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•जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
श्रीकांत ने विस्मित होकर देखा, तो कोई अद्भुत प्रकाश का गोला उसके आसपास गोल चक्कर काट रहा था। उस प्रकाश की बात उका भगत ने श्रीकांत को नहीं कही थी, थोड़ा विचार करने के बाद श्रीकांत ने जवाब दिया -" यह प्रकाश का गोला भी तुम्हारी ही माया है, समेट लो।" "यह मेरी माया नहीं है । "
" तो फिर यह क्या है? " - श्रीकांत ने पूछा ।
" तुम नवकार मंत्र के आराधक हो ? - सामने से प्रश्न हुआ। "हां! किंतु उससे क्या?"
" यह महाप्रभावक मंत्र है। इसका यह तेज है। यह मेरे से सहन नहीं होगा, इसे समेट लो, तो मैं हाजिर होउँ ।"
"यह गोला मैंने नहीं बनाया, इसे समेंट लेने का उपाय क्या है?"
" जीवनभर नवकार मंत्र को याद नहीं करने की प्रतिज्ञा लो। उसी समय यह तेज का गोला अदृश्य हो जायेगा। फिर मैं हाजिर हो जाऊँगा । मैं हाजिर होकर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण कर दूंगा। प्रतिज्ञा ले लो। इस मंत्र के आराधक के सामने खड़े रहने की मेरी शक्ति नहीं है। तुम प्रतिज्ञा लो। नवकार मंत्र की आराधना, रटना, स्मरण या उच्चारण आज के बाद जिंदगी में तुम नहीं करोगे, ऐसी प्रतिज्ञा, स्वयं नवकार मंत्र की सौगंध लेकर करो। "
श्रीकांत अंतरिक्ष में से आ रही यह आवाज सुन रहा था। नवकार मंत्र का उच्चारण नहीं करने की प्रतिज्ञा लेने का वह "मैला देव" उसे कह रहा था। ऐसी प्रतिज्ञा ली जाए तो ही वह तेज पुंज अदृश्य होगा और तो ही वह वहां हाजिर हो सकता था।
श्रीकांत विचारों में डूब गया। नवकार मंत्र का यह प्रभाव?" वह मन ही मन बोल उठा । उसका विचार प्रवाह चालु हो गया । वापिस आवाज आई, "तुम्हें सिद्धि चाहिये? नवकार मंत्र का रटन छोड़ देने की प्रतिज्ञा नहीं लो, तब तक मैं प्रत्यक्ष नहीं हो सकता हूँ। प्रत्यक्ष हुए बिना
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