________________
-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - यह सिद्धि मैं तुम्हें नहीं दे सकता।"
श्रीकांत ने जवाब नहीं दिया।
"जल्दी करो, प्रतिज्ञा ले लो। अद्भुत सिद्धि प्राप्त करने का यह । अवसर मत जाने दो।" | श्रीकांत चुप ही रहा, उसका मन गद्गद हो गया, 'अहो! नवकार मंत्र का ऐसा, अपूर्व चमत्कार है? अद्भुत सिद्धि देने की शक्ति रखने वाला यह देव भी, इसके प्रभाव के सामने, लाचार बन गया है।' श्रीकांत के मन में विचारधाराएं चल पड़ी।
___ "मैं कैसा मूर्ख! महामूर्ख!" नमस्कार महामंत्र का रटन में बचपन से करता आया हूँ, फिर भी इसके प्रभाव से अनजान ही रहा, और ऐसी एक तुच्छ लौकिक शक्ति प्राप्त करने के लिए मैंने ऐसा भीषण पुरूषार्थ किया।" श्रीकांत का अंतर रो पड़ा।
"प्रतिज्ञा लो, प्रतिज्ञा लो, जल्दी करो। हाथ में आए अवसर को जाने मत दो, जिन्दगी भर पछताओगे।" -ऊपर से फिर आवाज आई।
श्रीकांत का मौन नहीं टूटा। "प्रतिज्ञा ले लूँ, तो जन्म-जन्मान्तर में पछताना ही मेरे भाग्य में रहेगा।" वह विचार कर रहा था।
"विचार मत करो, आया हुआ मौका दुबारा नहीं मिलेगा"- पुनः आवाज आई।
किंतु श्रीकांत का लक्ष्य तो अब नवकार मंत्र में ही स्थिर हो गया था। "ऐसा महाप्रभावक मंत्र जिससे यह देव भी डरता है, ऐसे महामंत्र का त्याग करके मुझे क्या प्राप्त करना है?"
"जन्म-जन्मांतर की तपस्या पर पानी फेरना है? भवो-भव की पुण्याई का अपने हाथ से अग्नि संस्कार करना है?' श्रीकांत के अंतर की गहराई में से यह जवाब आया।
"नहीं, नहीं, यह तो सोने के बदले पत्थर लेने जैसी बात है, ऐसा कभी नहीं हो सकता। ऐसी एक करोड़ सिद्धियां भी मिलती हों, तो भी मैं
179