________________
- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
आचार्यजी ने बताया कि, "आज से पांचवे दिन पर्यटन के लिए चलेंगे। सवेरे छः बजे प्रत्येक विद्यार्थी को टीफीन के साथ आना होगा। जिस विद्यार्थी के अभिभावक की सहमति नहीं होगी, उसे बस में प्रवेश नहीं मिलेगा ।"
शाम को स्कूल से छुटकर पीयूष ने संमति पत्र अपनी माता के समक्ष पेश किया। माता चारुलता ने कहा कि, "तेरे पिताजी पेढ़ी (दुकान) पर हैं वे आये तब समझाना और उनके हस्ताक्षर ले लेना। अन्तिम निर्णय तो तेरे पिताजी को ही करना है।" रात्रि में पिताजी हेमचन्द भाई पेढी (दुकान) से आये । खाना खाने के बाद पीयूष ने बात की कि, पिताजी! मुझे अपने शिक्षकजी के साथ पर्यटन पर जाना है, इसलिए इस पत्र पर हस्ताक्षर कीजिए और मुझे 15 रूपये दीजिए। मैं कल अध्यापकजी को दोनों दे दूंगा।
यह बात सुनते ही हेमचन्द भाई ने कहा कि, "पीयूष, तू अभी मेरी दृष्टि मे बहुत छोटा है। तेरी पांच बहिनें हैं और तू मुझे बहुत प्यारा है। तुझे बाहर भेजने के लिए मेरा मन बिल्कुल नहीं मानता। तुम कहो तो मैं तुझे जहां कहे वहां घुमाने के लिए ले जांऊ, परन्तु तुम पर्यटन की बात छोड़ दो।"
" परन्तु पिताजी, अब आप जरा भी चिन्ता मत कीजिये। जिसका मैं स्मरण करता हूं, वे महावीर स्वामी मेरे श्वासोच्छ्वास में समाये हैं, मेरे रोम-रोम में महावीर स्वामी के नाम का नाद निकलता है। वे स्वयं मेरे साथ हैं, तो फिर आपको चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है? मैं अपनी माला साथ में ले लूंगा। सुबह बस में पच्चीस माला फेर लूंगा और शाम को यदि देरी होगी तो बस में ही दूसरी पच्चीस मालाएं फेर लूंगा। बाकी मैं बाहर निकलुं तब से आपको मानना है कि मैं और महावीर स्वामी साथ में हैं। समग्र ब्रह्माण्ड हिल जाये तो भी आप अपने हृदय को मजबूत रखियेगा । मुझे महावीर स्वामी के ऊपर पूरा भरोसा है। मेरा कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता है।" इस प्रकार बताने पर पिताजी ने पत्र पर तुरन्त
128