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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? खड़े हो जायें। उस दिन उपाश्रय का चौकीदार अनुपस्थित था।
उस खिड़की की आवाज बढती जा रही थी। आश्चर्य की बात यह थी कि दूसरी इतनी खिड़कियां होने के बावजूद इस खिड़की के पास से जैसे बाहर से कोई अपरिचित आदमी हमें डरा रहा हो, ऐसी आवाज आ रही थी। तब हम सब घबराये। हमको लगा-कौन होगा? इसका क्या इरादा है? अब क्या होगा? कौन हमें बचायेगा? उतने में मैंने जोर से आवाज दी कि, 'कौन हो तुम? क्या चाहिये तुम्हें?' तब सामने से कुछ वापिस आवाज भी आयी, किन्तु तूफान के कारण हम इस आवाज को परख नहीं सके।
उसके पहले हम भक्तामर, ॐ नमो देवदेवाय तथा मांगलिक की धून कर रहे थे। उसके बाद हमें लगा कि अब इस भय से मुक्त कराने वाला यदि कोई तरण-तारण जहाज है, तो मंत्राधिराज श्री नवकार महामंत्र ही है। इसलिए एक कमरे के अन्दर हम तीनों साध्वीजी एक ही पाट पर बैठ गये और नवकार मंत्र की धून के अन्दर मन-वचन काया के योग से ऐसे भयहीन बन गये कि बाहर के वातावरण की हमें एकदम खबर ही नहीं थी। वैसे भी खिड़की की आवाज कम हो गयी और वातावरण शान्त होता गया। देखते ही देखते रात पूरी हो गयी। और घड़ी में चार घंटियां बजीं और हमको प्रतिक्रमण करने की स्फूर्ति आयी। फिर तो ऐसी शान्ति छायी कि, कुछ जमीन पर गिरे तो भी आवाज सुनाई दे। संवत् 2038 की इस रात्रि का तूफान अभी तक हमारे कानों में खनक रहा है। इस प्रकार भय मुक्त कराने वाला, समता देने वाला यदि कोई तत्व था, तो वह मंत्राधिराज महामंत्र नवकार ही था। किसी ने सत्य ही कहा है कि "श्रद्धा में अगर जान है तो भगवान तुमसे दूर नहीं"
सभी आत्माएं महामंत्र के रटन से सदा के लिए दुःखमुक्त, रोगमुक्त, भयमुक्त, पापमुक्त बनें, यही मंगल भावना....। ..
लेखिका - साध्वी मुख्या सुसाध्वीश्री हरखश्रीजी म.सा. लीलगगन, तलेटी रोड़, पालीताणा (सौराष्ट्र)
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