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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? शिक्षण का प्रारम्भ किया। उसके बाद जोरावर नगर की जैन स्कूल, सुरेन्द्रनगर की एन.टी.एम. हाईस्कूल में और अन्त में दिवान बल्लूभाई हाईस्कूल तक का मेरा मेट्रीक का शिक्षण पूर्ण किया।
परन्तु मेरे जीवन में नवकार मंत्र के महत्त्व का ज्ञान तो जोरावरनगर स्थानकवासी जैन संघ की ओर से चलती जैन शाला में से ही आया। जोरावरनगर में स्थानकवासी जैनों की बस्ती ज्यादा होने से उपाश्रय के साथ जैन शाला की प्रवृत्ति भी अच्छे ढंग से चलती थी। बचपन से ही धार्मिक संस्कारों का सिंचन हो, ऐसी उनकी तीव्र इच्छा थी। ___ में ऐसे इनके दबाव से इच्छा या अनिच्छा से जैनशाला में जाने लगा। हमारे जैन शाला के शिक्षक, उपाश्रय के मुनि महाराज के उपरान्त जैन शाला के बालकों को भी धार्मिक अभ्यास करवाते थे। उनका एक पैर लंगड़ा होने के कारण आपस में हम उन्हें लंगड़ा साहब भी कहते थे।
किन्तु हमारी जैन शाला के यह लंगड़े साहब खूब स्नेहालु थे। नवकार मंत्र का पहला पाठ 'नमो अरिहंताणं उन्होंने मुझे रटा-रटा कर पक्का करवाया। मुझे प्रथम दिन ही नवकार मंत्र के पांच पद सीखा दिये थे।
धार्मिक शिक्षण के साथ-साथ हमारी पाठशाला के साहब हमको कितनी ही धार्मिक वार्ताएं सनाते थे और सीधा एवं सरल धार्मिक उपदेश भी देते थे। उन्होंने मेरे मन में एक बात ऐसी दृढ़ कर दी थी कि, "यदि तुमको रात के अंधेरे में डर लगता हो, तो रात में सोते समय 21 नवकार मंत्र का स्मरण करके सो जाओ। प्रतिदिन रात्रि में सोने से पहले 21 नवकार मंत्र का स्मरण करके सोने से भूत-प्रेत का डर नहीं लगता है। सांप या बिच्छू जैसे जहरीले जन्तु तुमको काटते नहीं, या बाघ, सिंह जैसे हिंसक प्राणी तुमको नींद में नहीं मार सकते हैं।" ___में गुरुजी से बचपन में सीखी कई बातें भूल गया था। किन्तु वह 21 नवकार गिनकर सोने की बात मैं आज तक नहीं भूला। मैं बड़ी उम्र में कार्लमार्क्स के विचारों की असर के कारण ईश्वर के अस्तित्व का इन्कार करने के बावजूद 21 नवकार वाली बात नहीं भूल सका। मैंने
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