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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मुश्किल में से निकालेगा।
रात्रि में 8 से 9 बजे का समय था। गाड़ी धीरे-धीरे नवकार के सहारे चल रही थी। रास्ता सीधा था। आसपास प्रगाढ़ जंगल था। इतने में अचानक जंगल के बीच में 15 से 18 वर्ष का एक युवान शर्ट, लुंगी, (आधी मोड़ी हुई) ऊपर कपड़ा बांधा हुआ-'टिपीकल दक्षिणी', हाथ में छोटी सी लकड़ी की सोटी लेकर जंगल से बाहर आया। हमने गाड़ी रोकी। ड्राइवर ने उसे उसकी भाषा में कुछ पूछा। उसने लकड़ी से रास्ता बताया और कहा, 'ऐसे नहीं, ऐसे जाओ।' हमने उसे बहुत कहा कि, 'तुम गाड़ी में बैठ जाओ और हमको रास्ता बताओ, तुम्हें खुश कर देंगे। किन्तु वह किसी भी प्रकार से हमारी गाड़ी में नहीं बैठा। अरे! उसने गाड़ी का स्पर्श भी नहीं किया और केवल रास्ता बताया। हमने गाड़ी घुमाकर उसका आभार माना। गाड़ी चालु कर अंदाज से 50 मीटर गाड़ी आगे गई, हमने फिर आभार के लिए प्रेम से पीछे देखा। वहां कोई ही नहीं था। हां! बराबर देखा वहां कोई ही नहीं था। उस समय वापिस जंगल में जाने का अर्थ नहीं था। क्योंकि उसके अन्दर से ही बाहर आये थे। हमको तो क्या था, पता नहीं था। न ही हमको वह जानने का रस था!! किन्तु इतना तो | पक्का पता पड़ गया था कि वह नवकार मंत्र के कारण ही था। हमारा | नवकार अखंड चालु रहा।
। नवकार नाम की टॉर्च हा
मेरे पिता हिमालय पर चलने के शौकिन। प्रतिवर्ष हिमालय को पैर तले करने निकल पड़ते। वे महाराष्ट्र ट्रेकिंग एसोसियेशन के आजीवन सदस्य थे। प्रतिवर्ष हिमालय की ट्रेकिंग में जाते। 10-15 सदस्य होते। हर वर्ष की तरह उस वर्ष वे नेपाल गये थे। वहां से 'गोसाई कुण्ड' जाना था। ट्रेकिंग में जाने वाले, कुदरत को रोदने वाले अपनी मस्ती में जाते हैं। कुदरत को पीते हैं, बिना भोमिये पर्वत को रोंदते हैं। काठमाण्डु से करीब 100 कि.मी. गाड़ी से गये, वहां से पैदल चलना था। शाम होने से पूर्व
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