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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नवकार के नित्य जाप से, निश्चय होता जय-जयकार
(बैशाखी की गुलामी गई)
80-85 वर्ष पहले की बात है। कच्छ में अंजार के पास में आंबरड़ी गांव में पू. दादा श्री जीतविजयजी म.सा. का आगमन हुआ। थोड़े दिनों के प्रवास के दौरान, पूज्य श्री के व्याख्यानों का आयोजन हुआ। एक बार पूज्य श्री ने सभा में देखा तो एक झोरा परिवार के भाई की अनुपस्थिति थी, जो प्रतिदिन व्याख्यान में अवश्य आते थे। दूसरे दिन झोरा भाई आए तब अनुपस्थिति का कारण पूछने पर श्री झोरा ने बताया कि "साहेब क्या करूं? लाचार हूँ, पैर की तकलीफ के कारण बैशाखी बिना चला नहीं जा सकता। कल वह टूट गई थी। सुथार को सही करने के लिए दी हुई थी। इस कारण न आ सका। क्षमा करें गुरुदेवा"
" तेरे जैसे को बैशाखी की गुलामी?"
"गुलामी चाहता कौन है? किंतु परवशता से सब करना पड़ता है। आप इस गुलामी से छुड़ाओगे?"
"तुझे छूटना हो तो छुड़ा दूंगा। किंतु मैं कहूं वह मानना पड़ेगा। बोल, मानेगा?"
"जरूर...जरूर... गुरुदेव! आप का नहीं मानूंगा तो किसका मानूंगा? आज्ञा फरमाईये।"
__ "तो गिन अभी ही नवकार मंत्र की पांच पक्की माला और देख नमस्कार का चमत्कार।"
उस भाई ने तो बैशाखी के सहार वहीं खड़े-खड़े ही माला गिनना शुरू कर दिया। चार माला पूरी हुई। पांचवी माला आधी होते ही चमत्कार का सृजन हुआ। बैशाखी जमीन पर गिर गई और श्री झोरा के पैर की सम्पूर्ण तकलीफ गायब हो गई। झोरा ने पांचवी माला पूरी करके चलने की शुरूआत की तो उनको स्वयं को आश्चर्य हुआ। यह क्या?
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