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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
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जाने के लिए हमेशा समझाते थे। 'पिताजी हमेशा आग्रह करते हैं, तो चलो एक बार जाकर आते हैं, ऐसा सोचकर एकबार वहाँ सजोड़े गया । कुछ रुचि जगी । मेरा जाने का नियमित हो गया। मैं जैन धर्म के नजदीक आया । धर्म के प्रति की नीरसता धीरे-धीरे कम हुई। जैन धर्म में कुछ आर्कषक बातें हैं, यह बात मन में बैठी। उसके बाद हमारे कच्छ - मनफरा गांव में नौ दीक्षाऐं थीं। यह कार्यक्रम प.पू. आचार्य भगवन्त श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में था। पूज्य श्री का एकदम परिचय नहीं था। कुछ चढ़ावा लिया, इसलिए मंच पर जाकर पूज्य श्री की वासक्षेप लेने गया । पूज्य श्री ने पूछा, "हमेशा पूजा करते हो?" मैंने मना किया? 'अब करोगे ना?" पूज्य श्री को मना नहीं कर सका। पूज्य श्री की वात्सल्य बरसती वाणी, और इनके चरणों के स्पर्श ने जीवन की दिशा एवं मन की भूमिका को बदल डाला। उसके बाद पूज्य श्री के मुख से परमात्मा के अनगिनत गुण - उपकारों वगैरह की बातें सुनी। नमस्कार महामंत्र की महाप्रभावकता के बारे में जाना। मैं इसके स्मरण-जाप-भक्ति-उपासना के बारे में जानता गया, वैसे वैसे इस मंत्र के बारे में मेरी श्रद्धा दृढ़ बनती गई। मैंने नवकार मंत्र के बारे में अनुकूलता अनुसार पुस्तकें पढ़ीं। अनगिनत गूढ़ शक्तियां, असीम तारकता, मेरा सदा रक्षक और असीमित पुण्य के दाता ऐसे इस महामंत्र के प्रति रुचि, आकर्षण, सम्मान, और समर्पण भाव ऐसा जगा कि कोई डिगा नहीं सके। अन्य किसी के मुंह से यह मंत्र सुनार्थी दे तो भी आनंद की एक झलक का स्पर्श होता है।
तारंगा तीर्थ की यह घटना कभी भूल नहीं सकुंगा । परमतारक तीर्थंकर प्रभु श्री अजितनाथ की यात्रा की। शाम को स्टेशन जल्दी पहुंचना था। दूसरा कोई साधन मिल सके, वैसा नहीं था । हम छः मित्र और एक अन्य नव परिणित युगल छोटे रास्ते से जल्दी स्टेशन पहुंचने के लिए निकले।
मार्ग सूचक पट नीचे गिर जाने के कारण हम गलत रास्ते पर आगे बढ़ गये। हमें डेढ़ घण्टे के भ्रमण के बाद ख्याल आया कि हम मार्ग भूल गये हैं। हम फंस गये थे। पैर नर्म मिट्टी में धंस जाते थे। बोलने
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