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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
बातचीत शुरु हुई, किन्तु लाखों की यह आशा चालीस हजार में कैसे संतोष करे? दो-दो दिन की बातचीत के बाद हम 75 हजार पर आकर अटके और डाकू दो लाख पर !
एक रात डाकुओं में भय-भरा सन्नाटा छा गया। दूर-दूर से पुलिसों की लाइटें चमकने लगीं, किन्तु डाकुओं के चंबल की घाटियों के भेदी ज्ञान के आगे पुलिस की क्या क्षमता ?
भयाक्रान्त डाकुओं ने फिर से बातचीत शुरु की। हमारे में से राजेन्द्र ने एक लाख रूपये लाकर हमको छुड़वाने का तय किया। जाने के लिए छः तारीख तय हुई, लेकिन 5 तारीख को पुनः सौदा टूटता दिखा।
उस रात हम स्थान परिवर्तन कर रहे थे, उतने में एक डाकू आया । उसने ठाकुर से कहा, ‘“इतने सस्ते में निपटाओगे? मैं बी.ए. पास डाकू हूँ। इनके पते मुझे लिखवाना । में मुम्बई से पूरी जानकारी लेकर बताऊँगा ।
छः तारीख की शाम तक बी.ए. पास डाकू की बहुत प्रतीक्षा की, | लेकिन वह हमारे नाम-ठाम का पता लगाकर नहीं आया। डाकुओं ने हमारे माता-पिता को एक पत्र लिखवाकर उसके नीचे हमारे हस्ताक्षर करवाये । उसमें हमे लिखना पड़ा कि, 'यदि पुलिस की कार्यवाही नहीं हटाओगे तो हमें मुक्ति नहीं मिलेगी। हमारी सुरक्षा के लिए भी पुलिस का पहरा हटाने का प्रयास करना । '
ठाकुर की असमंजसता का अब पार नहीं था। बी.ए. पास डाकू के भरोसे राजेन्द्र को अभी तक रवाना नहीं किया था और उन भाई साहब को मुंह बताने की भी फुर्सत नहीं थी। दूसरी तरफ सिर पर भय के बादल बढ़ते जा रहे थे।
कंकर कंटकों ने पैरों को लहुलुहान कर दिया था। दो-ढाई बजे बेटरी का प्रकाश आया। सभी डाकुओं में हड़कंप मच गया। किन्तु थोड़ी देर में यमुना की घाटियाँ आईं। इन में से होकर छिपते छिपते सभी चंबल की अभयता में कूद पड़े। अब दो दिन तक यहां कैसा भय? डाकुओं ने आराम का श्वास लिया। डाकुओं को सात तारीख की रात को एक लाख
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