का जप चालु रखा और दृढ़ मनोबल रखकर दवायें जैसे-तैसे करके इकट्ठी करवायीं । सवेरे 10 बजे तक 65 इन्जेक्शन और 8-9 तारीख को कुल 120 इन्जेक्शन जहरी दवा को नष्ट करने हेतु काम में लिये।
दोनों बच्चे शाम को चार बजे तक ऑक्सीजन पर थे। इस दौरान पड़ोसियों को खबर मिली। वे सभी एवं छोटे बच्चे अपने मित्रों से मिलने अस्पताल में दौड़ आये। डॉक्टरों एवं अस्पताल स्टाफ को संभालने में मुश्किल होने लगी। उन्होंने व्यवस्था में सहयोग हेतु विनति की। सिविल अस्पताल हमारे मोहल्ले के सामने होने से प्रेम के कारण लोगों के टोले उमड़ने लगे। मुम्बई के सगे संबंधियों को टेलिफोन कर पडौसियों ने
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जानकारी दी और वहाँ भी सभी के प्राण हाथ में थे। शाम को 4 बजे तक दोनों बच्चों के जीवन संकट में थे। दोनों बच्चे बेहोश थे। पुलिस ने सुबह नौ बजे आकर जाँच की। मुझसे बयान लियो " तुम ज्यादा पढ़े-लिखे दोनों ने बच्चों के जीवन के साथ छेडछाड़ की, " ऐसा कहने लगे। बाल के नमूने ले गये। दवा की बोतल फेंक दी थी इसलिए नहीं मिली। मैंने उवसग्गहरं स्तोत्र 27 बार गिनकर नवकार मन्त्र का रटन चालु ही रखा। मुम्बई से सगे- सम्बंधी दौड़े आये। उन्होंने भी नवकार मन्त्र का उपयोग रखा।
रात में दोनों बच्चों को कुछ होश आते, उन्होंने बकवास चालु कर दिया। पुलिस को तो उसमें ही रुचि थी। मैंने अपने पहचान के एक वकील का सम्पर्क साध कर पुलिस को समझाया कि, "हमारे दो ही बच्चे हैं। दोनों के बालों में गैर समझ से जहरी दवा डालने से यह घटना घटी है। इसके पीछे कोई गलत इरादा नहीं था।" मैंने पूरी रात जाग्रत रहकर नवकार मन्त्र का रटन चालु रखा। दूसरे दिन पत्नी, पड़ोसियों तथा स्नेहियों के सम्पर्क के बाद पुलिस ने विगतवार रिपोर्ट तैयार की। दोनों बालकों के जीवन प्रातः काल में 'फूल खिले' उस प्रकार महक उठे।
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उवसग्गहरं एवं नवकार मन्त्र के बल से दोनों बच्चों की जीवन - डोरी कुछ ही क्षणों में पूरी हो जाये, वैसी होने के बावजूद प्रत्येक वस्तु को आवश्यक समय पर मुश्किलों का सामना कर प्राप्त करने में सफलता मिली। मेरे जीवन का यह सचोट दृष्टान्त उवसग्गहरं तथा नवकार मन्त्र में गहरी श्रद्धा रखने वाले को जरूर फलदायी होगा।
लेखक:- ठाकरसी माणेकजी शाह, 208, गिरिराज एपार्टमेन्ट, गिरीराज थियेटर के पीछे, नवसारी जिला - वलसाड़ (गुजरात)
सागर शान्त हुआ
अभी मेरी उम्र 58 वर्ष की है। (यह दृष्टान्त सं. 2042 में लिखा गया तब उम्र 58 साल की थी) जब मैं छोटा स्कूली विद्यार्थी था, और
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - कच्छ-गोधरा में दरबारी स्कूल में पढ़ता था,उस समय वाहन-व्यवहार बहुत कम था।
कच्छ अबड़ासा के तीर्थ सुथरी, कोठारा, नलिया आदि स्थानों पर जाना होता, तो बैलगाड़ी से जाना पड़ता और रातें बीतानी पड़ती थीं। उस समय पालीताणा की यात्रा करने जाने हेतु कोई सरल वाहन मार्ग नहीं था। में लगभग 45 वर्ष पूर्व की घटना का वर्णन कर रहा हूँ। एक बार मैं अपने बड़े भाई-भाभी के साथ पालीताणा की यात्रा हेतु निकला था। हम गोधरा से मांडवी तक बैलगाड़ी में आये। बाद में मांडवी बन्दरगाह से ओखा जाने के लिए जहाज में बैठे। लगभग हम पच्चीस आदमी होंगे ऐसा मेरा अन्दाज है। उस समय पालीताणा जाने के लिये ओखा, जामनगर, राजकोट होकर जाना पड़ता था। सामान्य रूप से मांडवी से ओखा जाने के लिए बड़े जहाज में करीब चार घन्टे लगते थे। हम जल्दी सवेरे निकले थे। जब मध्य समुद्र में आये तब हवा से समुद्र में तूफान आया और हमारा जहाज हिलोरे खाने लगा। जैसे-जैसे ओखा के पास आते गये, वैसे-वैसे तूफान बढ़ता गया और तरंगें दस से पन्द्रह फीट ऊपर उछलने लगीं। सागर का तांडव नृत्य देखकर हमारे प्राण अद्धधर हो गये थे। जैसे इस लहर के साथ या दूसरी लहर के साथ समुद्र के अन्दर समा जाएगें, ऐसा लगने लगा। हम सभी इतने भयभीत हो गये थे कि, जिसकी कल्पना भी नहीं की जाये। तब देवयोग से 'नमस्कार महामन्त्र' और महान तीर्थाधिराज शत्रुजय के दादा आदीश्वर भगवान याद आ गये, जिनके हम दर्शन करने जा रहे थे। हम सभी ने मिलकर मन्त्र की तेज आवाज में धून मचायी। सागर का ताण्डव नृत्य तो चल रहा था। अब इसके साथ हमारे मन्त्र का संगीत मिला। जैसे सागर को भी इसमें आनन्द आ रहा हो... धीरे-धीरे उसका नृत्य शान्त होने लगा। दूसरे सहायक चालक भी अपने से हो सके, इतना सब कर रहे थे। सढ (जहाज के वस्त्र)की दिशायें बदलाते गये। और ओखा बन्दरगाह की बत्ती दिखाई दी। हम किनारे के पास पहुंचे। हमारी धून चालु रही और आखिर हमारी जीत हुइ। सागर का तांडव नृत्य 'नमस्कार महामन्त्र' के प्रभाव के आगे झुक
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गया, शान्त हो गया। हम लगभग संध्याकाल के समय सही - हाल में किनारे पर पहुंचे। फिर वहाँ से जामनगर, राजकोट, पालीताणा यात्रा पर गये और सिद्धाचल तीर्थनायक दादा आदीश्वर के दर्शन किये।
बोलो नवकार मन्त्र की जय ।
लेखक - श्री पदमशीभाई खीमजी छेड़ा, रोड - 4
14, नवयुग सोसायटी,
विले पार्ले, जुहु स्कीम, मुम्बई - 56 फोन - 570576
चिड़िया को बचाने वाला नवकार
रविवार की शान्त सुबह थी। घर के सभी लोग बैठे थे। बाहर से आ रहा चिड़ियाओं का कलरव वातावरण में उत्साह ला रहा था। इतने में एक चिड़िया ने घर में प्रवेश किया, और उड़ते-उडते पंखे से टकराकर क्षणार्ध में कुछ सोचें, उससे पहले पंखे से घायल होकर नीचे गिरी । हमें ध्यान से देखने पर पता चला कि उसका आँख और माथे के बीच के भाग में माँस का पिंड बाहर लटकता था। उसका श्वास अवरूद्ध हो गया था।
मृत्यु के साथ इस जीव के करुण संघर्ष के हम सब साक्षी थे। हमने जल्दी से रूई की गादी बनाकर चिड़िया को उसके उपर रखकर उसके घाव को साफ कर, ईश्वर उसको जीवन एवं शान्ति दे, ऐसी भावना सहित प्रार्थना की।
हम सभी ने नवकार मन्त्र का जाप शुरू किया। तीन नवकार बोलते ही चिड़िया की हिल-डुल प्रारम्भ हुई। इससे हमारे उत्साह में वृद्धि के साथ जाप में ज्यादा उत्साह आया। कुछ ही क्षणों में चिड़िया धीरे-धीरे चलकर सोफे के नीचे बैठ गयी। हमने थोड़े दाने उसके पास रखकर जाप चालु ही रखा। वह लगभग पौने घन्टे के बाद पंख फड़फड़ाकर उड़ गयी।
थोड़े दिन बाद एक चिड़िया खिड़की पर बैठकर चीं चीं कर रही थी और जैसे हमारा आभार मान रही हो वैसे अपलक नेत्रों से हमारे
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? . सामने देख रही थी। हमें ध्यान से देखने पर पता लगा कि यह वही चिड़िया है। उसका आनन्द देखकर हमारा प्रयत्न सफल होने का अनुभव किया तब उसका कलरव और मीठा लगने लगा।
लेखक-जितेन्द्र नानजी छेडा (रायणवाले)घाटकोपर
महामन्त्र का अद्भुत प्रभाव ___ भावनगर के एक भाई, जिसकी रग रग में नवकार समाया हुआ है, वह एक बार वसूली करने एक छोटे गाँव गये थे।
शाम तक घर पहुंच जाना ऐसा इनका सिद्धान्त था। नहीं पहुंचे तो भाई राह देखते रहते हैं। भाइयों का ऐसा प्रेम था। एक दिन वे वसूली कर स्टेशन पर आये तब गाड़ी निकल गयी थी। उन्हें मन में लगा कि चाहे
कैसे भी हो, रात तक घर पहुंच जाऊँगा। 12000 रूपये साथ थे। उन्होंने |पैदल चलकर जाने की तैयारी की तो एक शंकास्पद आदमी पीछे -पीछे आने लगा। किन्तु उनके मुख में तो नवकार मन्त्र था, इसलिये उन्हें पीछे आ रहे आदमी का ध्यान नहीं था। वहाँ जैसे अन्तर में से आवाज आयी, "तेरे साथ में आदमी चलता है, वह अच्छा नहीं है।"
वह तुरन्त सचेत हो गये। नवकार का रटन तो चालु ही था। किन्तु पैर में कौन जाने ऐसी स्फूर्ति आयी कि सूर्य का प्रकाश था और भावनगर पहुंच गये। वह आदमी सोचता ही रहा। उज्जड़ स्थान आये, अन्धेरा होगा किन्तु ऐसा कोई मौका उसे मिल ही नहीं सका।
हमारे साध्वीजी म.सा. को नवकार मन्त्र तथा प.पू. आ.भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के वासक्षेप से व्यंतरिक उपद्रव शान्त हो गया था। पेट में रही मैली व्यंतरिक वस्तुएं उल्टी होकर बाहर आ गयीं और साध्वीजी म.सा. स्वस्थ हो गये थे।
एक बार हम छ: कोस की प्रदक्षिणा घूमकर नीचे आये, तब रास्ते में पीछे से एक बैलगाडी आयी। बेल का पैर लगा और साध्वीजी म. गिर
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - | गये। गाड़ी ऊपर से चली गयी। दण्ड टूट गया किन्तु नवकार मन्त्र और | गिरिराज के प्रभाव से साध्वीजी को कुछ भी चोट नहीं आयी।
लेखिका-प.पू. अचलगच्छाधिपति के आज्ञानुवर्तिनी
पू. सा.श्री ज्योतिष्प्रभाश्रीजी म.सा.
भव जल पार उतारे) आज से करीब 20 वर्ष पूर्व की घटना है। मैं और मेरा छोटा भाई हमारे चाचा के साथ वज्रेश्वरी घूमने गये। सुबह के समय हम पकड़ा-पकड़ी खेलने लगे। अचानक मेरा भाई चिल्लाने लगा, "बचाओ | बचाओ। मैं पानी में डूब रहा हूँ।" मैं जब उसके पास गया तब उसने | कहा कि, "यह तो मैं मजाक कर रहा था।" मैंने उसे डांटा कि,"कभी पानी की मजाक नहीं करनी चाहिये। अगर कभी सचमुच ऐसा होगा तब | शायद गडरिये की तरह 'जब शेर आया तो कोई नहीं आया' जैसी हालत हो जाएगी।" बस थोड़ी ही देर में अचानक वह वास्तव में पानी में डूबने लगा। तब मैं भी रेत में धंस गया। क्या करना? समझ में नही आ रहा था। अचानक माता-पिता के सिंचित संस्कार मुझे याद आये। मेरी माता हमको प्रतिदिन सोने से पहले अमरकुमार की सज्झाय सुनाती और नवकार | महामंत्र के बार में समझाती थी।
भाई को लगा, अब मैं जा रहा हूँ। उसने नवकार महामंत्र का स्मरण किया। उसके नाक में पानी घुस गया। अन्तिम श्वास जैसी स्थिति थी। अचानक हमारी चीख-चिल्लाहट से कुंड के किनारे पर कपड़े धोते हुए एक जैनेतर भाई की नजर पड़ी। उसने एक क्षण भी विलम्ब किये बिना नदी में कूद लगायी और नीचे से भाई को पकड़ लिया। उलटा सुलाकर मसाज कर मुंह में से पानी निकलवाया। डॉक्टर को बुलवाया। उसे नया जन्म मिला। इस प्रकार हम सभी ने नवकार मंत्र के प्रत्यक्ष प्रभाव का अनुभव किया।
वास्तव में जिस नवकार में भवजल में से पार उतारने की अचिंत्य
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ताकत रही हुई है, उसके स्मरण मात्र से नदी के जल में से पार उतरा जा सकता है इसमें जरा भी असंभव नहीं ही है।
लेखक-श्रीखुशालचन्दभाई खेतशी देशलपुरवाले
रसुल बिल्डींग,दूसरी मंजिल, कमरा नं38 ___के.के. मार्ग, सात रास्ता, मुम्बई-11
अन्धेरे में एक प्रकाश
विक्रम संवत् 2022 या 2023 के आसपास में जब महाराष्ट्र के कोयना में भूकम्प आया तब एक कच्छी परिवार अपने घर में फंस गया। रात के तीन-साढ़े तीन बजे थे। अपने घर की उपरी मंजिल में से धूल, सोये हुए बच्चों एवं उनके ऊपर गिरने लगी। बच्चे तो जोर से रोने लगे
और स्वयं भाई एवं उनकी पत्नी भी घबराकर सोचने लगे कि दरवाजा खोलकर बाहर निकल जाएं। किन्तु अंधकार में दरवाजा कहाँ है, इसका ध्यान नहीं पड़ रहा था। सोचने लगे कि, 'अभी मकान गिरेगा और हम अभी ही खत्म हो जाएंगे। कोई उपाय नहीं था। उतनी देर में भाई को ख्याल आया कि, 'तुम सभी शान्ति पूर्वक ध्यान लगाकर नवकार मंत्र | गिनो।' थोड़ी देर में आले के उपर टार्च पड़ी थी और उसके बटन पर कुदरती एक पत्थर गिरते ही वह बटन दब गया और ,प्रकाश हो गया और तुरन्त बन्द हो गया। वह भाई तुरन्त अपने बच्चों एवं पत्नी को लेकर दरवाजा खोलकर सुरक्षित घर से बाहर निकल गये। यह है नवकार मंत्र का प्रभाव! हमने यह बात इस कच्छी परिवार के संबन्धी कच्छ रताड़िया(वर्तमान में चेम्बुर) के शंभुभाई की धर्मपत्नी पानीबाई के पास से सुनी थी, वह यहां दर्शायी है।
वास्तव में यदि महामंत्र अनादिकालीन अज्ञान तथा महामिथ्यात्व के घोर अन्धकार का नाश कर केवलज्ञान तथा क्षायिक सम्यगदर्शन का दिव्य प्रकाश आत्मा में प्रकट कर सकता है, उसके लिए उपरोक्त प्रकाश की घटना में क्या असंभव बात है? आवश्यकता है, केवल अनन्य शरण भाव
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - से उसका स्मरण करने की!
___ लेखिका :सा.श्रीअमृतश्रीजी(पार्श्वचन्द्रगच्छ) 'नवकार मेरा मित्र है। __ मैं अपने पीहर में बाजरे की रोटी बना रही थी, तब हाथ की हीरे की अंगूठी में आटा न घुस जाए इसलिए निकालकर पैर की अंगुली में डाल दी। अचानक फोन की घंटी बजते मैंने फोन लिया। फोन पड़ोसी का होने के कारण मैं उसे बुलाने गयी। उस समय के दौरान मैं अंगूठी के बारे में बेट यान थी। मुझे दोपहर में अचानक ध्यान आया। अंगूठी कहाँ? सभी कमरों में से झाडु निकल गया था। मुझे डर लगा, क्योंकि अंगूठी मेरे ससुराल वालों की थी। ससुराल जाकर क्या जवाब दूंगी? बस मुझे नवकार याद आया और नवकार गिनने बैठ गई। पाटले पर बैठकर जमीन पर हाथ टेका और मेरे आश्चर्य के बीच अंगूठी मेरे हाथ के नीचे ही थी।
मैं एक बार माता-पिता के साथ केसरियाजी-शंखेश्वर यात्रा के लिए गई थी। पिताजी के कहने से नवकार का जाप हमेशा चालु रखती। रास्ते में सामने से आयी बस के कुछ आदमियों ने गाड़ी रोककर बताया कि, 'आगे भालाधारी आदिवासी हैं। आगे मत जाना। किन्तु जहां थे वहां भी भयंकर जंगल का क्षेत्र था। रात के नौ बजे थे। इसलिए दूसरा रास्ता नहीं होने के कारण आगे बढ़ने पर मिली हुई चेतावनी के अनुसार दोनों
ओर दो-दो भालाधारी और रास्ते में बड़े बड़े पत्थरों का ढेर देखने को मिला। फिर भी नवकार मंत्र की कृपा से, कुशल ड्राईवर साइड में से तेज गति से निकल गया। सभी आबाद बच गये।
हम ई.स. 1984 में 'संभव जिन महिला मंडल' के तत्त्वावधान में इन्दौर, नागपुर, मक्षीजी आदि स्थानों के प्रवास पर गये। दि. 30 अक्टूबर को प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी की हत्या के भयंकर दंगे हुए और हम भी दंगों में फंस गये। मौत या प्राणघातक संकट में मनुष्य पागल बनकर प्रभु को याद करता है। उस पागल प्रभुभक्ति की अंतर की पुकार से उस आग
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
के भीषण तांडव नृत्यों एवं खून-खराबे में से हम थोड़ी सी भी क्षति बिना सुरक्षित मुम्बई पहुंच गये। वहां जो देखा और अनुभव किया उसे याद करने से आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बचना वास्तव में असंभव था। किन्तु अन्तर की आरजु पूर्वक नवकार मंत्र के रटन के प्रताप से ही हम सब बाल-बाल बच सके थे।
लेखिका दमयंतीबेन प्रेमचन्द कापड़ीया, बान्दरा, मुम्बई
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पागलपन पलायन हुआ
बोड़ेली से विहार करते करते पू. राजेन्द्र मुनि आदि ठाणा तीन राजपारड़ी पधारे। जिस मकान में वे रुके थे, उस मकान का मालिक मर गया था और उसका लड़का पागल हो गया था। उनकी पत्नी ने बात की, इसलिए म. साहेब ने नवकार मंत्र का स्मरण करने को कहा। केवल बीस दिन में पागलपन चला गया। वह दुकान में बैठने लग गया।
महाराज श्री विहार करते हुए पालनपुर पधारे। वहां मुस्लिम भाई श्री अल्लारखा उस्मीन वोरा को महाराज श्री ने नवकार मंत्र दिया। उसके प्रभाव से घर में रहता सर्प चला गया। फिर एक रात को स्वप्न में देवी ने घर में गुप्त रहा हुआ धन बताया। वोरा भाई ने उस जगह में से धन निकालकर (चान्दी के पांच सौ सिक्के) उन सिक्कों को म.सा. के पास लाये। उन्होंने म. सा. को उसे स्वीकार करने को कहा। महाराज श्री ने कहा
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'धन का स्पर्श भी हमारे से नहीं होता। हमारा आजीवन धन का त्याग होता है।" फिर महाराज श्री ने कहा कि, " तुम योग्य लगे वैसे, इस लक्ष्मी का सदुपयोग करो। " इसलिए उसने आधी रकम जीवदया के लिए उपाश्रय में दे दी और फिर वह हमेशा नवकार मंत्र का स्मरण करने लगा तथा उसने आजीवन मांसाहार, शराब, परस्त्री, वैश्यागमन, शिकार और कंदमूल ( ज़मींकन्द) के त्याग का संकल्प किया।
लेखक : पू. राजेन्द्र मुनि महाराज साहेब की ओर से, हेमन्तकुमार प्रवीणचन्द्र पटेल, पीज, तहसील - नड़ियाद
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
लकड़ी जरा भी हिली नहीं।
संसारी अवस्था में धोराजी के अमीर श्री मणिलाल झीणाभाई वोरा और मैं जैसलमेर की यात्रा पर गये थे। दूसरे एक मारवाड़ी गृहस्थ भी हमारे साथ ट्रक में थे। उनके साथ बैठने की बाबत में मणिभाई का झगड़ा हो गया। रात को 12 बजे ट्रक खड़ा रखके वह मारवाड़ी मणिभाई
को पुलिस चौकी ले गये। मैं भी साथ गया। पुलिस ने मणिभाई की |पिटाई कर खून से लथपथ कर दिया। फिर भी दुबारा सौ फीट लम्बी लकड़ी से मारने की शुरूआत कर रहे थे। उस समय मैंने उस लकड़ी के छोर को स्पर्श कर मन में नवकार मंत्र का स्मरण शुरू किया। पुलिस ने लकड़ी को हिलाने का दस बार प्रयास किया, किन्तु नवकार मंत्र के प्रभाव से लकड़ी जरा भी नहीं हिली। आखिर में वे थके। उन्होंने मुझसे और मणिभाई से माफी मांगी।
भूत दूर हुआ सं. 2005 के समी गांव में चातुर्मास के दौरान हमारे समुदाय में शुभंकरविजयजी नाम के एक साधु को भूत की तकलीफ थी। जब भूत उनके शरीर में प्रवेश करता, तब उनमें बहुत शक्ति आ जाती थी। दस आदमी मिलकर उनको अलग कमरे में दाखिल कर पाते। इस भूत को निकालने हेतु पाटण से एक गोरजी (यति) महाराज को बुलाया था। गोरजी ने कहा कि भूत जोरदार है, पांच सौ रुपये लूंगा। किन्तु मैं आसोज माह के नवरात्रि के त्यौहार में आउंगा। इस कारण हमने उनका उपचार आजमाना बन्द किया। मेरे गुरु म. श्री विनयचन्द्रजी को उस भूत ने एक बार पाटिया मारा। वह दृश्य मेरे से नहीं देखा गया। मैंने गुरु महाराज से आज्ञा मांगी। मन में श्री नवकार मंत्र का स्मरण किया और शुभंकरविजयजी के कमरे में गया और उनकी ठीक-ठीक पिटाई की। श्री नवकार महामंत्र के प्रभाव से वह भूत उसी समय मुनि श्री के शरीर में से बाहर निकल
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? गया। मुनि श्री की तबियत अच्छी हो गयी।
लेखक:- पू. मुनि श्री प्रधानविजयजी म. " धोराजी"
नवकार के पास मौत भागे
मुझे एक बार नवकार मंत्र के प्रभाव का जोरदार परिचय हुआ था । उसका वर्णन निम्नलिखित है।
मैं 1970 में 'एक्ष्पो सेवन्टी' देखने के लिए त्रिवेदी साहब आयोजित यात्रा में गया था। उसमें होंगकोंग, मलेशिया, पीनांग, कुआलालांपुर इन सभी स्थानों पर विमान में गये थे। वहाँ प्रत्येक स्थान से विमान में बैठने से पहले मैं तीन नवकार गिनकर बैठता था । हमको कोई भी तकलीफ नहीं हुई। किन्तु अन्त के प्रवास में सिंगापुर से कुआलालांपुर होकर मद्रास (चेन्नई) आना था। उस समय घर जाना था, और उस दिन बच्चे भी याद आये इसलिए मैं जल्दी में बिना नवकार गिने, विमान में बैठ गया। विमान उडा। घंटा-डेढ़ घंटा आकाश में व्यतीत किया, परन्तु डेन्जर लाइट ( खतरा बत्ती) बन्द नहीं होने से सभी के प्राण तलवे में आ गये। उसके बाद एक मिनट में विमान एक मंजिल जितना ऊपर जाता, तो दुसरे मिनट में 10 मंजिल जितना नीचे आता। मौत आंखों के सामने आ गयी थी। सभी की घबराहट शुरू हो गयी। मेरी पत्नी की घबराहट एवं चीख - चिल्लाहट चालु थी। उस समय मुझे नवकार मंत्र का स्मरण करने की अतः स्कुरणा हुई और यह प्रेरणा मैंने अपने सभी साथीदारों को कही। सभी श्रद्धा से नवकार मंत्र का स्मरण करने लगे। उसके बाद थोड़े समय में घोषणा हुई, "विमान वापिस लौट रहा है। " विमान एअरपोर्ट पर किसी कारण से नीचे नहीं उतर सकता था। सभी के प्राण हाथ में थे। बहुत मेहनत के बाद विमान सही सलामत नीचे उतरा और सभी के प्राण में प्राण आये। किन्तु उस समय सभी नवकार गिनते थे। ऐसे नवकार मंत्र तो बहुत ही शान्ति रखें तो भी गिने नहीं जाते। लीनता नहीं आती है। भय देखते ही जीव बाहर की दुनिया को भूलकर अन्दर में आ जाता है। उसका मुझे उस दिन अनुभव हुआ। लेखक:- जयंतिलाल हीमजीभाई गांधी, तेज प्रकाश ए, ब्लोक नं. 8, दत्तपाड़ा रोड़, रेल्वे फाटक के पास, बोरीवली (वेस्ट) मुम्बई
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
समरो दिन और रात
यह बात संवत् 1987 के लगभग की है। मेरी उम्र 17-18 वर्ष की थी। मैं तब लालबाग में था। तब पोखराज नाम के एक राजस्थानी भाई सर्राफ का व्यवसाय करते थे। तब पठानी लोगों में गुंडागिरी ज्यादा थी। एक रात पोखराजभाई की दुकान में वे चोरी करने की नियत से आये । किन्तु भूल से पास में जो चक्की थी, उसे तोड़कर अन्दर घुसे। फिर पोखराजभाई की दीवार तोड़ना प्रारम्भ किया, जिसकी आवाज से पोखराजभाई जग गये । | उनके रहने का दुकान में ही था। उन्होंने अपनी पत्नी को उठाया और जहाँ से आवाज आ रही थी उस दीवार के पास अपनी लोहे की सन्दूक रखकर खुद पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गये और दौड़ते दौड़ते जहाँ चार रास्ते मिलते थे, वहाँ खड़े रह गये। वहाँ कोई मिले तो उसकी मदद की राह देखने लगे। किन्तु दो बजे के समय कोई भी नजर नहीं आया। बहुत प्रयास किये। पत्नी की भी चिन्ता थी। किन्तु अन्त में नवकार मंत्र गिनने के अलावा दूसरा मार्ग नहीं सुझा । जहाँ खड़े थे, वहाँ एक लोहे का छः फीट का कांच की खिड़की वाला खम्भा ध्यान में आया। कांच तोड़कर हेन्डल घुमाने से अग्निशमन वाले आ पहुंचे।
उनको दुकान के पास ले जाने पर, उन्होंने पठानों को पकड़ लिया। हम चार-छः लोग दुकान से थोड़ी दूर आगे के फुटपाथ पर सोये हुए थे और खड़खड़ाहट की आवाज से जग गये। यह घटना हमारे सामने घटित हुई है। तब पोखराजभाई के मुंह में एक ही उद्गार था कि- "वास्तव में नवकार महामंत्र ने ही मुझे बचाया है। "
लेखकः- शा भवानजीभाई मुरजी भोजाणी खार, मुम्बई
विघ्न विनाशक श्री नवकार
संवत् 2030 के चातुर्मास हेतु हम दो ठाणे जामनगर की ओर विहार कर रहे थे। वैशाख वदि अमावस्या के दिन कोटड़ा पीठा गांव में
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मुकाम था। भयंकर गर्मी के दिन थे। शाम के समय कहीं चैन नहीं पड़ता था। हम इसी कारण पक्खी प्रतिक्रमण करने उपाश्रय के पीछे के कमरे में बैठे थे। चैत्यवंदन, अष्टोत्तरी की शुरूआत होते ही धीमा पवन शुरू हुआ और आकाश बादलों से घिर गया। पक्खी सूत्र की शुरूआत में हवा ने तूफान का स्वरूप लिया। खिड़की के दरवाजे खड़-खड़ आवाज करने लगे। हमने थोड़ी जल्दी की। पौने आठ बजे प्रतिक्रमण पूरा होने की तैयारी थी। नौवां स्मरण चलता था और वर्षा प्रारंभ हुई। प्रतिक्रमण पूर्ण करके उपाश्रय के अन्दर आये तो एक भी पाट नहीं था। हम सामान उपधि अलमारी के ऊपर रखकर खिड़कियां बन्द करने लगे। हवा के झोंकों से खिड़कियां बन्द नहीं हो रही थीं। बिजली चमककर शरीर के ऊपर घुम जाती थी। बारिस खिड़की में से अन्दर आती थी। घनघोर अंधकार, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बिजली की चमक जरा शान्त हो तो, वर्षा तैयार । उसमें उपाश्रय के विलायती नलियों की एक दिशा की दो लाइनों में नलिये नहीं थे। उसमें मेघराज की सम्पूर्ण कृपा हुई और उपाश्रय पानी से भरने लगा। कोई उपाय शेष नहीं रहा । बाहर चहल-पहल नहीं थी। पास में दर्जी की दुकान थी। वह भी निष्क्रियता से बैठा था। मैंने अपनी शिष्या सा. श्री विजयपूर्णाश्रीजी को कहा कि, "सारी माथापच्ची छोड़कर, चलो नवकार माता को याद करने बैठ जायें।" हम दो आसन पास-पास बिछाकर परमेष्ठ मंत्र गिनकर नवकार के जाप में लीन हो गये। प्रायः डेढ घंटा जाप में लीन रहे। बिजली की चमक, बादलों की गर्जनाहट, हवा की सांय-सांय ध्वनि से कांप जाते फिर भी आसन पर से नहीं खिसके। इसलिए नवकार माता ने अपने बच्चों को संभाल लिया। चार अलमारियां एवं हमारे दो आसन छोड़कर उपाश्रय जल से भर गया था। 10 बजे वृष्टि का तांडव शांत हुआ तब भक्ति करने वाले लुहाणा भाई लालटेन लेकर आये। उन्होंने दरवाजा खुलवाया, और चारों ओर देखा तो आश्चर्य से उद्गार निकल गये कि, 'इतने पानी में आसन की जगह सूखी कैसे?" किसी अजीब शक्ति ने हमारा पूरा-पूरा रक्षण किया। दूसरे दिन आटकोट की ओर विहार करते रास्ते में वृक्षों पर पक्षियों की लाशें
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - देखीं। शरीर में से कंपकंपी निकल गयी। यदि नवकार की शरण में नहीं गये होते, तो अपनी भी यही स्थिति होने में देर नहीं लगती। तब से अद्वितीय श्रद्धा-भक्ति से नवकार गिना जाता है। - (2) हम वह चातुर्मास जामनगर कर सं. 2031 में जूनागढ़ की ओर आते उपलेटा गांव में प्लोट के जिन मन्दिर में उतरे। श्रावकों ने कहा, "रात रहना हो तो किसी बंगले में रहना।" किन्तु हमने विशेष ध्यान नहीं दिया। एक ही लाईन में मन्दिर का कमरा था। उसके बाद मन्दिर-उपाश्रय के बर्तन-सामान के कमरे के बीच दरवाजा और अंत में उपाश्रय क्रमशः थे। हम रात में साढे नौ बजे संथारा कर सोये और साढे ग्यारह बजे आवाज आने लगी। पहले तो ऐसे लगा कि बिल्ली अन्दर आ गयी होगी? उपाश्रय लम्बा था। एक ओर जाएं तो दूसरी ओर आवाज सुनाई देती। फिर |तो आवाज बढ़ने लगी। छत पर धड़ाधड़ आवाज होती थी। पास में बर्तन गिराने की आवाज आती। क्या करना? घबराहट एवं बैचेनी के बीच पास में रहते स्थानकवासी भाइयों को आवाज दी तो जैसे हमारी आवाज बाहर |जाती ही नहीं थी। हम अन्त में अन्तिम उपाय के रूप में संथारे पर ही |सागारिक अनसन कर नवकार की शरण में गये। ठीक साढे तीन बजे | एकदम शान्ति हो गयी और विघ्न टला मानकर आवश्यक क्रिया करके
जाग्रत ही रहे। सवेरे बड़ी मारड़ की ओर जाते समय पूजारी साथ में था। |उसे कहा कि, "रात को ऐसा घटित हुआ।" तो उसने कहा कि,
"महाराज श्री! यहां ऐसा होता है। जो पहचान के हों तो महाराज साहेब किसी के बंगले सोने चले जाते हैं। किन्तु अनजान को हम नहीं कहते हैं। |यदि कह दें तो कोई उपाश्रय में नहीं रहेगा। हम रोज किसके बंगले में भेजें?" हमने कहा, "भाई! अनजान को तो तुम्हें खबर देनी चाहिये। छाती
की धड़कने बैठ जायें, ऐसे उपद्रव में यदि नवकार की शरण नहीं मिले |तो आदमी डरकर मर जाये।" दूसरी बार इस प्रकार प्रकट प्रभावी महामंत्र ने हमको बचाया।.
(3) संवत् 2034 के वर्ष में कच्छ कोटड़ी-महादेवपुरी में चातुर्मास
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - करके वहां से विहार करते जालोर गये। वहां से राता महावीरजी से जैसलमेर संघ में जुड़ गये। नाकोड़ा के बाद चौथे मुकाम पर कुदरत ने अपना खेल दिखाना प्रारंभ किया। साढे तीन सौ साध्वीजी महाराज, एक हजार यात्रिक, बाड़मेर से 30 कि.मी. की दूरी, एकदम रेगिस्तान और उसमें भी भयंकर तूफान-वर्षा-बिजली। तम्बु तो रहते ही नहीं। खुले आकाश में बरसती वर्षा में कैसे रहें? संघ निश्रादाता पूज्यपाद आ. श्री कलापूर्णसूरिजी म.सा. का आदेश हुआ, "नवकार की धून लगाओ।" सामुदायिक धून लगाते वर्षा रुक गई, रात व्यतीत करके सुबह विहार कर साधु-साध्वीजी महाराज बाड़मेर पहुंचे। इस प्रकार चार-पांच बार संघ में ऐसा उपद्रव हुआ और नवकार मंत्र की नाव द्वारा उसे पार किया।
इस प्रकार अनेक बार नमस्कार महामंत्र का प्रकाश जीवन में आया है। अनन्य श्रद्धा सद्भाव के साथ जाप वगैरह होता है।
लेखिका-सुसाध्वीश्री चन्द्रप्रभाश्रीजी
जीवनरक्षक-विघ्न विनाशक श्री नवकार
धर्मश्रद्धा से वासित जैन परिवार में जन्म होने से छोटी उम्र से ही मुझे श्री नवकार महामंत्र पर अच्छी श्रद्धा थी। किन्तु मेरी यह श्रद्धा नीचे की घटनाओं के बाद उत्तरोत्तर मजबूत होती गई। भले ही शायद वाचकों को यह सामान्य लगे या योगानुयोग घटना जैसा लगे, किन्तु मेरे मन में तो इसका बहुत ही महत्त्व है। यह रही वह संक्षिप्त चार घटनाएं- ..
(1) मेरी तबीयत दि. 1-9-1960 के दिन बहुत ही खराब हो गयी थी। मैं 20 दिन से बिस्तर पर था। उसमें भी एक रात मेरी 8 बजे 75 प्रतिशत दृष्टि चली गयी। शरीर के रोंगटे खड़े हो गये। चलने की शक्ति एकदम समाप्त हो गयी थी। जैसे घड़ी दो घड़ी का मेहमान हूँ, वैसा लगने लगा। उससे मृत्यु में समाधि एवं परलोक में सद्गति मिले ऐसी भावना से मैंने श्री पंच परमेष्ठी भगवन्तों की शरण स्वीकार कर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नवकार मंत्र का सतत जाप शुरू किया। उसमें धीरे-धीरे ऐसी तन्मयता आ गयी कि पूरी पीड़ा ही गायब हो गयी और सवेरे साढ़े सात बजे उठा, तब बहुत ही स्फूर्ति शक्ति-शान्ति का अनुभव हुआ। जैसे मैं यमराज के द्वार पर दस्तक देकर नवकार के बल से वापिस आ गया हूँ।
(2) मैं फिर अक्टुबर 1962 में मुम्बई-वांदरा में मेरी बहिन के घर बीमार पड़ा। मैं मरड़ा नाम के रोग का शिकार बना। टट्टी में खून बह गया। बोलने-चलने के शक्ति नहींवत् रही। उस रात भी जैसे दो घड़ी का मेहमान हूँ, वैसा लगा। तब उपरोक्त प्रकार की भावना के साथ श्री नवकार मैया की गोद में सो गया। जैसे चमत्कार हुआ हो, वैसे बिना दवा ही आराम का अनुभव किया। सवेरे उठा तब बहुत ही स्फूर्ति लगी। मैं अल्प समय में स्वस्थ हो गया।
(3) इस प्रकार दो-दो बार जीवनदान. प्राप्त करने के बाद तो श्री नवकार महामंत्र के प्रति मेरी आस्था बहुत ही बढ़ गयी। मैं परिणाम-स्वरूप सोते-उठते, चलते-फिरते, सुख में या दुःख में हमेशा उसका ही स्मरण करता रहता हूँ।
__ वैसी स्थिति में दि. 1-4-1973 को एक घटना घटी। उस समय मैं और मेरे बड़े भाई मनसुखलाल दलीचन्द वसा, एडन के पास जीबुटी (लाल समुद्र का एक बन्दरगाह) में एक कम्पनी में काम करते थे। उस दिन रविवार होने से हम वर्कशोप में थे। सुबह 10 बजकर 10 मिनट हुए थे। अचानक भूकंप शुरू हुआ। झले की तरह बड़ी इमारतें भी हिलने-डुलने लगीं। लोग दौड़-दौड़ कर रास्ते पर जाने लगे। मैंने तुरन्त ही बड़ी आवाज से नवकार महामंत्र का उच्चारण प्रारम्भ कर दिया। 15 सेकन्ड के बाद भूकम्प शान्त हो गया।
उसी दिन दूसरी बार 10-30 बजे भूकम्प का झटका आया। हम तीसरे मंजिल के फ्लेट में थे। तब मसाले के सभी बर्तन गिरकर टूट गये। बंदरगाह के तट पर रेल्वे के पटरियाँ टेढी-मेढी हो गयीं। स्टीमरों को भी समुन्द्र में झटके लगे। कहीं पर तीन-तीन आदमियों जितने गड्ढे हो गये
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? थे। उस समय भी हमने जोर-शोर से नवकार गिना था। परिणम-स्वरूप हमको कुछ भी पीड़ा नहीं हुई।
उसके बाद उसी रात 9-15 बजे भयानक आवाज के साथ तीसरी बार भूकंप आया। लाइटें बन्द हो गयीं। भंयकर अंधकार छा गया। उस समय भी हम भाव से श्री नवकार महामंत्र के स्मरण और शरण से बच गये। पूरा गांव बच गया। जान हानि नहीं हुई। परन्तु कइयों के मकानों में बड़ी दरारें पड़ गयी थीं। उसके बाद सरकार ने दो वर्ष में जोखमी मकान गिरवा दिये।
(4)दि. 11-5-86 की रात्रि में 9-30बजे राजकोट में त्रिकोण बाग के पास एक बस ने मुझे चपेट में ले लिया।
___अब मेरे हदय में चलते-फिरते नमस्कार महामंत्र बस गया था। इसके प्रभाव से बस के आगे के पहिये एवं मेरे बीच केवल एक फीट का अन्तर रहा। यदि एकदम ब्रेक नहीं लगायी होती तो, अभी मैं जीवित नहीं होता। फिर तो ऑपरेशन हुआ। तीन स्क्रू लगे। चार महिने बिस्तर पर था। परन्तु श्री देव-गुरु तृपा से उसके बाद मैंने श्री शत्रुजय गिरिराज की तीन बार यात्रा एवं गिरनारजी महातीर्थ की भी तीन बार यात्रा की तथा मैं छः री' पालक संघ में भी जाकर आया।
इस प्रकार अब तो केवल मोक्ष की ही अभिलाषा से नवकार महामंत्र का जाप सहज रूप से चालु ही रहता है।
सभी जीव नवकार महामंत्र की शरण स्वीकार कर सभी दुःखों-पापों से शीघ्र मुक्ति को प्राप्त करें, यही मंगल भावना।
लेखक-शांतिलाल दलीचन्द वसा "सुशांत"31/36 करणपरा, राजकोट-360001
आंतरिक अनुभव के उद्गार.
(प.पू. पंन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी म.सा. ने अध्यात्मयोगी प.पू.
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. को मार्च 1977 को लिखा हुआ पत्र) - "आप श्री की कृपा से यह सेवक सही तरह से आत्मसाधना की
दिशा में पैर बढ़ा रहा है। इस आपकी अनहद मंगलकृपा का आभारी हूँ। पंच परमेष्ठियों की शरण में वृत्तियों का शमन विशिष्ट रूप से होने लगा है। मोह माया या विकार, श्री नवकार के तेज के आगे खड़े नहीं रह सकते, इसका प्रत्यक्ष अनुभव हो रहा है। आंतरिक आत्मशान्ति की सीढ़ियों पर दृढता से टीके रहने का बल आपकी वरद कृपा से इस तुच्छ सेवक-पामर जीव को भी प्राप्त हो रहा है। चिंतन मनन के अनेक अद्भुत सत्य साक्षात् अनुभव कर जीवन को धन्य- तार्थ अनुभव कर रहा हूँ। स्वकल्याण की निष्ठा से पर कल्याण स्वतः होने लगता है। करने की वृत्तियाँ अब शान्त हो गयी हैं। परमेष्ठियों की आज्ञा यह जीवन का महामंत्र बन रहा है।
कुछ चाहने जैसा अब नहीं रहा। |- संसार की घटमाल औदयिक भावजन्य हर्ष-शोक या राग-द्वेष पैदा
नहीं कर सकती। संयम का अपूर्व आनन्द-अनुत्तर विमानवासियों को भी रंक तुल्य समझे, वैसी अपूर्व मस्ती के दर्शन होने लगे हैं। यह परमेष्ठियों का
और आप जैसे गुरु भगवन्तों का पुण्य प्रताप है। . आसक्ति रहित भाव-स्थितप्रज्ञता और वृत्तिगत धीरता अब सुस्पष्ट रूप से जीवन के प्रत्येक चक्र में पिरोई जाती अनुभव होती है। बाह्य दृष्टि से शायद मेरे आसपास अनेक प्रवृत्तियों के जाल दिखाई देते हैं किन्तु अन्दर से भेद ज्ञान की रेखा का उल्लंघन
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? करने का प्रयास वृतियाँ नहीं करतीं। परमेष्ठियों की वरद कृपा अन्तर हूंकार पूर्वक प्रतिक्षण अशुभ अध्यवसायों की भूमिका से भावों को परिवर्तित करती रहती हो, वैसा अनुभव होता है। यह सभी आपकी निष्कारण करुणा का प्रताप है। आशीर्वाद देने की कृपा...
संग्राहक-संपादक
"नवकार महामंत्र का प्रभाव"
इस कम्प्युटर युग में भी नवकार महामंत्र के चमत्कार होते हैं। इस महामंत्र की भाव से जो आराधना करता है, इस मंत्र को ही जो समर्पित हो जाता है, वह आज भी सफल होता है।
जब अपना भारत देश आजाद हुआ, तब की यह बात है। सं. 2004 और ई. सं. 1947 की साल थी। तब हम दो ठाणे में और मेरी शिष्या सा. श्री रतनश्रीजी भचाउ से पडाणा (वागड़) की ओर जा रहे थे, तब गांववासियों ने बहुत मना किया कि आज विहार करने में जोखिम है। फिर भी हमने विहार किया। एक कि.मी. चले होंगे, वहां ब्रिटिश सरकार की सेना की गाड़ियां पंक्तिबद्ध आती दिखाई दी, क्योंकि ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ो का आदेश मिल गया था। हम बहुत भयभीत हुए। क्योंकि वह बहुत असभ्य बोलते थे। भारत देश छोड़ते-छोड़ते भी लोगों को दुःख देने की आदत नहीं गयी थी। हमने यह भी सुना था कि दो-तीन स्त्रियों को भी वे उठाकर ले गये हैं। उसके बाद हम नवकार मंत्र के स्मरण एवं रटन में खो गये। संपूर्ण रूप से नवकार को समर्पित हो गये। उतने में सामने से कोई अनजान आदमी दूध की कावड़ लेकर आता दिखाई दिया। इस आदमी ने सामने से आकर हमको कहा कि, "तुम घबराना नहीं, मेरे साथ चलो, में तुमको एकदम छोटे रास्ते से गांव की ओर पहुंचा दूंगा।"
हम उस आदमी के साथ चलने लगे। बहुत कम समय में किसी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अनजान रास्ते से हमको वह गांव की ओर ले गया। जब हम गांव के नजदीक पहुंचे, तब हमने भय से मुक्त होकर गहरा श्वास लिया, फिर उस दूध की कावड़वाले आदमी का आभार व्यक्त करने हेतु पीछे देखा तो पीछे न दूध की कावड़ दिखाई दी, ना ही वह आदमी। हमें आश्चर्य हुआ कि वह आदमी अदृश्य कैसे हो गया? हमको लगा कि यह प्रभाव नवकार मंत्र का ही है, कोई देवतत्त्व आकर हमारी रक्षा कर गया। यह प्रसंग हमारे जीवन में प्रथम बार ही बना। तब से हमारी नवकार महामंत्र के ऊपर की श्रद्धा में अधिक और अधिक अभिवृद्धि हुई।
हम प्रथमबार "लीलगगन" उपाश्रय (पालीताणा) में चातुर्मास हेतु पधारे। सं. 2038 मैं कार्तिक वद 8 के दिन मुसलाधार बारिस सारा दिन चालु रही। गांव के सभी कामकाज बन्द थे। इलेक्ट्रीक व्यवहार भी खराब हो गया। चातुर्मास हेतु हम तीन ठाणे सा. श्री हरखश्रीजी, सा.श्री | रतनश्रीजी, सा. श्री चन्द्रोदयश्रीजी विराजमान थे।
शाम को प्रतिक्रमण करने के बाद लगभग 7 बजे का समय था। उतने में तेजी से हवा चलने लगी। एक ओर वर्षा दूसरी ओर पवन का तूफान पूरे गांव को तहस-नहस कर दे, वैसा लगता था। तूफान के कारण कितने ही पुराने मकान जमीन पर गिर गये। पशुओं के रहने के छपरे उड़ गये, कितने ही बड़े वृक्ष धराशायी हो गये। वर्षा का पानी इकट्रा होकर नदी में बाढ़ आये, वैसे बह रहा था। उसमें कितने ही झोंपड़े बहे जा रहे थे। माल समान एवं पशु-पक्षियों को भी पानी खींचकर ले जा रहा था। ..
सभी खिड़कियां बन्द होने के बावजूद पानी कहीं न कहीं से उपाश्रय में घुस आया, उपाश्रय की जमीन पानी से ढक गई। हमको लगा, कहीं हमारे उपाश्रय का मकान धराशायी हो गया तो हमें कौन बचायेगा?
भय में भी भय पैदा करे, वैसे उपाश्रय की एक खिड़की बन्द होने के बावजूद निश्चित तरीके से घंटनाद की तरह बज रही थी। घनघोर जंगल में जैसे वृक्षों के पत्तों की खनखनाहट डराती है, वैसे अंधेरी रात और उसमें एक खिड़की की आवाज से ऐसा डर लग रहा था कि रोंगटे
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? खड़े हो जायें। उस दिन उपाश्रय का चौकीदार अनुपस्थित था।
उस खिड़की की आवाज बढती जा रही थी। आश्चर्य की बात यह थी कि दूसरी इतनी खिड़कियां होने के बावजूद इस खिड़की के पास से जैसे बाहर से कोई अपरिचित आदमी हमें डरा रहा हो, ऐसी आवाज आ रही थी। तब हम सब घबराये। हमको लगा-कौन होगा? इसका क्या इरादा है? अब क्या होगा? कौन हमें बचायेगा? उतने में मैंने जोर से आवाज दी कि, 'कौन हो तुम? क्या चाहिये तुम्हें?' तब सामने से कुछ वापिस आवाज भी आयी, किन्तु तूफान के कारण हम इस आवाज को परख नहीं सके।
उसके पहले हम भक्तामर, ॐ नमो देवदेवाय तथा मांगलिक की धून कर रहे थे। उसके बाद हमें लगा कि अब इस भय से मुक्त कराने वाला यदि कोई तरण-तारण जहाज है, तो मंत्राधिराज श्री नवकार महामंत्र ही है। इसलिए एक कमरे के अन्दर हम तीनों साध्वीजी एक ही पाट पर बैठ गये और नवकार मंत्र की धून के अन्दर मन-वचन काया के योग से ऐसे भयहीन बन गये कि बाहर के वातावरण की हमें एकदम खबर ही नहीं थी। वैसे भी खिड़की की आवाज कम हो गयी और वातावरण शान्त होता गया। देखते ही देखते रात पूरी हो गयी। और घड़ी में चार घंटियां बजीं और हमको प्रतिक्रमण करने की स्फूर्ति आयी। फिर तो ऐसी शान्ति छायी कि, कुछ जमीन पर गिरे तो भी आवाज सुनाई दे। संवत् 2038 की इस रात्रि का तूफान अभी तक हमारे कानों में खनक रहा है। इस प्रकार भय मुक्त कराने वाला, समता देने वाला यदि कोई तत्व था, तो वह मंत्राधिराज महामंत्र नवकार ही था। किसी ने सत्य ही कहा है कि "श्रद्धा में अगर जान है तो भगवान तुमसे दूर नहीं"
सभी आत्माएं महामंत्र के रटन से सदा के लिए दुःखमुक्त, रोगमुक्त, भयमुक्त, पापमुक्त बनें, यही मंगल भावना....। ..
लेखिका - साध्वी मुख्या सुसाध्वीश्री हरखश्रीजी म.सा. लीलगगन, तलेटी रोड़, पालीताणा (सौराष्ट्र)
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेंगा क्या संसार?
