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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? आपकी साधना निष्फलता में परिणत हुई है। नवकार मन्त्र में जिन परमेष्ठी भगवन्तों को नमस्कार करते हैं, उनका जगत के जीव मात्र के साथ मैत्री | भाव होता है। इसलिये जब तक अपना चित भी समस्त जीवराशि के साथ मैत्री भाव से अधिवासित न बने, एकाध भी जीव के साथ दुश्मनी का भाव या वैर का बदला लेने की वृत्ति काम करती हो, तब तक पंच परमेष्ठी भगवतों की कृपा प्राप्त करने की पात्रता अपने में नहीं आ सकती है। पात्रता के बिना साधना में सफलता कैसे मिले? इसलिये मेरी आपको सर्वप्रथम सलाह यह है कि आप अपने छोटे भाई के साथ हार्दिक क्षमापना कर लें।"
इतना सुनते ही वह भाई वापिस कुछ आवेश में आकर कहने लगे "नहीं, नहीं, यह कदापि नहीं हो सकता। गलती उसकी और क्षमापना में कैसे करूं? मैं क्षमा मांगने जाऊँ तो उसका जोर खूब बढ़ जायेगा। हम तो अचानक रास्ते में आमने-सामने हो जाते हैं, तो भी हमारी आँखें कतराती हैं और अलग अलग रास्ते में चले जाते हैं। ऐसी स्थिति में क्षमापना का कैसे संभव हो सकता है? और आपके कहने से शायद मैं क्षमा मांगने चला भी जाऊँ, तो भी वह तो क्षमापना नहीं ही करेगा, बल्कि न सुन सकें ऐसे शब्द ही सुनाएगा। इसलिये मेहरबानी करके इस बात का आप आग्रह नहीं करें तो ही अच्छा होगा।"
मैंने कहा, "देखो, मैंने आपको पहले से ही कह दिया था कि मैं बताऊंगा वह विधि सरल होने के बावजूद भी आप शायद नहीं कर सकोगे। फिर भी आपने विश्वास दिलाया तब ही मैंने यह महत्त्व की बात आपको बतायी। अब यदि आपको इस प्रकार करने से छोटे भाई की ओर से क्षमा मिलने की संभावना नहीं ही दिखती है तो आपको एक दूसरी विधि बताता हूँ। वह आपको अवश्य करनी होगी। इसमें आपको छोटे भाई के पास जाकर क्षमापना की बात नहीं आयेगी, परन्तु इस विधि के अनुसार करने का वचन दो तो ही, में आपको विधि बताऊंगा। वह भाई सहमत हुए, तब मैंने कहा, "भले आप छोटे भाई के पास जाकर क्षमा न
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