________________
-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - रसोई की तैयारी की। महात्मा के वेश में वह ठग ही था। फलोग दो फर्लाग पर दो तीन गांव रोड़ से दिखाई दे रहे थे। उस वेशधारी महात्मा ने आस पास के गांव से पन्द्रह बीस शठों को लाकर रिक्शा को घेर लिया और लूटना ही चाहते थे। रिक्शाचालक को भी थप्पड़ मारकर भगा दिया। समझाने की कोशिस भी व्यर्थ थी। पास में विद्यालय था उसे भी बन्द कर दिया और बच्चों को छुट्टी दे दी। जैसे-तैसे गूंदा हुआ आटा बन्द करके सामान रिक्शे में रखकर जयन्तिलाल श्रावकभाई ने रिक्शा रोड़ पर चढ़ा दिया था। उन आदमियों ने सड़क पर पूरी घेराबन्दी कर ली। मोटर भी खड़ी नहीं रहती थी। मैंने मन में संकल्प किया कि इस परिस्थिति से मुक्त होने पर साढ़े बारह हजार नवकार मंत्र का जाप करूंगा और नवकार मंत्र का जाप मन में चालु किया। कहा है कि "दुःख में सुमिरन सब करें।" एक व्यक्ति बस सर्विस को खड़ी करके उसमें से उतरा और बीच में आकर पूछा, 'क्यों खड़े हो?' उन व्यक्तियों ने उसे डांटकर कहा तो मैंने कहा "डॉक्टर साहब, हम जैन साधु पैदल विहार करते हैं। आपकी बिहार भूमि पर पवित्र तीर्थों की यात्रा को आये हैं। यह रिक्शा एवं सामान का प्रबंध समाज ने रास्ते की सुविधा के लिए दिया है। यह भाई हमारी बात समझते नहीं और मिथ्या दोषारोपण कर रहे हैं। डॉक्टर ने सत्तावाही आवाज में कहा "आप यहां से चले जाओ। मैं उन्हें समझा दूंगा।" मैंने कहा, 'आप साथ चलें।' उसने इशारा किया कि, 'चले जाईये।' जयन्तिलाल श्रावक ने आगे से रिक्शा हाथ से पकड़कर उसी क्षण आगे बढ़ा दिया। हम दोनों मुनियों ने भी रिक्शा के पीछे तीव्र गति से कदम उठाये।
12 बंजे का प्रायः समय था। थके हुए होने पर भी चार मील का विहार कर सुरक्षित स्थान पर एक सनातनी मन्दिर में एक जनसंघी भाई की मदद से स्थान मिला। पीछे वह डॉक्टर भी हमारे पास आया और उसने बताया कि मुझे अन्दर से प्रेरणा मिली तो में वहां उतरा था और आप बच गये। वरना आपको ये लोग लूटना चाहते थे। स्मृति में नवकार
371