शील रक्षक श्री नवकार : (यहाँ प्रस्तुत पांच दृष्टान्त सं. 2046 में पौष-माघ महिने में डेढ़ महिने की हमारी राजकोट स्थिरता के दौरान नवकार महामंत्र के विशिष्ट साधक श्राद्धवर्य श्री शशिकान्तभाई महेता के पास से मिले। पांचो ही घटनाओं के नायक उनसे परिचित हैं। किन्तु नाम प्रकाशित करने की उनकी अनिच्छा के कारण यहाँ उन लोगों के नामोल्लेख नहीं किये गये हैं। शशिकान्तभाई के शब्दों में ही हम इन घटनाओं का आस्वादन करके महामंत्र के प्रति अपनी आस्था सुदृढ़तर बनायें -संपादक)
राजकोट निवासी एक सुखी धार्मिक जैन परिवार शादी के प्रसंग पर मुम्बई गया। वे मुम्बई से राजकोट की ओर वापिस जीप में आ रहे थे। जीप में तीन बहिनें एवं एक भाई थे। वापी के पास जंगल में अचानक जीप खराब होने से बहिनें नीचे उतरकर लघुशंका निपटाने थोड़ी दूर गई। उतने में अचानक सशस्त्र लूटेरे वहां आ पहुंचे, और बन्दूक की नोंक पर कीमती आभूषणों का थैला छीन लिया। किन्तु इतने से उनको संतोष नहीं हुआ। बहिनों का रूप देखकर उनकी आंखों में विकार रूपी चोर आ बैठा। इसलिए उन्होंने उस भाई को जीप में से नीचे उतरने को कहा। वह भाई किंकर्तव्यमूढ बन गये थे। उतने में तीनों बहिनों ने एक साथ उस भाई को नवकार गिनने की प्रेरणा दी और वह भाई तथा तीनों बहिने बड़ी आवाज में तालबद्ध रूप से नवकार गिनने लगे। आपत्ति के कारण सहज रूप से नाभि की गहराई में से निकली महामंत्र की ध्वनि की कोई अकल्पनीय असर उन लूटेरों पर हुई और वे भयभीत होकर आभूषणों का थैला भी वहाँ छोड़कर भाग गये और सभी घोर आपत्ति में से महामंत्र के प्रभाव से आबाद रूप से बच गये। उससे वे सदा के लिए नवकार के अनन्य उपासक बन गये। "मौत मर गयी"
मुम्बई के एक हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर के सगे भाई ने लन्दन में
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - हदय का ऑपरेशन करवाया। किन्तु ऑपरेशन नाकामयाब हुआ। डॉक्टरों ने उसे "क्लीनीकली डेड' मरा हुआ घोषित किया। वहाँ के रिवाज के अनुसार यदि ऑपरेशन सफल हो तो डॉक्टर रोगी के परिवार जनों को खुशखबरी देते हैं, किन्तु ऑपरेशन निष्फल रहे तो पीछे के दरवाजे से चले जाते हैं। इस अनुसारं डॉक्टर कागज पर उसे मृत घोषित कर पीछे के दरवाजे से चले गये। दो घंटे व्यतीत हो गये। परिवार जनों के श्वास ऊपर आ गये। भाई डॉक्टर घबरा गये। किसी को कोई जबाब नहीं दे सकते थे। उतने में अचानक चमत्कार हुआ। वह रोगी भाई एकदम जगकर बेठ गये। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ।
आसपास इकट्ठे हुए लोगों को देखकर उन्होंने पूछा कि, "तुम सभी किसलिए इकट्ठे हुए हो?" तब किसी ने उन्हें वस्तुस्थिति से वाकिफ किया कि- "तुम्हारा हार्ट का ऑपरेशन फेल होने से डॉक्टरों ने तुम्हें मृत घोषित किया था और तुम जीवित किस प्रकार हो?"
तभी रोगी ने खुलासा करते हुए कहा कि -"मैं तो केवल गुरु |महाराज से मिलने भारत गया था।"
इनके गुरु महाराज अर्थात् दूसरे कोई नहीं, परन्तु कलिकाल में नवकार महामंत्र के अजोड़ साधक-प्रभावक, अजातशत्रु, अध्यात्मयोगी प.पूपंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा., कि जिन्होंने मेरे जैसे अनेक आत्माओं पर अन्त उपकार किया है, जिसका किसी प्रकार के शब्दों में वर्णन करना असम्भव ही है।
इन रोगी को उनके पास से नवकार किस प्रकार मिला वह हम देखें। मेरे विदेश प्रवास के दौरान, नवकार महामंत्र के बारे में मेरे वार्तालाप से प्रभावित होकर वह भाई लन्दन में मेरे परिचय में आये, तब उस भाई को मैंने गुरु मुख से नवकार ग्रहण करने की प्रेरणा दी। उससे इस भाई को पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. के पास से नवकार ग्रहण करने की भावना हुई, और खास नवकार लेने के लिए ही लन्दन से विमान द्वारा भारत आये। गुरु मुख से नवकार ग्रहण करने के बाद ही अन्न-जल लेने का उन्होंने अत्यन्त अनुमोदनीय संकल्प किया।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - वह प्रातः 6-00 बजे मुम्बई पहुंचे। दो स्थानों पर पंन्यासजी महाराज की तलाश करते करते योगानुयोग दोपहर 12-39 बजे विजय मुहूर्त में वह राजस्थान के पिंडवाड़ा गांव में विराजमान. पू. पंन्यास श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. के पास पहुंचे। उनकी ऐसी विशिष्ट तत्परता एवं पात्रता देखकर पंन्यासजी महाराज साहेब ने भी तुरन्त 12 नवकार गिनकर अत्यंत भावपूर्वक उनको तीन बार बड़ी आवाज से नवकार बोलाया और वासक्षेप द्वारा आशीर्वाद देकर नियमित नवकार महामंत्र का जाप करने की प्रेरणा दी।
ऊपर बताये अनुसार मौत के मुख में से वापिस आये वह भाई उसके बाद 15 दिन तक अस्पताल में रहे। उस दौरान 60 जितने रोगियों के ऑपरेशन हुए और सभी सफल हुए, क्योंकि उपरोक्त घटना से प्रभावित हुए सभी रोगियों के परिवार जन ऑपरेशन करवाने से पहले रोगी को उनके पास ले आते, तब यह भाई पूज्यपाद पंन्यासजी महाराज की तस्वीर के सामने रोगी को बिठाकर तीन नवकार बड़ी आवाज में गिनाते। गुरु महाराज के प्रति अनन्य आस्था के कारण सभी ही ऑपरेशन सफल हुए। यह भाई आज भी जीवित हैं! वास्तव में नवकार मंत्र के प्रति आस्था से कौनसा कार्य सिद्ध नहीं होता यही सवाल है।
(भय का उच्चाटन-अभय का उद्घाटन करता श्री नवकार )
कुछ वर्ष पूर्व अफ्रीका में तीन दिन तक "कूप" अर्थात सैन्य विद्रोह हुआ था। तब नेरोबी में सेना के लिबास में तीन चार लूटेरे एक |घर में घुस गये। उन का घर हिल स्टेशन के पास अलग बंगले के रूप में था। बंदूकधारी लूटेरों ने घर के सदस्यों से 20 लाख रुपयों की मांग की. उन्होंने उस समय 6 लाख रूपये जितना माल लुटेरों को सौंप दिया और शेष रकम बैंक में है ऐसा बताया। इससे उन्होंने उनके 22 वर्ष के नवयुवान लड़के की छाती पर बंदूक की नोंक रखकर, धमकी देते हुए कहा कि, "हम 10 तक गिनती बोलेगें। तब तक में तुमने घर में जहाँ भी धन छिपाया हो, वह हमारे सामने पेश कर दो, नहीं तो इस लड़के
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को अभी ही मार डालेंगे !
यह सुनते ही सभी के प्राण ऊपर आ गये। वास्तव में उनके पास घर में दूसरी रकम थी ही नहीं, इसलिए कहाँ से दें।
इस ओर डाकुओं के सरदार ने गिनती बोलनी शुरू कर दी। एक... दो...तीन... चार... पांच... छः...सात...
इस घटना के घटने से कुछ महिने पहले वे मेरे सम्पर्क में आये थे। मैंने उन्हें घर में पंचधातु के जिन प्रतिमाजी विराजमान करने के लिए विशेष सलाह दी थी। प्रतिदिन इस प्रभुजी के समक्ष नवकार महामंत्र गिनने की भी प्रेरणा की थी। उस अनुसार उन्होंने घर में प्रभुजी को विराजमान किया और प्रतिदिन उनके समक्ष नवकार गिनने लगे।
इसलिए उपरोक्त आपत्ति के समय घर के सभी सदस्यों ने प्रभुजी के समक्ष नाभि की गहराई से जोर से नवकार गिनना प्रारम्भ कर दिया।
वह डाकू आठ... नौ बोलकर जैसे भी बन्दूक का बटन दबाने लगते हैं वैसे ही एक अकल्पनीय घटना बन गयी ।
वास्तविक सेना के जवान वहाँ आ पहुंचे और उसी ही क्षण उन सभी ही नकली जवानों (लूटेरों ) को धड़ाधड़ गोलियों से बींध डाला डाला और घर के सभी ही सदस्य आबाद बच गये।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि, तब से लेकर घर के सभी ही लोग प्रभुजी एवं नवकार के अनन्य उपासक बन गये।
वास्तव में, जो अनन्य शरण भाव से नवकार की शरण में जाता है, उसका बाल भी बांका कौन कर सकता है?
खजाने की रक्षा करने वाला - श्री नवकार
यह भी नैरोबी में बसे और मेरे परिचय में आये दो सगे जैन भाइयों की बात है। वे प्रतिदिन नवकार महामंत्र का नियमित स्मरण करते थे।
एक दिन सुबह के समय में 6 बजे अचानक तीन शस्त्रधारी गुंडे
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घुस गये और बंदूक की नोंक के बल पर घर की सभी अलमारियों की चाबियां छीन लीं।
घर के 12 सदस्यों को एक कमरे में बन्द कर दिया। केवल अलमारियां खुलवाने के लिए एक ही भाई को गुंडों ने अपने साथ रखा। कमरे में बन्द सभी ही सदस्य भावपूर्वक नवकार गिनने लगे ।
गुंडों ने एक अलमारी खोलने का प्रयास किया परन्तु वह नहीं खुली। इसलिए दूसरी एक मुख्य अलमारी - जिसमें 10 लाख रूपये के गहने थे, उसकी चाबी होने के बावजूद भी खोलना भूल गये ! अन्य अलमारियों में टेप वगैरह 25 हजार रुपये जितना फुटकर समान था उसे लेकर भाग गये। 'सूली की सजा और सूई में निपटें' वह इसका नाम ।
वास्तव में, अंतर के खजाने को खोलने की मास्टर चाबी के समान नवकार महामंत्र जिसके पास है, उनके बाह्य खजाने की भी रक्षा होती है, उसमें आश्चर्य क्या ?
कष्ट निवारक - श्री नवकार
मेरे सुपरिचित एक जैन श्रावक को कस्टम ऑफिस वाले ले गये । विशिष्ट प्रकार के खास चेम्बर में विशेष प्रकार की यांत्रिक कुर्सी पर उनको बिठाकर, उनके समक्ष विचित्र प्रकार की इलेक्ट्रीक लाइट के मशीन आदि रखकर उनकी जांच करने की शुरूआत करने लगे।
कस्टम वालों का जांच करने का यह तरीका अत्यन्त कष्टदायक - पीड़ाजनक होता है। घंटों तक पूरी जांच चलती है। विचित्र प्रकार की मशीनों द्वारा व्यापारी के दिमाग की गुप्त बातें उसके ही मुंह से बुलवाने के लिए अमानवीय प्रयोग किये जाते हैं। कई उल्टे-सीधे प्रश्नों की बौछार की जाती है।
उस भाई की भी ऐसी ही दुर्दशा होने की संभावना थी। परन्तु उनकी धर्मपत्नी भी साथ ही गयी थी । वह अनन्य श्रद्धा से नवकार
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - महामंत्र और उवसग्गहरं स्तोत्र का स्मरण करने लगी। .
परिणामस्वरूप कठीन प्रश्न पूछने वाला वह कस्टम ऑफिसर भी जो विशेष प्रश्न पूछने होते हैं वे ही भूल गया और सीधे-सादे प्रश्न पूछकर आधे घण्टे में ही उनको छोड़ दिया, उसके साथ उसने कबूल करते हुए कहा कि, "10 हजार लोगों में कोई एकाध आदमी इस प्रकार छूटे, जिस प्रकार तुम छूटे हो," ऐसा कहकर उनका पासपोर्ट भी वापिस दे दिया।
उपरोक्त पांचों घटनाएं नवकार महामंत्र के असीम अनन्त प्रभाव की ओर अंगुली निर्देशित करती हुई अपने को भी महामंत्र का अनन्य उपासक बनने के लिए विशेष प्रेरणा देती हैं।
मुझे स्वयं को भी अनंतोपकारी, पूज्यपाद, गुरुदेव प.पू. पंन्यास श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. की असीम तृपा से- प्रेरणा से नमस्कार माता की गोद में सोने का और उसकी आध्यात्मिक तृपा प्राप्त करने का वचनातीत सद्भाग्य मिला है, उस कारण मैं अपने जीवन को धन्य मानता हूँ।
सभी जीव महामंत्र की साधना द्वारा जीवन की सफलता को प्राप्त करें यही मंगल कामना।
लेखक : शशिकान्तभाई के. मेहता "भद्रंकर" बिल्डिंग, 34 करणपरा,राजकोट पिन: 360001 फोन नं. घर : 26126, ऑफिस : 22331 फेक्ट्री : 27756 सरपंच लालुभा वाघेला के अनुभव
"श्रद्धालु श्रोता और अनुभवी सद्गुरु का योग कलिकाल में भी अद्भुत परिणाम ला सकता है, वह लालुभा के प्रत्यक्ष दृष्टान्त से हम समझ सकेंगे।
सं. 2037 के वैशाख महीने की किसी धन्य घड़ी में ट्रेन्ट गांव (तहसील-विरमगाम, जिला-अहमदाबाद) के निवासी लालुभा को
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - वांकानेर-टंकारा के बीच में आये जड़ेश्वर महादेव की धर्मशाला में नवकार महामंत्र के आराधक प.पू.पं. श्री महायशसागरजी गणिवर्य म.सा. (हाल आचार्य श्री) का सत्संग मिला।
पूज्यश्री विहार करते-करते आसपास में जैन स्थान न होने से जड़ेश्वर महादेव धर्मशाला में एक दिन के लिए रुके थे और भवितव्यतावशात् ट्रेन्ट के सरपंच भी अपने भानजे के हदय के वाल्व के ऑपरेशन के बाद मानता पूरी करने जड़ेश्वर महादेव मन्दिर में दर्शन करने आये थे। वहाँ धर्मशाला में उपरोक्त जैन महात्मा को देखकर किसी पूर्व के संकेत अनुसार लालुभा अपने भानजे को एकदम अच्छा हो जाए, वैसी भावना से उनके आशीर्वाद लेने आये। 'सवि जीव करुं शासनरसी' की भावना में रमते हुए पूज्य श्री ने वात्सल्यमयी वाणी से उनको व्यसन त्याग करने की प्रेरणा दी। 'कम्मे सूरा सो धम्मे सूरा' पंक्ति को चरितार्थ करते हुए शैव धर्मानुयायी लालुभा ने एक ही क्षण में हाथ में पानी लेकर शंकर |तथा सूर्यनारायण की साक्षी में प्रतिदिन 100 बीड़ी पीने की अपनी वर्षों |
पुरानी आदत को सदा के लिए जलांजली दे दी। उनकी ऐसी पात्रता | देखकर पूज्य श्री ने भी यथायोग्य उपबृंहणा की। परिणाम स्वरूप चातुर्मास के दौरान पूज्य श्री के दर्शन करने हेतु खास अहमदाबाद गये। अपने भानजे को एकदम ठीक होने से लालुभा की पूज्य श्री के प्रति श्रद्धा बढ़ती गयी।
उसके फलस्वरूप लालुभा सं. 2038 में पूज्य श्री के जामनगर चातुर्मास के दौरान पत्र द्वारा पूज्य श्री के समाचार प्राप्त कर दर्शन करने चार बार जामनगर जाकर आये। प्रश्नोत्तरी द्वारा शैव धर्म एवं जैन धर्म के तत्त्वों का रहस्य समझे। पहले, महिने में दो बार इग्यारस का फलाहार युक्त उपवास करने वाले लालुभा अब केवल अचित्त पानी से शुद्ध | उपवास करने लगे। उन्होंने सात महाव्यसनों, कंदमूल एवं रात्रि भोजन का
सदा के लिए त्याग किया। अपने सगे भाई की लड़की की शादी में भी | रात्रि भोजन नहीं किया। शाम को प्रतिदिन चौविहार एवं सवेरे नवकारसी का पच्चक्खाण करने लगे। उन्होंने प्रतिदिन एक पक्की नवकार मंत्र की
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
माला का जाप शुरू किया। वह जैन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धावान बने ।
उस चातुर्मास में उपधान तप की क्रिया देखकर उनमें क्रिया रुचि उत्पन्न हुई और प्रतिदिन मौन पूर्वक एक सामायिक करना प्रारम्भ किया । अपने उपकारी गुरुदेव जहाँ भी हों वहां प्रतिवर्ष जाकर पर्युषण में एकान्तर चार उपवास एवं चार एकासन पूर्वक 64 प्रहरी पौषध करना प्रारम्भ किया । यह क्रम पिछले 12 वर्ष से अटूट रूप से चालु ही है।
ट्रेन्ट गांव में एक भी जैन घर नहीं होने के बावजूद जैन धर्म का पालन करने के कारण प्रारम्भ में लालुभा को ग्रामवासियों का तीव्र विरोध सहना पड़ा। तब व्यवहार दक्षता का उपयोग कर लालुभा ने अपने गुरुदेव श्री के मार्गदर्शन अनुसार शिव मन्दिर में जाकर भी
भवबीजांकुर जनना, रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥
भावार्थ:- संसार रूपी बीज में से अंकुर उत्पन्न करने वाले राग द्वेषादि दोषों का जिसने नाश कर दिया है, वैसे जो कोई भी देव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश या जिनेश्वर प्रभु हों, उन्हें मेरा नमस्कार हो । यह श्लोक बोलकर बाह्य दृष्टि से शिवलिंग के दर्शन करते दिखते लालुभा भाव से तो जिनेश्वर प्रभु को ही नमस्कार करते थे।
गजब का गुरुसर्मपण रखने वाले लालुभा ने सं. 2045 में गुरुदेव श्री के साथ वर्षीतप प्रारम्भ किया और पारणा भी गुरुदेव के साथ हस्तिनापुर तीर्थ में किया।
उन्होंने सं. 2048 में वर्धमान तप की नींव डाली। उसी तरह कषायजय तप तथा धर्मचक्र तप पूरा करने के बाद वीरमगाम से प्रभुजी को ट्रेन्ट गांव में लाकर ठाठ-बाठ से स्नात्र महोत्सव करके पूरे गांव को भोजन करवाया, किन्तु स्वयं ने तप निमित्त से दी जा रही प्रभावना का भी नम्रतापूर्वक अस्वीकार किया।
उन्होंने सं. 2049 में की फा.सु. 13 को शत्रुंजय गिरिराज की छः कोस की यात्रा तथा आदिनाथ दादा की पूजा की। दादा की छत्रछाया में,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - उपकारी गुरुदेव श्री की निश्रा में उपधान तप कर मोक्ष माला का परिधान किया। उन्होंने श्रावक के 12 व्रतों में से कितने ही व्रत-नियम स्वीकार किये। परिग्रह का परिमाण किया। सरकारी विभाग में वर्षों तक चौकीदार के रूप में नौकरी करने के बाद खेतीबाड़ी की। खेतीबाड़ी में भी जीवदया का विशेष लक्ष्य रखने लगे।
खानदानी कुल में पैदा हुए सन्तानों को भी आज के टी.वी युग में माता-पिता के पैर छूते शर्म आती है, वहाँ 60 वर्ष के लालुभा आज भी प्रतिदिन अपने माताजी के अवश्य पैर छूने में गौरव एवं आनन्द का अनुभव करते हैं।
वे जब भी ट्रेन्ट से विरमगाम जाते हैं, तब वहाँ जो भी जैन मुनिवर हों, उनको भावपूर्वक वंदन कर व्याख्यान सुनते हैं और चातुर्मास के दौरान वहाँ जो भी तपश्चर्या चलती हो उसमें जुड़ जाते हैं।
उन्होंने धार्मिक सूत्रों में गुरु वंदनविधि के सूत्र तथा सामायिक लेने एवं पालने की विधि के सूत्र कंठस्थ किये हैं।
___ व्याख्यानादि में जो भी अच्छा सुनें उसे तत्काल अमल में लाने की वृत्ति वाले लालुभा ने सं. 2042 में अंधेरी में पर्युषण पर्व के दौरान अपने उपकारी गुरुदेव श्री के मुख से क्षमापना के बारे में व्याख्यान सुना और तत्काल अपने प्रतिस्पर्धी चैयरमेन के वहाँ सामने से जाकर क्षमापना कर उन्हें खमाया। यह देखकर चैयरमेन भी आश्चर्यचकित बन गये और वे सदा के लिए लालुभा के खास दोस्त बन गये। नवकार और धर्मनिष्ठा के प्रभाव से लालुभा के जीवन में घटी चमत्कारिक घटनाएं :
(1)खून की उल्टी बन्द हुई:- प्रतिदिन के क्रम के अनुसार लालुभा मौनपूर्वक सामायिक कर रहे थे, तब उनके घर आये उनके भानजे को अचानक खून की उल्टी होने से परिवार जन खूब घबरा गये। उसे अहमदाबाद अस्पताल में ले जाने की तैयारी करने लगे। तब नवकार मंत्र के प्रति गजब की निष्ठा रखते लालुभा ने मौनपूर्वक इशारे से गरम | (अचित्त) पानी मंगवाया और एक पक्की नवकार की माला का जाप कर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - माला पानी में डाली। उसके बाद उसे बाहर निकालकर वह पानी भानजे को पिलाते खून की उल्टी बन्द हो गयी, अस्पताल में जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
(2) सर्प का जहर उतर गयाः- ट्रेन्ट गांव में एक कोली के युवान लड़के को जहरी सर्प के काटने से, लड़का मृत प्रायः होकर गिर पड़ा। उसे बैलगाड़ी में डालकर उसके माता-पिता रोते-रोते लालुभा के पास आकर लड़के को बचा लेने की याचना करने लगे। दयालु लालुभा ने गुरुदेव को याद करके उपर अनुसार एक पक्की नवकार की माला से अभिमंत्रित जल का, जहर से बेहोश हुए लड़के के मुख पर छिड़काव किया और सभी के आश्चर्य के बीच लड़का तुरन्त आलस्य मोड़कर खड़ा हो गया और चलने लग गया। जहर उतर गया। लड़के के माता-पिता लालुभा को पैसे देने लगे। परन्तु निःस्पृही लालुभा ने एक पैसा भी नहीं लेते हुए वे पैसे जीवदया में खर्च करने की सलाह दी। जब वे स्वयं सरपंच थे, तब लालुभा ने अत्यंत ही नीतिपूर्वक कई ग्रामवासियों के झगड़े घर बैठे निपटा दिये, किन्तु किसी के पास से एक पैसा भी नहीं लिया था।
(3) छः माह पुराना पेट का असह्य दर्द गायब हो गयाः- ट्रेन्ट गांव में साइकिल से डाक पहुंचाते ब्राह्मण डाकिये के पेट में असह्य दर्द शुरू हुआ। महिनों तक अहमदाबाद जाकर उपचार कराने के बाद भी उसका दर्द शान्त नहीं हुआ। आखिर में लालुभा के पास आकर विनति करने पर उपरोक्त प्रकार से 108 नवकार से अभिमंत्रित जल पिलाते दर्द सदा के लिए दूर हो गया।
(4) बिच्छू के डंक की पीड़ा शांत हुई :- एक बार लालुभा के हाथ में काले बिच्छू के डंक देने से हाथ में अवर्णनीय, असह्य, भंयकर पीड़ा होने लगी। यह देखकर उनके माताजी ने गारुड़ी मांत्रिक को बुलाने की तैयारी की। परन्तु लालुभा ने उन्हें ऐसा करने से रोककर एक कमरे में बैठकर, दरवाजा बन्द कर एक घण्टे तक एकाग्रचित से श्रद्धापूर्वक नवकार
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? महामंत्र का जाप किया। परिणाम स्वरूप बिच्छू के डंक की पीड़ा भी घण्टे में सम्पूर्ण रूप से शान्त हो जाने से अनेक लोगों को जैन धर्म तथा नवकार महामंत्र पर श्रद्धा हुई।
(5) धरणेन्द्र नागराज के दर्शन हुएः- एक बार नित्य क्रमानुसार लालुभा सामायिक लेकर शंखेश्वर पार्श्वनाथ की तस्वीर सामने स्थापित कर जाप कर रहे थे। सामायिक पालने में दसेक मिनट देरी थी। वहीं तो अचानक विशाल धरणेन्द्र नागराज वहाँ आ पहुँचे और पार्श्वनाथ की तस्वीर पर फण धारण कर थोड़ी देर स्थिर रहे। यह दृश्य देखकर लालुभा क्षण भर तो स्तब्ध बन गये। परन्तु जाप में स्थिर रहे। वहाँ से घबरा कर उठ नहीं गये। नागराज आखिर में थोड़ी देर बाद फण सिकुड़कर थोड़े दूर कोने में पड़े लोहे के सामान में अलोप हो गये। सामायिक पालने के बाद लालुभा ने वहाँ जाँच की, किन्तु नागराज नहीं दिखाई दिये।
(6) खारे समुद्र में मीठा जल :- सं. 2043 के अकाल के समय आसपास के खेतों में ट्युबवेल खोदने पर खारा पानी निकला। परन्तु लालुभा के खेत के ट्युबवेल में ही मीठा पानी निकलने पर लालुभा ने सभी को उदारता से मीठा पानी देकर सभी का प्रेम प्राप्त किया।
(7) जीवदया का चमत्कार :- एक बार ट्रेन्ट गांव के खेतों में जीरे की फसल में बंटी नाम का रोग व्यापक पैमाने पर फैला था। किन्तु खेत में कभी भी जंतुनाशक दवा का उपयोग नहीं करने वाले लालुभा की फसल में यह रोग नहीं लगा। यह देखकर गांव के लोगो में जैन धर्म के प्रति भारी अहोभाव जगा!
(8)केन्सर केन्सल हुआ :- लालुभा के छोटे भाई की धर्मपत्नी वेलकुंवरबा को गर्भाशय का केन्सर था। डॉक्टरों ने उसे असाध्य घोषित किया था। लालुभा ने श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की अट्रम तप का संकल्प करके नवकार से अभिमंत्रित पानी पिलाने से कुछ ही दिनों में केन्सर मिट गया। डॉक्टर भी चकित रह गये। शासन प्रभावना हुई। .
लालुभा के एक पुत्र जयेश ने नवसारी में पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? चन्द्रशेखरविजयजी म.सा. द्वारा प्रेरित तपोवन में कक्षा 8 से 10 तक पढ़ाई कर जैन धर्म के सुन्दर संस्कार प्राप्त किये हैं।
सुप्रसिद्ध कथाकार श्री मोरारी बापू वगैरह जैनेतर साधु-सन्त भी लालुभा के आचार-विचार और उच्चार को देख-सुनकर जैन धर्म से बहुत प्रभावित हुए हैं।
वास्तव में लालुभा का जीवन जैन कुल में पैदा हुए अनेक आत्माओं के लिए भी विशेष प्रेरणादायक है।
लालुभा को कोटि कोटि धन्यवाद, साथ में उनको धर्म मार्ग में जोड़ने वाले पूज्य श्री को कोटि-कोटि वन्दन ।
लेखक:- संपादक
मंत्राधिराज श्री नवकार का तेज )
पूर्व के किसी महान पुण्योदय से मुझे धर्मराज श्री जैन धर्म में जन्म मिला। उसमें श्री नवकार महामंत्र का प्रभाव वर्णनातीत है। यदि अटल श्रद्धा से उसका स्मरण किया जाए तो इस भयंकर कलियुग में भी वह मनोवांछित पूर्ण करता है।
'लाख-लाख है विनति मेरी लो आश्रय महामंत्र नवकार का
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"
आज से तीन वर्ष पूर्व मैंने उच्चतर माध्यमिक बोर्ड की एस. एस. सी. की परीक्षा 72 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी। मैंने उसके बाद एच. एस. सी. की परीक्षा देने का निर्णय किया, परन्तु पूर्व के पापोदय के कारण मैं अपने मन को पढ़ाई में नहीं रख सका । मेरा मन हमेशा बाह्य प्रवृत्तियों में खेलता था । परिणाम यह आया कि मैं एच. एस. सी. (10+2 पद्धति) की परीक्षा में अनुत्तीर्ण घोषित हुआ। मुझे अपनी वास्तविकता का ख्याल आ गया। उस समय मेरे जीवन में धर्म नाम मात्र का ही था।
अब, मैंने अपना मन धार्मिक प्रवृत्तियों में रखना प्रारम्भ किया। मैं धीरे-धीरे श्री नवकार मंत्र से सम्बन्धित पुस्तकें पढ़ने लगा। इसी दौरान
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
मेरे लिए एस. एस. सी. के बाद की सरकारी पोलीटेक्नीक में इन्टरव्यु आया ओर इसी दौरान मैंने रोज प्रभु पूजा करना शुरू किया। मैंने प्रतिदिन सवेरे जल्दी उठकर भगवान की पूजा कर एक पक्की नवकार की माला गिनना प्रारम्भ किया।
इस मंत्राधिराज श्री नवकार में रही हुई मेरी अपूर्व श्रद्धा से मुझे श्री नवकार का चमत्कार केवल दो ही महीनों में देखने को मिला। जब इन्टरव्यु था, तब मुझे बहुत ही उत्साह था। किन्तु मुझे सरकारी | पोलीटेक्नीक में प्रवेश नहीं मिला। मैंने तो उसके बाद आशा ही छोड़ दी थी, परन्तु महामंत्र श्री नवकार पर मुझे अडिग श्रद्धा थी ।
मंत्राधिराज महामंत्र का देखते ही देखते चमत्कार होने से दुबारा प्रवेश के लिए इन्टरव्यु निकला। मेरे लिए तो यह अंधेरे में रहने वाले के लिए एक प्रकाश की किरण थी, क्योंकि यदि मुझे प्रवेश नहीं मिलता तो मेरी जिन्दगी में पढ़ने के द्वार बन्द थे। इस इन्टरव्यु में भी प्रवेश मिले ऐसा निश्चित नहीं था। परन्तु मैंने तो अपना जीवन श्री नवकार को समर्पित कर दिया था। मैं इन्टरव्यु देने के लिए अहमदाबाद पहुंचा, तब तक मेरे मन एवं हृदय में श्री नवकार का स्मरण था। जब मुझे प्रवेश मिला तब तक मैंने नवकार का स्मरण चालु रखा था। मुझे सिविल इन्जिनीयरींग (मोरबी) में प्रवेश मिल गया।
इस प्रकार श्री महामंत्र नवकार के चमत्कार का मुझे अनुभव हुआ । आप के पास केवल एक ही आशा रखता हूँ, कि आप भी अपने जीवन में नवकार मंत्र को अपनाओ। "जैन जयति शासनं
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लेखक- बीजल शाह विघ्नेश्वर मोहल्ला, महुवा, जिला- सुरत (गुजरात) 392250
महामंत्र नवकार
एक समय मैं कोई ईश्वर भक्त या आस्तिक आदमी नहीं था। कालमार्क्स के विचारों के कारण मैं आग के गोले की तरह कम्युनिस्ट बन * यहाँ से प्रारंभ होते 20 दृष्टांत 'श्री नवकार यात्रा' किताब में से साभार उद्धृत किये गये हैं।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - गया था। मैंने रशियन क्रान्ति के सूत्रधार लेनिन के बारे में एक पुस्तक भी लिख डाली थी। हाँ, जन्म से जैन होने के कारण पूँजीवाद को समाप्त करने के लिए स्टेलिन द्वारा आचरित हिंसा से मैं सहमत नहीं था। फिर भी, धर्म गरीबों को गरीबी में ही सोया रखने का एक साधन है, ऐसा मैं स्पष्ट रूप से मानता था। ईश्वर के अस्तित्व का स्पष्ट इन्कार करता था।
मुझे थोड़े अनुभव के बाद विश्वास हो गया था कि रशियन साम्यवाद भारत में काम आये वैसा नहीं है। ऐसे में पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच के मार्ग के रूप में विनोबा भावे ने भूमिदान आन्दोलन शुरू किया। मैं भी उसकी ओर आकर्षित हुआ। भूमिदान आन्दोलन ने आम जनता में क्या असर पैदा की? उसका अध्ययन करने में काफी गांव घुमा। उसके बाद "भूमिदान नी भीतरमा' नाम से एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक ने सरकार के सामूहिक विकास मंत्रालय दिल्ली की ओर से 'बेस्ट बुक ऑफ गुजराती लेंग्वेज' का पुरस्कार जीता। मेरी 23 से 24 वर्ष की उम्र तक में ऑल इण्डिया रेडियो-अहमदाबाद, वड़ोदरा से मेरे कई नाटक प्रसारित हो चुके थे।
उपरोक्त पूर्व भूमिका लिखने का कारण यही है कि, पवित्र नवकार मंत्र में कैसी अद्भुत शक्ति है, वह आदमी को कहाँ से कहाँ पहुंचाता है, किस प्रकार उसका बचाव करता है, वह दिखाना है।
चलो तो अब मैं अपनी मूल बात पर आता हूँ। मैं ऐसे गांव में जन्मा था, जहाँ "अ आ" सीखने के लिए भी प्राथमिक शाला नहीं थी।
मेरा गांव एकदम गरीब था। रुखी-सूखी धरती और खारा पानी होने से प्रगति की कोई निशानी नहीं थी। गुजराती भाषा में आते पत्रों को पढ़ने के लिए मेरे माता-पिता और बड़े चाचा के अलावा दूसरा कोई पढ़ा हुआ नहीं था।
संक्षेप में, मेरा गांव संपूर्ण रूप से अंधकार में डूबा हुआ था। मेरे लिए पढ़ना अनिवार्य था। उस कारण हमारे कारीयाणी गांव के पास वढवाण शहर की धुड़ी स्कूल या खांडी पोल की शाला में मैंने प्रारम्भिक
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? शिक्षण का प्रारम्भ किया। उसके बाद जोरावर नगर की जैन स्कूल, सुरेन्द्रनगर की एन.टी.एम. हाईस्कूल में और अन्त में दिवान बल्लूभाई हाईस्कूल तक का मेरा मेट्रीक का शिक्षण पूर्ण किया।
परन्तु मेरे जीवन में नवकार मंत्र के महत्त्व का ज्ञान तो जोरावरनगर स्थानकवासी जैन संघ की ओर से चलती जैन शाला में से ही आया। जोरावरनगर में स्थानकवासी जैनों की बस्ती ज्यादा होने से उपाश्रय के साथ जैन शाला की प्रवृत्ति भी अच्छे ढंग से चलती थी। बचपन से ही धार्मिक संस्कारों का सिंचन हो, ऐसी उनकी तीव्र इच्छा थी। ___ में ऐसे इनके दबाव से इच्छा या अनिच्छा से जैनशाला में जाने लगा। हमारे जैन शाला के शिक्षक, उपाश्रय के मुनि महाराज के उपरान्त जैन शाला के बालकों को भी धार्मिक अभ्यास करवाते थे। उनका एक पैर लंगड़ा होने के कारण आपस में हम उन्हें लंगड़ा साहब भी कहते थे।
किन्तु हमारी जैन शाला के यह लंगड़े साहब खूब स्नेहालु थे। नवकार मंत्र का पहला पाठ 'नमो अरिहंताणं उन्होंने मुझे रटा-रटा कर पक्का करवाया। मुझे प्रथम दिन ही नवकार मंत्र के पांच पद सीखा दिये थे।
धार्मिक शिक्षण के साथ-साथ हमारी पाठशाला के साहब हमको कितनी ही धार्मिक वार्ताएं सनाते थे और सीधा एवं सरल धार्मिक उपदेश भी देते थे। उन्होंने मेरे मन में एक बात ऐसी दृढ़ कर दी थी कि, "यदि तुमको रात के अंधेरे में डर लगता हो, तो रात में सोते समय 21 नवकार मंत्र का स्मरण करके सो जाओ। प्रतिदिन रात्रि में सोने से पहले 21 नवकार मंत्र का स्मरण करके सोने से भूत-प्रेत का डर नहीं लगता है। सांप या बिच्छू जैसे जहरीले जन्तु तुमको काटते नहीं, या बाघ, सिंह जैसे हिंसक प्राणी तुमको नींद में नहीं मार सकते हैं।" ___में गुरुजी से बचपन में सीखी कई बातें भूल गया था। किन्तु वह 21 नवकार गिनकर सोने की बात मैं आज तक नहीं भूला। मैं बड़ी उम्र में कार्लमार्क्स के विचारों की असर के कारण ईश्वर के अस्तित्व का इन्कार करने के बावजूद 21 नवकार वाली बात नहीं भूल सका। मैंने
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अधूरी श्रद्धा या अश्रद्धा से नवकार मंत्र और वो भी 21 नवकार ही गिनना चालु रखा और उसने मेरे जीवन में जबरदस्त क्रांति पैदा की। | जिस गांव में प्रारम्भिक शिक्षण के लिए भी प्राथमिक शाला नहीं थी, ऐसे सौराष्ट्र के अंधेरे. कोने में आये हुए गांव में जन्मा मैं 23 वर्ष की उम्र में ऑल इण्डिया रेडियो-अहमदाबाद बड़ौदा का नाट्य लेखक बना। इसी समय में "भूमिदान, नी भीतरमा नाम की मेरी पुस्तिका को केन्द्र सरकार ने पुरस्कृत किया। गुजरात सरकार ने भी मेरी एक पुस्तिका प्रकाशित की। प्रख्यात नट और दिग्दर्शक प्राणसुख नाटक ने मेरा थ्री एक्ट प्ले स्टेज किया, जिनको पिछले दिनों राष्ट्रपति ने पुरस्कृत किया था। । मुझे सरकारी नौकरी में भी मेरी धारणा के अनुसार सफलता मिली। में अन्त में शिक्षा अधिकारी (राजपत्रित अधिकारी) की नौकरी से निवृत्त हुआ। आज सेवानिवृत्त होने के बाद 15 जितने मेरे मौलिक नाटक आकाशवाणी-अहमदाबाद से प्रसारित हो चुके हैं। मेरे टेलीविजन अर्थात् इसरो अहमदाबाद के पीज केन्द्र से 30 जितने नाटक प्रदर्शित हो चुके हैं। मेरी सेवा निवृत्ति के बाद अब साहित्य प्रवृत्ति में गति तेज हुई है। यह सब मेरे 21 नवकार मंत्र के जाप का ही प्रभाव है। ऐसा मैं स्पष्ट रूप से मानता हूँ। मेरे अरिहन्त से मैंने जो मांगा है, वह दिया है। उसने भीषण गरीबी में से मेरा उद्धार किया है। यह बात तो भौतिक लाभ की हुई। परन्तु समय समय पर मेरे अरिहंत ने मेरा किस-किस प्रकार बचाव किया है। यह बात अब क्रमशः पेश करता हूँ।
(1) कुएं में गिरता बचाः- मुझे पांच से सात वर्ष की उम्र में पानी में कूदकर नहाने का बहुत शौक था। इस उम्र में अपने से बड़ी उम्र के लड़कों को पानी में गिरकर तैरते देखकर मुझे भी कुंए में गिरकर तैरने के विचार आते एक दिन में कहे बिना गांव के एक खुले कुएं में कूदने हेतु तत्पर हुआ। मैंने कुएं की पाल पर से दो कदम दौड़कर कुएं में कूद भी लगाई। मेरे पैर कुंए की पाल से हवा में उठ गये थे। कुएं में गिरना मेरे लिये तय था। किन्तु इसी पल हवा का इतना जोरदार झोंका आया कि
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में वहाँ से कुएं में गिरने की बजाय पुनः पाल पर फेंक दिया गया। मैं खड़ा होकर दुबारा कोई प्रयास करूं, उससे पहले दूर से बड़े लड़के आ गये, मुझे कुएं की पाल से दूर खींच ले गये और ऐसा गलत कार्य करने के कारण उपालम्भ देने लगे ।
मैं भी इस घटना के बाद घबरा गया था। उस समय मेरी उम्र छोटी थी। उस कारण ज्यादा सोच नहीं सका। परन्तु जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गयी वैसे-वैसे मुझे मेरी मूर्खता याद आने पर मैं भय से कांप उठता था।
मैं ऐसा कोई श्रद्धालु आदमी नहीं कि वैज्ञानिक कसौटी किये बिना किसी बात को स्वीकार कर लूं। मैं ऐसे सरल स्वभाव का आदमी नहीं हूँ। परन्तु इस घटना का मैंने नये-नये रूपों से पृथक्करण किया। आज भी मुझे समझ में नहीं आता कि जिस समय हवा नहीं थी, उस समय मैं कुएं में कूदा तब अचानक तेज हवा का झोंका किस प्रकार आया? 20 से 25 किलो वजन का मैं किस प्रकार वापिस कुएं की पाल पर गिर गया ? मेरे कूदने के समय ही एकाएक हवा का जोरदार झोंका कहाँ से आया? यदि हवा का तूफान हो तो उसके बाद वातावरण यथावत् कैसे हो गया? मुझे कुछ समझ में नहीं आता, ऐसा अनुभव किससे हुआ? ऐसे अनेक तर्क मैंने किये, परन्तु मुझे कुछ समझ में नहीं आया। भगवान महावीर के बारे में मैंने कई तर्क किये हैं। परन्तु मेरी इस चमत्कारिक घटना के बारे में मैं कोई तर्क नहीं कर सका। अब मैं इसे मेरे नवकार मंत्र के चमत्कार के अलावा कुछ नहीं मानता हूँ ।
(2) नाग डंक से बचाः- जीवन और मृत्यु के बीच तीन इन्च का अंतर था। तब मुझ में अद्भुत हिम्मत कहाँ से आयी ? जिस उम्र में शीघ्र निर्णय नहीं कर सके, उस उम्र में एक क्षण का भी विलम्ब किये बिना चातुर्मास के दिनों में रास्ते के बीच फण फैलाकर डोलते नागराज पर से मैं किस प्रकार कूद गया? यह बात आज भी मुझे समझ में नहीं आती है।
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मैं चातुर्मास में वर्षा के भरपूर दिनों में वर्षा के पानी से भरे तालाब को देखने के लिए अधीर बना ।
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मैं आसपास नजर घुमाये बिना जल्दी से दौड़ रहा था, मैं पूरी गति से दौड़ रहा था। ऐसे समय मेरे दौड़ने के मार्ग में एक जहरीला नाग डेढ़ फीट उंची फण कर मस्ती से डोल रहा था। मैंने उसे देखा तब तक बहुत देरी हो चुकी थी। मैं पूरे जोर से दौड़ रहा था, इसलिए रुकने पर सीधा नाग के उपर गिरुं ऐसी स्थिति में था । आडा-तिरछा खिसकने का समय नहीं था। उससे एक पल के सौवें हिस्से में निर्णय कर, नाग से केवल डेढ़ या दो फीट के अन्तर से ऊँची कूद लगायी। मेरा एक पैर सांप के फण से दो इन्च की दूरी पर से निकल गया था। मैं भयभीत बन गया था। इस जहरीले सांप ने सहज ही अपनी फण उंची की होती तो मुझे डंश देने के स्थिति में था । परन्तु उसने ऐसा कुछ नहीं किया, सहज रूप से भयभीत बने बिना वाइपर कक्षा का यह नाग पहले जैसी अपनी मस्ती में फण हिलाकर डोल रहा था। मैं भयभीत था, लेकिन नाग मस्ती में था। मैं उस समय सांप की श्रेणी के बारे में समझता नहीं था, परन्तु बाद में जीमकोर्बेट नाम के शिकारी की पुस्तक के आधार पर बड़ी उम्र में मुझे पता चला कि जिस सांप के उपर से में कूदा था, वह सांप 'वाइपर' कक्षा का जहरीला नाग था। जिसके एक दंश से आदमी सौ कदम आगे नहीं दौड़ सके और एक ही पल में मौत की शरण में चला जाये। मुझे मेरे उस 21 नवकार गिनकर सोने की आदत ने मौत के मुँह से बचाया, ऐसा मैं आज स्पष्ट रूप से मानता हूँ ।
(3) पुस्तक जब्त हुई:- तीसरा अनुभव कुछ अलग ही किस्म का है । में 25 से 30 वर्ष की उम्र में साम्यवादी विचारों की असर में था। उससे मैंने जवानी के जोश में साम्यवादी रशियन नेता लेनिन के बारे में एक पुस्तक लिखी।
इस पुस्तक में ऐसे कुछ क्रांतिकारी साम्यवादी विचार तो नहीं थे। लेनिन का जीवन चरित्र ही था। परन्तु मेरी पुस्तक छपकर बाहर निकलने की तैयारी में ही थी और वहीं इस पुस्तक की सभी नकलें प्रेस में से जब्त हो गयीं। प्रेसवाले को काफी सहन करना पड़ा। परन्तु मुझे थोड़ी सी आंच भी नहीं आयी। मेरे अरिहंत ने मुझे सरकारी तंत्र के सिकंजे से बचा लिया था।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? (4) पलंग पर लटकता सांप:- मुझे सरकारी अधिकारी के रूप में सन् 1956-57 के समय में प्रख्यात जैन तीर्थ शंखेश्वर के पास के गांव में जमीन के काम के कारण रात रुकना पड़ा। उस समय पंचायत के | भवन नहीं बने थे। उससे एक भाई के घर में मुझे रात्रि विश्राम करना पड़ा। अंधेरा भी ठीक-ठीक था। लालटेन के मामुली प्रकाश के अलावा दूसरा कोई प्रकाश नहीं था। मैंने नींद नहीं आने के कारण यह लालटेन भी बुझा दी और सारी रात मस्ती में सो गया।
मैंने प्रातः होने के पहले मामुली प्रकाश में अपने पलंग के ऊपर नजर डाली, तो देखा कि बराबर मेरे पलंग के ऊपर आये छपरे के विभाग में दो सांप उलटे मुंह लटक कर झगड़ रहे हैं। यह दृश्य देखते ही में डर से कांप उठा। पंलग से जल्दी भागकर दूर खड़ा हो गया।
कैसा खतरनाक खेल थामेरे पंलग से ठीक सात-आठ फीट ऊपर | दो बड़े सांप लड़ रहे थे या मस्ती कर रहे थे! यदि रात के अंधेरे में लड़ते लड़ते मेरे बिस्तर पर गिरे होते तो मेरे क्या हालात होते? इस विचार से ही कंपकंपी छुट जाती है। भले ही सिर पर सांप लटकते थे, शायद पूरी रात भी लटकते होंगे, किन्तु मेरे 21 नवकार गिनकर सोने की आदत ने मेरा रक्षण किया होगा, यह निःसंदेह है।
(5) बाघ के मार्ग में :- पांचवी एवं अन्तिम घटना प्रख्यात जैन तीर्थ तारंगाजी के पर्वत और शेमोर डुंगर के बीच आये शेमोर नाम के गांव के पास में घटी। यह गांव महेसाणा जिले के खेरालु तहसील में आया हुआ है। उस गांव की पूर्व दिशा में तारंगाजी के प्रख्यात पर्वत का पिछला भाग आता है। यात्रालुओं के लिए उससे विपरीत दिशा में ढलान वाला मार्ग है। जबकि इस ओर चढ़ने के लिए कोई मार्ग नहीं और सीधी चढ़ाई है।
तारंगा के पर्वत के पीछे के भाग में 3-4 कि.मी. दूरी पर यह शेमोर नाम का गांव है। इस गांव की सहज दक्षिण दिशा में शेमोर का पर्वत है। | मुझे सरकारी नौकरी के दौरान जमीन के कार्य के लिए इस गांव में |
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कुछ दिन रहना पड़ा था। मेरे रहने का मकान गांव से थोड़ा दूर, एकदम अलग था। गांव और इस सरकारी मकान के बीच बड़ा मैदान था। मैदान के छोर पर यह मकान था। गर्मी के दिन थे। उस मकान के बाहर पलंग पर सोने से ही मुझे तारंगा पर्वत के सबसे उंचे स्थान पर आया जैन मन्दिर दिखाई देता था। शायद यह देहरी दादा के पगले के नाम से पहचानी जाती थी। मैंने दो रात तो इस प्रकार खुले में सो कर व्यतीत की। किन्तु तीसरी रात में जल्दी सवेरे गांव का चौकीदार मुझे. उठाने आ पहुंचा। सामान्यतः सरकारी कार्य में सरकारी अधिकारियों के नीचे काम में मदद के लिए सरकार की ओर से ऐसे कारकून श्रेणी के चौकीदार रखे जाते हैं। परन्तु ऐसे कोने में आये गांव में शायद ही कोई अधिकारी आने से यह भाई मनचाहे रूप से जहाँ-तहाँ फिरते रहते थे। मैं आया, उस दिन यह बाहर गांव गया था। उस कारण बाहर गांव से आने के साथ ही जल्दी सवेरे मेरे पास भूल के बदले में माफी मांगता था। दिलगीरी व्यक्त कर रहा था।
परन्तु ऐसा सब गांवो में सामान्य रूप से होते रहने के कारण मुझे नया नहीं लगा। परन्तु मुझे वास्तव में नयी बात तब लगी, जब वह मुझे उपालम्भ दे रहा हो इस प्रकार से उसने पूछा कि, 'साहब, आपको गांव से इतने दूर एकान्त में इस प्रकार खुले स्थान पर सोने को किसने कहा?'
में अपनी इच्छा से है. यहाँ सोया था, इसलिए मुझे किसी पर दोष देने का प्रश्न ही नहीं था। उससे मैं चुप रहा। इसलिए चौकीदार मेरे पलंग से 20-25 फीट दूर जमीन पर नजर डालकर बोला, "साहब, जरा आप इधर आओ तो! आपने यहाँ सोने में कितना बड़ा जोखिम किया है, उसका आपको पता पड़ता है?' __में स्वाभाविक रूप से उसके पास गया, तो उसने मुझे नरम जमीन पर बाघ के ताजे ही अस्पष्ट पदचिह्न भी बताये। मैं तो यह देखकर आश्चर्य में डूब गया। उससे पांच-दस फीट के अन्तर पर उसने मुझे दूसरे बाघ के पैर भी बताये। मैंने चमक कर इशारे से ही पूछा, 'यह क्या है?'
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - तब उसने मुझे विस्तार से बताया कि, 'साहब, इन दो दिनों में आप पंलग बिछाकर जहाँ सोये थे, उससे 15-20 फीट दूरी से एक बाघ हमेशा गुजरता था। यह उसका नियमित मार्ग है। अंधेरा होते यह बाघ शेमोर के पर्वत में से निकलकर तारंगा के पर्वत के पीछे के भाग में जाता है। जल्दी सवेरे वापिस शेमोर के पर्वत में चला जाता है। यह उसका नित्यक्रम है। आगे के भाग में तारंगाजी का देहरा होने से यात्रालुओं के आने-जाने के कारण से उस ओर नहीं जाता है। जल्दी सवेरे वापिस घुम जाता है।
चौकीदार की बात सुनकर मैं तो भयभीत हो गया। मैंने पूरी दो रातें मौत से दस कदम दूर खुले मैदान में बीतायी थीं। मैं इस विचार से कांप उठा। किन्तु दूसरे ही पल में स्वस्थ हो गया। बचपन में जैन शाला में मेरे प्रिय गुरुजी की सीखायी, '21 नवकार गिनकर सोने से तुम्हें कोई भय नहीं लगेगा, सांप, बिच्छू, या बाघ, सिंह जैसे जंगली प्राणी भी तुम्हें नहीं मार सकते,' यह बात अक्षरशः सत्य थी। एक बार फिर मेरे अरिहंत की याद में मेरा सिर झुक गया।
युगों से करोड़ों लोगों ने, साधु-सन्तों एवं श्रावकों ने जिस नवकार मंत्र का जाप या स्मरण किया, वह मंत्र कितना महान! उसके एक-एक अक्षर में दिव्य शक्ति रही हुई है। जिसका जाप करोड़ों अरबों बार मानवों के मुंह से बोला हुआ है, अखिल ब्रह्मांड में जिसकी आवाज निरन्तर गूंजती रहती है, यह नवकार मंत्र अद्भुत मंत्र है।
लेखक-श्री जयंति डी. शाह 56/2 सारिका, सम्राट नगर, इसनपुर, अहमदाबाद, 382443 | नवकार हृदय परिवर्तन करे, नवकार ही औषधि बने |
कुछ समय पहले की बात है। हमने एक बिल्डर के पास से एक फ्लेट बुक करवाया। हमने रुपये भरे और दस्तावेज बनाकर जगह ली। फिर हम अच्छे दिन पूजा कर घर के दरवाजे पर नवकार मंत्र और प्रभुजी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - का नाम, कुंकुम, केसर, चंदन से लिखकर घर में आये। .
