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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
घर को भी साफ रखने के लिए प्रतिदिन साफ-सफाई करनी पड़ती है। एक बार सफाई करने मात्र से काम निपट नहीं जाता। फर्नीचर को साफ रखने के लिए ऊपर की धूल एवं रज बारबार झटकनी पड़ती है, उसी प्रकार मन को भी ईष्ट विषयों की प्राप्ति की आकांक्षा का रोग न लगे या दूसरों की ईर्ष्या, असूया, तिरस्कार आदि मलिन भावों की रज न चिपके, इस हेतु, कार्य करते-करते बीच-बीच में जरा रुककर मन की जांच करनी आवश्यक है।
(5) समर्पितता
गुलाबचन्दभाई की नवकार साधना का पांचवा प्रमुख अंग नवकार के प्रति उनका समर्पण भाव है। सामान्य रूप से मनुष्य नवकार गिनता है, किंतु वह उसको समर्पित नहीं होता, क्योंकि उसे यह प्रतीति नहीं होती कि नवकार से उसकी सभी ईष्ट सिद्धि हो रही है।
शास्त्रकार कहते हैं कि ऐसा कोई कार्य नहीं है जो नवकार से सिद्ध नहीं होता है। श्री गुलाबचन्दभाई को केवल शास्त्र वचन से ही नहीं, स्वयं के अनुभव से भी यह प्रतीति हो चुकी है। जिससे वे नवकार की गोद में सिर रखकर जीवन का सारा भार नवकार को सुपुर्द कर देते हैं। उन्हें नवकार में ही माता, पिता, बंधु, धन सबकुछ मिलता है। पूर्व में हमने देखा कि वे नवकार के प्रति अपने भाव, नवकार गिनने से पूर्व एक श्लोक से प्रतिदिन व्यक्त करते हैं।
जहां श्रद्धा होती है वहां समर्पित होते मनुष्य को देर नहीं लगती। मुंबई से पूना जाने के लिए गाड़ी में बैठने के बाद मार्ग में आने वाले बड़े-बड़े पर्वत, नदी, नाले आदि विघ्नों से किस प्रकार निपटना इसकी चिंता कौन करता है? तुम हाथ में नक्शा लेकर नहीं बैठते हो । पूना की टिकट लेकर ट्रेन में बैठने के बाद तुम्हें सही सलामत पूना पहुंचाने की जिम्मेदारी रेल्वे तंत्र उठाता है। नदी-नाले किस प्रकार पार करना, बीच में आते पहाड़ों को किस प्रकार पार करना, यह सब व्यवस्था रेल्वे तंत्र करता है। तुम केवल टिकट लेकर पूना की गाड़ी में बैठ जाओ, ट्रेन तुम्हें
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