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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? थे। उस समय भी हमने जोर-शोर से नवकार गिना था। परिणम-स्वरूप हमको कुछ भी पीड़ा नहीं हुई।
उसके बाद उसी रात 9-15 बजे भयानक आवाज के साथ तीसरी बार भूकंप आया। लाइटें बन्द हो गयीं। भंयकर अंधकार छा गया। उस समय भी हम भाव से श्री नवकार महामंत्र के स्मरण और शरण से बच गये। पूरा गांव बच गया। जान हानि नहीं हुई। परन्तु कइयों के मकानों में बड़ी दरारें पड़ गयी थीं। उसके बाद सरकार ने दो वर्ष में जोखमी मकान गिरवा दिये।
(4)दि. 11-5-86 की रात्रि में 9-30बजे राजकोट में त्रिकोण बाग के पास एक बस ने मुझे चपेट में ले लिया।
___अब मेरे हदय में चलते-फिरते नमस्कार महामंत्र बस गया था। इसके प्रभाव से बस के आगे के पहिये एवं मेरे बीच केवल एक फीट का अन्तर रहा। यदि एकदम ब्रेक नहीं लगायी होती तो, अभी मैं जीवित नहीं होता। फिर तो ऑपरेशन हुआ। तीन स्क्रू लगे। चार महिने बिस्तर पर था। परन्तु श्री देव-गुरु तृपा से उसके बाद मैंने श्री शत्रुजय गिरिराज की तीन बार यात्रा एवं गिरनारजी महातीर्थ की भी तीन बार यात्रा की तथा मैं छः री' पालक संघ में भी जाकर आया।
इस प्रकार अब तो केवल मोक्ष की ही अभिलाषा से नवकार महामंत्र का जाप सहज रूप से चालु ही रहता है।
सभी जीव नवकार महामंत्र की शरण स्वीकार कर सभी दुःखों-पापों से शीघ्र मुक्ति को प्राप्त करें, यही मंगल भावना।
लेखक-शांतिलाल दलीचन्द वसा "सुशांत"31/36 करणपरा, राजकोट-360001
आंतरिक अनुभव के उद्गार.
(प.पू. पंन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी म.सा. ने अध्यात्मयोगी प.पू.
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