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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
उतने में गली में खेलने गया हुआ हमारा बच्चा दौड़ता - दौड़ता आकर कहने लगा, "पिताजी पिताजी! मेरे चाचा-चाची अपने घर आ रहे
हैं।"
मैंने कहा, "हो नहीं सकता, तेरी समझ में फर्क होगा, वे तेरे चाचा-चाची नहीं, दूसरे कोई होंगें। अथवा चाचा चाची होंगे तो वे अन्य कहीं जा रहे होंगे। अपने घर वो नहीं आयेंगें।"
बच्चे ने कहा, "दूसरे कोई नहीं परन्तु चाचा-चाची ही हैं, इतना ही नहीं परन्तु उन्होंने खुद मुझे कहा है कि, 'तेरे माता पिता को सूचना दे कि, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं। "
यह बातचीत चल ही रही थी कि उतने में मेरे छोटे भाई भाभी सचमुच हमारे घर की ओर आते दिखाई दिये। क्षण भर तो मैं स्तब्ध बन गया और सोचने लगा कि " यह मैं क्या देख रहा हूँ? वास्तव में यह बात स्वप्न है या सत्य? मैंने अपने शरीर पर चीमट भरकर तसल्ली की कि यह बात स्वप्न नहीं परन्तु सत्य है। मैंने अपने भाई- भाभी से मिलने के लिए पैर उठाये... उतने में तो छोटा भाई ही मेरे पैरों में गिरकर जोर-जोर से रोते हुए कहने लगा, "बड़े भाई मेरा अपराध माफ करना! आपके अगणित उपकारों को भूलकर, स्वार्थान्ध बनकर पिता तुल्य आप पर मैंने कोर्ट केस किया । अरररर ! धिक्कार हो मुझे।" इत्यादि बोलते-बोलते उसका गला भर गया। भाभी की आंखों में से भी पश्चात्ताप के आंसुओं की गंगा बह रही थी। वह भी कह रही थी कि, "वास्तव में दोष तो मेरा ही है ! मेरे उकसाने से ही आपके छोटे भाई ने आपके खिलाफ केस किया। वास्तव में मुझ पापिन ने ही सगे भाइयों के बीच फूट डाली है। धिक्कार है, मुझे...!" मैंने दोनों को बोलने से रोकते हुए कहा, 'तुम्हारा दोष नहीं है। दोष तो मेरा ही है। 'पूत कपूत हो जाते हैं, परन्तु अभिभावक कु अभिभावक नहीं होते हैं इस कहावत को भूलकर ज्येष्ठ बन्धु होकर भी मैंने तुम्हारे खिलाफ केस किया। में ज्येष्ठ बंधु के रूप में अपनी फर्ज अदा करने से चूका हूं। बाहर से विविध प्रकार की धर्म आराधनाएं करने
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