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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
विराट के रोम-रोम में भय की कंपकंपी छूट गई। उसके तन-बदन पर दाना चुगने बैठे आनन्द के कबूतरों की पांखें फूटीं और उड गये। वह गंभीर बनकर सोचने लगा, 'ओह ! क्या मैं वापिस पकड़ा जाऊँगा? क्या उस अंधकारमय बस्ती का आतिथ्य अभी मेरे सिर पर लिखा हुआ है? मेरा मंत्राधिराज मेरी सहायता नहीं करेगा? क्या किस्मत अभी मेरे पर खुश नहीं है? नहीं, नहीं, इस सिपाही की क्या ताकत है कि, मुझे गिरफ्तार कर सके ? जब मंत्राधिराज मेरा रक्षक है, तब किसकी हिम्मत है। कि मेरे सिर का बाल बांका कर सके ?
विराट ने देखा तो अभी सिपाही ठीक-ठीक दूर था। उसने वहां से तुरन्त भाग जाने का निर्णय किया। दिल के ऊर्मि वाद्य से महामंत्र का भक्तिगीत ललकार कर विराट हिरण की तरह तेज कदम बढ़ाने लगा ।
कहां इस विरान राह से अनजान और मात्र पन्द्रह वर्ष की उम्र का विराट ? और कहां वन जंगलों में रात-दिन घुमता सिपाही ?
विराट की हिरण छलांगें चालु ही थीं! एक श्वास से वह दौड़ा ही जा रहा था, किन्तु एक जानकार सिपाही की नजर पर चढ़ा हुआ बालक कहां तक टिक सकता?
"खड़े रहो!" सिपाही ने एक आवाज दी।
विराट ने देखा, तो सिपाही एकदम पास आकर खड़ा था। अब खड़े रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। विराट खड़ा रहा। फिर भी उसके अन्तर में ईमान एवं जिगर में श्रद्धा थी और दिल में विश्वास था कि चाहे वैसा भक्षक तत्त्व भी साधक को हैरान-परेशान नहीं कर सकता, जब महामंत्र रक्षक बनता है ! विराट निर्भय बनकर खड़ा था। उसके शरीर पर भय की एक पतली सी रेखा भी नहीं खींचाई ! अधर पर अजपाजप" था, मंत्र सम्राट का ! दिल में वह प्यारी तस्वीर खेलती थी, अलबेले आदिनाथ की !
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सिपाही ने सरदार की आज्ञा विराट के आगे पेश की, 'किसी भी प्रकार से आकाश एवं पाताल एक करके भी विराट को गिरफ्तार करो'
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