उसके बाद बिल्डर ने वह जगह दूसरे को बेच दी और दस्तावेज उसे बनाकर दे दिये। लेने वाले ब्लोक में आये तब उन्होंने दरवाजे पर नवकार मंत्र देखा। पूजा हो गई है, वह देखा, तब उन्हें लगा कि यह जगह जैन भाई की लगती है। उसने हमें बुलाकर जानकारी दी। हम सभी मिले, इसलिए बिल्डर भी जैन होने से उसने भूल के लिए क्षमा मांगी। नवकार मंत्र के प्रभाव से उसका मन परिवर्तित हो गया और उसने दूसरा ब्लॉक उस भाई को दिया। हम सभी नवकार के प्रभाव की बातें करते विदा हुए। तब से नवकार मंत्र मेरे दिलोदिमाग में हर समय रहता है।
अभी हम बाहर गये थे। इस कारण जलवायु में परिवर्तन के कारण तथा पानी के फर्क के कारण गले में दर्द होता था। जलन होती और आवाज बैठ गयी थी उसके बाद मैंने गले के डॉक्टर को बताया। एक्स रे और जांच करवायी, उसमें निदान हुआ कि गले में चने की दाल जितनी गांठ है, इस कारण यह तकलीफ हुई है। तुम्हें ऑपरेशन करवाना पड़ेगा। यह तकलीफ तभी दूर होगी। हम घबरा गये। परन्तु मुझे नवकार पर अत्यंत श्रद्धा थी। मैं नवकार गिनने बैठता, उस समय गिलास भरकर पानी साथ रखता। नवकार पूरे करने के बाद पानी पी लेता। इस प्रकार काफी दिन किया। उसके बाद गले का दर्द समाप्त हो गया। आवाज सही हो गयी। जलन बन्द हो गयी।
हमने वापिस दूसरे डॉक्टर को बताया और उसने जांच करके कहा कि,"गले में एकदम अच्छा है।गांठ नाम की कोई वस्तु नहीं है। तुम्हें किसी दवाई की जरूरत नहीं है। तुम एकदम अच्छे हो। किसी भी प्रकार की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है।" तो अब बोलो इस मंत्र में कितनी शक्ति है, जो गांठ को भी मिटा दे! यह मंत्र पूरे विश्व में प्रत्येक के लिए उत्तम फल देने वाला है और यह निश्चित ही है।
लेखक : श्री कीर्ति एच.शाह 15 ए, गाला एपार्टमेन्ट, चौथी मंजिल, जितेन्द्र रोड़, मलाड (पूर्व) मुम्बई - 69 306
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
गोलीबारी में से चमत्कारिक बचाव!
. दि. 28.12.94 बुधवार का दिन था। जो मेरे जीवन में कभी भूला नहीं जा सकेगा। मलाड़ के एक प्रख्यात बिल्डर, झवेरचन्द जे. शाह जिनका नाम है, वे बहुत कम्पनियों के मालिक हैं। मै. विशाल बिल्डर्स, मै. अचल डेवलोपर्स, मै. अर्चना डेवलोपर्स, मै. प्रतीक्षा कन्स्ट्रक्शन कं. प्रा.लि. वगैरह-वगैरह। जिनके साथ बरसों से मेरा वित्तीय लेनदेन का सम्बंध था। उन्होंने दि. 28.12.94 के दिन मुझे बुलाया, क्योंकि हमारा अपना खाता मिलाकर मुझे अच्छी रकम लेनी थी। उनकी पेढी और निवास स्थान एक ही बिल्डिंग-रोलेक्स एपार्टमेन्ट, एस.वी. रोड़, न्यु इरा टॉकिज के पास, मलाड़(वेस्ट) मुम्बई में था। श्री झवेरचन्द भाई बहुत ही धार्मिक स्वभाव के एवं सरल हैं। उनके वित्तीय प्रबंधक उनके भानजे श्री बसंतभाई मुम्बई में किसी व्यापारी के पास से बड़ी रकम लेने गये थे। मैं उनकी राह उनकी ऑफीस में बैठा देखता था। इतनी देर में श्री झवेरचन्दभाई और उनकी पत्नी कुसुमबेन श्री सहजमुनि महाराज के दर्शन (जिन्होंने 201 उपवास किये थे) कर रोलेक्स एपार्टमेन्ट में नीचे की
ऑफीस में आये। में उनसे मिला और सहज मुनि महाराज के बारे में काफी देर बातें कीं और वे दोनों ऊपर की छटी मंजिल में जहां पर रहते थे, वहां गये। मैं श्री वसंतभाई की राह देखते नीचे ऑफीस में समाचार पत्र (जन्मभूमि, व्यापार) वगैरह पढ़ रहा था। थोड़ी देर बाद श्री झवेरचन्दभाई ऊपर से नीचे ऑफीस में आये। श्री वसंतभाई अभी तक नहीं आये हैं, जानकर मुझे थोड़ी देर बैठने को कहा। मैं थककर ऑफीस के बाहर बरामदे में चक्कर काटने लगा।
जब लगभग 7-45 बजे (रात्रि) होंगे, अचानक दो अनजान आदमी आये। ऑफीस के बाहर श्री झवेरचन्दभाई सेठ का सुरक्षा प्रहरी सोफे पर बैठा था। उन दो अनजान लोगों ने पास में आकर, मेरे और सुरक्षा प्रहरी पर बन्दूक की गोलियां छोड़ी। मेरे पेट में एक गोली लगी। पास में सोफे
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पर बैठे सुरक्षा प्रहरी को तीन लगीं। में क्षणभर कुछ समझ नहीं सका, यह सब क्या हो रहा है। किन्तु पांच-दस सेकण्डों के बाद मेरे पेट में से खून का फव्वारा छूटने लगे। मुझे अहसास हुआ कि मुझे गोली लगी है। मुझे मौत का विशाल पंजा दिखाई देने लगा। मैंने मन ही मन विचार किया कि अब क्या करना । गोलियों की आवाज से आसपास की दुकाने फटाफट बन्द होने लगीं। लोगों की भागदौड़ होने लगी। चारों ओर गोलियों की बर्षा शुरू हो गई। मैं पास की कपड़े की दुकान की ओर मुड़ा। जिसका आधा शटर अभी खुला था। मैं उसमें घुस गया किन्तु मुझे लहु-लुहान हालत में देखकर दुकानदार ने धक्का देकर बाहर निकाल दिया, क्योंकि वह समझा होगा कि इस आदमी को मारने के लिए कोई आया है और वह अपनी दुकान में आया तो अपनी भी मौत होगी। जब दुकानदार ने मुझे धक्का देकर बाहर निकाला तब मेरी अन्तरात्मा से आवाज आई, " श्री अरिहंत भगवान की शरण हो।" बस फिर मैं पेट को हाथ से दबाकर एस. वी. रोड़ पर लगभग 7-50 बजे आया। मैंने सिग्नल पर खड़े पुलिस वाले को कहा "साहब ! गोलीबारी हुई है, मुझे रिक्शे में बैठाओ।" मैं इतना बोला और वहां एक रिक्शेवाला आकर खड़ा हुआ । मैंने कुछ भी सोचे बिना कहा कि, "अस्पताल ले चलो।" मैं जोर-जोर से नवकारमंत्र के पद बोलने लगा। " नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं... तेज आवाज से जाप शुरू कर दिया, क्योंकि मुझे मौत सामने दिखाई दे रही थी। अब श्री अरिहंत परमात्मा की शरण के अलावा कोई उपाय नहीं था। मैं श्री नवकार मंत्र के जाप के साथ-साथ हमारी कुलदेवी श्री मोमाय माताजी का भी स्मरण करने लगा। मेरे शरीर में असह्यय वेदना हो रही थी। शरीर के अन्दर की हजारों नसें टूट रही थीं। गोली नीचे उतर रही थी, वैसे मुझे अपार पीड़ा होती थी, जो सहन करने की मेरी शक्ति नहीं थी। मेरे मुंह में महामंत्र नवकार का जाप अविरत रूप से चालु था। रिक्शे वाला मुझे बीच-बीच में पूछता कि, " सेठ आप कहां रहते हों, आपका टेलीफोन नंबर दीजिए, आपके बच्चों का नाम बतायें, मैं फोन करके बुला लूंगा।" मैं नवकार मंत्र का जोर से उच्चार
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करता था और बीच बीच में शैलेष, भरत, मनीष, राधा, रूपा, मिनल, 5116470-5128125 (जो मेरे तीन लड़कों के नाम और उनकी पत्नियों के नाम हैं) वगैरह बोलते बोलते मेरा नवकार मंत्र का जाप चालु ही था।
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रिक्शे वाला एस. वी. रोड़ पर से गुजर रहा था। बीच में कांदीवली पुलिस स्टेशन आया। मुझे दूर से ही लहुलुहान स्थिति में एक पुलिस इन्सपेक्टर ने देखा। रिक्शे वाले को ईशारा कर अपनी ओर बुलाया। रिक्शा खड़ा होते ही वह मेरे पास आया। मैंने कहा कि, " साहब ! मलाड़ में गोलीबारी हुई है। " पुलिस इंसपेक्टर ने रिक्शे वाले से कहा कि, 'भगवती अस्पताल - बोरीवली ले जाओ। "मेरा नवकार मंत्र अविरत चालु था। मैं जीवन एवं मौत के बीच झोंके खा रहा था। मेरा प्राण किस समय निकलेगा, इसका मुझे भय लग रहा था । किन्तु अंतर में नवकार मंत्र चालु था। तो श्री अरिहंत की शरण सही है। " मैं इस भाव में डूबा हुआ था।
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'अब
मुझे रिक्शे वाला भगवती अस्पताल 8-15 बजे ले आया। डॉक्टरों ने प्राथमिक पूछताछ कर मुझे स्ट्रेचर पर लेकर प्राथमिक उपचार प्रारंभ किया। मुझे इंजेक्शन एक्स रे, सेविंग वगैरह चालु कर ऑपरेशन थियेटर में एनेस्थेशिया सूंघाया। यहां तक मैं पूरे होश में था और नवकार मंत्र चालु था। डॉक्टरों ने लगभग चार घण्टों की मेहनत के बाद मेरे शरीर में से गोली बाहर निकाली। मुझे रात को 1-00 बजे बाहर लाये। तब मेरे तीन पुत्र, तीन पुत्रियां, पुत्रवधुएं, पत्नी, भाई, बहिनें और बहुत संबंधी उपस्थित थे। हवा की तरह यह बात सब जगह फैल गई थी। लगभग 50-60 लोगों की भीड़ मुझे देखने को अधीर हो रही थी ।
दूसरे दिन सवेरे नौ बजे वह रिक्शे वाला मेरी खबर लेने आया। मैंने तब दो हाथ जोड़कर उसका उपकार प्रदर्शित किया। उसके बाद पास में खड़े अपने पुत्र शैलेष को कहा कि "तेरी जेब में जो हो, वह इस रिक्शा वाले को दे दे। यह मेरा अरिहंत भगवान बनकर आया था। "
उस रिक्शा वाले ने कुछ भी नहीं लिया और मेरे पुत्रों एवं सगे- सम्बंधियों से बात की कि, "मैं (रिक्शावाला) जब मलाड़ से बोरीवली
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? (भगवती अस्पताल) साहब को रिक्शे में बिठाकर ला रहा था, तब साहब तेज आवाज में जो अपने भगवान का नाम ले रहे थे, तब मेरे हाथ में कोई अलग ही प्रकार की ताकत आ रही थी। जिससे में तेज गति से रिक्शा चलाने लगा।"
उस समय मुझे समझ में आया कि इस रिक्शा वाले के हाथ में ताकत देने वाले कोई दूसरे नहीं, किन्तु मेरे अरिहंत भगवान थे।
यह मेरा स्वयं का नवकारमंत्र का अनुभव है। आपको एक प्रश्न स्वाभाविक होगा कि, ऐसे समय नवकारमंत्र की शरण कैसे याद आयी? तो इसका एक ही जवाब है। हमारे घर में धर्म के संस्कार कई वर्षों से भरे हुए हैं। मेरे मातृश्री किन्हीं दिनों हमेशा सुबह-शाम प्रतिक्रमण करते थे और हम दोनों (मैं और मेरी धर्मपत्नी) कई वर्षों से सुबह उठकर सामायिक करने बैठ जाते हैं। उसमें माला, भक्तामर वगैरह की उपासना करते हैं। जब मुझे गोली लगी, उस समय मेरी पत्नी का वर्षीतप चल रहा था और आठ महिने पूरे हो गये थे।
इसके सिवाय मैं आपको बताता हूँ कि इस गोलीकाण्ड में श्री झवेरचन्दभाई शाह को चार गोलियां लगी थीं, वे धर्म के प्रताप से बच गये थे। उनके भानजे विजय को एक गोली लगी थी, वह भी बच गया था। उनके सुरक्षा प्रहरी को तीन गोलियां लगी थी, वह मर गया था। इसकी जानकारी कई समाचार पत्रों में आयी थी।
. लेखक : श्री चन्दुलाल, न्यालचन्द दोमड़िया, . कैलास ज्योत नं, 2, फ्लेट नं. 17, ग्राउण्ड फ्लोर, देरासर लाईन,
. घाटकोपर (पूर्व) मुम्बई- 77 मैं अकेली नहीं थी, नवकार सतत मेरे साथ था। __मेरे कर्मोदय से मेरे पति की कंपनी में मजदूरों की हड़ताल हुई। सभी ऑफिसर काम करते थे। मेरे पति भी ऑफिसर थे। वे भी अन्दर कंपनी में काम कर रहे थे। दरवाजे के पास बाहर मजदूरों की धमाल
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बढ़ती गयी, फिर तो कंपनी ने सभी ऑफिसरों को कम्पनी के मकान में ही रहने की सुविधा दी। कंपनी के बाहर तो मजदूर सीधे छुरे ही फैंक कर मार डालें ऐसी परिस्थिति थी।
कई ऑफिसर जल्दी सवेरे पांच बजे डर से घबराकर टेक्सी कर कंपनी छोड़कर भाग गये। मेरे पति और दूसरे चार लोग अंदर रह गये। यदि बाहर आयें तो मजदूर मार डालें। घर आया नहीं जा सकता और इस डर से अन्दर ही रहे।
सवेरे मेरे पति का फोन आया कि 'मैं क्या करूं? किस प्रकार बाहर आऊँ?" मैंने कहा,"चिन्ता मत करो, में अभी आती ।" मैंने उनके मित्रों से बात की कि, "मेरे साथ कंपनी चलो, " मगर कोई नहीं आया। मेरे तीन बच्चे छोटे थे। बड़ा बेटा 10 वर्ष का, दूसरा 8 वर्ष का, और तीसरा बेटा 5 वर्ष का। में तीनों को पड़ोसी के यहां छोड़कर कम्पनी की ओर निकली।
में अकेली नहीं थी। मेरे साथ मेरा नवकार मंत्र था। मैं नवकार मंत्र का जाप करती करती कंपनी पहुंची। वहां गेट के बाहर 500 जितने मजदूर टेन्ट लगाकर बैठे थे। वहां दूसरा कोई नहीं आ सकता था। मुझे मेरे नवकार मंत्र के प्रताप से स्फुरणा हुई कि पहले मैं हड़ताली मजदूरों से मिलुं। वे लोग 500 और में अकेली! मैं नवकार मंत्र जपते जपते उनके टेन्ट में गयी। मैंने दोनों हाथ जोड़कर उनसे विनति कर मेरे पति का नाम बताया और कहा कि मेरे तीन बच्चे बहुत छोटे हैं। मैं उन्हें पड़ोसी के यहां छोड़ आयी हूँ। मैं अपने पति को कंपनी से लेने आयी हूँ। यदि आप उन्हें कुछ भी पीड़ा पहुंचाये बिना घर ले जाने दोगे, तो ही में उन्हें ले जाऊँगी। - उनके नेता ने आश्चर्यजनक रूप से संमति दी। हमको घर तक छोड़ा। कंपनी के मैनेजर से मिलकर मेरे पति को बुलाया और हम दोनों सुरक्षित घर आये। ____ हमारे परिवारजनों को पता चला। सभी मुझे उपालम्भ देने लगे कि,
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? "तुम अकेली कंपनी तक गई। वहां तुम दोनों को मार डाला होता तो!" मैंने कहा, "मैं अकेली नहीं थी, मेरे साथ मेरा भाई महामंत्र नवकार था।"
आज भी मैं और मेरे पति नवकार मंत्र की पांच माला गिनते हैं। हम महामंत्र नवकार के प्रताप से सुखी हैं। आज बड़ा बेटा आई. आई.टी. कॉलेज में पढाई कर के B.TECH, M.TECH. हुआ है। छोटा बेटा आई.आई.टी. में B.TECH कर रहा है। बेटी बी.कॉम कर कम्प्युटर डिप्लोमा में एन.आई.आई.टी. का कोर्स कर रही है। नवकार गिने बिना कोई भी बाहर नहीं जाता है। तीनो बालकों को भी सामायिक-प्रतिक्रमण सिखाया है। जिससे जीवन में उनको प्रत्येक मुश्किल में सहायता मिलती रहे।
लेखिका - उर्मिलाबेन के. दोशी, सी/40, इन्द्रदीप सोसायटी, एरवेज होटल के पास,
आगरा रोड़, मुम्बई-86 संकट मोचक महामंत्र
मेरे ऊपर छोटी उम्र में ही जैन धर्म तथा नवकार का प्रभाव पड़ा। बाल्यावस्था में जल्दी सवेरे जब मैं सोया होता, तब मेरे पिताश्री जल्दी उठकर हम भाई-बहिन सुन सकें उस प्रकार तेज आवाज में पहले तीन नवकार बोलते, फिर गौतम स्वामी का छंद, सोलह सतियों का छंद, शंखेश्वर पार्श्वनाथ का छंद बोलते थे। इनका राग एवं गाने का ढंग ऐसा अच्छा था कि हमको लगता कि पिताजी यह छंद गाते ही रहें और हम सुनते ही रहें। मैं विशेष रूप से उनसे दूर से सोलह सतियों का छंद गवाता और फिर एक चित्त से सूनता। फिर कई बार मन में संशय होता कि, पिताजी यह नवकार मंत्र या छंद किसलिए बोलते होंगे? एक बार मुझसे रहा नहीं गया, इसलिए यह संशय टालने हेतु पिताश्री को पूछ ही डाला कि, 'पिताजी! आप यह जल्दी सवेरे नवकार मंत्र तथा छंद बोलते हो वह किसलिए बोलते हो और उससे क्या फायदा है?' तब उन्होंने मुझे समझाया कि, 'नवकार मंत्र बोलने से अपना पूरा दिन आनंद से बीतता है
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - और कोई अशुभ विचार मन में नहीं आते हैं। अभी मेरे पिताश्री तो जीवित नहीं, किन्तु मैंने उनकी प्रणाली चालु रखी है। मैं प्रतिदिन सवेरे जब उठता हूँ, तब पहले तीन बार नवकार मंत्र बोलता हूँ, फिर गौतम स्वामी का छंद, सोलह सतियों का छंद तथा शंखेश्वर पार्श्वनाथ का छंद बोलता हूँ। इससे मेरा दिन सुधर जाता है। मन में अच्छे विचार आते हैं। मैं जब भी किसी मुश्किल में फंस जाता हूँ, तब शुद्ध भाव पूर्वक, सम्पूर्ण एकाग्रता से महामंत्र नवकार का जाप करता हूँ। मुझे नवकार मंत्र के प्रभाव से मुश्किलों में से कोई सरल मार्ग मिल जाता है। इतनी प्रारम्भिक प्रस्तावना के बाद मुझे स्वयं को नवकार के बार में जो अनुभव हुआ है वह बता रहा हूँ -
इस अनुभव को हुए लगभग बीस वर्ष हुए होंगे। तब मुझे गुलाबचन्दभाई जिनको नवकारमंत्र के प्रभाव से गले का कैन्सर मिट गया था, (इस पुस्तक में जिनका प्रथम दृष्टान्त है-सम्पा.) रेल में मिले और नवकार मंत्र के जाप से उनका कैन्सर किस प्रकार मिटा उसकी बात की।
मैं अपने व्यवसाय के कार्य हेतु घाटकोपर से मुम्बई रेल में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में जा रहा था। दोपहर का समय था, इसलिए मुझे बैठने की जगह मिल गई थी। धीरे-धीरे एक-एक स्टेशन आता गया और मैं अपने विचारों में था, कि कहाँ-कहाँ क्या-क्या कार्य निबटाने हैं। ऐसे दादर स्टेशन आ गया और रेल में से काफी यात्रिक उतर गये। उस दौरान दादर स्टेशन से दो लोग चढ़कर मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठे। उन दोनों के बाल एवं दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसमें से एक आदमी घूरघूर कर मेरे सामने देखने लगा। शुरूआत में मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया। किन्तु थोड़ी देर बाद मुझे चक्कर आने लगे और मुझे लगा कि मैं थोड़ी देर में गिर जाऊँगा। मुझे मन में ख्याल आ गया कि, "यह आदमी तांत्रिक लगता है और मेरे ऊपर त्राटक कर रहा है। अब इसमें से किस प्रकार बचना?" वहां थोड़ी देर में धर्म के प्रभाव से मेरे मन में विचार आया कि इसका इलाज तो मेरे पास ही है। मैं अचिंत्य चिंतामणि नवकार का जाप शुद्ध भाव तथा अपूर्व श्रद्धा से करने लगा। मैंने करीब सात नवकार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? का जाप किया होगा कि मेरे चक्कर एकदम समाप्त हो गये। मैं पहले की तरह स्वस्थ हो गया। मैंने फिर भी नवकार मंत्र तो चालु ही रखा। थोड़ी देर में वे एक स्टेशन पर उतर गये। मुझे उनके जाने के बाद ख्याल आया कि वे तांत्रिक थे और मुझे लूटने के इरादे से मेरे ऊपर त्राटक कर रहे थे। मैं भी बोरीबन्दर स्टेशन आते उतर गया। किन्तु मन में एक पक्की मान्यता बैठ गयी कि आज नवकार मंत्र के प्रभाव से ही बच सका हूँ।
ऐसी दूसरी घटना चारेक वर्ष पहले घटी थी। तब मेरा पुत्र रूपारेल कॉलेज में से अच्छे अंकों के साथ एच.एस.सी. की परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ था। उसे इन्जीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए डोमेसाईल प्रमाणपत्र लेना पड़ता था। मैंने इस डोमेसाइल प्रमाणपत्र के लिए कुर्ला कोर्ट के एक वकील को तय किया। कुर्ला कोर्ट के वकील ने कहा था कि प्रमाण-पत्र लगभग पन्द्रह दिन में मिल जायेगा। लेकिन पन्द्रह दिन के बदले बीस दिन तक प्रमाणपत्र नहीं मिला और इस दौरान वकील दूसरे गांव चला गया था। वह तो अपने कार्य हेतु दूसरे गांव चला गया। जैसे-जैसे कॉलेज खुलने के दिन नजदीक आते गये, वैसे-वैसे मेरे मन में चिंता बढ़ने लगी, क्योंकि कॉलेज प्रारंभ होने के साथ ही प्रवेश कार्य के साथ डोमेसाईल प्रमाण-पत्र न हो तो मेरे पुत्र को प्रवेश नहीं मिले और मेरा पुत्र भटक जाये। परन्तु मुझे नवकार मंत्र पूरी श्रद्धा थी। इस कारण मैं तो रात-दिन नवकार मंत्र का जाप श्रद्धापूर्वक करता था। कॉलेज शुरू होने में दो दिन की देरी थी और में बस से कुर्ला कोर्ट के पास वकील की तलाश करने निकला। मेरा बस में भी श्रद्धापूर्वक नवकार मंत्र का जाप चालु ही था। और मेरे आनन्द, आश्चर्य के बीच बस से उतरते ही वकील किसी आदमी से बातें करता मिला। मुझे देखकर उसने मुस्कुराकर कहा कि, 'मैं तुम्हारी राह देख रहा था। उसने कहा, "मुझे दूसरे गांव से आने में देरी हो गयी और आपको तकलीफ हुई इस कारण क्षमा करना।" ऐसा कहकर उसने मुझे प्रमाण-पत्र दिया। मुझे प्रमाण-पत्र हाथ में लेते हुए मन में अपूर्व आनन्द और एक प्रकार की शान्ति अनुभव हुई कि अब मेरे पुत्र को कॉलेज में प्रवेश मिल जाएगा। यह प्रमाण-पत्र नहीं मिलने पर उसे
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अच्छे अंक आने के बावजूद कॉलेज में प्रथम दिन प्रवेश नहीं मिलता और पहले ही दिन सीटें भर जातीं तो? किन्तु मुझे श्रद्धा के साथ कहना पड़ेगा कि महामंत्र नवकार के कारण मेरा यह संकट टल गया।
इसलिए ही अमरेन्द्रविजयजी महाराज अपने पुस्तक "अचिंत्य चिंतामणी नवकार" में लिखते हैं कि "नवकार ऐसा चिंतामणि है कि बिना सोचे भी आराधक को पता भी नहीं चले कि उसका हित किसमें है. तो भी अपने आराधक का जीवन मंगलमय बनाता है' अर्थात् वह अचिंत्य चिन्तामणि है।
अन्त में श्री शान्तिलाल शाह की "श्रीपाल-मयणा" नाम की | गुजराती कथागीत कैसेट के एक गीत के पद के साथ विराम लेता हूँ।
'नवपद नो महिमा न्यारो, एने गातां नावे आरो।' लेखक : श्री अरुणकुमार नरभेराम संघवी, घाटकोपर-मुंबई
|सकल विघ्नहर्ता नवकार
आज मेरी उम्र 70 वर्ष हुई है। मैं पिछले 10 वर्षों से प्रतिदिन सवेरे |साढे पांच बजे उठकर नियमित कम से कम 108 नवकार मंत्र का स्मरण करता हूँ। मुझे इससे प्रतिदिन बहत फायदा होता है। दिन भर कोई मुश्किल नहीं आती है। पूरा दिन आनंदमय बीतता है। मैं कुछ भी तनाव जैसा लगे तो नवकार मंत्र का स्मरण करता हूँ और तुरन्त ही अलौकिक शान्ति मिलती है। सन् 1970 में आचार्य महाराज श्री मित्रानन्दसूरिजी ने मुझे विशेष कहा था कि दूसरा कुछ नहीं हो सके तो भी प्रतिदिन सवेरे उठते समय 21 नवकार का स्मरण करना चाहिये और तब से मैं उस अनुसार कर रहा हूँ। इससे मेरी मुश्किलों का अन्त आया है। यहाँ मेरे जीवन में घटी घटनाएं दर्शाता हूँ।
सन् 1968 से 1975 तक हमारी एक श्रीमंत सज्जन परिवार के साथ भागीदारी थी। हमारा व्यवसाय अभ्यास पुस्तिकाओं का निर्माण करना
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? था। भागीदारी में हमारा 70 प्रतिशत हिस्सा था। जबकि उन श्रीमंत परिवार का 30 प्रतिशत हिस्सा था। सन् 1975 में उन्होंने कहा कि हमारा हिस्सा 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करो तो ही हम भागीदारी जारी रखेंगे। हमने उनकी बात अस्वीकार की, क्योंकि व्यवसाय संबंधी पूरी जिम्मेदारी हमारी थी। उनकी भागीदारी केवल रकम के विनियोजन के कारण थी। वैसे भी उनकी रकम पर 12 प्रतिशत सूद दिया जाता था। हमने उन्हें सप्ताह में जवाब देने को कहा। सप्ताह के दौरान सवेरे दूसरे किसी के पास से रकम लाकर व्यवसाय चालु रखना पड़े। इस प्रकार हमारे परिवार पर बड़ी आफत आ गयी। मैं इस मुश्किल से मुक्ति पाने हेतु नवकार मंत्र का स्मरण करता रहा। सप्ताह भर बाद जब भागीदारों की बैठक हुई तब उन्होंने सामने से कहा, "हम प्रेम से अलग होवें। तुम हमारा हिसाब दीपावली तक पूरा कर लेना। मुझे मेरी रकम सूद सहित | धीरे-धीरे तुम्हारी सुविधा अनुसार देना। हमें ख्याति (Good Wil) के बदले में कोई रकम नहीं चाहिये। तुम सुखी बनो और प्रगति करो, यही शुभकामना।"
हमें सचमुच आनन्द हुआ। मैंने सोचा कि यह कैसा चमत्कार! अलग होने के 6 माह बाद कागज के भाव बढ़ गये। परन्तु हमारी पेढ़ी की 200 टन कागज की पुरानी मांग सरकार की तरफ से मंजूर हो गयी। यह माल हमें चार रुपये किलो मिला, जबकि उसका बाजार भाव आठ रूपये किलो था। इसी साल हमने उस श्रीमंत की रकम सूद सहित चुका दी। हमको अब रकम की ज्यादा आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि अभ्यास पुस्तिकाओं की मांग के साथ व्यापारी अग्रिम रकम दे जाते थे। इस प्रकार मेरी नवकार के प्रति श्रद्धा और ज्यादा गहरी हो गई।
(2) दूसरी घटना है, सन् 1980 में मेरी पूज्य माताजी को डायाबिटीस एवं रक्तचाप की महाव्याधि थी। नियमित दवा एवं इन्जेक्शन चालु थे। अचानक रक्तचाप बढ़ने से वा.सा. अस्पताल में तुरन्त दाखिल किया गया। अस्पताल में एक नर्स द्वारा गलत इंजेक्शन देने से मेरी
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माताजी के पूरे शरीर में जहर फैल गया। 4-5 डॉक्टर इकट्ठे होकर तात्कालिक उपचार करने लगे। उन्होंने ऐसी दवाएं चालु कीं कि पेशाब के द्वारा जहर निकल जाये। डॉक्टरों ने कहा कि 24 घंटों में जहर निकल जायेगा, तो फिर चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। मैंने इन चौबीस घंटो के दौरान नवकार महामंत्र का स्मरण चालु रखा। दूसरे दिन माताजी की तबीयत में सुधार लगा। डॉक्टरों को आश्चर्य लगा। मुझे लगा कि यह नवकार मंत्र का प्रभाव है। मेरे माताजी हमेशा नवकार मंत्र की 2-3 मालाएं गिनते थे । वे उसके बाद 14 वर्ष अच्छी तरह से जीये। उन्होंने दि. 15-9-94 के दिन नवकार मंत्र बोलते-बोलते बिना किसी तकलीफ से, प्रभु का स्मरण करते-करते देह त्याग दिया।
(3) दूसरी एक घटना है रिश्तेदार बहिन की। वह अपरिणित है। वह अपने मातापिता एवं चार भाइयों के साथ रहती थी। खुद नौकरी करती थी। चार भाई भी नौकरी-व्यवसाय में कमाने लगे। वह अलग-अलग स्थान पर चलते बने। इस प्रकार इस बहिन पर घर (माता-पिता) की जिम्मेदारी आ गयी। उसकी नौकरी की कमाई से घर चलाना मुश्किल हो गया। इससे उन्हें तनाव रहता था। 'अब क्या होगा ?' वैसा मुझे कहा। मैंने उसे कहा कि, " चिन्ता मत करना। प्रतिदिन सवेरे 21 नवकार मंत्र का स्मरण करना, तुम्हारी सभी मुश्किलों का अन्त आ जाएगा।" वास्तव में ऐसे एक माह तक जाप करने से अचानक चार भाइयों में से एक भाई ने आकर बताया कि मैं घर की जिम्मेदारी निभाऊँगा। हर महिने तुम्हें नियमित रकम दूंगा । इस भाई की भी नौकरी में तरक्की हुई और अच्छी तनख्वाह मिलने लगी।
उन्होंने कहा: 'वास्तव में नवकार मंत्र का चमत्कार है। '
आज मेरी उम्र 70 वर्ष की है। मैं कर सलाहकार वकील हूँ। मेरे दिन-प्रतिदिन के अनुभवों के आधार पर किसी भी अधिकारी के आगे किसी व्यापारी का केस उलझने वाला हो और अधिकारी ज्यादा परेशान करे, उस दौरान मैं मन में नवकार मंत्र का जाप चालु ही रखता हूँ और
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? व्यापारी की और से दलीलें करता रहता हूँ। कौन जाने! अधिकारी के मन में एकदम ही फेरफार हो जाता है। और व्यापारी को नुकसान न हो वैसा आदेश देता है।
ऐसा है महामंत्र नवकार का प्रभाव। किसी भी समय पूर्ण श्रद्धापूर्वक नवकार मंत्र का स्मरण करते रहने से उसकी मुश्किलें दूर हो जाती हैं।
लेखक:- श्री कांतिलाल रतनलाल वक्ता,
6,जीवाभाई एपार्टमेन्ट्स, आश्रम रोड़,
स्वस्तिक सुपर मार्केट-अहमदाबाद 380009 जेल भी महल समान बनी।। में 22 दिसम्बर, 1994 को लगभग शाम को 6 बजे फूलों के बगीचे में कामकाज करवा रहा था। वहीं समाचार मिले कि हमारे बगीचे से कुछ दूर झगड़ा हुआ है। "खुशालचन्दभाई! अभी तुम घर चले जाओ, यहां मत रहना।", ऐसी आवाज सुनाई दी। मैं भगवान का नाम लेकर तीन नवकार गिनकर घर आ गया। घर आकर बगीचे में हकीकत सुनी, वह मेरे पिताजी, मेरे भाई गुलाब तथा पत्नी मंजुला से कही। घर पर सभी निर्भय थे। वहीं तो एक घंटे बाद मेरे संबंधी नटुभाई पुलिस विभाग से समाचार लाये कि, "तुम्हारे बगीचे से थोड़े ही दूर जो चरवाहा मरा है, उसकी हत्या के आरोपी के रूप में तुम्हारा, तुम्हारे भाई गुलाब का और तुम्हारे मित्र हरिवल्लभ वगैरह के नाम लिखे हुए हैं।" मैंने भगवान का स्मरण करके, तीन नवकार गिनकर वकील से मिलने का प्रयत्न किया। वकील रात को मिला। वकील साहब ने समझाया कि, "यदि तुम्हारे एकदम गलत भी नाम लिखवाये होंगे तो भी तुम्हें कोई आदमी पुलिस से छुड़ा नहीं पायेगा।" वकील की सलाह बहुत ही स्पष्ट थी कि, 'अभी तो तुम घर छोड़कर भाग जाओ, फिर भगवान करेगा वही होगा।' बस वहां से केस की भयंकरता का ख्याल आ गया। अब अपने को इस केस से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - भगवान ही छुड़ा सकेगा, नवकार मंत्र ही सहायता करेगा, ऐसी प्रतीति हुई।
हम घर से भागने का तय करके घर पर सलाह देकर खुशालचन्दभाई (मैं), गुलाबचन्दभाई(छोटा भाई) और मित्र हरिवल्लभभाई गाड़ी तय करके निकल गये। कहां जाना वह कुछ तय नहीं था। जैसे-जैसे |गाड़ी आगे बढ़ती गई वैसे मेरी छाती में मेरे साथ नवकार मंत्र के ही हिलोरे चलते गये। गाड़ी में तीन आदमी बैठे थे। गाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी। नवकार मंत्र चालु था। हरिवल्लभभाई ने चलती गाड़ी में ही पूछा कि, "खुशालचन्दभाई! कहां रुकेंगे? किसकी सलाह लेंगे? हम तो निर्दोष हैं। किन्तु कानुन की भयंकरता तो वकील साहब ने समझा ही दी थी। |भगवान ने चालु गाड़ी में ही प्रेरणा दी कि, "तुम्हारी गाड़ी जहां ले जानी
है, वहां नहीं ले जाकर रास्ते में ही उतर जाओ। तुम जहां रुकोगे उसका |पता ड्राईवर को नहीं पड़ना चाहिये। गाड़ी वापिस पाटन जाएगी और
पुलिस, गाड़ी वाले की खोज कर डालेगी।" इस प्रकार रात साढ़े ग्यारह बजे घर पर समाचार पूछे तो पता चला कि घर पर कोई पूछताछ करने नहीं आया है। सवेरे 4 बजे पुलिस घर पर आयी वैसे समाचार हमें 23 दिसम्बर को मिले। फिर तो केस बड़ा भयंकर है, उसका ख्याल आ गया। अपना कोई दोष नहीं है। आपसी अनबन से अपने नाम लिखवाये हैं। दि. 24 दिसम्बर को आरोप की संक्षिप्त नकल पढ़ने को मिली। इस प्रसंग में यदि नवकार मंत्र नहीं होता तो क्या करते? किंतु इस समय में नवकार मंत्र ने ही सहायता की। हरिवल्लभभाई की पहचान का उपयोग किया। दिनों पर दिन बीतने लगे। कुछ भी फायदे जैसा नहीं लगा। हमें लगा कि अब पुलिस के हवाले होना ही पड़ेगा। मगर पुलिस के साथ नटुभाई ब्रह्मभट्ट ने मिलकर तय किया कि, 'तुम आ जाओ। पुलिस तुम्हें पहचानती है। पुलिस कुछ भी गलत बर्ताव नहीं करेगी। तुम्हें तुम्हारी सत्यता साबित करने में सहयोग करेगी।' यह सभी प्रभाव नवकार मंत्र का ही था। दि. | 30 दिसम्बर को तय किये अनुसार पाटन आ जाना। फिर एक दिन घर पर सभी के साथ रहना। उसके बाद अपनी एवं पुलिस की सुविधानुसार पुलिस के साथ जेल जाना। जेल में जाने और लेने देने का समय आ
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? गया। किंतु यह प्रसंग भी नवकार मंत्र के सहारे बना और नवकार मंत्र के सहारे ही जेल में गये। श्री नवकार मंत्र के सहारे ही हमारी जेल यात्रा महल यात्रा बन गयी।
दिनांक 1 जनवरी, 1995 का पहला दिन हमारा पाटण उपजेल में उदय हुआ। सवेरे हमेशा से अलग ही दिन था। हमेशा सवेरे उठकर बगीचे में जाना, फूल लाने, फूल लाकर बाजार में बेचने, हमेशा देव मन्दिर में देने जाना होता था। फिर तो पूरा दिन कामकाज में ही रहता था। मैं दि. 1 जनवरी, 1995 को सवेरे उठा, तब से नवकार मंत्र के सिवाय कोई कामकाज नहीं था। जेल में जाने के बाद तो मुश्किलों का पहाड़ दिखाई देता है। उसकी कल्पना करने बैठे तो उसका अन्त ही नहीं आये। यह एक दिन पूरा हुआ, रात प्रारंभ हुई। पहले दिन जेल में सो रहा था। श्री नवकार मंत्र कहता है कि, मुझे शुरू करो, फिर सोना प्रारंभ करो। श्री नवकार मंत्र का जाप चालु किया, तो रात कब पूरी हुई पता ही नहीं चला और सवेरा हो गया। सोचते थे कि आज छुट जायेंगे। किंतु नवकार मंत्र कहता है कि, 'तुम मुझे मत छोड़ना, जेल तो उसका समय आयेगा, उसके बाद एक दिन भी नहीं रखेगी।'
जेल में जाने के बाद नवकार मंत्र के साथ तो सगे भाई की तरह मेरी दोस्ती हो गयी थी। एक ही केस में हम सात लोग पकड़े गये थे। हम दोनों सगे भाई, दूसरे पांच, एक के बाद एक जेल में साथ हुए। जेल में जाने के दूसरे दिन से हम दोनों भाइयों के टिफिन चालु हुए। हमारे साथ जो हरिवल्लभभाई थे, उनका भी टिफिन चालु हुआ। घर पर मेरी धर्मपत्नी ने वकील संबंधी पहचान का उपयोग कर हमारा टिफिन प्रारंभ करवाया। दिनों के ऊपर दिन बीतने लगे। प्रतिदिन धर्मपत्नी टिफिन लेकर आती, घर के केस की कार्यवाही की, व्यवसाय रोजगार की, सगे सम्बंधियों की सभी बातें वह जेल के बाहर की ओर खड़ी रहकर मुझे सुनाती। जेल में 30-40 लोग थे। हमेशा घट-बढ़ होती रहती थी। नवकार के सहारे रात-दिन आनंद से बीतते थे। उस समय महागुजरात नवनिर्माण आन्दोलन चल रहा था, जिससे बार-बार कपर्यु लगता था। किन्तु नवकार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मंत्र के ही एक सहारे, हमारा टिफिन नहीं आता उसकी चिन्ता हमारे जमादार भाई को होती। वह कहते "चाचा! आज कर्णों के कारण मंजुलाबेन नहीं आ सकेंगे। मेरी ड्युटी पूरी होगी, तब मैं चक्कर काटकर मंजुला बेन को टिफिन के साथ लेता आऊँगा और फिर यहां से कोर्ट में से कपर्यु पास निकाल कर आता हूँ।" एक दिन हमारे पड़ोसी के लड़के
की शादी थी। दुल्हा घोड़े पर मेरे पैर छूने आया। दुल्हे के साथ बातें कर | रिवाज के अनुसार उसको तिलक निकाल कर आशीर्वाद देकर विदा किया। एक दिन अन्दर बैठे-बैठे दिन में हम दोनों भाई एवं हरिवल्लभभाई |बातें कर रहे थे। बातों ही बातों में हरिवल्लभभाई ने बात की कि, 'तुम्हारे
जेल में आने के बाद, तुम्हें या मंजुलाबेन को चिन्ता जैसा कुछ भी नहीं है।' मैंने कहा कि, 'यह भी अपने कर्म में लिखा होगा, जेल में भी मेरे |संबंधी मिलने आते हैं। एक दिन मेरे संबंधी भाभी महेसाणा से मुझे मिलने
आये। जब भाभी वापिस जा रहे थे, तब उन्होंने कहा कि,"खुशालभाई! तुम जेल में हो या महल में? महल में रह रहे हो वैसा तुम्हारा रौब है। यह किस प्रकार सुविधाएं मिलती हैं?' तब मैंने भाभी से कहा कि "अपने भगवान की कृपा से सभी अच्छा है, और हम सही हैं। हमने ऐसा कोई भी पाप किया होता तो हमें यह सुविधाएं नहीं मिलती।"
मेरे लिए जेल में कपड़े धोने वाला आदमी अलग, सिर की चंपी करने वाला अलग, पैर दबाने के लिए अलग, मेरा टिफिन साफ करने वाला अलग, ऐसी सुविधाएं नवकार मंत्र से ही मिलती हैं। इस प्रकार जेल में दिनों के ऊपर दिन बीत रहे थे। जेल के बाहर नवनिर्माण के लिए दंगे-फसाद होते रहते थे, इसलिए मुझे कोर्ट-कचहरी जाने का मौका नहीं मिला। मेरे तीन-तीन माह जेल में बीत गये। बहुत-बहुत आरोपी जेल में आते गये और जाते गये। ऐसे करते-करते मेरे मोहल्ले की श्री घेल माताजी का महोत्सव आया। मैं इस महोत्सव में गोर महाराज के रूप में काम करता हूँ। मोहल्ले के सभी सोचने लगे कि इस बार माताजी के वर-बेटड़ी के समय के गोर महाराज तो जेल में हैं। मोहल्ले के प्रमुख लोग जेल में मुझसे मिलने आये। बातें कीं। जमानत पर छूटने के लिए
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प्रयास तो चालु ही थे। नीचली अदालत ने जमानत याचिका खारिज की। जिला न्यायालय में जमानत याचिका दायर की तो छोटे भाई गुलाब एवं हरिवल्लभभाई को जमानत पर छोड़ा। मेरे लिए अब उच्च न्यायालय जाना था। नव निर्माण दंगों के कारण उच्च न्यायालय - अहमदाबाद जाना मुश्किल था। किन्तु छोटा भाई गुलाब जमानत पर छूटने के कारण मुश्किलों का सामना कर अहमदाबाद का वकील तय किया । भगवान की कृपा से वकील भी अच्छा ही मिला। उसने कहा, 'जमानत होने पर ही शुल्क देना, नहीं तो नहीं।' वकील के साथ पूरी बात हुई। उसने पाटण जेल में आकर भी मुझसे पूरी बात की। जमानत की अरजी पेश की। नवकार मंत्र के प्रताप से की कृपा से माताजी के वर बेटड़ी के शुभ महोत्सव पर गोर महाराज के रूप में माताजी की सेवा में उपस्थित रहने का मौका मिल गया।
श्री नवकार मंत्र के सहारे यह मेरी जेल यात्रा महल यात्रा जैसी बन गयी । यह सभी घटनाएं सरलता से पूरी हुईं, उसकी नींव में श्री नवकार मंत्र ही है जो पूज्य गुरुमैया सुशीलाबाई महाराज साहेब के आशीर्वाद और उनके चातुर्मास परिचय से मिला। नवकार के प्रति श्रद्धा दृढ़ बनी। पूज्य महाराज साहेब का जितना उपकार मानें उतना ही कम है। लेखक - श्री खुशालदास अमुलखदास रामी, पाटण।
न
निःसन्तान को संतान प्राप्ति हुई
जैन जगत में जिसने जीवविचार, नवतत्त्व, कल्पसूत्र इत्यादि को समझा है, उनको नवकार मंत्र के अर्थ एवं माहात्म्य की जानकारी है। परन्तु कितनों को पता नहीं कि 14 पूर्व के सार रूप इस नवकार मंत्र में अमोघ दिव्य शक्ति छिपी हुई है।
हमारे परिवार में सामाजिक जीवन के किसी भी कार्य की शुरूआत, पढ़ाई में प्रवेश, व्यवसाय या नौकरी प्रारम्भ इत्यादि में नवकार मंत्र के जाप से हमेशा कार्यसिद्धि हुई है।
हमारे स्नेही डॉक्टर सुमनभाई और अ. सौ. श्री सुंनदाबेन का एक
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? उल्लेखनीय दृष्टान्त ताजा होने से बताता हूँ। वह पति-पत्नी 35 से 40 वर्ष की उम्र में पहुंचे हैं। उनको संतान नहीं थी। मेडीकल आदमी, इसलिए भांति-भांति के एवं तरह तरह के उपचार करवाने में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। उनकी बातों से समझ में आया कि कई प्रकार के संतान प्राप्ति के इलाजों के पीछे उन्होंने हजारों रूपये पानी कर डाले हैं और साथ साथ में शरीर को भी भारी नुकसान पहुंचाया है।
हमारा एक बार शंखेश्वर यात्रा में मिलन हो गया। वे मुझे नवकार के उपासक के रूप में जानते थे। संतान प्राप्ति की बात निकलते मैंने उन्हें बताया कि सही इलाज आपके स्वयं के पास पड़ा है। फिर भी उपचार हेतु आप बाहर भटक रहे हो।
नवकार महामंत्र से उनके पहचान वालों को हुए फायदों की बातों से वे ज्यादा प्रभावित हुए। उन्होंने अपने लिये सवा लाख नवकार महामंत्र के पुरश्चरण के लिए मुझे एक लाख रुपये देने की पेशकश की। उस समय मुझे डॉक्टर सुमनभाई के मन की कमजोरी की प्रतीति हुई। ____ पहली बात यह थी कि वे समझते थे कि पैसों से सबकुछ हो सकता है। ईश्वर की कृपाशक्ति प्राप्त करने के लिए धन की नहीं, श्रद्धा की आवश्यकता होती है। उसके बाद मन की शुद्धि और ध्यान-एकाग्रता चाहिए। मैंने उनके हदय में बैठे उस तरह विस्तार से बात की। इस सवा लाख मंत्रों को संभालें किस प्रकार? यह मुश्किल है। वे निराश-हताश होकर अलग हुए।
मैंने दो माह के बाद उनकी धर्मपत्नी अ. सौ. सुनंदाबेन को बताया कि, 'इस नियमों एवं विधि-विधानों की शर्तों का पालन कर बहिनें भी नवकार मंत्र की साधना जरूर कर सकती हैं। इतना ही नहीं, किन्तु बहिनों को भी भाइयों जैसा और जितना ही फल अवश्य प्राप्त हो सकता है।
ईश्वर के मनुष्य पर इतने उपकार हैं कि मनुष्य इसका बदला किसी भी प्रकार से नहीं चुका सकता है। यहाँ तुम्हारे धन खर्च करके कुछ प्राप्त करने की इच्छा हो तो वह संभव नहीं हो सकती है। नवकार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मंत्र में स्वयं आभा है। जब तुम नवकार मंत्र के साथ तादात्म्य अनुभव करने लगोगे, तब तुम्हारे रोम-रोम में दिव्य शक्ति का संचार होगा और यही तुम्हारे गर्भाधान के लिए निमित्त रूप बनके रहेगा।"
__ सुनन्दाबेन नवकार मंत्र के विधि-विधान हेतु सम्पूर्ण तैयारी और तपश्चर्या हाथ में लेने के संकल्प के साथ आये थे। इस कारण उन्हें समझाया कि सर्वप्रथम आपको, नवकार मंत्र के लिए अखण्ड शुद्ध श्रद्धा की जरूरत होगी।
साधना प्रारंभ करने हेतु उनके घर की तीसरी मंजिल के एकान्त में पूर्व दिशा की खिड़की के पास बाजोट रखकर महावीर स्वामी की मूर्ति का प्रतिष्ठापन किया, जिससे मन की एकाग्रता बनी रहे। उनकी शक्ति को ध्यान में रखते हुए निश्चित माह में प्रतिदिन निश्चित संख्या में नवकार गिनने का कार्यक्रम तैयार किया। नवकार मंत्र के जाप के समय उसकी गिनती में एकाग्रता का खंडन नहीं हो, इसलिए उन्हें मणके और दो पेटियां दीं। उन्हें प्रारंभ में देह शुद्धि, फिर मन की शुद्धि के लिए, आने वाले विचार प्रवाह को रोकने की प्रक्रिया सिखायी। सुनन्दाबेन ने लम्बे समय में सवा लाख नवकार महामंत्र का कठिन और तपश्चर्या युक्त कार्य पूर्ण किया। उन्होंने अन्त में जिनमन्दिर जाकर शुद्ध भाव से नवकार मंत्र अर्पित किया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दो महिने बाद सुनंदाबेन को हर्ष के आंसु के साथ पता चला कि उसे दो मास का गर्भ है। उन्होंने अपने हर्ष उत्साह में पहले दिन नवकार महामंत्र की पूजा और समूह पाठ और दूसरे दिन प्रीतिभोज रखा।
मंत्रों की अमोघ अनंत शक्ति में श्रद्धा का बल महत्त्वपूर्ण है। जहां तर्क शक्ति, मानवीय शक्ति निरर्थक बन जाती है, वहां मंत्र की दिव्य शक्ति कामयाब होती है, उसके सैंकड़ों उदाहरण हैं। वालिया लूटेरा केवल," मरा-मरा" बोल सकता था, मगर इस प्रकार वह राम का नाम श्रद्धा से लेने से वाल्मिकी ऋषि बन गये। संत तुकाराम जैसे अनेक हैं। अहमदाबाद में गई पीढ़ी का आदमी मिल मजदूर था। एक बार वापिस
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आते कथा में से महामंत्र लेकर जाप करते पुनित महाराज बन गये। इस मंत्र की सिद्धि खूब ही प्रसिद्ध हकीकत है।
जैन शासन में नवकार महामंत्र अनोखा है। यह सर्वग्राही है। आज के युग में भी त्वरित फल प्रदान करता है और यह इसकी विशिष्टता है। इसमें श्रद्धा हो यही मुख्य नींव है।
लेखक : श्री धर्मदेवभाई नानालाल नं. 9, देवलोक फ्लेट, पहला माला, रेल्वे पुल क्रोसिंग के पास, मणिनगर, अहमदाबाद - 8
श्री
मंत्राधिराज को को वंदन हो!
