________________
- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? वाली दीर्घ दृश्टि से दादाजी का दंडा कभी पीठ पर भी पड़ता।
इसी कारण इच्छा से या अनिच्छा से दादाजी की निगरानी के नीचे इस मूढ जीवात्मा को आज जो धर्मदृष्टि यत्किंचित् प्राप्त हुई है, उसके मूल कारणों में माताजी की ओर से मिले धार्मिक संस्कारों के साथ, पिताजी की निश्रा-छाया की कमी पूरी करने वाले दादाजी की अच्छे संस्कार और धार्मिक शिक्षण देने की अपूर्व तमन्ना आज विशिष्ट कारण रूप लगती है। इसी के प्रभाव से मेरे जीवन में पाप का डर एवं साधु | भगवन्तों के प्रति विनय इन दो बातों के संस्कार स्थिर हो गये।
___ मेरे पूर्व के पुण्य में भावी योग से ऐसी त्रुटि रह गई कि श्रावक कुल की व्यवस्थित प्राप्ति नहीं हुई। स्थानकवासी संप्रदाय के संस्कारों के कारण, मोह के संस्कारों को कम करने के लिए श्री वीतराग प्रभु के |दर्शन, वंदन, पूजन आदि के संस्कार नहीं मिले। फिर भी घर के धार्मिक वातावरण और धार्मिक पाठशाला के शिक्षण के कारण यह बात दिमाग में पूरी तरह बस गई कि "धर्म उत्तमोत्तम वस्तु है। हम संसार में 18 पापस्थानक में फंसे हुए हैं। इसी कारण साधु ही सर्वोच्च जीवन जीने वाले हैं। इसलिए पूज्य साधु-साध्वी भगवंत जहां मिले, वहां उनका यथोचित वंदनादि विनय करना चाहिए।"
मेरा व्यावहारिक शिक्षण पाठशाला में प्रारंभ हुआ। पूर्व के पुण्य योग से व्यावहारिक शिक्षण के साथ धार्मिक शिक्षण अनिवार्य था। इसी कारण से धर्म की ओर वृत्तियां ज्यादा केन्द्रित हुई।
___ मैंने ई.स. 1946 में मेट्रिक की परीक्षा अच्छे क्रमांक से पास की। दूसरी ओर धार्मिक शिक्षण में भी सामायिक, प्रतिक्रमण, 35 बोल के थोकड़े, कई छंद, सज्झायें आदि कंठस्थ हो गये थे।
इसी दौरान मेरे छोटे भाई का देहांत चार वर्ष की छोटी उम्र में योग्य डॉक्टरी इलाज का अभाव, आर्थिक संयोगों की कमजोरी और | निष्णात डॉक्टरों की कमी आदि कारणों से हुआ।
जिससे मेरे मन में सहजता से ऐसी धारणा बैठ गई कि-'अपने को
27