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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - गया था। मैंने रशियन क्रान्ति के सूत्रधार लेनिन के बारे में एक पुस्तक भी लिख डाली थी। हाँ, जन्म से जैन होने के कारण पूँजीवाद को समाप्त करने के लिए स्टेलिन द्वारा आचरित हिंसा से मैं सहमत नहीं था। फिर भी, धर्म गरीबों को गरीबी में ही सोया रखने का एक साधन है, ऐसा मैं स्पष्ट रूप से मानता था। ईश्वर के अस्तित्व का स्पष्ट इन्कार करता था।
मुझे थोड़े अनुभव के बाद विश्वास हो गया था कि रशियन साम्यवाद भारत में काम आये वैसा नहीं है। ऐसे में पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच के मार्ग के रूप में विनोबा भावे ने भूमिदान आन्दोलन शुरू किया। मैं भी उसकी ओर आकर्षित हुआ। भूमिदान आन्दोलन ने आम जनता में क्या असर पैदा की? उसका अध्ययन करने में काफी गांव घुमा। उसके बाद "भूमिदान नी भीतरमा' नाम से एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक ने सरकार के सामूहिक विकास मंत्रालय दिल्ली की ओर से 'बेस्ट बुक ऑफ गुजराती लेंग्वेज' का पुरस्कार जीता। मेरी 23 से 24 वर्ष की उम्र तक में ऑल इण्डिया रेडियो-अहमदाबाद, वड़ोदरा से मेरे कई नाटक प्रसारित हो चुके थे।
उपरोक्त पूर्व भूमिका लिखने का कारण यही है कि, पवित्र नवकार मंत्र में कैसी अद्भुत शक्ति है, वह आदमी को कहाँ से कहाँ पहुंचाता है, किस प्रकार उसका बचाव करता है, वह दिखाना है।
चलो तो अब मैं अपनी मूल बात पर आता हूँ। मैं ऐसे गांव में जन्मा था, जहाँ "अ आ" सीखने के लिए भी प्राथमिक शाला नहीं थी।
मेरा गांव एकदम गरीब था। रुखी-सूखी धरती और खारा पानी होने से प्रगति की कोई निशानी नहीं थी। गुजराती भाषा में आते पत्रों को पढ़ने के लिए मेरे माता-पिता और बड़े चाचा के अलावा दूसरा कोई पढ़ा हुआ नहीं था।
संक्षेप में, मेरा गांव संपूर्ण रूप से अंधकार में डूबा हुआ था। मेरे लिए पढ़ना अनिवार्य था। उस कारण हमारे कारीयाणी गांव के पास वढवाण शहर की धुड़ी स्कूल या खांडी पोल की शाला में मैंने प्रारम्भिक
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