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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
नवकार मंत्र के त्याग करने की मूर्खता नहीं कर सकता । " श्रीकांत के अन्तःकरण में यह निर्णय हो गया।
" तब मैं जाऊँ?" - उस मैले देव ने पूछा।
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श्रीकांत को अब कुछ भी जवाब देने की आवश्यकता नहीं लगी। वह चुप रहा। उसने नवकार मंत्र का जाप वहीं श्मशान में चालु कर दिया।
"स्वामी मुझे आज्ञा दो, जाने की अनुज्ञा दो। आपकी आज्ञा जब तक नहीं मिलेगी, तब तक मैं यहां से नहीं जा सकता । कृपा करो, मेरे पर दया करो। "चला जा" इतने दो शब्द बोलो।" वह देव अब लाचारी दिखा रहा था ।
" चला जा । " - श्रीकांत ने आज्ञा दी।
रात भर श्रीकांत वहीं बैठा रहा। नवकार मंत्र का जाप, वह वहां बैठा-बैठा, करता ही रहा। वहां उसकी आत्मा को समाधिभाव मिल गया। सूर्यनारायण की किरणों नें श्रीकांत के शरीर को स्पर्श किया तब उसने अपने नेत्र खोले ।
उसके चारों तरफ पुष्प बिखरे हुए पड़े थे। इसके गले में पुष्पों की माला थी। जब वह प्रसन्नचित्तता से वहां से उठकर गांव की ओर चलने लगा तब गगन में से आ रहे दिव्यनाद ने वातावरण को भी प्रफुल्लित बना दिया था।
केन्सर केन्सल हो गया है
जिसके हृदय में श्रद्धा का दीपक प्रकाशमान हो, उसे आंधी या तूफान में भी आंच नहीं आती है । संसारसागर से पार होने हेतु जीवन पथ की मंजिल पर पहुंचने के लिए हृदय में जो नवकार मंत्र रूपी दीपक प्रकाशमान हो और श्रद्धा की ज्योति जगमगाती होगी तो लाखों परेशानियों में भी राह मिल जायेगी । दृढ़ एवं गहरी श्रद्धा ने कई ही जीवों को मोक्ष का मार्ग बताया होगा । इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलेगा कि
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