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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? स्थापित किया हुआ है। उसकी इजाजत के बिना जंगल में जाना सख्त मना है।
हमें पूछताछ करने पर पता चला कि चालु मास के समय गीर में जाने के सभी रास्ते बन्द होते हैं। चलने के मार्ग पर छः-छः फीट की घास आ जाती है। एवं रास्ते में आते अनेक छोटे-बड़े झरने पानी से भरपूर होते हैं। इसलिए गीर के चैक-पोस्ट अर्थात् प्रवेश द्वार से जाने नहीं दिया जाता है।
परन्तु कठोर सौगंध लेकर बैठी छोटी बहिन इन्दु को समझाना बहुत कठिन था। आखिर हिम्मत करके एक एम्बेसेडर गाड़ी में मैं, मेरी धर्मपत्नी, मेरी पुत्री, दोनों छोटी विवाहिता बहिनें, दो छोटे भानजे तथा एक छोटी भानजी, बड़े बहनोई श्री कनुभाई सेठ (एडवोकेट) तथा ड्राईवर सहित छोटे-बड़े दस सदस्यों ने राजकोट से सुबह जल्दी 5-30 बजे गीर की ओर प्रयाण किया।
राजकोट से कनकाईनेस 167 कि.मी. होता है, जिससे हमने सोचा कि तीन घण्टे में निर्धारित स्थान पर पहुँच जायेंगे। हम जूनागढ़ समय पर पहुँचकर चाय पानी करने के बाद मैंदरड़ा होकर सासण की तरफ आगे बढ़े। सासण पहुंचने के बाद वनरक्षक अधिकारी ने सलाह दी कि, "चातुर्मास के कारण सभी रास्ते बन्द हैं। इस मौसम में कनकाई के जंगल में जाना उचित नहीं है। क्योंकि भयंकर जंगल में दिन में वन के राजा मस्ती में पड़े होते हैं, और रास्ता भी आपको नहीं मिलेगा।" उनको हमने अपनी बहिन की प्रतिज्ञा की बात की। तब उन्होंने कहा कि, "शायद सताधार के रास्ते से जाया जा सकेगा, इसलिए उस रास्ते से प्रयत्न करो।" हम 27 कि.मी. मैंदरड़ा वापिस आये।
वहां से बीलखा बीसावदर के मार्ग से सताधार पहुँचे। सताधार से जंगल में जाने का रास्ता भूलने से हमें दस कि.मी. जाकर वापिस सताधार आना पड़ा और फिर पूछताछ करने के बाद सताधार से दक्षिण दिशा की ओर जंगल में दाखिल हुए ओर योग्य मार्ग पर आगे बढे। हम गहरी
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