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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - करके वहां से विहार करते जालोर गये। वहां से राता महावीरजी से जैसलमेर संघ में जुड़ गये। नाकोड़ा के बाद चौथे मुकाम पर कुदरत ने अपना खेल दिखाना प्रारंभ किया। साढे तीन सौ साध्वीजी महाराज, एक हजार यात्रिक, बाड़मेर से 30 कि.मी. की दूरी, एकदम रेगिस्तान और उसमें भी भयंकर तूफान-वर्षा-बिजली। तम्बु तो रहते ही नहीं। खुले आकाश में बरसती वर्षा में कैसे रहें? संघ निश्रादाता पूज्यपाद आ. श्री कलापूर्णसूरिजी म.सा. का आदेश हुआ, "नवकार की धून लगाओ।" सामुदायिक धून लगाते वर्षा रुक गई, रात व्यतीत करके सुबह विहार कर साधु-साध्वीजी महाराज बाड़मेर पहुंचे। इस प्रकार चार-पांच बार संघ में ऐसा उपद्रव हुआ और नवकार मंत्र की नाव द्वारा उसे पार किया।
इस प्रकार अनेक बार नमस्कार महामंत्र का प्रकाश जीवन में आया है। अनन्य श्रद्धा सद्भाव के साथ जाप वगैरह होता है।
लेखिका-सुसाध्वीश्री चन्द्रप्रभाश्रीजी
जीवनरक्षक-विघ्न विनाशक श्री नवकार
धर्मश्रद्धा से वासित जैन परिवार में जन्म होने से छोटी उम्र से ही मुझे श्री नवकार महामंत्र पर अच्छी श्रद्धा थी। किन्तु मेरी यह श्रद्धा नीचे की घटनाओं के बाद उत्तरोत्तर मजबूत होती गई। भले ही शायद वाचकों को यह सामान्य लगे या योगानुयोग घटना जैसा लगे, किन्तु मेरे मन में तो इसका बहुत ही महत्त्व है। यह रही वह संक्षिप्त चार घटनाएं- ..
(1) मेरी तबीयत दि. 1-9-1960 के दिन बहुत ही खराब हो गयी थी। मैं 20 दिन से बिस्तर पर था। उसमें भी एक रात मेरी 8 बजे 75 प्रतिशत दृष्टि चली गयी। शरीर के रोंगटे खड़े हो गये। चलने की शक्ति एकदम समाप्त हो गयी थी। जैसे घड़ी दो घड़ी का मेहमान हूँ, वैसा लगने लगा। उससे मृत्यु में समाधि एवं परलोक में सद्गति मिले ऐसी भावना से मैंने श्री पंच परमेष्ठी भगवन्तों की शरण स्वीकार कर
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