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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? करता हैं। गलती हुई हो तो क्षमा करना। फिर एक बार आपके आशिष एक गरीब पर बरसाना जी। जिससे मुझ जैसे को परोक्ष रहने के बावजूद भी ज्ञान बोध मिलता रहे।
लिखी. आपका दरबाशा
दिनांक : 9.1.70 नोट : मैंने इस मंत्र पर सिद्धि प्राप्त की है परन्तु यह टिक कर रहे बस! ("धर्मतत्व प्रकाश")
नरेन्द्र को नवकार फाला) ऐसे तो मैं खंभात का निवासी हूँ। वर्तमान में शांताक्रूज (मुम्बई) में रहता हूँ। मैं जाति से वीसा नागर वणिक (जैनेतर) हूँ। किन्तु मेरे पड़ोसी अहमदाबाद के जैन हैं। उनकी प्रेरणा से उस समय शांताक्रूज में विराजमान जैन मुनि श्री कीर्तिचंद्रविजयजी म.सा. का समागम हुआ। उन्होंने मुझे कुछ उपयोगी पुस्तकें दीं। मैं प्रतिदिन सुबह शाम 108 नवकार गिनने लगा। लगभग नवकार गिनते मुझे दो वर्ष होने आये हैं। उससे पहले मुझे कुटुम्ब निर्वाह की चिंता थी। रात को कई बार नीन्द नहीं आती थी। सामान्य बातों में ही क्रोध चढ जाता था। नवकार मंत्र गिनना प्रारंभ करने के बाद सबसे बड़ा फायदा हुआ। आज मैं एक मिल में अच्छी तनख्वाह वाला कर्मचारी हूँ। नीन्द तो नियमित आती है किन्तु समता भी अधिक रहती है।
अभी हमारी मिल में एक घटना घटी। मिल मालिक ने मुझे कहा कि, "अपने पास अब अच्छी क्वालिटी के फुर्तीले मशीन आये हैं, जिससे काम ज्यादा होगा। इसलिए पन्द्रह लोगों को अपने को छुट्टी देनी है।" इन पन्द्रह लोगों को काम पर आने का मना किया। इसमें से कितनों ने तो मुझे गालियां दी और न कहने योग्य शब्द कहे। किन्तु मैंने उन पर जरा भी गुस्सा नहीं किया, कारण कि मुझे भी उनको छुट्टी देने के कारण दुःख हुआ
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