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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मांग सको, तो भी हदय में उसके प्रति बदला लेने की तीव्र वासना है, उसका हो सके उतना विसर्जन करके प्रतिदिन सुबह जप करते समय प्रभुजी के फोटो के दोनों ओर आपके भाई और भाभी का फोटो रखकर ऐसी प्रार्थना करो कि-'मैं जो जप कर रहा हूँ, उसका फल जो भी हो वह मेरे भाई-भाभी को मिले... बस, यह प्रार्थना करके यथाशक्य | एकाग्रता पूर्वक 1 पक्की माला का जप नियमित रूप से 6 महीने तक करना और प्रति 15 दिन में मुझे एक पत्र लिखकर तुम्हें जो कुछ अनुभव होता हो, वह मुझे लिखना।"
वह भाई वचनबद्ध होने के कारण, थोड़ी आना-कानी के बाद अन्त में ऐसा करने को तैयार हो गये। हम एक दूसरे का पता लेकर अलग हुए। | उस भाई का पन्द्रह दिन के बाद पत्र आया। उसमें लिखा था कि "आपकी बतायी विधि के अनुसार रोज नियमित जप करता हूँ, किन्तु अभी खास कुछ भी अनुभव नहीं हुआ।" मैंने प्रत्युत्तर में लिखा, "चिन्ता नहीं, फल के लिये अधीर बने बिना विधिवत् जप चालु रखो।" फिर बीस दिन के बाद उनका पत्र मिला, जिसमें लिखा था, "थोड़े दिनों से मुझे विचार आता रहता है कि, हे जीव, तेरे छोटे भाई पर किस लिये गुस्सा करता है? उसका कोई दोष नहीं है। शादी होने से पूर्व तो वह आदरपूर्वक वर्तन करता था। शादी के बाद पत्नी के उकसाने से ही उसका व्यवहार बदला है। इस कारण भाभी का ही दोष लगता है। परन्तु भाई तो निर्दोष है। इसलिए उसके प्रति द्वेष रखना उचित नहीं।"
मैंने लिखा, "अच्छी बात है। प्रार्थना और जप चालु रखना।" पन्द्रह दिनों के बाद फिर उसने पत्र में लिखा था कि, "अब मुझे लगता है कि | भाभी पर भी द्वेष रखने जैसा नहीं है। प्रत्येक जीव कर्म के आधीन हैं।
और हे जीव! तुमने पूर्व भवों में इनके प्रति विपरीत वर्तन किया होगा, इसलिए आज इनको तेरे प्रति ऐसा व्यवहार करने को मन होता है। इसलिये वास्तव में दोष तेरा ही है, दूसरे किसी का नहीं है। इसलिए किसी पर भी द्वेष नहीं रखना चाहिये।
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