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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नवकार मंत्र का सतत जाप शुरू किया। उसमें धीरे-धीरे ऐसी तन्मयता आ गयी कि पूरी पीड़ा ही गायब हो गयी और सवेरे साढ़े सात बजे उठा, तब बहुत ही स्फूर्ति शक्ति-शान्ति का अनुभव हुआ। जैसे मैं यमराज के द्वार पर दस्तक देकर नवकार के बल से वापिस आ गया हूँ।
(2) मैं फिर अक्टुबर 1962 में मुम्बई-वांदरा में मेरी बहिन के घर बीमार पड़ा। मैं मरड़ा नाम के रोग का शिकार बना। टट्टी में खून बह गया। बोलने-चलने के शक्ति नहींवत् रही। उस रात भी जैसे दो घड़ी का मेहमान हूँ, वैसा लगा। तब उपरोक्त प्रकार की भावना के साथ श्री नवकार मैया की गोद में सो गया। जैसे चमत्कार हुआ हो, वैसे बिना दवा ही आराम का अनुभव किया। सवेरे उठा तब बहुत ही स्फूर्ति लगी। मैं अल्प समय में स्वस्थ हो गया।
(3) इस प्रकार दो-दो बार जीवनदान. प्राप्त करने के बाद तो श्री नवकार महामंत्र के प्रति मेरी आस्था बहुत ही बढ़ गयी। मैं परिणाम-स्वरूप सोते-उठते, चलते-फिरते, सुख में या दुःख में हमेशा उसका ही स्मरण करता रहता हूँ।
__ वैसी स्थिति में दि. 1-4-1973 को एक घटना घटी। उस समय मैं और मेरे बड़े भाई मनसुखलाल दलीचन्द वसा, एडन के पास जीबुटी (लाल समुद्र का एक बन्दरगाह) में एक कम्पनी में काम करते थे। उस दिन रविवार होने से हम वर्कशोप में थे। सुबह 10 बजकर 10 मिनट हुए थे। अचानक भूकंप शुरू हुआ। झले की तरह बड़ी इमारतें भी हिलने-डुलने लगीं। लोग दौड़-दौड़ कर रास्ते पर जाने लगे। मैंने तुरन्त ही बड़ी आवाज से नवकार महामंत्र का उच्चारण प्रारम्भ कर दिया। 15 सेकन्ड के बाद भूकम्प शान्त हो गया।
उसी दिन दूसरी बार 10-30 बजे भूकम्प का झटका आया। हम तीसरे मंजिल के फ्लेट में थे। तब मसाले के सभी बर्तन गिरकर टूट गये। बंदरगाह के तट पर रेल्वे के पटरियाँ टेढी-मेढी हो गयीं। स्टीमरों को भी समुन्द्र में झटके लगे। कहीं पर तीन-तीन आदमियों जितने गड्ढे हो गये
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