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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अधूरी श्रद्धा या अश्रद्धा से नवकार मंत्र और वो भी 21 नवकार ही गिनना चालु रखा और उसने मेरे जीवन में जबरदस्त क्रांति पैदा की। | जिस गांव में प्रारम्भिक शिक्षण के लिए भी प्राथमिक शाला नहीं थी, ऐसे सौराष्ट्र के अंधेरे. कोने में आये हुए गांव में जन्मा मैं 23 वर्ष की उम्र में ऑल इण्डिया रेडियो-अहमदाबाद बड़ौदा का नाट्य लेखक बना। इसी समय में "भूमिदान, नी भीतरमा नाम की मेरी पुस्तिका को केन्द्र सरकार ने पुरस्कृत किया। गुजरात सरकार ने भी मेरी एक पुस्तिका प्रकाशित की। प्रख्यात नट और दिग्दर्शक प्राणसुख नाटक ने मेरा थ्री एक्ट प्ले स्टेज किया, जिनको पिछले दिनों राष्ट्रपति ने पुरस्कृत किया था। । मुझे सरकारी नौकरी में भी मेरी धारणा के अनुसार सफलता मिली। में अन्त में शिक्षा अधिकारी (राजपत्रित अधिकारी) की नौकरी से निवृत्त हुआ। आज सेवानिवृत्त होने के बाद 15 जितने मेरे मौलिक नाटक आकाशवाणी-अहमदाबाद से प्रसारित हो चुके हैं। मेरे टेलीविजन अर्थात् इसरो अहमदाबाद के पीज केन्द्र से 30 जितने नाटक प्रदर्शित हो चुके हैं। मेरी सेवा निवृत्ति के बाद अब साहित्य प्रवृत्ति में गति तेज हुई है। यह सब मेरे 21 नवकार मंत्र के जाप का ही प्रभाव है। ऐसा मैं स्पष्ट रूप से मानता हूँ। मेरे अरिहन्त से मैंने जो मांगा है, वह दिया है। उसने भीषण गरीबी में से मेरा उद्धार किया है। यह बात तो भौतिक लाभ की हुई। परन्तु समय समय पर मेरे अरिहंत ने मेरा किस-किस प्रकार बचाव किया है। यह बात अब क्रमशः पेश करता हूँ।
(1) कुएं में गिरता बचाः- मुझे पांच से सात वर्ष की उम्र में पानी में कूदकर नहाने का बहुत शौक था। इस उम्र में अपने से बड़ी उम्र के लड़कों को पानी में गिरकर तैरते देखकर मुझे भी कुंए में गिरकर तैरने के विचार आते एक दिन में कहे बिना गांव के एक खुले कुएं में कूदने हेतु तत्पर हुआ। मैंने कुएं की पाल पर से दो कदम दौड़कर कुएं में कूद भी लगाई। मेरे पैर कुंए की पाल से हवा में उठ गये थे। कुएं में गिरना मेरे लिये तय था। किन्तु इसी पल हवा का इतना जोरदार झोंका आया कि
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