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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हस्ताक्षर कर दिये और पन्द्रह रूपये हाथ में दिये और कहा कि, "पीयूष! तुम खुशी से पर्यटन में जाओ, यहां किसी की चिन्ता मत करना। वह सम्मति पत्र तथा पन्द्रह रूपये लेकर तुरन्त नवकार मंत्र की माला फेरने बैठ गया।
पीयूष ने ग्यारह बजे हाईस्कूल में सभी विद्यार्थियों के साथ संमति पत्र और पन्द्रह रूपये घनश्याम शिक्षकजी को दिये। इस प्रकार एक सौ विद्यार्थियों के संमति पत्र एवं रकम एकत्र हुई। दो बसों का रिजर्वेशन करवाया गया। तीन दिन बाद शाला के दो शिक्षक तथा आचार्य साहब एवं सौ विद्यार्थियों सहित बस शंखलपुर की गुफा के पर्यटन के लिए सात बजे रवाना हुई।
रास्ते में वासुकी मन्दिर तथा वर्षों पहले अपने प्राणों का बलिदान दिये हुए दो सौ बड़े-बड़े पालीये (शहीदों के पुतले) देखे। पता करने पर मालूम पड़ा कि इस स्थान पर दो विवाह की जान तथा डाकुओं के साथ लड़ाई हुई थी, उसके पालीये हैं। बराबर दस बजे शंखलपुर गांव के पास से बसें गुजरी। गांव से गुफा 5 किलोमीटर दूर थी, एवं गांव के पास में से रास्ता जाता था। उससे गांववासी लोग देख सकते थे कि बस में यात्री हैं या प्रवासी। गांव के पास से गुजरती बसें ग्यारह बजे गुफा से आधा किलोमीटर दूर खड़ी रहीं। शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने अब पैदल प्रवास आरंभ किया। विद्यार्थियों में कौतूहल था कि, "कौन-कौन सी मूर्तियां होंगी? पत्थर के पहाड़ों में से किस प्रकार खुदाई का कार्य हुआ होगा? कितने वर्ष पुरानी गुफाएं होंगी?' इत्यादि बातें करते-करते ठीक 12 बजे गुफा के द्वार के आगे एक सौ तीन प्रवासी लोगों का वृन्द आकर खड़ा
हुआ।
गुफा में से आरपार निकला जा सकता है या नहीं? यह कोई जानता नहीं था। परन्तु उसकी रचना कोई ऐसे जादुई कारीगरों ने की थी |कि, सूर्य के प्रकाश की किरणें हर जगह दिखाई देती थीं। आचार्यजी के साथ विद्यार्थियों ने गुफा में प्रवेश किया। प्रथम गणपति की मूर्ति थी।
हर जगह दिखाई देती थीं आचायजा
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