पाप वृत्ति से दूर रहने के लिए और मन को हर क्षण निर्मल रखने के लिए परमात्मा या नमस्कार महामंत्र का सतत स्मरण अनिवार्य है। क्योंकि मन को बन्दर की उपमा दी है। ब्रह्मांड में मन सबसे ज्यादा चंचल है। एक क्षण में यह करोड़ों योजन की दूरी तय कर लेता है। मन को वश में रखने हेतु और अशुभ विचारधारा में डूबने से बचाने हेतु इष्ट तत्त्व के स्मरण के अलावा कोई रामबाण इलाज नहीं है।
यहाँ पर महामंगलकारी श्री नमस्कार महामंत्र के स्वानुभव के बारे में कुछ कहना है। इससे पहले मुझे जैन धर्म और अरिहंत परमात्मा के करीब लाने वाले उपकारी गुरु भगवन्तों का उल्लेख करना जरूरी है।
कॉलेज जीवन में नास्तिकवाद और असंयमित आहार-विहार में फंसा में जैन धर्म और जैन साधु के बारे में एकदम नीरस था । 'धर्म अर्थात् रूढ़िवादिता, और क्रियाओं का क्या महत्त्व ? हृदय एवं मन साफ होना चाहिए, इतनी ही समझ थी और अपनी ही समझ से जीवन व्यतीत
करता था।
वालकेश्वर श्रीपालनगर में प. पू. पं. श्री चन्द्रशेखरविजयजी महाराज साहेब का चातुर्मास था। सवेरे छः बजे वाचना होती थी। पिताजी वहाँ
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जाने के लिए हमेशा समझाते थे। 'पिताजी हमेशा आग्रह करते हैं, तो चलो एक बार जाकर आते हैं, ऐसा सोचकर एकबार वहाँ सजोड़े गया । कुछ रुचि जगी । मेरा जाने का नियमित हो गया। मैं जैन धर्म के नजदीक आया । धर्म के प्रति की नीरसता धीरे-धीरे कम हुई। जैन धर्म में कुछ आर्कषक बातें हैं, यह बात मन में बैठी। उसके बाद हमारे कच्छ - मनफरा गांव में नौ दीक्षाऐं थीं। यह कार्यक्रम प.पू. आचार्य भगवन्त श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में था। पूज्य श्री का एकदम परिचय नहीं था। कुछ चढ़ावा लिया, इसलिए मंच पर जाकर पूज्य श्री की वासक्षेप लेने गया । पूज्य श्री ने पूछा, "हमेशा पूजा करते हो?" मैंने मना किया? 'अब करोगे ना?" पूज्य श्री को मना नहीं कर सका। पूज्य श्री की वात्सल्य बरसती वाणी, और इनके चरणों के स्पर्श ने जीवन की दिशा एवं मन की भूमिका को बदल डाला। उसके बाद पूज्य श्री के मुख से परमात्मा के अनगिनत गुण - उपकारों वगैरह की बातें सुनी। नमस्कार महामंत्र की महाप्रभावकता के बारे में जाना। मैं इसके स्मरण-जाप-भक्ति-उपासना के बारे में जानता गया, वैसे वैसे इस मंत्र के बारे में मेरी श्रद्धा दृढ़ बनती गई। मैंने नवकार मंत्र के बारे में अनुकूलता अनुसार पुस्तकें पढ़ीं। अनगिनत गूढ़ शक्तियां, असीम तारकता, मेरा सदा रक्षक और असीमित पुण्य के दाता ऐसे इस महामंत्र के प्रति रुचि, आकर्षण, सम्मान, और समर्पण भाव ऐसा जगा कि कोई डिगा नहीं सके। अन्य किसी के मुंह से यह मंत्र सुनार्थी दे तो भी आनंद की एक झलक का स्पर्श होता है।
तारंगा तीर्थ की यह घटना कभी भूल नहीं सकुंगा । परमतारक तीर्थंकर प्रभु श्री अजितनाथ की यात्रा की। शाम को स्टेशन जल्दी पहुंचना था। दूसरा कोई साधन मिल सके, वैसा नहीं था । हम छः मित्र और एक अन्य नव परिणित युगल छोटे रास्ते से जल्दी स्टेशन पहुंचने के लिए निकले।
मार्ग सूचक पट नीचे गिर जाने के कारण हम गलत रास्ते पर आगे बढ़ गये। हमें डेढ़ घण्टे के भ्रमण के बाद ख्याल आया कि हम मार्ग भूल गये हैं। हम फंस गये थे। पैर नर्म मिट्टी में धंस जाते थे। बोलने
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? की किसी की इच्छा नहीं थी। सभी का प्यास से गला सूख गया था। अब क्या करना? आखिर विचार आया कि, दादा की यात्रा की है, क्या दादा रास्ता नहीं बतायेंगे? नवकार मंत्र का जाप शुरू कर देते हैं। आधे घण्टे तक सभी सतत महामंत्र का स्मरण कर रहे थे। उतने में दो-चार बकरियों की आवाज आयी। जरूर कोई आदमी चरवाहा होगा, ऐसी आशा बंधी। हमें थोड़ी देर में एक चरवाहे जैसा वृद्ध आदमी दिखाई दिया। वह नजदीक आकर बोला, "अरे! तुम लोग यहाँ कहाँ भूल से आ गये हो, अभी सूर्यास्त होते ही यहाँ जंगली जानवर-हिंसक पशु आदि घूमने लगेंगे। यात्रालु लग रहे हो।" हम मुश्किल से बोल सके, "हां चाचा। हम स्टेशन जल्दी पहुँचने की लालच में निकले, किन्तु रास्ता भूल गये हैं। अब आप ही मदद करो।" चाचा हंसकर बोले, "चलो अभी ही स्टेशन पहुंचा देता हूँ।" हम इनके पीछे-पीछे चलने लगे। आधा घण्टा चलकर एक खुले मैदान के पास आये और वे बोले "देखो, सामने स्टेशन दिखाई दे रहा है। सावधानी से पहुंच जाओ।" हमने पैर उठाये। वह पीछे ही खड़े रहे। थोड़े कदम चले, तब मुझे विचार आया, चाचा का आभार मानना तो भूल ही गये। पीछे नजर घुमायी। किन्तु चाचा कहाँ? सभी बोले, "अरे, अभी तो चाचा अपने पीछे ही थे।" चारों ओर नजर घुमायी। इतनी देर में किस प्रकार अदृश्य हो गये ? सभी आश्चर्य अनुभव कर रहे थे। ____हमारे साथ का वह युगल बोला "इस नवकार मंत्र ने ही आज अपने का बचा लिया है। नहीं तो अपनी क्या हालत होती, कुदरत जाने।" सभी के हदय श्रद्धा से परमात्मा को झुक गये।
ऐसी ही एक दूसरी घटना याद आ रही है। बदमाश मकान मालिक ने परेशान करने हेतु एक रात 10-12 गुंडे भेजे। गुंडों ने असभ्य गालियों के साथ दरवाजे पर लातों की बौछार की। गुंडे हथियारों से युक्त थे। दरवाजे पर एक सामान्य चिटकनी ही थी। इसलिए प्राणों का पूरा भय था। आसपास वाले पड़ौसी भी लफड़े से बचने हेतु दरवाजे बन्द कर तमासा देखने लगे। दरवाजा किसी भी क्षण खुल जाने की सम्भावना थी। मन में सोचा कि अब नवकार गिनना ही शुरू कर दें। जो कुदरत को मंजुर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? होगा, वही होगा। मारने वाले से तारने वाला महान है। असह्य भय के साथ नमस्कार महामंत्र का स्मरण शुरू कर दिया। बीसेक मिनट में गुंडे स्वयं परेशान होकर निकल गये। थोड़ी ही देर में पुलिस आयी। लेकिन कोई उसके हाथ में नहीं आया। छोटी सी चिटकनी नहीं टूटी। आश्चर्य की बात थी। इस भयानक परीक्षा में से पार उतारने वाला नवकार मंत्र के अलावा कौन हो सकता है? अचिंत्य शक्तिशाली इस मंत्र पर हमारी श्रद्धा मजबूत हो गयी।
उसके बाद तो कोई शारीरिक पीड़ा हो, चाहे कोई कार्य नहीं बनता हो, या फिर किसी अदृश्य विघ्न के कारण कार्य रुक जाता हो, मन अशान्त हो, या फिर पारिवारिक विवाद हो, प्रत्यक्ष या परोक्ष बिना कारण कोई भी बाधा हो, तुरन्त ही हदय से आवाज आती है कि नवकार महामंत्र की शरण में चला जा। इस प्रकार से प्रश्नों का समाधान हो जाएगा। वास्तव में ही कुछ समय बाद कोई अगोचर शक्ति कार्य करती हो, इस प्रकार प्रश्नों के समाधान मिल जाते हैं। शारीरिक पीड़ा मन्द होती | जाती है, मुश्किल कार्य आसान होते जाते हैं।
एक दूसरी बात स्पष्ट कहनी है। चमत्कारों के कारण इस मंत्र पर श्रद्धा जगे और इसका स्मरण करें यह तो सौदाबाजी है। स्वार्थ है। हकीकत में मुझे लगता है कि महामंत्र के ऊपर की श्रद्धा ने ही ऐसे चमत्कारों का सर्जन किया है। भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए, दूसरे का अहित कर अपना हित साधने हेतु इस शक्ति का उपयोग करना पाप है। यह महामंत्र तो एक अस्खलित प्रवाह है। इसकी साधना में झुकने वाला तो पार हो जाता है किन्तु इसका केवल स्पर्श करने वाला भी कुछ प्राप्त कर लेता है। | इस महामंत्र के प्रत्येक अक्षर में शक्ति का भंडार भरा हुआ है। विविध प्रकार से इसकी गणना विविध फल देती है। चौदह पूर्व का अमाप ज्ञान जिसमें समाया हुआ है, उस महामंत्र की प्रभावकताताकत-तारकता और प्रकाशपुंज का वर्णन करना यह मनुष्य की
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सीमित शक्ति और बुद्धि के बाहर की बात है। दूसरे मंत्र तो गिनने में गड़बड़ हो, तो विपरीत असर करते हैं, नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि यह महामंत्र कभी किसी पर कोपायमान नहीं होता है। यह अविनय, अशुद्धि, गड़बड़ आदि अपराधों को हंसते मुंह माफ कर साधक का केवल हित-उपकार ही करता है। इसकी दृष्टि में अमीर-गरीब, राजा-रंक, सुखी-दुःखी, छोटा-बड़ा, ज्ञानी-अज्ञानी सभी समान हैं।
__ चरवाहे के पास अमूल्य रत्न की क्या कीमत? हम भी सहज रूप से मिले इस अमाप शक्ति के महासागर समान महामंत्र के आगे इसकी सही कद्र नहीं करते, न ही इसका भव्य सम्मान कर सकते , न ही इसके ऐश्वर्य का लाभ उठा सकते। कुछ ही समय में मानव में से महामानव बनाकर मोक्ष तक पहुंचा सके, ऐसी महाशक्ति के पास दुनिया के सुखों की भीख मांगकर कैसी दरिद्रता का प्रदर्शन कर रहे हैं!
आचार्य, उपाध्याय, साधु इन गुरुतत्त्वों एवं अरिहंत-सिद्ध भगवंतों के लोकोत्तर गुणों वगैरह का अत्यंत ही आदरपूर्वक वंदन द्वारा हदय को अति नम्र बनाकर, हदय को राग-द्वेष से मुक्त रखने का पुरूषार्थ ही इस महामंत्र की सच्ची साधना है। हदय को निर्मल या दोषरहित बनाये बिना आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है। जहां जहां असंभव, अतिमुश्किल लगता है, वहां ही इस महामंत्र की साधना का चमत्कार होता है। इसकी शरणं लेते ही प्रतिकूलताएं, अनुकूलताओं में बदलने लग जाती हैं। अंधकार-तिमिर के बादल हटने लगते हैं। बुद्धि जहां हार स्वीकार करती है, वहां श्रद्धा सफलता के सौपान तैयार करती है।
इस महाप्रभावक मंत्र का अनजान में भी कम मूल्य मत आंकना। इसकी शरण में जाने के बाद भी तुम्हें असंतोष का अहसास हो, तो समझना कि तुम ही कहीं भटके हो, श्रद्धा कहीं डिगी है। कुबेरों के कुबेर जैसे दाता को पहचान नहीं सके हो।
एक-एक धड़कन में, जीवन की हर क्षण, श्वास-श्वास में महामंत्र
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मिल जाये ऐसी शुभ शुरूआत क्या अपने जीवन में नहीं आयेगी?
भाषा में कहीं अतिशयोक्ति हुई हो, जिनाज्ञा के विरूद्ध कुछ लिखा गया हो, गुरुजनों के प्रति कुछ अविनय हुआ हो और पंचपरमेष्ठी एवं नमस्कार महामंत्र के प्रभाव के बारे में लिखने में असमर्थ साबित हुआ हूँ, तो अंतःकरण से क्षमायाचना करता हूँ।
लेखक : श्रीरामजी रायशी सावला (मनफरावाले) महावीर स्टोर्स, ग्रान्ट रोड़ (पूर्व), स्टेशन के सामने मुम्बई-400007
नवकार मंत्र की अनुभूति त नागपुर में आचार्य सम्राट परम पूज्य वंदनीय श्री 1008 श्री आनन्दऋषिजी महाराज साहेब का चातुर्मास हुआ था। मुझे आचार्य श्री के सत्संग का अच्छा लाभ मिला। प्रतिदिन सामायिक, प्रतिक्रमण, तपस्या आदि प्रवृत्तियां चलती थीं। पर्युषण नजदीक आ रहे थे। तब आचार्य श्री के आगे पर्युषण के आठ दिन नवकार मंत्र का जाप करने की इच्छा व्यक्त करते हुए उनकी आज्ञा मांगी। आचार्यश्री ने प्रेरणा देते हुए जाप करने की आज्ञा दी।
मेरे छोटे घर में नीचे तलगृह (भोयरा) था। वहां आवाज वगैरह नहीं आती थी। वहां एक बाजोट के ऊपर आसन रखा। मैंने ऐसा संकल्प किया कि आठ दिन बाहर नहीं निकलना। भोजन की थाली एक बार नीचे आ जाती थी। नीहार के लिए सवेरे बाहर आना पड़ता था। उसके अलावा बाहर आने का कोई प्रयोजन नहीं था। मैं तलगृह के अन्दर ही सोता था। में उस आठ दिन के दौरान मौन रहा।
सवेरे पांच बजे से रात दस बजे तक सतत नवकार मंत्र के पांच पदों का जाप चालु था। दोपहर के भोजन एवं थोड़े विश्राम के अलावा सभी प्रवृत्तियां बन्द थीं।
मैंने प्रथम दिन मस्तक के केन्द्र भाग में ध्यान केन्द्रित कर पांच
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पंखुड़ियों के ऊपर गोल-गोल जाप शुरू किया। उससे चक्कर आने लगा। उससे ध्यान का स्थान बदलकर हदय के ऊपर चार पंखुड़ियों के ऊपर जाप चालु किया। बीच की कणिका में 'नमो अरिहंताणं,' दाहिनी और की पंखुड़ी में 'नमो सिद्धाणं, ऊपर की पंखुड़ी में 'नमो आयरियाणं, बांयी
और की पंखुड़ी पर 'नमो उक्झायाणं' और नीचे की पंखुड़ी पर 'नमो लोए सव्वसाहूणं इस प्रकार बीच की कर्णिका एवं चारों ओर की चार पंखुड़ियों पर ध्यान केन्द्रित किया। प्रारंभ में माला से जाप करता था। किन्तु उसका परिणाम यह आया कि कितनी माला का जाप किया, इसकी गिनती होने लगी। गिनती वाली बात योग्य नहीं लगने से माला छोड़कर | ऐसे ही जाप चालु किया। पूरे दिन के दौरान लगभग 12-15 हजार जाप होता होगा।
चौथे दिन दोपहर को दो बजे के करीब जाप चालु था। एकाएक नेत्रों के सामने दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ। तलगृह में तो घोर अंधकार था तो इतना दिव्य प्रकाश कहां से आया। शायद स्वप्न तो नहीं है? इसलिए शरीर को देखा, में बराबर बैठा था। जाग्रत अवस्था में था। जाप चालु रखा। दिव्य प्रकाश में बड़े सरोवर, पहाड़ दिखाई देने लगे। तब लगा कि यह कल्पना है। जाप या ध्यान में कल्पना को कोई स्थान ही नहीं होता है। किन्तु प्रकाश का प्रवाह बढ़ता ही गया। उसके बाद हजारों साधु-साधि वयां अपने ध्यान में मग्न हों, ऐसा दिखाई देने लगा। तब लगा कि, क्या भगवान का समवसरण तो प्रकट नहीं हुआ? किन्तु भगवान के दर्शन नहीं हुए। साधु एवं साध्वियों के दर्शन लम्बे समय तक चले। लगभग 35-40 मिनट तक यह दर्शन चले। उसके बाद यह सब गायब हो गया। मन शांत था। जाप चालु था। दो बार प्रयत्न किया, किन्तु कुछ नहीं हुआ।
उसके बाद शांत चित्त से चार दिन जाप में बीते। अन्तिम दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण किया और नौवें दिन विराम कर, पूज्य श्री के चरणों में आकर पूरी बात सुनायी। आचार्य श्री ने पूरी बात सुनी और इतना ही कहा कि, "जो हुआ वो अच्छा हुआ।" तब मेरे मन में अहंकार का उद्भव हुआ। मैंने पूछा, "क्या जो दर्शन हुआ, वह आत्मदर्शन था?
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - या कोई उपलब्धि थी। या फिर किसी देव-देवी का प्रभाव था?"
आचार्य श्री ने समझाया कि, "इस प्रकार के दर्शन होना तुम्हारी आध्यात्मिक प्रवृत्ति का अच्छा संकेत है, दूसरा कुछ नहीं है। आत्म दर्शन किसी को नहीं होते। केवल केवलज्ञानी भगवन्त ही आत्मा को देख सकते हैं, दूसरा कोई नहीं देख सकता। इसलिए यह आत्म दर्शन नहीं कहलायेगा। तुम अब ऐसी कोई आकांक्षा मत रखना और उसमें फंस मत जाना। दुबारा ऐसे दर्शन हो ऐसी कल्पना मत करना।"
उसके बाद मुझे कच्छ में आठ कोटी बड़ी पक्ष के आचार्य पूज्य श्री रत्नचन्द्रजी स्वामी के दर्शन करने जाने का लाभ मिला। उनके समक्ष यह बात की। प्रश्न था कि, 'नवकार मंत्र के जाप से क्या उपलब्धि मिलती है? क्या कर्मों की निर्जरा होती है? या जो दर्शन हुए वह आत्मदर्शन हुए वैसा मान सकते हैं?' पूज्य श्री रत्नचन्द्रजी स्वामी अच्छे त्यागी, विद्वान, एवं ध्यान के योगी थे। उन्होंने कहा कि नवकार मंत्र का जाप करने से आने वाली व्याधि-आधि दूर हो जाती है। नवकार मंत्र बहुत प्रभावी मंत्र है। कर्मों की निर्जरा करने में बहुत सहायक है। निर्जरा के 12 प्रकारों में उसका उल्लेख नहीं है। उससे निर्जरा के लिए यह सहायक ही गिना जा सकता है। किन्तु निर्जरा के दसवें प्रकार स्वाध्याय में उनकी गिनती हो सकती है। उससे नवकार मंत्र के जाप से ज्ञानावरणीय कर्मों की निर्जरा (क्षय) हो यह संभव है। किन्तु जो दिव्य प्रकाश के दर्शन हुए उसे जरा भी महत्त्व मत देना। वह दर्शन हुए उसका अर्थ यह है कि तुम मन की एकाग्रता साध रहे हो, उससे आध्यात्मिक शक्ति का संवर्धन हो रहा है। कई साधकों को ऐसे दर्शन हुए हैं। वे साधक चाहे उस प्रकार की साधना करें और जब मन एकाग्र हो जाता है, जब मन, वचन और काया शान्त हो जाते हैं, उस समय साधक को बन्द आंखों में ज्योति दिखाई देती है या जिसकी उपासना कर रहे हों, उसके मानो साक्षात् दर्शन होते हैं। किसी साधक को सुगंधी द्रव्य की सुगंध आती है। किसी साधक को मुंह में मधुर स्वाद लगता है। किसी साधक को अपना शरीर एकदम हलके फूल जैसा लगता है। अलग-अलग प्रकार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? की अनुभूतियां होती हैं। इन्द्रियों के विषय की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है, उसमें बिल्कुल नहीं अटकना चाहिये। उसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिये। यदि ऐसी अनुभूति की आकांक्षा या कल्पना करोगे, तो तुम्हारा आध्यात्मिक मार्ग बन्द हो जायेगा और भम्रणाओं में भटक जाओगे।
आध्यात्मिक चिंतन-मनन, जाप या ध्यान केवल कर्मों की निर्जरा के लिए होना चाहिये। उसमें विघ्न भी आते हैं, उससे नहीं घबराकर अपना प्रयास चाल रखना चाहिये।" तब मैंने पूछा कि, "जाप, ध्यान, तपस्या इत्यादि प्रवृत्तियां करने से कर्मों की निर्जरा हुई या नहीं, उसका कैसे पता चले? उसकी उपलब्धि क्या?"
तब आचार्यश्री जी ने कहा कि, "जो व्यक्ति लघुकर्मी (कम कर्मों वाले या शीघ्र मोक्ष में जाने वाले) होते हैं ,उन्हें आध्यात्मिक चिंतन से मनन की रुचि जगती है। जब वह उसमें कार्यरत होता है, तब धीरे-धीरे प्रगति करता है। उस साधक के राग, द्वेष और कषायवृत्ति कितनी मन्द हुई है, वह उसका मापदण्ड है। साधक कभी भी तीव्र परिणामी, क्रोधी नहीं होता है। मान, माया, लोभ इत्यादि प्रवृत्तियां क्षीण होती जाती हैं। धर्म का सार यही है कि कषाय वृत्तियों का अंत करना। जिससे एकान्त निर्जरा का मार्ग प्रशस्त हो। नवकार मंत्र के जाप से प्रत्यक्ष कोई परिणाम नहीं मिला है और वह प्राप्त करने की भावना भी नहीं है। किन्तु मन के विकारों के शांत होने से पता चलता है कि यही उसकी उपलब्धि है।"
लेखक - श्री वसंत नागशी शाह 52, वर्धमान नगर, नागपुर 440000
भय से बचाता महामंत्र लगभग सन् 1945 में कच्छ की ट्रेनें (रेल) बन्द थीं। मुझे अपनी पुत्री जयश्रीबेन को ससुराल से लेने जाना था। कच्छ-वागड़ में भुटकीआभीमासर (तहसील रापर) गांव आया हुआ है। ट्रेनें बन्द होने से मुझे बस
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? द्वारा जाना था। मेरे मामा मूलजीभाई ने कहा कि रात को 9 बजे बस रवाना होती है और सवेरे पांच बजे पलांस्वा पहुंचती है। वहां तुम्हें |भुटकीआ -भीमासर जाने हेतु अहमदाबाद -भुज की बस में बैठना होगा। में तो भुज की बस में बैठा। सर्दी के दिन थे। ठंड ज्यादा थी। सर्दी के दिनों के कारण यात्री बहुत कम थे। गाड़ी तो रात में तीन बजे ही पलांस्वा पहुंच गयी। गाड़ी गांव में नहीं गयी। मुझे रोड़ पर ही उतार दिया। मैंने गांव देखा हुआ नहीं था। गांव में जैनों के 20-25 घर थामने गांव का रास्ता भी नहीं देखा हुआ था। मुझे गांव में किस प्रकार जाना? अब मुझे क्या करना? सर्दी की मौसम की आधी रात। कोई जानवर आ जाये तो मुझे चीरकर खा जाये। लूटेरे मिले तो लूटकर मेरी लाश को ठिकाने लगा दें। मर जाऊँ तो किसी को पता ही नहीं चले, क्योंकि में अकेला था। मैं हाथ में थैला लेकर और कम्बल ओढकर नमस्कार महामंत्र गिनता गिनता गांव में जाने हेतु निकला। रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ा
और वहां श्मशान आया। मुझे तो डर लगने लगा, भूत-प्रेत याद आने लगे। जैसे-जैसे गांव में आगे बढ़ा, वैसे वैसे बबूल के पेड़ ज्यादा आने लगे, और डर ज्यादा लगने लगा। चांदनी रात। हदय काम नहीं करे! करना क्या? मेरा नवकार मंत्र चालु ही था। मैंने सोचा, नसीब होगा तो जाया जायेगा। नवकार मंत्र बचाये तो ही रास्ता है। दूसरा कोई रास्ता नहीं है।' में गांव में पहुंच गया। गांव में किसके घर जाकर दरवाजा खटखटाऊं? तालाब के किनारे पर बस खड़ी थी। वही गाड़ी भुटकीआ-भीमासर जाने वाली थी। तब चार बजे थे। मैंने ड्राईवर-कंडक्टर से कहा कि "भाई मुझे तुम्हारी ही बस में भुटकीआ-भीमासर जाना है। तुम्हारी बस में बैठने दो तो मेहरबानी होगी। खूब ही विनति की, लेकिन वे नहीं माने। ड्राईवरकंडक्टर ने कहा कि हमारा कानून है कि आधी रात को बस का दरवाजा नहीं खोल सकते। दरवाजे को ताले से बन्द किया जाये। अंत में मैं बस के पास खड़ा-खड़ा नवकार गिनने लगा। आखिर में नमस्कार मंत्र की विजय हुई। उन दोनों के हदय नवकार ने परिवर्तन कर दिये। मुझे उन्होंने बस में बैठने दिया। मैं बस में आराम से बैठ गया। मुझे बस में बिठाने
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - के बाद बस में ताला लगा दिया। सवेरे 6 बजे बस रवाना हुई। मैं सात बजे भुटकीआ-भीमासर पहुंच गया। मैंने पूरी बात रिश्तेदारों को बताई। मेरे रिश्तेदार ने कहा कि, "आप भाग्यशाली हैं कि आप जीवित आये। पलांस्वा गांव के श्मशान से कोई रात में जीवित वापिस नहीं आता है। किसी को रात में बंदूक देकर भेज दो, तो भी वह जाने को तैयार नहीं होगा। रात को 12 बजे के बाद चाहे उतने पैसे दे दो तो भी कोई भी वहां जाने को तैयार नहीं होता है।"
नमस्कार मंत्र के प्रभाव से ही मैं वापिस जीवित अहमदाबाद आया। में चलते फिरते उठते-बैठते नमस्कार मंत्र का जाप करता रहता हूँ। शाम को सोते वक्त एवं सवेरे उठते समय प्रतिदिन नमस्कार मंत्र का स्मरण करता हूँ।
लेखक - श्री डाह्यालाल चत्रभुज मोथारिया
सी/6 जेठाभाई पार्क, पालड़ी, अहमदाबाद- 380007 बेटी-जवांई प्राणघातक दुर्घटना से बचे
आसोज मास की आंयबिल की ओली चल रही थी और मन्दिर में फोन आया कि जल्दी घर आओ। जरूरी काम है। मेरी छाती की धड़कन बढ़ गयी, कि क्या हुआ होगा। हमारी एक ही पुत्री 'बीना, वो भी हजारों कोस दूर अमरीका में रहती थी। मैंने खुद ने वैष्णव के साथ शादी की है। सन् 1992 में उस समय हमारे यहां.प. पू. आचार्य श्री यशोवर्मसूरिजी म. साहेब का चातुर्मास वालकेश्वर बाबु पन्नालाल के उपाश्रय में था। घर आते पता चला कि मेरी पुत्री बीना एवं जवांई की प्राणघातक दुर्घटना हुई है। उनकी हालत बहुत गंभीर है। उस समय की हमारी स्थिति का वर्णन | करने हेतु शब्द नहीं हैं। मेरी ईश्वर ऊपर की श्रद्धा चलायमान हो गयी।
दूसरे दिन मेरे पति गुरुजी के पास गये। वह जाते ही गुरुजी के पैरों में पड़ गये। तब उन्होंने प्रेम से उन्हें समझाकर मुझे भी साथ लाने को कहा। इसी पर्युषण में गुरुजी के समागम से ही 60 वर्ष की उम्र में
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - हिम्मत कर आठों ही दिन के अट्ठाई का पच्चक्खाण ले आये। उन्होंने कहा, "मैं जन्म से वैष्णव हूँ। केवल नवकार मंत्र ही आता है।"
साहेब ने कहा, 'कि कोई आपत्ति नहीं है। दोनों समय वह उनके साथ प्रतिक्रमण करते। व्याख्यान वगैरह सुनने से, हमेशा की 60 सीगरेट पीते थे, वे छोड़ दीं। जिससे गुरुजी और श्रावक का मेल-मिलाप बढ़ गया। दूसरे दिन फिर हम दोनों गुरुजी के पास गये। उन्होंने हमें खूब समझाया और मुझे सवालाख नवकार मंत्र गिनने को कहा। उसके अलावा एक द्रव्य का आयम्बिल कर अंतराय कर्म निवारण पूजा पढ़ायी। उस दौरान 11 महापूजन थे। उसमें भी सेवा-पूजा व्याख्यान के बाद मुझे ही स्नात्र पढ़ाने का था। एक ही स्थान पर श्रद्धा से सभी पूजन करवाये। वैसे प्रतिदिन मैं और वह 10 मालाएँ एक ही स्थान पर आदीश्वर दादा की तस्वीर के सामने, धूप-दीप कर गिनते थे। अमेरिका से फोन से समाचार मिलते, उस अनुसार साहेब को बताते। उनका वासक्षेप अमरीका भेजते। |वैसे ही उल्टे नवकार एवं भक्तामर की निश्चित गाथा वगैरह सभी पुत्री एवं जवाई के नाम से बोलते। धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य में सुधार होता गया। दोनों बच गये।
जवांई कोमा में से बाहर आये, किन्तु यादशक्ति नहीं रही। अभी नवकार का जाप पूरा नहीं हुआ था, किन्तु मेरी श्रद्धा बढ़ती गयी, आत्मविश्वास बढ़ता गया। उससे दूसरा कुछ नहीं करते हुए हम दोनों जन रोज का कार्य निबटाकर केवल नवकार का ही स्मरण करते।
उनको बड़ा ऑपरेशन करवाना पड़ा, किन्तु वह पूर्ण सफल हुआ। हम साधारण परिवार से थे, उस कारण उनके पास तो नहीं जा सके। यह सब सफर गुरुजी के मार्गदर्शन से काटा। वह कहते कि, 'बहिन, केवल कर्म मत बढ़ाओ, काम करो।'
. गुरुजी ने मुझे कहा,"तुम्हारे कारण ही कस्तुरभाई को जैन धर्म प्राप्त हुआ है और तुम्हारे से भी ज्यादा आस्था से मेरे समक्ष आये हैं।" आज भी हम हमेशा नवकार की पाँच पक्की माला गिनते ही हैं। उसमें कमी
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नहीं आने वाली है। ऐसी गुरु आज्ञा शिरोमान्य रखी है।
आशा है कि, हम जिन पुत्री - जवाई से दस वर्ष से नहीं मिले हैं वह अब नवकार की आराधना से जरूर मिल जायेंगे ।
लेखक गीताबेन कस्तुरभाई सोलंकी
वालकेश्वर, मुम्बई
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नमस्कार - समो मंत्रः, न भूतो न भविष्यति "
पूर्व के किसी महान पुण्योदय से संस्कारी धर्मप्रेमी जैन परिवार में जन्म मिलने से बड़ों की प्रेरणा से प्रतिदिन रात को सोते समय 3 नवकार तथा यात्रा प्रवास या अन्य मांगलिक अवसरों में 3 नवकार गिनकर कार्य प्रारंभ करने के संस्कार छोटी उम्र से ही संचित हो गये थे। पांचवी कक्षा में पढ़ते समय शिक्षक ने प्रत्येक जैन विद्यार्थी को प्रतिदिन सवेरे सात नवकार और जैनेतर विद्यार्थियों को ईष्ट देव का स्मरण करने का नियम दिया था। उसे आज 62 वर्ष हो गये हैं, नियमित पालन होता है। मैं स्कूल व - कॉलेज की परिक्षाओं में भी नवकार गिनकर उत्तर लिखना प्रारंभ करता और अच्छे अंक प्राप्त करता। परिणामस्वरूप मेरी नवकार के प्रति श्रद्धा उत्तरोत्तर बढ़ती गयी है। बीस वर्ष पूर्व मुझे एक सुन्दर स्वप्न आया वह पू. आ. श्री विजयलक्ष्मणसूरिजी को बताते उन्होंने मुझे रोज नवकार मंत्र की एक माला गिनने की प्रेरणा दी। जो में प्रतिदिन गिनता हूँ। सं. 2024 में पू. मुनि श्री तत्त्वानन्दविजयजी म.सा. की प्रेरणा से नौ लाख जाप शुरू किया और अनुक्रम से पूरा किया।
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इस प्रकार नवकार मंत्र की आराधना से कई लाभ हुए हैं, अनुभव हुए हैं। उनमें से दो प्रसंग वाचक वर्ग की श्रद्धा वृद्धि के प्रयोजन से यहां संक्षेप में पेश करता हूँ ।
62-63 वर्ष पूर्व पू. माता-पिता तथा छोटे भाइयों के साथ सिद्धाचलजी की यात्रा करने के बाद वरतेज से तांगे द्वारा श्री नवखण्डा
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पार्श्वनाथ के दर्शन करने हम घोघा गये। सेवा-पूजा करने के बाद वापिस आते बिना मौसम की वर्षा आयी। तांगा नाले के पूल के ऊपर आया, तब घोड़ा अचानक खड़ा रहा। वर्षा के साथ पवन का वेग भी इतना तेज था कि हम सभी को भय लगा कि तांगा अभी पल्टी खाकर नाले में गिर जायेगा और हम पानी के प्रवाह में बह जायेंगे ।
हम सभी ने साथ मिलकर शंखेश्वर दादा तथा नवकार मंत्र की धून लगाई। आपको कहते हुए हर्ष हो रहा है कि थोड़ी ही देर में वर्षा एवं तूफान शांत हुआ और हम सही-सलामत स्वस्थान पर पहुंच गये।
मेरी बड़ी बेटी की शादी कोचीन में हुई है। मैं दस वर्ष पूर्व एक दिन दोपहर के बाद घूमता- घूमता समुद्र किनारे गया। वहां मैंने कितने ही मछुआरों को जाल डालकर मछलियां पकड़ते देखा। मछलियां जाल में न आये इसलिए मैंने नवकार मंत्र गिनना शुरू किया। मैंने आधा घंटा वहां खड़े रहकर नवकार मंत्र का रटन चालु ही रखा।
मछुआरों के बहुत प्रयत्नों के बावजूद इतने समय में इनके जाल में एक भी मछली नहीं आयी। वास्तव में नवकार महामंत्र जैसा प्रभावशाली मंत्र दूसरा कोई है ही नहीं और होगा भी नहीं ।
लेखक श्रीयुत देवजीभाई दामजी खोना नेम विहार, ए/11.12ए 1160 मुरार रोड़, मुलुंड (वेस्ट) मुम्बई - 80 फोन नं. 5610698
व्यसन मुक्ति का जोरदार चमत्कार
आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व मेरे जीवन का ध्येय बूरी संगत में फंस गया था। नित्य दारु- जुआ यही मेरा क्रम । उठने के साथ कुल्ला करने के लिए दारु चाहिये, जुआ खेलुं और जीतुं तो आनन्द के लिए दारु, हारुं तो गम-दुःख भुलाने के लिए दारु चाहिये। जैन धर्मी युवान, परिवार में किसी को, किसी भी प्रकार का कोई व्यसन नहीं। परिवारजन अठ्ठाई - छक्काई, वरसीतप करने वाले अच्छे श्रेष्ठिवर्य धर्मानुरागी थे। सभी
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ही हैरान-परेशान, किन्तु मुझे किसी की भी शर्म नहीं थी। प्रत्येक जन रोकते-टोकते, किन्तु हमारे तो काम ऐसे के ऐसे। मेरा व्यवसाय नहीं था। किन्तु ट्युशन करवाकर उसके पैसे जुआ और दारु में उड़ाता। पत्नी घर पर खाखरे बनाकर, बाल मन्दिर के 150 छात्रों का नाश्ता बनाकर, बच्चों को पालती, घर चलाती। मैं उसके पास से भी मारपीट कर पैसे लेकर दारु-जुआ में उड़ाता। ऐसा पिछले दो वर्षों से चलने से कहने वाले तंग हो गये। सौगन्ध, मानता, जो हो सके, वह भी सगे सम्बंधियों ने करके देखा। | दोरे-धागे भी करके देखे, किन्तु पत्थर पर पानी। एक बहिन ने कहा, "मन्दिर में प. पू. आचार्य श्री दर्शनसागरसूरीश्वरजी म.सा. पधारे हैं। उनके बाल मुनिराज श्री दिव्यानन्दसागरजी म.सा. को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक की जरूरत है। भाई! तुम जाओ तो सही।" में गया। वहां दूसरे कई शिक्षक जाकर आये थे। मैंने भी एक दिन मुनिराज श्री दिव्यानन्दसागरजी को पढ़ाया। नहीं मानने जैसी बात बनी। बहुत शिक्षकों में से प.पू. आचार्य गुरुदेव श्री दर्शनसागरसूरीश्वरजी ने मेरा चयन किया। मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ। मन्दिर के प्रमुख ट्रस्टी मुझे 'पागल'-'दारुड़िया' कहकर बुलाते एवं जानते थे। उन्होंने विरोध किया होगा, ऐसा मैं मानता हूँ। किन्तु पता नहीं मुझे ही प.पू. आचार्य साहेब ने नियुक्त किया।
में दूसरे ट्युशनों में तो दारु पीकर जाता। किन्तु अच्छा पढ़ाता और सही ढंग से रहता। उससे परेशानी नहीं आती थी। किन्तु मन्दिर में किस प्रकार जाऊँगा? यह विचार आया। मैं तो दारु पीकर ही मुनिराज को पढ़ाने गया। प. पू. गुरुदेव श्री को तो पता पड़ ही गया। सप्ताह चला। एक दिन दोपहर में प. पू. गुरुदेव ने कहा, "कांतिभाई! तुम जो कर रहे हो, वह अच्छा नहीं है। तुम जैन भाई होकर दारु पीते हो, यह अच्छा नहीं कहा जा सकता है। फिर भी मुझे एक वचन दो कि जब तुम दारु या जुआ खेलो तब केवल पांच नवकार बोलोगे।" मैंने कहा, "हां साहेब, कमाल है, म.सा. इसमें कौनसी बड़ी परेशानी है? नवकार बोलकर फिर दारु पिउंगा।" मुझे कोई परेशानी नहीं होगी, ऐसा समझकर मैंने हाथ जोड़कर नवकार मंत्र केवल एक बार बोलने की सौगन्ध ली। प. पू.
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गुरुदेव श्री दर्शनसागरसूरीश्वरजी म.सा के साथ में प.पू. गणिवर्य श्री नित्योदय सागरजी म. साहेब ने मेरे अच्छे अक्षर देखकर थोड़ा लिखने को दिया । मुनिराज श्री चन्द्राननसागरजी म.सा. ने मुझे थोड़ी स्तुतियां लिखने को दीं। घर में रहकर लिखने में मन लगाकर रखा। शाम हुई, तलप जगी । क्लब गया। दारु पिया, जुआ खेला। जीता और दारु पिया। रात के 12 बज गये। दारु पीकर लड़खड़ाता लड़खड़ाता घर आया। हां नवकार मंत्र बोलकर ही दारु पिया था। खाना खाया, न खाया और सो गया। दूसरे दिन सवेरे उठकर सीधा दारु पीने गया । पैसे जेब में थे। जुआ खेला, जीता। बाहर के ट्युशन जाना था, वहां गया। प. पू. मुनिराज साहेब ने लिखने को दिया था, वह नहीं लिख सका। प. पू. मुनिराज श्री दिव्यानन्दसागरजी म.सा. को पढ़ाने गया। पढ़ाया और साहेब के पैर छूकर वन्दन किया । साहेब कुछ नहीं बोले, मैं घर आ गया। प. पू. गणिवर्य श्री नित्यानन्दसागरजी म.सा. की डायरी लिखने बैठा। सच मानना वह लिखने में समय कहां गया उसका पता ही नहीं पड़ा।
मैंने रात्रि को 2 बजे तक सुन्दर मोड़दार अक्षरों से डायरी के लगभग 50 पेज लिख दिये और सो गया। मैं सवेरे जल्दी उठकर लिखने के लिए बैठ गया। दो घंटे लिखकर दातुन पानी किया। घर के सभी को आश्चर्य लगा। मुझे स्वंय को आश्चर्य लगा चाय-पानी, नाश्ता किया, नहा धोकर वापिस लिखने के लिए बैठ गया। श्रीमती भी अचम्भे में पड़ गई, आज कैसा शकून भरा दिन उदय हुआ होगा, ऐसा वह मन में सोचती होगी। जो आदमी 24 घंटे नशे में रहता है उसने 20 घंटे किस प्रकार निकाले ? लिखकर खाना खाने बैठ गया। खाना खाकर सो गया। आराम करके ट्युशन करवाने गया। वहां बालकों को पढ़ाकर घर आया। मैंने चाय मांगी तो पत्नी खुश हो गयी। दारु के स्थान पर चाय ? आश्चर्य मुझे भी लगा। विचारों ही विचारों में प. पू. मुनिराज को पढ़ाने का समय हो गया । आज पढ़ाने में बहुत रस आ रहा था। मुनिराज श्री चकित हुए। मुंह में से बदबू नहीं आ रही थी। उन्होंने पूछा, 'क्यों कान्तिभाई ! जेब में पैसे नहीं हैं क्या? आज ऐसे कैसे?" मैंने कहा, "साहेब, पैसे तो आपकी मेहरबानी से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हैं, किन्तु मन मना कर रहा है।" बस, गुरुदेव ने लोहा तपा हुआ मानकर हथौड़ा मारा। "यदि एक दिन तुम शराब और जुए के बिना रहे हो तो यह नवकार मंत्र तुमको तारेगा। बस अब तुम पूरी माला गिनना।" मैंने उस दिन से नवकार मंत्र की माला सुबह और शाम गिनना शुरू किया। केवल एक नवकार गिनने से मेरी आदत छुट गयी वह कौन मानेगा? मेरे परिवारजन एक वर्ष तक मानते ही नहीं थे। वह भी कहते कि, 'तुम चोरी छुपी से शराब पीते होओगे।' किन्तु मैं किसी की सुनता नहीं था। नवकार मंत्र की आराधना से मेरी पुत्री की शादी अच्छे घर में हो गयी। मैं सुखी-सम्पन्न हूँ। इस बात को 25 वर्ष बीत गये हैं।
प.पू. आचार्य महाराज दर्शनसागरसूरीश्वरजी म.सा. का प्रथम चातुर्मास बोरीवली जामली गली, श्री संभवनाथ जैन मन्दिर में था। वहां से उनके आशीर्वाद से लगभग 20 वर्ष पहले केवल उनके एक नवकार मंत्र के उपदेश से मेरे जीवन में सोने का सूरज उग गया। उनके जहां-जहां चातुर्मास हुए, वहां-वहां उनके दर्शन का लाभ लिया। उनके शिष्यों ने नाम कमाया है। उनके शिष्य वर्तमान में आचार्य भी हैं। उनकी कृपा अभी तक मिलती रहती है। उनका उपकार कैसे भूला जा सकता है।
वास्तव में नवकार मंत्र में देव-गुरु का नाम स्मरण ही है। जिनके नाम स्मरण से संसार के पाप-ताप-संताप दूर होते हैं और शांति, समता, समाधि प्राप्त होती है। हमारे परिवार के 47 सदस्य पिछले 20 वर्षों से सुबह और शाम नवकार की एक पक्की माला फेरते ही हैं।
लेखक - कान्तिभाई शाह जामली गली, दशरथ बिल्डिंग,बोरीवली (वेस्ट) मुम्बई 400092 स्वप्न में नवकार, जागृति में नवकार! 9
(1) मैंने लगभग बीस वर्ष से नमस्कार मंत्र की आराधना चालु की है। उस दौरान जो एक घटना बनी, वह निम्न है
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आज से करीब दस वर्ष पहले की बात है। एक रात जल्दी सवेरे मुझे एक स्वप्न आया। उस स्वप्न में मैं हालार के वसई गांव में आचार्य |श्री कुंदकुंदसूरीश्वरजी महाराज की निश्रा में उनके समक्ष बैठा हूँ। आचार्य श्री ने पूछा कि, 'किस विचार में बैठा है?' मैंने उनसे कहा कि, 'मैं काफी समय से परेशान हूँ। मुझे कहीं स्थिरता नहीं मिलती है। इस कारण उन्होंने मुझे कहा कि, 'आंखे बन्द कर और नमस्कार मंत्र का रटन चालु कर।' पूज्य श्री भी मेरे समक्ष आसन पर विराजमान थे। मेरा नमस्कार मंत्र का रटन चालु ही था। उस दौरान जो अलौकिक दृश्य देखने को मिला, वह देखकर मुझे बेहद आनंद हुआ। वह तेजो दृश्य देखकर आत्मा और शरीर दोनों अलग हो गये। मेरी आत्मा तेजोदृश्य में विचरने लगी। देह नवकार मंत्र के रटन में ही ध्यान मुद्रा में स्थिर थी। कुछ समय के लिए अद्भुत अलौकिक दृश्य देखकर आत्मा. बहुत आनंदित हुई। वह समय वास्तव में कोई पुण्य का समय होगा, और श्री नमस्कार मंत्र की उपासना का परिणाम होगा, ऐसा मुझे निश्चित लगा। फिर धीरे-धीरे वह तेजोदृश्य अदृश्य हो जाता है। आत्मा धीरे धीरे नीचे आकर देह में समा जाती है। थोड़ी देर बाद आचार्य श्री कहते हैं कि, 'अब आंखे खोलो।' मैंने आंखे खोली। उसके बाद उन्होंने कहा कि, 'जाओ, तुम्हारी परेशानी दूर हो जायेगी। आज इस बात को दस वर्ष बीत गये, फिर भी जो अलौकिक दृश्य देखा था, वह भूल नहीं सकता। जैसे अभी ही यह घटना घटित हुई हो। तब से श्री नमस्कार की उपासना बहुत बढ़ गयी है।
दूसरा यह पढ़कर भी सभी को आश्चर्य लगेगा। किन्तु यह एक सत्य हकीकत है। पू. आचार्य कुंदकुंदसूरीश्वरजी महाराज को इससे पहले मैंने प्रत्यक्ष या परोक्ष या किसी तस्वीर में भी नहीं देखा था। उसके बावजूद जो घटना बनी, वह वास्तव में अद्भुत बनी। उसके बाद मैंने उन्हें गुरु माना है। आज उनके आशिष से में शान्ति से जीवन बीता रहा हूँ। मैं सभी को हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ कि, 'जीवन में शायद कुछ नहीं हो तो आपत्ति नहीं, किन्तु श्री नमस्कार महामंत्र का समरण सच्चे हदय |
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? से करना। सच्चे हदय का स्मरण चाहे वैसे संकट को दूर कर देता है। मेरी तरह आप सभी को श्री नमस्कार महामंत्र की उपासना फलदायी हो ऐसी प्रार्थना करता हूँ।
(2) यह बात भी 10 वर्ष पहले घटित हुई है। तब मैं वडाला अपने मौसा-मौसी के घर रहता था। वहां से बस में जाने हेतु मौसा और में दोनो जन ट्रेन से कुर्ला होकर भायखला रेल्वे स्टेशन पर उतरे। वहां से टेक्सी पकड़कर मुम्बई सेन्ट्रल जाना था। थोड़ी देर राह देखने के बाद एक टेक्सी वाला आया। उसे पूछा तो उसने हां कही। फिर वह अलग-अलग रास्तों से ले जाने लगा। इसलिए मेरे मौसा ने पूछा कि, 'भाई, तुम ऐसे अलग-अलग रास्तों से कहां ले जा रहे हो?' तो कहा कि, 'तुम्हें मुम्बई सेन्ट्रल जाना है, फिर क्यों चिन्ता करते हो। आपको सही पहुंचा दूंगा। आज मेरे धंधे की शुरुआत नहीं हुई है, अब बराबर हो जायेगी।' उसने बीच में एक मवाली जैसे आदमी को बिठा दिया। इसलिए मैंने मौसा को कहा कि, 'लगता है यह अपने का फंसा रहा है।' मैंने नमस्कार मंत्र का रटन चालु कर दिया और थोड़ी देर बाद वह मवाली जैसा जो आदमी था वह रास्ते में उतर गया और उसके बाद टेक्सी वाले ने हमको बराबर | मुम्बई सेन्ट्रल छोड़ दिया। वह भी कम किराये पर। मुझे तो यह बात श्री नमस्कार महामंत्र की उपासना का ही स्पष्ट अनुभव रूप लगती है।
(3) जब-जब हम हमारे गांव (जामनगर) से मुम्बई आते, तब हमारे दादी मां, जिनकी उम्र 80 वर्ष की थी, वह हमें सलाह देते कि बाहर गांव जाने से पहले जिनेश्वर प्रभु के पास जाकर बारह नवकार गिनना और फिर जाना। तुम्हें कभी कोई विघ्न नहीं आयेगा। नवकार मंत्र का स्मरण जीवन भर रखना। सुबह उठते समय एवं रात को सोते समय बारह-बारह नवकार अवश्य गिनना। यह उनकी नमस्कार मंत्र की अगाध श्रद्धा थी। उनकी दी हुई सलाह का हम अब तक अवश्य पालन करते हैं। कई बार इसका उत्तम फल मिला है।
लेखक - श्री अनिलकुमार के. गुटका 290/2 पूजा एपार्टमेन्ट, केप केनेरी, तीसरी मंजिल, रुम नं. 14,
मंगल भवन के पीछे, भिवण्डी - 421302
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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नवकार नाम का भोमिया
आज से 12 वर्ष पूर्व दीपावली के अवकाश में हम परिवारजन दक्षिण भारत की यात्रा पर गये थे। टेक्सी ड्राइवर और हम पांच। कुल मिलाकर 6 सदस्य "ठेक्कड़ी' से वापिस आने हेतु निकले। हमें निकलते थोड़ी देरी हो गयी और उसमें सर्दी की रात, अंधेरा भी जल्दी हो जाता। मदुराई पहुंचने के लिए थोड़ा घाट आता है। टेक्सी एकान्त में जा रही थी। हम सभी अपनी मस्ती में थे। फिल्मों के गीत गाते, किन्तु प्रभु-भक्ति में रस उससे ज्यादा, उस कारण ज्यादा समय तो भक्ति पदों-भजनों में ही बीतता। हम सभी साथ गाते, उसकी ही मस्ती में थे और ड्राइवर भी हमारी भक्ति में मस्त बनकर चलाता जा रहा था। थोड़ी देर बाद ख्याल आया कि रास्ता!...
