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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? जोर-जोर से धुनते हुए भोपे ने विधि का दूसरा चरण प्रारम्भ किया। वह खड़ा हुआ। अपने कुंडलाकृति स्थान में से बाहर आकर, वह जिनदास की ओर गया। शक्तिमाता को जिनदास के शरीर में प्रवेश करवाने का प्रयोग अब शुरु हुआ। भोपे ने जिनदास की एक प्रदक्षिणा दी। प्रदक्षिणा पूरी होने के साथ ही हताशा से घिरा हुआ भोपा पैर से पीछे जमीन को | ठोकता हुआ अपने बैठने के स्थान पर बैठ गया। उसको ऐसा आभास होने
लगा कि, शक्तिमाता जिनदास के शरीर में प्रवेश करने में असमर्थ है। किंतु वह ऐसे हताश हो, ऐसा नहीं था। वह दुबारा खड़ा हुआ। हिम्मत कर उसने गोले में बैठे जिनदास की प्रदक्षिणा दी, परन्तु परिणाम वैसा ही आया। पैर ठोककर उसको स्वयं के आसन पर बैठ जाने का किसी अदृश्य शक्ति ने मानो आदेश दिया हो। __ . दो बार हताश हुआ भोपा, अब इस बात को अपनी प्रतिष्ठा एवं नाक का प्रश्न मानकर, चाहे किसी भी प्रकार से शक्तिमाता को जिनदास के शरीर में प्रवेश करवाने के जनून के साथ पुनः खड़ा हुआ। क्रोधावेश के साथ उसने तीसरी प्रदक्षिणा पूरी की, किंतु उसका स्वप्न सिद्ध नहीं हुआ। हवा के वेग से जिस प्रकार तिनका वापिस आता है, उसी प्रकार | भोपा पीछे धकेल दिया गया और हताशा भरे हदय से अपनी बैठक पर | गिर पड़ा। उसके तन-मन पर छायी निराशा एवं लाचारी को देखकर शक्ति के उस उपासक ने भोपे के शरीर में प्रवेश किये हुए माताजी को विनति करते हुए कहा कि -
"माताजी! आपका आह्वान इसलिए ही करने में आया है कि, जैन मित्र जिनदास आपके चमत्कार का प्रत्यक्ष साक्षी बन सके। इसलिए में आपको आशा भरे हदय से झुक झुककर फिर से विनति करता हूँ कि, आप स्वयं जिनदास के शरीर में प्रवेश कर, इसे चमत्कार बताने की कृपा करें!!!" भोपे के माध्यम से, इस विनति करने वाले को शक्तिमाता ने कहा, "इस जैन भाई के शरीर में प्रवेश करने हेतु मैं लाचार हूँ। इसके आसपास, इसके इष्टदेव के जाप से बने हुए चमत्कारिक तेजस्वी वर्तुल,
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