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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अब सद्गति चूक न जाऊँ इसके लिए नवकार और भावना का कार्यक्रम मैंने जारी ही रखा। बीच-बीच में मन की जाँच करता कि क्या विचार चल रहे हैं। दूसरा कोई विचार मन में घुस गया तो सद्गति रुक जायेगी। इस डर के कारण मन पर पूरी चौकीदारी रखता था।
जिस प्रकार घर में कोई चोर डाकु घुस न जाये, इसलिए दरवाजे पर पहरेदार होता है, उसी प्रकार मन में कोई बुरा विचार प्रविष्ट न हो जाए, इसलिए मैने मन के ऊपर आत्मजागृति का पहरा रखा। मैं थोड़े समय में एकदम स्वस्थ हो गया। आज इस बात को 15 वर्ष हो गये हैं।
मेरे लिए तो कैंसर ने फायदा किया। कैंसर न हुआ होता तो शायद में धर्म में जुड़ नहीं पाता। मुझे बचानेवाला नवकार है, ऐसा में मानता हूँ। इसलिए नवकार मेरा सर्वस्व है।
मेरी दिनचर्या ___ मैं तब से ही निवृत्त जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। अभी मेरी दिनचर्या | इस प्रकार है :प्रातः चार बजे उठ जाता है, उठकर ... .... ।
खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मझं न केगई। और 'जगत के सभी जीव सुखी बनें, नीरोगी बनें, मुक्त बनें, कोई पाप का सेवन न करें, इस प्रकार की भावना करके पद्मासन में बैठकर हदय में श्वेत कमल की कल्पना कर, तन्मय होकर एक सौ आठ नवकार एवं उवसग्गहरं की माला गिनता हूँ। फिर थोड़ी देर अरिहंत परमात्मा के श्वेत वर्ण का ध्यान करता हूँ। अन्त में ध्यानस्थ दशा में खड़े महावीर प्रभु को कल्पना में लाकर प्रार्थना करता हूँ कि, 'प्रभु! आपके जैसा ध्यान मुझे कब मिलेगा?' अंत में में आत्मस्वरूप का चिंतन करता हूँ। 2-3 मिनट इसी प्रकार ध्यान करता हूँ, 'मैं अनन्त शक्ति का स्वामी हूँ...इत्यादि तब पांच बजते हैं। मुझे अद्भुत शान्ति का अनुभव होता है।