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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मैंने लिखा, "खुब आनन्द की बात है। आपकी नवकार साधना अब सम्यक् हो रही है। इसी प्रकार प्रार्थना जप चालु रखना।"
फिर कुछ दिनों के बाद, मेरी बतायी विधि अनुसार प्रार्थना-जप शुरु करने के करीब चार महीने हुए, तब उस भाई का 22 पन्नों से भरा विस्तृत पत्र मेरे पास आया, जिसका संक्षिप्त सारांश निम्नलिखित था।
"सचमुच आपका आभार प्रदर्शित करने के लिये मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं। आप के द्वारा बतायी विधि के अनुसार नवकार साधना करने से आज सगे-भाइयों के बीच वर्षों से खड़ी दीवार सम्पूर्ण रूप से दूर हो गयी है, आज मेरे आनन्द का पार नहीं है। बात ऐसी बनी कि थोड़े दिन पहले मुझे नवकार के प्रभाव से अंतःस्फुरणा जगी कि,हे जीव! यदि वास्तव में तुझे यह लगता है कि भाई-भाभी का कोई दोष नहीं है। तेरे ही कर्मों का दोष है, तो फिर भाई-भाभी के साथ नहीं बोलना तथा कोर्ट-झगड़े किस लिए? फिजुल में दुनिया को तमाशा देखने को मिले, समय और सम्पत्ति की बरबादी हो तथा भवोभव बैर की परम्परा चले, क्या यह इच्छने योग्य है? इसलिए हे जीव! चाहे कुछ भी हो, परन्तु तू सामने से चलकर तेरे छोटे भाई-भाभी से क्षमापना कर ले। तेरे हदय के शुद्ध पश्चात्ताप का जरुर उन पर असर होगा और पंच परमेष्ठी भगवन्तों की कृपा के अचित्य प्रभाव से सभी कार्य अच्छा होगा।' मेरी यह भावना मैंने अपनी धर्म पत्नी को बताई तब मुझे प्रत्युत्तर मिला कि, "मुझे भी पिछले कितने ही दिनों से ऐसे ही विचार आते थे। परन्तु आपको | यह बात पसन्द आएगी या नहीं यह शंका होती थी, जिससे आपको नहीं बता सकी। परन्तु आज तुम्हारे मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझे अत्यंत आनन्द हुआ है।
इस तरह नवकार के प्रभाव से हम दोनों की सोच एक समान देखकर मैंने कहा,"चलो तब तैयार होते हैं, धर्म के काम में विलंब नहीं करना चाहिए, और हम दोनों छोटे भाई-भाभी के घर जाकर उनसे क्षमापना करने के लिए हमारे घर से बाहर पैर रखने की तैयारी करते थे,