रास्ते पर लाईट नहीं, सुनसान एकान्त...एकान्त रास्ते पर न तो कोई किलोमीटर का पत्थर आता ना ही कोई बोर्ड। थोड़ी देर बाद पता चला कि हम गलत रास्ते पर हैं।
शान्ति से भी डर लगे, यह बात तब बराबर समझ में आई। पूरा क्षेत्र जंगल का था, इस कारण डर भी लगा। हमारी भक्ति बन्द हो गई। पांच मिनट गाड़ी चली होगी लेकिन हमको पांच घंटों जैसी लगी। क्या करना उसके विचार में पड़ गये। ड्राइवर केवल तमिल भाषा जानता था और कामचलाऊ अंग्रेजी। उसे भी पसीना आ गया।
किन्त पछना किसे? अतिशय भयंकर रास्ते पर हम चढ गये थे। दिन होता तो थोड़ा डर नहीं रहता। किन्तु यह तो दीपावली की काली रात! ___सहज ही देर से किसी ने नवकार बोला। याद नहीं, किन्तु माता-पिता में से एक होंगे। हम सभी नवकार रटने लगे। सभी के मुंह से केवल नवकार। शायद ड्राइवर भी हमारे नवकार में जुड़ गया होगा। मैं जानता हूँ कि उसका अर्थ उसे पता नहीं होगा, किन्तु उसे भी ऐसी श्रद्धा हुई होगी कि यह लोग जो बोल रहे हैं, वह सही होगा और वही हमें
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मुश्किल में से निकालेगा।
रात्रि में 8 से 9 बजे का समय था। गाड़ी धीरे-धीरे नवकार के सहारे चल रही थी। रास्ता सीधा था। आसपास प्रगाढ़ जंगल था। इतने में अचानक जंगल के बीच में 15 से 18 वर्ष का एक युवान शर्ट, लुंगी, (आधी मोड़ी हुई) ऊपर कपड़ा बांधा हुआ-'टिपीकल दक्षिणी', हाथ में छोटी सी लकड़ी की सोटी लेकर जंगल से बाहर आया। हमने गाड़ी रोकी। ड्राइवर ने उसे उसकी भाषा में कुछ पूछा। उसने लकड़ी से रास्ता बताया और कहा, 'ऐसे नहीं, ऐसे जाओ।' हमने उसे बहुत कहा कि, 'तुम गाड़ी में बैठ जाओ और हमको रास्ता बताओ, तुम्हें खुश कर देंगे। किन्तु वह किसी भी प्रकार से हमारी गाड़ी में नहीं बैठा। अरे! उसने गाड़ी का स्पर्श भी नहीं किया और केवल रास्ता बताया। हमने गाड़ी घुमाकर उसका आभार माना। गाड़ी चालु कर अंदाज से 50 मीटर गाड़ी आगे गई, हमने फिर आभार के लिए प्रेम से पीछे देखा। वहां कोई ही नहीं था। हां! बराबर देखा वहां कोई ही नहीं था। उस समय वापिस जंगल में जाने का अर्थ नहीं था। क्योंकि उसके अन्दर से ही बाहर आये थे। हमको तो क्या था, पता नहीं था। न ही हमको वह जानने का रस था!! किन्तु इतना तो | पक्का पता पड़ गया था कि वह नवकार मंत्र के कारण ही था। हमारा | नवकार अखंड चालु रहा।
। नवकार नाम की टॉर्च हा
मेरे पिता हिमालय पर चलने के शौकिन। प्रतिवर्ष हिमालय को पैर तले करने निकल पड़ते। वे महाराष्ट्र ट्रेकिंग एसोसियेशन के आजीवन सदस्य थे। प्रतिवर्ष हिमालय की ट्रेकिंग में जाते। 10-15 सदस्य होते। हर वर्ष की तरह उस वर्ष वे नेपाल गये थे। वहां से 'गोसाई कुण्ड' जाना था। ट्रेकिंग में जाने वाले, कुदरत को रोदने वाले अपनी मस्ती में जाते हैं। कुदरत को पीते हैं, बिना भोमिये पर्वत को रोंदते हैं। काठमाण्डु से करीब 100 कि.मी. गाड़ी से गये, वहां से पैदल चलना था। शाम होने से पूर्व
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? आगे के केम्प पर पहुंचना होता है और पहुंचना ही पड़ता है। उसके बिना छुटकारा नहीं। कंधे पर थैला, हाथ में डंडा और पैरों में जूते। बस, सभी निकले। शाम होने लगी और सभी ने चलने की गति तेज की। उसमें कोई किसी के लिए राह नहीं देखता। प्रत्येक की सभी के साथ चलने की जिम्मेदारी स्वयं की होती है। मेरे पिता धीरे-धीरे अपनी मस्ती में चल रहे थे। अचानक उन्हें ख्याल आया कि वे सभी से पीछे रह गये हैं। सबसे अलग! अंधेरा हो गया था।
जंगल की राह थी। ट्रेकींग हाईकिंग तो कठिन ही होती है ना? जंगल या बर्फ अथवा पर्वतीय प्रदेश में ऊपर या नीचे बस तकलीफ ही तकलीफ!! या आनन्द ही आनन्द!!
अंधेरा बढ़ता जा रहा था। समान में देखा तो टॉर्च नहीं थी। वह शायद किसी दूसरे के सामान में चली गयी थी। दिखाई देना बन्द हो गया, अमावस की रात होगी और जंगल की राह, कोई दिखाई न दे।
ऐसे समय भगवान याद नहीं आये, वैसा हो नहीं सकता। जब भगवान याद आते हों, और हाजिर न हों, वैसा भी नहीं हो सकता।
पिताजी ने भी नवकार मंत्र चालु किया। जो उनके स्मरण करने की आदत ही थी। किन्तु तब सही चालु किया था, वैसा उन्होंने कहा था। मुझे सही याद है वे अपने केम्प में पहुंच गये। बात इतनी सरल और आसान मत समझना। केम्प पर तो वे पहुंचे मगर किस प्रकार?
हां वही महत्त्व की बात है? जब बे नवकार बोलकर खुद आगे बढ़ते और अपनी लकड़ी आगे रखते कि लकड़ी के नीचे के भाग में से आगे देख सकें, उतना प्रकाश पड़ता और वे आगे कदम बढ़ा सकते। वे नवकार बोलते जाते और लकड़ी आगे रखते जाते थे। आगे का रास्ता दिखता गया, वैसे करते करते वे केम्प में पहुंच गये।
. वास्तव में आश्चर्य तो इस बात का है कि उन्हें इस बात का भान केम्प में पहुंचने के बाद हुआ। उनसे आगे पहुंचे हुए मित्र अपने मित्र हिम्मतभाई की चिंता के साथ राह देख रहे थे। उनको देरी से आने के
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? लिए उपालम्भ दिया और पूछा कि, 'अंधेरे में तुम किस प्रकार आ सके?' तब पिताजी को भान हुआ कि प्रकाश तो मिलता ही था। उसके कारण ही में यहां पहुंचा हूँ, नहीं तो असम्भव था। वह लकड़ी अभी भी हमारे | पास है। उस नवकार को भी हमने अभी तक साथ रखा है, किन्तु उपयोग छूट से करते हैं। अस्तु
नवकार नाम का डॉक्टर /
प्रतिवर्ष हम काफर्ड बाजार में से कुछ पक्षी खरीदकर उसे हमारी छत पर उड़ा देते हैं। हम 1993 में ऐसी ही रंग बिरंगी 500 जितनी चिड़ियाएं ले आये। गर्मी के दिन थे। मुम्बई से घाटकोपर टेक्सी में घर पर लाये। सभी को पानी दिया, दाना दिया, नवकार मंत्र बोलकर पिंजरों के दरवाजे खोले, चिड़ियाएं उड़ने लगीं।
पूरा आकाश स्वतंत्रता, आनन्द और चिड़ियाओं से भर गया। हमारे हदय में कुछ अच्छा करने का संतोष था। दो-चार चिड़ियाएं नहीं उड़ी थीं। उन्हें भी पिंजरा बजाकर उड़ा दिया। किन्तु एक चिड़िया बीमार होगी। ऐसे भी ऐसी चिड़ियाएं दूसरे प्रान्तों में से यहां बेचने के लिए आतीं। वह आधी भूखी, प्यासी, प्रतिकूल जलवायु के कारण अधमरी तो हो ही जाती
उस बीमार चिड़िया को हम नीचे हमारे घर में लेकर आये। उस पर पानी छिड़का, दाना डाला (वैसे तो वह खा सके वैसी नहीं थी किन्तु हमें उचित लगा) और एक प्लास्टीक के ढक्कन वाली टोकरी में उसे रखा। रात में उसे फिर देखने गये। वह अधमरी जैसी लगती थी। तिरछी पड़ी थी। गर्दन खिंच गयी थी। श्वास बहुत तेजी से चल रहा था और आंखें ऊपर चढ़ गयी थीं। हमें दुःख लगने लगा।
अब अभी ही प्राण उड़ जायेंगे। अभी ही गयी समझो। किसी के प्राण जा रहे हों तब तो नवकार मंत्र सुनाना यह हम सभी की आदत है। हमने नवकार शुरू किया। थोड़े नवकार गिनकर में तो कमरे में आ गया।
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किन्तु मेरे पुत्र (उम्र 5 वर्ष) और मेरे भाई ने काफी नवकार, लगभग 15 से 20 मिनट तक उसे जोर से सुनाये। शायद कुछ शाता में प्राण त्यागे, उसी ही आशा से, क्योंकि बच सके वैसे कोई चिह्न नहीं दिखते थे। फिर उन्होंने भी टोकरी एवं नवकार बन्द किये और उसे भगवान के भरोसे रखकर सो गये।
सवेरे कुतूहलवश भाई ने टोकरी खोली (विश्वास था कि वह मरी ही पड़ी होगी) टोकरी खोली और फररर्... करती वह चिड़िया बाहर उड़ गयी । लेखक धीरेन शाह
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जीवन यात्रा में हर पल का साथ - महामंत्र नवकार
मैं अपने सद्भाग्य पर गौरव महसूस करता हूँ। क्योंकि जब शुभ कर्मों का संयोग हुआ तभी मुझे जैन शासन मिला। उसमें भी आर्य देश, उत्तम कुल, अमूल्य मानव जीवन, पांचों इन्द्रियों की परिपूर्णता, निरोगी शरीर, संतों का समागम, अनुकूल साधन सामग्री यह सब बिना पुण्य नहीं मिल सकता है।
कच्छ में हमारा लुणी गांव है। घर के पास में ही धर्म स्थानक होने से आनेजाने वाले संत सतीजियों का आगमन होता रहता था । हमारे माता-पिता को भी धर्म पर बहुत श्रद्धा थी। वे संतों के दर्शन, व्याख्यानवाणी का श्रवण, तप, त्याग और संतों की सेवा करते थे। हम छोटे थे, तब से ही माता-पिता से धर्म के संस्कार वंशानुगत मिले थे। संत समागम से मैंने 10 वर्ष की उम्र में सामायिक, प्रतिक्रमण कण्ठस्थ कर लिये । संतों के मुख से नवकार मंत्र के प्रभाव, चमत्कारों की बातें सुनी। वह मुझे भी कहते कि सुबह-शाम दोनों समय माला गिनना, इससे प्रत्येक कार्य सफल होगा। विघ्न दूर होंगे। मुझे भी नवकार मंत्र ऊपर बहुत ही श्रद्धा उत्पन्न हुई। मैं दोनों समय माला गिनने लगा। में अनानुपूर्वी गिनने लगा, सामायिक प्रतिक्रमण, चौविहार छोटी उम्र से ही करने लगा।
नवकार मंत्र में चौदह पूर्व का सार समाया हुआ है। भले ही दूसरा
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कुछ नहीं आये, किन्तु शुद्ध मन से, शान्त चित्त से नवकार की माला गिनोगे तो अनन्त कर्मों की निर्जरा होगी। दूसरे भी कई महान लाभ होंगे। संसार का प्रत्येक कार्य करने से पूर्व नवकार मंत्र का स्मरण करना चाहिये। जिससे कार्य सफल होगा, कार्य में कोई विघ्न नहीं आयेगा, भूत-प्रेत परेशान नहीं कर सकेंगे, सांप-बिच्छू का जहर भी नवकार मंत्र के प्रताप से उतर जाता है। भयंकर से भयंकर रोग भी नवकार मंत्र से समाप्त हो जाते हैं। "सभी रोगों की औषधि एक ही मंत्र है नवकार, जप लो मंत्र बड़ा नवकार।" ऐसा सब संतों के मुख से सुनने से मुझे छोटी उम्र में ही नवकार मंत्र पर बहुत ही श्रद्धा और विश्वास उत्पन्न हुआ।
छोटी उम्र में धर्म संस्कारों का बीज आज 67 वर्ष की उम्र में वटवृक्ष जैसा हुआ है, ऐसा कहूं तो गलत नहीं है। हमेशा में 6-7 सामायिक और अष्टमी, पाक्षिक के दिन दस सामायिक करता हूँ। देश (कच्छ) में होता हूँ, तो निवृत्ति में 15-17 सामायिक भी करता हूँ। मैं दोनों समय प्रतिक्रमण, नवकारसी, चौबीस घंटों में से बाईस घंटे चौविहार, नवकार मंत्र की 10-12 माला, एवं दो चार बार अनानुपूर्वी करता हूँ। यह मेरा नित्यक्रम है। नौ लाख नवकार मंत्र का जाप तो पांच-छ: बार हो गया होगा। उसकी कोई गिनती नहीं है। यह मेरी बड़ाई नहीं, हकीकत आपके सामने पेश कर रहा हूँ। कभी घर से बाहर जाता हूँ, तो प्रथम तीन नवकार गिनता हूँ। दुकान में पैर रखते भी नवकार, खाना खाने बैठते |समय भी नवकार, चलते-फिरते, उठते-बैठते, यात्रा में भी नवकार का रटन चालु ही रहता है।
अभी तक के जीवनकाल में मुझे कभी भी कोई तकलीफ नहीं आयी है। यह सब प्रताप है, नवकार मंत्र का। दुकान में बहियों में भी नवकार मंत्र लिखता हूँ। दूसरा कुछ बहियों में पूजन नहीं करता हूँ। देव-गुरु-धर्म तत्त्व पर पूरी-पूरी श्रद्धा है। दूसरी किसी भी नाटकवाणी में मुझे कहीं भी लालच ही नहीं है। अब नवकार महामंत्र के प्रताप से मेरे जीवन में जो प्रत्यक्ष अनुभव, चमत्कार हुए हैं, वे आपके समक्ष पेश करता हूँ। सर्वप्रथम, जब मैं बीस वर्ष का था, तब मेरी शादी हुई। शादी |
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - के बाद ननिहाल पक्ष ने गंदाला गांव में भोजन का आमंत्रण दिया। ____ हम सब बैठे थे। मेरे मामी खाना खाकर मुंह में सुपारी का टुकड़ा डालकर हमारी बातों में शामिल हुए। अचानक खांसी आने से सुपारी का टुकड़ा श्वासनली में फंस गया। श्वास रूंधने लगा। सबके प्राण ऊंचे हो गये। गांव में से डॉक्टर आया। मुन्द्रा से बड़े डॉक्टर को बुलाया। कोई उपाय कामयाब नहीं हुआ। पूरा गांव इकट्रा हो गया, सभी को लगा कि अब यह नहीं बच सकेंगे। सभी के चेहरे उदास हो गये। तब मेरे अंतर में से आवाज आई कि इस मौके को पकड़ ले। नवकार मंत्र का प्रयोग आजमाकर देख ले। में किसी को कहे बिना अन्दर के कमरे में गया। वहां गिलास में थोड़ा पानी लिया। हाथ में गिलास लेकर मैं ईशान दिशा की
ओर मुंह रखकर, नवकार मंत्र गिनने लगा। मैं पांच-छ: मिनट नवकार गिनकर पानी में पांच बार फूंक मारकर बाहर आया। वहां मैंने सभी के सामने मामी को पानी पिला दिया। जैसे ही पानी अन्दर गया, उल्टी के साथ सुपारी का टुकड़ा भी बाहर आ गया। मामी एकदम स्वस्थ हो गये, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। इकटे हुए सभी को आश्चर्य हुआ। मुझे सभी कहने लगे कि, 'क्या जादु किया?' मैंने कहा, 'कुछ नहीं, देव-गुरु-धर्म और नवकारमंत्र के प्रभाव से, अपने सभी के नसीब से मामी संकट में से बच गये। अभी वे जीवित हैं। वह बड़ी उम्र में धर्म आराधना, तप-त्याग से मानव जीवन सफल बना रहे हैं। इस प्रथम प्रयोग से मेरी नवकार के प्रति श्रद्धा और गहरी हुई। मेरा पुरुषार्थ सफल हो गया।
एक बार हमारी गाय जो एक बार में चार लीटर दूध देती थी, उसने एकाएक दूध देना बन्द कर दिया। मैं संयोग से देश (कच्छ) में था। माँ ने मुझे बात की। मैं तुरन्त ही चरवला (सामायिक का उपकरण) लेकर गाय के ऊपर नवकार गिनकर घुमाने लगा। 5-6 मिनट वह क्रिया की। गा कान में मैंने नवकार सुनाया। गाय के पूरे शरीर पर हाथ घुमाया। फिर मां को कहा कि, अब आओ, बर्तन लेकर गाय को दोहने बैठो।' मां, ना-ना कर रही थीं, किन्तु मैंने कहा, 'आप प्रयत्न तो करो।' मेरे कहने से मां गाय दोहने बैठी तो थोड़ी देर में चार लीटर का बर्तन दूध से भर
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
गया। मां को भी आश्चर्य लगा। मामी की घटना की जानकारी उन्हें थी ही, इसलिए कहा कि वास्तव में नवकार मंत्र एवं धर्म का प्रभाव महान
है।
हमारे पास के घर में माजी अकेले रहते थे। एक दिन सवेरे उन्हें उठते समय सांप ने काट दिया। मैं तब सामायिक में था। मैं सामायिक पूर्ण होते ही इनके घर गया। पूरा मोहल्ला इकट्ठा हुआ था। सांप को खोजते सांप कहीं दिखाई नहीं दिया। मुझे पूरी बात सुनायी। मेरे मन में नवकार मंत्र का स्मरण ही था, मैंने केवल एक ही नजर में दरवाजे के ऊपर शान्त बैठे सांप को सभी को बताया। नवकार मंत्र, पार्श्वनाथ प्रभु का स्मरण, भक्तामर स्तोत्र की 41 वीं गाथा "रक्तेक्षणं समद कोकिल कंठ नील" यह गिनते सण्डासी से सांप को तकलीफ न हो वैसे ही पकड़कर निर्भय स्थान पर छोड़ आया। फिर माजी को जिस अंगुली में सांप ने काटा था, वहां चरवला घुमाकर पांच-छः मिनट तक नवकार गिने । माजी की वेदना कम हो गयी। मैंने एक बहिन का बिच्छू का जहर भी नवकार मंत्र से उतारा। मुझे ऐसे कई छोटे-बड़े चमत्कार नवकारमंत्र से प्राप्त हुए हैं।
जीवन के अन्तिम श्वास तक नवकार मंत्र का स्मरण निरंतर रहे, ऐसी सद्भावना के साथ हम सभी अनमोल मानव भव को सार्थक करने के लिए, अरिहंत देव, सुसाधु गुरु एवं केवली प्ररूपित जैन धर्म की आराधना कर, नवकार मंत्र का स्मरण करते-करते कर्म क्षयकर मुक्ति मंजिल को प्राप्त करें। जय जिनेन्द्र
लेखक : श्री उमरशी शिवजी सतरा विमल स्टोर्स, हंसराज शिवजी चाल, एल. बी. एस. मार्ग, भांडुप, मुम्बई- 78
अनंत शक्ति का भंडार, महामंत्र नवकार
मैं छोटी (14-15 वर्ष की उम्र में एक दिन राधनपुर में तालाब पर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - नहाने गया। नहाकर घर की ओर आधा रास्ता पार किया। वहां रास्ते में बहुत भाइयों और बहनों का वृन्द खड़ा था। वह देखकर मैंने पूछा कि, 'यहां सब क्यों इकटे हुए हैं?' उन लोगों ने जवाब दिया कि, 'इस बालक को बिच्छू ने काटा है, जहर नहीं उतरा है।' मुझे पूज्य गुरुदेव के प्रवचन में सुना हुआ याद आ रहा था। आज सवेरे ही पूज्य गुरुदेव श्री ने प्रवचन में नवकार महामंत्र के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा था कि, 'चाहे वैसा विष-जहर चढा हो तो भी श्री नवकारमंत्र के प्रभाव से उतर जायेगा।' श्री नवकार मंत्र के प्रभाव से जहर उतारने का याद आते ही मैंने वहां खड़े भाइयों को कहा कि, 'उस लड़के को मेरे पास बुलाओ। मैंने उसे पास में लाने के बाद तीन नवकार गिने और तीन बार दाहिने हाथ से छु-छु-छु...इस प्रकार कहकर क्रिया पूर्ण की कि, तुरन्त ही जहर उतर गया और वह लड़का दौड़ता हुआ अपने घर चलता बना।
यह मेरी अपनी छोटी उम्र में घटित हुई श्री नवकार महामंत्र के प्रभाव की सच्ची घटना है। मेरा दूसरा लड़का एक बार श्री शंखेश्वरजी मन्दिर में आरती उतारकर धर्मशाला की ओर कमरे में आ रहा था। उस समय रास्ते में लघुशंका करके वह चिल्लाता हुआ वापिस आया। मैंने पूछा, क्या हुआ?' तो उसने कहा कि, "मुझे पता नहीं, बहुत ही पीड़ा हो रही है। किसी ने काटा है।" मैंने सूचना दी कि, 'श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः' जाप के साथ नवकार मंत्र का जाप शुरू कर और उसने उसी अनुसार पन्द्रह मिनट जाप किया। उसे एकदम हरे रंग की उल्टी हुई। उसके बाद बोला कि, 'मुझे नीन्द आती है।' वह शान्ति से सो गया। सवेरे उठने के बाद कुछ भी तकलीफ नहीं थी।
इस प्रकार मेरे जीवन में घटित हुए यह अनुभव हैं। इसमें कुछ भी | अतिशयोक्ति नहीं है। पूज्य गुरु भगवंतों की प्रेरणा से मैं अभी 70 वर्ष से श्री नवकार महामंत्र की माला गिनता हूँ।
प.पूज्य नीतिसूरीश्वरजी के शिष्य उदयसूरीश्वरजी म.सा. ने प्रतिदिन श्री नवकार महामंत्र की एक माला गिनने की प्रेरणा की और इनकी कृपा
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
से आज तक प्रतिदिन माला गिनना चालु है। 16 वर्ष की उम्र में प.पूज्य पंन्यास श्री धर्मसूरीश्वरजी म.सा. डहेलावाला की निश्रा में उपधान तप कर विधिपूर्वक श्री नवकार महामंत्र की वाचना ली। इस प्रकार पूज्य गुरुभगवन्तों की प्रेरणा से आज तक नवकार महामंत्र के जाप की साधना चालु है। इससे जीवन में साधारण स्थिति में भी प्रसन्नता एवं शान्ति अनुभव की है और धार्मिक संस्थाओं की सेवा भी अच्छी प्रकार से की है। इस प्रकार मुझे समाज में भी सभी सम्मान की दृष्टि से आदर करते हैं।
इस प्रकार अभी मेरी उम्र 87 वर्ष की होने के बावजूद भी मुझे किसी भी प्रकार की आधि, व्याधि एवं उपाधि नहीं है।
लेखक : श्री वरधीलाल वमणशी सेठ 191 घोगटे मेन्शन, दूसरा माला, गुलालवाड़ी, मुम्बई
नवकार अनानुपूर्वी के प्रताप से
अंदाज से सं. 2012 (ई.स. 1955 ) में में आकोला में कच्छी मेमण के यहां नौकरी करता था। उनके यहां बरेली के एक फकीर कभी-कभार आते और मेरे सेठों के साथ जादु मन्तर आदि की चर्चाएं करते थे। मेरे दिमाग में यह बातें नहीं उतरती थीं। अन्त में मैंने उसे चेलेन्ज दिया कि, मैं अपने नवकार महामंत्र का जाप करता हूँ। आपको मेरे ऊपर मंतर का प्रयोग करना है। आसपास की दुकानों से 2-4 लोग आये। फकीर ने मोर पंखुड़ी के गुच्छे से 2-4 मंत्र पढ़कर मेरे माथे पर मारी । मुझे कुछ भी नहीं हुआ । फकीर शरमा गये और निराश होकर हार कबूल कर ली। मेरी आयु 79 वर्ष की उम्र में मुझे कई बार श्री नवकार महामंत्र के अनानुपूर्वी के जाप से चमत्कारिक रूप से लाभ हुए हैं।
आज भी मुझे श्री और जाप चालु है।
नवकार महामंत्र तथा अनानुपूर्वी पर पूर्ण श्रद्धा है लेखक : श्री बलवन्तराय गोपालजी वोरा 11, सिल्वर एपार्टमेंट, आकुरली क्रोस रोड़ नं. 1 कांदीवली (ईस्ट) मुम्बई 400101
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| पवित्र सस्मरण एवं स्वयं के अनुभव
___ आज से तीस वर्ष पूर्व की यह बात है। हालार प्रदेश के जामनगर जिले में हमारे मूल गांव मोटामांढा में पंन्यासजी श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. चातुर्मास हेतु विराजमान थे। उसी समय में श्री वासुपूज्य स्वामी आदि दो जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा एवं एक युवान केशुभाई (श्री कमलसेन वि.म.) की दीक्षा भी खूब उल्लास पूर्वक हुई थी। उस समय हम नवकार मंत्र का जाप करते, किन्तु कोई समझ-श्रद्धा या ज्ञान-विश्वास वगैरह कुछ नहीं था। केवल सभी जाप करते थे, इसलिए हम भी जाप करते थे। किन्तु पूज्य श्री ने व्याख्यान द्वारा अचिंत्य अकल्प्य ऐसे चिंतामणि रक्त नमस्कार महामंत्र के प्रभाव का ज्ञान देकर गुरुदेव श्री ने हमारे ऊपर जो उपकार किया है, उसे कभी भी भूला नहीं सकते।
गुरुदेव श्री कहते किसी भी कार्य को करने से पहले, सोते, बैठते किसी भी संयोगों में नवकार मंत्र गिनकर ही कार्य की शुरूआत करने से कार्य सफल हो जाता है। इससे हमको भी अप्रमत्त रूप से श्रद्धा हो गयी। यह पूज्य श्री अध्यात्मयोगी नवकार वाले . महाराज साहेब के नाम से हालार में प्रसिद्ध हो गये।
मैंने एक बार व्याख्यान के बाद गुरुदेव के पास में बैठकर बात की। तब मेरी उम्र 15 वर्ष की थी। हमारी बाड़ी में दोपहर के समय हमेशा शिकारी खरगोश का शिकार करके जाता है। वह देखकर मैं सहन नहीं कर पाता हूँ। इस निर्दोष प्राणी को बचाने के लिए कुछ उपाय बताओ।
पूज्य श्री ने सुन्दर-सरल-उत्तम उपाय बताते हुए कहा कि शिकारी जब भी दिखाई दे, तुम नवकार महामंत्र का स्मरण चालु कर देना, भले ही अपना खेती का कार्य करते हो। मुंह से बोलने के साथ श्रद्धा होगी तो नवकार जाप का प्रभाव पड़ेगा। उसे एक भी शिकार हाथ नहीं लगेगा। ___ यह प्रयोग मैंने दूसरे दिन ही शुरू कर दिया। वास्तव में शिकारी
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दोपहर में काफी दौड़ भाग करने के बाद भी एक भी शिकार प्राप्त नहीं कर सका। यह क्रिया मैंने प्रतिदिन चालु रखी। शिकारी को देखते ही जाप प्रारंभ कर देता। जिससे 10-15 दिन में एक भी शिकार नहीं मिलने से शिकारियों ने वाड़ी में आना ही बन्द कर दिया और इन निर्दोष प्राणियों का बचाव हो गया।
इसी प्रकार सं. 2045 में गोरेगांव में मेरे अनाज, किराणे की दुकान थी। तब ग्राहक को उधार देने से मना करने पर वह तीन-चार जने मुझे मारने दौड़े आये । परन्तु मैंने नवकार का जाप शुरू किया और मैं बच गया। नवकार मंत्र को इसीलिए संकट मोचक कहा गया है। विघ्नों का हरण करने वाली, सुख-शान्ति और मेल-मिलाप देने वाली और परम्परा से मोक्ष तक पहुंचाने वाली यह एक शाश्वत सीढी है।
लेखक : श्री जे.के. शाह जोगेश्वरी-मुम्बई
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" वैश्विक महामंत्र नवकार"
जैन धर्म भारत की प्राचीन दार्शनिक परम्परा है। मंत्र एक शक्ति है, यह बात सभी जगह स्वीकार हुई है। जैन धर्म का आदि महामंत्र नवकार सिद्ध मंत्र है। यह मंत्र वैश्विक, गुणपूजक और सम्प्रदाय रहित है। नवकार मंत्र के प्रथम पद में अपने अन्दर के कषाय हटाकर, कर्म की निर्जरा कर, मानव मात्र को आत्मकल्याण का मार्ग बता रहे हैं, ऐसे अरिहंत प्रभु को वन्दन करना है। दूसरे पद में, तमाम कर्मों का क्षय करके अपनी आत्मा को मोक्ष पद में स्थिर किया है, ऐसे सिद्ध भगवंतों को नमस्कार करना है। तीसरे पद में पंच महाव्रत का उत्कृष्ट आचरण करें और अन्य को वैसा करने की प्रेरणा देने वाले आचार्य भगवंतों को और चौथे पद में सिद्धान्त के पारगामी, ज्ञान का प्रकाश बिखेरने वाले उपाध्यायजी को नमस्कार करना है। नवकार के पांचवे पद में समग्र सृष्टि के साधुत्व का वरण किये हुए आत्माओं को वन्दन करना है। इस मंत्र का उद्देश्य पंच
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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? परमेष्ठी को नमस्कार करना है।
यह मंत्र शब्द कोष के थोड़े शब्दों का समूह नहीं है, परन्तु हदय कोष का अमृत है। जिसका केवल भावपूर्वक स्मरण मन को चन्दन जैसी शीतलता देता है। नाभि में से यह मन्त्रोच्चार करें तो भीतर में अनादिकाल से पड़े कषाय चकनाचूर हो जाते हैं। यह शारीरिक पीड़ा और मानसिक ताप समाप्त कर चित्त को शान्त करता है। इस मंत्र का चिन्तन मात्र अचिन्त्य चिन्तामणि समान है।
लोनावाला में स्वामी विज्ञानानन्द स्थापित वेदांती आश्रम (NEW |WAY) आया हुआ है। यह लिखने वाले ने इस आश्रम की मुलाकात ली थी। आश्रम में अद्यतन यंत्र, मंत्र की शक्ति का माप दर्शाते हैं। विजाण यांत्रिक साधनों द्वारा कितने ही मंत्रों का मंत्रोच्चार कर उसका प्रत्यक्ष नाप बताते समय नवकार मंत्र का सर्वश्रेष्ठ रूप सिद्ध हुआ था, ऐसा जानने को मिला। इस आश्रम में जैन कुल या जैन धर्म अंगीकार किया हुआ कोई साधक नहीं था।
मात्र नवकार मंत्र के रटन में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, और साधु-सन्तों का स्मरण, रटन और वन्दन अभिप्रेत है। शुभ और शुद्ध का चिंतन जीवन में शुभ प्रवाह को शुद्धता की ओर गति देगा।
जैन कथानकों में नवकार मंत्र के प्रभाव की जो बातें आती हैं, वे केवल चमत्कार या दंतकथा नहीं हैं। उसके पीछे वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तथ्य एवं सत्य है। सतत शुभ चिन्तन और विधेयात्मक विचारधारा अनिष्ट और अशुभ का निवारण करती है। इसे आधुनिक मनोविज्ञान ने स्वीकार किया है।
लेखक : श्री गुणवंत बरवालिया "गुंजन" सी- 16-17 गुरुकृपा टेरेस, आर.सी. रोड़,
चैम्बूर- मुम्बई - 400071
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से
विश्व के प्रांगण में श्री नमस्कार महामंत्र को बेजोड़ मंत्र के रूप में मान्यता मिलती जा रही है, जिसका प्रमुख कारण है नमस्कार का अर्थ विस्तार तथा साधक पर आया भयंकर संकट से निस्तार हो जाना। नमस्कार महामंत्र में अध्यात्म का पावन संदेश है तो भौतिक समृद्धि का संकेत भी है। योग, सिद्धविद्या, विज्ञान, कर्म, धर्म आदि कसौटियों पर भी यह मंत्र कसा गया और इस मंत्र को जाग्रत मंत्र के रूप में माना गया है।
विश्वपूज्य, अभिधानराजेन्द्रकोष के निर्माता, युगप्रभावक श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने जीवन में दो बार महा कठीनतम साधना पद्धति में इस मंत्र को साधकर जनजागृति और धर्मक्रान्ति का शंखनाद किया था । " अर्हम्" पद की अखण्ड साधना में स्वयं के जीवन को तो दिप्त बनाया ही, साथ ही जिनशासन के मार्ग पर हजारों आराधकों को सन्मार्ग प्रदान कर जनकल्याण भी किया। उन्हीं की परम्परा में व्याख्यान वाचस्पति जैनाचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न, प्रवचनकार आगम ज्ञाता मुनिराज श्री देवेन्द्रविजयजी म.सा. हुए हैं। जिनकी पावन निश्रा में रहने का सौभाग्य निरन्तर मुझे बाल्यकाल से ही मिला है। 12 वर्ष तक अपने उपकारी गुरुदेव के साथ रहकर मैंने जो पाया उसे संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
पूज्य उपकारी गुरुदेव प्रातः काल 3 बजे उठकर नियमित रूप से 3 घंटे का ध्यान करते थे। पंच परमेष्ठि मुद्रा करके ध्यान करते समय जो अदृश्य संकेत प्राप्त होता था, उसे एक छोटी सी डायरी में नोट कर लेते थे। फिर उसी के अनुसार अनेक कठिन प्रश्नों का समाधान सहज रूप से कर देते थे।
पूज्य उपकारी गुरुदेव कहा करते थे कि, " श्री नमस्कार महामंत्र आराधना से ही आत्म उद्धार की कुंजी प्राप्त होती है। अनादिकालीन विषय विकार की बीमारी मिटती है। प्रवचन करते
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - समय अंतर में से अपने आप ऐसे ऐसे ब्रह्म वाक्य निकलते हैं कि स्वयं को भी बाद में आश्चर्य होता है। एक ऐसा प्रयोग भी है कि जो मंत्र बोलकर मुंह पर हाथ घुमा दिया जाये तो धारा प्रवाह एक ही विषय पर महिनों बोलने पर भी ज्ञान की अटूट धारा बहती रहती है। चिंतन शक्ति और स्मृति की शक्ति खुल जाती है।"
पूज्य उपकारी गुरुदेव के कर कमलों से प्रतिष्ठाएं-अंजनशलाकाएं, उपधान तपोत्सव, दीक्षा महोत्सव, संघमाला और महापूजादि के कार्यक्रम होते थे। सभी कार्य में गुरुदेव को सफलता ही मिलती थी। एक मात्र कारण था, "अरिहंते शरणं पवज्जामि" का प्रतिदिन क्रियात्मक रूप से ध्यान और चित्ताकाश में नमस्कार मंत्र का भावनात्मक रूप में स्मरण।
पूज्य उपकारी गुरुदेव ने अनेक स्थानों के संघ के आपसी विवादों को सुलझा दिया। क्लेश मिटा दिया। प्रेम की गंगा बहा दी। प्रतिवर्ष गुरुदेव चातुर्मास के दौरान सावन सुदि 7 से पूर्णिमा तक में नमस्कार मंत्र की सामूहिक साधना कराते थे। जिसके प्रभाव से चातुर्मास ऐतिहासिक हो जाता था।
पूज्य उपकारी गुरुदेव ने नमस्कार महामंत्र नामक एक अतिसुन्दर पुस्तक का लेखन किया है, जिसमें शास्त्रीय प्रमाण के आधार पर महत्त्वपूर्ण विवेचन किया है। इस पूरी पुस्तक को मात्र 3 दिन की अल्पावधि में लिख दिया था। यह भी महामंत्र का ही प्रभाव जानना चाहिये।
पूज्य उपकारी गुरुदेव के पास जो भी श्रद्धालु अपनी समस्या लाते थे, या दुःख निवारण की बात करते थे तो गुरुदेव नमस्कार महामंत्र पर ऐसा प्रयोग बताते थे कि स्वप्न में संकेत होगा या किस अवधि तक में काम होगा, आदि मन-मनोरथ पूरक बातें बता देते थे और जाप करके खीर का एकासना करने का उपदेश देते थे।
पूज्य उपकारी गुरुदेव रवि पुष्य और गुरु पुष्य में खड़े ध्यान करके महामंत्र का प्रयोग भी करते थे। जिससे आसुरी शक्ति के प्रकोप से मुक्त
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - करके अनेकों को जीवन दान भी दिया।
वि.सं. 2033 में राजेन्द्रसूरि ज्ञान मन्दिर में पूज्य उपकारी गुरुदेव चातुर्मास कर रहे थे। भाद्रवा वदि के किन्हीं दिनों में भीनमाल निवासी महेता सुमेरमलजी हस्तीमलजी एकाएक गुरुदर्शनार्थ आये तथा वन्दना करने के पश्चात् श्री महेताजी ने कहा, "गुरुदेव! सोने की एक कंठी गुम हो गई है। घर पर खूब खोजा-खूब खोजा, परन्तु नहीं मिली है। चिन्ता भारी| है, क्या करूं?" गुरुदेव ने तत्काल कहा, 'मेहता, शीघ्र ही अभी भीनमाल के लिए रवाना हो जाओ। महामंत्र का स्मरण करके पुनः खोजबीन घर पर ही करो। कार्य सिद्ध हो जावेगा।' वास्तव में गुरुदेव के मार्गदर्शन के अनुसार मेहताजी ने ऐसा किया तो सोने की कंठी मिल गई थी।
वि.सं. 2034 में राजगढ़ चातुर्मास के अन्दर रिंगनोद (मध्यप्रदेश) निवासी मूलचन्दजी लुणावत पूज्य उपकारी गुरुदेव के पास आये तथा वंदना करके कहने लगे, "महाराज सा.! मैं एक अति आर्थिक संकट में उलझा हुआ हूँ, कुछ उपाय बताईये। तब गुरुदेव ने कहा कि, 'मास्टर! नियमित रूप से श्री नमस्कार महामंत्र कम से कम एक महिने तक उठते, बैठते, सोते, जागते, चलते, फिरते, बात करते, चौबीसों घंटों "अजपाजाप" मानस जाप करो तो कार्य हो जावेगा। श्री मास्टर सा. ने ऐसा ही किया
और उन्हें आर्थिक संकट से मुक्ति मिल गई। _ वि.सं. 2034 में अहमदाबाद निवासी बाबुभाई मंगलदास सेठ ने एक दिन पूज्य गुरुदेव से कहा कि, 'साहेब, मुझे आशीर्वाद प्रदान करो।' तब उपकारी करुणानिधान ने कहा कि "तुम्हारी सेवा जरूर फलीभूत होगी। नवकार मंत्र ऊपर सफेद वर्ण से यह मंत्र गिनो।' वास्तव में बाबुभाई का अटका हुआ कार्य हो गया था।
अन्धकार में प्रकाश, दुःख में सुख, समस्या में समाधान, मृत्यु में जीवन प्रदान करने की श्री नवकार मंत्र में अद्भुत शक्ति स्वतः समाविष्ट है। एक अद्भुत प्रसंग___वि.सं. 2032 में जोधपुर, कापरड़ाजी, अजमेर, जयपुर, भरतपुर,
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
आगरा, फिरोजाबाद विचरण करते हुए भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ निम्बाहेड़ा, नीमच होकर जेठ वदि 9 मंगलवार दिनांक 3-6-1975 को 28 कि.मी. विहार करके पिपलीया चौराहे पर स्थानाभाव के कारण पूज्य उपकारी गुरुदेव और मैं ठाणा 2 एक आम्र वृक्ष के नीचे सूर्य अस्त होते ही ठहर गये थे। प्रतिक्रमण आदि क्रिया से निवृत्त हुए ही थे कि एकाएक गगन मण्डल में मेघ गर्जना होने लगी। बिजली चारों और चमकी। देखते ही देखते तो वर्षा मुसलाधार शुरू हो गई। पौन घंटे में तो घुटने घुटने तक जल आ गया। मैं तो घबरा गया । पूज्य उपकारी गुरुदेव ने कहा, 'नरेन्द्र ! नवकार मंत्र का स्मरण करो।' मैं मंत्र का स्मरण करने लगा। वर्षा तो जोरों की थी। हम दोनों इधर-उधर अंधेरे में पानी से बचने के लिए प्रयत्नशील थे। कदम-कदम संभलकर चल रहे थे। एकाएक मन्दसोर डंबर सड़क पर एक ट्रक आया। एकदम लाईट हमारी तरफ फेंकी। देखते ही ड्राइवर चिल्लाया, 'अरे कौन हो? ठहरो । एक कदम भी आगे पीछे मत चलो, वरना मर जाओगे।' इतना कहते हुए ड्राईवर ट्रक रोककर भागकर आया और रास्ता बताते हुए हमें ले चला। उसने कहा, 'अरे महाराज सा. ! सात, आठ कदम चलते इस दिशा में मौत का कुंआ था। भयंकर वावड़ी थी। उसमें गिर जाते तो प्राण पंखेरू उड़ जाते।' सौ कदम के भीतर ही सड़क पर एक प्याऊ में ड्राइवर ने हमें ठहरा दिया। हम वस्त्र को व्यवस्थित करने में लगे कि ड्राइवर चला गया। तत्पश्चात् हमने खूब आवाज लगाई पर न तो ट्रक दिखाई दिया, न ड्राइवर । आज भी वह दिन याद आता है तो शरीर कंपायमान हो जाता है। मेरी तो यही मान्यता है कि श्री नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से ही जीवनदान मिला।
मेरा अनुभव :
जीवन के अन्दर अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। कहीं कहीं विघ्न आना भी स्वाभाविक है। किंतु उन विघ्नों को पार करने के लिए चिंतन करना भी आवश्यक है। चिंतन के साथ ही नमस्कार मंत्र का जाप एक ऐसी दिव्य शक्ति है कि स्वप्न भी साकार हो जाता है। अनेक कार्यों में आशातीत सफलता मिलती है। नमस्कार मंत्र में विज्ञान छिपा हुआ है। रंग
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - विज्ञान, भेद विज्ञान, कर्म विज्ञान, यंत्र तंत्र विज्ञान, सभी का समावेश नवकार मंत्र में है। विचारों को गतिशील बनाने में भी नवकार की प्रेरक भूमिका रहती है। अणु और परमाणुओं को शुद्ध करने में नवकार महामंत्र एक सशक्त मंत्र है। मेरे जीवन में भी अनेक प्रसंगों पर नवकार मंत्र ने |सहयोग दिया है। ताजी घटना इस प्रकार है
वि.सं. 2042 आषाढ़ वदि 12 दि. 15-6-85 शनिवार को सुबह उदयगढ़ (म.प्र.) से विहार करके प्रातः काल साढ़े नौ बजे राणापुर हम दो मुनि रवीन्द्रविजयजी और में पहुंचे। प्रमुख मार्ग से होते हुए जैन धर्मशाला के सामने पहुँचे ही थे, कि कुछ भ्रमित मति वाले उपहास के साथ वैरवृत्ति और द्वेषबुद्धि के कारण घातक शस्त्र लेकर मारने दौड़े और अपशब्दों की वर्षा करने लगे। अचानक आये इस विकट संकट से पार उतरने के लिए श्री नवकार मंत्र की शरण ली। जैसे ही मैंने नवकार मंत्र का मानसिक जाप प्रारंभ किया, कुछ सभ्य तत्त्व आक्रमणकारी तत्त्वों को खींचकर दूर ले गये तथा हमें भी इस संकट से मुक्ति मिली। इस दृश्य को देखने वाले करीबन 500-600 व्यक्ति थे। सभी ने हमें सहानुभूति दी। सब को हमने शान्त किया तथा अपने गंतव्य की और बढ़ गये।
नवकार का चमत्कार आज भी विद्यमान है। परम आस्था के साथ हदय कमल में नवकार का ध्यान करें तो बाह्य संकर भी टल सकता है। इत्यलम्। शुभम्
___ लेखक - मुनि श्री नरेन्द्र विजयजी "नवल"
की सांप भी शांत हो जाता है।
लगभग विक्रम संवत् 2013 ग्रीष्म ऋतु का महिना था। मैं अपने गुरुदेव से आज्ञा लेकर नई दिल्ली जैन स्थानक से कार्यवश बाहर जा रहा था। एक रोड़ के किनारे पर एक साईकिलों की मरम्मत करने वाला बैठा था। वह एक लोहे के सरिये से एक सांप को मारने की कोशिस कर रहा था। परन्तु नीचे कच्ची जगह होने से वह सांप आगे निकल जाता था।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
मेरा ध्यान उस ओर गया। मैंने कहा, "हे भाई! इस सांप को मत मार । " वह सुनकर कुछ रुक गया और कहने लगा, " सांप तो मारने लायक है, किसी को काट जाएगा तो वह तत्काल मर जायेगा । "मैंने कहा, " अरे भाई ! ठहर ! इसे मत मार!" वह फिर रुक गया। मैंने नवकार मंत्र पढ़ा और एक वस्त्र उस सांप पर डालकर पकड़ लिया और उसे आगे ले गया। वह साईकिल वाला जोर से बोलकर कहने लगा, "बाबाजी, इस सांप को छोड़ दो, अन्यथा आप मर जाओगे।" मैंने उसकी बात पर अधिक ध्यान न देते हुए उस सांप को एक सूखे नाले में डाल दिया। वह मिट्टी की दराद में घुस गया। इस घटना से मेरी आत्मा को बहुत बल मिला और मैंने अपना इष्ट मंत्र नवकार मंत्र निश्चय किया ।
मैं जब गुरुदेव के साथ त्रिनगर दिल्ली के जैन स्थानक में चातुर्मास के लिए स्थित था, तब एक दिन प्रातः ही में गौचरी जा रहा था, तो कुछ नवयुवक अपने मकान की पुरानी छत की इंटें तथा मिट्टी उखाड़कर सड़क पर डाल रहे थे। उसमें एक छोटा सा सांप था। उसे देखकर वे सोच रहे थे कि, यह किसी को काट न खाये। दया के विचार से युक्त होने से उनको मारने की भावना नहीं थी, परन्तु आम रास्ता होने से कोई व्यक्ति सांप को मार सकता था। अतः उस सांप की रक्षा करने की भावना से मेरे दिल में दया उत्पन्न हुई और सर्वप्रथम नवकार मंत्र पढ़ा और उसे झोली में लिया और स्थानक के पास पार्क में छोड़ दिया और वह कहीं छिप गया।
एक दिन एक युवक को मैंने कहा कि, 'किसी भी समय घर से बाहर जाना हो तो सर्वप्रथम तीन बार नवकार महामंत्र श्रद्धा सहित पढ़कर फिर जाना।" उस युवक ने रात्रि में आकर बताया कि, "गुरुजी, मैं प्रातः 9 बजे घर से बाहर जाते समय 3 बार नवकार मंत्र पढ़कर मोटर साईकिल पर सवार होकर अपनी ड्यूटी के लिए बैंक पहुंचा, और वहां पर काम करके सांयकाल जब अपने घर की ओर लौट रहा था, तब मेरी मोटर साईकिल ऐसी जगह में फंस गई कि साईड में पुल की दीवार के
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-गिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? साथ एकदम अड़ा दिया। अकस्मात होने में जरा भी कसर नहीं थी, फिर भी मैं तथा मोटर साईकिल सुरक्षित रहे। तब से मेरी श्रद्धा नवकार मंत्र पर अत्यधिक बढ़ गई।" उस युवक की इस घटना को सुनकर मेरी आत्मा की श्रद्धा नवकार पर अधिक रूप से स्थिर हो गई। महामंत्र के | जाप के साथ शुद्ध ब्रह्मचर्य पालन एवं अटल विश्वास होना परम आवश्यक है। . लेखक-रोशनलालजी म.सा. के शिष्य प्रेममुनि म.सा.
