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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - विशालकाय शिला बिना सहारे लटकती थी। हजारों यात्रियों ने इस गुफा | का अवलोकन किया था। गांव से दूर होने के कारण गांववासियों को इसके विषय में बिल्कुल रस नहीं था। उनके मन में यह सामान्य वस्तु थी। .
सरोड़ी गावं में हेमचन्द भाई वाणिक का परिवार रहता था। यह कुटुम्ब अत्यन्त सुखी था। उनको संतान के रूप में पांच पत्रियां एवं एक पुत्र पीयूष था। पीयूष दसवीं कक्षा में पढता था। वह अत्यन्त धार्मिक वृत्ति वाला था। छोटी उम्र में मन्दिर नियमित जाने की उसकी आदत थी। एक भी दिन ऐसा नहीं होता, जिस दिन मन्दिर में पीयूष हाजिर न हो। स्वास्थ्य अनुकूल न होने पर वह घोड़ागाड़ी करके भी हेमचन्द भाई के साथ मन्दिर जाता था। उसकी सवेरे तथा शाम को "नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं," ऐसे नवकार मंत्र की पचास माला गिनने के बाद ही रात्रि में सोने की आदत थी। वह खुद यह मानता था कि, आज जगत में मानवों का विश्वचक्र चलता है, उसमें दैवी कृपा है और क्षण-क्षण महावीर स्वामी साथ में ही हैं। कई बार पीयूष स्वप्न में तेजपूंज का दर्शन करता था। इस विषय में वह मानता था कि आत्मा का उच्च कोटि के साथ सम्पर्क हुआ है। परन्तु यह बात परिवार के किसी सदस्य को नहीं बताता था।
इसी गांव की हाईस्कूल के घनश्याम भाई दवे आचार्य था। वे अच्छे स्वभाव के थे। बच्चों को शिक्षण के संस्कार के साथ-साथ खेलकूद के प्रत्येक साधन भी हाईस्कूल में बसाये थे। वे व्यायाम के समय विद्यार्थियों को खेलकूद स्वयं खेलाते थे। एक दिन आचार्य साहब ने उच्चतम कक्षा के विद्यार्थियों से कहा कि, "तुम्हें पर्यटन के लिये चलना हो तो प्रत्येक विद्यार्थी अभिभावक की सम्मति के हस्ताक्षर वाला सहमति | पत्र तथा पन्द्रह रूपये लेते आना।" अतिरिक्त खर्च शाला में से किया जाएगा। उसी प्रकार खाने के लिए प्रत्येक विद्यार्थी को टीफीन की व्यवस्था स्वयं को करनी होगी। शाम को देर रात्रि में वापिस लौटेंगे।" यह कहकर प्रत्येक विद्यार्थी को हाईस्कूल का पत्र दिया। विद्यार्थी बहुत-बहुत खुश हुए। मुकेश मॉनीटर ने कहा, "साहेब, पर्यटन के लिए कब चलेगें?' तब
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