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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मैने खूब स्वस्थतापूर्वक कहा कि- "मंजुला! देव गुरु की कृपा से मैं बहुत स्वस्थ हूँ। अब मैं मरनेवाला नहीं। तुम तो समझदार हो। सब समझती हो, तुमने मुझे कई बार धर्म की शरण लेने का कहा, किन्तु मेरे पाप के उदय के कारण मुझे वह बात अच्छी नहीं लगती थी।
खैर.... 'अब तो मैं एकदम मृत्यु का दरवाजा खटखटाकर श्री नवकार महामंत्र के आलंबन से वापिस आया हूँ...। मेरा रोग शांत हो गया है! तुम बिल्कुल चिंता मत करना। मैं शरीर में जमा हो गये कचरे को निकालने ऑपरेशन थियेटर में जा रहा हूँ। बाकि अब कोई जोखिम नहीं हैं इसलिए कुछ भी चिंता मत करना... मैं देवगुरु की कृपा से और श्री नवकार के प्रताप से ज्यादा स्वस्थता प्राप्त करने जा रहा हूँ। फिर भी अगर मुझे कुछ हो जाये तो भी अब मुझे जरा भी डर नहीं लगता। मेरी गति अच्छी ही होगी। श्री नवकार रूपी रखवाला पाया है.... अब कोई चिंता नहीं...।
यदि मेरा शरीर छुट जाये, तो तुम तथा दोनों बालिकाएं स्वदेश जाकर असार संसार का मोह त्यागकर आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़कर अनमोल मानव अवतार को सफल करना...लो अभी.... मि...च्छा....मि....दु....क्क.....इं....।'
श्राविका ने भी मोह के आवेश को दूर कर मेरे हदय को आश्वासन देते हुए कहा कि," स्वामीनाथ! आप श्री नवकार में मन को लगाकर रखना। हमारी कुछ भी चिंता मत करना। देवगुरु कृपा से सब अच्छा होगा। अरिहंत....अरिहंत का स्मरण चालु रखना।"
मेरा हदय श्राविका के वचनों से संतुष्ट हुआ। मैं श्री नवकार के जप में लीन बन गया। स्ट्रेचर ऑपरेशन थियेटर में पहुंचा। मुझे ऑपरेशन टेबल पर लिया। डॉ. सर ज्योफ्री नाइट, डॉ. रीड,डॉ. निकलसन आदि बड़े डॉक्टर एवं सहायक अनेक डॉक्टरों ने बहुत सावधानी के साथ मेरा ऑपरेशन शुरू किया।
सोमवार सुबह में श्री नवकार की गोद में रहकर खूब स्वस्थ बना
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