महामंत्र से मैंने पाया। वि.सं. 2030 की बात है कि जब में प्रथम जैन श्रमण के निकट में आया। वे श्रमण हैं कविरत्न श्रद्धेय श्री केवलमुनिजी महाराजाजिनकी कृपा दृष्टि से मुझे महामंत्र जैसा मंत्र सीखने को मिला। साथ ही मुनिप्रवर से अन्य बातें भी मिलीं। कंठस्थ होने के पश्चात् मुनि श्री ने मुझे नित्य स्मरण करने की प्रेरणा भी दी।
मुनि श्री अपना चातुर्मास पूर्ण करके विहार कर चुके। उसी दिन से | मेरी आस्था पूर्ण रूप से नवकार मंत्र पर बन चुकी थी। ऐसे तो जाति से जैन नहीं है, किन्तु बचपन से ही मेरी जैनधर्म के प्रति अनन्य रुचि व आस्था रही है। यह मैं अपना सौभाग्य ही मानूंगा। सात-आठ माह तक मुझे किसी भी जैन सन्तों का सानिध्य नहीं मिला। किन्तु नवकार मंत्र का जाप वैसे ही चल रहा था, जैसे कि श्रद्धेय कवि श्री ने नियम करवाया था।
सं. 2031 का वर्षावास हमारे नगर जालना (महाराष्ट्र) में पूज्य गुरुदेव श्री प्रतापमलजी महाराज एवं मरुधरभूषण श्रमणसंघीय प्रवर्तक गुरुदेव श्री रमेशमुनिजी महाराज आदि ठाणा 11 का वर्षावास था। यह जेन श्रमण से मेरा द्वितीय संपर्क था, किन्तु सम्पर्क के पश्चात् भी मुझे मुनियों के नाम याद नहीं थे। तब मैंने घर जाकर अपनी धर्ममाता को अ.सौ. जड़ाव कुंवरबाई गोलेच्छा से पूछा। उन्होंने मुझे गुरुदेव का पूर्ण परिचय बतलाया। तब से मेरा मुनिराजों से सम्पर्क अत्यधिक रहा।
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
फलस्वरूप मेरे अन्तरमन में जैन श्रमण बनने की इच्छा जाग्रत हुई। मैंने यह विचार गुरुदेव की सेवा मे रखे । साथ में उनको यह भी कह दिया कि मैं जैन धर्म के विषय में कुछ भी नहीं जानता हूँ। गुरुदेव ने फरमाया- हम तुम्हें पूर्ण रूपेण अध्ययन का संयोग देंगे।
गुरुदेव ने अपना चातुर्मास पूर्ण कर के आंध्रप्रदेश की ओर विहार किया। न तो कभी गुरुदेव ने पत्र दिया, न कोई सूचना । किन्तु दीक्षा की प्रबल इच्छा के कारण मैं बिना किसी के कहे अपने घर से निकल चुका। न तो मुझे किसी ट्रेन का ज्ञान था, न मुझे गुरुदेव कहां विराजते हैं, इसका ज्ञान था। किंतु महामंत्र पर पूर्ण आस्था थी । अतः जिस गाड़ी में बैठता वह मुझे गुरुदेव के चरणों में पहुंचा देती। यह सब नवकार मंत्र की देन थी । इस समय मेरी उम्र लगभग 12-13 वर्ष के आसपास होगी।
जब परिवार वालों को ज्ञात होता तो वे लेने के लिए पहुँच जाते, यह क्रम लगभग 7 बार चला। एक समय की बात है कि जब मैं धूप से स्टेशन की ओर चल दिया। चन्द मिनटों में परिजन भी वहीं पहुंच गये। इतने में ट्रेन आ गयी। मैं बिना टिकट ही ट्रेन में बैठा हुआ उन्हें देख रहा था। मन ही मन नवकार मंत्र का स्मरण करता रहा। आप आश्चर्य न करें, वे मुझे नहीं देख सके। यह है " महामंत्र नवकार का अद्भुत चमत्कार।"
नेत्रज्योति दाता महामंत्र
वि.सं. 2031 की बात है कि पूज्य गुरुदेव मेवाड़भूषण धर्मसुधाकर श्री प्रतापमलजी महाराज अपना यशस्वी चातुर्मास मालव की धर्मनिष्ठ नगरी इन्दौर में चातुर्मास पूर्ण करके आप श्री के चरण सरोज महाराष्ट्र की भूमि को पावन करने के लिए गतिशील थे।
इन्दौर से गुरुप्रवर आदि मुनि मण्डल का विहार बड़वाह की ओर हुआ। मुनि मण्डल चन्द दिनों में ही बड़वाह की ओर पधार चुका। कुछ दिन विश्राम करके विहार करने का ही विचार था कि अचानक पूज्य
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? गुरुदेवश्री के नेत्रों में तकलीफ हो गई। श्री संघ ने सेवा का पूर्ण लाभ लिया। अच्छे से अच्छे बड़े डॉक्टरों ने जी जान से सेवा का लाभ लिया, किंतु अन्ततो गत्वा निराशा ही हाथ लगी।
दिन प्रतिदिन नेत्रों की ज्योति घटती ही चली जा रही थी। ऐसी स्थिति में पूज्य गुरुदेव श्री काफी चिन्तित थे। वह इसीलिए कि नेत्र ज्योति के अभाव में शास्त्रों का पठन-पाठन, स्वाध्याय, मुनिचर्या आदि समस्त कार्य रुक जायेगा। सन्त-सतियों को पढ़ाना गुरुदेव अपना प्राथमिक कर्तव्य मानते थे। लगभग अपने 72 वर्ष की उम्र तक उन्होंने एक नहीं अपि तु सैंकड़ों साधु-साध्वियों को विद्याध्ययन करवाया।) इस प्रकार के अनेक प्रश्न गुरुदेव के मानस में उभर रहे थे। इन्हीं विचारों में पूज्य गुरुदेव खोये हुए थे। जब से मैं (गौतम मुनि) दीक्षित हुआ तभी से मैंने देखा कि आप श्री की अत्यधिक आस्था मंत्राधिपति महामंत्र नवकार पर ही थी। डॉक्टरों की ओर से स्पष्ट उत्तर मिल चुका था कि अब नेत्र ज्योति वापस नहीं आ सकती।'
यह सुनते ही हम सब मुनिराज काफी चिंतित थे। किन्तु किया क्या जाता? प्रतिक्रमण आदि से निवृत्त होकर मुनि मण्डल गुरुदेव की पावन सेवा में बैठा हुआ था। लगभग रात्रि के 8-00 बजे ही होंगे कि, न जाने आज गुरुदेव ने हम सभी को विश्राम के लिए कह दिया। हमने कहा गुरुदेव! अभी तो आठ ही बजे हैं। गुरुदेव ने फरमाया, 'अब मैं कल ही बात करूंगा।' हम सभी मुनि अपने-अपने आसन पर विश्राम हेतु चल दिये।
गुरुदेव त्रिकरण, त्रियोग को एक चित्त करके महामंत्र नवकार का स्मरण करते-करते निद्राधीन हो गये। लगभग रात्रि के चार बज चुके थे। गुरुदेव के कानों में निम्न वाक्य सुनाई दिये
"तू! क्यों फिक्र करता है, तेरे पास चौदह पूर्व का सार महामंत्र है। उसका अट्ठम तप (तेला तप) करके जाप कर। आनन्द मंगल होगा।" इन शब्दों को सुनकर जाग्रत हुए और अपने जाप में जुट गये।
प्रातः समय नवकारसी के वक्त एक मुनिजी (श्रमणसंघी
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - प्रवर्तक गुरुदेव श्री रमेश मुनिजी म.सा.) गोचरी के लिए जा रहे थे। गुरुदेव ने कहा-'आज मेरे लिए कुछ भी मत लाना'। 'क्यों गुरुदेव?' 'आज मैं उपवास करूँगा।' पुनः मुनि श्री ने निवेदन किया, 'आपकी दवाई चालु है। प्रत्युत्तर में गुरुदेव ने फरमाया-'अब सभी दवाएं बन्द हैं। अब नवकार मंत्र की महौषधि लेकर तेला तप करूंगा।' तीन दिन में गुरुदेव ने सवा लाख जाप सहित तेला तप किया। तप जप के पुण्य प्रताप से पूज्य गरुदेव की नेत्र ज्योति बढ़ती चली गई। यह ज्योति अन्तिम समय सं. 2037 तक वैसी ही बनी रही जैसी पहले थी। यह देन है नेत्रज्योतिदाता महामंत्र नवकार की। नवकार महामंत्र कलिकाल का कल्पतरू ही है। हमें अनुभूति चाहिये तो त्याग और आस्था के साथ इसका स्मरण करेंगे। लेखक- गुरु श्री प्रताप प्रवर्तक गुरु श्री रमेशमुनिजी के सुशिष्य
गौतममुनि "प्रथम"
श्रद्धा से नत होता मस्तक मंत्राधिराज नवकार मंत्र की महिमा उस गुलाब पुष्प के सुरभि की भांति है जो स्वयं ही मानव-मन को सुरभित बना देती है। इस नवकार ने सर्प को माला में परिवर्तित कर दिया, सूली को सिंहासन बनाया, कोढ़ का रोग हटाया। ये सब सुनी सुनाई बातें हो गयीं, पर श्रद्धा से किया हुआ स्मरण हमें भी अवश्य चमत्कार बता देता है। प्रभु भक्ति में, प्रभु नाम में वह शक्ति होती है, कि वह सहज ही अभिव्यक्ति के द्वार खोल देती है। चाहिये आस्था तो अवश्य पा जायेंगे सही रास्ता।
सन् 1982 में हम अपनी शिष्यावृन्द सह महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश की ओर आ रहे थे। साथ में दो आदमी भी थे। घाटों का रास्ता। बीहड़ जंगल! साथ में छोटी-छोटी साध्वियाँ। मौत का नहीं, पर शील रक्षा का भी तो प्रश्न रहता है। ऐसे समय 2-4 जंगली व्यक्ति मिले। वे कहने लगे, "वाह महाराज! आगे जाओ। मुफ्त का तैयार खाना मिल जायेगा। जाओ-जाओ, हम भी आगे आ रहे हैं।" अब मैं तो पूरी तरह घबरा गई,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - भला ये आगे आकर क्या करेंगे? कहीं हानि तो नहीं है इनसे? अब सबको नवकार मंत्र का जाप करने को कहा। पहले विश्राम से जो कुछ आहार आदि लाऐ थे, वह निबटाना था। अब रुकना कहां? कुछ समझ में नहीं आया। एक स्थान पर नवकार मंत्र की कार डालकर बैठ गये। नवकार मंत्र में ही मन रमा था। घबराई हुई सतियों को धीरज बन्धाया |
और प्रभुनाम पर भरोसा रखकर आगे बढ़े। संयोग की बात है। प्रभु ने हमारी बात सुन ली। उस निर्जन स्थान में एक बस आकर रुकी। कसरावद के दर्शनार्थी भाई उतर पड़े। मन में धैर्य बन्धा। और वे दर्शनार्थी अगले विश्राम तक हमारे साथ रहे। निर्बाधापूर्वक हमारी यात्रा सफल हुई। वहां जाकर हम कुछ देर बैठे ही थे कि पलासनेर की एक मेटाडोर आ रुकी। दर्शनार्थी भाई ने विहार की सुख शान्ति पूछते हुए कहा, "रास्ते में आपको तकलीफ तो नहीं हुई ना?" मैंने कहा, "आनन्द ही आनन्द है भाई!"श्रावकजी ने कहा, "हमें लगा उस शेर ने...।" मैंने पूछा, "कैसा शेर?"श्रावकजी ने कहा-"हम आ रहे थे। ड्राइवर ने रफ्तार तेज कर ली, नहीं तो! गाड़ी के पीछे-पीछे ही दहाड़ता चला आ रहा था।" वह उन्होंने जो स्थान बताया ठीक वही था, जहां हम आहार आदि के लिए रूके थे। पर देखिये नवकार की महिमा! आधे घंटे के पूर्व ही हमारे ऊपर क्या गुजरने वाला था? श्रावकजी के पास मेटाडोर थी अतः उन्होंने रफ्तार बढ़ा ली, पर हम पथिकों के पास भी नवकार महामंत्र की कार थी, जिसके कारण हमारे संकट टल गये। धन्य है प्रभु नाम की अपार महिमा को!
"हर लम्हा लबों पर मेरे नवकार का नाम रहे। 'चाँद' चारू चरणों में तेरे निशदिन मेरा ध्यान रहे।" महाराष्ट्रकेसरी पू. सौभाग्यमलजी म. की आज्ञावर्तिनी
महाराष्ट्र सौरभ चांदकुंवरजी म.सा. नवकार से संकट पार एक वक्त विहार करते हुए तीन-चार घंटे हो गये। 8-10 किलोमीटर
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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
का मार्ग पार कर चुके थे। फिर भी किसी गांव का नामोनिशान नहीं था। न ही वहां राहदारी था। भयानक जंगल था, निर्जन स्थान था। पू. गुरुणीजी म.सा. को हार्ट की शिकायत थी। सीने में एकदम दर्द उठा। अब साथ में जल भी नहीं था तो दवाई कैसे दें। सभी घबराने लगे। अब क्या करें ऐसे स्थान पर ! हम सब ने श्रद्धापूर्वक नवकार मंत्र का जाप शुरू किया और इसी स्थिति में आगे बढ़े कि एक झोंपड़ी झाड़ियों के बीच नजर आई। जाने के लिए छोटा सा रास्ता था। अतः हम में से दो तीन जनों ने जाकर देखना चाहा। जाकर देखा तो वहां एक भैंस बन्धी है और किसान के वेश में एक व्यक्ति वहां बैठा है। अब हमने उसे हमारी समस्या सुनाई। बिना हिचकिचाहट के उसने भैंस का दूध निकालकर दिया। एक वृक्ष के नीचे पू. गुरुणी मैया को ठहराकर दूध के साथ गोली दी। कुछ विश्राम एवं स्वस्थता के पश्चात् उसकी दयालुता की प्रशंसा करते आगे बढ़े। सहज ही पीछे झुककर देखा तो न वहां कोई झोंपड़ी थी, न आदमी, न भैंस । आश्चर्यान्वित होकर दांतों तले अंगुली दबा ली। हमारी आंखें तो धोखा नहीं दे सकती, पर उस निर्जन स्थान पर नवकार ने ही हमारी सहायता की थी!
महाराष्ट्र सौरभजी म. की सुशिष्या साध्वी सुमन प्रभा "सुधा"
भयभंजक नवकार
वैसे तो परम्परागत एवं मान्यतावश नवकार मंत्र की उपासना जैन जगत में सर्वविदित है । परन्तु कभी-कभी अन्दर की श्रद्धा की अभिव्यक्ति जब होती है तो स्मृति में वे बातें सदा याद बनी रहती हैं। उन अनुभवों के तीन प्रसंग यहां पर अंकित किये जा रहे हैं।
(1) विहार में हम ठाणा 3 पाली जिले के जैतारण से चंडावल गांव में एक स्थानक में थे। यहां पर मन्दिरमार्गी समाज के घर नहीं थे। गरमी का समय था । दरवाजे दो तरफ से खुले थे। रात्रि के प्रायः 12 बजे किसी जहरीले जानवर ने हाथ पर डंक मारा। नींद खुल गई। शरीर में
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बेचैनी, गरमी एवं खन का पानी हो रहा है, ऐसा आभास हो रहा था। शायद आज की रात्रि कालरात्रि बनेगी ऐसा लगा। मैं अपने संस्तरण से उठकर बाहर बरामदे में गया। वहां पर नवकार मंत्र का एकाग्रचित्त से जाप करने लगा। तो कुछ समय बाद बेचैनी एवं भय दूर हो गया था। मन बार-बार इसी निर्णय पर पहुंचा कि नवकार मंत्र ने रक्षण किया है। दूसरे दिन वहां से विहार कर दिया था। हाथ पर सूजन आठ दस दिन तक
रहा।
(2) मुहपत्ति में से नवकार की ध्वनि
पंजाब के विहार में एक भाई ने वल्लभसूरिजी म. का प्रसंग इस प्रकार सुनाया कि, एक भाई श्री वल्लभसूरिजी के पास आकर कहने लगा कि, 'नवकार मंत्र' की इतनी महिमा बताई जाती है, तो मुझे विश्वास बैठे ऐसा कुछ करें।"
श्री वल्लभसूरि म. ने मुहपत्ति उसके हाथ में देते हुए कहा कि, "इसे कान पर लगा दो।" उस भाई ने कान पर लगा कर मुहपत्ति रखी तो उसमें से नमस्कार मंत्र के शब्द सुनाई देने लगे। उस भाई ने आश्चर्यान्वित होकर प्रतिप्रश्न किया कि, 'मुझे नवकार मंत्र के शब्द कहां से सुनाई दे रहे हैं?' वल्लभसूरिजी म. ने कहा कि, "मेरे मन में नवकार मंत्र का जाप चालु है और उन शब्दों का कनेक्शन मुहपत्ति में लग गया है। अतः तुम्हें सुनाई दे रहा है।" आगे कहा कि, "सूक्ष्म जाप एवं लयबद्ध शब्द से स्थूलजगत् को प्रभावित करने में नवकार मंत्र के शब्द पर्याप्त हैं। आवश्यकता है निष्ठा, श्रद्धा एवं संकल्प की।" प्रश्नकर्ता के ऊपर उसका असर पड़ा और वह व्यक्ति वहां से चला गया। इसी सुनी बात ने मेरे विश्वास को संबल दिया।
(3) पेशाब की जलन दूर हुई ___ एक बार विहार में अकेला ही था। पेशाब जलन कई दिनों से चाल थी। दवाइयों का भी असर नहीं हो रहा था। परेशानी भी हो रही थी। मारवाड़ के बीजापुर में उपाश्रय में स्थिरवास था। वहां के श्रावकों से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - बीमारी की बात की, तो उन्होंने देशी आयुर्वेदिक दवा ला दी। मेरा अब दवाई पर से विश्वास उठता जा रहा था। उस रोज पेशाब की बिमारी चरम सीमा पर थी। श्रावकों से मैंने कह दिया था कि, 'आज की रात्रि शायद मेरे लिए अन्तिम होगी। शाम का प्रतिक्रमण भी मुझसे करवाया नहीं जायेगा!' क्योंकि कुंडी. लेकर बैठना पड़ता था। बुन्द-बुन्द पेशाब करके थोड़ी सी राहत लेता था। दिन के चार बजे मन में एक संकल्प किया कि अब तो नवकार मंत्र का जाप चालु करूं एवं जो ठीक हो गया तो केसरियाजी की यात्रा कर लूंगा।
जाप चाल किया तो पांच बजे एक अपरिचित भाई आते हैं और परेशानी का कारण पूछते हैं। मैंने सब कुछ उन्हें बता दिया। उन्होंने कहा कि, 'मुझे भी किसी अदृश्य शक्ति से प्रेरित किया गया था, सो मैं आपके पास आया हूँ। मैं कोई डॉक्टर तो नहीं हूँ। परन्तु आप एक मुट्री नमक फाक जायें और घुटभर पानी से पेट में उतार दें। पित्त आदि दोषों का निदान हो जाये तो आपको शांति मिल जायेगी। मरता क्या नहीं करता। मैंने शीघ्र नमक लाकर फांका। बड़ी मुश्किल से गले से नीचे उतारा। यद्यपि जीव बहुत घबराया। परन्तु थोड़ी ही देर में बहुत अधिक पिस निकल जाने से बीमारी गायब हो गई। दवा बताने वाले को प्रेरित करने वाले भी नवकार मंत्र के अधिष्ठायक देव ही थे, ऐसा विश्वास स्मृति में दृढ़ हुआ। बीमारी भी नवकार मंत्र के जाप से नष्ट हो गई। (4) लूटेरों से मुक्ति
हम दो मुनि सम्मेतशिखरजी की यात्रा से वापिस लौट रहे थे। बिहार में पटना से सासाराम का रास्ता संकरा था। मोटरों का आनाजाना भी बहुत होता था। इसलिए दूसरे मार्ग की खोज की तो दूसरा मार्ग गंगा के ऊपर नावों के पुल पर से पार करके अन्य तरफ से वाराणसी जाता था। सबसे बड़ी समस्या रिक्शे की थी। दो आदमी साथ में थे। एक रिक्शा चलाने वाला और दूसरा जैन था। गंगा पार के आगे एक रोड़ पर ही महात्मा का आश्रम समझ कर स्वीकृति लेकर रुके। साथी आदमियों ने
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - रसोई की तैयारी की। महात्मा के वेश में वह ठग ही था। फलोग दो फर्लाग पर दो तीन गांव रोड़ से दिखाई दे रहे थे। उस वेशधारी महात्मा ने आस पास के गांव से पन्द्रह बीस शठों को लाकर रिक्शा को घेर लिया और लूटना ही चाहते थे। रिक्शाचालक को भी थप्पड़ मारकर भगा दिया। समझाने की कोशिस भी व्यर्थ थी। पास में विद्यालय था उसे भी बन्द कर दिया और बच्चों को छुट्टी दे दी। जैसे-तैसे गूंदा हुआ आटा बन्द करके सामान रिक्शे में रखकर जयन्तिलाल श्रावकभाई ने रिक्शा रोड़ पर चढ़ा दिया था। उन आदमियों ने सड़क पर पूरी घेराबन्दी कर ली। मोटर भी खड़ी नहीं रहती थी। मैंने मन में संकल्प किया कि इस परिस्थिति से मुक्त होने पर साढ़े बारह हजार नवकार मंत्र का जाप करूंगा और नवकार मंत्र का जाप मन में चालु किया। कहा है कि "दुःख में सुमिरन सब करें।" एक व्यक्ति बस सर्विस को खड़ी करके उसमें से उतरा और बीच में आकर पूछा, 'क्यों खड़े हो?' उन व्यक्तियों ने उसे डांटकर कहा तो मैंने कहा "डॉक्टर साहब, हम जैन साधु पैदल विहार करते हैं। आपकी बिहार भूमि पर पवित्र तीर्थों की यात्रा को आये हैं। यह रिक्शा एवं सामान का प्रबंध समाज ने रास्ते की सुविधा के लिए दिया है। यह भाई हमारी बात समझते नहीं और मिथ्या दोषारोपण कर रहे हैं। डॉक्टर ने सत्तावाही आवाज में कहा "आप यहां से चले जाओ। मैं उन्हें समझा दूंगा।" मैंने कहा, 'आप साथ चलें।' उसने इशारा किया कि, 'चले जाईये।' जयन्तिलाल श्रावक ने आगे से रिक्शा हाथ से पकड़कर उसी क्षण आगे बढ़ा दिया। हम दोनों मुनियों ने भी रिक्शा के पीछे तीव्र गति से कदम उठाये।
12 बंजे का प्रायः समय था। थके हुए होने पर भी चार मील का विहार कर सुरक्षित स्थान पर एक सनातनी मन्दिर में एक जनसंघी भाई की मदद से स्थान मिला। पीछे वह डॉक्टर भी हमारे पास आया और उसने बताया कि मुझे अन्दर से प्रेरणा मिली तो में वहां उतरा था और आप बच गये। वरना आपको ये लोग लूटना चाहते थे। स्मृति में नवकार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मंत्र के संकल्प का चमत्कार साक्षात् अनुभूत हुआ था। परिस्थिति वश विश्वास करना एक बात है और हमेशा विश्वास करना दूसरी बात है। तथापि अनुभवों से भी विश्वास में विस्तार होता है तो भी लाभप्रद है।
पू. गणिवर्य श्री जयन्तविजयजी म.सा.
| विष अमृत हो जाय |
(1) मैंने दस वर्ष की उम्र में मेरी माता से नवकार मंत्र पाया। जैसे-जैसे मुझे नवकार मंत्र का अर्थज्ञान हुआ, वैसे-वैसे इसके प्रति श्रद्धा बढ़ती गई। मेरे लड़के प्रकाश कुमार सिंधी को श्री डुंगरगढ़ में अपने ही घर में एक विषैले सर्प ने काट खाया। उस समय मैं घर में अनुपस्थित था। किसी के द्वारा मुझे बाजार में समाचार मिला। सुनते ही मैं घर की ओर चल पड़ा। घर पहुंचकर देखा कि प्रकाशकुमार भीड़ में घिरा हआ था। भीड़ को अलग कर मैं उसके पास जा पहुंचा। मेरे पहुंचते ही सभी अलग-अलग सुझाव देने लगे, पर मैंने उनकी बातों पर ध्यान न देते हुए पूर्व दिशा में खड़े होकर नमस्कार महामंत्र का उच्चारण किया, एवं अपने मुख को सांप के द्वारा काटे गये स्थान पर पहुंचाकर उसे चूसना प्रारंभ किया। सभी घबरा गये। सभी के मना करने पर भी मैं नमस्कार महामंत्र के बल पर अटल होकर उसे चूसता रहा और निकाले गये खून को एक बर्तन में एकत्रित करता रहा। बाद में उसको नीम का पत्ता दिया, उसे खारा लगा। तब मैंने अपना मुंह धो लिया। फिर जहर का कोई प्रभाव नहीं रहा।
(2) आज से करीब तीन वर्ष पूर्व मेरा लड़का प्रवीण जिसकी उम्र 11 वर्ष है, अचानक ही घर से निकल पड़ा। उसके पास सिर्फ रुपये 30 एवं पहने हुए कपड़े थे। मन में सोचा कि राजस्थान जाऊँगा, इसलिए वह तीनसुकिया नामक ट्रेन में बैठ गया। रास्ते में जब टिकट के बारे में पूछा
और उसके पास टिकट न होने के कारण उसे अगले स्टेशन पर उतर जाने को कहा तो वह घबरा गया। दैवयोग से उसे पास में ही बैठे एक
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - फौजी (महेन्द्रपालसिंह) ने घर का पता पछा, पर जिला न बताने के कारण वह पत्र भी नहीं लिख सका। एवं फौजी ने सोचा, लड़का कहीं दुष्ट के हाथों पड़ जायेगा तो जीवन बेकार हो जायेगा। इन सब बातों पर गहराई |से सोचकर कहा,"मेरे घर चलोगे?" उसके यूँ कहने पर प्रवीण राजी हो |गया। उस फौजी का घर नगलामदो एवं जिला एटा है। घर में अपनी
औरत से कहा कि, "यह लड़का मेरे दोस्त का लड़का है। यह अपने घर ही रहेगा।" इस तरह दिन व्यतीत होने लगे। दीपावली के दिन उसके घर |में मांस पकाया गया। यह देखकर प्रवीण ने उसके घर खाना न खाने का संकल्प कर लिया। तब उस फौजी की बहन जो निरामिष थी, प्रवीण को अपने घर ले गई। वहां पर रहकर भी प्रवीण सुबह नवकार मंत्र का जाप करता था।
यहां हमने घर पर भी नमस्कार महामंत्र का 24 घंटे का अखंड जाप, भक्तामर पाठ, द्रव्यों का संयम, कुछ द्रव्यों का 12 महिना पच्चक्खाण, स्वाध्याय, सामायिक, 12 महिने तक ब्रह्मचर्य आदि विविध प्रकार के त्याग किये। साथ ही जिनशासन अनुरागी धरणेन्द्र पद्मावती का आह्वान 5 दिन अखण्ड रूप से जाप करके किया और प्रार्थना की कि वह दुश्चरित्र से बचे, नमस्कार मंत्र का स्मरण करे और उसका दुराग्रह दूर हो। इसके फलस्वरूप उधर प्रवीण को एक दिन रात्रि के समय स्वप्न |में एक देवी का दृश्यावलोकन हुआ। उस देवी के पास कोई सवारी नहीं
थी एवं न ही उसके हाथ में शस्त्र थे। वह देवी तेजस्वी रूप से सफेद वस्त्रों में खड़ी होकर उसे कह रही थी। 'डरो नहीं, अभी देरी है, धर्म की आराधना करो, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।' इधर हमारी धर्माराधना भी चल रही थी। ज्यों ही 4 महिने होने को आये, उस समय किसी के कहने पर लड़के की तस्वीर व पूरा पता हिन्दुस्तान पेपर में प्रकाशित |किया। इसके पहले भी प्रकाशित किया था उसका परिणाम नहीं मिला था। संयोग से उस दिन का अखबार वह फौजी (महेन्द्रपालसिंह) पढ़ रहा था। अचानक ही फोटो पर नजर पड़ गई और पहचान लिया। प्रवीण के बारे में विस्तृत कहानी लिखकर भेजी। इस प्रकार जब अन्तरायकर्म दूर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? होते हैं तो शुभ का संयोग होता है। फौजी ने प्रवीण को घर ले जाने की सम्मति दी।
अतः हमारी सच्ची आस्था का फल भी हमें मिला। प्रवीण को भी नवकार मंत्र के बारे में जो प्रेरणा मिली वह मेरे द्वारा तथा मेरे दीक्षित माताजी साध्वीजी लिखमवती जी के द्वारा ही थी।
श्री रतनलाल सिंधी बंगाल होजयरी, पो. इस्लामपुर,
जि. वेस्ट दिनाजपुर, प. बंगाल, 733 202 | नवजीवनदाता नवकार मंत्र |
माह अप्रैल, सन् 1938 की घटना है। मुझे परीक्षा देने के लिए कैथून (कोटा) से कोटा कॉलेज में जाना था। बस में बैठा। बस रवाना हुई, द्रुत गति से, कि कहीं पीछे की बस आगे जाकर उससे ज्यादा आर्थिक लाभ प्राप्त न कर ले। रायपुर एवं धाकड़खेड़ी के बीच मेरी बस का अगला टायर फट गया। संतुलन बिगड़ा, बस खड्डे में जा गिरी। उलटी हो गई। पर जब हम सबको किसी प्रकार से निकाला गया तो साठ से सत्तर सवारियों में मैं ही एक सुरक्षित प्राणी बचा था, जिसको कहीं भी किसी भी प्रकार की शारीरिक चोट नहीं आई थी। मैं तुरन्त समझ गया कि यह नवकार मंत्र का ही प्रतिफल है कि मैं ही पूर्णतः सुरक्षित रह पाया। में अपनी जिहवा से यह तो प्रकट नहीं करना चाहता कि मुझे नवकार मंत्र में कितनी श्रद्धा है, क्योंकि यह कहना तो शायद आत्मश्लाघा ही होगी। पर फिर भी मैं जब भी यात्रा पर जाता हूँ, किसी कार्य का शुभारंभ करता हूँ, सोता हूँ, उठता हूँ, तो नवकार मंत्र का अवश्य स्मरण कर लेता हूँ, चाहे मनःस्थिति कैसी भी हो।
___ अल्पायु एवं संक्षिप्त अनुभवों के आधार पर मैं सत्य प्रमाणित कर सकता हूँ कि मुझे राज्य सेवा काल, गृह जीवन एवं सांसारिक कार्यों में
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -- जो अभूतपूर्व सफलताएं मिली हैं, वह मात्र नवकार मंत्र की श्रद्धा का ही प्राप्त प्रतिफल है। नवकार महामंत्र की महिमा सचमुच अपार ही है।
सात समुद्र की मसी करो, लेखनी सब वनराय। धरती सब कागज करो, नवकार गुण लिखा न जाये।
लेखक : तेजमल जैन (प्रधानाध्यापक) __ रा.मा. वि. बामनगांव (बुन्दी) राज,
( नासूर नष्ट हुआ) (1) महासती श्री सोहनकुंवरजी म.सा. जिस समय गृहस्थाश्रम में थे, उस समय उनके पेट में अकस्मात् एक विषैली गांठ उत्पन्न हुई। उस नासूर की चिकित्सा किसी भी वैद्य या डॉक्टर से नहीं करवाई गई। महाराज ने अपना समस्त विश्वास नवकार मंत्र पर छोड़ दिया। नवकार मंत्र के जप का प्रभाव ऐसा पड़ा कि शनैःशनैः वह गांठ स्वतः बैठ गई तथा नासूर रोग समूल समाप्त हो गया!
(2) एक बार महासतीजी सुदर्शनाजी म. को जैन धर्म के प्रति अनुराग एवं संसार से वैराग्य हो गया। जब महासतीजी श्री सोहनकुंवरजी म.सा. का संवत् 2040 का चातुर्मास ग्राम हांसोलाप में था, उस समय वे श्री सुदर्शना जी म.सा. के पास आये। उनका स्वास्थ्य उस समय ठीक नहीं रहता था। वे पन्द्रह-पन्द्रह या बीस-बीस दिन तक खाना नहीं खाते थे; और न अपने आप की सुधबुध रहती थी। महासतीजी ने नवकार मंत्र का जाप प्रारंभ करवाया। संवत् 2040 की आसोज सुद 7 से आसोज सुद 15 तक आयम्बिल ओली की आराधना और नौपद का जाप नौ दिन तक सुदर्शनाजी से करवाया। नवकार मंत्र का प्रभाव उन पर ऐसा पड़ा कि शनैःशनैः उनका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक होने लगा। हालांकि उनके स्वास्थ्य की चिकित्सा किसी भी वैद्य या डॉक्टर से नहीं करवाई गयी थी।
लेखक-श्रमणसंघीय युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी महासतीजी सोहनकुंवरजी की ओर से हरिराम प्रजापत (शिक्षक) रा.मा.वि. खेजड़ला (जोधपुर)
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? IS कबूतर और नवकार व
(1) एक बार कबूतर के दो छोटे-छोटे बच्चे ऊपरी मंजिल से नीचे गिरे और गिरते ही जख्मी हुए। ऐसे तड़पने लगे मानो इनके प्राण अभी नष्ट होंगे, पर जब मैंने उन्हें महामंत्र नवकार की शरण दी, मानो उनमें नया जीवन आ गया और कुछ समय बाद दोनों बच्चे बिल्कुल स्वस्थ हो गये। फिर उन्हें भी मुझसे इतना लगाव हो गया कि जहां भी मैं जाती वे मेरे पीछे ही आते। सचमुच महामंत्र नवकार का प्रभाव अचिंत्य ही है।
(2) एक बार सन् 1972 में एक जैन भाई ने अपने घर पर अखण्ड जाप के उपलक्ष में हमारे गुरुणीजी महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम तय करवाया था। नगर में घोषणा हो चुकी थी। मगर रात से ही जोरों से वर्षा शुरू हो गई थी। प्रातः नौ बजे भी बारिश चालु थी। तब वे भाई गुरुणीजी के पास मायूस बनकर आया और कहने लगा, "महाराज! | यह क्या रंग में भंग हो गया? मेरे मन की मुराद मन में ही रह गई।" गुरुणीजी ने उस भाई से एक ही शब्द कहा, "भाई, तुम चिंता मत करो, मैं दस बजे तुम्हारे प्रवचन स्थल पर पहुंच जाऊँगी। भाई के जाने के बाद गुरुणीजी ने नवकार मंत्र का जाप किया। मुसलाधार वर्षा बन्द हो गई। और कड़कड़ाती धूप निकल आई। देखा महामंत्र का चमत्कार...!
लेखक : उपप्रवर्तिनी श्री की आज्ञावर्तिनी साध्वी श्री अर्चनाश्रीजी
पागलपन पलायन हुआ! क्रान्तिकारी युगप्रधान जैन श्वेताम्बर तेरापंथी के अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी के शिष्यों ने बम्बई चातुर्मास किया। शेष काल में घाटकोपर गये। वहां एक भजनलाल नाम के भाई रहते थे। उनका एक लड़का पागल हो गया था। भजनलालभाई तेरापंथी साधुओं के सम्पर्क में आये तो उन्होंने अपने पुत्र के पागलपन की बात संतों को बताकर उन्हीं से उपाय मांगा। सन्तों ने भजनलालभाई से कहा, उस लड़के से सवा
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - लाख नवकार जप करवाओ, उसका पागलपन मिट सकता है। भजनलालभाई ने जप प्रारंभ करवा दिया। सवा लाख जप करने के बाद उसका पागलपन दूर हो गया। यह है श्रद्धेय नमस्कार महामंत्र के जप का प्रभावशाली चमत्कार। यह घटना संवत् 2019 की है।
लेखक : आचार्य श्री तुलसी के शिष्य मुनिश्री जसकरणजी
नवकार सदा सर्वदा शक्ति का स्रोत
महामंत्र नवकार के स्मरण मात्र से अनेक अनुभवों की अनुभूति होती रही है। एक छोटा सा नियम घर के सभी सदस्य बड़ी श्रद्धा से पालते हैं। कहीं भी घर से बाहर जाना हो तो पांच मिनट या तीन मिनट नवकार का ध्यान करके जाते हैं। 25 दिसम्बर, 1973 की बात है। मैं अपनी 5 साल की लड़की चि. शिल्पा को लेकर घाटकोपर से सायन गयी थी। हमारे रिश्तेदार के यहां शादी के अवसर पर एक छोटा सा कार्यक्रम था। लिहाजा मैंने बड़े कीमती गहने पहने थे। शाम को 6 बजे घाटकोपर वापिस आने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी रही। दादर से छूटने वाली बस वहीं से भर के आती थी तो सायन के स्टॉप पर कोई बस रुकती ही नहीं थी, जिससे सोचा कि टैक्सी से घर चली जाऊँ, पर उस दिन कोई घटना ऐसी होने वाली थी कि मैंने ट्रेन में जाना तय किया। सोचा कि शनिवार है तो गाड़ी में इतनी भीड़ नहीं होगी, मगर जब मैं स्टेशन पर आयी तो देखा कि यहां भी काफी भीड़ थी। एक-दो ट्रेन छोड़ दूंगी बाद में जाऊँगी, ऐसा सोचकर खड़ी रही। मन में कुछ घबराहट होने लगी थी। एक तो छोटी लड़की साथ में थी और गले में कीमती अलंकार। मोती की माला में हीरे का बड़ा पेन्डल था,उसे निकालकर पर्स में रखने का विचार आया, पर सबके सामने निकालना ठीक नहीं लगा। गाड़ी आयी मगर उसमें इतनी भीड़ थी कि मैं शिल्पा को लेकर अन्दर नहीं जा सकी। खैर, दूसरी गाड़ी में जाऊँगी ऐसा सोचकर मैं मन ही मन नवकार का स्मरण करने लगी।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - 10 मिनट के बाद जो ट्रेन आयी, मैं उसमें चढ़ गयी। ज्यों त्यों खड़े रह पायी। छोटी शिल्पा को अन्दर घुटन होने लगी, उसके छोटे पैरों पर किसी का पैर आ गया। वह रोने लगी। मैंने उसे अपने हाथों पर उठा लिया। उसे थोड़ा ठीक लगा। मेरे गले के पीछे उसका एक हाथ था। पता नहीं क्या हुआ। अचानक मेरे पास में कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की खड़ी थी। उसने कहा, 'आपकी माला टूट गयी है और उसमें से मोती नीचे गिर रहे हैं।' अब तो माला को गले से निकाल कर पर्स में रखना होगा, ऐसा सोचकर मैंने माला को निकालने के लिए पीछे हाथ किया। इतने में हीरे का पेन्डल माला से छूट गया और पल भर में नीचे गिर गया। मैं इतनी परेशान हो गयी कि क्या करूं? कैसे नीचे झुकुं? ट्रेन तेज | रफ्तार से जा रही थी। सब औरतें एक दूसरे से चिपक-चिपक कर खड़ी
थीं। ऐसी भीड़ में मेरे लिए झुकने की जगह नहीं थी। मैं कुछ सोचुं उससे पहले ही मन में इतनी तेजी से नवकार महामंत्र का पहला पद आया। कहाँ से झुकने की हिम्मत आयी, शिल्पा को मेरे हाथों से उस लड़की ने कब उठा लिया- कुछ मालूम नहीं। यकीन कीजिए मैं जोर से "नमो अरिहंताणं" बोलकर नीचे झकी। सबके जोरों से धक्के लग रहे थे। खब मुश्किल था, नीचे हीरे का मिलना- किसी का पैर भी ऊपर आ सकता था। आजूबाजू की औरतें जानबूझ कर मुझे धक्का दे रही थीं। मगर नवकार मंत्र के प्रभाव से मेरे हाथों में वह हीरे का पेण्डल आ गया। इसी बीच घाटकोपर स्टेशन आ गया, लेकिन में शिल्पा को लेकर उतर नहीं पायी।, गाड़ी में खूब जगह खाली रह गयी। बिखरे हुए मोतियों को बटोरने के लिए कॉलेजियन लड़की ने मेरी मदद की और कहा, 'आप विक्रोली उतर जाओ। मैं मुलुंड में रहती हूं। यह मेरा नाम है और मैं घाटकोपर के झुनझुनवाला कॉलेज में पढ़ती हूँ। क्रिसमस की छुट्टियों के बाद मिलना, आपके बाकी के मोती में लेकर आऊंगी। आप अंदाजा लगा सकते हैं, मेरे होश उस वक्त कैसे रहे होंगे। काफी अंधेरा हो गया था, टेक्सी से घाटकोपर आते वक्त खूब डरी हुई थी।
जो घटना घटी उससे में इतनी घबरा गई थी कि डर के मारे में दो
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? दिन तक बीमार हो गयी। घरवालों ने काफी हिम्मत दी- कहने लगे, "जो चीज मिलनी बिल्कुल नामुमकिन थी वो मिल गयी है तो आप इतनी परेशान अब क्यों हैं?"
क्या आप जानते हो कि इतनी महंगी चीज खो जाती है तो क्या मेरे ससुराल के लोग बर्दाश्त कर पाते? क्या वे मुझे माफ कर सकते थे? वह चीज न मिलती तो जीवन मानो एक बोझ बन जाता - जब भी गहनों की बात निकलती तो कई बार सुनना पड़ता। कभी अकेले में अतीत की यह घटना याद आते ही मैं अब भी सिसक उठती हूँ। किन्तु अगले ही पल रोम-रोम पुलकित हो उठता है। महामंत्र नवकार के स्मरण से उसकी शक्ति ने ही इतनी भीड़ के बीच झुकने की शक्ति दी और अप्राप्त चीज प्राप्त हो गयी। मेरी श्रद्धा इतनी बढ़ी कि मानो आपत्ति आयी हो- संयोग प्रतिकूल बने हों या गहरा संकट आया हो, जीवन की हर विपरीत परिस्थिति में महामंत्र नवकार की उपासना ने हिम्मत दी है, शक्ति दी है।
(2) जीवन में संघर्ष में कभी जीने का ख्याल आता है, तो कभी मरने के लिए भी प्रयास हो जाता है। आज भूतकाल की वह बात अब भी पल भर के लिए बेचैन कर देती है। लगातार 10 घंटे महामंत्र नवकार के जाप से बहुत बड़ी दुर्घटना से सही सलामत निकल गये।
9 मार्च, 1975 की बात है। मेरे ससुरजी उस दिन "मन्दिर जाता हूँ। और वहां से डॉ. के पास जाऊँगा," इतना कहकर घर से निकल गये। | मेरी प्रसूति का समय करीब आ रहा था, डॉ. ने 12-13 मार्च कहा था। में अपनी रसोई घर में काम में व्यस्त थी। मेरे पति उन दिनों मुलुण्ड की बैंक में जाते थे सो 12 बजे घर पर खाना खाने आते और 2 बजे वापिस ले जाते। पिताजी आयेंगे बाद में खाना खायेंगे,ऐसा सोचकर इंतजार करते रहे, पर डेढ़ बजे तक नहीं आये तो मन्दिर में और बाद में डॉ. के पास तलाश करने गये। डॉ. ने बताया, 'वो तो आये नहीं भला कहां चले गये होंगे? घड़ी में 2 बजे, 3 बजे, सब बेचैन हो गये। कहां पूछना? कहां
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - ढंढना? मेरी सासजी ने तो नवकार मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया। मेरी समझ में नही आ रहा था कि ये क्या हो गया। सारे मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गये। नजदीक के रिश्तेदार आये। सब अलग-अलग दिशा में देखने गये- कोई स्टेशन पर, कोई अस्पताल में ये जानने के लिए कि कोई अकस्मात् का केस गया हो। घाटकोपर से लेकर बंबई तक के सब अस्पताल में जाकर आये। कोई किसी ज्योतिषी को पूछने गये।
घर में सब बातें हो रही थीं, कि कुछ किसी का उनसे झगड़ा तो नहीं हुआ? या कोई तनाव तो नहीं था उनको? हां पिछले 6 महिने से वे बीमार रहते थे। उन्हें प्रेसर की तकलीफ थी। हालांकि यह बीमारी उनको मानसिक चिंता की वजह से थी। हम सब उन्हें खूब समझाते, मगर उन्हें कोई तसल्ली नहीं होती। दो साल पहले वे अपनी नौकरी से रिटायर हो गये थे। कंपनी उनकी ग्रेज्युएटी की रकम कम देती थी। अपने वकील से सलाह लेकर उन्होंने कोर्ट में केस दाखिल किया। अब कोर्ट का सिलसिला तो लम्बा चलता है।कोर्ट में केस दाखिल किया यह गलत किया या सही, बस इसी चिंता में रहने लगे। ये बात सही है कि वह कई साल से महामंत्र नवकार की उपासना करते थे। कोर्ट से कोई फैसला नहीं होता था। वकील पूरे आत्मविश्वास से कहता कि, "आप चिंता मत कीजिए - यह केस आपका नहीं, मेरा है, ऐसा समझ लें और आराम से प्रभु का नाम लें।"
सब जप, तप करते थे, मगर मानसिक तनाव से हैरान थे। इसलिए फिर स्वास्थ्य अस्वस्थ रहने लगा। हम लोग उनका पूरा ध्यान रखते थे। लेकिन आज अचानक वो चले गये। हम सब मौनपूर्वक नवकार का जाप करते रहे। सब लोग मेरी चिंता करने लगे कि कहीं चिंता से मुझे अचानक अस्पताल न ले जाना पड़े।
रात को साढ़े दस बजे और वो अकेले लकड़ी के सहारे चल कर आ रहे थे। हम सब ने उन्हें सम्भाल लिया। हमारे फैमिली डॉ. भी घर पर थे। उन्होंने उनको सोने के लिए कहा। सबने मानो कुछ नहीं हुआ,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? | ऐसा दिखावा करके उनसे खूब प्यार से बात की। करीब एक घंटे बाद मेरे ससुरजी ने खुद ही डॉ. को बताया कि वो खूब निराश हो गये थे। अपने आपसे उन्होंने उस दिन सोच लिया था कि मैं अपनी जिन्दगी का अन्त ला दूंगा। इसलिए उन्होंने वैसी दवा की शीशी खरीदी और घाटकोपर स्टेशन के 1 नं. के प्लेटफार्म पर किसी खाली बेंच पर बैठ रहे थे। बड़ी ताज्जुब की बात तो यह रही कि पूरा घाटकोपर स्टेशन छान मारा मगर वो कहीं दिखाई नहीं दिये। डॉ. ने दवा देकर उनको सुला दिया।
इस तरह मेरे ससरजी नवकार मंत्र के प्रभाव से सही सलामत घर लौट आये। 19 मार्च को मैंने लड़के को जन्म दिया, बस फिर क्या, वो
खूब खुश थे। हर रोज अस्पताल आते और मुन्ने को देखकर कहते, 'इस | नवकार मंत्र की उपासना से में आत्महत्या करने से बच गया। घर में किसी भी नवजात शिशु का जन्म होते ही उसके कान में नवकार मंत्र सुनाने की इच्छा हम सब रखते हैं। दिन में और रात में नवकार सुनाते हैं।
यह घटना मेरे जीवन की गंभीर घटना थी। वह समय हम सबने कैसे गुजारा ये सिर्फ ईश्वर जान सकता है। आपको जानकर खुशी होगी कि उसके बाद मेरे ससुरजी का पूरा जीवन बदल गया। वो प्रभु भक्ति में लीन रहने लगे। सारी चिंताएं छोड़ दी और करीब 3 साल के बाद कोर्ट से जवाब आया। कंपनी को आपको ग्रेज्युटी के पूरे 10,000/ रुपये के साथ 6 साल के ब्याज के पूरे 27,000/ रुपये देने होंगे। उनकी जीत हुई थी। भले संघर्ष सही, मगर यह महामंत्र नवकार के प्रभाव का अनुभव कितना महान है! . लेखक - श्रीमती आशा मणिकान्त शाह
11-ए भारमल एपार्टमेन्ट, एम.जी. रोड़ घाटकोपर (पूर्व) मुम्बई नियमित साधना अवश्य फलदायी
मुझे सन् 1987 में हार्ट अटेक हुआ। नवकार मंत्र की नियमित साधना से ब्लड प्रेसर, अटेक में मुझे खूब ही राहत, फायदा हुआ। मन शान्त होकर प्रफुल्लित रहता है। श्रद्धापूर्वक उपयोग ही बल प्रदान करता
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? है। में प्रवास में जाते समय या धंधे के लिए दुकान में प्रवेश करते समय अवश्य नवकार मंत्र बोलता हैं। इससे मुझे आर्थिक रूप से व्यवसाय में | भी सहायता मिलती है। ऐसा मेरा स्वयं का अनुभव है। नवकार मंत्र से चाहे वैसा बुखार उतर जाता है, ऐसा भी मेरा अनुभव है। "नमो लोए सव्वसाहूणं' की उलटी माला फेरनी चाहिये। डॉक्टर बुलाने में विलम्ब होता हो या नजदीक न हो तब प्रयोग कर देखना, चमत्कार होगा। बुखार उतर जाता है। केवल 10 माला प्रतिदिन, "ॐ नमो अरिहंताण" की फेरता हूँ। इससे भी अपूर्व शान्ति अनुभव करता हूँ। नवकार मंत्र की एक माला तो अवश्य जैनों को फेरनी ही चाहिये। मैं फेरता हूँ। मानसिक खिंचाव कभी अनुभव नहीं करता, यह हकीकत है। महान मंत्र नवकार का उपयोग श्रद्धा पूर्वक करो। स्वयं अनुभव होगा कि नियमित आठ-दस महिनों तक नवकार मंत्र की माला फेरने के बाद फायदे की शरूआत होगी। जल्दी करने से आम पकते नहीं हैं। इस सिद्धान्त से माला फेरना, ऐसा मेरा अनुभव है।
लेखक : श्री टोकरशी देवजी गडा (गुंदाला (कच्छ) वाले) नीरव एन्टरप्राइजेज, 34, नानजीभाई चेम्बर्स, बहुचराजी रोड़, कारेली बाग, बड़ोदरा-390018
"तू मुझे नहीं बचाएगा?"
(पू. प्रगुरुणीवर्या सा. श्री अरुणोदयश्रीजी म.सा. के जीवन में घटित घटना का आलेखन इस लेख के माध्यम से अभिव्यक्त कर रही हूं।)
सं. 2036 के चातुर्मास में पूज्य श्री के गले में से आवाज निकलनी कम हो गयी और सं. 2037 के चिंचबंदर चातुर्मास में तो गला एकदम बंद हो गया। मुम्बई के टाटा हॉस्पीटल के डॉक्टरों ने कैंसर रोग घोषित किया। डॉक्टरों ने कई प्रकार के उपचार किये, किन्तु उनके उपचार कारगर साबित नहीं हो रहे थे। हमारी सभी की चिंता बढ़ने लगी।
उस दिन पूज्य श्री गहरे चिंतन में डूबे हुए थे। "जिस नवकार के एक अक्षर के स्मरण से 7 सागरोपम का, एक पद से 50 सागरोपम
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? का तथा सम्पूर्ण नवकार के स्मरण से 500 सागरोपम के पाप नष्ट होते हैं, क्या वह नवकार मुझे स्वस्थ नहीं कर सकता! मेरी पीड़ा तो है ही क्या! उसने तो सुदर्शन की शूली को सिंहासन बना दिया, नाग को फूलों की माला में परिवर्तित कर दिया। आज तक अनंत आत्माएं इसके ही स्मरण से शिव रमणी का वरण कर चुकी हैं। मुझे भी नवकार मैया की गोदी में अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए।" पूज्य श्री नवकार के जाप में एकाकार हो गये। उन्होंने साथ में अपनी वर्धमान तप की ओली भी प्रारम्भ कर दी। इस प्रकार उन्होंने वर्धमान तप की सौ ओलियाँ पूर्ण कर दी। संवत 2048 तक उनकी आवाज एकदम साफ हो गई।
आज उसी नवकार के प्रभाव से ही पूज्य श्री हमारे बीच में तप धर्म का एक उत्ष्ट आलंबन पेश कर रहे हैं। उनका नवकार के साथ आयंबिल प्रेम दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने वर्धमान तप की 110 ओलियां पूर्ण कर लीं, किन्तु अभी तक इनकी तप पिपासा शान्त नहीं हुई।
इससे पूर्व भी पूज्य श्री के शरीर पर हार्ट का हमला हुआ था। उस समय भी पूज्य श्री नवकार के प्रभाव से ही बच पाये थे।
पूज्य श्री की 108 वीं ओली के पारणे के महोत्सव पर एक भाई द्वारा बाड़मेर में पूज्य श्री के विषय में बोले गये कविता के दो अंतरों को तो मैं आज भी भूला नहीं पायी हूँ।"
तप त्याग की अनुपम देवी, अरुणोदयश्री कहलाती हो। जिन शासन श्रृंगार आर्या, आप श्री तो महान हों(1) कर्म राजा के सामने भिड़कर, नवकार मंत्र का बह्मास्त्र फेंका। लज्जित होकर कर्मराज भी, इज्जत बचाने को भागा।।(2) ॐ शांतिः-शांतिः-शांतिः
लेखिका-सा.श्री हिरण्यगुणाश्रीजी
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१४ करोड़ नवकार जप के आराधक
पाणलालभाई लवजी शाह सौराष्ट्र के ध्रांगध्रा शहरमें रहते हुए प्राणलालभाई (उ. व. ६८)ने B.Sc. तक व्यावहारिक अभ्यास किया है । पहले अनाजका होलसेल का धंधा एवं सूद पर पैसे देने का व्यवसाय करते थे । आज वे पिछले १५ सालसे निवृत्त हैं।
अध्यात्मयोगी प. पू. आचार्य भगवंत श्री विजयकलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से पिछले १० सालसे वे नवकार महामंत्र की आराधना में विशेष रूपसे संलग्न हुए हैं।
उत्तरोत्तर जपमें अभिरूचि बढ़ती गयी और वे प्रतिदिन १३-१४ घंटों तक नवकार महामंत्र का जप करते रहते हैं ।
प्रात: ३ बजे से लेकर शामको ७ बजे तक आहार - निहार एवं जिनपूजा सिवाय के समयमें वे नवकार महांत्रका जप करते रहते हैं।
जैसे जैसे जप की संख्या बढ़ती गयी वैसे वैसे कुछ मिथ्यादृष्टि व्यंतर देव जप को छुड़ाने के लिए अनेक प्रकार के प्रतिकूल एवं अनुकूल उपसर्ग करने लगे । भयंकर सर्प आदि दिखाकर जप छोड़ देने के लिए दबाव देने लगे तो कभी रूपवती महिलाओं को दिखाकर उनको चलायमान करने के लिए प्रयत्न करने लगे । लेकिन उपरोक्त आचार्य भगवंत एवं महा तपस्वी प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजय हिमांशुसूरीश्वरजी म. सा. के मार्गदर्शन के मुताबिक वे डरे नहीं और जपमें अडिग रहे । फलतः मिथ्यादृष्टि देवों का कुछ भी बस चलता नहीं है।
एक बार प्राणलालभाई एक पेड़ के नीचे लघुशंका निवारण करने के लिए बैठे थे, तब उस वृक्षमें रहनेवाले एक व्यंतर देवने उनके शरीरमें प्रवेश किया और उनको अत्यंत परेशान करने लगा । लेकिन मुनि श्री शांतिचन्द्रसागरजी म.सा. की प्रेरणा के मुताबिक अन्य कोई उपाय न करते हुए प्राणलालालभाई ने नवकार महामंत्र का जप चालु रखा था ।
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आखिर एक दिन वह व्यंतर कहने लगा कि - 'नवकार महामंत्र के तेज को मैं सहन नहीं कर पाता, मैं जलकर भस्म हो जाऊँगा इतना दाह मुझे हो रहा है, इसलिए मैं जाता हूँ' ऐसा कहकर हमेशा के लिए उसने उपद्रव करना छोड़ दिया !.....
