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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
चमचमाता तमाचा था। आस्था की बात भले ही परोक्ष थी, किन्तु उसका शुभ परिणाम तो प्रत्यक्ष ही था । इसलिए उसका इन्कार नहीं किया जा
सकता था।
रतनचन्द की जब डॉक्टर ने जांच की तब उनके नाखून में भी रोग का कोई संकेत दिखाई नही दिया। उन्होंने अपने ज्ञान के सामने समस्या रूप बनी इस घटना का कई दिनों तक बुद्धि के स्तर पर मनन- मंथन किया, किन्तु इसका रहस्य जानने में वे असफल ही रहे ! इसका कारण यह था कि जहां श्रद्धा- आस्था का आश्रय लेना अनिवार्य था, वहां उन्होंने (डॉक्टरों ने) तर्क-बुद्धि की सहायता स्वीकारी थी ।
नोट : " मंत्र यंत्र तंत्र विज्ञान" मासिक, जनवरी 1980 के अंक के आधार पर यह सत्य घटना लिखी है।
लेखक - प.पू. आ. श्री विजयपूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.
चम्बल की खतरनाक घाटियों में 13 दिन
(इस सत्य घटना को पढ़ने से पूर्व )
(28 दिसम्बर 1973 को घटित एकं चिन्ताजनक घटना का हूबहू शब्दचित्रण आत्मकथा की शैली में, इस कथा के नायक राजेन्द्र, सुरेश, नवीन, और चीनुभाई के मुंह से पेश किया जा रहा है। उन दिनों अपहत हुए यह चारों युवक चंबल की घाटियों में से 13 वें दिन मुक्त हुए। पेशगी की राशि देने से पूर्व हुई इस मुक्ति के पीछे किसी दैविक शक्ति का विराट हाथ था। इन जवानों ने मुक्ति के बाद 'चित्रलेखा' के सहतंत्री से भेंटवार्ता की। यह घटना चित्रलेखा में भी छपी थी। किन्तु दैविक शक्ति को 'चित्रलेखा' ने केवल सौगंध, मनौती जैसे लूले लंगड़े शब्दों में पेश किया। इस दैविक शक्ति का सच्चा परिचय सभी को मिले, इसलिए इस घटना का आलेखन करना जरुरी लगा, क्योंकि महामंत्र नवकार और शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के प्रभाव से परिचित होकर सभी सच्ची मुक्ति का मनोरथ कर सकें, ऐसे तत्त्व से यह कथा भरपूर है | )
सर्दी की सुबह थी और सर्दी देश के पूर्वी हिस्से की थी। सूर्य का
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