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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? शरीर चार और मुंह एक। किसी भी दिशा से देखो, मुंह सामने ही दिखाई देता है। आगे बढ़ते तमाम तीर्थंकरों की मूर्तियां, महावीर स्वामी, विष्णु गंधर्व आदि की मूर्तियां देखकर, आगे बढ़ते भगवान शंकर की तांडव नृत्य की मूर्ति के दर्शन किये। एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया कि, 'साहेब, यह मूर्ति नाच करती कैसे दिखाई दे रही है?' | तब आचार्यजी ने बताया कि, जब जब पृथ्वी का प्रलयकाल आता है, तब-तब ऐसा कार्य भगवान शिवजी को सौंपने में आता है और पृथ्वी डोलने लगती है। यह बात हुई, इतने में तो वहां कड़कड़ाहट करते भयंकर भूकम्प की आवाज हुई और पूरी गुफा शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के साथ डोलने लगी। आचार्यजी ने कहा, "विद्यार्थियों! आगे आओ, यह तो वास्तव में भयंकर रूप से धरती कम्पित हो रही है। भूकम्प आया है। कोई घबराना नहीं।" विद्यार्थियों में चीख चिल्लाहट और दौड़भाग शुरु हो गई। आचार्य श्री ने कहा कि, "डरो मत, हिम्मत रखो, गुफा के बाहर भी कम्पन है। घबराने की कोई बात नहीं। प्रभु का स्मरण करो। पीयूष ने तो माला निकालकर नवकार महामंत्र का जाप जोर से बोलकर प्रारम्भ किया और कहा, 'प्रभु महावीर! आप मेरे साथ हो।' इस समय शंकर के तांडव नृत्य की मूर्ति के पास सभी एकत्र होकर एक दूसरे से टकराने लगे। कोई उतावला विद्यार्थी भागने की कोशिस करता, लेकिन उसे वापिस बुला लिया जाता। भूकम्प के तीन झटकों के बाद धरती स्थिर हुई। यह भूकम्प सार्वत्रिक था। जिससे गुफा के द्वार के पास लटकती हजारों मण की शिला जिस प्रकार सन्दूक पर ढक्कन लग जाये, उस प्रकार गुफा के प्रवेश द्वार पर सिमट गयी। आने-जाने का मार्ग बन्द हो गया। आधे इन्च की जगह ऊपर के भाग में गुफा और शिला के बीच रह गई थी। जिससे सूर्य के प्रकाश की किरण सीधी गुफा में आती रही और हवा भी मिलती रही। शिक्षक एवं विद्यार्थी गुफा के द्वार के पास आये और देखा कि द्वार बन्द हो गया है। सभी ने सोचा कि इतने लोगों से शिला को हटाया नहीं जा सकता है और न ही काटा जा सकता है। जिससे आचार्यश्री ने सभी विद्यार्थियों को आश्वासन देकर प्रभु का स्मरण करने को कहा। यह तो
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