जिस तरह मिथ्यादृष्टि व्यंतर देव जप से चलित करने के लिए उपसर्ग करते रहे उसी तरह दूसरी और अनेक सम्यग्दृष्टि शासन देव-देवी श्री प्राणलालभाई को दर्शन देने लगे । अभी तक चत्र्केश्वरी, पद्मावती, महाकाली, लक्ष्मी, सरस्वती इत्यादि देवियोंने एवं मणिभद्र, घंटाकर्ण, कालभैरव, बटुकभैरव इत्यादि देवोंने जप के दौरान उनको दर्शन दिये है और उनके जप की बहुत अनुमोदना की है । कुछ देवोंने उनकी परीक्षा करने के लिए प्रलोभन भी दिये हैं मगर वे लुब्ध नहीं हुए एवं किसी भी भौतिक वस्तु की याचना कभी भी देव - देवियों के पास नहीं की है इसलिए देव अधिक प्रसन्न हुए हैं। प्रतिदिन के जप की संख्या एवं अनुभवों का वर्णन वे लिखते रहते हैं जो हमें दिखाया था ।
उनके पिताजीने भी सवा करोड़ नवकार का जप किया था । उन्होंने भी देवलोक में से आकर प्राणलालभाई को दर्शन दिये एवं जप के लिए अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त की है । उनके परिचित अन्य भी कुछ रिश्तेदार जो स्वर्गवासी हुए 'हैं उन्होंने भी दर्शन दिये हैं । कई बार देवोंने गुलाब के पुष्पों की वृष्टि और अमीवृष्टि भी की हैं। पूर्व जन्म की पत्नी जो हाल देवी है उसने भी उनको दर्शन दिये हैं । अगले जन्ममें एक संपन्न कच्छी परिवारमें मुम्बई में उनका जन्म हुआ था । वहाँ भी उन्होंने नवकार महामंत्रकी सुंदर आराधना की थी ऐसा पत्नी देवीने बताया है ।
-
पता : प्राणलालभाई लवजी शाह
नानी बाजार,
मु. पो. ध्रांगधा,
जि. सुरेन्द्रनगर (गुजरात) पिन : ३६३३१०
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? . श्री नमस्कार महामंत्र महिमा गर्भित शास्त्रीय श्लोकार्थ मंत्र संसारसारं, त्रिजगदनुपम, सर्वपापारिमन्त्रं, संसारोच्छेदमन्त्रं, विषयविषहरं, कर्मनिर्मूलमन्त्रम्। मंत्र सिद्धिप्रदानं, शिवसुखजननं, केवलज्ञानमन्त्रं, मंत्रं नमस्कार-मंत्र, जप जप जपितं, जन्मनिर्वाणमन्त्रम्।।
(महामंत्र श्री नवकार संसार में सारभूत मंत्र है, तीन जगत में अनुपम है, सभी पापों का नाश करने वाला है, संसार का उच्छेद करने वाला है, विषय रूपी विष का हरण करने वाला है, कर्म को निर्मूल करने वाला है, सिद्धि को प्राप्त कराने वाला है, शिवसुख का कारण है और केवलज्ञान की प्राप्ति कराने वाला है। ऐसे अद्भुत प्रकार के सामर्थ्यशाली परमेष्ठी मंत्र का हे भव्यों आप बारंबार जाप करो। नवकार महामंत्र का जाप जीव को जन्म-मृत्यु के जंजाल से मुक्त करवाता है।)
नमस्कार अरिहंतने, वासित जेहनुं चित्त, धन्य तेह .तपुण्य ते, जीवित तास पवित्त। आर्तध्यान तस नवि हुए, नवि हुए दुर्गतिवास,
भवक्षय करतां रे समरतां, लहीए सु.त अभ्यास।। 1. में धन्य हूँ कि मुझे अनादि अनंत भव समुद्र में अचिन्त्य चिंतामणि
ऐसा पंच परमेष्ठियों का नमस्कार प्राप्त हुआ। 2. नवकार जिनशासन का सार है, चौदह पूर्व का सम्यग् उद्धार है।
जिसके मन में नवकार स्थिर है, उसको संसार क्या कर सकता है?
अर्थात् कुछ भी करने में समर्थ नहीं है। 3. नवकार सभी श्रेयों में परम श्रेय है, सभी मंगलों में परम मंगल है,
सभी पुण्यों में परम पुण्य है, और सभी फलों में परम सुन्दर फल है। पंच नमस्कार चिंतन मात्र से भी जल एवं अग्नि स्तंभित हो जाते हैं। तथा अरि, मारि, चोर और राजा सम्बंधी घोर उपसर्गों का सम्पूर्ण रूप से नाश होता है।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
5.
श्री नमस्कार महामंत्र दुःख का हरण करता है, सुख देता है, यश को उत्पन्न करता है, भव समुद्र का शोषण करता है और यह नवकार इस लोक एवं परलोक के सभी सुखों का मूल है।
6.
श्री नमस्कार महामंत्र का एक अक्षर सात सागरोपम के पाप नाश करता है। श्री नवकार मंत्र के एक पद से 50 सागरोपम के पाप नष्ट होते हैं और समग्र नवकार से 500 सागरोपम के पाप नष्ट होते हैं।
7.
जो एक लाख नवकार विधिपूर्वक गिनता है, वह तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन करता है, उसमें जरा भी संदेह नहीं है।
प्रकृष्ट भाव से किया गया परमेष्ठियों को एक नमस्कार, जैसे पवन जल का शोषण करता है, वैसे सकल क्लेश जाल को छेद डालता है। अंत समय में जिसके 10 प्राण पंच नमस्कार के साथ जाते हैं वह मोक्ष नहीं प्राप्त करे तो भी वैमानिक देव अवश्य बनता है। 10. यह मान लो कि जो मोक्ष में गये हैं और जो कर्म मल से रहित होकर मोक्ष में जायेंगे, वह सभी नवकार का ही प्रभाव है।
8.
9.
"
11. परम मंत्र रूप यह नवकार मंगल का घर है, वह संसार का विलय करने वाला है, सकल संघ को सुख प्रदान करने वाला है। इसके चिंतन मात्र से सुख की प्राप्ति होती है।
12. प्रणव अर्थात ॐकार, माया अर्थात् हींकार और अर्हं जो प्रभावशाली बीज मंत्र हैं, उन सभी का मूल एक प्रवर नवकार मंत्र है। अर्थात ॐ ह्रीं अर्ह वगैरह बीज मंत्रों के मूल में नवकार मंत्र रहा हुआ है।
13. चित्त से चिन्तन किया हुआ, वचन से प्रार्थना की हुई, और काया से प्रारंभ किया कार्य वहां तक सिद्ध नहीं होता, जब तक श्री पंच परमेष्ठि नमस्कार का स्मरण न किया जाये।
14. भोजन के समय, शयन के समय, उठने के समय, प्रवेश के समय, भय के समय, कष्ट के समय - इत्यादि सभी समय सचमुच पंच
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - नमस्कार का स्मरण करना चाहिये। 15. जो कोई परमतत्त्व है और कोई परम पद का कारण है, उसमें भी
वह नवकार ही परम योगियों द्वारा चिंतन किया जाता है। 16. योगी पुरुष इसी ही नवकार मंत्र का सम्यक् प्रकार से आराधना कर
परम लक्ष्मी को प्राप्त कर तीन लोक में पूजे जाते हैं। 17. हजारों पाप करने वाले एवं सैंकड़ों जन्तुओं का नाश करने वाले तिर्यच
भी इस मंत्र की अच्छी तरह से आराधना कर स्वर्ग में गये हैं। 18. अहो! इस जगत में पंच नमस्कार कोई विशिष्ट उदार है कि जो
स्वयं आठ ही सम्पदा को धारण करता है, फिर भी सत्पुरुषों को
अनंत संपदा देता है। 19. नवकार! तू मेरी उ.ष्ट माता है, पिता है, नेता है, देव है, सत्त्व है,
तत्त्व है, मति है, और गति है। ['श्री लघु नमस्कार फल' स्तोत्र का अर्थ ) 1-2 घनघाती कर्मों से मुक्त अरिहंतों, सभी सिद्धों, प्रवर आचार्यों,
उपाध्यायों तथा सभी साधुओं- श्रेष्ठ लक्षण को धारण करने वाले इन पांचों ही परमेष्ठियों को किया गया नमस्कार संसार में भटकते
भव्य जीवों के लिए परम शरण रूप है। 3. ऊर्ध्वलोक, अधोलोक एवं मध्य लोक में श्री जिन नवकार प्रधान है
तथा समस्त भुवन में नरसुख , सुरसुख एवं शिवसुख का परम
कारण है। 4. उस कारण सोते, उठते इस नवकार को सतत गिनना चाहिये। भव्य
लोगों को निश्चित रूप से वह दुःख दूर करने वाला एवं सुख प्राप्त
कराने वाला है। 5. जन्म के समय नवकार गिना जाये तो रिद्धि की प्राप्ति होती है और
अवसान के समय नवकार गिना जाये तो मृत्यु के बाद अच्छी गति
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-जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? प्राप्त होती है। 6. आपत्ति के समय उसे गिना जाये तो सैंकड़ों आपत्तियाँ दूर होती हैं।
और रिद्धि के समय उसे गिना जाये तो उस रिद्धि का विस्तार होता है। 7. इस नवकार को जो श्वास की तरह कंठ में स्थापित करने वाला
यदि देवता होवे तो नवलक्ष्मी को प्राप्त करता है और नरेन्द्र
(मनुष्य) होवे तो विद्याधर के तेज को प्राप्त करता है। 8. जिस प्रकार सर्प के जहर का गारूड़ी मंत्र से नाश होता है, उसी
प्रकार नवकार महामंत्र समग्र पापरूपी विष का नाश करता है। 9.10 क्या यह नवकार महारत्न है? या चिंतामणि समान है? या कल्पवृक्ष
समान है? नहीं, नहीं, यह तो उनसे भी बढ़कर है। चिंतामणि रत्न | वगैरह और कल्पवृक्ष यह तो एक जन्म के सुख के कारण हैं,
जबकि श्रेष्ठ ऐसा नवकार तो स्वर्गापवर्ग को दिलाने वाला है। 11. जो कोई परमतत्त्व है और जो कोई परम पद का कारण है, उसमें
भी इस नवकार को ही परमयोगियों द्वारा चिंतन किया जाता है। 12. जो एक लाख नवकार गिनता है और श्री जिनेश्वर देव की
विधिपूर्वक पूजा करता है वह श्री तीर्थकर नाम कर्म का उपार्जन
(बन्ध) करे, इसमें संदेह नहीं है। 13. पांच महाविदेह की कुल 160 विजयों में, जहां शाश्वतकाल है, वहां
भी इस जिन-नवकार को निरन्तर पढ़ा जाता है। 14. पांच ऐरवत एवं पांच भरत में भी शाश्वत सुख देने वाला यह
नवकार ही है। 15. मरते समय जो धन्य पुरुष इस नवकार को प्राप्त करता है, वह
देवलोक में जाता है और परमपद को भी प्राप्त कर सकता है। 16. यह काल अनादि है। जब से यह है तब से भव्य जीवों द्वारा
नवकार पढ़ा जाता है। 17. जो कोई मोक्ष में गये हैं और जो कोई कर्ममल से रहित बनकर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मोक्ष में जा रहे हैं, वे सभी भी नवकार के ही प्रभाव से गये हैं.
ऐसा जान लो। 18. नवकार के प्रभाव से डाकिनी, वेताल, राक्षस और मारि वगैरह का
भय कुछ भी नहीं कर सकता है एवं सभी पापों का नाश होता है। 19. श्री जिन-नवकार के प्रभाव से व्याधि, जल, अग्नि, चोर, सिंह,
हाथी, संग्राम सर्प आदि का भय उसी समय समाप्त होता है। 20. यह नवकार सुर, सिद्ध, खेचर वगैरह द्वारा पढ़ा जाता है। जो कोई
इसे भक्तिभाव से पढ़ता है, वह परम निर्वाण को प्राप्त करता है। 21. जंगल, पर्वत एवं अरण्य के मध्य में स्मरण करने से यह नवकार
भय का नाश करता है और माता जिस तरह पुत्र-पौत्रों, दोहितों का
रक्षण करती है, वैसे सैंकड़ों भव्यों का रक्षण करता है। 22. पंच नवकार के चिंतन मात्र से ही जल एवं अग्नि स्तंभित हो जाते
हैं और अरि, मारि, चोर तथा राजाओं के घोर उपसर्गों का नाश
होता है। 23. जिनके हदय रूपी गुफा में नवकार रूपी केसरीसिंह हमेशा रहता है,
उनके आठ कर्म की गांठ रूपी हाथी का समूह समस्त प्रकार से
नष्ट होता है। 24. जो पंच नमस्कार रूपी सारथी को नियुक्त कर, ज्ञान रूपी घोड़े को
जोड़कर, तप संयम एवं दान रूपी रथ में विराजित होता है, वह
परम निर्वाण को प्राप्त करता है। 25. जो जिनशासन का सार है, चौदह पूर्व का सम्यग् उद्धार है, वह __ नवकार जिसके मन में स्थिर है, उसको संसार क्या कर सकता है?
अर्थात् कुछ भी करने में समर्थ नहीं है। | नवकार महिमा गर्भित 'श्री उपदेश तरंगिणी श्लोकार्थ | 1. रात्रि के अन्तिम प्रहर के आधे भाग में निद्रा त्यागकर, दुष्ट कर्म __रूपी राक्षस का दमन करने के लिए अद्वितीय चतुर ऐसे श्री
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? परमेष्ठी मंत्र का पवित्र मन से, मन-वचन-काया से स्मरण करना चाहिये। जिसके चित्त में कल्याण के पद का दातार पंच परमेष्ठी नमस्कार रूपी मंत्रराज के पद स्फुरित हो रहे हैं, तो फिर उसे मंत्र, औषधियों की अथवा गारुड़िक, चिंतामणि या इन्द्रजाल की क्या
आवश्यकता है? अर्थात् उनकी कोई आवश्यकता नहीं है। 3. श्री नमस्कार के नौ पद वास्तव में सभी सिद्धान्तों के सारभूत हैं।
उसमें पहले पांच पद अति महान हैं। सत्पुरूष उसे मुख्य महाध्येय
के रूप में स्वीकार करते हैं। 4. मृत्यु के समय पंच परमेष्ठी रूपी पांच रत्न जिसके मुंह में होते हैं.
उसकी भवान्तर में सद्गति होती है। 5. दोनों लोक में इच्छित फल देने वाले, अद्वितीय शक्तिशाली श्री
नवकार मंत्र जयवन्त रहो कि जिसके पहले पांच पदों को श्री त्रैलोक्यपति तीर्थकरदेवों ने पंचतीर्थी1 के रूप में कहा है, जिन सिद्धान्त का सारभूत जिसके अड़सठ अक्षर अड़सठ तीर्थों के रूप ' में बताये हैं और जिसकी आठ संपदाएं अज्ञान अंधकार को नष्ट
करने वाली आठ सिद्धियों के रूप में वर्णित हैं। 6. भोजन करते समय, सोते समय, निद्रा से उठते समय, संकट के
समय, कष्ट के समय, और सभी समय सचमुच पंच नमस्कार का
स्मरण करना चाहिये। 7. परमेष्ठी नमस्कार का बार बार स्मरण कर कई जीवों ने संसार
सागर को पार किया है, कई कर रहे हैं और कई पार करेंगे। 8. जिन शासन में पाप का नाश करने वाले इस मंत्र के होते हुए पाप
अपने एकछत्रीय राज के बार में सोच भी नहीं सकते। 9. जैसे सिंह से मदोन्मत्त गन्धहाथी, सूर्य से जैसे रात्रि संबंधी अंधकार
का समूह, चन्द्र से जैसे ताप संताप का समुदाय, कल्पवृक्ष से जैसे मन की चिंताएं, गरूड़ से जैसे फणाधारी विषधर और बादलों से
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? जैसे दावानल शान्त होता है, वैसे ही पंच परमेष्ठी मंत्र के तेज से
प्राणियों के उपद्रव का नाश होता है। | 10. पंच परमेष्ठी के पदों से संग्राम, सागर, हाथी, सर्प, अग्नि, सिंह,
दुष्ट व्याधि, शत्रु, बन्धन, चोर, ग्रह, भ्रम, राक्षस और शाकिनी से
होने वाला भय भाग जाता है। 11. परमेष्ठी मंत्र का स्मरण करने मात्र से पाप शान्त हो जाता है, तो
फिर तप से प्रबल किया हुआ एवं विधि से पूजा हुआ वह क्या नहीं करेगा? दूध अपने आप में ही मीठा होता है, किन्तु विधि से गर्म किया हुआ एवं शक्कर से मिश्रित किया हुआ हो तो पृथ्वी में
अमृत तुल्य बनता है। 12. वह पंच परमेष्ठी नमस्कार क्रिया रूप अक्षरमयी आराधना देवता
तुम्हारा रक्षण करो, कि जो सुर संपदा का आकर्षण है, मुक्तिरूपी लक्ष्मी की प्राप्ति करवाती है, विपदाओं को दूर करती है, संसार की चार गतियों में उत्पन्न होने वाले आत्माओं के दुश्मनों के प्रति विद्वेष धारण करती है, दुर्गति की ओर जाने से रोकती है और मोह
का प्रतिकार करती है। 13. जिनेश्वर के प्रति जिसने लक्ष्य निर्धारण किया है, उस जितेन्द्रिय
और श्रद्धावान श्रावक द्वारा सुस्पष्ट वर्णोच्चार पूर्वक संसार का नाश करने वाले ऐसे पंच परमेष्ठी नमस्कार का एक लाख बार जाप और श्वेत सुगंधी लाख पुष्पों से श्री जिनेश्वर देव की विधिपूर्वक सम्यक् रूप से पूजा की जाये तो वह त्रिभुवन पूजित तीर्थकर
बनता है। 14. अपने स्थान पर पूर्ण उच्चारपूर्वक, रास्ते में अर्ध उच्चारपूर्वक,
दुर्घटना या आतंक अर्थात् तीव्र रोग या वेदना हुई हो तो 1/4 उच्चार पूर्वक तथा मौत तुल्य पीड़ा के समय मानसिक नवकार का
जाप होना चाहिये। | 15. जिसके प्रभाव से चोर मित्र समान बनता है, सर्प फूल की माला
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बनता है, अग्नि एकदम पानी में और पानी-भूमि में बदल जाता है
और जंगल नगर एवं सिंह सियार बन जाता है। 16. लोक द्विष्ट और प्रियघातक वगैरह को भी केवल नवकार मंत्र का
स्मरण ही लोक में प्रीति उत्पन्न कराता है, शत्रुओं को मूल से दूर करता है, इष्ट की प्राप्ति करवाता है, वश में नहीं आने वाले को
वश में करता है, और मारने वाले को भी स्तंभित कर देता है। 17. ध्यान किया गया यह मंत्र इस लोक की आपदाओं को दूर करता
है, सभी कामनाओं को पूर्ण करता है और परलोक में भी
स्वर्ग-मोक्ष आदि सुखों की प्राप्ति करवाता है। 18. श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा की पूजा और धूप आदि द्वारा
शरीर एवं वस्त्र पवित्र करके तथा मन को एकाग्र करके तुम निरंतर
इस मंत्र का जाप करो। 19. अन्त समय में जिसके दसों प्राण पंच नमस्कार के साथ जाते हैं,
वह मोक्ष में नहीं जाये तो भी अवश्य वैमानिक होता है, अर्थात्
विमानाधिराज देव होता है। 20. अहो! इस जगत में पंच नमस्कार ऐसा उदार है कि जो स्वयं आठ
संपदाओं को ही धारण करता है, लेकिन सत्पुरुषों को अनंत संपदा
देता है। - 1 अरिहंत के आद्य अक्षर "अ" से अष्टापद तीर्थ, सिद्ध के आद्य अक्षर "सि' से सिद्धाचल, आचार्य के आद्य अक्षर "आ" से आबूजी, उपाध्याय के आद्य अक्षर "3" से उज्जयंत (गिरनारजी) और साधु के आद्य अक्षर "स" से सम्मेतशिखर, इस प्रकार पंचतीर्थ समझना।
(श्री नमस्कार भावना)
अहो! आज मेरा महान् पुण्योदय जाग्रत हुआ है कि जिससे मुझे इन पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करने का भावोल्लास जाग्रत हुआ। आज मुझे भव समुद्र का किनारा प्राप्त हुआ है। अन्यथा कहां मैं, कहां यह नवकार
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
और कहां मेरा उसके साथ समागम ?
अनादिकाल से मेरी आत्मा अज्ञानता आदि के योग से निरंतर संसार में भटक रही है। आज मुझे परम शरण की प्राप्ति हुई है। क्योंकि पंच परमेष्ठियों को किया गया नमस्कार ही संसार में भटकती मेरी आत्मा के लिए शरण रूप है।
अहो ! क्या यह नवकार महारत्न है? अथवा चिंतामणि समान है ? या कल्पवृक्ष समान है? नहीं, नहीं, नवकार तो उन सबसे बढकर है। क्योंकि चिन्तामणि वगैरह तो एक भव में ही सुख के कारण हैं, जबकि नवकार तो स्वर्ग और मोक्ष देने वाला है, मुक्ति प्राप्त न हो तब तक भवोभव में सुख को देने वाला है।
है आत्मन् ! पर्वत को मूल से उखाड़ना दुर्लभ नहीं, देवलोक में सुख प्राप्त करना दुर्लभ नहीं है। दुर्लभ तो भाव से नवकार की प्राप्ति होना, यह है। क्योंकि मंदपुण्यवाले आत्माओं को कभी भी नवकार की प्राप्ति नहीं होती है। यह भाव नमस्कार असंख्य दुःखों के क्षय का कारण है। इस लोक एवं परलोक में सुख देने में कामधेनु समान है। हे आत्मन् तू आदर पूर्वक इस महामंत्र का जप कर ।
हे मित्र मन ! सरल भाव से तुझे प्रार्थनापूर्वक कहता हूँ कि, संसार सागर को पार कराने वाले इस नवकार मंत्र को जपने में प्रमादी मत बनना । यह भाव नमस्कार उत्ष्ट सर्वोत्तम तेज है, दुर्गति का नाश करने के लिए प्रलयकाल के पवन के समान है, स्वर्ग और मोक्ष का सही मार्ग है। भव्य पुरुषों द्वारा हमेशा पढ़ा जाता, गिना जाता, सुना जाता, चिन्तन किया जाता यह नवकार मंत्र सुख एवं मंगल की परम्परा का कारण है। तीनों जगत् की लक्ष्मी सुलभ है, अष्ट सिद्धियां सुलभ हैं, महामंत्र नवकार की प्राप्ति ही दुर्लभ है। इसलिए हे आत्मन्! इस नवकार को परम शरण रूप मानकर उसकी ओर अत्यंत आदर और बहुमान रखकर एकचित्त से उसका स्मरण करते रहना ।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? श्री पंच परमेष्ठी के 108 गुण ।
अरिहंत भगवान ने चार कर्मों का क्षय किया है, फिर भी निकट उपकारी होने के कारण आठ कर्मों का क्षय करने वाले सिद्ध भगवान से पहले उनको नमस्कार किया गया है।
अरिहंत : राग-द्वेष रूपी कर्म शत्रुओं को जीतकर, चार घाती कर्मों का क्षय करके, केवल ज्ञान प्राप्त कर, भव्य जीवों को बोध देने हेतु धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले तीर्थकर- अरिहंत कहलाते हैं। उनके आठ प्रातिहार्य एवं चार अतिशय मिलकर 12 गुण होते हैं।
आठ प्रतिहार्य
1. अशोक वृक्ष - जहां भगवान के समवसरण की रचना होती है, वहां भगवान से बारह गुणी ऊँचाई एवं एक योजन की परिधि वाले "अशोकवृक्ष' की देवता रचना करते हैं। इसके नीचे बैठकर भगवान देशना देते हैं। ___2. सुरपुष्पवृष्टि - डंठल नीचे हो और पंखुड़ियां ऊपर हों, इस तरह पांच रंगों के पुष्पों की वृष्टि घुटनों तक समवसरण के एक योजन के क्षेत्र में देव करते हैं। जिससे चारों ओर का वातावरण महक उठता है। भगवान के प्रभाव से उन फूलों को जरा भी पीड़ा नहीं होती है।
3. दिव्य ध्वनि - भगवान की मालकोष राग वाली वाणी में देवता वीणा, बंसरी आदि वाद्ययंत्रों से सूर मिलाते हैं।
4. चामर - रत्नजड़ित सुवर्ण दण्ड वाले श्वेत चामर भगवान के दोनों ओर देवता ढालते हैं।
5. आसन - रत्नजड़ित सुर्वणमय सिंहासन देवता भगवान के बैठने के लिए समवसरण में बनाते हैं।
6. भामंडल - भगवान का तेज इतना होता है कि देखने वाले की आंखें चकाचौंध हो जाती हैं। इसलिए देवता भगवान के मस्तक के पीछे
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भामंडल की रचना करते हैं, जिससे भगवान का तेज उसमें संक्रमित हो जाता है और लोग भगवान के आराम से दर्शन कर सकते हैं।
7. दुंदुभि भगवान के आगे आकाश में आवाज करती हुई दुंदुभि चारों ओर लोगों को यह सूचन करती है कि हे भव्यों ! मोक्ष नगर के सार्थवाह समान भगवन्त पधारे हैं, उनकी शरण में आप आ जाईये।
8. छत्र देवों द्वारा मोतियों से सुशोभित तीन छत्र की रचना की जाती है। भगवान जब देशना देते हैं तब पूर्व दिशा में भगवान के ऊपर एवं अन्य तीन दिशाओं में भगवान की प्रति तियों पर तीन-तीन छत्र होते हैं। समवसरण नहीं हो तब भी आठ प्रतिहार्य2 अरिहंत प्रभु के साथ ही होते हैं।
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प्रभाव सूचक लक्षण वाले, उष्ट, विशिष्ट चमत्कार वाले चार अतिशय इस प्रकार हैं।
1. पूजातिशय भगवान सर्वपूज्य होते हैं । इन्द्र, देव, चक्रवर्ती भगवान जब विहार करते हैं तब देवता उनके बनाते हैं। चामर ढालते हैं। यह सब भगवान
आदि उनकी पूजा करते हैं। पैरों के नीचे 9 स्वर्ण कमल
के पूजातिशय से होता है।
2. वचनातिशय अरिहंत भगवान अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं, किन्तु जानवर, मनुष्य आदि सभी प्राणी अपनी-अपनी भाषा में समझ लेते हैं, क्योंकि उनकी वाणी पैंतीस गुणों वाली होती है।
इस अतिशय से लोकालोक का स्वरूप सभी
3. ज्ञानातिशय प्रकार से जानते हैं।
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4. अपायापगमातिशय
यह अतिशय उपद्रव का नाश करने वाला
है। इससे स्वयं के एवं दूसरों के, दोनों प्रकार के उपद्रव नष्ट होते हैं। 1 अरिहंत शब्द की परिभाषा श्री भद्रबाहुस्वामी ने आवश्यक नियुक्ति में इस प्रकार कही है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - इंदिय-विसय-कसाये, परिसहे वेयणा य उवसग्गे। एए अरिणो हता, अरिहंता तेण वुच्चति। 919।।
अर्थ : इन्द्रियों, विषयों, कषायों, परिषहों, वेदनाएं, उपसर्ग यह सभी अतंरंग भावशत्रु हैं। इन शत्रुओं को नष्ट करने वाले अरिहंत कहलाते हैं।
2. प्रतिहार्य अर्थात् प्रतिहारी-द्वारपाल की तरह हमेशा प्रभुजी के पास रहने वाले।
3. श्री तीर्थकर की वाणी के 35 गुण -
1. सभी स्थान पर समझ सकें वैसी 2. एक योजन तक सुनाई देती 3. प्रौढ 4. मेघ जैसी गंभीर 5. स्पष्ट शब्दों वाली 6. संतोषजनक 7. प्रत्येक आदमी को यही लगे कि प्रभुजी मुझे ही कह रहे हैं-वैसी 8. पुष्ट अर्थवाली 9. परस्पर विरोधरहित 10. महापुरुष को शोभे वैसी 11. संदेह रहित 12. दूषण रहित अर्थवाली 13. कठिन विषय को भी सरल करे वैसी 14. जहां जैसा शोभा दे वहां वैसा बोलने वाली 15. षद्रव्य एवं नौ तत्त्व को पुष्ट करने वाली 16. प्रयोजन सहित 17. पद रचना सहित 18. छः द्रव्य एवं नौ तत्त्व की पटुता सहित 19. मधुर 20. अमर्मबेधी 21. धर्म, अर्थ प्रतिबद्ध 22. दीप समान प्रकाश-अर्थ सहित 23. परनिन्दा एवं स्वप्रशंसा रहित 24. कर्ता, कर्म,क्रिया काल, विभक्ति सहित 25. आश्चर्यकारी 26. वक्ता सर्वगुण सम्पन्न है, ऐसा लगने वाली 27. धैर्य वाली 28. विलंब रहित 29. भ्रांति रहित 30. सभी अपनी-अपनी भाषा में समझ सकें वैसी 31. शिष्ट बुद्धि उत्पन्न कराने वाली 32. पद के अर्थ को अनेक प्रकार से विशेष आरोपण कर बोलने वाली 33. साहसिकता युक्त 34. पुनरुक्ति दोष रहित 35. सुनने वाले को खेद नहीं हो वैसी।
(4) श्री अरिहंत भगवान के 34 अतिशय -
अन्य देवों की अपेक्षा से अरिहंत परमात्मा की विशेषताएं बताने हेतु शास्त्रकारों ने 34 अतिशयों का वर्णन किया है। जो निम्नोक्त प्रकारों से हैं।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? जन्म से चार अतिशय
(1) अद्भुत रूप (2) सुगंधित श्वासोच्छ्वास (3) रुधिर एव मांस का श्वेत होना (4) आहार-विहार की अदृश्यता
केवलज्ञान से 11 अतिशय
(5) समवसरण में करोड़ों का समावेश 6. योजनगामिनी वाणी 7. स्व स्व भाषा में परिणमन 8. भामण्डल 9. परमात्मा के प्रभाव से 125 योजन तक पारस्परिक वैर-विरोध शांत हो जाते हैं। 10. 125 योजन में हुए भयंकर रोग परमात्मा के पुण्य प्रभाव से शांत हो जाते हैं। 11. 125 योजन में मारी-मरकी-चूहे आदि के उपद्रव शांत हो जाते हैं। 12. अतिवृष्टि नहीं 13. अनावृष्टि नहीं 14. अकाल निवारण 15. स्वचक्र अर्थात अपने राज्य का, परचक्र अर्थात दूसरे राज्य का भय नहीं
देवताकृत 19 अतिशय -
16. सिंहासन 17. चामर 18. छत्र 19. अशोकवृक्ष 20. पुष्प वृष्टि 21. देव दुन्दुभि 22. न्यूनतम एक करोड़ देवता हर समय सानिध्य में उपस्थित 23. स्वर्ण कमल 24. अधोमुखी कण्टक 25. वृक्षों का नमन 26. पक्षी-प्रदक्षिणा 27. ऋतु की अनुकूलता 28. धर्मध्वज 29. सुगन्धित जल (गन्धोदक) वृष्टि 30. अनुकूल पवन 31. समवसरण 32. चतुर्मुख रचना 33. केश-रोम की अभिवृद्धि नहीं 34. धर्मचक्र ।
इस प्रकार आठ प्रातिहार्य और चार अतिशय मिलकर श्री अरिहंत |भगवान के 12 गुण हुए।
उपरोक्त 34 अतिशयों का समावेश 12 गुणों में हो जाता है।
सिद्ध भगवान एवं उनके आठ गुण- जिन्होंने आठ कर्मों का क्षय करके अंतिम साध्य साधकर मोक्ष पद प्राप्त किया है, उसे सिद्ध 1 परमात्मा कहते हैं। उनके आठ गुण निम्नलिखित हैं। .
अनन्तज्ञान - ज्ञानावरणीय कर्म का पूर्णतया क्षय होने से अंत रहित केवलज्ञान प्राप्त होता है। उससे वे पूरे लोकालोक का स्वरूप समस्त प्रकारों से जानते हैं।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अनन्तदर्शन - दर्शनावरणीय कर्म का सम्पूर्ण क्षय होने से अंत रहित केवलदर्शन प्राप्त होता है। उससे लोकालोक का स्वरूप देखते हैं।
अव्याबाध सुख - वेदनीय कर्म का सम्पूर्ण क्षय होने से सभी प्रकार की पीड़ा से रहित अनन्त सुख प्राप्त होता है।
अनन्त चारित्र - मोहनीय कर्म का पूर्णतया क्षय होने से अनंत चारित्र गुण प्राप्त होता है, उसमें क्षायिक सम्यक्त्व और यथाख्यात चारित्र का समावेश होता है, उससे सिद्ध भगवान आत्म स्वभाव में सदा स्थिर हैं, वही वहां चारित्र है।
अक्षय स्थिति - आयुष्य कर्म का क्षय होने से कभी नष्ट न हों | ऐसी स्थिति प्राप्त होती है। सिद्ध की स्थिति की आदि है, किन्तु अंत नहीं है। इसलिए उनकी स्थिति सादि अनंत कही जाती है।
अरूपिता - नाम कर्म का क्षय होने से वर्ण, गंध, रस और स्पर्श रहित होते हैं। क्योंकि शरीर न होने से यह सब नहीं हो सकते हैं, उससे अरूपीपना प्राप्त होता है।
अगुरुलघु - गोत्र कर्म का क्षय होने से यह गुण प्रकट होता है। उससे भारी, हल्का या ऊँच-नीच का भेद नहीं रहता है।
अनंतवीर्य - अंतराय कर्म का क्षय होने से अनंतदान, अनंत लाभ, अनंतभोग, अनंत उपभोग, और अनंत वीर्य गुण प्रकट होते हैं। अर्थात् उनको अनंत शक्ति प्राप्त होती है। समस्त लोक को अलोक में और अलोक को लोक में परिवर्तन कर सके वैसी शक्ति स्वाभाविक रूप से रही हुई होती है, फिर भी वे ऐसा कार्य नहीं करते हैं और न ही करेंगे: क्योंकि पुद्गल के साथ की प्रवृत्ति उनका धर्म नहीं है। इस गुण से अपने आत्मिक गुण हैं, उनको उसी रूप में रखते हैं, परिवर्तन नहीं होने देते हैं।
आवश्यक नियुक्ति में इस प्रकार निर्देश हैनित्थि (च्छि) न सव्वदुक्रवा, जाई जरा मरण बंधण विमुक्का। अव्वाबाहं सुक्खं, अणुहति सासयं सिद्धा।। 988।।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ____ अर्थ : सभी दुःखों से सर्वथा पार हुए और जन्म, जरा, मृत्यु के |बंधन से मुक्त बने सिद्ध शाश्वत एवं अव्याबाध सुख का अनुभव करते हैं। अर्थात जिनको मोक्ष की प्राप्ति हुई है, वह सिद्ध कहलाते हैं।
आचार्य महाराज और उनके छत्तीस गुण
पांच आचार का पालन करने वाले, पालने का उपदेश देने वाले और साधु प्रमुख को पांच प्रकार के आचार को दिखाने वाले, गच्छ के नायक आचार्य महाराज कहलाते हैं। उनके गुणों का स्वरूप इस प्रकार है।
पांच इन्द्रियां : (1) स्पर्श (त्वचा) (2) रसना (जीभ) (3) घ्राण | (नाक) (4) चक्षु (आंख) (5) श्रोत्र (कान) इन पांचों इन्द्रियों के 23 विषयों में मनपसंद पर राग एवं अच्छा नहीं लगने वाले पर आचार्य महाराज द्वेष नहीं करते हैं।
ब्रह्मचर्य की नो बाड़ें (मर्यादाएं)1 जहां पर स्त्री, पशु व नपुंसक रहते हों, ऐसे स्थान का त्याग करना। 2 स्त्रियों के साथ एवं स्त्रियों से संबंधी बातें नहीं करना। 3 जहां पर स्त्री बैठी हो, उस स्थान पर 48 मिनट तक नहीं बैठना। 4 स्त्री के अंगोपांग न देखना। 5 दीवार के पीछे दम्पती रहते हों, उस स्थान का त्याग करना। 6 पूर्व काल में स्त्री के साथ क्रीड़ा की हो, तो उसका स्मरण न
करना। 7 मादक पदार्थ-प्रमाण से अधिक घी आदि से युक्त भोजन न करना। 8 प्रमाण से अधिक भोजन न करना। 9 स्नान, इत्र, तेल, सेंट, आदि से शरीर की शोभा बढ़ाने का त्याग
करना। इन नौ प्रकार की शियल व्रत की बाड़ों को धारण करने वाले। चार प्रकार के कषाय : क्रोध, मान, माया, लोभ। इन चार प्रकार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? के कषायों को नहीं करने वाले।
पांच महाव्रत : (1) प्राणातिपात विरमण : किसी भी प्रकार की हिंसा का त्याग करना।
(2) मृषावाद विरमण : किसी भी प्रकार का झूठ नहीं बोलना (3) अदत्तादान विरमण : किसी भी प्रकार की चोरी नहीं करना। (4) मैथुन विरमण : कामभोग का सर्वथा त्याग करना। .
(5) परिग्रह विरमण : किसी भी वस्तु का मूर्छा से संग्रह नहीं करना। इन पांच महाव्रतों को धारण करने वाले
पांच प्रकार के आचार (1) ज्ञानाचार : जिस क्रिया या नियम के अनुसरण से सम्यक् ज्ञान की वृद्धि होती है।
(2) दर्शनाचार : जिस क्रिया या नियम के अनुसरण से सम्यग्दर्शन (शुद्ध श्रद्धा) की वृद्धि होती है।
(3) चारित्राचार : जिस क्रिया या नियम के अनुसरण से सम्यक् चारित्र की वृद्धि होती है।
(4) तपाचार : जिस क्रिया या नियम के अनुसरण से सम्यक् तप की वृद्धि होती है।
(5) वीर्याचार : संयम-तप आदि में बल एवं पराक्रम का ज्यादा से | ज्यादा उपयोग करना।
उपरोक्त सुविहित आचारों का पालन करते हैं।
पांच समिति : समिति अर्थात -सम्यक् प्रवृत्ति ईर्या समिति : किसी जीव को तकलीफ न हो उसकी सावधानी रखते हुए चलना। | भाषा समिति : शास्त्र की आज्ञानुसार निरवद्य पाप रहित वचन बोलना। एषणा समिति : 42 दोष रहित गौचरी लेना। आदान निक्षेपणा समिति : वस्त्र, पात्र आदि सावधानी से लेना एवं रखना। परिष्ठापनिका समिति : मल, मूत्र, श्लेष्म आदि का सावधानीपूर्वक
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? विसर्जन करना।
आचार्य भगवंत इन पांच समिति का पालन करते हैं। तीन गुप्ति : गुप्ति अर्थात् असत्प्रवृत्ति को रोकना। मनोगुप्ति : मन की अशुभ प्रवत्ति को रोकना। वचनगुप्ति : वाणी की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना। कायगुप्ति : काया की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना। आचार्य भगवंत इन तीन गुप्ति का पालन करते हैं।
पांच समिति एवं तीन गुप्ति मिलकर अष्ट प्रवचन माता कही जाती |हैं। (इसके अलावा दूसरे प्रकार से भी छत्तीस गुण गिने जाते हैं)
उपाध्याय महाराज और उनके पच्चीस गुण : जिनके समीप रहने से श्रुतज्ञान का लाभ हो उसे "उपाध्याय" कहते हैं। वह श्रुत श्री जिनेश्वर देवों द्वारा कहा हुआ है। द्वादशांग रूप इग्यारह अंग और 12 उपांग का ज्ञान खुद को हो और वह दूसरों को पढ़ाये। इसके उपरांत चरण सित्तरी (उत्तमचारित्र) और करण सित्तरी (उत्तम क्रिया) इन दोनों को मिलाकर "उपाध्याय" के पच्चीस गुण इस प्रकार हैं - इग्यारह अंग सूत्र
बारह उपांग सूत्र 1 आचारांग
1 उववाइअ 2 सूयगडांग
2 रायपसेणी 3 ठाणांग
3. जीवाजीवाभिगम समवायांग
न्नवणा 5 भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) 5 जंबूदीव पन्नत्ति 6 ज्ञाता धर्मकथांग
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सूर पन्नत्ति 7 उणसक दशांग
7 चंद पन्नत्ति अंतगड़ दशांग
8 कप्पिया 9 अनुत्तरोववाई दशांग 9 कप्पवडिसिया 10. पण्हावागरणं
10 पुप्फिया 11 विवागसुयं
11 पुप्फचूलिया 12 वह्निदसा
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - दो सित्तरी 1. चरण सित्तरी 2. करण सित्तरी
(इग्यारह अंग और चौदह पूर्व के नाम के अनुसार गिनने पर भी | पच्चीस गुण होते हैं।)
साधु महाराज और उनके सत्ताइस गुण - जो आत्महित को साधते हैं और परहित को साधते हैं अथवा सर्वविरति रूपी चारित्र लेकर मोक्ष के अनुष्ठान को साधते हैं, वह "साधु मुनिराज"। कहलाते हैं।। उनके 27 गुण इस प्रकार हैं -
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प्राणातिपात विरमण 14 रसेन्द्रिय निग्रह मृषावाद विरमण 15 घ्राणेन्द्रिय निग्रह अदत्तादान विरमण 16 चक्षुरिद्रिय निग्रह मैथुन विरमण 17 श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह परिग्रह विरमण
18 लोभ का निग्रह करना रात्रि भोजन त्याग
19 क्षमा धारण करना
20 चित्त को निर्मल रखना पृथ्वीकाय रक्षा
21 वस्त्र वगैरह की पडिलेहना करना अप्काय रक्षा
22 संयम में रहना तेउकाय रक्षा
23 अकुशल मन का निरोध 10 वाउकाय रक्षा
24 अकुशल वचन का निरोध 11 वनस्पतिकाय रक्षा
25 अकुशल काया का निरोध [12 त्रसकाय रक्षा
26 शीतादि परिषह सहन करना |13 स्पर्शन्द्रिय निग्रह 27 मरणान्त उपसर्ग सहन करना
(1) आवश्यक नियुक्ति में बताया है कि निर्वाण साधक योगों कोक्रियाओं को साधते हैं और सभी प्राणियों पर समवृत्ति धारण करते हैं, उस कारण वे "भाव साधु" कहलाते हैं। इसके उपरान्त दूसरे प्रकार से भी सत्ताईस गुण होते हैं।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
नवकार विषयक प्रश्नोत्तरी
प्रश्न 1. अरिहंत परमात्मा के चार अघाती कर्म (वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र कर्म) शेष होते हैं, जबकि सिद्ध भगवंतों के सभी कर्म नष्ट हो गये होते हैं। फिर भी नवकार में अरिहंतों को पहले नमस्कार क्यों किया गया है?
उत्तर : अशरीरी ऐसे सिद्ध परमात्मा की पहचान अरिहंत परमात्मा ही करवाते हैं एवं सिद्ध परमात्मा बनने का मार्ग अरिहंत ही बताते हैं, इसलिए उनका अत्यन्त उपकार होने के कारण उन्हें पहले नमस्कार किया गया है।
प्रश्न 2. अरिहंत की पहचान तो आचार्यादि करवाते हैं तो प्रथम नमस्कार आचार्यों को क्यों नहीं किया गया?
उत्तर : अरिहंत परमात्मा स्वयं बुद्ध बनकर केवल ज्ञान प्राप्त करके शासन की स्थापना करते हैं तभी ही आचार्यों आदि का अस्तित्व संभव है। इसलिए प्रथम अरिहंत को जो नमस्कार किया गया है, वह पूर्णरूपेण उचित ही है।
प्रश्न 3. तीर्थकर के अलावा सामान्य केवली भगवंतों को नवकार के किस पद में नमस्कार किया गया है?
उत्तर : पांचवे पद में नमस्कार किया गया है।
प्रश्न 4. सामान्य केवली भगवंतों ने भी आन्तर शत्रुओं (राग,द्वेष आदि) को नष्ट कर दिया है तो उनका समावेश पहले पद में क्यों नहीं किया गया?
उत्तर : शास्त्रों में "अरिहंत" शब्द तीर्थंकर परमात्मा के लिए ही खास उपयोग किया गया है। इसलिए सामान्य केवली भगवंतों का प्रथम पद में समावेश नहीं किया गया है।
प्रश्न 5. अरिहंत और सामान्य केवली में क्या अंतर है?
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? उत्तर : केवलज्ञान आदि आंतरिक स्वरूप की अपेक्षा से कोई अंतर नहीं है, किंतु अरिहंत परमात्मा के तीर्थकर नाम कर्म के उदय से 8 महाप्रातिहार्य, 34 अतिशय एवं वाणी के 35 गुण आदि होते हैं, वह सामान्य केवली भगवंतों के नहीं होते हैं। अरिहंत परमात्मा चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ की स्थापना करते हैं, सामान्य केवली वैसा कुछ नहीं करते हैं।
प्रश्न 6. छद्मस्थ ऐसे आचार्य-उपाध्याय भगवंतों को तो तीसरे एवं चौथे पद में नमस्कार किया गया है, जबकि सर्वज्ञ ऐसे सामान्य केवली को पांचवे पद में नमस्कार किया गया है। यह कहां तक उचित है?
उत्तर : शासन-गच्छ के सुव्यवस्थित संचालन की जिम्मेदारी आचार्य-उपाध्याय भगवंतों पर होती है। सामान्य केवली भगवंतों पर ऐसी जवाबदारी नहीं होती है। इसलिए ही तो तीर्थकर परमात्मा की देशना पूर्ण होने के बाद उनकी पादपीठ पर बैठकर छद्मस्थ ऐसे भी प्रथम गणधर भगवंत देशना देते हैं, तब सामान्य केवली भगवंत भी इस पद के गौरव को बनाये रखने के लिए उनकी देशना में उपस्थित रहते हैं।
इस तरह व्यवहार नय से आचार्य-उपाध्याय पद का विशिष्ट महत्त्व होने से उन्हें सामान्य केवली भगवंतों से पहले नमस्कार किया जाता है।
प्रश्न 7. गणधर भगवंतों का समावेश नवकार के कौन से पद में होता है?
उत्तर : तीसरे पद में होता है।
प्रश्न 8. वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में कितने सिद्ध भगवंत विचरण कर रहे हैं? केवल संख्या में उत्तर दें।
उत्तर : 0(इस प्रश्न के उत्तर में सभा में से कई प्रत्युत्तर मिलते हैं। उदाहरण 20/170/2 करोड़, असंख्य, अनंत इत्यादि। अरिहंत-सिद्ध और सामान्य केवली के बीच अंतर स्पष्ट नहीं होने के कारण ऐसे उत्तर मिलते हैं। वास्तव में तो सिद्ध परमात्मा अशरीरी होने के कारण विचरण कर ही नहीं सकते है। वे तो सिद्धशिला के ऊपर अरूपी आत्मस्वरूप में
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? विराजमान हैं, जबकि वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में जो विचरण कर रहे हैं वे 20 अरिहंत परमात्मा कहलाते हैं। |. प्रश्न 9. सिद्ध परमात्मा का वर्ण (रंग) कैसा होता है?
उत्तर : इस प्रश्न के उत्तर में बड़ी संख्या में श्रोता लाल, सफेद आदि उत्तर देते हैं। परन्तु वास्तव में सिद्ध परमात्मा अशरीरी, अरूपी होने से उनका कोई वर्ण होता ही नहीं है। परन्तु सिद्ध पद की आराधना हेतु कुछ कारणों से शास्त्रों में आराधना लाल वर्ण से करने को कहा है।
प्रश्न 10. नवकार के पांचवे पद में "लोए" शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर : लोए अर्थात लोक में। अर्थात ऊर्ध्व अधो एवं तीर्छा इन तीनों लोकों में रहे सभी साधु-साध्वीजी भगवंतों को नमस्कार करने के लिए "लोए" शब्द रखा गया है। मेरूपर्वत की तलेटी में आयी समभूतला पृथ्वी से 900 योजन ऊपर ऊर्ध्व लोक गिना जाता है। 900 योजन नीचे अधो लोक गिना जाता है।
प्रश्न 11.अधोलोक एवं ऊर्ध्वलोक में साधु भगवंत का संभव किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर : जंघाचारण एवं विद्याचारण मुनि लब्धि या आकाशगामिनी विद्या द्वारा एक लाख योजन ऊँचे मेरू पर्वत के बीच सोमनस वन वगैरह भाग में रहकर साधना करते हैं, वे ऊर्ध्वलोक में गिने जाते हैं।
पश्चिम महाविदेह की धरती समभूतला पृथ्वी से ढलान में 1 हजार योजन जितनी ढली हुई है। वहां जो साधु-साध्वीजी भगवंत विचरण करते हैं, वे अधोलोक में गिने जायेंगे।
प्रश्न 12. नवकार के पांचवे पद में "सव्व" शब्द किसलिए रखा गया है? ..
उत्तर : सव्व अर्थात् सभी। यद्यपि साहूणं वगैरह शब्द बहुवचन में होने से अनेक साधुओं का समावेश हो सकता है, फिर भी साधुओं में जिनकल्पी, केवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चौदहपूर्वघर, दशपूर्वधर,
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? पुलाक, बकुश, कुशल वगैरह अनेक प्रकार होते हैं। उन सबका समावेश करने हेतु स्पष्ट रूप से "सव्व" शब्द को रखा गया है।
सिंह जैसे चलते-चलते थोड़ी-थोड़ी देर में पीछे देखता जाए, वैसे सिंहावलोकन न्याय से पांचवे पद में रहे 'सव्व" शब्द का संबंध आगे के अरिहंत आदि 4 पदों में समझ लेना चाहिये। "सव्व" का सार्व भी अर्थ होता है। सभी जीवों के लिए हितकारी हों, वे सार्व (तीर्थकर परमात्मा) कहलाते हैं। उनकी आज्ञा में समर्पित हों वह भी सार्व कहलाते हैं। अर्थात् तीर्थकर की आज्ञा को वफादार ऐसे साधु -साध्वीजियों को नमस्कार करने के लिए भी "सव्व" शब्द रखा गया है।
श्री नमस्कार महामंत्र के जाप के बारे में जरुरी जानकारी
किसी भी क्रिया का सम्पूर्ण फल प्राप्त करना हो तो विधिपूर्वक आराधना जरूरी है। किसान यदि विधिपूर्वक बोने आदि की क्रिया करता है, तो ही धान्य रूपी फल को प्राप्त कर सकता है, उसी प्रकार नमस्कार महामंत्र के जाप की विधि संक्षिप्त रूप से समझनी जरूरी है, इसलिए नीचे लिखी हुई बातों को ध्यानपूर्वक पढ़कर अमल में लाने का प्रयत्न करना हितावह है। नवकार महामंत्र का स्मरण किसलिए?
