________________
-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मित्र के आमंत्रण को स्वीकार करते हुए जिनदास ने कहा कि, "तेरे आमंत्रण से तो 'जो खाना था वही वैद्य ने कहा, जैसा अनुभव कर रहा हूँ। चलो, इस प्रकार भी चमत्कार देखने को मिलता हो तो क्यों अवसर चुका जाए?"
दोनों मित्र शक्ति माता के मन्दिर पहुंचे। जिनमन्दिर के शांत प्रशांत वातावरण में रमे हुए जिनदास को शक्ति मन्दिर का वातावरण अत्यंत विचित्र लगने लगा। माता का विशेषण पाती 'शक्ति देवी' की प्रतिमा पर मातृत्व की महिमा गाने वाला कुछ भी दिखाई नहीं देता था। शक्ति माता के इस देह पर नख से लेकर शिर तक ऐसे चिह्न लदे हुए थे कि, एक बार तो बहादूर भी देखकर घबरा जाये! जो कमी थी, उसकी पूर्ति भोपे की इस भीषण-भयंकर, अकल्पनीय, कंपकंपी छूट जाये ऐसी मुखाकृति ने कर दी।
शक्ति के उपासक मित्र ने भोपे से कहा कि "यह मेरा एक जैन मित्र है। शक्ति माता का चमत्कार आंखों से देखने की इसकी इच्छा है। इस कारण मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि, आप शक्तिमाता को इस मित्र के शरीर में प्रवेश करवाकर चमत्कार दिखाओ।"
भोपे ने "हाँ" कहकर सिर हिलाते हुए कहा, "शक्ति माता तो प्रकटप्रभावी देवी है। इसका चमत्कार बताना, मेरे लिए कठिन कार्य नहीं है। मैं मेरा प्रयोग शुरु करता हूँ। जिसको भी चमत्कार अनुभव करना हो, वे इस वर्तुलाकार स्थान में आसन जमाकर बैठ जाएं।"
भोपे की आज्ञा अनुसार जिनदास वहां बैठ गया। उसके लिए चारों ओर भय का वातावरण नया-नया ही था। इसलिए अभय का सहारा पाने हेतु उसने मनोमन महामंत्र का जाप शुरु कर सारा नाटक देखने का निर्णय किया। पल दो पल में वातावरण ने ज्यादा भयानक मोड़ ले लिया। नगाड़े बजने लगे। दातून के टुकड़े चारों ओर फिंकने लगे। जल छिड़काव से आसपास की जमीन भीग गई। थोड़ा समय बीता और भोपे के शरीर में किसी का प्रवेश होने का अहसास होने लगा।
106