जैसे दवा से रोग शान्त होता है, भोजन से भूख शान्त होती है, उसी प्रकार नवकार के जाप से भी आंतरिक एवं बाह्य अशान्ति दूर होती ही है। अपना अनुभव इस बात का साक्षी नहीं देता, इसका कारण अपनी अज्ञानदशा है।
हम जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसाने वाले कर्म रूपी रोग को पहचान ही नहीं सके हैं। इसलिए सही उपाय काम में नहीं ला सकते हैं। जीवन में पंचपरमेष्ठियों की सच्ची पहचान कर उनकी शरण में वृत्तियों को रखकर, प्रवृत्तियों को शान्ति की दिशा में मोड़ने हेतु नमस्कार महामंत्र का स्मरण करना जरूरी है। नवकार मंत्र की माला किस प्रकार गिननी चाहिये?
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - श्री नमस्कार महामंत्र के जाप में मौलिक शक्ति का विकास करने हेतु अधखुली मुट्ठी के रूप में चार अंगुलियां मोड़कर तर्जनी के बीच के वेढे पर माला रखकर, अंगुठे के ऊपर के वेढे से नख का स्पर्श न हो उस प्रकार मणके घुमाकर जाप करने का शास्त्रीय विधान है।
कैसी माला का उपयोग करना?
नवकार मंत्र के जाप के लिए अट्ठारह अभिषेक की हुई माला, आचार दिनकर के प्रतिष्ठा मंत्र से प्रतिष्ठित और सूरिमंत्र या वर्धमान विद्या से अभिमन्त्रित होनी चाहिये।
किसी के द्वारा गिनी हुई माला से नमस्कार महामंत्र का जाप नहीं करना चाहिये एवं अपनी माला दूसरे को गिनने हेतु नहीं देनी चाहिये।
माला को किसी के हाथ का स्पर्श भी नहीं होने देना चाहिये।
माला रखने के लिए एल्युमिनियम, स्टील, प्लास्टीक की किसी भी प्रकार की डिब्बी का उपयोग नहीं करना चाहिये।
किस प्रकार की माला का उपयोग करना? सूत की माला या चन्दन की माला सर्वश्रेष्ठ है।
प्लास्टीक की माला नहीं गिननी चाहिये। आज बिना समझ से प्लास्टीक की मालाएं बड़ी मात्रा में उपयोग में ली जाती हैं, वह उचित नहीं है। क्योंकि प्लास्टिक बनाने वाली कम्पनियों एवं वैज्ञानिकों से पत्र व्यवहार करने पर स्पष्ट जानने को मिला है कि
"प्लास्टिक पेड़ में से निकलते द्रव्य जैसी वस्तु से बनता है, किन्तु आज के मोहक स्वरूप में तैयार करने हेतु बैल की आंतों का रस वगैरह अत्यंत अशुद्ध द्रव्य काम में लिये जाते हैं। इसलिए प्लास्टिक की माला का एकदम त्याग करने हेतु ध्यान रखना चाहिये। ___ नवकार के जाप में अन्य किन बातों का ध्यान रखना? ॐ श्री नवकार के जाप में एकाग्रता जरूरी है। ॐ माला एंव स्थान तय किये हुए होने चाहिये।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - ॐ एक ही स्थान पर आसन रखना जरूरी है। 8 एक ही माला पर जाप करना चाहिये। ॐ माला गिनते समय बांया हाथ माला को स्पर्श नहीं करना
चाहिये।(दांये हाथ में तकलीफ हो तो छूट) ॐ श्री नवकार का जाप शुरू करने से पूर्व श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ
भगवान तथा शासनपति श्री महावीर भगवान का एवं अनंतलब्धिनिधान
श्री गौतमस्वामी का नाम तीन बार लेना चाहिये। 8 नवकार गिनने के लिए एक ही दिशा का ध्यान रखना चाहिये। ॐ शुद्ध वस्त्र पहनकर नवकार गिनने चाहिये। 2 मालाएं कितनी गिननी? उसकी संख्या निश्चित रखनी चाहिये।
उबासी नहीं खानी चाहिये। 8 मुंह खुला रखकर नवकार नहीं गिनने चाहिये। ॐ उसी प्रकार जाप में होंठ नहीं हिलने चाहिये।
श्री नवकार मंत्र किस समय गिनें? सवेरे 6 बजे, दोपहर 12 बजे, शाम 6 बजे
वैसे ही सवेरे चार बजे से सूर्योदय तक श्रेष्ठ, सूर्योदय से एक घंटे तक मध्यम और सवेरे 10 बजे तक सामान्य कहा जाता है। दिन को 10 बजे से सूर्यास्त के बाद एक घंटे तक का समय विशिष्ट जाप के लिए योग्य नहीं है। (त्रिकाल जाप करने का संकल्प हो तो हर्ज नहीं।
श्री नवकार महामंत्र गिनने के लिए कैसा आसन रखना? सफेद ऊन का आसन रखना चाहिये। श्री नवकार मंत्र के जाप हेतु कोनसी दिशा योग्य?
जाप के लिए पूर्व और उत्तर दिशा अच्छी है। उसमें भी प्रातः 10/ बजे तक के जाप के लिए पूर्व दिशा और सूर्यास्त से एक घंटे बाद के जाप के लिए उत्तर दिशा योग्य है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? श्री नवकार मंत्र कैसे गिने जायें? ॐ शुद्ध होकर, श्वेत वस्त्र पहनकर, अनुकूल स्थान पर भूमि प्रमार्जन करके। ® पूर्व या उत्तर दिशा में आसन पर बैठकर। ॐ सूत की श्वेत माला लेकर, श्वेत कटासना बिछाकर, उणोदरी व्रत
के पालनपूर्वक। @ चित्त को "शिवमस्तु सर्वजगतः" की भावना से वासित करके। 8 दृष्टि को नासिका के अग्र भाग पर स्थापित करके।
धीरे-धीरे उसका प्रत्येक अक्षर पूरे शरीर में घुमे, उस प्रकार से
नवकार का जाप करना चाहिये। ® जाप की संख्या एक ही रखनी चाहिये अर्थात पांच माला गिनने के
नियम वाला पुण्यशाली आराधक छः माला गिन सकता है, किन्तु
पांच से कम नहीं गिनना चाहिये। 8 जाप की माला बदलनी नहीं चाहिये। 8 जाप करते समय शरीर नहीं हिलना चाहिये, कमर मुड़नी नहीं
चाहिये। 8 मानस जाप में होंठ बन्द रहने चाहिये और दांत खुले रहने चाहिये। ॐ उपांशु जाप में होठों का स्पंदन व्यवस्थित रहना चाहिये। 9 भाष्य जाप में उच्चार तालबद्ध रहना चाहिये। ॐ जाप पूरा होने के बाद कम से कम पांच मिनट तक आंखें बन्द
कर उसी स्थान पर बैठा रहना चाहिये। ऐसा करने से जाप-जनित सत्त्व के स्पर्शन का अद्भुत योग साधा जाता है, और कभी भाव
समाधि के अनमोल पल मिल जाते हैं। ® जाप के उपकरणों को पूर्ण बहुमान के साथ पवित्र स्थान पर रखना
चाहिये। 8 उपकरणों के प्रति अपना भाव श्री नवकार के प्रति अपने भाव को
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? असर पहुंचाता है। * जीभ अकेली ही नहीं, परन्तु मन बराबर नवकार गिनना सीख जाये,
उस ओर अपना लक्ष्य रहना चाहिये। ॐ बड़ा भाई छोटे भाई को कविता सिखाये उसी प्रकार अपने को मन
रूपी छोटे भाई को सद्भावनापूर्वक श्री नवकार सिखाना चाहिये। ॐ मन श्री नवकार में लग जाता है तो सभी इन्द्रियां भी उसमें
ओतप्रोत बन जाती हैं। • तैरने वाले का शरीर भीगे बिना नहीं रहता, वैसे ही श्री नवकार में
प्रविष्ट प्राण भी शुभ भाव में भीगते ही हैं। यदि नहीं भीगें तो समझना चाहिये कि अपने प्राणों का अधिकतर भाग नवकार के
बाहर रहता है। ® श्री नवकार गिनते समय नीचे की भावना सतत भाते रहें। "श्री
नवकार के बाहर जन्म, दुःख और मृत्यु है। श्री नवकार के अन्दर
शाश्वत सुखों का महासागर है।" ® "शाश्वत सुख के प्रति अपना यथार्थ पक्षपात हम सभी को जल्दी से जल्दी श्री नवकार के अचिंत्य प्रभाव का पक्षकार बनाये।"
महामंगल श्री नवकार 8 श्री नवकार मंत्र गिनने वाले मनुष्य का पाप नष्ट होता है। @ नवकार मंत्र सुनने वाले मनुष्य का पाप नष्ट होता है। ® नवकार मंत्र सुनाने वाले व्यक्ति का भी पाप नष्ट होता है। 9 अरे! जहाँ-जहाँ इसके श्वासोच्छ्वास का स्पर्श होता है, उनका भी
पाप धुल जाता है। ॐ सभी काल के पापों को नष्ट करने की शक्ति नवकार में है। ● सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने की शक्ति नवकार में है। * सभी लोगों के पापों को नष्ट करने की शक्ति नवकार में है।
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क्या संसार
कार
- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ॐ नवकार मंत्र अर्थात् मंथन द्वारा प्राप्त किया हुआ शुद्ध घी। नवकार मंत्र की आराधना के वातावरण से विराधना की दुर्गन्ध दूर होती है।
आराधना की सुवास फैलती है। 9 नवकार मंत्र की महिमा से विघ्न टलते हैं, आत्मा में निर्मलता
आती है, वांछित फलित होते हैं और अग्नि जल में परिवर्तित हो
जाये, ऐसी इस मंत्र की महिमा अपरंपार है। ॐ तीनों काल में नवकार मंत्र शाश्वत है, सनातन है। दुनिया के सभी
शब्द बदल जायें, किन्तु नवकार मंत्र के शब्द तीनों काल में नहीं बदलते हैं। श्री नवकार महामंत्र के जाप की असर कब?
जैसे छिछले बर्तन में बिलौना नहीं होता, वैसे ऊपर-ऊपर से श्री नवकार का जाप नहीं होता है। जाप का एकाग्रता जितना ही गंभीरता से संबंध है। बीज को धरती में बोना पड़ता है, वैसे ही नवकार के प्रत्येक अक्षर को उच्च भावपूर्वक मन के द्वारा प्राणों में विराजमान करना चाहिये।
अक्षर में रहा हुआ चैतन्य, प्राण का योग प्राप्त कर प्रकट होता है, उससे जाप करने वाले पुण्यशाली की भावना अधिक उज्जवल बनती है, और स्वाभाविक रूप से सर्वोच्च आत्मभाव-सम्पन्न भगवंतों की भक्ति की ओर मुड़ती है।
श्री नवकार में पंच परमेष्ठी भगवंत विराजमान हैं। ऐसा जानने के बावजूद उनके प्रति अपने परम पूज्य भाव में यांत्रिकता और औपचारिकता कायम रहती है, तो वह वास्तव में अपनी शोचनीयता गिनी जायेगी। ...
. पंच परमेष्ठी भगवंतों को ही याद करने के अवसर पर अन्य-अन्य बातें अपने मन पर कब्जा कर लेती हैं और हम उसे निभा लेते हैं, तो वह अपनी कायरता की निशानी है।
पंच परमेष्ठी भगवन्तों का भावपूर्वक सतत स्मरण करने मात्र से आत्मा को जो अकल्पित लाभ होता है, उसका एक लाखवां हिस्सा भी
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अन्य विषय को भावपूर्वक समर्पित होने के बावजूद नहीं मिलता है।
पंच परमेष्ठी भगवन्तों को उल्लासपूर्वक याद करने से आत्मा के पास जाया जाता है, आत्मा के ज्यादा नजदीक जाने से आत्मभाव पोषक प्रवृत्तियों में हदय लीन होता है, विषय कषायों को भाव देने के परिणाम मन्द हो जाते हैं, स्वाध्याय, संयम तप आदि में अद्भुत वेग आता है और बहिर्भावों के अनुकूल की विचारधारा ज्यादा सूक्ष्म बनकर आत्मभाव का पक्ष करती है।
भव को विविध प्रकार के भाव देकर हम भाव से छोटे-तुच्छ न बने होते, तो श्री नवकार अपने को तुरन्त फलित होता दिखाई देता, उसी नवकार से हम पूरे विश्व में देवाधिदेव श्री अरिहंत परमात्मा की सर्वोच्च | भावना की पूरी-पूरी प्रभावना कर सकते। भूत काल में अपने पूर्वजों ने प्रभुजी के परम तारक शासन की प्रभावना के जो महान कार्य किये हैं, उस प्रकार के सभी मंगलमय कार्य आज हम भी कर सकते।
('अखंड ज्योत" में से साभार)
नवकार महामंत्र का शुद्ध मेल तथा शुद्ध उच्चार |
जैन कुल में जन्मे प्रत्येक मनुष्य को नवकार तो पालने (झूले) में ही सीखाया जाता है। उसके बावजूद उसका शुद्ध मेल तथा शुद्ध उच्चार शायद कई प्रौढ़ उम्र में पहुंचे हुओं को भी नहीं आता है।
सामान्य शब्दों में भी हस्व-दीर्घ या अनुस्वार वगैरह के परिवर्तन से अर्थ बदल जाता है, तो मंत्राक्षरों में अशुद्ध उच्चार तथा अशुद्ध मेल से लाभ न हो, कम लाभ हो या कभी गैरलाभ भी हो तो आश्चर्य क्या?
नीचे के कुछ उदाहरणों से मेल शुद्धि का महत्त्व स्पष्ट हो जाएगा। सुर = देव - सूर = अवाज चिर = लम्बा समय - चीर = वस्त्र
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? -
दिन = दिवस - दीन = गरीब मद = अहंकार _ - मंद = धीरे पवन = हवा - पावन = पवित्र पत्र = कागज - - पुत्र = लड़का जनवाणी = लोकभाषा - जिनवाणी = जिनेश्वर भ. की वाणी जिन = भगवान - जीन = राक्षस
यहां नवकार महामंत्र के प्रत्येक पद के मेल के नौ-नौ विकल्प |पेश किये गये हैं, उसमें से जो एक-एक विकल्प सही है उसके आगे
ऐसी निशानी की गयी है। उसके अनुसार अन्य विकल्पों में क्या-क्या भूल है, वह वाचकों को स्वयं निर्णय करना है।
(2) 1.नमोरिहंताणं
1.नमो सीद्धाणं 2.नमो अरीहताणं
2.नमो सिधाणं 3.नमो अरिहंताणम्
3.नमो सिद्धाणम् 4.नमो अरिहंतागुं
4.नमो सव्व सिद्धाणं 85.नमो .अरिहंताणं
5.नमो सीधाणं 6.नमो अरिअंताणं
86.नमो सिद्धाणं 7.नमो अरिहं ताणं
7.नमो सिध्धाणं 8.नमोरिअंताणं
8.नमो सिदधाणं 9.नमोअरिहंताणं
9.नमोसिद्धाणं
(4) 1.नमो आयरीयाणं
81.नमो उक्ज्झायाणं 2.नमो आरियाणं
2.नमो उज्जायाणं 3.नमो आररियाणं
3.नमो उव्वज्झयाणं
(3)
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(5)
जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? 94.नमो आयरियाणं
4.नमो ऊव्वज्झयाणं 5.नमो आयरियाणम्
5.नमो उवझ्झायाणं 6.नमो आयरिआणं
6.नमो उक्ज्झायाणम् 7.नमो आय रियाणं
7.नमो उवजायाणं 8.नमो आईरियाणं
8.नमो उक्झयाणं 9.नमोआयरियाणं
9.नमोउक्ज्झायाणं
(6) 1.नमो लोये सव्व साहुणं 1.एसो पंच नमोकारो 2.नमो लोये सव साहूणं 2.एंसो पंच नमुकारो 3.नमो लोए सव्व साहूणं 93.एसो पंचनमुक्कारो ®4.नमो लोए सव्वसाहूणं 4.एषो पंच्च नमुक्कारों 5.नमो लोय सव सावेणं 5.एषो पंच नमुक्कारो 6.नमो लोए शव्व साहूणं 6.एसो पंच नमुक्कारो 7.नमो लोए सव्वसाहूणम् 7.एसो पंच नमुकारो 8.नमो लोएसव्वसाहूणं
8.एसो पंच नमोक्कारो 9.नमो लोहे सव्व साहूणं 9.एशो पंचनमुक्कारो (7) 1.सव्व प्पाव पणासणो
1.मंगलाणं च सव्वेसिम् 82.सव्वपावप्पणासणो
2.मंगलाणं च सव्वेसी 3.सव पाव पणासणो
3.मंगणाणं च सव्वेसिं 4.सव्व पाव प्पणासणं
4.मंगलाणंच सव्वेसिं 5.सव प्पाव पणासणो
5.मंगलाणंचसव्वेसिं 6.सवपावपणासणो
96.मंगलाणं च सव्वेसि
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? 7.शव्व पाव प्पणासणो
7.मंगलाणं च सव्वेसि 8.सव्व पाव प्पणासणो
8.मंगलाणं च सव्वेसिंह 9.सव्वपावप्पणाशणो
9.मंगलाणं च सवेसिं
-(9)1.पढम होवई मंगलं
6.पढ़महोइ मंगलं 2.पढम होइ मंगलम्
7.पढ़म् होइ मंगलं 3.पढमंग होवई मंगलं
8.पढ़मं हवइ मंगलं 4.पढ़मम् हवई मंगलं
99.पढम होइ मंगलं 5.पढम होई मंगल
89. पढमं हवई मंगलं नोट : नवकार महामंत्र के अन्तिम चार पदों को चूलिका के रूप में जाना जाता है। वह अनुष्टुप् छंद में होने से छंदशास्त्र के नियमानुसार उसके प्रत्येक चरण में 8-8 अक्षर होने चाहिये। अन्तिम पद में "होइ" बोलने से इस नियम का पालन होता है। इसलिए अचलगच्छ की सामाचारी में तथा कुछ स्थानकवासी एवं कुछ दिगम्बरों में "होइ" बोला जाता है। जबकि शेष "हवइ' बोलने वाले बताते हैं कि आर्ष प्रयोग में कभी 9 अक्षर भी अपवाद के रूप में शास्त्रों में दिखाई देते हैं। उदाहरण:- दशवैकालिक सूत्र की प्रथम सजझाय में "भमरो आवियइ रसं' यहां 9 अक्षर होते हैं। किन्तु आर्ष प्रयोग होने से दोष रूप नहीं है।
इसलिए इस बारे में तत्त्व (सही) तो केवली भगवंत ही जानते हैं। "होइ" तथा "हवइ के अर्थ में व्याकरण की दृष्टि से कोई अंतर नहीं है। इसलिए सर्वज्ञ से रहित ऐसे इस क्षेत्र में अभी तो सभी पर-मत सहिष्णु बनकर अपने-अपने गच्छ की सामाचारी के प्रति वफादार रहें, यही मध्यस्थ बुद्धि से सोचने पर हितावह लगता है। - सम्पादक
नवकार जाप में एकाग्रता लाने के विविध उपाय ___ आज बड़ी संख्या में आराधकों की शिकायत रहती है कि, 'नवकार की माला तो गिनते हैं, किन्तु चाहिये उतनी एकाग्रता नहीं आती है। मौन
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - | एकादशी की सज्जाय में कहा है कि -
"कर उपर तो माला फिरती, जीभ फिरे मुख मांही। पण चितडूं तो चिहुं दिशिए डोले, इणे भजने सुख नाहीं।।"
यदि ऐसे भटकते चित्त से जाप करने से कोई लाभ न होता हो तो, क्या जाप करना छोड़ दें? जाप करते समय ही विकल्प क्यों ज्यादा सताते हैं? इत्यादि।
_इसका जवाब यह है कि जैसे गंडों के शिकंजे में फंसा आदमी जब छुटने के लिए प्रयास करता है, तब गुंडे अपनी पकड़ ज्यादा मजबूत बनाते हैं। वैसे अनादिकाल से इन राग-द्वेष रूपी गुंडों के शिकंजे में फंसी आत्मा जब नवकार के आलंबन से निकलने का प्रयास करती है, तब यह स्वाभाविक है कि वे ज्यादा तूफानी होकर आत्मा को कमजोर बनाने का प्रयास करें। परन्तु ऐसे मौके पर बल का प्रयोग न करते हुए धीरजपूर्वक कला से काम किया जाये, तो ही सफलता मिल सकती है। इसलिए ज्ञानी भगवंतों ने चंचल चित्त को एकाग्र करने हेतु अनेक उपाय बताये हैं। उसमें से कुछ महत्त्व के उपाय यहां पेश किये जा रहे हैं। उसके वास्तविक महत्त्व को पढने के बाद आचरण में लाने पर ही पता चलेगा।
(1) नवकार लेखन : हम सब का अनुभव है कि लिखने के समय प्रायः चित्त में लेखन संबंधी विचारों के अलावा अन्य विचार प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इसलिए अच्छी अभ्यास पुस्तिका या डायरी लेकर प्रतिदिन नियमित रूप से अच्छे अक्षरों में शुद्ध मेलपूर्वक यथाशक्ति नवकार लिखने की आदत डालनी चाहिये। उससे हाथ एवं आंखें पावन होती हैं और चित्त की चंचलता कम होने लगती है। आकर्षक लिखावट के लिए विविध रंग की पेनों एवं रंगीन स्याही का भी उपयोग किया जा सकता है।
इस प्रकार लिखी हुई डायरियों को अच्छे स्थान पर रखकर धूप भी किया जा सकता है। आशातना के गलत भय से पानी में परठने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी डायरियों का संग्रह किया हुआ हो तो घर के दूसरे सदस्यों को भी ऐसा करने की भावना जाग्रत होती है। पीछे की
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - जिन्दगी में या अन्तिम समय में अपनी आत्मा सन्तोष भी अनुभव कर सकती है कि मेरे हाथों से कम से कम इतना सुकृत तो हुआ। इस प्रकार लिखित जाप की शुरूआत करने से पहले ही अपना शब्दों का मेल तो शुद्ध है या नहीं, इसका ऐसा गुरुगम से निर्णय कर लेना चाहिये।
(2) नवकार वांचन : लेखन की तरह वांचन में भी चित्त की आसानी से एकाग्रता आ जाती है। इसलिए नवकार की आकर्षक तस्वीर, स्टीकर, या पुस्तक सामने रखकर प्रथम कक्षा के छात्र की तरह एक-एक अक्षर अलग-अलग पढ़कर रोज कम से कम 12 नवकार या उससे ज्यादा बार (108 वगैरह) नवकार पढ़ने का अभ्यास करना चाहिये। इससे आंखें पवित्र बनती हैं और चित्त की चंचलता कम होती है।
नवकार वांचन के लिए अपने हाथ से लिखी हुई नवकार की डायरी का उपयोग करने से नवकार लेखन की सार्थकता भी होगी। नवकार वांचन में एक बात खास ख्याल में रखने योग्य है कि जब मुंह से जिस अक्षर का उच्चारण होता है तब दृष्टि भी उसी अक्षर पर होनी चाहिये। उच्चार शुद्धि की आवश्यकता
नवकार लेखन में मेल की शुद्धि की आवश्यकता के बारे में आगे विचार किया। ऐसे ही नवकार मंत्र के वांचन के लिए उच्चार शुद्धि की मुख्य भूमिका है। अपने शरीर में एवं समस्त विश्व में पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश यह पांच महाभूत व्याप्त हैं। नवकार मंत्र के शुद्ध उच्चार से जो आन्दोलन उत्पन्न होते हैं, उनका पांच महाभूतों पर अनुकूल शुभ असर होता है। उसी प्रकार उसके अशुद्ध उच्चार से समस्त विश्व के वातावरण पर प्रतिकूल असर होता है। इस बारे में नवकार मंत्र के विशिष्ट आराधक श्राद्धवर्य श्री दामजीभाई जेठाभाई, (कच्छ-सुथरी) की प्रेरणा से विदेशों में प्रयोगशाला में सफल प्रयोग भी हुए हैं। इसलिए गुरुगम से शुद्ध उच्चार सीख लेना चाहिये।
यहां शुद्ध उच्चार के लिए जरूरी कुछ सूचन दिये गये हैं। जहां जहां जोडाक्षर आते हैं वहां-वहां, जोडाक्षरों पर भार न देकर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - जोडाक्षर से पहले जो अक्षर होता है उसके ऊपर झटका लगाकर इस प्रकार बोलना चाहिए कि जिससे जोडाक्षर में से पहला आधा व्यंजन उसके साथ खींच जाये। उदाहरण :-" नमो सिद्धाणं" का उच्चार करते समय 'द्धा' पर भार न देते हुए 'सि' पर झटका लगाकर बोलने से 'द्धा' में से 'द्' भी उसके साथ खींच जाता है। अर्थात् "सिद्...धाणं" इस प्रकार बोलने से सही उच्चार हो सकता है।
पांचवे पद में "सव्व" शब्द में "व्व" जोडाक्षर है इसलिए 'स' को झटके के साथ बोलना चाहिये। उसके स्थान पर साधारण रूप से बोला जाये तो 'सव' अर्थात शव = मुर्दा ऐसा अर्थ होने से लोक में रहे मुर्दा साधुओं का नमस्कार हो।" ऐसा अनर्थकारी विचित्र अर्थ होगा। इसलिए "सव्व" का उच्चार शुद्ध होना चाहिये।
हस्व अक्षर हो वहां छोटा उच्चार करना चाहिये। उदाहरण :-चतुर्थ |पद में "उ"हस्व है। फिर भी कुछ लोग उसे लम्बाकर झटके के साथ उच्चार करते हैं, वह गलत है।
दीर्घ अक्षर हो वहां पर थोड़ा लम्बा उच्चार करना चाहिये। उदाहरण:- पांचवे पद में "हू" दीर्घ है, परन्तु कई लोग उसका ट्रंका उच्चार करते हैं, वह अशुद्ध गिना जाता है।
(3) नवकार की तालबद्ध धून या गाना : जिस प्रकार व्याख्यान के प्रारंभ में मंगलाचरण में रागपूर्वक नवकार बोला जाता है उस प्रकार से या दूसरे भी रूप से मधुर राग से एक समान तालपूर्वक हमेशा थोड़ी देर भावपूर्वक नवकार की धून या गान करने से भी चित्त की चंचलता कम होकर आह्लाद उत्पन्न होता है।
(4) पश्चानुपूर्वी नवकार जाप : कैदखाने आदि बन्धन. वगैरह प्रसंगों में पश्चानुपूर्वी या उल्टे क्रम से नवकार के जाप का शास्त्रीय विधान है। पद से एवं अक्षरों से इस तरह दो प्रकार से पश्चानुपूर्वी का
जाप नीचे लिखे अनुसार किया जा सकता है। पश्चानुपूर्वी जाप से भी |चित्त की चंचलता कम होती है। पद से पश्चानुपूर्वी नवकार अक्षरों से पश्चानुपर्वी नवकार
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पढम होइ मंगलं
लंगमं इहो मंढप मंगलाणं च सव्वेसिं सिंव्वेस च णंलागमं सव्वपावप्पणासणो : णोसणाप्पवपाव्वस एसो पंचनमुक्कारो
रोक्कामुनचपं सोए नमो लोए सव्वसाहूणं णंहूसाव्वस एलो मोन नमो उवज्झायाणं
णंयाज्झावउ मोन नमो आयरियाणं
णंयारियआ मोन नमो सिद्धाणं
णंद्धासि मोन नमो अरिहंताणं
णताहरिअ मोन पश्चानुपूर्वी जाप में नौ या प्रथम पांच पदों का जाप भी किया जाता है।
(5) अनानुपूर्वी नवकार जाप : नवकार के नौ पदों को पहले से क्रमसर बोला जाये उसे पूर्वानुपूर्वी कहा जाता है। अन्तिम पद से प्रारंभ करके क्रमशः बोला जाये तो पश्चानुपूर्वी कहा जाता है। परन्तु बिना क्रम बोला जाए उसे अनानुपूर्वी कहा जाता है। उसके लिए एक छोटी सी पुस्तिका आती है, उसमें प्रत्येक पृष्ठ पर 9 अंक अलग-अलग रूप से व्यवस्थित लिखे गये हैं। उदाहरण:- '7' लिखा हुआ हो तो सातवां पद "सळ्यावप्पणासणो" बोलना, "3" लिखा हुआ हो वहां तीसरा पद "नमो आयरियाणं' बोलना। चित्त की चंचलता को भगाने के लिए यह भी सरल तथा सचोट उपाय है। अधिकांश तो इस हेतु की किताब को "आनुपूर्वी" कहते हैं, परन्तु यह अशुद्ध है। सही शब्द "अनानुपूर्वी' है।
(6) कमलबद्ध नवकार जाप : मन्दिर में नवपदजी का गठ्ठा होता है उस प्रकार का अथवा नीचे की आकृति में दर्शाये अनुसार आठ पंखुड़ियां तथा मध्य में कर्णिका युक्त कमल की कल्पना कर उसमें नवकार के पद स्थापित करके प्रथम खुली आंखों से चित्र देखकर, उसके बाद बन्द आंखों से हदय के आसपास के प्रदेश में कमल की कल्पना करके नवकार का जाप करने से भी चित्त की चंचलता कम होती है।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
पढम होइ
नमो सिद्धाणं
एसो पंच
मंगलं
नमुक्कारो
नमो लोए
। सप्व साहूणं
नमो अरिहंताणं
नमो आयरियाणं)
मंगलाणं
सव्वेसिं,
उवज्झायाणं
सव्व पाव प्पणासणो
(7) शंखावर्त
नन्द्यावर्त जाप
C.:.
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - __ दाहिने हाथ की चार अंगुलियों के 12 वेदों पर ऊपर की आकृति में दर्शाये क्रमानुसार अंगूठे की मदद से 12 नवकार गिनकर बायें हाथ की अनामिका अंगुली के बीच के वेढ़े पर बायें हाथ का अंगूठा रखना। फिर दूसरी बार दाहिने हाथ पर नन्द्यावर्त के क्रम अनुसार 12 नवकार गिनकर बांये हाथ का अंगुठा कनिष्ठिका अंगुली के बीच के वेढ़े पर खिसकाना। इसी क्रम से दाहिने हाथ पर 12-12 नवकार 9 बार गिनकर बायें अंगुठे को आकृति में दर्शाये अनुसार शंखावर्त की ओर खिसकाने से कुल 108 नवकार होते हैं।
. जो इस प्रकार प्रतिदिन 108 नवकार गिनते हैं, उसे पिशाच, भूत-प्रेत वगैरह परेशान नहीं कर सकते हैं, ऐसा शास्त्रीय विधान है। बस-रेल वगैरह की मुसाफिरी के दौरान माला के बदले इस प्रकार शंखावर्त-नन्द्यावर्त जाप सुगमता से किया जा सकता है।
(8) चक्रों में नवकार जाप : अपने शरीर की करोड़रज्जु (मेरुदण्ड) में नीचे के मणके से लेकर ब्रह्मरंध्र तक अलग-अलग स्थान पर सूक्ष्म सात चक्र अर्थात चैतन्य केन्द्र आये हुए हैं, ऐसा योग-वेत्ता साधक बताते हैं। उसमें सबसे नीचे के "मूलाधार चक्र के पास "कुंडलिनी' नाम की दिव्यशक्ति अनादिकाल से सुसुप्त अवस्था में पड़ी है। साढे तीन सर्प के आंटों (मोड़ों) की तरह उसकी सूक्ष्म आकृति है। जब ध्यान-जाप-भक्ति आदि द्वारा वह जाग्रत होकर ऊर्ध्वमुखी बनकर क्रमशः चक्रों का भेदन करती-करती ब्रह्मरंध्र में आये हुए सहस्रारचक्र में प्रवेश करती है, तब साधक को समाधि दशा में आत्म साक्षात्कार हो सकता है। कुंडलिनी शक्ति सरलता से उर्ध्वगमन कर सके, उसके लिए बीच में आते चक्रों का शुद्धिकरण अनिवार्य है। उनकी शुद्धि के लिए उन-उन चक्रों में नवकार का जाप सहायक बन सकता है, ऐसा अनुभव साधकों के पास से जानने को मिला है। इसलिए नीचे बताये अनुसार चक्रों में नवकार जाप किया जा सकता है। पद चक्र
स्थान नमो अरिहंताणं आज्ञा चक्र भ्रकुटियों के मध्य-तिलक के स्थान पर
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नमो सिद्धाणं सहस्रार चक्र ब्रह्मरंध्र में -चोटी रखने के स्थान पर नमो आयरियाणं विशुद्धि चक्र गले में -कंठमणि के स्थान पर नमो उवजझायाणं अनाहत चक्र हदय के पास में नमो लोए सव्वसाहूणं मणिपूर चक्र नाभि के पास में एसो पंचनमुक्कारो स्वाधिष्ठान चक्र नाभि से आठ अंगल नीचे सव्व-पावप्पणासणो स्वाधिष्ठान चक्र नाभि से आठ अंगुल नीचे मंगलाणं च सव्वेसिं मूलाधार चक्र करोड़ रज्जु के अन्तिम मणके
के पास पढम होइ मंगलं मूलाधार चक्र करोड़ रज्जु के अन्तिम मणके
के पास . उपरोक्त चक्र मुख्य रूप से करोड़ रज्जु के अन्दर के भाग में जानना। पद्मासन, अर्ध पद्मासन, या सुखासन में सीधे बैठकर, बन्द आंखों से उपयोग को उन-उन चक्रों के स्थान में क्रमशः लेकर नवकार का जप हमेशा 108 बार करने से अनुक्रम से चक्रों में रही अशुद्धि दूर होती है। चित्त की चंचलता कम होती है। क्रमशः कुंडलिनी जाग्रत होकर ऊर्ध्वगमन कर आज्ञाचक्र से आगे जाते ध्यान-समाधिदशा के अनुभवपूर्वक आत्मानुभूति हो सकती है। एक एक चक्र, में एक एक पद के स्थान पर पूरे नवकार का भी जाप किया जा सकता है।
(9) अर्थ के साथ नवकार जप : नवकार मंत्र का शब्दार्थ तथा विशेषार्थ जानने से जप करते समय पंच परमेष्ठि भगवंतों के प्रति अत्यंत अहोभाव-समर्पण भाव उत्पन्न होने से चित्त सरलता से स्थिर रह सकता है। इसलिए निम्नोक्त प्रकार से अर्थ सहित जप भी किया जा सकता है। नमो अरिहंताणं
अरिहंत भगवंतों को नमस्कार हो नमो सिद्धाणं
सिद्ध भगवंतों को नमस्कार हो नमो आयरियाणं
आचार्य भगवंतों को नमस्कार हो नमो उज्झायाणं
उपाध्याय भगवंतों को नमस्कार हो नमो लोए सव्वसाहूणं
लोक में रहे सभी साधु-साध्वीजी भगवंतों को नमस्कार हो
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? एसो पंचनमुक्कारो
इन पांचों (परमेष्ठि भगवंतों को) को
किया गया नमस्कार सव्व-पोवप्पणासणो - सभी पापों का नाश करने वाला है। मंगलाणं च सव्वेसिं - और सभी मंगलों में पढम होइ मंगलं - प्रथम मंगल है।
इसके अलावा पंच परमेष्ठी भगवंतों का अत्यंत अद्भुत बाह्य एवं अभ्यंतर स्वरूप, उनके विशिष्ट सद्गुण तथा अपने ऊपर उनके अगणित उपकारों का विस्तृत ज्ञान गुरुओं से एवं सद्वांचन द्वारा प्राप्त कर जप करने से उस उस पद को बोलते समय उन उन परमेष्ठी भगवंतों का स्मरण आंखों के सामने आता है तथा चित्त बाहर भटकने से स्वतः रुक जाता है।
इसलिए वहां (पूर्व में) पंच परमेष्ठी भगवंतों के 108 गुणों का स्वरूप दर्शाया गया है। जप के अलावा के अन्य समय में कभी शांति से बैठकर, आंखें बन्दकर पंच परमेष्ठी भगवंतों के गुणों की अनुप्रेक्षा करने से अवर्णनीय आनन्द की अनुभूति हो सकती है।
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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
| कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट के प्रकाशन
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* जैना हैये श्री नवकार, तेने करशे शुं संसार? (5वीं आवृत्ति)
* 2 शिवं सुन्दरम् ।।3 सर्व मंगल मांगल्यं
* 4 पर्वो नुं भूषण, जीवन नुं आभूषण 15 संसार नुं मरण, मुक्ति नुं शरण 16 मने जवा दो, हुं नहीं अटकुं
★7 सरस्वती उपासना 18 निकला सूरज हुआ सवेरा
★9 श्री शत्रुजय गुणस्तवमाला * 10श्री वर्धमान शक्रस्तव (द्वितीयावृत्ति) (नित्य स्वाध्याय) ★11गिरनार मंडनश्री नेमिनाथ गुणगुंजन ★ 12MIRACLES OF MAHAMANTRA NAVKAR *13प्रभु साथे प्रीत ★ 14बहुरत्ना वसुंधरा भाग-1
★ 15बहुरत्ना वसुंधरा भाग-2 116 बहुरत्ना वसुंधरा भाग-3-4 ★17बहुरत्ना वसुंधरा (गुजराती) भाग 1-2-3-4(संयुक्त)
*18बहुरत्ना वसुंधरा (हिन्दी) भाग 1-2-3(संयुक्त) P★ 19 जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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नोट : = यही पुस्तकें वर्तमान में उपलब्ध हैं।
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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - प.गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा. द्वारा लिखित/संपादित साहित्य की सूचि
मूल्य : रु. ॥ दादा श्री कल्याण सागरसूरि जीवन चरित्र (हिन्दी)
2 आराधना दीपिका 3 देश विरति दीपिका 4 श्रावकजन तो तेने रे कहिए 5 श्रावकना 12 व्रत (चार्ट) 6 श्रावकना 21 गुण (चार्ट) 7 14 नियम धारो (चार्ट)
8 मनवा! धर तूं नवपद ध्यान 19 चाह एक, राह अनेक
★ 10श्री शत्रुजय गुण स्तवमाला H★|दर्शन-वंदन-सामायिक सूत्र (अंग्रेजी-हिन्दी-गुजराती)
12 भक्ति सुधा ★ 13जेना हैये श्री नवकार, तेने करशे शुं संसार? (पांचवा संस्करण) 60 ★14श्री वर्धमान शक्रस्तव (सार्थ) (द्वितीय आवृत्ति)
सदुपयोग * 15MIRACLES OF MAHAMANTRA NAVKAR ★ 16गिरनार मंडन श्री नेमिनाथ गुण गुंजन ★17प्रभु साथे प्रीत 18 आराधना वधारो,जीवन सुधारो *19बहरत्ना वसंधरा भाग-1 20 बहुरला वसुंधरा भाग-2 21 बहुरला वसुंधरा भाग-3-4 *22बहुरला वसुंधरा (भाग 1 से 4 संयुक्त-गुजराती) : *23बहुरला वसुंधरा (भाग 1 से 3 संयुक्त- हिन्दी) *24जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ★ 25चातुर्मासिक आराधना प्रदीपिका (हिन्दी)
* यही किताबें हाल में उपलब्ध हैं।
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田川は山田 会は 出月日田 注記 明日はロッ料! 日日日日日 ( 池田山は円の中日以上 山口日日日日日日日日日日目 日当日通常温品 वरदान GYAH FAR!! मैं तुम्हारे चरणों में ऐसी प्रार्थना तो लेकर नहीं आया हूँकि "आपत्तियों से रक्षा करो"लेकिन आपत्तियों से डऊँ नहीं ऐसा 日日日日日日日日日中中 は、一日中に日は彼女はははー 1月月月月月月月月月月月月月月ははははは日] 時にははははは 日吉aram Haman 日日日日日日日日日日 mic 平日日中は日田店 日に日日日日日日日日 山田田口は田中日は 田中は日は日は田中由ははははは (はははは 3月11日ははははははははは 3月5日ははははははは当に 当日は1日ははははははのはお店 「はははは土日は1日は 「ははははは口日日日日日日出子市 日田ははははは日ははははは 用は当:山田由田由田区田 , 国1日目は日に日は西に面 白 味は はははは出社日に日(日)は 「日目は「日以内には無理にははは!! 田中日付は年月日日日日日日日日日日日日日日日江国は日日)2日目は日本は海道目的 1日はははははは口には出浜店 「ははははほははははははは)内は、 に行動は口:はははははは 1日ははははははははは在日 日日日日日日日日日日日日日日 東京ははははのはははははは台店 在日中国は日に日に1日目です 22:23:37: 55 「はははははははは田はははは 位田中は日中は日中国国独国は日市店 日に日に日日日日日日日日日 現在)日日日日日日日日日日日1月13日11月31日1日 はははははははははははは :114011年0日は日 はははははははは日出生日 はははははははははは! TommitHOURTERETTERROR:RETTER1H71:41: 15日日日日日日日日田山田 由は日三日前には近日目は 「ははは31日日日日日日日 おははははははははCRTTHEH 1日3回は中国は日ははは はははは154312BBBBはははのは日は1日にお店に は日は日中は日中中日日日日ロ川は中国 出国はTHIFLATO この日は1日目! 1月1日は1日日日日日日日日 う時間が1日 目の山行日日田市田町 新品で4~18:強い! 日常日目) 1日目ははははははのは生 日日日日日日日 宿泊日の前日用 日日日日日日日日日日日日日 日日日日日日日日日日目店 日日日日日日中は日中は日目( 1日中出し10日目 出店時には 日に日本国内で日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 はははは 特番出品は当日inari25 想以内に担任田はははは H 日 出品中では50: 30は IEBiniladinia日時 日日日日日日日日に日に日に HOTOTコンサーnnnnn11700円開きVIII部5万1円 毎日12時間くらえるKIRAIGO アイコン 一方は当日にはははははははははは! 日 本ななし ( *日日日日日日日出 , 5mm! 田く 当日日日日日日日日日日日日日日日日日日 川田は国立国道1 時間:当日日日日日 日日日日日日日日日日日日日日日日日 PETERRESTRE TEL:B11日はははは ☆日日日日日日日ははははははははの 日日日日日日日日日日日日日日日: 15日日日日日日日日は明日は日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 三日中は日和田山市立日野市日野日出ロード名前日野日出谷 出すのはな虫士山は日に日にはしない日は中国四国には日田日日日日日日日日日日日日 日日日日日日日日日日日日日日 F1353-HF1R3H26日13:HHH11ACにはHITE 三日目は山口日日日日日日日日日日日立イン マフラー TETITエンタツ用女は自国に日川日日日日日日日日日 1日日日日日日日日日日日日日日日前 日に 日日日日日は日日日日日日日日日: 無理由はははは日中中日はははは! 6年セールまたはTEM10用土日は2日、 13日(日)ETHETROSETTEGHETTER 日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 日野日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 3日日日日日日日日日日日日 年に田中将官用品内田は中日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日の出はははははははは 三田市白石は在日は日は、 13日にはははははははははははははは虫はははお出ははははははは成田土はははははははははははははははははははははははははは当日当日の日は5日ははははははははははははは 日日日日日日日日日日日 はははははははははのは1月5日1月3日日日日日日日日日日日日日日 "IBSH01HHH日は山田は日中 出目はTPPIは3日間は 2日目は (E 4 000 anの 三HHHH日日日日日日日ははははは 日 日日日日日日日日日日日日日日 日日日日日日日日日日日日日日日 三日日日日日日日日日日 コモロははなは日は17日目: 日日日日日日日日日日日日日日日日エット 無期間限たちが日中は比はた40(SH、Mari こははははははははははははは 日中は日当日は当日出出出出出出当日日日日日日日日日日日日中中中中日用 当日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日田 日生日は1日目 二日目には目 おれははははははは! STAHEIREITのははははは) अपने दुःखों से पीड़ित चित्त की सांत्वना के लिये मैं 中田玉田生田日出山 強目指品 当日は 日は1日中中日日日日日日 出川はははははははは生器用す COUCHIHIAGGS おくと間でグリップ 1由日は日中は11日日日日日日日) 日日日日日日日日日日日記 STARRAHは日ははははは! ははははは安田は 一日中中日は日日日日日出日中中日 -324日はHEARTERHARRIES JR川口ははははははははどは ■日が日中は日は100円 तुम्हारे द्वार पर नहीं आया हूँ / लेकिन कर्म के विपाको को सहने की शक्तिका तो वरदो! 岩谷田日明は当時行に口由はLE 31日日日日日日日日日日日日に、 20111100日日日日日日生 K5日日日日日日日日日日まで 日は日目! 出品は日中中日 日日日日日日日日日日日日日: THREHHHHHBは日)ははー 出品商品は当日日日日日 日川日は1日ははははははー 日当たりはカは 円で売品1日目は 当日は日中中日田口国日 20日目の日はロー 日日日日日日日日 山口日日日日日日日日日日日日日日日日日日日台 日日日日日日日日日日日日日日日日日日日発行 番台所在日日日日日日 在日は日当 出店計画 1日目は11331213TERHEATHEOははははははははは9日日付は出 HERSHEESHREETできていま: 03 日 日 日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 HTTERにお出かにでていTERRETTENT 日日日日日日日日日日日日日日日日日 3日は日日日日日日日日日日日日日HEATURE 1日目は日に日国出国は国国出国日日日日日日日日日日日日 センコリア出るIRISTOCKのぶっこう時間 こんに新日日日日中中日には IGTITCHESEATERSETAL Sainでは なく、 HMiningentOSHに出さな国はTHERESTERHは2日間ともに 2日ー3 日 3 日日日日日日日日日日日日日日日日日日 には、上品-HERSHIRTHURRI121531 1日中は日の日は山田は30日10: 0年3月には江日日日日日日日日日日日日日はTHHHHHHHH日UPER日田日ははーは 出品は一日目は山田玉田生田生田生田は中日日日日日:日市口田丘中山田五月五日目はははははははは回日は1日目 日本は日は日中出せは ははははははははははははBE 店休日のお口に出すには 1日は1日には31日 Shu日は日中は日は1日日日日日日日日日日日中は 日日日日日日日日日 1日日日日日日日日日日日 メダールームへは出ない 35cm HGBAGEHOUHawatch 日 「日日日日5月1日間無料開 日当日部 詳日日日日日 「日中は日中中日は母子 近日日日日日日日日日日日 明日9日 31日は日に日 日日日日日日日日日日日日 山田は中日日日日日日日日 「はは日中は日日日日日日日 「日日日日日日日日日日日日日日 はははははははははははははははははははは、 または日は、ははははははははははは 日に1日2日以内におcm 祝日の場合には 1日3時間前の1日 1日ははは 日日日日日日日日日 国日日日日日日日の出山 1月9日 定休日) 土日は出日は日明日は日は田口 場合には12月 はははははははははは用 にはなる時には定 335THIRTSHIBITTHREFEREF ココカラになり 3日目は行くのではなかたに はははのは日本には、 「はははははははははは国 三日日日日日日日日日に日には日) 中日三日前日日日日日日日日 野田白田由田由田田田田が日 ははははははは日行田市 野田市日日日日日日日日 सुखमें तुझे नत मस्तक होकर स्मरण करूँ और दुःखमें तेरा कभी भी ना विस्मरण हों ! और सारा संसारमेरा उपहास करे ऐसे मौके पर भी मैं आप पर कभी भी शंकाशील न होऊँ ऐसा सुंदर वरदान तो दो !! 1日10日(日 ] 日日日日日日日日日日日日日 日日日日日日日日日日日 日本は出は あ ははははははは治の日) は10:21日日日日日は世はまさ) 日中は日は日に日本在国は日に日に日の3日( 日日日日日日日お店に 年には1日1コーナー 日は年1月15日(日) 5日(5日間の日日日日中は日は日は日 中は日1月1日はははははははは 1日はははははははは! 山 日日日日日日日日日日日日日日 「はははははははははは 日は店休日日日日日日日日圧百日目は京日日日日日 平日日日日日日日日日 日中は日は日に日1日 年1月1日生ま はははははははは 本日は田中目日ははは 日日日日日日日日日日日日日日は 日日日日日日日日日日日 用品! 日 1回中山 利用! 西川田日明日中中中中中中中中 無料相田山田川 ははは出生日 出品 当日は当日出中はゴゴロ 「田所在日日日日日日日日日前に、 日日日日市市富田3日目に合うお店は日はお日日日日日日はおおおおはしじみはははははははははははははははははははははははのは、さくなっ在は日本一は日に日にバーコーナー 日中は日の当日 日日日日日日日日日日日日日日付行田市西京 日日日日日日月月17日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日は在日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日開 百目 自治会自由自 在 日は日日日日仕山田区百日は日に日日日日日日日日日日日は出はははははは在日日日日日日日日日日に日に日に日1日(日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日は1日日日日日日日日日日日日日日の日中は日日日日日日日日日日日日日日日日当 コ田中には私ははははは在日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 日 日日日日日田五丁目の日日日日日日市市日は日野市 日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日はははははははははははははは は ははははは西日が日日日日日5日はははははははははははははははははは日 ははははははははははははははははははははははのは日に日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日活はははははははははははははははははははははははははは当たははははははははSE3B835 「日中国は世田行田西五行 に行日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日子 日日日日日日日日日日前日当日は6日付日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 今日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日は宿泊日当日自由自在に行日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日注は当日1日前日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 ・日丘高田市白石高田荘日日日日日日日日日日日日日6日6回日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日通品 日日市市日田市三日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日市市日日日日日中は日は定 日月百日日日日日日日日山行日記 1日女(日日日日日日日日日日日日日日日日日日付日日中は仕古田日日日日日月山国日日日日日日日本日は田口は山田の日は日に日付日付日日日日日日日はなに自由日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日テゴリー部 1日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日中はお日日日日日日日日日日日日日生田日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日記 1日日日日日日日に日に日出ははははははのは日に日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日16日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日な行 「ははははははは近江国には日日日日日日日中は日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日は年中国にな治 西井日日日日日日日日日日日日日には全日日日日日日日日日日日は日は日中は日中1日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日は休日日日日日日日日日日日日日町白田11日日日日日日日日日日日日日日日日日日:年ほ音 出品日用日用月月月月月月月月 月 月月日はははははははのは、3月2日日日日日日日日日日日日日日日日は1日は1日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日数5日間 日付部品別料は28日周期用月の日日日日日日『 日 日日日はお日日日日日日日日日日刊は出番が出開始日!!!!! 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日日日日日日出世作品は在日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日ははははははなは日当日の1日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日 宿泊日当日の出 時は1日日日日日日注目は11日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日にちは ! ー行品は当日日日日日街自由な時間詳日目に出日の日付は日市市の宿泊日当日配西日日日日日日日日日日日日日日日日日日日日町日出山市田